नागरिकों के अधिकारों और कर्तव्यों पर निबंध – Rights And Responsibilities Of Citizens Essay In Hindi

Rights And Responsibilities Of Citizens Essay In Hindi

नागरिकों के अधिकारों और कर्तव्यों पर छोटे तथा बड़े निबंध (Essay on Rights and Responsibilities of Citizens in Hindi)

वरिष्ठ नागरिकों की समस्याएँ – Problems of senior citizens

रूपरेखा-

  • प्रस्तावना,
  • वरिष्ठ नागरिक का आशय,
  • वरिष्ठ होने की स्थिति,
  • समस्याएँ,
  • समाधान,
  • उपसंहार।

साथ ही, कक्षा 1 से 10 तक के छात्र उदाहरणों के साथ इस पृष्ठ से विभिन्न हिंदी निबंध विषय पा सकते हैं।

प्रस्तावना-
आयु का बढ़ते रहना प्रकृति का अटल नियम है। सभी को एक दिन वृद्ध होना पड़ता है। हमारी संस्कृति वृद्धजनों के प्रति विनम्र और सेवाभावी होने की शिक्षा देती है। आज वृद्धजनों को वरिष्ठ नागरिक कहा जाता है।

वरिष्ठ नागरिक का आशय-
वरिष्ठ नागरिक का आशय क्या है? मनुष्य की वरिष्ठता के अनेक आधार हो सकते हैं किन्तु यहाँ वरिष्ठता का तात्पर्य आयु की परिपक्वता से है। सामान्यतः साठ वर्ष की आयु का व्यक्ति वरिष्ठ नागरिक माना जाता है।

यह आयु प्राप्त होते ही उसे सरकारी और निजी सेवाओं से मुक्त कर दिया जाता है। मान लिया जाता है कि वह काम करने लायक नहीं रहा। अभी सरकार ने 55 वर्ष की उम्र प्राप्त होने पर महिलाओं को वरिष्ठता के लाभ देने का निश्चय कर लिया है।

वरिष्ठ होने की स्थिति-जब कोई महिला या पुरुष वरिष्ठ होने की अवस्था में पहुँचता है तो समाज, सरकार तथा परिवार के लोग उसे काम करने के अयोग्य मान लेते हैं। सरकार या नियोजक उसे अपनी सेवा से रिटायर कर देते हैं।

घर में भी प्रायः पुत्र उसकी जिम्मेदारियाँ अपने कंधों पर उठा लेते हैं। लड़कों की शादी हो जाती है, घर में बहू आ जाती है तो सास को कार्य-मुक्त कर देती है। इस प्रकार यह अवस्था सत्ता या अधिकार परिवर्तन की द्योतक है।

वरिष्ठ नागरिकों की समस्याएँ-

(i) फालतू और अकेलेपन की समस्या-
वरिष्ठ नागरिक को फालतू समझा जाता है। माना जाता है कि वह किसी काम का नहीं रहा। नौकरी, व्यापार या अन्य जो काम वह करता था, उससे मुक्त होने के कारण वह खाली ही रहता है। काम के सिलसिले में अनेक लोग उसके पास आते थे, अब कोई नहीं आता। फलतः वह अकेलेपन की समस्या से जूझता रहता है। घर में पत्नी हो तो ठीक है। अगर कहीं उसने पहले ही भगवान से प्यार का नाता जोड़ लिया हो, तब तो यह अकेलापन उसे कहीं का नहीं रहने देता। पैसे तथा शारीरिक शक्ति के चुक जाने से कहीं घूमने-फिरने नहीं जा सकता।

(ii) अपमान की समस्या-
शरीर निर्बल है, जेब खाली है, काम कर नहीं सकते। ऐसी दशा में समाज तथा परिवार से सम्मान की अपेक्षा बढ़ जाती है परन्तु वह मिलता नहीं। सर्वत्र उपेक्षा उसे त्रस्त कर देती है। प्रेमचन्द के ‘गोदान’ का होरी जब अन्न की राशि से एक कटोरा भरकर भिखारी को देना चाहता है, तो उसका पुत्र उसको झटक देता है। इस अपमान से आहत होरी अशक्त शरीर से ही खेतों में काम करने चल पड़ता है। वह बताता है कि वह बेकार नहीं है। अतः अपनी कमाई को अपनी इच्छानुसार खर्च कर सकता है।

(iii) सुरक्षा की समस्या-
शारीरिक शक्ति चुकने तथा समाज और परिवार की उपेक्षा के कारण वरिष्ठ नागरिकों के सामने अपनी सुरक्षा की समस्या भी उठ खड़ी होती है। धन के लालच में बहुत बार उनके नौकर ही उनकी हत्या कर देते हैं।

समाधान-
वरिष्ठ नागरिकों की समस्याओं का समाधान सरकार तथा समाज दोनों को मिलकर करना चाहिए। परिवार में उनको सम्मान दिया जाना चाहिए तथा उनको बोझ नहीं समझा जाना चाहिए। आज के व्यस्त जीवन में उनके लिए ‘वृद्धाश्रम’ बनाये जाने चाहिए। पश्चिमी देशों में ऐसे आश्रम हैं।

जब भारत पाश्चात्य सभ्यता को अपना रहा है और उसके दोष भारतीय जीवन में प्रवेश कर रहे हैं तो पश्चिम की जीवन-शैली की अच्छाइयों को अपनाना अनुचित नहीं है। वयस्क नागरिक स्वयं को भी फालतू न मानें तथा किसी उपयोगी कार्य से स्वयं को जोड़ें।।

उपसंहार-
वरिष्ठता या आयु से वृद्धता कोई दोष या अपराध नहीं है। बहुत प्राचीनकाल से हमारे देश में सौ वर्ष जीवित रहने का आदर्श मान्य रहा है। भारतीयों ने सदा प्रार्थना की है-‘जीवेम शरदः शतम्। भारतीय संस्कृति में वृद्धों का सम्मान तथा सेवा करने की शिक्षा दी गई है-

अभिवादनशीलस्य नित्यं वृद्धोपसेविनः
चत्वारि तस्य वर्धन्ते आयुर्विद्या यशो बलम्।

एक्सीलेण्ट हिन्दी अनिवार्य कक्षा-12471 इसी आचरण में वरिष्ठ नागरिकों की समस्त समस्याओं का समाधान निहित है। यदि आज का भारतीय युवा इन सांस्कृतिक मूल्यों के प्रति संवेदनशील बन सके।

महिलाओं की समाज में भूमिका पर निबंध – Women’s Role In Society Essay In Hindi

Women's Role In Society Essay In Hindi

महिलाओं की समाज में भूमिका पर छोटे तथा बड़े निबंध (Essay on Role of Women Society in Hindi)

कामकाजी महिलाओं की समस्याएँ – राष्ट्रीय विकास में महिलाओं का योगदान – (Problems Of Working Women Or Contribution Of Women In National Development)

रूपरेखा-

  • प्रस्तावना,
  • वर्तमान भारत में महिलाओं की स्थिति,
  • राष्ट्र के विकास में योगदान,
  • कामकाजी महिलाओं की समस्याएँ,
  • समस्याओं का समाधान,
  • उपसंहार।।

साथ ही, कक्षा 1 से 10 तक के छात्र उदाहरणों के साथ इस पृष्ठ से विभिन्न हिंदी निबंध विषय पा सकते हैं।

प्रस्तावना-
नारी और पुरुष गृहस्थ जीवन के दो पहिये हैं। अब तक सारे संसार में नारी के प्रति दृष्टिकोण में उल्लेखनीय परिवर्तन नहीं हुआ है। उसे शारीरिक रूप से अक्षम माना जाता रहा है। अत: किसी प्रकार के श्रमसाध्य कार्य (मजदूरी को छोड़कर) में उसे लगाने में संकोच किया जाता रहा है।

लेकिन महिलाओं की शिक्षा में वृद्धि तथा अवसरों के मिलने से इस दिशा में क्रान्तिकारी परिवर्तन हुआ है। आज महिलाएँ भी पुरुष के समान ही हर क्षेत्र में आगे बढ़कर काम कर रही हैं, यह एक सुखद स्थिति है।

वर्तमान में महिलाओं की स्थिति-
आज महिलाओं द्वारा उच्च से उच्च शिक्षा ग्रहण कर पुरुष के बराबर अपनी योग्यता का प्रदर्शन किया जा रहा है। चिकित्सा, इन्जीनियरिंग, कम्प्यूटर, प्रौद्योगिकी तथा उच्च प्रशासनिक एवं पुलिस सेवाओं में उनका पुरुषों के समान ही सम्मानजनक स्थान है।

पुलिस सेवा में किरण बेदी जैसी अनेक महिलाएँ अपनी कार्यकुशलता का लोहा मनवा चुकी हैं। आज केन्द्रीय राजधानी दिल्ली और राज्यों की राजधानियों के उच्चपदस्थ स्थानों पर महिलाओं ने अपनी योग्यता स्थापित की है।

योरोप और अमेरिका ही नहीं आज इजरायल, मिस्र और छोटे-छोटे अरब देशों एवं अफ्रीका जैसे -छोटे देशों की अनेक महिलाओं ने वायुयान संचालन एवं सेना, पुलिस और परिवहन के क्षेत्रों में भी कार्य करके पुरुषों की बराबरी का साहस दिखाया है।

भारतीय सेना ने तो देश की युवा महिलाओं पर प्रशंसनीय भरोसा जताया है। अब महिलाओं को भी सेना में लड़ाकू विमानों के संचालन जैसी महत्त्वपूर्ण जिम्मेदारियाँ सौंपी जा रही हैं।

राष्ट्र-विकास में योगदान-
संसार के विकसित देशों और विकासशील देशों में नारी का अपने राष्ट्र-निर्माण में महत्त्वपूर्ण योगदान है। चीन और भारत जैसे विशाल आबादी वाले देशों को छोड़कर विश्व के अन्य देशों में बहुत तेजी से औद्योगिक विकास हुआ है।

कुशल और उच्च प्रशिक्षण युक्त पुरुषों के समान ही वहाँ की नारी शक्ति भी उनके विकास में सहयोगिनी हुई है। भारत और चीन में भी कुशल और उच्च शिक्षा प्राप्त महिलाओं का प्रतिशत बढ़ता जा रहा है।

अतः उनको राष्ट्र-निर्माण और विकास में नियोजित करना आवश्यक हो गया है। दोनों ही देशों में कामकाजी महिलाओं की संख्या तेजी से बढ़ रही है। राष्ट्र के निर्माण और विकास में उनका योगदान कम महत्त्व का नहीं है।

कामकाजी महिलाओं की समस्याएँ-
भारत में शिक्षण-प्रशिक्षण और कामकाज करके योग्यता ग्रहण करने में तो महिलाओं का तेजी से योगदान बढ़ा है परन्तु पुरुष समाज का नारी के प्रति दृष्टिकोण अभी तक नहीं बदला है। आज भी पुरुष नारी को हेय दृष्टि से देखता है।

वह उसे बच्चे बनाने वाली मशीन की तरह ही बनाये रखना चाहता है। अत: उनके विकास और स्वतन्त्रता की राह में हर तरह के काँटे बिछाने के प्रयास किये जा रहे हैं। परिणामस्वरूप महिलाएँ अपनी योग्यता के अनुसार खुलकर कार्य नहीं कर पाती हैं।

भारतीय समाज तो अभी तक प्राचीन सामन्ती मानसिकता से अधिक आगे नहीं बढ़ पाया है। अतः यहाँ कामकाजी महिलाएँ बड़ी कठिनाई से अपना जीवनयापन कर पा रही हैं।

हमारे देश में आज भी अकेली महिलाएं देर रात तक घर से बाहर नहीं रह पाती हैं। यदि भूलवश ऐसा हो भी जाए तो असभ्य दरिन्दों की दरिन्दगी का उन्हें शिकार होना पड़ता है। अतः भारत में अभी भी महिलाएँ सुरक्षित नहीं कही जा सकी। उत्तर प्रदेश शासन द्वारा इस दिशा में कुछ प्रयोग किए जा रहे हैं। देखें क्या हो पाता है?

समस्याओं का समाधान-
सदियों से संघर्ष करते-करते महिलाओं ने बड़ी कठिनाई से इस स्थिति को प्राप्त किया है। जिसमें वह पुरुष की क्रीतदासी न होकर उसकी सहयोगिनी बन पाई है। वह पुरुष के समान ही राष्ट्र निर्माण एवं विकास में भाग ले रही है।

अत: असभ्य आचरण करने वाले थोड़े से दरिन्दों के भय से वह अपना लक्ष्य-त्याग नहीं कर सकती। सरकारी स्तर पर उनके लिए “कामकाजी महिला हॉस्टल” बनाये गये हैं, जहाँ वे सुरक्षित और सुखपूर्वक रहकर अपने राष्ट्र-निर्माण के महान योगदान में भागीदारी निभा रही हैं।

बड़े शहरों में इस प्रकार के सामूहिक फ्लैट्स बनाए गए हैं जिनमें अकेली महिलाएँ सुख-सुविधा सम्पन्न सुरक्षित जीवन-यापन कर रही हैं। कामकाज के स्थान पर भी उन्हें हर प्रकार की सुरक्षा उपलब्ध है। के प्रसार ने पुरुषों के दृष्टिकोण में भी अपेक्षित परिवर्तन किया है। अतः अब कामकाजी महिलाएँ निश्चिन्त होकर राष्ट्र के विकास में सहयोगिनी बनी हुई हैं।

उपसंहार-
इस प्रकार महिलाएँ जो राष्ट्र-निर्माण में पुरुष के बराबर की ही सहभागिनी रही हैं, आज निर्भय होकर अपने दायित्व का निर्वाह कर रही हैं। पुरुष समाज के समझदार लोगों को इस कार्य में उनका पूर्ण सहयोग देकर तथा प्रोत्साहित करके राष्ट्र-निर्माण के यज्ञ में देश की आधी आबादी की प्रतिभा का विकास करना चाहिए तथा आवश्यक रूप से कार्य संयोजन करना चाहिए।

पर्यावरण बचाओ पर निबंध – Environment Essay In Hindi

Environment Essay In Hindi

पर्यावरण बचाओ पर छोटे तथा बड़े निबंध (Essay on Save Environment in Hindi)

प्रदूषण-वृद्धि की समस्या अथवा पर्यावरण बचाओ अभियान – (Pollution problem – Save environment campaign)

रूपरेखा-

  • प्रस्तावना,
  • पर्यावरण प्रदूषण के प्रकार,
  • पर्यावरण प्रदूषण : जिम्मेदार कौन,
  • पर्यावरण प्रदूषण रोकने के उपाय,
  • उपसंहार।।

साथ ही, कक्षा 1 से 10 तक के छात्र उदाहरणों के साथ इस पृष्ठ से विभिन्न हिंदी निबंध विषय पा सकते हैं।

प्रस्तावना-
आज की दुनिया विचित्र नवीन, प्रकृति पर सर्वत्र है विजयी पुरुष आसीन। हैं बँधे नर के करों में वारि, विद्युत, भाप, हुक्म पर चढ़ता-उतरता है पवन का ताप। वैज्ञानिक प्रगति के उन्माद से ग्रस्त मानव ने प्रकृति-माता को दासी के पद पर धकेल दिया है। वह नाना प्रकार से प्रकृति के निर्मम दोहन में व्यस्त है। उसे विरूप बना रहा है। उद्योगों का कूड़ा-कचरा और विषैले विसर्जन पर्यावरण को प्रदूषित करने की होड में लगे हए हैं। मनुष्य ने अपने ही प्रमाद से अपने भविष्य को अंधकारमय बना डाला है।

पर्यावरण प्रदूषण के प्रकार-आज सृष्टि का कोई पदार्थ, कोई कोना प्रदूषण के प्रहार से नहीं बच पाया है। प्रदूषण मानवता के अस्तित्व पर एक नंगी तलवार की भाँति लटक रहा है। प्रदूषण मुख्य रूप से निम्नलिखित प्रकार का है-

(1) जल प्रदूषण-जल मानव जीवन के लिए परम आवश्यक पदार्थ है। जल के परम्परागत स्रोत हैं-कुएँ, तालाब, नदी तथा वर्षा का जल। प्रदूषण ने इस सभी स्रोतों को दूषित कर दिया है। औद्योगिक प्रगति के साथ-साथ हानिकारक कचरा और रसायन बड़ी बेदर्दी से इन जलस्रोतों में मिल रहे हैं। महानगरों के समीप से बहने वाली नदियों की दशा तो अत्यन्त दयनीय है। गंगा, यमुना, गोमती आदि सभी नदियों की पवित्रता प्रदूषण की भेंट चढ़ गई है।

(2) वायु प्रदूषण-वायु भी जल जितना ही आवश्यक पदार्थ है। श्वास-प्रश्वास के साथ वायु निरन्तर शरीर में आती आज शद्ध वायु का मिलना भी कठिन हो गया है। वाहनों, कारखानों और सड़ते हुए औद्योगिक कचरे ने वायु में भी . जहर भर दिया है। घातक गैसों के रिसाव भी यदा-कदा प्रलय मचाते रहते हैं। गैसीय प्रदूषण ने सूर्य की घातक किरणों से रक्षा करने वाली ‘ओजोन परत’ को भी छेद डाला है।

(3) खाद्य प्रदूषण-प्रदूषित जल और वायु के बीच पनपने वाली वनस्पति या उसका सेवन करने वाले पशु-पक्षी भी आज दूषित हो रहे हैं। चाहे शाकाहारी हो या माँसाहारी कोई भी भोजन के प्रदूषण से नहीं बच सकता।

(4) ध्वनि प्रदूषण-कर्णकटु और कर्कश ध्वनियाँ मनुष्य के मानसिक सन्तुलन को बिगाड़ती हैं और उसकी कार्य-क्षमता को भी कुप्रभावित करती हैं। आकाश में वायुयानों की कानफोड़ ध्वनियाँ, धरती पर वाहनों, यन्त्रों और संगीत का मुफ्त दान करने वाले ध्वनि-विस्तारकों का शोर। सब मिलकर मनुष्य को बहरा बना देने पर तुले हुए हैं।

(5) विकिरणजनित प्रदूषण-परमाणु विस्फोटों तथा परमाणु संयन्त्रों से होते रहने वाले रिसाव आदि से विकिरणजनित प्रदूषण भी मनुष्य को भोगना पड़ रहा है। रूस के चेर्नोबिल तथा जापान के परमाणु केन्द्रों से होने वाला प्रदूषण जग विख्यात है।

पर्यावरण प्रदूषण :
जिम्मेदार कौन ?-प्रायः हर प्रकार के प्रदूषण की वृद्धि के लिए हमारी औद्योगिक और वैज्ञानिक प्रगति तथा मनुष्य का अविवेकपूर्ण आचरण ही जिम्मेदार है। वाहनों का गैस-विसर्जन, चिमनियों का धुआँ, रसायनशालाओं की विषैली गैसें मनुष्यों की साँसों में जहर फूंक रही हैं। सभी प्रकार के प्रदूषण हमारी औद्योगिक और जीवन-स्तर की प्रगति से जुड़ गये हैं। हमारी हालत साँप-छछूदर जैसी हो रही है।

पर्यावरण प्रदूषण रोकने के उपाय-प्रदूषण ऐसा रोग नहीं है कि जिसका कोई उपचार ही न हो। प्रदूषण फैलाने वाले सभी उद्योगों को बस्तियों से सुरक्षित दूरी पर ही स्थापित किया जाना चाहिए। किसी भी प्रकार की गन्दगी और प्रदूषित पदार्थ को नदियों और जलाशयों में छोड़ने पर कठोर दण्ड की व्यवस्था होनी चाहिए।

वायु को प्रदूषित करने वाले वाहनों पर भी नियन्त्रण आवश्यक है। प्रदूषण पर नियंत्रण के लिए अंतर्राष्ट्रीय समुदाय ने जो दीर्घगामी नीति बनाई है, भारत उसे स्वीकार कर चुका है। बहुसंख्यक देश भी इसे स्वीकार करने को तत्पर दिखते हैं। किन्तु अमेरिका के वर्तमान राष्ट्रपति महोदय (ट्रंप) की भूमिका अत्यंत निराशाजनक है।

उपसंहार-पर्यावरण का प्रदूषण एक अदृश्य दानव की भाँति मनुष्य-समाज को निगल रहा है। यह एक विश्वव्यापी संकट है। यदि इस पर समय रहते नियन्त्रण नहीं किया गया तो आदमी शुद्ध जल, वायु, भोजन और शान्त वातावरण के लिए तरस जायेगा। प्रशासन और जनता, दोनों के गम्भीर प्रयासों से ही प्रदूषण से मुक्ति मिल सकती है।

भारत में लोकतंत्र पर निबंध – Democracy in India Essay in Hindi

Democracy in India Essay in Hindi

भारत में लोकतंत्र पर बड़े तथा छोटे निबंध (Essay on Democracy in India in Hindi)

जनतंत्र का आधार चुनाव – Democracy’s Base Election

रूपरेखा-

  • प्रस्तावना,
  • जनता और चुनाव,
  • राजनैतिक दल और नेता,
  • चुनाव प्रचार,
  • चुनाव का दिन,
  • मतगणना,
  • उपसंहार।

साथ ही, कक्षा 1 से 10 तक के छात्र उदाहरणों के साथ इस पृष्ठ से विभिन्न हिंदी निबंध विषय पा सकते हैं।

प्रस्तावना-
चुनाव लोकतंत्र का आधार है। एक निश्चित समय के लिए जनता अपने प्रतिनिधि चुनती है। ये लोग मिलकर देश की व्यवस्था चलाने के लिए सरकार का गठन करते हैं। संविधान द्वारा अधिकार प्राप्त आयोग चुनाव कराने की व्यवस्था करता है। उसका दायित्व स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव कराना होता है। लोकतंत्र के लिए चुनाव आवश्यक है। उसके बिना लोकतंत्र नहीं चल सकता।

जनता और चुनाव-
चुनाव का अधिकार जनता को होता है। भारतीय संविधान के अनुसार प्रत्येक वयस्क स्त्री-पुरुष को अपना प्रतिनिधि चुनने का अधिकार है। पच्चीस वर्ष का होने के बाद प्रत्येक स्त्री-पुरुष को चुनाव में खड़ा होने का अपि कार है। हमारे देश में अनेक राजनैतिक दल हैं। ये दल चुनाव में अपना उम्मीदवार खड़ा करते हैं। जनता जिसको पसन्द करती है उसको वोट देकर अपना प्रतिनिधि चुनती है। इस प्रकार निर्वाचन में जनता बहुत महत्त्वपूर्ण होती है। उसके बिना निर्वाचन का कार्य हो ही नहीं सकता।

राजनैतिक दल और नेता-
भारत में अनेक राजनैतिक दल हैं। इनमें दो-चार राष्ट्रीय स्तर के तथा शेष सभी क्षेत्रीय दल हैं। ये चुनाव में अपने उम्मीदवार उतारते हैं। कुछ लोग निर्दलीय रूप से भी चुनाव लड़ते हैं। चुनाव की घोषणा होने पर राजनैतिक दल किसी क्षेत्र से एक उम्मीदवार को टिकट देता है।

टिकट पाने के लिए भीषण मारामारी होती है। उससे आपसी सद्भाव टूटता है, जातिवाद तथा सम्प्रदायवाद बढ़ता है, एक-दूसरे के विरुद्ध आरोप-प्रत्यारोप लगाये जाते हैं। इस प्रकार चुनाव शांति और गम्भीरता के साथ नहीं हो पाता।

चुनाव प्रचार-
नामांकन पूरा होने के साथ ही प्रत्याशी तथा दल अपना प्रचार आरम्भ कर देते हैं। इसके लिए अखबारों तथा दूरदर्शन पर विज्ञापन दिए जाते हैं, जनसभाएँ होती हैं, झण्डा-बैनर आदि का प्रयोग होता है, जुलूस निकाले जाते. अन्त में प्रत्याशी अपने मतदाताओं से व्यक्तिगत सम्पर्क करता है।

उस समय वह विनम्रता की साकार मूर्ति बन जाता है। जनता के लिए यह समय बड़ा महत्त्वपूर्ण होता है। वैसे कोई उसे पूछे या न पूछे, इस समय नेतागण उसके घर की धूल ले लेते है। चुनाव प्रचार का समय बड़ा कठिन होता है।

इस समय दंगे तथा झगड़े होने का भय सदा बना रहता है। चुनाव से पूर्व प्रचार बन्द हो जाता है। कुछ स्वार्थी नेता रात के अंधेरे में वोटरों को नकद रुपया तथा शराब देकर उनको अपने पक्ष में वोट देने के लिए तैयार करते हैं।

चुनाव का दिन निर्वाचन आयोग चुनाव की व्यवस्था करता है। मतदान केन्द्र पर मतदान अधिकारी उपस्थित रहते हैं जो मतदान कराते हैं। अपने मतदान केन्द्र पर जाकर निर्धारित प्रक्रिया के अनुसार मतदाता मतदान करता है।

आजकल ई. वी. एम. का बटन दबाकर मतदान कराया जाता है। इस मशीन में प्रत्येक प्रत्याशी का नाम तथा चुनाव-चिह्न अंकित होता है। उसके एक्सीलेण्ट सामने लगा बटन दबाने से उसको वोट मिल जाता है। अब सबसे नीचे एक बटन नोटा अर्थात् इनमें से कोई नहीं का भी होता है।

जिस मतदाता को कोई उम्मीदवार पसंद नहीं होता वह नोटा का बटन दबाता है। चुनाव शांतिपूर्वक कराने की कठोर व्यवस्था की जाती है तथा पुलिस और सुरक्षा बलों की ड्यूटी लगाई जाती है। किन्तु कुछ स्थानों पर मारपीट, बूथ कैप्चरिंग, गोलीबारी आदि की घटनाएँ होती हैं।

मतगणना-
मतदान का काम समाप्त होने के पश्चात् मतगणना की जाती है। गणना में जिस उम्मीदवार को सबसे ज्यादा मत मिलते हैं उसे विजयी घोषित किया जाता है। जिस दल को बहुमत प्राप्त होता है, उसके विजयी उम्मीदवार अपना एक नेता चुनते हैं।

वही प्रधानमंत्री या मुख्यमंत्री नियुक्त किया जाता है और शासन-व्यवस्था सँभालता है।

उपसंहार-
चुनाव में भाग लेने वाले मतदाता को जाति, धर्म अथवा अन्य दबाव से मुक्त होकर वोट करना चाहिए। उसे निष्पक्ष होकर सुयोग्य उम्मीदवार का ही चयन करना चाहिए। इधर ई. वी. एम. मशीन की प्रामाणिकता को लेकर, उत्तर-प्रदेश आदि राज्यों के चुनाव परिणामों के पश्चात्, शंका युक्त सवाल भी उठे हैं। किन्तु ये शंकाएँ वास्तविक कम और पराजय की पीड़ा को व्यक्त करने वाली ही अधिक प्रतीत होती हैं। कुल मिलाकर हमारा निर्वाचन आयोग अपनी सुव्यवस्था के लिए बधाई का पात्र सिद्ध होता है। निष्पक्ष और त्रुटिरहित मतदान ही लोकतंत्र का मूलाधार है।

योग पर निबंध – Yoga Essay In Hindi

Yoga Essay In Hindi

योग पर छोटे तथा बड़े निबंध (Essay on Yoga in Hindi)

योग और युवावर्ग – Yoga and Youth

रूपरेखा-

  • प्रस्तावना,
  • युवा और योग,
  • युवाओं की योग के प्रति सोच,
  • उपसंहार।।

प्रस्तावना-
कहा गया है ‘योगः कर्मस कौशलम’। इसका अर्थ है कि कर्मों में कशलता योग है। इसका संकेत यह भी है कि यदि कर्मों में कुशलता प्राप्त करनी है तो योग अपनाइए। यह विचार सर्वथा उपयुक्त और परीक्षित भी है।

कार्यकुशल व्यक्ति एक प्रकार का योगी ही होता है। योग के आठ अंगों में से यम, नियम, आसन, ध्यान ये चार प्रत्येक व्यक्ति को सामान्य जीवन में लाभ पहुँचाते हैं। इनके अंगों के साधन से व्यक्ति तन और मन दोनों को सशक्त और परम उपयोगी बना सकता है।

युवा और योग-युवावर्ग के लिए तो योग वरदान से कम नहीं है। युवकों के सामने एक लंबा जीवन होता है। उनके विविध लक्ष्य, अभिलाषाएँ और सपने होते हैं। उनसे समाज और राष्ट्र की अनेक अपेक्षाएँ होती हैं।

इन सभी को प्राप्त करने और अपेक्षाओं पर खरे उतरने के लिए, व्यक्ति को उत्साही, ऊर्जावान, आत्मविश्वास से परिपूर्ण और धैर्यशाली होना चाहिए। उपर्युक्त योग के चारों अंग इन विशेषताओं को प्राप्त करने में पूर्ण सहायक होते हैं। अतः युवाओं द्वारा योग को अपनाना उन्हें हर क्षेत्र में कुशलता और सफलता प्रदान कर सकता है।

युवाओं की योग के प्रति सोच-
बाबा रामदेव से पहले भी योग पर चर्चाएँ होती थीं। ग्रन्थों में योगियों को रहस्यमय और चमत्कार दिखाने में सक्षम व्यक्ति बताया जाता था। योग को एक परम कठिन और रहस्यमय विद्या माना जाता था। रामदेव ने उसे वनों और पर्वत-गुफाओं से बाहर लाकर सामान्य जन जीवन की घटना बनाया।

उनके द्वारा आयोजित योग-
शिविरों, क्रियात्मक प्रदर्शनों और प्रत्यक्ष लाभों ने आज योग को सर्वसाधारण के लिए सुगम बना दिया गया है। इससे युवाओं की एक अच्छी संख्या योग से जुड़ी है, फिर भी आज के युवाओं के प्रिय विषय कुछ और ही बने हुए हैं। युवाओं की दिनचर्या, खान-पान, वेश-भूषा और व्यवहार योग के अनुकूल नहीं है। इस प्रवृत्ति के कारण युवावर्ग कुछ अत्यन्त महत्वपूर्ण लाभों से वंचित हो रहा है।

योग कोई व्यायाम की विशेष पद्धति मात्र नहीं है, बल्कि जीवन में, सफलता के शिखरों तक ले जाने वाली सरल सीढ़ी है। युवाओं को यदि अपने सपने साकार करने हैं, तो योग को अपनाने से बढ़कर और कोई उनका सच्चा सहायक नहीं हो सकता।

उपसंहार-
जीवन का चाहे कोई क्षेत्र क्यों न हो, एकाग्रता, धैर्य, आत्मविश्वास, अथक प्रयत्न की क्षमता, अहंकार शून्यता ही वे गुण हैं, जो हर युवा को कीर्तिमान स्थापित करने के अवसर प्रदान करते हैं। ये गुण उन्हें योग के प्रयोग से सहज ही प्राप्त हो सकते हैं।

अतः युवाओं को नियमित योगाभ्यास को अपनी दिनचर्या में सम्मिलित कर लेना चाहिए। इससे व्यायाम और जीवन के नए-नए आयाम दोनों का लाभ प्राप्त होगा। कह नहीं सकता कि मेरे साथी युवा. मेरे इस अनुभूत प्रयोग अर्थात योग को अपनाएँगे या नहीं।

भारतीय संस्कृति निबंध – India Culture Essay In Hindi

India Culture Essay In Hindi

भारतीय संस्कृति पर छोटे तथा बड़े निबंध (Essay on India Culture In Hindi)

उपभोक्तावाद और भारत की संस्कृति – Consumerism and Culture of India

रूपरेखा–

  • प्रस्तावना,
  • भारत की संस्कृति,
  • पाश्चात्य संस्कृति का दुष्प्रभाव,
  • उपभोक्तावाद,
  • उदारवाद और आर्थिक सुधार,
  • उपसंहार।

साथ ही, कक्षा 1 से 10 तक के छात्र उदाहरणों के साथ इस पृष्ठ से विभिन्न हिंदी निबंध विषय पा सकते हैं।

प्रस्तावना–
संसार में अपने लिए तो सभी जीते हैं, किन्तु क्या इसको जीवन कहा जा सकता है? जो दूसरों के हितार्थ अपना सुख–चैन त्याग सकता है, वास्तविक जीवन तो वही जी रहा है। व्यक्ति के हित से सामाजिक तथा राष्ट्रीय हित को ऊपर मानना ही समाजवाद है। समाजवाद में संग्रह नहीं त्याग–बलिदान को ही महत्त्वपूर्ण माना गया है। ‘महाभारत’ में समाजवाद की धारणा को इस प्रकार व्यक्त किया गया है–

त्यजेत् एकं कुलस्यार्थे, ग्रामस्यार्थे कुलं त्यजेत्।
ग्रामम् जनपदस्यार्थे , आत्मार्थे पृथ्वीं त्यजेत्।।

कुल के हित के लिए एक व्यक्ति, ग्राम के हितार्थ एक कुटुम्ब, जनपद के हित के लिए ग्राम के हितों को तथा आत्म– हित के लिए पृथ्वी को ही छोड़ देना उचित बताया गया है।

भारत की संस्कृति–
भारतीय संस्कृति संग्रह नहीं त्याग की शिक्षा देती है। सत्य, अहिंसा, शान्ति, जीव रक्षा, क्षमा उसके आदर्श हैं। सभी प्राणियों को अपने समान देखने वाले को ही भारत में पण्डित माना गया है-

आत्मवत् सर्वभूतानि यः पश्यति सः पण्डितः।

विद्या सभी को सुशिक्षित और ज्ञानी बनाने तथा धन दूसरों को दान देने के लिए होता है। इस प्रकार परमार्थ ही भारतीय संस्कृति का लक्ष्य है। यहाँ व्यापार धन कमाकर धनवान बनने के लिए नहीं किया जाता, समाज की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए किया जाता है। भारतीय संस्कृति में शक्ति दूसरों की रक्षा के लिए होती है, उत्पीड़न के लिए नहीं।

पाश्चात्य संस्कृति का दुष्प्रभाव–
भारतीय संस्कृति आज अपना मूल स्वरूप खोती जा रही है। पाश्चात्य संस्कृति ने उसको दूषित कर दिया है। उसने त्याग–बलिदान, परमार्थ के आदर्श से हटकर स्वार्थ को अपना लिया है। भारत में भी अब खाओ, पीओ और मौज करो का आदर्श घर करता जा रहा है।

अपना हित अपना सुख ही महत्त्वपूर्ण है। सुख के लिए धन आवश्यक है। ‘धनात् धर्मः ततः सुखम्’ के उपदेश में से ‘धर्मः’ गायब हो गया है। अब तो धन से सुख मिलता है। धर्म की आवश्यकता नहीं। अतः किसी भी तरीके, भ्रष्टाचार, परशोषण, ठगी, लूट आदि से धन कमाना आज बुरा नहीं माना जाता।

उपभोक्तावाद–
उपभोक्तावाद क्या है? आज विश्व की अर्थव्यवस्था पूँजी’ केन्द्रित है। उद्योग–व्यापार का लक्ष्य अधिक से अधिक धनोपार्जन है। इस धनोपार्जन का जोर माध्यम पर नहीं है, साधन उचित या अनुचित कोई भी हो सकता है, बस, वह धन कमाने में सहायक होना चाहिए।

उपभोक्ता वह व्यक्ति है जो उद्योग में हुए उत्पादन का प्रयोग करता है। उसको अधिक से अधिक उत्पादन खरीदने को प्रोत्साहित किया जाता है। पुराने आदर्श आवश्यकताएँ कम से कम रखने के स्थान पर आज अधिक–से–अधिक आवश्यकताएँ रखना और उनकी पूर्ति करना सुखी होने के लिए जरूरी है। ऐसी स्थिति में इन्द्रिय दमन और मन के नियन्त्रण की बात ही बेमानी है।

उपभोक्तावाद का आधार बाजार है, अत: इसको बाजारवाद भी कहा जा सकता है। उद्योगों के विशाल मात्रा में हुए उत्पादन के लिए बाजार खोजना उत्पादक का लक्ष्य है। इसके लिए खरीददार की जेब में पैसा होना जरूरी है तथा उस पैसे को उन वस्तुओं के क्रय में खर्च होना भी जरूरी है जिनको उत्पादक ने बाजार में उतारा है। इसके लिए उत्पादक कम्पनियाँ तथा बैंकें ऋण भी देती हैं। इस प्रकार साधारण जन (उपभोक्ता) का दोहरा शोषण हो रहा है।

उदारवाद और आर्थिक सुधार–
उदारवाद या आर्थिक सुधार पूँजीवाद का नया स्वरूप है। सरकार की यह आर्थिक नीति ऊपर से बडी जन हितकारी और सन्दर लगती है। हम किसके प्रति उदारता दिखा रहे हैं और किस अर्थनीति में सुधार कर रहे हैं? क्या इससे पूर्व प्रथम प्रधानमंत्री नेहरू की आर्थिक नीति दोषपूर्ण थी? वास्तविकता यह है कि हम देश के गरीबों, किसानों, मजदूरों को आर्थिक सुधार का लालीपाप दे रहे हैं।

हम प्रत्येक क्षेत्र में, कृषि, शिक्षा, स्वास्थ्य में निजीकरण को बढ़ावा देकर जनता के शोषण का मार्ग खोल रहे हैं। इस नीति के अन्तर्गत सार्वजनिक क्षेत्र को जानबूझकर कमजोर तथा अनुपयोगी बनाया जा रहा है तथा उसके समानान्तर निजीकरण के नाम पर शोषण का मजबूत दुर्ग बनाया जा रहा है।

निजीकरण के अन्तर्गत चलने वाले शिक्षालयों में गरीबों के बच्चे पढ़ ही नहीं सकते, अस्पतालों में गरीब रोगी इलाज करा नहीं सकते। अतः इस दोहरी व्यवस्था से लाभ पैसे वालों को ही होने वाला है। सरकार कम से कम 100 दिन के रोजगार की गारन्टी देती है। यह कौन बतायेगा कि गरीब आदमी अपने परिवार को शेष 265 दिन क्या खिलायेगा?

इस तरह आर्थिक सुधार तथा उदारवाद के नाम पर पूँजीपतियों को और अधिक सम्पन्न तथा गरीब को और अधिक गरीब बनाया जा रहा है। अब तो कृषि क्षेत्र को भी सरकार ने विदेशी पूँजी निवेश के लिए खोल दिया है। किसान द्वारा अपने ही खेत पर दसरों के इशारे पर मजदूरी करने के लिए सरकार ने व्यवस्था कर दी है। सरकार ने खाद के दाम बढ़ा दिये हैं।

भारत के लोगों को सहायता (सब्सिडी) देने के लिए सरकार के पास पैसे नहीं हैं, किन्तु बजट में विदेशी कम्पनियों को शुल्क में तथा टैक्स में रियायत देने के लिए अपार धनराशि की व्यवस्था है। कोई दुर्घटना होने पर इन विदेशी कम्पनियों के लोगों को बचाने का काम भी सरकार करती है जैसा कि भोपाल गैस त्रासदी में हो चुका है।

यह नई पँजीवादी अर्थव्यवस्था भारतीय जनता (90 प्रतिशत) के शोषण का कारण है। इससे भारतीय समाज में आर्थिक असन्तुलन बढ़ेगा। गरीब और अधिक गरीब तथा अमीर और ज्यादा अमीर होगा। यह नीति शत–प्रतिशत अभारतीय है तथा भारत की संस्कृति के भी विपरीत है। ‘तेन त्यक्तेन भुञ्जीथा मा गृध कस्विद्धनम्’ की भारतीय नीति के यह पूर्णत: विरुद्ध है।

उपसंहार–
भारत एक जनतांत्रिक देश है। जनतंत्र में जनता का हित ही सर्वोपरि होता है। जनता किसी भी देश की जनसंख्या के 90–95 प्रतिशत लोगों को कहते हैं। इनमें किसान, मजदूर, नौकरीपेशा, छोटे व्यापारी आदि लोग होते हैं। जब तक इनके हित को महत्व नहीं मिलेगा, तब तक कोई आर्थिक नीति कारगर नहीं हो सकती। विदेशी कर्ज से सम्पन्नता का सपना देखना बुद्धिमानी नहीं है। गांधीजी पागल नहीं थे जो स्वदेशी उद्योगों के पक्षधर थे। गांधीजी के अनुयायी नेताओं को कम से कम इस बात का ध्यान तो रखना ही चाहिए।

 

महिला शिक्षा पर निबंध – Women’s Education Essay In Hindi

Women Education Essay In Hindi

भारत में महिला शिक्षा पर छोटे तथा बड़े निबंध (Essay on Women Education in India in Hindi)

स्त्री शिक्षा और महिला–उत्थान – Female Education And Female Upliftment

रूपरेखा–

  1. प्रस्तावना,
  2. समाज में स्त्रियों का स्थान,
  3. महिलाओं की प्रगति,
  4. स्त्री सशक्तीकरण जरूरी,
  5. स्त्री शिक्षा की आवश्यकता और महत्व,
  6. उपसंहार।।

साथ ही, कक्षा 1 से 10 तक के छात्र उदाहरणों के साथ इस पृष्ठ से विभिन्न हिंदी निबंध विषय पा सकते हैं।

प्रस्तावना–
मानव समाज के दो पक्ष हैं–स्त्री और पुरुष। प्राचीनकाल से ही पुरुषों को स्त्री से अधिक अधिकार प्राप्त रहे हैं। स्त्री को पुरुष के नियंत्रण में रहकर ही काम करना पड़ा है।

‘नारी स्वतंत्रता के योग्य नहीं है’, कहकर स्मतिकार मन ने स्त्री को बन्धन में रखने का मार्ग खोल दिया है, किन्तु वर्तमान शताब्दी प्राचीन रूढ़ियों को तोड़कर आगे बढ़ने का समय है। स्त्री भी पुराने बन्धनों से मुक्त होकर आगे बढ़ रही है।

समाज में स्त्रियों का स्थान–
समाज में स्त्रियों को द्वितीय श्रेणी का नागरिक माना जाता है। उनको पुरुष के समान स्थान तथा महत्त्व आज भी प्राप्त नहीं है। उसे बचपन से वृद्धावस्था तक परम्परागत घर–गृहस्थी के काम करने पड़ते हैं।

अब बालिकाओं को स्कूलों में पढ़ने जाने का अवसर मिलने लगा है, परन्तु काफी महिलाएँ शिक्षा से अब भी वंचित हैं। शिक्षा के अभाव में स्त्रियाँ आगे नहीं बढ़ पाती और समाज में अपना अधिकार तथा स्थान प्राप्त नहीं कर पाती।

महिलाओं की प्रगति–
स्वतंत्रता प्राप्त होने के पश्चात भारत निरन्तर प्रगति कर रहा है। महिलाएँ किसी देश की आधी शक्ति होती हैं। जब तक महिलाओं की प्रगति न हो तब तक देश की प्रगति अधूरी होती है।

भारत की प्रगति और विकास भी नारियों के पिछड़ी होने से अपूर्ण है। उद्योग–व्यापार, विभिन्न सेवाओं, सामाजिक संगठनों तथा राजनैतिक दलों में महिलाओं की उपस्थिति का प्रतिशत बहुत कम है।

चुनाव के समय राजनैतिक दल उन्हें अपना उम्मीदवार नहीं बनाते। लोकसभा तथा विधानसभाओं में महिलाओं के लिए स्थान सुरक्षित करने का बिल पेश ही नहीं हो पाता। पुरुष नेता उन्हें वहाँ देखना ही नहीं चाहते।

स्त्री सशक्तीकरण जरूरी–
आज के समाज में स्त्री को देवी, पूज्य, मातृशक्ति आदि कहकर भरमाया जाता है। वैसे उसे कदम–कदम पर अपनी कमजोरी और उसके कारण सामने आने वाली समस्याओं का सामना करना पड़ता है।

घर तथा बाहर सभी उसकी कमजोरी का लाभ उठाते हैं। वर्ष 2002 से 2012 के बीच महिलाओं के विरुद्ध होने वाले अपराधों में 69 प्रतिशत वृद्धि हुई है। राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो के निम्नलिखित आँकड़े इसका खुलासा करते हैं

  • महिलाओं के विरुद्ध अपराध – 2002 – 2012 – वृद्धि का प्रतिशत
  • बलात्कार – 16373 – 24923 – 52.2
  • अपहरण – 14506 – 38262 – 163.8 —
  • पति या निकट सम्बन्धियों द्वारा अपराध – 49237 – 106527
  • कुल अपराध – 109784 – 186033 – 69

अपराधों के उक्त आँकड़ों को देखने पर और समाज में महिलाओं की दुर्दशा को देखते हुए स्त्री सशक्तीकरण आज की अनिवार्य आवश्यकता बन गयी है।

स्त्री शिक्षा की आवश्यकता और महत्व–
नारियों को आगे बढ़ाने के लिए आवश्यकता है- शिक्षित बनने की। शिक्षा ही महिलाओं में आत्मविश्वास पैदा कर सकती है। शिक्षित होने पर ही उनमें किसी क्षेत्र में सफलतापूर्वक काम कर सकने की क्षमता विकसित हो सकती है।

घर के बाहर जाकर काम करने के लिए ही नहीं घर में परिवार के दायित्वों का निर्वाह करने के लिए भी शिक्षित होना बहुत सहायक होता है शिक्षित महिला अपने बच्चों का मार्गदर्शन अच्छी तरह करके उनका तथा देश का भविष्य सँभाल सकती हैं।

यद्यपि महिलाएँ प्रशासन, शिक्षण, चिकित्सा विज्ञान, राजनीति आदि क्षेत्रों में आगे आई हैं और अच्छा काम किया है। वे पुलिस और सेना में भी काम कर रही हैं किन्तु उनकी संख्या अभी बहुत कम है। शिक्षा के अवसरों के विस्तार से विभिन्न क्षेत्रों में उनकी उपस्थिति नि:संदेह बढ़ेगी।

उपसंहार–
शिक्षा से ही महिलाएँ शक्ति अर्जित करेंगी। शिक्षित और सशक्त महिलाएँ देश और समाज को भी शक्तिशाली बनाएँगी। इसके लिए विभिन्न क्षेत्रों में महिलाओं के लिए शिक्षा की व्यवस्था की जानी चाहिए।

इसके लिए उन्हें प्रोत्साहित किया जाना जरूरी है। शिक्षण संस्थाओं में उनके लिए स्थान आरक्षित होना तथा उनको आर्थिक सहयोग और सहायता दिया जाना भी परमावश्यक है।

शहरीकरण के कारण प्रदूषण पर निबंध – Pollution Due To Urbanisation Essay In Hindi

Pollution Due To Urbanisation Essay In Hindi

शहरीकरण के कारण प्रदूषण पर छोटे-बड़े निबंध (Essay on Pollution Due to Urbanization in Hindi)

नगर सभ्यता के दोष – Defects Of City Civilization

रूपरेखा-

  • प्रस्तावना,
  • शहरों में जनसंख्या वृद्धि के कारण,
  • शहरीकरण का कुप्रभाव,
  • शहरीकरण पर नियन्त्रण के उपाय,
  • उपसंहार।

साथ ही, कक्षा 1 से 10 तक के छात्र उदाहरणों के साथ इस पृष्ठ से विभिन्न हिंदी निबंध विषय पा सकते हैं।

प्रस्तावना-
वर्तमान युग प्रगतिशीलता के रथ पर आरूढ़ है। फलतः प्रगति के नाम पर औद्योगीकरण एवं भौतिक सुख-सुविधायुक्त जीवन प्रत्येक व्यक्ति की मनोकामना होती जा रही है। सुख की चाह में लोग गाँवों से श कर रहे हैं, जिससे शहरीकरण की समस्या का जन्म हुआ है।

शहरों में जनसंख्या वृद्धि के कारण-शहरों में जनसंख्या तीव्र गति से बढ़ रही है। उसके कुछ प्रमुख कारण इस प्रकार हैं-

  1. शहरों में रोजगार के पर्याप्त साधन हैं। वहाँ बड़े उद्योग लगे हैं। सरकारों का ध्यान भी बड़े उद्योगों की तरफ अधिक है, जिससे लोग मजदूरी हेतु शहरों की ओर पलायन करते हैं।
  2. गाँवों में आज भी शिक्षा, चिकित्सा, बिजली, संचार जैसी मूलभूत सुविधाओं का अभाव है। अधिक सुविधायुक्त जीवन जीने की स्वाभाविक लालसा के कारण लोग शहरों में बसने के लिए लालायित रहते हैं।
  3. सरकारों का ध्यान भी शहरों के विकास पर अधिक रहता है। स्वच्छ प्रशासन, आधारभूत सुविधाओं की प्राप्ति, समस्याओं का तत्काल निदान आदि ऐसे कारण हैं जिनसे लोग शहरों की ओर पलायन कर रहे हैं।
  4. ग्रामीण जीवन समस्याओं से ग्रस्त है। कृषि के अतिरिक्त अन्य कोई रोजगार नहीं। सुरक्षा और झगड़े-झंझटों के कारण भी लोग शहरों की ओर रुख कर रहे हैं। शहरी चकाचौंध और अधिक धन कमाने की दृष्टि से लोग शहरों में जाकर बस जाते हैं।

शहरीकरण का कुप्रभाव-शहरों की तीव्र वृद्धि होने के जो दुष्प्रभाव हमारे समक्ष उत्पन्न हो रहे हैं, उनमें से कुछ इस प्रकार हैं-

  1. आवास के नाम पर पेड़ काटे जा रहे हैं तथा कृषि योग्य भूमि का क्षेत्रफल घटता जा रहा है। औद्योगिक प्रदूषण बढ़ रहा है।
  2. जनसंख्या में वृद्धि से गंदगी में भी बढ़ोत्तरी हो रही है, जिससे शहरों में अनेक बीमारियाँ फैल रही हैं।
  3. पैसों की भाग-दौड़ में शहरी जीवन नीरस-सा प्रतीत होता है। मानवीय मूल्य लुप्त हो रहे हैं। अपराधों में वृद्धि हो रही है।
  4. शहरों में पाश्चात्य-संस्कृति की विसंगतियाँ तेज गति से अपने पैर पसार रही हैं, जिससे भावी पीढ़ी के दिशाहीन हो जाने का खतरा पैदा होता जा रहा है।
  5. पर्यावरण प्रदूषण शहरों की सबसे भयंकर समस्या बन चुका है। जल, वायु, ध्वनि आदि का प्रदूषण और उसी पर आधारित शहरी जीवन नरक-सा होता जा रहा है।
  6. ‘सेज’ तथा ‘हाईटेक सिटी’ जैसी नगरोन्मुखी योजनाएँ अति औद्योगीकरण तथा आपराधिक महत्त्वाकांक्षा को तो बढ़ा ही रही हैं, इनसे जनता और प्रशासन के बीच टकराव भी बढ़ रहे हैं। पश्चिम बंगाल में नंदीग्राम-काण्ड इसका ज्वलन्त उदाहरण था।

शहरीकरण पर नियंत्रण के उपाय-
बढ़ते शहरों पर नियंत्रण हेतु गाँवों में स्वरोजगार, कुटीर उद्योग आदि को प्रोत्साहन देना होगा। शिक्षा, चिकित्सा, पेयजल, विद्युत जैसी मूलभूत आवश्यकताओं का समाधान करना होगा।

गाँव की प्रतिभा का उपयोग ग्रामीण विकास में ही करने की योजनाएँ निर्मित करनी होंगी। ग्रामीण विकास की सुदृढ़ योजना बनाने पर सरकारी ध्यान अपेक्षित है। पर्यावरण प्रदूषण को रोकने में ग्रामीण जनता का सहयोग लेना चाहिए। कृषि को उद्योग का दर्जा प्रदान कर उससे सम्बन्धित अन्य उद्योग; जैसे- पशुपालन, डेयरी, ऑयलमिल, आटामिल, चीनी उद्योग

आदि को प्रोत्साहन दिया जाय तो लोग रोजगार का अभाव महसूस नहीं करेंगे। इसके अतिरिक्त संचार सुविधा, परिवहन सुविधा आदि को भी ग्रामीण संरचना की दृष्टि से विस्तारित किया जाये। शहरों की तुलना में ग्रामीणों को अधिक सुविधाएँ देने से लोग पलायन नहीं करेंगे और बढ़ते शहरों पर नियंत्रण लग जाएगा।

उपसंहार-
विकास के पाश्चात्य मॉडल का अंधानुकरण ही शहरीकरण की अबाध वृद्धि का कारण रहा है। यदि ग्रामों की उपेक्षा करते हुए विकास का प्रयास जारी रहता है तो वह अधूरा विकास होगा। देश के लाखों गाँवों के विकास में ही देश की प्रगति का मूलमंत्र निहित है।

अनुशासन पर निबंध – Discipline Essay in Hindi

Discipline Essay in Hindi

अनुशासन पर छोटे तथा बड़े निबंध (Essay on Discipline in Hindi)

अनुशासन का महत्त्व – Importance Of Discipline

रूपरेखा-

  • प्रस्तावना
  • अनुशासन का तात्पर्य
  • अनुशासनहीनता
  • अनुशासन की शिक्षा
  • अनुशासन का महत्त्व
  • भारत और अनुशासन
  • उपसंहार।

साथ ही, कक्षा 1 से 10 तक के छात्र उदाहरणों के साथ इस पृष्ठ से विभिन्न हिंदी निबंध विषय पा सकते हैं।

प्रस्तावना-
स्वतंत्रता मानव के लिए वरदान है किन्तु स्वच्छन्दता नहीं। तंत्र के ऊपर स्व का बंधन ही स्वतंत्रता है। मनुष्य जो चाहे वह करने के लिए स्वतंत्र नहीं है, उसे देश तथा समाज के कुछ नियमों को मानना होता है, उनके नियंत्रण को स्वीकार करना होता है। नियमों को मानना तथा उनके अनुसार जीवन बिताना ही अनुशासन है।

अनुशासन का तात्पर्य शासन शब्द से पूर्व ‘अन’ उपसर्ग जोड़ने से अनुशासन बनता है। शासन अर्थात् नियंत्रण के पीछे चलना अर्थात् सामाजिक नियमों का पालन करते हुए जीवन बिताना ही अनुशासन है। अनुशासन दो प्रकार का होता है-एक, बाह्य तथा दूसरा, आन्तरिक। देश, जाति, धर्म, समाज, संस्था आदि के नियमों को मानना, उनका पालन करना बाह्य अनुशासन कहलाता है।

इन नियमों को भंग करने पर दण्ड की व्यवस्था होती है। बाह्य अनुशासन दण्ड के भय से मान्य होता है। आन्तरिक अनुशासन मन का अनुशासन होता है। मनुष्य स्वयं बिना किसी भय के अपना कर्त्तव्य समझते हुए जब नियमों का पालन करता है तो इसे आत्मानुशासन कहते हैं। आत्मानुशासन ही उत्तम प्रकार का अनुशासन होता है।

अनुशासनहीनता-
अनुशासन, यदि मनुष्य को प्रगति के पथ पर आगे बढ़ाता है तो अनुशासनहीनता उसको अवनति के गर्त में धकेल देती है। अनुशासन का पालन करने वाला उद्दण्ड नहीं होता। वह सौम्य स्वभाव का होता है, वह अपना काम समय पर पूरा करता है।

उग्र व्यवहार और कटु भाषण अनुशासनहीनता की पहचान हैं। प्रत्येक स्थान पर अपनी ही चलाना, अनुचित और असभ्य व्यवहार करना, विनम्रता का अभाव होना आदि अनुशासनहीनता के लक्षण हैं।

अनुशासन की शिक्षा-
अनुशासन की शिक्षा का आरम्भ परिवार से होता है। बच्चा अपने बड़ों को यदि अनुशासित व्यवहार करते देखता है तो वह भी वैसा ही करता है। जिस परिवार में छोटे, बड़ों का सम्मान नहीं करते तथा बड़े, छोटों की भावनाओं का ध्यान नहीं रखते, वहाँ अनुशासन का अभाव होता है।

इससे पारिवारिक वातावरण गड़बड़ा जाता है। परिवार से निकलकर बच्चा स्कूल जाता है। स्कूल के नियम कठोर होते हैं, उनका उल्लंघन करने से शिक्षा-प्राप्ति में बाधा पड़ती है। अनुशासन न मानने वाले अशिक्षित बच्चे समाज के लिए समस्या बनते हैं।

अनुशासन का महत्त्व-
जीवन में अनुशासन का महत्त्वपूर्ण स्थान है। प्रकृति अपने समस्त कार्य अनुशासित रहकर ही करती है। मनुष्य भी अनुशासन के अनुकूल चलकर ही अपने जीवन में आगे बढ़ सकता है। अनुशासनहीनता लक्ष्य को पाने में बाधक होती है।

अनुशासित मनुष्य संयमी, मृदु और मितभाषी होता है। उसका व्यवहार दूसरों के प्रति सम्वेदना और सहानुभूति से भरा होता है। इससे वह समाज में सभी का स्नेहपात्र बन जाता है, उसे सबका सहयोग मिलता है। इस प्रकार अनुशासन मनुष्य को जीवन में आगे बढ़ने का अवसर प्रदान करता है।

भारत और अनशासन-
आज भारतीय समाज के सामने अनुशासन का पालन करने की गम्भीर समस्या है। विद्यालयों तथा विश्वविद्यालयों में अनुशासनहीनता बढ़ी हुई है। राजनैतिक दल अपनी स्वार्थसिद्धि के लिए छात्रों में अनुशासनहीनता को बढ़ावा देते हैं। स्वार्थ और अर्थलाभ की प्रवृत्ति के बढ़ने के कारण देश और समाज में भयंकर अनुशासनहीनता व्याप्त है।

राजनैतिक दलों में भी आन्तरिक अनुशासन की कमी है। समाज का मार्गदर्शन राजनीतिज्ञों द्वारा होता है। अनुशासनहीन राजनेता भारतीय समाज में बढ़ती हुई अनुशासनहीनता के लिए जिम्मेदार हैं।

उपसंहार-
हमारा भारत विकास के पथ पर चल रहा है इस पथ पर वह अनुशासन का पालन करके ही सफलता के लक्ष्य को पा सकता है। अनुशासन की कमी उसके कदमों को बढ़ने से निश्चित ही रोकेगी। अतः देश के हर नागरिक का कर्तव्य है कि वह अनुशासित जीवन बिताए।

महात्मा गांधी पर निबंध – Mahatma Gandhi Essay In Hindi

Mahatma Gandhi Essay In Hindi

महात्मा गांधी पर छोटे तथा बड़े निबंध (Essay On Mahatma Gandhi in Hindi)

महापुरुष : जिसने मुझे सर्वाधिक प्रभावित किया – Mahapurush: What impressed me the most

रूपरेखा-

  • प्रस्तावना,
  • जीवन-वृत्त,
  • देश-सेवा,
  • विचारधारा,
  • उपसंहार।

साथ ही, कक्षा 1 से 10 तक के छात्र उदाहरणों के साथ इस पृष्ठ से विभिन्न हिंदी निबंध विषय पा सकते हैं।

प्रस्तावना-
जब-जब मानवता हिंसा, स्पर्द्धा और शोषण से त्रस्त होती है, अहंकारी शासकों के क्रूर दमन से कराहने लगती है तो परमपिता की करुणा कभी कृष्ण, कभी राम, कभी गौतम और कभी गांधी बनकर इस धरती पर अवतरित होती है और घायल मानवता के घावों को अपनी स्नेह-संजीवनी का मरहम लगाती है।

जीवन-वृत्त-
मेरे आदर्श जननायक महामानव गांधी ने 2 अक्टूबर, 1869 ई. को जन्म लेकर गुजरात में पोरबंदर, काठियावाड़ की धरती को पवित्र किया था। ऐसा लगता था मानो सृष्टि सरोवर में मानवता का शतदल कमल खिल उठा हो; मानो पीड़ित, उपेक्षित, दासताबद्ध जन-जन की निराशा आशा का सम्बल पा गयी हो।

महात्मा गांधी का पूरा नाम मोहनदास करमचन्द गांधी है। उनके पिता करमचन्द गांधी एक रियासत के दीवान थे। गाँधीजी ने प्रारम्भिक शिक्षा घर पर ही प्राप्त की। तत्पश्चात् वे पाठशाला में प्रविष्ट हुए और हाईस्कूल की परीक्षा पास की। हाईस्कूल परीक्षा उत्तीर्ण करने के पश्चात् वे इंग्लैण्ड गये। वहाँ से बैरिस्ट्री की शिक्षा प्राप्त कर वे भारत लौट आये। भारत में आकर गाँधीजी ने बैरिस्टर के रूप में जीवन आरम्भ किया।

इसी सिलसिले में उन्हें दक्षिण अफ्रीका जाना पड़ा। वहाँ पर भारतीयों की दुर्दशा देखकर उनका हृदय द्रवित हो उठा। उन्होंने दक्षिण अफ्रीका में भारतवासियों के साथ होने वाले अत्याचारों का विरोध किया। गांधीजी के सतत् प्रयत्नों के कारण दक्षिण अफ्रीका के मजदूरों और भारतीयों की दशा में बहुत सुधार हुआ।

देश-सेवा-
दक्षिण अफ्रीका में सफलता पाकर गांधीजी ने स्वदेश-सेवा के क्षेत्र में पदार्पण किया। उन्होंने भारत में अंग्रेजी शासन से पीड़ित भारतीय जनता के उद्धार का व्रत ग्रहण किया। यद्यपि भारत के अनेक स्वदेशप्रेमी इसी प्रयास में लगे हुए थे, किन्तु गांधीजी एक अपूर्व संघर्ष-पद्धति को लेकर स्वतन्त्रता संग्राम में अवतरित हुए-

ले ढाल अहिंसा की कर में, तलवार प्रेम की लिए हुए।
आये वह सत्य समर करने, ललकार क्षेम की लिए हुए।

इस अद्भुत रणपद्धति के सम्मुख हिंसा और असत्य की शक्तियाँ नहीं टिक सकी। अंग्रेजी शासन का सारा बल गांधीजी के विरुद्ध सक्रिय हो गया। दमन-चक्र आरम्भ हो गया। जेलें भर गयीं, किन्तु जनता ने अपनी शक्ति को और अपने मार्गदर्शक को पहचान लिया था। तभी तो-

चल पड़े जिधर दो डग’ मग में, चल पड़े कोटि पग उसी ओर।
उठ गयी जिधर भी ‘एक दृष्टि’ उठ गये कोटि दूग उसी ओर।।

गांधीजी द्वारा प्रदर्शित यह मार्ग देश को स्वतन्त्रता की मंजिल तक ले पहुँचा। जिसके राज्य में कभी सूर्यास्त नहीं होता था, वह ब्रिटिश सत्ता गांधी के चरणों में नत हो गई। गांधीजी के नेतृत्व में भारत ने 15 अगस्त, 1947 को स्वतन्त्रता का अमूल्य उपहार प्राप्त किया।

विचारधारा-गांधीजी ने यद्यपि कोई सर्वथा नयी विचारधारा संसार के सम्मुख प्रस्तुत नहीं की, किन्तु एक महान विचारधारा को आचरण में परिणत करके दिखाया। सत्य, अहिंसा और प्रेम भारतीय संस्कृति की सनातन विचार-पद्धतियाँ हैं। शास्त्रों में, धर्मग्रन्थों में और उपदेशों में उनकी महानता बहुत गायी गयी थी, किन्तु गांधीजी ने इनका प्रयोग जीवन में करके दिखाया।

महाकवि पंत ने गांधीजी के प्रति श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए कहा है-

जड़ता, हिंसा, स्पर्धा में भर चेतना, अहिंसा, नम्र ओज,
पशुता का पंकज बना दिया, तुमने मानवता का सरोज।

गांधीजी का मनुष्य की महानता में विश्वास था। वह अपराधी के नहीं, अपराध के विरोधी थे। हृदय-परिवर्तन द्वारा समाज का सुधार करने में उनका पूर्ण विश्वास था।

वे छुआछूत, ऊँच-नीच, धार्मिक भेदभाव और हर प्रकार के शोषण के विरोधी थे। हरिजनों के उद्धार में उनकी विशेष रुचि थी।

उपसंहार-
30 जनवरी, 1948 ई. को प्रार्थना सभा में प्रवचनरत, गांधीजी के वक्ष में एक पागल ने गोलियाँ उतार दी। लगा कि गोलियाँ गांधीजी के नहीं अपितु मानवता के ही वक्ष में मारी गई हैं। इस प्रकार संसार के दीन-दु:खी और शोषित मानवों की आशाओं का दीपक बुझ गया। भले ही आज गांधीजी तन से उपस्थित नहीं हैं, किन्तु वह मुझ जैसे कोटि-कोटि भारतवासियों के मन में विराज रहे हैं। फूल झर गया, किन्तु उसकी संजीवनी सुगन्ध अब भी मानवता की साँसों को महका रही है।