शहरीकरण के कारण प्रदूषण पर निबंध – Pollution Due To Urbanisation Essay In Hindi

शहरीकरण के कारण प्रदूषण पर छोटे-बड़े निबंध (Essay on Pollution Due to Urbanization in Hindi)

नगर सभ्यता के दोष – Defects Of City Civilization

रूपरेखा-

  • प्रस्तावना,
  • शहरों में जनसंख्या वृद्धि के कारण,
  • शहरीकरण का कुप्रभाव,
  • शहरीकरण पर नियन्त्रण के उपाय,
  • उपसंहार।

साथ ही, कक्षा 1 से 10 तक के छात्र उदाहरणों के साथ इस पृष्ठ से विभिन्न हिंदी निबंध विषय पा सकते हैं।

प्रस्तावना-
वर्तमान युग प्रगतिशीलता के रथ पर आरूढ़ है। फलतः प्रगति के नाम पर औद्योगीकरण एवं भौतिक सुख-सुविधायुक्त जीवन प्रत्येक व्यक्ति की मनोकामना होती जा रही है। सुख की चाह में लोग गाँवों से श कर रहे हैं, जिससे शहरीकरण की समस्या का जन्म हुआ है।

शहरों में जनसंख्या वृद्धि के कारण-शहरों में जनसंख्या तीव्र गति से बढ़ रही है। उसके कुछ प्रमुख कारण इस प्रकार हैं-

  1. शहरों में रोजगार के पर्याप्त साधन हैं। वहाँ बड़े उद्योग लगे हैं। सरकारों का ध्यान भी बड़े उद्योगों की तरफ अधिक है, जिससे लोग मजदूरी हेतु शहरों की ओर पलायन करते हैं।
  2. गाँवों में आज भी शिक्षा, चिकित्सा, बिजली, संचार जैसी मूलभूत सुविधाओं का अभाव है। अधिक सुविधायुक्त जीवन जीने की स्वाभाविक लालसा के कारण लोग शहरों में बसने के लिए लालायित रहते हैं।
  3. सरकारों का ध्यान भी शहरों के विकास पर अधिक रहता है। स्वच्छ प्रशासन, आधारभूत सुविधाओं की प्राप्ति, समस्याओं का तत्काल निदान आदि ऐसे कारण हैं जिनसे लोग शहरों की ओर पलायन कर रहे हैं।
  4. ग्रामीण जीवन समस्याओं से ग्रस्त है। कृषि के अतिरिक्त अन्य कोई रोजगार नहीं। सुरक्षा और झगड़े-झंझटों के कारण भी लोग शहरों की ओर रुख कर रहे हैं। शहरी चकाचौंध और अधिक धन कमाने की दृष्टि से लोग शहरों में जाकर बस जाते हैं।

शहरीकरण का कुप्रभाव-शहरों की तीव्र वृद्धि होने के जो दुष्प्रभाव हमारे समक्ष उत्पन्न हो रहे हैं, उनमें से कुछ इस प्रकार हैं-

  1. आवास के नाम पर पेड़ काटे जा रहे हैं तथा कृषि योग्य भूमि का क्षेत्रफल घटता जा रहा है। औद्योगिक प्रदूषण बढ़ रहा है।
  2. जनसंख्या में वृद्धि से गंदगी में भी बढ़ोत्तरी हो रही है, जिससे शहरों में अनेक बीमारियाँ फैल रही हैं।
  3. पैसों की भाग-दौड़ में शहरी जीवन नीरस-सा प्रतीत होता है। मानवीय मूल्य लुप्त हो रहे हैं। अपराधों में वृद्धि हो रही है।
  4. शहरों में पाश्चात्य-संस्कृति की विसंगतियाँ तेज गति से अपने पैर पसार रही हैं, जिससे भावी पीढ़ी के दिशाहीन हो जाने का खतरा पैदा होता जा रहा है।
  5. पर्यावरण प्रदूषण शहरों की सबसे भयंकर समस्या बन चुका है। जल, वायु, ध्वनि आदि का प्रदूषण और उसी पर आधारित शहरी जीवन नरक-सा होता जा रहा है।
  6. ‘सेज’ तथा ‘हाईटेक सिटी’ जैसी नगरोन्मुखी योजनाएँ अति औद्योगीकरण तथा आपराधिक महत्त्वाकांक्षा को तो बढ़ा ही रही हैं, इनसे जनता और प्रशासन के बीच टकराव भी बढ़ रहे हैं। पश्चिम बंगाल में नंदीग्राम-काण्ड इसका ज्वलन्त उदाहरण था।

शहरीकरण पर नियंत्रण के उपाय-
बढ़ते शहरों पर नियंत्रण हेतु गाँवों में स्वरोजगार, कुटीर उद्योग आदि को प्रोत्साहन देना होगा। शिक्षा, चिकित्सा, पेयजल, विद्युत जैसी मूलभूत आवश्यकताओं का समाधान करना होगा।

गाँव की प्रतिभा का उपयोग ग्रामीण विकास में ही करने की योजनाएँ निर्मित करनी होंगी। ग्रामीण विकास की सुदृढ़ योजना बनाने पर सरकारी ध्यान अपेक्षित है। पर्यावरण प्रदूषण को रोकने में ग्रामीण जनता का सहयोग लेना चाहिए। कृषि को उद्योग का दर्जा प्रदान कर उससे सम्बन्धित अन्य उद्योग; जैसे- पशुपालन, डेयरी, ऑयलमिल, आटामिल, चीनी उद्योग

आदि को प्रोत्साहन दिया जाय तो लोग रोजगार का अभाव महसूस नहीं करेंगे। इसके अतिरिक्त संचार सुविधा, परिवहन सुविधा आदि को भी ग्रामीण संरचना की दृष्टि से विस्तारित किया जाये। शहरों की तुलना में ग्रामीणों को अधिक सुविधाएँ देने से लोग पलायन नहीं करेंगे और बढ़ते शहरों पर नियंत्रण लग जाएगा।

उपसंहार-
विकास के पाश्चात्य मॉडल का अंधानुकरण ही शहरीकरण की अबाध वृद्धि का कारण रहा है। यदि ग्रामों की उपेक्षा करते हुए विकास का प्रयास जारी रहता है तो वह अधूरा विकास होगा। देश के लाखों गाँवों के विकास में ही देश की प्रगति का मूलमंत्र निहित है।