दहेज नारी शक्ति का अपमान है पे निबंध – Dowry Problem Essay In Hindi

Dowry Problem Essay In Hindi

दहेज नारी शक्ति का अपमान है पे निबंध – (Essay On Dowry Problem In Hindi)

दहेज : एक सामाजिक कलंक – Dowry: A Social Stigma

रूपरेखा–

  • प्रस्तावना,
  • दहेज की प्राचीन व वर्तमान स्थिति,
  • कन्या–पक्ष को हीन मानना,
  • दहेज के दुष्परिणाम,
  • उन्मूलन के उपाय,
  • उपसंहार।

साथ ही, कक्षा 1 से 10 तक के छात्र उदाहरणों के साथ इस पृष्ठ से विभिन्न हिंदी निबंध विषय पा सकते हैं।

दहेज नारी शक्ति का अपमान है पे निबंध – Dahej Naaree Shakti Ka Apamaan Hai Pe Nibandh

प्रस्तावना
“देहरिया पर्वत भई, आँगन भयो विदेस।
ले बाबुल घर आपनौ, हम चले बिराने देस।।”

माँ, बाप, बहिन और भाभियों से गले मिलती, पितृगृह की हर वस्तु को हसरत से निहारती, एक भारतीय बेटी की उपर्युक्त उक्ति किसके हृदय को द्रवित नहीं कर देती है। कन्या के मन पर पराश्रयता और पराधीनता का यह बन्धन उसके विवाह के साथ ही बाँध दिया जाता है, जो एक जन्म तो क्या, जन्म–जन्मान्तरों तक नहीं खुल पाता।

महाकवि कालिदास ने अपनी विश्वप्रसिद्ध रचना ‘अभिज्ञान शाकुन्तलम्’ में महर्षि कण्व से कहलवाया है–”अर्थो हि कन्या परकीय एव।” अर्थात् कन्या पराया धन है, न्यास है, धरोहर है।

न्यास और धरोहर की सावधानी से सुरक्षा करना तो सही है, किन्तु उसके पाणिग्रहण को दान कहकर वर–पक्ष को सौदेबाजी का अवसर प्रदान करना तो कन्या–रत्न के साथ घोर अन्याय है।

आज दहेज समस्या कन्या के जन्म के साथ ही, जन्म लेने वाली विकट समस्या बन चुकी है। आज कन्या एक ऋण–पत्र है, ‘प्रॉमिज़री नोट’ है और पुत्र विधाता के बैंक से जारी एक ‘गिफ्ट चैक’ बन गया है।

दहेज की प्राचीन व वर्तमान स्थिति–
दहेज की परम्परा आज ही जन्मी हो, ऐसा नहीं है, दहेज तो हजारों वर्षों से इस देश में चला आ रहा है। प्राचीन ग्रन्थों में भी इसका उल्लेख मिलता है।

वर्तमान स्थिति–प्राचीन समय में दहेज नव–दम्पत्ती को नवजीवन आरम्भ करने के उपकरण देने का और सद्भावना का चिह्न था। उस समय दहेज कन्या पक्ष की कृतज्ञता का रूप था। कन्या के लिए दिया जाने वाला धन, स्त्री–धन था, किन्तु आज वह कन्या का पति बनने का शुल्क बन चुका है।

आज दहेज अपने निकृष्टतम रूप को प्राप्त कर चुका है। अपने परिवार के भविष्य को दाँव पर लगाकर समाज के सामान्य व्यक्ति भी इस मूर्खतापूर्ण होड़ में सम्मिलित हो जाते हैं।

कन्या पक्ष को हीन मानना–
इस स्थिति का कारण सांस्कृतिक रूढ़िवादिता भी है। प्राचीनकाल में कन्या को वर चुनने की स्वतंत्रता थी। किन्तु जब से माता–पिता ने उसको किसी के गले बाँधने का पुण्य कार्य अपने हाथों में ले लिया है तब से कन्या अकारण ही हीनता की पात्र बन गई है। वर पक्ष से कन्या पक्ष को हीन समझा जाने लगा है।

इस भावना का अनुचित लाभ वर–पक्ष पूरा–
पूरा उठाता है। घर में चाहे साइकिल भी न हो, परन्तु बाइक पाए बिना तोरण स्पर्श न करेंगे। बाइक की माँग तो पुरानी हो चुकी अब तो कार की मांग उठने लगी है। बेटी का बाप होना जैसे पूर्व जन्म और वर्तमान जीवन का भीषण पाप हो गया है।

दहेज के दुष्परिणाम–
दहेज के दानव ने भारतीयों की मनोवृत्तियों को इस हद तक दूषित किया है कि कन्या और कन्या के पिता का सम्मान–सहित जीना कठिन हो गया है। इस प्रथा की बलिवेदी पर न जाने कितने कन्या–कुसुम बलिदान हो चुके हैं। लाखों पारिवारिक जीवन की शान्ति को नष्ट करने और मानव की सच्चरित्रता को मिटाने का अपराध इस प्रथा ने किया है।

तथाकथित बड़ों को धूमधाम से विवाह करते देख–छोटों का मन भी ललचाता है और फिर कर्ज लिए जाते हैं, मकान गिरवी रखे जाते हैं। घूस, रिश्वत, चोरबाजारी और उचित–अनुचित आदि सभी उपायों से धन–संग्रह की घृणित लालसा जागती है। सामाजिक जीवन अपराधी भावना और चारित्रिक पतन से भर जाता है। एक बार ऋण के दुश्चक्र में फंसा हुआ गृहस्थ अपना और अपनी सन्तान का भविष्य नष्ट कर बैठता है।

उन्मूलन के उपाय–
यह समस्या इसके मूल कारणों पर प्रहार किये बिना नहीं समाप्त हो सकती। शासन कानूनों का दृढ़ता से पालन कराये, यदि आवश्यक हो तो विवाह–कर भी लगाये ताकि धूमधाम और प्रदर्शन समाप्त हो। स्वयं समाज को भी सच्चाई से इस दिशा में सक्रिय होना पड़ेगा। दहेज–लोभियों का सामाजिक बहिष्कार करना होगा। कन्याओं को स्वावलम्बी और स्वाभिमानी बनना होगा।

उपसंहार–
दहेज कानूनों को चुनौती देते वधू–दहन तथा वधू संहार के समाचार आज भी समाचार–पत्रों में कुरूपता बिखेर दहेज विरोधी कानूनों का कठोरता से पालन होना चाहिए। जनता को जागरूक होकर और धर्माचार्यों को दक्षिणा का लोभ त्यागकर नारी के गौरव की पुनर्प्रतिष्ठा करनी चाहिए।

स्वयंवर–प्रथा फिर से अपने परिष्कृत रूप में अपनायी जानी चाहिए। कुलीनता और ऐश्वर्य के थोथे अहंकार से मुक्त होकर युवक–युवतियों को अपना जीवन साथी चुनने में सतर्क सहयोग देना माता–पिता का कर्तव्य होना चाहिए। अपव्यय और दिखावे से पूर्ण विवाह समारोहों का बहिष्कार होना चाहिए। इस कलंक से मुक्ति पाना भारतीय समाज के लिए कन्यादान से भी बड़ा पुण्य कार्य होगा।

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युवा पर निबंध – Youth Essay in Hindi

Youth Essay in Hindi

युवा पर छोटा व बड़ा निबंध (Essay on Youth in Hindi)

नवीन समाज-रचना और युवा शक्ति – New Society and Youth Power

रूपरेखा-

  • प्रस्तावना,
  • सामाजिक पुनर्निर्माण क्या और क्यों,
  • आज का भारतीय समाज,
  • सामाजिक पुनर्निर्माण की आवश्यकता,
  • युवा वर्ग ही आशा का केन्द्र,
  • उपसंहार।

साथ ही, कक्षा 1 से 10 तक के छात्र उदाहरणों के साथ इस पृष्ठ से विभिन्न हिंदी निबंध विषय पा सकते हैं।

प्रस्तावना-
पुरानी कहावत है कि मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। बिना समाज के मानव का जीवनयापन भी अत्यन्त कठिन है। उसके सद्गुण, दुर्गुण, सफलता-असफलता, विकास और उपलब्धियों का महत्त्व समाज में रहते हुए ही आँका जा सकता है। व्यक्ति और समाज एक-दूसरे पर आश्रित हैं।

दोनों में सहयोग और सामंजस्य बना रहना दोनों के हित में रहता है। समाज को व्यक्ति की आकांक्षाओं और आवश्यकताओं के अनुरूप ढलना पड़ता है और व्यक्ति को अपनी बुद्धि, कौशल और परिश्रम से समाज का निरन्तर परिष्कार करना होता है।

सामाजिक पुनर्निर्माण क्या और क्यों-
समाज का उद्देश्य मानव जीवन को सुखी बनाना है। समाज सार्वजनिक हित को ध्यान में रखकर बना है। इसके लिए धर्म, नीति, कानून आदि बनाए गए हैं। देशकाल के अनुसार इन आचारों और नियमों का संशोधन और विकास आवश्यक होता है।

जब ये नियम मानव जीवन की उन्नति और विकास में बाधक होने लगते हैं, स्वार्थी और अहंकारी लोग इनका प्रयोग अपने हित में करने लगते हैं तो सामाजिक व्यवस्था बिखरने लगती है।

शोषण, अन्याय, उत्पीड़न और अराजकता का वातावरण सामाजिक ताने-बाने को छिन्न-भिन्न करने लगता है तब सामाजिक पुनर्निर्माण की आवश्यकता होती. है। समाज की गाड़ी को पटरी पर लाने के लिए किसी व्यक्ति या वर्ग को आगे आना पड़ता है।

आज का भारतीय समाज-
आज के भारतीय समाज पर दृष्टि डालें तो मन में बड़ी निराशा और घुटन होने लगती है। बड़ी विचित्र और विरोधाभासी स्थिति है हमारे समाज की। भोगवादी जीवन शैली के उन्माद, पूँजीवादी अर्थव्यवस्था और अदूरदर्शी नेतृत्व ने इस देश को दो भागों में बाँट दिया है। एक है-इण्डिया और दूसरा है-भारत।

इण्डिया में बसते हैं मुट्ठीभर धन-कुबेर, विश्व की धनवान-सूची में स्थान पाने वाले अरब-खरबपति महानगरों के निवासी. बेतहाशा वेतन पाने वाले सौभाग्यशाली, देश को महाशक्ति बनाने के प्रपंच रचने वाले राजनीतिज्ञ और अर्थशास्त्री, विलास सामग्रियों के विज्ञापनों से मीडिया को लक-दक सजाने-सँवारने वाले देशी-विदेशी उद्योगपति, लग्जरी कारों, मॉल और गगनचुम्बी अट्टालिकाओं की बस्तियाँ सजाकर देश को विकास का तमाशा दिखाने वाले जादूगर।

और भारत में रहने को मजबूर हैं-
गरीबी रेखा के नीचे जीवन बिताने वाले करोड़ों लोग, महँगाई की मार और भ्रष्टाचार के प्रहार से अधमरे, निम्न मध्यम वर्ग के प्राणी, आत्महत्या करने वाले किसान, टूटी-फूटी सड़कों, बिजली, पानी, शिक्षा और स्वास्थ्य के अभावों से जूझने वाले आम लोग।

सामाजिक पुनर्निर्माण की आवश्यकता-
आज भारत के इस दयनीय समाज को पुनर्निर्माण की आवश्यकता है। यह कोई साधारण काम नहीं है। अब साधारण दवा-दारू से काम नहीं चलने वाला। अब तो शल्य-क्रिया की आवश्यकता है। नई सोच, अट संकल्प और व्यापक आन्दोलन होने चाहिए। इसके लिए हजारों-लाखों देशभक्त चाहिए। कुटिल शक्तियों के षड्यन्त्रों को विफल करने वाले चाणक्य चाहिए और चाहिए चरित्रवान राजनीतिक नेतृत्व, पारदर्शी शासन-व्यवस्था। इस भूमिका को कौन निभाएगा ?

युवावर्ग ही आशा का केन्द्र-
आज देश की युवा शक्ति ही समाज के पुनर्निर्माण के महासंकल्प को साकार कर सकती है। हर देश और हर काल में युवावर्ग ने ही शोषण, अन्याय, भ्रष्टाचार और मदांध सत्ताओं के सामने अपना सीना अड़ाया है। अपने दृढ़ संकल्प, संघर्ष और बलिदान से समाज का कायाकल्प किया है।

आज भारत के युवावर्ग को अपने और करोड़ों देशवासियों के उत्थान के लिए आगे आना होगा। अपने सही लक्ष्य को पहचानना होगा। तुच्छ लाभ और लोभ से बचकर, पाश्चात्य भोगवादी संस्कृति का दीवानापन छोड़कर, समाज का सही नेतृत्व करना होगा। विकास के मार्ग पर बढ़ रहा नया भारत अपने युवाओं की ओर आशाभरी दृष्टि से देख रहा है।

एक्सीलेण्ट हिन्दी अनिवार्यकक्षा-
12443 उपसंहार-हमारी वर्तमान पीढ़ी को भ्रमित करने के लिए इतने तमाशे खड़े कर दिए गए हैं कि उसे समाज के पुनर्निर्माण से जोड़ना आसान काम नहीं है। लेकिन इसके अलावा कोई अन्य उपाय नहीं है। यदि युवाओं को सही मार्गदर्शन मिले तो वे सही अर्थों में देश को एक महाशक्ति बना सकते हैं।

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महानगरीय जीवन पर निबंध – Metropolitan Life Essay In Hindi

Metropolitan Life Essay In Hindi

महानगरीय जीवन पर निबंध – Essay On Metropolitan Life In Hindi

संकेत-बिंदु –

  • भूमिका
  • शहरों की ओर झुकाव
  • शहरों की चकाचौंध
  • शहर सुविधा के केंद्र
  • शहरी जीवन का सच
  • दिखावापूर्ण जीवन
  • उपसंहार

महानगरीय जीवन की समस्याएँ (Mahaanagareey Jeevan Ke Samasyaen)- Problems Of Metropolitan Life

साथ ही, कक्षा 1 से 10 तक के छात्र उदाहरणों के साथ इस पृष्ठ से विभिन्न हिंदी निबंध विषय पा सकते हैं।

भूमिका – मनुष्य की स्वाभाविक प्रवृत्ति होती है कि उसे अधिक से अधिक सुख-सुविधाएँ मिलें। इन्हीं सुख-सुविधाओं को वह खोजता-खोजता शहर की ओर आता है। शहरी जीवन उसे बड़ा आकर्षक लगता है पर यहाँ की सच्चाई कुछ और ही होती है।

शहरों की ओर झुकाव – वर्तमान युग में चारों ओर विकास दिखाई पड़ता है, परंतु जिस रफ्तार से शहरों का विकास हुआ है, उस तरह से गाँवों का नहीं। शहरों की तुलना में गाँव सदा पिछड़े ही नज़र आते हैं। गाँवों में आजीक्किा का प्रमुख साधन कृषि है, परंतु बढ़ती आबादी के कारण कृषियोग्य जमीन का बँटवारा होता गया। कृषि कम होने से रोटी-रोजी का संकट उठना स्वाभाविक है। इसके अलावा गाँवों में सरकारी तथा गैर सरकारी मिल और फैक्ट्रियाँ तथा अन्य उद्योग धंधे नहीं हैं कि लोगों का मन शहर की ओर न झुके और वे यहीं के यहीं रह जाए।

शहरों की चकाचौंध – शहरी जीवन आकर्षण से भरपूर है। यहाँ की चमचमाती पक्की सड़कें, पार्क, उद्यान, ऊँची-ऊँची अट्टालिकाएँ, घर-घर तक बिजली की पहुँच और अत्याधुनिक उपकरण, घरों के वातानुकूलित कमरे, सिनेमाघर और मल्टीप्लेक्स क्लब होटल आदि शहरों की चकाचौंध कई गुना बढ़ा देते हैं। इसके अलावा सरकारी-गैर सरकारी कार्यालय, मैट्रो रेल सेवा, वातानुकूलित बसें उनकी उपलब्धता देखकर गाँव से आया व्यक्ति सम्मोहित-सा हो जाता है। वह शहर की चकाचौंध में खो जाता है। उसे लगता है कि वह किसी और लोक में आ गया है।

शहर सुविधा के केंद्र – सरकारी योजनाओं का अधिकांश लाभ शहरों को मिलता है। यहाँ विकास की गति बहुत तेज़ होती है। शहरों में उच्च पदासीन अधिकारियों तथा नेताओं का निवास होने के कारण यहाँ सुविधाओं की कमी नहीं होती है। शहरों में एक ओर जहाँ रोज़गार के छोटे-बड़े अनेक अवसर उपलब्ध होते हैं, वहीं योग्यता के अनुसार नौकरी के अवसर भी उपलब्ध होते हैं, वहीं दूसरी ओर हमारे जीवन के लिए आवश्यक वस्तुएँ भी आसानी से मिल जाती हैं।

खाद्य वस्तुएँ, दूध, तेल, साबुन, कपड़ा आदि के लिए किसी विशेष दिन लगने वाली बाज़ार का न तो इंतज़ार करना है और न ज्यादा दूर जाना हैं। यहाँ परिवहन सेवा, चिकित्सा सेवा आदि सुलभ है। यहाँ दो कदम पर मॉल है तो चार कदम पर सिनेमाघर उपलब्ध है। यही स्थिति अन्य सुविधाओं की भी है।

शहरी जीवन का सच – अमीर लोगों के लिए शहर सुविधा के केंद्र हैं। यहाँ उनके लिए एक से बढ़कर एक सुख-सुविधाएँ उपलब्ध हैं, परंतु गरीब और आम आदमी के लिए शहर की सुविधाएँ दिवास्वप्न साबित होती है। व्यक्ति गाँव से शहर के आकर्षण से खिंचा आ जाता है, परंतु उसे फैक्ट्रियों में मजदूरी करनी पड़ती है या मंडी में पल्लेदारी करनी पड़ती है।

कम आय होने के कारण मुश्किल से वह अपना पेट भर पाता है। वह झग्गियों में रहने के लिए विवश होता है। पानी और शौच के लिए घंटों लाइन में लगना उसकी नियति बन जाती है। आने-जाने के लिए बसों के धक्के, साँस लेने के लिए न साफ़ हवा और न पीने को स्वच्छ पानी। उसकी जिंदगी कोल्हू के बैल के समान होकर रह जाती है। ऐसे जीवन में उसे शहर का सच पता चल जाता है।

दिखावापूर्ण जीवन – शहर की व्यस्त और भाग दौड़ भरी जिंदगी के कारण आत्मीयता में कमी आने लगती है। वह काम की मार से परेशान होता है। यह परेशानी उसके व्यवहार में झलकती है। वह फ़ोन, सोशल मीडिया, एस.एम.एस. से जुड़ने का दिखावा तो करता है, परंतु वह चाहकर अपने निकट संबंधियों से मिल नहीं पाता है। इसके अलावा शहरी जीवन में व्यक्ति आत्मकेंद्रित तथा स्वार्थी बनता जाता है।

उपसंहार – महानगरों का जीवन आकर्षण से भरपूर है। धनी लोग शहरों में सुख-सुविधाओं का लाभ उठाते हैं, पर आम आदमी और गरीब वहाँ नाटकीय जीवन जीने को विवश होता है। शहरी जीवन पर हर बात पूर्णतया लागू होती है कि दूर के ढोल सुहावने होते हैं।

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दूरदर्शन और युवावर्ग पर निबंध – Doordarshan Essay In Hindi

Doordarshan Essay In Hindi

दूरदर्शन और युवावर्ग पर निबंध – Essay On Doordarshan In Hindi

दूरदर्शन का जीवन पर बढ़ता अनुचित प्रभाव – Doordarshan’s Increasing Undue Influence On Life

रूपरेखा–

  • प्रस्तावना,
  • दूरदर्शन का प्रभाव–क्षेत्र,
  • दूरदर्शन के अनुचित प्रभाव,
  • बचाव के उपाय.
  • उपसंहार।

साथ ही, कक्षा 1 से 10 तक के छात्र उदाहरणों के साथ इस पृष्ठ से विभिन्न हिंदी निबंध विषय पा सकते हैं।

दूरदर्शन और युवावर्ग पर निबंध – Dooradarshan Aur Yuvaavarg Par Nibandh

प्रस्तावना–
दूरदर्शन आज भारतीय जन–जीवन का एक अभिन्न अंग बन गया है। दृश्य और श्रव्य दोनों साधनों के सुसंयोजन ने इसे मनोरंजन का श्रेष्ठतम साधन प्रमाणित कर दिया है। नित्य नई तकनीकों के प्रवेश और नये–नये चैनलों के उद्घाटन ने बालक और युवावर्ग को दूरदर्शन का दीवाना बना दिया है।

दूरदर्शन का प्रभाव–
क्षेत्र–दूरदर्शन का प्रभाव–क्षेत्र पिछले दशकों में बड़ी तीव्रता से बढ़ा है। हर आयु, वर्ग तथा रुचि के लोगों में दूरदर्शन से लगाव बढ़ा है।

इस समय सामाजिक जीवन के हर क्षेत्र पर किसी–न–किसी रूप में दूरदर्शन का प्रभाव है। युवा इसके मनोरंजक पक्ष से, व्यवसायी इसकी असीमित विज्ञापन–क्षमता से, राजनीतिज्ञ इसके देशव्यापी प्रसारण से, धार्मिक इसकी कथाओं और धार्मिक स्थलों की सजीव प्रस्तुति से प्रभावित हैं।।

दूरदर्शन के अनुचित प्रभाव–दूरदर्शन की लोकप्रियता जैसे–जैसे बढ़ रही है, वैसे–वैसे इसका हानिकारक पक्ष भी सामने आता जा रहा है। जीवन के सभी क्षेत्रों में इसके कुप्रभाव देखे जा सकते हैं–

(क) सामाजिक दुष्प्रभाव–दूरदर्शन ने व्यक्ति के सामाजिक जीवन को गहराई से कुप्रभावित किया है। छात्र और युवा वर्ग के वीडियो गेम और कार्टून फिल्मों में उलझे रहने से उनके स्वाभाविक खेलकूद पर विराम–सा लग गया है और सामाजिक सक्रियता घट गई है। युवाओं का ही नहीं मोबाइल सम्हाले रहने वाले प्रौढ़ों का भी प्रत्यक्ष संपर्क निरंतर सिकुड़ता जा रहा है।

(ख) सांस्कृतिक दुष्प्रभाव–दूरदर्शन के धारावाहिक और विज्ञापन, लोगों में नैतिकता, उत्तरदायित्व के अभाव और घोर भौतिकता को बढ़ावा दे रहे हैं। भारतीय जीवन–मूल्यों की उपेक्षा के साथ ही नए–नए अन्धविश्वास भी परोसे जा रहे हैं। फैशन, विलासिता और अपराधी प्रवृत्ति को प्रोत्साहन दिया जा रहा है।

(ग) आर्थिक दुष्प्रभाव–दूरदर्शन ने लोगों के अप्रत्यक्ष आर्थिक–शोषण का मार्ग भी खोल दिया है। ‘इंडियन आइडल’, ‘नच बलिए’ तथा अन्यान्य प्रतियोगिताओं के माध्यम से एस. एम. एस. या मत संग्रह द्वारा युवाओं की जेबें खाली कराई जा रही हैं। इसके अतिरिक्त अतिश्योक्तिपूर्ण और भ्रामक विज्ञापनों के जाल में फंसाकर उपभोक्ता को अपव्यय के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है।

(घ) स्वास्थ्य सम्बन्धी दुष्प्रभाव–दूरदर्शन कार्यक्रमों को लम्बे समय तक देखते रहने के कारण छात्रों और युवाओं का स्वास्थ्य भी कुप्रभावित हो रहा है। वे धीरे–धीरे मोटापे का शिकार हो रहे हैं। खेलों तथा व्यायाम में उनकी रुचि क है। इसके साथ ही दूरदर्शन के निरंतर देखने से नेत्र–ज्योति भी कुप्रभावित हो रही है।

बचाव के उपाय–
जब तक दूरदर्शन के चैनल घोर व्यावसायिक दृष्टिकोण से ग्रस्त रहेंगे तब तक वे दर्शकों का मानसिक और शारीरिक अनिष्ट करते रहेंगे। अतः सरकार और जनता दोनों को इस ओर ध्यान देना होगा। ‘ट्राई’ और ‘टी डी सैट’ ने अब अश्लीलता परोसने वाले चैनलों की लगाम कसना प्रारम्भ कर दिया है।

फिर भी स्थिति अनियन्त्रित है। इसके लिए जनता को भी संयम और जागरूकता दिखानी होगी। इसके साथ ही नैतिक मूल्यों का खिल्ली उड़ाने वालों को समुचित जवाब दिया जाना भी आवश्यक है।

उपसंहार–
दूरदर्शन के अनुचित प्रभावों के विस्तार में राजनीतिक स्वार्थों तथा उद्योग जगत् के अनुचित दबाव ने भी पूरा सहयोग किया है। शीतल.पेयों में कीटनाशक पाए जाने पर भी कानूनी दावपेंचों के सहारे उनका विज्ञापन न रुक पाना, इसका स्पष्ट उदाहरण है। दूरदर्शन के अनेक लाभों के होते हुए उसके दुष्प्रभावों की अनदेखी करना भविष्य में बहुत महँगा पड़ सकता है।

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एक राष्ट्र एक कर : जी०एस०टी० ”जी० एस०टी० निबंध – Gst One Nation One Tax Essay In Hindi

Gst One Nation One Tax Essay In Hindi

एक राष्ट्र एक कर : जी०एस०टी० ”जी० एस०टी० निबंध – Essay On Gst One Nation One Tax In Hindi

सहकारी संघवाद का सर्वश्रेष्ठ उदाहरण है।”

–प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी

रूपरेखा

  • प्रस्तावना,
  • सबसे बड़ा कर सुधार,
  • जी०एस०टी० की विशेषताएँ,
  • जी०एस०टी० की श्रेणियाँ,
  • जी०एस०टी० के लाभ,
  • उपसंहार।।

साथ ही, कक्षा 1 से 10 तक के छात्र उदाहरणों के साथ इस पृष्ठ से विभिन्न हिंदी निबंध विषय पा सकते हैं।

प्रस्तावना–
भारत में टैक्स व्यवस्था की जड़ें काफी पुरानी हैं। टैक्स अथवा कर का उल्लेख प्राचीन ग्रन्थ ‘मनुस्मृति’ और चाणक्यरचित ‘अर्थशास्त्र’ में भी मिलता है। विभिन्न ग्रन्थों में उल्लेख है कि कर प्रणाली का अन्तिम उद्देश्य अधिक–से–अधिक सामाजिक कल्याण होना चाहिए। लोक–कल्याणकारी राज्य का उद्देश्य भी यही है।

इसी उद्देश्य की परिपूर्ति के लिए माल एवं सेवा कर (Goods and Service Tax = GST) जो भारत सरकार की नई अप्रत्यक्ष कर व्यवस्था है, को 01 जुलाई, 2017 से सम्पूर्ण देश के भू–भाग पर लागू कर दिया गया। इसी के साथ राष्ट्र के इतिहास में सबसे बड़ा कर सुधार एक वास्तविकता के रूप में सामने आया। 1920 के दशक में जर्मनी के एक व्यवसायी विल्हेम वॉन सीमेंस ने जी०एस०टी० का विचार दिया था। आज संसार के 160 से अधिक देशों ने इस कर प्रणाली को अपना लिया है।

सबसे बड़ा कर सुधार–
स्वतन्त्रता प्राप्ति के पश्चात् भारत का सबसे बड़ा कर सुधार माल एवं सेवा कर (जी०एस०टी०) का 30 जून, 2017 की मध्यरात्रि को संसद के केन्द्रीय कक्ष में आयोजित समारोह में शुभारम्भ किया गया। इसमें राष्ट्रपति प्रणव मुकर्जी व प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी सहित अधिकांश गणमान्य लोग उपस्थित थे। राष्ट्रपति प्रणव मुकर्जी ने कहा कि यह ऐतिहासिक क्षण दिसम्बर 2002 में शुरू हुई लम्बी यात्रा की सुखद परिणति है।

प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी ने जी०एस०टी० को अच्छा व सरल टैक्स बताया। उन्होंने कहा कि देश की आजादी के समय सरदार पटेल ने 500 से अधिक रियासतों को मिलाकर राष्ट्र का एकीकरण किया था। उसी प्रकार जी०एस०टी० के द्वारा देश का आर्थिक एकीकरण हो रहा है। अब गंगानगर (राजस्थान) से ईटानगर (अरुणाचल प्रदेश). तक ‘एक टैक्स–एक देश’ का नारा गूंजेगा।

जी०एस०टी० की विशेषताएँ–
देश की स्वतन्त्रता के 70 वर्ष बाद 14 टैक्सों को समाप्त कर एक टैक्स जी०एस०टी० में बदल दिया गया है। जी०एस०टी० लागू होने से अब किसी भी सामान की देशभर में समान कीमत होगी; क्योंकि इस पर पूरे देश में एकसमान कर लग रहा है। इससे उद्योग, सरकार और ग्राहक सभी को लाभ होगा। इससे सरकार के ‘मेक इन इण्डिया’ कार्यक्रम को भी तीव्रता प्राप्त होगी। इसकी प्रमुख विशेषताएँ हैं-

  • आसान कर का अनुपालन,
  • घर–परिवार के लिए वरदान,
  • एक सशक्त आर्थिक भारत का निर्माण,
  • सरल कर व्यवस्था,
  • अर्थव्यवस्था के लिए लाभदायक तथा
  • व्यापार और उद्योग के लिए लाभप्रद।

जी०एस०टी० की श्रेणियाँ–
आम उपभोग की अधिकांश वस्तुओं की कीमतों में इस एकल व्यवस्था से कमी आएगी। जी०एस०टी० को वस्तुवार चार श्रेणियों में रखा गया है। निम्न और मध्यम वर्ग के इस्तेमाल की अधिकांश वस्तुओं पर जी०एस०टी० की दर शून्य रखी गयी है। कुछ वस्तुओं और सेवाओं को जी०एस०टी० के दायरे से बाहर रखा गया है। जैसे खुला खाद्य अनाज, ताजी सब्जियाँ, आटा, दूध, अण्डा, नमक, फूल की झाड़, शिक्षा सेवाएँ, स्वास्थ्य सेवाएँ आदि को कर मुक्त किया गया है। चीनी, चायपत्ती, खाद्य तेल, घरेलू एल०पी०जी० आदि पर 5% जी०एस०टी० लगेगा।

मक्खन, घी, सब्जी, फलों से निर्मित खाद्य पदार्थ, मोबाइल आदि पर 12% जी०एस०टी० लगाया गया है। केश तेल, टूथपेस्ट, साबुन, आइसक्रीम, कम्प्यूटर, प्रिंटर आदि पर 18% जी०एस०टी० लगाया गया है। विलासिता वाली कुछ विशेष वस्तुओं के साथ ही कुछ अन्य वस्तुओं पर 28% की सर्वाधिक दर लागू की गयी है। इस श्रेणी की वस्तुओं पर 5 वर्षों तक उपकर भी लागू रहेगा ताकि जी०एस०टी० को लागू करने से राज्यों को होनेवाले किसी भी तरह के राजस्व नुकसान की भरपाई की जा सके।

लगभग 81 प्रतिशत वस्तुओं पर जी०एस०टी० की दर 18% या इससे कम है।

केन्द्र सरकार द्वारा केन्द्रीय जी०एस०टी० (CGST) लागू किया गया है जबकि राज्यों द्वारा राज्य जी०एस०टी० (SGST) लगाया गया है। विधायिका वाले केन्द्रप्रशासित प्रदेशों में भी राज्य जी०एस०टी० लागू होगा। बिना विधायिकावाले केन्द्रप्रशासित प्रदेशों में केन्द्रप्रशासित प्रदेश जी०एस०टी० (UGST) लागू होगा।

अन्तर्राज्य आपूर्ति पर एकीकृत जी०एस०टी० (IGST) लगाया गया है।

जी०एस०टी० में शामिल केन्द्रीय कर हैं–

  • केन्द्रीय उत्पाद शुल्क,
  • सीमा शुल्क,
  • सेवा कर,
  • उपकर और अधिभार।

जी०एस०टी० में शामिल राज्य कर हैं–

  • राज्य वैट,
  • बिक्री कर,
  • विलासिता कर,
  • चुंगी,
  • मनोरंजन कर,
  • विज्ञापनों/लाटरियों/सट्टे व जुए पर कर।

जी०एस०टी० के लाभ–कर की इस एकल प्रणाली के बहुआयामी लाभ हैं

  • इस प्रणाली के लागू होने पर एकीकृत सामान राष्ट्रीय बाजार का सृजन हो सकेगा, जिससे विदेशी निवेश और ‘मेक इन इण्डिया’ जैसे अभियानों को गति प्राप्त होगी।
  • इससे आम जनता पर करों का बोझ कम होगा।
  • इससे रोजगार के अधिक अवसर उपलब्ध हो सकेंगे जिससे घरेलू उत्पाद जीडीपी में वृद्धि होगी।
  • देश के उत्पाद अन्तर्राष्ट्रीय बाजार में अधिक प्रतिस्पर्धा कर सकेंगे।
  • IGST और SGST की दरें समान होने के कारण अन्तर्राज्य कर चोरी की घटनाएँ समाप्तप्राय हो जाएँगी।
  • कम्पनियों का औसत कर भाग घटेगा तो वस्तुओं की कीमत भी घटेगी और उपभोग बढ़ेगा। इससे भारत एक ‘औद्योगिक केन्द्र’ के रूप में उभरकर सामने आएगा।
  • कानूनी प्रक्रियाओं और कर दरों में एकरूपता आएगी।

उपसंहार–
इस प्रकार यह अपेक्षा की जानी चाहिए कि जी०एस०टी० हर परिवार के लिए सौगात लेकर आएगा और राष्ट्र आर्थिक रूप से अधिक सबल व प्रगतिगामी होकर उभरेगा। शुरूआत में इसे लागू करने के दौरान कुछ कठिनाइयाँ आ सकती हैं लेकिन ‘एक देश एक टैक्स प्रणाली’ देश के विकास में मील का पत्थर सिद्ध होगी। इस सरल कर प्रणाली से व्यापार जगत का भी हित होगा।

वास्तव में जी०एस०टी० का प्रभाव देश की सीमाओं से परे भी दिखाई देगा। विश्व व्यापार संगठन के नियमों के अन्तर्गत सम्बन्धित देश इसका लाभ उठा सकते हैं कि वे अपने यहाँ से निर्यात होनेवाली वस्तुओं को अप्रत्यक्ष करों में रियायत देकर उन्हें आयात से सम्बद्ध कर लें। देश के विकास की दूरगामी सोच को ध्यान में रखते हुए विलासिता की महँगी वस्तुओं पर अधिक कर लगाकर कर ढाँचे को प्रगतिशील रूप दिया गया है।

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बस्ते का बढ़ता बोझ पर निबंध – Baste Ka Badhta Bojh Essay In Hindi

Baste Ka Badhta Bojh Essay In Hindi

बस्ते का बढ़ता बोझ पर निबंध – Essay On Baste Ka Badhta Bojh In Hindi

संकेत-बिंदु –

  • भूमिका
  • पुस्तकों का महत्त्व
  • बस्ते का बढ़ता बोझ
  • कम करने के उपाय
  • उपसंहार

बचपन पर हावी बस्ते का बोझ (Bachpan Par Haavee Baste Ka Bojh) – The burden of dominate the childhood

साथ ही, कक्षा 1 से 10 तक के छात्र उदाहरणों के साथ इस पृष्ठ से विभिन्न हिंदी निबंध विषय पा सकते हैं।

भूमिका – विदया के संबंध में कहा गया है- ‘सा विद्या या विमुक्तये।’ अर्थात् ‘विदया वही है जो हमें मुक्ति दिलाए’। इसी उददेश्य की प्राप्ति के लिए प्राचीन समय से ही विभिन्न रूपों में विद्यार्थियों को शिक्षा दी जाती रही है। वर्तमान समय में छात्र के बस्ते का बोझ इतना बढ़ गया है कि उसे मिलने वाली विद्या का साधन ही उसे दबाए जा रहा है। आज का छात्र, छात्र कम कुली ज़्यादा दिखने लगा है।

पुस्तकों का महत्त्व – पुस्तकें ज्ञान प्राप्त करने का साधन होती हैं। उनमें तरह-तरह का ज्ञान भरा हुआ है। पुस्तकों के कारण शिक्षा प्रणाली आसान बन सकी है। प्राचीन काल में जब पुस्तकों का अभाव था तब रट्टा मारकर ही ज्ञान प्राप्त करना होता था। तब गुरुजी ने एक बार जो बता दिया उसे बहुत ध्यान से सुनना, समझना और दोहराना पड़ता था, क्योंकि तब आज की तरह पुस्तकें न थीं कि जब जी में आया खोला और पढ़ लिया। इसके अलावा पुस्तकों के कारण ही शिक्षा का इतना प्रचार-प्रसार हो सका है।

बस्ते का बढ़ता बोझ – प्रतियोगिता और दिखावे के इस युग में माता-पिता अपने बच्चों को जल्दी से जल्दी स्कूल भेज देना चाहते हैं। अब तो प्ले स्कूल के पाठ्यक्रम को छोड़ दें तो नर्सरी कक्षा से ही पुस्तकों की संख्या विषयानुसार बढ़ने लगती हैं। एक-एक विषय की कई पुस्तकें विद्यार्थियों के थैले में देखी जा सकती हैं। कुछ व्याकरण के नाम पर तो कुछ अभ्यास-पुस्तिका के नाम पर। हद तो तब हो जाती है जब शब्दकोश तक बच्चों को विद्यालय ले जाते देखा जाता है।

अभिभावकों को दिखाने के लिए पहली कक्षा से ही कंप्यूटर और सामान्य ज्ञान की पुस्तकें भी पाठ्यक्रम में लगवा दी जाती हैं। अभिभावक समझता है कि उसका बच्चा पहली कक्षा से ही कंप्यूटर पढ़ने लगा है, पर इन पुस्तकों के कारण बस्ते का बढ़ा बोझ वह नज़रअंदाज कर जाता है।

बढ़े बोझ वाले बस्ते का असर – भारी भरकम बस्ता उठाए विद्यालय जाते छात्रों को देखना तो अच्छा लगता है, पर इस वजन को उठाते हुए उनकी कमर झुक जाती है। वे झुककर चलने को विवश रहते हैं। इससे कम उम्र में ही उन्हें रीढ़ की हड्डी में दर्द रहने की समस्या शुरू हो जाती है। शहरी खान-पान में फास्ट फूड की अधिकता कोढ़ में खाज का काम करती है। इसका सीधा असर बच्चों के स्वास्थ्य पर पड़ता है और उन्हें अल्पायु में ही चश्मा लग जाता है।

बस्ते का बोझ बढ़ने का कारण – बस्ते का बोझ बढ़ने के मुख्यतया दो कारण हैं-पहला यह कि अभिभावक भारी भरकम बस्ते को देखकर खुश होते हैं कि उनका बच्चा अन्य बच्चों की तुलना में ज़्यादा पढ़ रहा है। दूसरा कारण हैं-प्राइवेट स्कूल के प्रबंधकों की लालची प्रवृत्ति। वे पाठ्यक्रम में अधिक से अधिक पुस्तकें शामिल करवा देते हैं, ताकि अभिभावकों से अधिक से अधिक धन वसूल कर अपनी जेबें भर सकें।

बोझ कम करने के उपाय – इस बोझ को कम करने की दिशा में अभिभावकों को जागरूक बनकर अपनी सोच में बदलाव लाना होगा कि, भारी बस्ते से ही अच्छी पढ़ाई नहीं होती है। इसके अलावा शिक्षण संस्थानों में प्रोजेक्टर आदि के माध्यम से पढ़ाने की व्यवस्था हो ताकि पुस्तकों की ज़रूरत कम से कम पड़े। इसके अलावा छात्रों को एक दिन में दो या तीन विषय ही पढ़ाए जाएँ, ताकि छात्रों को कम से कम पुस्तकें लानी पड़े।

उपसंहार – अब सोचने का समय आ गया है कि बस्ते का बोझ किस तरह कम किया जाए। बस्ते का बढ़ा बोझ बच्चों का बचपन ही नहीं निगल रहा है, बल्कि उन्हें शारीरिक रूप से विकृत भी बना रहा है। शिक्षाविदों को अपनी राय सरकार तक तुरंत पहुँचानी चाहिए।

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दूरदर्शन पर निबंध – Importance Of Doordarshan Essay In Hindi

Importance Of Doordarshan Essay In Hindi

दूरदर्शन पर निबंध – Essay On Importance Of Doordarshan In Hindi

संकेत बिंदु –

  • प्रस्तावना
  • दूरदर्शन का प्रभाव
  • दूरदर्शन से हानियाँ
  • दूरदर्शन का बढता उपयोग
  • दूरदर्शन के लाभ
  • उपसंहार

साथ ही, कक्षा 1 से 10 तक के छात्र उदाहरणों के साथ इस पृष्ठ से विभिन्न हिंदी निबंध विषय पा सकते हैं।

प्रस्तावना – विज्ञानं ने मनुष्य को एक से बढ़कर एक अद्भुत उपकरण प्रदान किए हैं। इन्हीं अद्भुत उपकरणों में एक है दूरदर्शन। दूरदर्शन ऐसा अद्भुत उपकरण है जिसे कुछ समय पहले कल्पना की वस्तु समझा जाता था। यह आधुनिक युग में मनोरंजन के साथसाथ सूचनाओं की प्राप्ति का महत्त्वपूर्ण साधन भी है। पहले इसका प्रयोग महानगरों के संपन्न घरों तक सीमित था, परंतु वर्तमान में इसकी पहुँच शहर और गाँव के घर-घर तक हो गई है।

दरदर्शन का बढ़ता उपयोग – दूरदर्शन मनोरंजन एवं ज्ञानवर्धन का उत्तम साधन है। आज यह हर घर की आवश्यकता बन गया है। उपग्रह संबंधी प्रसारण की सुविधा के कारण इस पर कार्यक्रमों की भरमार हो गई है। कभी मात्र दो चैनल तक सीमित रहने वाले दूरदर्शन पर आज अनेकानेक चैनल हो गए हैं। बस रिमोट कंट्रोल उठाकर अपना मनपसंद चैनल लगाने और रुचि के अनुसार कार्यक्रम देखने की देर रहती है। आज दूरदर्शन पर फ़िल्म, धारावाहिक, समाचार, गीत-संगीत, लोकगीत, लोकनृत्य, वार्ता, खेलों के प्रसारण, बाजार भाव, मौसम का हाल, विभिन्न शैक्षिक कार्यक्रम तथा हिंदी-अंग्रेजी के अलावा क्षेत्रीय भाषाओं में प्रसारण की सुविधा के कारण यह महिलाओं, युवाओं और हर आयुवर्ग के लोगों में लोकप्रिय है।

दरदर्शन का प्रभाव – अपनी उपयोगिता के कारण दूरदर्शन आज विलसिता की वस्तु न होकर एक आवश्यकता बन गया है। बच्चेबूढ़े, युवा-प्रौढ़ और महिलाएँ इसे समान रूप से पसंद करती हैं। इस पर प्रसारित ‘रामायण’ और महाभारत जैसे कार्यक्रमों ने इसे जनमानस तक पहुँचा दिया। उस समय लोग इन कार्यक्रमों के प्रसारण के पूर्व ही अपना काम समाप्त या बंद कर इसके सामने आ बैठते थे। गाँवों और छोटे शहरों में सड़कें सुनसान हो जाती थीं। आज भी विभिन्न देशों का जब भारत के साथ क्रिकेट मैच होता है तो इसका असर जनमानस पर देखा जा सकता है। लोग सब कुछ भूलकर ही दूरदर्शन से चिपक जाते हैं और बच्चे पढ़ना भूल जाते हैं। आज भी महिलाएँ चाय बनाने जैसे छोटे-छोटे काम तभी निबटाती हैं जब धारावाहिक के बीच विज्ञापन आता है।

दरदर्शन के लाभ – दूरदर्शन विविध क्षेत्रों में विविध रूपों में लाभदायक है। यह वर्तमान में सबसे सस्ता और सुलभ मनोरंजन का साधन है। इस पर मात्र बिजली और कुछ रुपये के मासिक खर्च पर मनचाहे कार्यक्रमों का आनंद उठाया जा सकता है। दूरदर्शन पर प्रसारित फ़िल्मों ने अब सिनेमा के टिकट की लाइन में लगने से मुक्ति दिला दी है। अब फ़िल्म हो या कोई प्रिय धारावाहिक, घर बैठे इनका सपरिवार आनंद लिया जा सकता है।

दूरदर्शन पर प्रसारित समाचार ताज़ी और विश्व के किसी कोने में घट रही घटनाओं के चित्रों के साथ प्रसारित की जाती है जिससे इनकी विश्वसनीयता और भी बढ़ जाती है। इनसे हम दुनिया का हाल जान पाते हैं तो दूसरी ओर कल्पनातीत स्थानों, प्राणियों, घाटियों, वादियों, पहाड़ की चोटियों जैसे दुर्गम स्थानों का दर्शन हमें रोमांचित कर जाता है। इस तरह जिन स्थानों को हम पर्यटन के माध्यम से साक्षात नहीं देख पाते हैं या जिन्हें देखने के लिए न हमारी जेब अनुमति देती है और न हमारे पास समय है, को साक्षात हमारी आँखों के सामने प्रस्तुत कर देते हैं।

दूरदर्शन के माध्यम से हमें विभिन्न प्रकार का शैक्षिक एवं व्यावसायिक ज्ञान होता है। इन पर एन०सी०ई०आर०टी० के विभिन्न कार्यक्रम रोचक ढंग से प्रस्तुत किए जाते हैं। इसके अलावा रोज़गार, व्यवसाय, खेती-बारी संबंधी विविध जानकारियाँ भी मिलती हैं।

दरदर्शन से हानियाँ दूरदर्शन लोगों के बीच इतना लोकप्रिय है कि लोग इसके कार्यक्रमों में खो जाते हैं। उन्हें समय का ध्यान नहीं रहता। कुछ समय बाद लोगों को आज का काम कल पर टालने की आदत पड़ जाती है। इससे लोग आलसी और निकम्मे हो जाते हैं। दूरदर्शन के कारण बच्चों की पढ़ाई बाधित हो रही है। इससे एक ओर बच्चों की दृष्टि प्रभावित हो रही है तो दूसरी और उनमें असमय मोटापा बढ़ रहा है जो अनेक रोगों का कारण बनता है।

दूरदर्शन पर प्रसारित कार्यक्रमों में हिंसा, मारकाट, लूट, घरेलू झगडे, अर्धनंगापन आदि के दृश्य किशोर और युवा मन को गुमराह करते हैं जिससे समाज में अवांछित गतिविधियाँ और अपराध बढ़ रहे हैं। इसके अलावा भारतीय संस्कृति और मानवीय मूल्यों की अवहेलना दर्शन के कार्यक्रमों का ही असर है।

उपसंहार – दूरदर्शन अत्यंत उपयोगी उपकरण है जो आज हर घर तक अपनी पैठ बना चुका है। इसका दूसरा पक्ष भले ही उतना उज्ज वल न हो पर इससे दूरदर्शन की उपयोगिता कम नहीं हो जाती। दूरदर्शन के कार्यक्रम कितनी देर देखना है, कब देखना है, कौन से कार्यक्रम देखने हैं यह हमारे बुद्धि विवेक पर निर्भर करता है। इसके लिए दूरदर्शन दोषी नहीं है। दूरदर्शन का प्रयोग सोच-समझकर करना चाहिए।

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मन के हारे हार है मन के जीते जीत पर निबंध – It is the Mind which Wins and Defeats Essay In Hindi

It is the Mind which Wins and Defeats Essay In Hindi

मन के हारे हार है मन के जीते जीत पर निबंध – Essay On It is the Mind which Wins and Defeats” in Hindi

रूपरेखा–

  • प्रस्तावना,
  • उक्ति का आशय,
  • मन की दृढ़ता के कुछ उदाहरण,
  • कर्म के सम्पादन में मन की शक्ति,
  • सफलता की कुंजी : मन की स्थिरता, धैर्य एवं सतत कर्म,
  • मन को शक्तिसम्पन्न कैसे किया जाए?
  • उपसंहार।

साथ ही, कक्षा 1 से 10 तक के छात्र उदाहरणों के साथ इस पृष्ठ से विभिन्न हिंदी निबंध विषय पा सकते हैं।

Essay On It is the Mind which Wins and Defeats” in Hindi

मन के हारे हार है मन के जीते जीत पर निबंध – Man Ke Haare Haar Hai Man Ke Jeete Jeet Par Nibandh

प्रस्तावना–
संस्कृत की एक कहावत है–’मन एव मनुष्याणां कारणं बन्धमोक्षयोः’ अर्थात् मन ही मनुष्य के बन्धन और मोक्ष का कारण है। तात्पर्य यह है कि मन ही मनुष्य को सांसारिक बन्धनों में बाँधता है और मन ही बन्धनों से छुटकारा दिलाता है। यदि मन न चाहे तो व्यक्ति बड़े–से–बड़े बन्धनों की भी उपेक्षा कर सकता है। शंकराचार्य ने कहा है कि “जिसने मन को जीत लिया, उसने जगत् को जीत लिया।” मन ही मनुष्य को स्वर्ग या नरक में बिठा देता है। स्वर्ग या नरक में जाने की कुंजी भगवान् ने हमारे हाथों में ही दे रखी है।

उक्ति का आशय–मन के महत्त्व पर विचार करने के उपरान्त प्रकरण सम्बन्धी उक्ति के आशय पर विचार किया जाना आवश्यक है। यह उक्ति अपने पूर्ण रूप में इस प्रकार है-

दुःख–सुख सब कहँ परत है, पौरुष तजहु न मीत।

मन के हारे हार है, मन के जीते जीत॥ अर्थात् दुःख और सुख तो सभी पर पड़ा करते हैं, इसलिए अपना पौरुष मत छोड़ो; क्योंकि हार और जीत तो केवल मन के मानने अथवा न मानने पर ही निर्भर है, अर्थात् मन के द्वारा हार स्वीकार किए जाने पर व्यक्ति की हार सुनिश्चित है। इसके विपरीत यदि व्यक्ति का मन हार स्वीकार नहीं करता तो विपरीत परिस्थितियों में भी विजयश्री उसके चरण चूमती है। जय–पराजय, हानि–लाभ, यश–अपयश और दुःख–सुख सब मन के ही कारण हैं; इसलिए व्यक्ति जैसा अनुभव करेगा वैसा ही वह बनेगा।

मन की दृढ़ता के कुछ उदाहरण हमारे सामने ऐसे अनेक उदाहरण हैं, जिनमें मन की संकल्प–शक्ति के द्वारा व्यक्तियों ने अपनी हार को विजयश्री में परिवर्तित कर दिया। महाभारत के युद्ध में पाण्डवों की जीत का कारण यही था कि श्रीकृष्ण ने उनके मनोबल को दृढ़ कर दिया था। नचिकेता ने न केवल मृत्यु को पराजित किया, अपितु यमराज से अपनी इच्छानुसार वरदान भी प्राप्त किए। सावित्री के मन ने यमराज के सामने भी हार नहीं मानी और अन्त में अपने पति को मृत्यु के मुख से निकाल लाने में सफलता प्राप्त की।

अल्प साधनोंवाले महाराणा प्रताप ने अपने मन में दृढ़–संकल्प करके मुगल सम्राट अकबर से युद्ध किया। शिवाजी ने बहुत थोड़ी सेना लेकर ही औरंगजेब के दाँत खट्टे कर दिए। द्वितीय विश्वयुद्ध में अमेरिका द्वारा किए गए अणुबम के विस्फोट ने जापान को पूरी तरह बरबाद कर दिया था, किन्तु अपने मनोबल की दृढ़ता के कारण आज वही जापान विश्व के गिने–चुने शक्तिसम्पन्न देशों में से एक है। दुबले–पतले गांधीजी ने अपने दृढ़ संकल्प से ब्रिटिश साम्राज्य की नींव को हिला दिया था। इस प्रकार के कितने ही उदाहरण प्रस्तुत किए जा सकते हैं, जिनसे यह बात स्पष्ट हो जाती है कि हार–जीत मन की दृढ़ता पर ही निर्भर है।

Man Ke Haare Haar Hai Man Ke Jeete Jeet Par Nibandh

कर्म के सम्पादन में मन की शक्ति–
प्राय: देखा गया है कि जिस काम के प्रति व्यक्ति का रुझान अधिक होता है, उस कार्य को वह कष्ट सहन करते हुए भी पूरा करता है। जैसे ही किसी कार्य के प्रति मन की आसक्ति कम हो जाती है, वैसे–वैसे ही उसे सम्पन्न करने के प्रयत्न भी शिथिल हो जाते हैं। हिमाच्छादित पर्वतों पर चढ़ाई करनेवाले पर्वतारोहियों के मन में अपने कर्म के प्रति आसक्ति रहती है। आसक्ति की यह भावना उन्हें निरन्तर आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करती रहती है।

सफलता की कुंजी : मन की स्थिरता, धैर्य एवं सतत कर्म–वस्तुत: मन सफलता की कुंजी है। जब तक न में किसी कार्य को करने की तीव्र इच्छा रहेगी, तब तक असफल होते हुए भी उस काम को करने की आशा बनी रहेगी। एक प्रसिद्ध कहानी है कि एक राजा ने कई बार अपने शत्रु से युद्ध किया और पराजित हुआ। पराजित होने पर वह एकान्त कक्ष में बैठ गया। वहाँ उसने एक मकड़ी को ऊपर चढ़ते देखा।

मकड़ी कई बार ऊपर चढ़ी, किन्तु वह बार–बार गिरती रही। अन्तत: वह ऊपर चढ़ ही गई। इससे राजा को अपार प्रेरणा मिली। उसने पुनः शक्ति का संचय किया और अपने शत्रु को पराजित करके अपना राज्य वापस ले लिया। इस छोटी–सी कथा में यही सार निहित है कि मन के न हारने पर एक–न–एक दिन सफलता मिल ही जाती है।

मन को शक्तिसम्पन्न कैसे किया जाए?–प्रश्न यह उठता है कि मन को शक्तिसम्पन्न कैसे किया जाए? मन को शक्तिसम्पन्न बनाने के लिए सबसे पहले उसे अपने वश में रखना होगा।

अर्थात् जिसने अपने मन को वश में कर लिया, उसने संसार को वश में कर लिया, किन्तु जो मनुष्य मन को न जीतकर स्वयं उसके वश में हो जाता है, उसने मानो सारे संसार की अधीनता स्वीकार कर ली।

मन को शक्तिसम्पन्न बनाने के लिए हीनता की भावना को दूर करना भी आवश्यक है। जब व्यक्ति यह सोचता है कि मैं अशक्त हूँ, दीन–हीन हूँ, शक्ति और साधनों से रहित हूँ तो उसका मन कमजोर हो जाता है। इसीलिए इस हीनता की भावना से मुक्ति प्राप्त करने के लिए मन को शक्तिसम्पन्न बनाना आवश्यक है।

उपसंहार–
मन परम शक्तिसम्पन्न है। यह अनन्त शक्ति का स्रोत है। मन की इसी शक्ति को पहचानकर ऋग्वेद में यह संकल्प अनेक बार दुहराया गया है–”अहमिन्द्रो न पराजिग्ये” अर्थात मैं शक्ति का केन्द्र हैं और जीवनपर्यन्त मेरी पराजय नहीं हो सकती है। यदि मन की इस अपरिमित शक्ति को भूलकर हमने उसे दुर्बल बना लिया तो सबकुछ होते हुए भी हम अपने को असन्तुष्ट और पराजित ही अनुभव करेंगे और यदि मन को शक्तिसम्पन्न बनाकर रखेंगे तो जीवन में पराजय और असफलता का अनुभव कभी न होगा।

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नशे की दुष्प्रवृत्ति निबंध – Drug Abuse Essay In Hindi

Drug Abuse Essay In Hindi

नशे की दुष्प्रवृत्ति निबंध – Essay On Drug Abuse In Hindi

मादक द्रव्य : मौत का द्वार – Substance: the gate of death

रूपरेखा–

  • प्रस्तावना,
  • मादक द्रव्यों के प्रकार और प्रभाव,
  • मादक द्रव्यों के सेवन के दुष्परिणाम,
  • मादक द्रव्यों के सेवन की बढ़ती प्रवृत्ति,
  • मादक द्रव्यों से छुटकारे के उपाय,
  • उपसंहार।

साथ ही, कक्षा 1 से 10 तक के छात्र उदाहरणों के साथ इस पृष्ठ से विभिन्न हिंदी निबंध विषय पा सकते हैं।

नशे की दुष्प्रवृत्ति निबंध – Nashe Ke Dush Pravrtti Nibandh

प्रस्तावना–
वैदिक ऋषियों ने राजा सोम (रस) की प्रशंसा में मंत्र रचे और आगे के उपासकों ने अपने–अपने इष्टदेव या इष्टदेवी के साथ कोई–न–कोई मादक द्रव्य जोड़कर उसके सेवन का धार्मिक और सामाजिक अनुमति–पत्र प्र भोले बाबा के उपासकों ने भाँग, महाकाली के अर्चकों ने मदिरा और इन्द्रियसंयम तथा निर्विघ्न–ध्यान समाधि के साधकों ने चरस, गाँजा, तम्बाकू आदि के सेवन की छूट या सामाजिक स्वीकृति प्राप्त कर ली।

मादक द्रव्यों के प्रकार और प्रभाव–
परम्परागत मादक द्रव्यों: यथा–शराब, भाँग, अफीम के अतिरिक्त आज अनेक नये और तीव्र प्रभाव वाले मादक द्रव्यों का आविष्कार हो चुका है, जो पुराने मादक द्रव्यों से कहीं अधिक घातक हैं। इनमें से कुछ निम्नलिखित हैं-

  • (क) मदिरा–मदिरा या शराब तो जैसे मनुष्य के साथ ही पृथ्वी पर जन्मी है। समुद्र मंथन से प्राप्त रत्नों में यह भी सम्मिलित है। मदिरा सेवन की व्यापकता का युवावर्ग में बढ़ते जाना, समाज के लिए एक अशुभ संकेत है। यह सरकारों की आमदनी का भी बड़ा स्रोत है।
  • (ख) मार्फीन–यह अफीम से बनायी जाती है। यह अफीम से अधिक नशीली होती है। इसके अभ्यस्त लोग इसको इंजेक्शन के रूप में प्रयुक्त करते हैं।
  • (ग) हेरोइन–यह मार्फीन से बनायी जाती है और इससे दस गुना अधिक नशीली होती है। इसका सेवन बहुतायत में किया जाता है।
  • (घ) हशीश–यह भाँग से प्राप्त की जाती है। इसे जलाकर सिगरेट की भाँति प्रयोग में लाया जाता है।
  • (ङ) ब्राउन शुगर–यह अशुद्ध हेरोइन होती है। यह कई अन्य पदार्थों को मिलाकर प्रयोग की जाती है और एक प्रकार का विष ही बन जाती है।
  • (च) एल. एस. डी.–कुछ लोग मानसिक तनाव दूर करने के लिए इसका प्रयोग करते हैं।
  • (छ) स्मैक–यह युवावर्ग में प्रचलित सबसे खतरनाक नशा है। व्यक्ति केवल दो–तीन खुराकों में इसका अभ्यस्त हो जाता है। इसकी लत को छोड़ पाना बहुत कठिन होता है।

मादक द्रव्यों के सेवन के दुष्परिणाम–
कोई भी नशा हो, अन्ततः मनुष्य के लिए हानिकारक ही होता है। आज समाज में बढ़ती नशाखोरी की प्रवृत्ति बड़ी चिन्ताजनक है। इनका अभ्यस्त होने पर मनुष्य निष्क्रिय और हर तरह से बेकार हो जाता है। वह हर कीमत पर इन द्रव्यों को पाना चाहता है।

आज मादक पदार्थों का अनैतिक और अवैध व्यापार जोरों पर है। अनेक संगठित गिरोह इस धन्धे में लगे हैं। ये चीजें आज सोने से भी कीमती तथा व्यवसाय–सुलभ हैं।

युवावर्ग में मादक पदार्थों का सेवन जिस गति से बढ़ रहा है, वह उन्हीं के लिए नहीं, बल्कि देश और समाज के लिए भी खतरे की घण्टी है। किसी देश को तबाह करने के लिए आज युद्ध की नहीं, बल्कि मादक द्रव्यों की आवश्यकता होती है। मादक–द्रव्यों के व्यापार की छाया में आतंकवाद और अपराध भी पनप रहे हैं।

मादक द्रव्यों के सेवन की बढ़ती प्रवृत्ति–
मादक द्रव्यों से धन कमाने वाले लोग घोर अपराधी हैं। ये युवक–युवतियों को बहलाकर या एक–दो खुराक मुफ्त में सेवन कराकर उनको आदी बना देते हैं और फिर वह व्यक्ति इनका गुलाम हो जाता है।

गीच यह प्रवृत्ति बढ़ती जा रही है। कुछ युवक चोरी–छिपे और कुछ इसे शान समझकर अपना रहे हैं। यह युवावर्ग के जीवन को चौपट करने वाली प्रवृत्ति है।

मादक द्रव्यों से छुटकारे के उपाय–
मादक द्रव्यों के प्रसार की समस्या किसी व्यक्ति या देश–विशेष की नहीं है। यह एक अन्तर्राष्ट्रीय समस्या है। पूरे विश्व में मादक पदार्थों के विक्रेताओं का जाल फैला हुआ है। इस पर नियन्त्रण न करना विश्व को दारुण विनाश की ओर धकेलना है।

अनेक देशों ने मादक पदार्थों की बिक्री अथवा इसे अपने पास रखने को दण्डनीय अपराध घोषित कर रखा है। कई देशों में इसके अवैध व्यापार पर मृत्यु–दण्ड की भी व्यवस्था है। हर सभ्य और दूरदर्शी देश इसे मौत का व्यापार मानता है।

लेकिन कानूनों के बल पर इस संकट से पार पाना सम्भव नहीं लगता है। जनता को इसके खतरे से जागरूक बनाकर तथा इसकी आदत से ग्रस्त युवक–युवतियों के साथ सहानुभूति से पेश आकर इससे बचने की सम्भावना हो सकती है। सरकार को भी कड़े से कड़े कानून बनाकर और निरन्तर सतर्क रहकर इस पर काबू पाना होगा।

उपसंहार–
मादक पदार्थों का सेवन मौत को निमन्त्रण देना है। मौत भी अत्यन्त दारुण, धीरे–धीरे चेतना को ग्रसती और लाचार बनाती मौत! मादक पदार्थों का अब हथियार की तरह भी प्रयोग हो रहा है। यह विरोधी देश की युवाशक्ति को खोखला बनाने और बिना युद्ध के ही उसे नष्ट कर देने का घृणित उपाय है।

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साहित्य समाज का दर्पण है हिंदी निबंध – Literature And Society Essay In Hindi

Literature And Society Essay In Hindi

साहित्य समाज का दर्पण है हिंदी निबंध – Essay On Literature And Society In Hindi

“जो साहित्य मनुष्य को उसकी समस्त आशा–आकांक्षाओं के साथ, उसकी सभी सफलताओं और दुर्बलताओं के साथ हमारे सामने प्रत्यक्ष ले आकर खड़ा कर देता है, वही महान् साहित्य है।” –डॉ० हजारीप्रसाद द्विवेदी

रूपरेखा–

  • प्रस्तावना,
  • साहित्य का अर्थ,
  • साहित्य की विभिन्न परिभाषाएँ,
  • साहित्यकार का महत्त्व,
  • साहित्य और समाज का पारस्परिक सम्बन्ध,
  • सामाजिक परिवर्तन और साहित्य,
  • साहित्य की शक्ति,
  • साहित्य का लक्ष्य,
  • साहित्य पर समाज का प्रभाव,
  • उपसंहार।

साथ ही, कक्षा 1 से 10 तक के छात्र उदाहरणों के साथ इस पृष्ठ से विभिन्न हिंदी निबंध विषय पा सकते हैं।

साहित्य समाज का दर्पण है हिंदी निबंध – Saahity Samaaj Ka Darpan Hai Hindee Nibandh

प्रस्तावना–
सरिता सिन्धु की व्याकुल बाँहों में लीन हो जाने के लिए दौड़ती चली जाती है। रूपहली चाँदनी और सुनहली रश्मियाँ सरिता की अल्हड़ लहरों पर थिरक–थिरककर उसे मोहित करना चाहती हैं। रूपहली चाँदनी और सुनहली रश्मियाँ न जाने कब से किसी में अपना अस्तित्व खो देने को आतुर हैं। अपने अस्तित्व को एक–दूसरे में लीन कर देने की इस आदिम आकांक्षा को मानव युग–युग से देखता चला आ रहा है। प्रकृति के इस अनोखे रूपजाल को देखकर वह स्वयं को उसमें बद्ध कर देना चाहता है और फिर उसके हृदय से सुकोमल, मधुर व आनन्ददायक गीतों का उद्गम होता है, उसके अन्तर्मन में गूंजते शब्द, विचार और भाव; उसकी लेखनी को स्वर प्रदान करने लगते हैं। परिणामत: विभिन्न विधाओं पर आधारित साहित्य का सृजन होता चला जाता है।

इस प्रकार साहित्य में युग और परिस्थितियों पर आधारित अनुभवों एवं अनुभूतियों की अभिव्यक्ति होती है। यह अभिव्यक्ति साहित्यकार के हृदय के माध्यम से होती है। कवि और साहित्यकार अपने युग–वृक्ष को अपने आँसुओं से सींचते हैं, जिससे आनेवाली पीढ़ियाँ उसके मधुर फल का आस्वादन कर सकें।

Literature And Society Essay In Hindi

साहित्य का अर्थ–
साहित्य वह है, जिसमें प्राणी के हित की भावना निहित है। साहित्य मानव के सामाजिक सम्बन्धों को दृढ़ बनाता है; क्योंकि उसमें सम्पूर्ण मानव–जाति का हित निहित रहता है। साहित्य द्वारा साहित्यकार अपने भाव और विचारों को समाज में प्रसारित करता है, इस कारण उसमें सामाजिक जीवन स्वयं मुखरित हो उठता है।

Essay On Literature And Society In Hindi

साहित्य की विभिन्न परिभाषाएँ–
डॉ० श्यामसुन्दरदास ने साहित्य का विवेचन करते हुए लिखा है– “भिन्न–भिन्न काव्य–कृतियों का समष्टि–संग्रह ही साहित्य है।” मुंशी प्रेमचन्द ने साहित्य को “जीवन की आलोचना” कहा है। उनके विचार से साहित्य चाहे निबन्ध के रूप में हो, कहानी के रूप में हो या काव्य के रूप . में हो, साहित्य को हमारे जीवन की आलोचना और व्याख्या करनी चाहिए।

आंग्ल विद्वान् मैथ्यू आर्नोल्ड ने भी साहित्य को जीवन की आलोचना माना है– “Poetry is, at bottom, a criticism of life.” पाश्चात्य विद्वान् वर्सफील्ड ने साहित्य की परिभाषा देते हुए लिखा है “Literature is the brain of humanity.” अर्थात् साहित्य मानवता का मस्तिष्क है।

उपर्युक्त परिभाषाओं के आधार पर यह कहा जा सकता है कि कवि या लेखक अपने समय का प्रतिनिधि होता है। जिस प्रकार बेतार के तार का संग्राहक यन्त्र आकाशमण्डल में विचरती हुई विद्युत् तरंगों को पकड़कर उनको शब्दों में परिवर्तित कर देता है, ठीक उसी प्रकार कवि या लेखक अपने समय के परिवेश में व्याप्त विचारों को पकड़कर मुखरित कर देता है।

साहित्यकार का महत्त्व–
कवि और लेखक अपने समाज के मस्तिष्क भी हैं और मुख भी। साहित्यकार की पुकार समाज की पुकार है। साहित्यकार समाज के भावों को व्यक्त कर सजीव और शक्तिशाली बना देता है। वह समाज का उन्नायक और शुभचिन्तक होता है। उसकी रचना में समाज के भावों की झलक मिलती है। उसके द्वारा हम समाज के हृदय तक पहुँच जाते हैं।

साहित्य और समाज का पारस्परिक सम्बन्ध–
साहित्य और समाज का सम्बन्ध अन्योन्याश्रित है। साहित्य समाज का प्रतिबिम्ब है। साहित्य का सृजन जन–जीवन के धरातल पर ही होता है। समाज की समस्त शोभा, उसकी श्रीसम्पन्नता और मान–मर्यादा साहित्य पर ही अवलम्बित है। सामाजिक शक्ति या सजीवता, सामाजिक अशान्ति या निर्जीवता एवं सामाजिक सभ्यता या असभ्यता का निर्णायक एकमात्र साहित्य ही है।

कवि एवं समाज एक–दूसरे को प्रभावित करते हैं; अतः साहित्य समाज से भिन्न नहीं है। यदि समाज शरीर है तो साहित्य उसका मस्तिष्क। आचार्य रामचन्द्र शुक्ल के शब्दों में, “प्रत्येक देश का साहित्य वहाँ की जनता की चित्तवृत्ति का संचित प्रतिबिम्ब है।”

सामाजिक परिवर्तन और साहित्य–
साहित्य और समाज के इस अटूट सम्बन्ध को हम विश्व–इतिहास के पृष्ठों में भी पाते हैं। फ्रांस की राज्य–क्रान्ति के जन्मदाता वहाँ के साहित्यकार रूसो और वाल्टेयर हैं। इटली में मैजिनी के लेखों ने देश को प्रगति की ओर अग्रसर किया। हमारे देश में प्रेमचन्द ने अपने उपन्यासों में भारतीय ग्रामों की आँसुओं–भरी व्यथा–कथा को मार्मिक रूप में व्यक्त किया। उन्होंने किसानों पर जमींदारों द्वारा किए जानेवाले अत्याचारों का चित्रण कर जमींदारी–प्रथा के उन्मूलन का जोरदार समर्थन किया।

स्वतन्त्रता के पश्चात् जमींदारी उन्मूलन और भूमि–सुधार की दृष्टि से जो प्रयत्न किए गए हैं; वे प्रेमचन्द आदि साहित्यकारों की रचनाओं में निहित प्रेरणाओं के ही परिणाम हैं। बिहारी ने तो मात्र एक दोहे के माध्यम से ही अपनी नवोढ़ा रानी के प्रेमपाश में बँधे हुए तथा अपनी प्रजा एवं राज्य के प्रति उदासीन राजा जयसिंह को राजकार्य की ओर प्रेरित कर दिया था नहिं पराग नहिं मधुर मधु, नहिं विकास इहिं काल।

अली कली ही सौं बँध्यो, आगे कौन हवाल॥ साहित्य की शक्ति–निश्चय ही साहित्य असम्भव को भी सम्भव बना देता है। उसमें भयंकरतम अस्त्र–शस्त्रों से भी अधिक शक्ति छिपी है। आचार्य महावीरप्रसाद द्विवेदी के शब्दों में, “साहित्य में जो शक्ति छिपी रहती है, वह तोप–तलवार और बम के गोलों में भी नहीं पाई जाती। यूरोप में हानिकारक धार्मिक रूढ़ियों का उद्घाटन साहित्य ने ही किया है। जातीय स्वातन्त्र्य के बीज उसी ने बोए हैं, व्यक्तिगत स्वतन्त्रता के भावों को भी उसी ने पाला–पोसा और बढ़ाया है। पतित देशों का पुनरुत्थान भी उसी ने किया है।”

साहित्य का लक्ष्य–
साहित्य हमारे आन्तरिक भावों को जीवित रखकर हमारे व्यक्तित्व को स्थिर रखता है। वर्तमान भारतवर्ष में दिखाई देनेवाला परिवर्तन अधिकांशतः विदेशी साहित्य के प्रभाव का ही परिणाम है। रोम ने यूनान पर राजनैतिक विजय प्राप्त की थी, किन्तु यूनान ने अपने साहित्य द्वारा रोम पर मानसिक एवं भावात्मक रूप से विजय प्राप्त की और इस प्रकार सारे यूरोप पर अपने विचार और संस्कृति की छाप लगा दी।

साहित्य की विजय शाश्वत होती है और शस्त्रों की विजय क्षणिक। अंग्रेज तलवार द्वारा भारत को दासता की श्रृंखला में इतनी दृढ़तापूर्वक नहीं बाँध सके, जितना अपने साहित्य के प्रचार और हमारे साहित्य का ध्वंस करके सफल हो सके। यह उसी अंग्रेजी का प्रभाव है कि हमारे सौन्दर्य सम्बन्धी विचार, हमारी कला का आदर्श, हमारा शिष्टाचार आदि सभी यूरोप के अनुरूप हो गए हैं।

साहित्य पर समाज का प्रभाव–
सत्य तो यह है कि साहित्य और समाज दोनों कदम–से–कदम मिलाकर चलते हैं। भारतीय साहित्य का उदाहरण देकर इस कथन की पुष्टि की जा सकती है। भारतीय दर्शन सुखान्तवादी है। इस दर्शन के अनुसार मृत्यु और जीवन अनन्त हैं तथा इस जन्म में बिछुड़े प्राणी दूसरे जन्म में अवश्य मिलते हैं। यहाँ तक कि भारतीय दर्शन में ईश्वर का स्वरूप भी आनन्दमय ही दर्शाया गया है।

यहाँ के नाटक भी सुखान्त ही रहे हैं। इन्हीं सब कारणों से भारतीय साहित्य आदर्शवादी भावों से परिपूर्ण और सुखान्तवादी दृष्टिकोण पर आधारित रहा है। इसी प्रकार भौगोलिक दृष्टि से भारत की शस्यश्यामला भूमि, कल–कल का स्वर उत्पन्न करती हुई नदियाँ, हिमशिखरों की धवल शैलमालाएँ, वसन्त और वर्षा के मनोहारी दृश्य आदि ने भी हिन्दी–साहित्य को कम प्रभावित नहीं किया है।

उपसंहार–
अन्त में हम कह सकते हैं कि समाज और साहित्य में आत्मा और शरीर जैसा सम्बन्ध है। समाज और साहित्य एक–दूसरे के पूरक हैं, इन्हें एक–दूसरे से अलग करना सम्भव नहीं है; अतः आवश्यकता इस बात की है कि साहित्यकार सामाजिक कल्याण को ही अपना लक्ष्य बनाकर साहित्य का सृजन करते रहें।

माँ कविता Summary in Hindi