त्योहारों पर निबंध हिंदी में – Festivals Essay In Hindi

Festivals Essay In Hindi

त्योहारों पर निबंध हिंदी में – Essay On Festivals In Hindi

श्रम से थके-हारे मनुष्य ने समय-समय पर ऐसे अनेक साधन खोजे जो उसे थकान से छुटकारा दिलाए। जीवन में आई नीरसता से उसे छुटकारा मिल सके। इसी क्रम में उसने विभिन्न प्रकार के उत्सवों और त्योहारों का सहारा लिया। ये त्योहार अपने प्रारंभिक काल से ही सांस्कृतिक चेतना के प्रतीक तथा जनजागृति के प्रेरणा स्रोत हैं।

Festivals Essay In Hindi

हमारे त्योहार का महत्व (Hamaare Tyohaar Ka Mahatv)- Importance of our festival

भारत एक विशाल देश है। यहाँ नाना प्रकार की विभिन्नता पाई जाती है, फिर त्योहार इस विभिन्नता से कैसे बच पाते। यहाँ विभिन्न क्षेत्रों में अलग-अलग परंपराओं तथा धार्मिक मान्यताओं के अनुसार रक्षाबंधन, दीपावली, दशहरा, होली, ईद, ओणम, पोंगल, गरबा, पनिहारी, बैसाखी आदि त्योहार मनाए जाते हैं। इनमें दीपावली और दशहरा ऐसे त्योहार हैं जिन्हें पूरा भारत तो मनाता ही है, विदेशों में बसे भारतीय भी मनाते हैं। बैसाखी तथा वसंतोत्सव ऋतुओं पर आधारित त्योहार हैं। इस प्रकार यहाँ त्योहारों की कमी नहीं है। आए दिन कोई-न-कोई त्योहार मनाया जाता है।

भारतवासियों को स्वभाव से ही उत्सव प्रेमी माना जाता है। वह कभी प्रकृति की घटनाओं को आधार बनाकर तो कभी धर्म को आधार बनाकर त्योहार मनाता रहता है। इन त्योहारों के अलावा यहाँ अनेक राष्ट्रीय पर्व भी मनाए जाते हैं। इनसे महापुरुषों के जीवन से हमें कुछ सीख लेने की प्रेरणा मिलती है।

गाँधी जयंती हो या नेहरू जयंती इसके मनाने का उद्देश्य यही है। इस तरह त्योहार जहाँ उमंग तथा उत्साह भरकर हमारे अंदर स्फूर्ति जगाते हैं, वहीं महापुरुषों की जयंतियाँ हमारे अंदर मानवीय मूल्य को प्रगाढ़ बनाती हैं। त्योहरों के मनाने के ढंग के आधार पर इसे कई भागों में बाँटा जा सकता है।

कुछ त्योहार पूरे देश में राष्ट्रीय तथा राजनीतिक आधार पर मनाए जाते हैं; जैसे-15 अगस्त, गणतंत्र दिवस, गाँधी जयंती (साथ ही लालबहादुर शास्त्री जयंती) इन्हें राष्ट्रीय पर्व कहा जाता है। कुछ त्योहार अंग्रेजी वर्ष के आरंभ में मनाए जाते हैं; जैसे-लोहिड़ी, मकर संक्रांति। कुछ त्योहार भारतीय नववर्ष शुरू होने के साथ मनाए जाते हैं; जैसे-नवरात्र, बैसाखी, पोंगल, ओणम। पंजाब में मनाई जाने वाली लोहड़ी, महाराष्ट्र की गणेश चतुर्थी. पश्चिम बंगाल की दुर्गा पूजा को प्रांतीय या क्षेत्रीय त्योहार कहा जाता है।

परिवर्तन प्रकृति का नियम है, फिर ये त्योहार ही परिवर्तन से कैसे अप्रभावित रहते। समय की गति और समाज में आए परिवर्तन के परिणामस्वरूप इन त्योहारों, उत्सवों तथा पर्वो के स्वरूप में पर्याप्त परिवर्तन आया है। इन परिवर्तनों को विकृति कहा जाए तो कोई अतिशयोक्ति न होगी। आज रक्षाबंधन के पवित्र और अभिमंत्रित रूप का स्थान बाजारू राखी ने लिया है।

अब राखी बाँधते समय भाई की लंबी उम्र तथा कल्याण की कामना कम, मिलने वाले उपहार या धन की चिंता अधिक रहती है। मिट्टी के दीपों में स्नेह रूपी जो तेल जलाकर प्रकाश फैलाया जाता था, उसका स्थान बिजली की रंग-बिरंगी रोशनी वाले बल्बों ने ले लिया है। सबसे ज्यादा विकृति तो होली के स्वरूप में आई है।

टेसू के फूलों के रंग और गुलाल से खेली जाने वाली होली जो दिलों का मैल धोकर, प्रेम, एवं सद्भाव के रंग में रंगती थी, वह अश्लीलता और हुड़दंग रूपी कीचड़ में सनकर रह गई है। राह चलते लोगों पर गुब्बारे फेंकना, जबरदस्ती ग्रीस, तेल, पेंट पोतने से इस त्योहार की पवित्रता नष्ट हो गई है। आज दशहरा तथा दीपावली के समय करोड़ों रुपये केवल आतिशबाजी और पटाखों में नष्ट कर दिया जाता है।

इन त्योहारों को सादगी तथा शालीनतापूर्वक मनाने से इस धन को किसी रचनात्मक या पवित्र काम में लगाया जा सकता है, जिससे समाज को प्रगति के पथ पर अग्रसर होने में मदद मिलेगी। इससे त्योहारों का स्वरूप भी सुखद तथा कल्याणकारी हो जाएगा। आज आवश्यकता इस बात की है कि लोग इन त्योहारों को विकृत रूप में न मनाएँ हमारे जीवन में त्योहारों, उत्सवों एवं पर्वो का अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान है।

एक ओर ये त्योहार भाई-चारा, प्रेम, सद्भाव, धार्मिक एवं सांप्रदायिक सौहार्द बढ़ाते हैं तो दूसरी ओर धर्म-कर्म तथा आरोग्य बढ़ाने में भी सहायक होते हैं। इनसे हमारी सांस्कृतिक गरिमा की रक्षा होती है तो भारतीय संस्कृति के मूल्य एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक आसानी से पहुँच जाते हैं। ये त्योहार ही हैं जिनसे हमारा अस्तित्व सुरक्षित था, सुरक्षित है और सुरक्षित रहेगा।

हमारे त्योहारों में व्याप्त कतिपय दोषों को छोड़ दिया जाए या उनका निवारण कर दिया जाए तो त्योहार मानव के लिए बहुपयोगी हैं। ये एक ओर मनुष्य को एकता, भाई-चारा, प्रेम-सद्भाव बढ़ाने का संदेश देते हैं तो दूसरी ओर सामाजिक समरसता भी बढ़ाते हैं। हमें इन त्योहरों को शालीनता से मानाना चाहिए, ताकि इनकी पवित्रता एवं गरिमा चिरस्थायी रहे।

Essay On Festivals In Hindi

इंटरनेट पर निबंध हिंदी में निबंध – Internet Essay In Hindi

Internet Essay In Hindi

इंटरनेट पर निबंध हिंदी में निबंध – Essay On Internet In Hindi

इण्टरनेट क्रान्ति : वरदान और अभिशाप – Internet Revolution: Boon And Curse

रूपरेखा–

  • प्रस्तावना,
  • इण्टरनेट की कार्यविधि,
  • इण्टरनेट का प्रसार,
  • इण्टरनेट की लोकप्रियता,
  • इण्टरनेट का दुरुपयोग,
  • उपसंहार।

साथ ही, कक्षा 1 से 10 तक के छात्र उदाहरणों के साथ इस पृष्ठ से विभिन्न हिंदी निबंध विषय पा सकते हैं।

इंटरनेट पर निबंध हिंदी में निबंध – Intaranet Par Nibandh Hindee Mein Nibandh

प्रस्तावना–
इण्टरनेट का सामान्य अर्थ है–’सूचना–भण्डारों को सर्वसुलभ बनाने वाली तकनीक।’ कम्प्यूटर के प्रसार के साथ–साथ इण्टरनेट का भी विस्तार होता जा रहा है। इण्टरनेट ने ‘विश्वग्राम’ की कल्पना को साकार करने में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। घर बैठे ज्ञान–विज्ञान सम्बन्धी सूचना–भण्डार से जुड़ जाना, इण्टरनेट ने ही सम्भव बनाया है। यह एक तरह से विश्वकोश बनता जा रहा है।

Essay On Internet In Hindi

इण्टरनेट की कार्यविधि–
सारे संसार में स्थित टेलीफोन प्रणाली अथवा उपग्रह संचार–व्यवस्था की सहायता से एक–दूसरे से जुड़े कम्प्यूटरों का नेटवर्क ही इण्टरनेट है। इस नेटवर्क से अपने कम्प्यूटर को सम्बद्ध करके कोई भी व्यक्ति नेटवर्क से जुड़े अन्य कम्प्य में संग्रह की गई जानकारी से परिचित हो सकता है। इस उपलब्ध सामग्री को संक्षेप में w.w.w. (वर्ल्ड वाइड वेव) कहा जाता है।

इण्टरनेट से जुड़ने वाले व्यक्ति, विभाग या संस्थान अपनी–अपनी वेबसाइट स्थापित करते हैं। वेबसाइट में व्यक्ति, संस्थान या विषय से सम्बन्धित सम्पूर्ण जानकारी उपलब्ध रहती है। नेट से जुड़े कम्प्यूटर में निहित सामग्री को ‘होम पेज’ कहा जाता है।

वेबसाइट पर उपस्थित सामग्री को सम्बद्ध व्यक्ति अपने कम्प्यूटर पर डाउनलोड कर सकता इण्टरनेट का प्रसार–दूर–संचार के माध्यम से विश्व को छोटा कर देने में इण्टरनेट का योगदान चमत्कारी है। बहु उपयोगी होने के कारण जीवन के हर क्षेत्र के लोग इससे जुड़ रहे हैं।

शिक्षा–संस्थान, औद्योगिक–प्रतिष्ठान, प्रशासनिक–विभाग, मीडिया, मनोरंजन–संस्थाएँ, संग्रहालय, पुस्तकालय सभी धीरे–धीरे इण्टरनेट पर अपनी उपस्थिति दर्ज करा रहे हैं। ऐसा अनुमान है कि इण्टरनेट से जुड़े व्यक्तियों एवं संस्थाओं की संख्या करोड़ों तक पहुँच चुकी है।

Internet Essay In Hindi

इण्टरनेट की लोकप्रियता–
इण्टरनेट की लोकप्रियता दिनोंदिन बढ़ती जा रही है। इण्टरनेट कनेक्शनधारक व्यक्ति किसी भी समय, किसी भी विषय पर तत्काल इच्छित जानकारी प्राप्त कर सकता है। इण्टरनेट ज्ञान के असीम भण्डार तक पहुँचने का सहज स्रोत है।

टेली–कान्फ्रेंसिंग (दूर–विमर्श) द्वारा वैज्ञानिक परस्पर विचार–विमर्श कर सकते हैं, चिकित्सक रोगियों से सम्पर्क करके उचित परामर्श दे सकते हैं। ई–मेल, टेली–बैंकिंग, हवाई और रेल–यात्रा के लिए अग्रिम टिकिट–खरीद, विभिन्न बिलों का भुगतान, ई–मार्केटिंग इत्यादि नई–नई सुविधाएँ इण्टरनेट द्वारा उपलब्ध कराई जा रही हैं। इस प्रकार दिन–प्रतिदिन इण्टरनेट हमारे नित्य–जीवन का अत्यन्त उपयोगी अंग बनता जा रहा है।

इण्टरनेट का दुरुपयोग–
इण्टरनेट ने जहाँ मानव की सुख–सुविधा, ज्ञान–पिपासा तथा मनोरंजन के साधन–सुलभ बनाये हैं, वहीं इसके दुरुपयोग के प्रसंग भी सामने आ रहे हैं। अब नगरों और कस्बों में स्थान–स्थान पर ‘इण्टरनेट ढाबे’ (साइबर कैफे) खुल चुके हैं। जहाँ युवा–वर्ग ज्ञानवर्धन के लिए कम बल्कि अश्लील मनोरंजन के लिए अधिक जुटा रहता है।

किसी देश की महत्वपूर्ण वेबसाइट के कोड का विच्छेदन करके, उसकी गोपनीय सूचनाओं को हस्तगत करने में अथवा विरोधी देश की वेबसाइट में अपसूचनाएँ और दुष्प्रचार सम्बन्धी सामग्री का प्रवेश करके, इण्टरनेट का दुरुपयोग किये जाने के अनेक मामले सामने आ रहे हैं।

इण्टरनेट अपराधियों के दुस्साहस और पहुँच को देखते हुए अनेक संस्थानों और सरकारों को अपनी महत्वपूर्ण और गोपनीय सूचना – सामग्री की सुरक्षा करना भारी पड़ रहा है। इस प्रकार इण्टरनेट ने अपराध जगत् में ‘साइबर अपराधों की एक नई श्रृंखला को भी जन्म दिया है।

उपसंहार–
प्रत्येक वैज्ञानिक आविष्कार या युक्ति के साथ लाभ और हानि जुड़ी है। इण्टरनेट ने जहाँ सम्पूर्ण विश्व को एक सूत्र में बाँधकर ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ की परिकल्पना को आगे बढ़ाने में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है, वहीं नये–नये अपराधों को भी फलने–फूलने की सुविधा प्रदान की है। अब यह मानव के विवेक और बुद्धि पर निर्भर करता है कि वह इस अन्तर्जाल (इण्टरनेट) का सदुपयोग करे अथवा दुरुपयोग।

संचार के साधन पर निबंध – Means Of Communication Essay In Hindi

Means Of Communication Essay In Hindi

संचार के साधन पर निबंध – (Essay On Means Of Communication In Hindi)

बढ़ते संचार के साधन : सिमटता संसार – Means Of Increasing Communication: The Shrinking World

रूपरेखा–

  • प्रस्तावना
  • सामाजिकता क्या है
  • सामाजिकता और संसार.
  • सामाजिकता का घटना,
  • संचार साधनों का विस्तार,
  • संचार साधनों का सामाजिकता पर प्रभाव,
  • उपसंहार।

साथ ही, कक्षा 1 से 10 तक के छात्र उदाहरणों के साथ इस पृष्ठ से विभिन्न हिंदी निबंध विषय पा सकते हैं।

संचार के साधन पर निबंध – Sanchaar Ke Saadhan Par Nibandh

प्रस्तावना–
यह कहना कठिन है कि मनुष्य ने कब समाज में रहना आरम्भ किया। आज जो सामाजिक जीवन हमारे लिए अपरिहार्य बन गया है उसका आरम्भ कब और कैसे हुआ होगा, इसकी केवल कल्पना ही की जा सकती है। निश्चय ही पहले परिवार अस्तित्व में आए और फिर सामूहिकता या सामाजिकता के लाभ देख और अनुभव करके परिवारों के समूह समाज में बदल गए।

परिवार को समाज या सामाजिकता की प्रथम पाठशाला कहा जाता है। परिवार में ही बालक को प्रेम, सहानुभूति, सहयोग और अनुशासन की शिक्षा मिलती है। इस सहज प्रशिक्षण का वह बड़े परिवार अर्थात् समाज में प्रयोग करता है? व्यक्ति की सुरक्षा, सम्मान और आकांक्षाएँ समाज में रहकर ही सम्भव और परिपूर्ण होती हैं।

Sanchaar Ke Saadhan Par Nibandh

सामाजिकता क्या है? – What is Sociality?

समाज की रीति–
नीति, परम्परा और आस्थाओं का पालन करते हुए, समाज के प्रति अपने दायित्वों का निर्वाह करते हुए, एक सभ्य नागरिक की तरह समाज में रहना ही सामाजिकता है। जो व्यक्ति सामाजिक सम्बन्धों के प्रति संवेदनशील नहीं होता, अपने आप में या अपने परिवार तक ही सीमित रहता है उसे असामाजिक कहा जाता है। मनुष्य को कदम–कदम पर समाज की आवश्यकता होती है।

जन्म, मृत्यु, विवाह, उत्सव, संकट के समय सामाजिकता का महत्त्व समझ में आता है। सामाजिकता रहित व्यक्ति स्वयं को एकाकी और असुरक्षित अनुभव करता है। सामाजिकता ही मनुष्य को सम्मान और लोकप्रियता दिलाती है। मिलनसार व्यक्ति के कठिन कार्य और समस्याएँ भी सामाजिकता के कारण सरल हो जाते हैं।

सामाजिकता और संसार–
आचार्य रामचन्द्र शुक्ल का कथन है कि मनुष्य अपना संसार स्वयं बनाता है, उसके मित्र, सम्बन्धी और परिचित ही उसका संसार होते हैं। इनसे ही वह मिलना और बातचीत करना चाहता है। इस तरह समाज का व्यापक और विस्तृत रूप ही संसार है।

संचार साधनों ने हमारे परिचय क्षेत्र का विस्तार किया है, परन्तु इन साधनों के कारण हमारे निजी और प्रत्यक्ष सम्पर्क भी घटे हैं। इन साधनों ने मनुष्य को अपने आकर्षण के जाल में इतना उलझा लिया है कि उसका सम्पर्क क्षेत्र सीमित हो गया है। वह आत्मकेन्द्रित हो गया है।

सामाजिकता का घटना–
आजकल सामाजिकता की भावना निरन्तर घटती जा रही है। इसको ही संसार का सिमटना कह सकते हैं। सामाजिकता घटने के अनेक कारण हैं। इनमें अहंकार, व्यस्तता, श्रेष्ठता की भावना, सम्पन्नता, नगर–सभ्यता का प्रभाव, समूह–भावना की कमी आदि प्रमुख हैं। पारस्परिक औपचारिक सम्बन्धों की वृद्धि के कारण लोगों में घुलने–मिलने की प्रवृत्ति कम हो गई हैं महानगरों में एक ही भवन में रहने वाले एक–दूसरे से अपरिचित बने रहते हैं।

पहले पूरे मोहल्ले में लोग एक–दूसरे को जानते–पहचानते थे, एक–दूसरे के यहाँ आते–जाते थे। अब व्यवसाय और नौकरी की बाध्यता के कारण भी लोग सुबह से शाम तक व्यस्त रहते हैं।

संचार साधनों का विस्तार–
पहले संचार साधनों की अत्यन्त कमी थी इसलिए व्यक्ति से व्यक्ति के मिलने के अवसर काफी कम होते थे। दूर रहने वाले लोगों से पत्रों के माध्यम से समाचारों का आदान–प्रदान होता था। आज व्यक्ति को संचार के अनेक साधन उपलब्ध हैं। टेलीफोन है, मोबाइल फोन है, फैक्स है, इन्टरनेट है।

आने–जाने, प्रत्यक्ष भेंट करने की आवश्यकता नहीं, घर बैठे उसके सारे काम हो जाते हैं। पहले त्योहारों पर लोग एक–दूसरे के घर जाते थे, शुभकामनाएँ देते थे। अब तो एस. एम.एस से ही काम चल जाता है। टेलीकान्फ्रेंस के द्वारा साक्षात्कार और बैठक सम्पन्न हो जाती है।

संचार साधनों का सामाजिकता पर प्रभाव–
संचार साधनों की विविधता और सुलभता. ने मनुष्य के सामाजिक सम्बन्धों को गहराई से प्रभावित किया है। वह आत्मकेन्द्रित होता जा रहा है उसकी एक निजी दुनिया बन गई है। संचार उपकरण ही उसके संगी–साथी हैं। मोबाइल हर समय आपके साथ और हाथ में है। उठते, बैठते, चलते, यात्रा में, बाजार में नगर में, जंगल में, हर समय मोबाइल आपको सम्पर्क की सुविधा देता है।

फिर आपको समाज के बीच जाने की क्या आवश्यकता है। अब निबन्ध मनोरंजन के लिए मित्रों के बीच जाने या उन्हें बुलाने की आवश्यकता नहीं। अकेला टी.वी आपके पूरे परिवार का मनोरंजन कर सकता है। इन्टरनेट से हर सुविधा घर बैठे हाजिर है। पुस्तकालय में जाने का कष्ट क्यों किया जाय।

एक क्लिक पर पुस्तकें आपके कम्प्यूटर स्क्रीन पर उपस्थित हैं। नौकरी, विवाह, व्यवसाय हर समस्या का हल नेट कर सकता है। संचार–साधनों ने व्यक्ति की सामाजिक गतिविधियों को अत्यन्त सीमित कर दिया है।

उपसंहार–
आज मनुष्य संचार–साधनों की चकाचौंध से घिरकर समाज से कटता जा रहा है। मोबाइल, नेट और टी.वी. जा रहा है। सामाजिकता की निरन्तर हो रही कमी ने व्यक्ति के अनेक मौलिक गणों को निस्तेज कर दिया है।

इस नशे से सावधान न हुए तो नई–पीढ़ी धीरे–धीरे अवसाद, मोटापे, मन्द–दृष्टि आदि रोगों की शिकार हो जाएगी। लोग ‘मैं’ तक ही केन्द्रित हो जायेंगे ‘हम’ के रूप में सोचना भूल जाएँगे। अतः संचार–साधनों का सीमित और आवश्यक उपयोग ही समाज में होना चाहिए।

मेरा प्रिय खेल-क्रिकेट पर निबंध – My Favorite Game Cricket Essay In Hindi

My Favorite Game Cricket Essay In Hindi

मेरा प्रिय खेल-क्रिकेट पर निबंध – Essay On My Favorite Game Cricket In Hindi

सकेत बिंदु:

  • खेलों का महत्त्व
  • सर्वाधिक लोकप्रिय खेल क्रिकेट
  • खेल के नियम
  • क्रिकेट के प्रकार
  • प्रमुख खिलाड़ी।

साथ ही, कक्षा 1 से 10 तक के छात्र उदाहरणों के साथ इस पृष्ठ से विभिन्न हिंदी निबंध विषय पा सकते हैं।

खेल का नाम आते ही मन उत्साह एवं उल्लास से भर उठता है। खेलना-कूदना सभी को अच्छा लगता है, विशेषतः बच्चों द्वारा अपनी रुचि, आयु, पंसद आदि के आधार पर खेलों को पसंद किया जाता है और खेला जाता है। हालाँकि मुझे क्रिकेट सर्वाधिक पसंद है।

क्रिकेट को आउटडोर खेलों की श्रेणी में रखा जाता है। यह विश्व के कुछ ही देशों में खेला जाता है, परंतु इसे देखने और पसंद करने वाले बहुत से देश हैं। युवावर्ग इस खेल को पागलपन की हद तक पसंद करता है। जब यह खेल विश्व के दो देशों के बीच खेला जाता है तो स्टेडियम में मैच न देख पाने वाले लोग टेलीविजन और रेडियो से चिपके होते हैं।

क्रिकेट एक बड़े-से मैदान में खेला जाता है। मैदान के बीचोबीच बाईस गज लंबी पिच होती है। इसके निर्धारण के लिए दोनों किनारों पर तीन तीन विकेट खड़े किए जाते हैं। यह दो टीमों के बीच खेला जाता है। प्रत्येक टीम में ग्यारह-ग्यारह खिलाड़ी होते हैं। इस खेल में निर्णय देने के लिए दो अंपायर भी होते हैं। मैदान के बाहर एक तीसरा अंपायर होता है जो टीवी पर रिप्ले देखकर जटिल मामलों में फैसले देता है। एक टीम के खिलाड़ी मैदान में फैलकर गेंद को बाहर जाने से रोकते हैं और दूसरी टीम के दो खिलाड़ी बल्लेबाजी करते हैं।

क्रिकेट में हार-जीत का फैसला बनाए गए रनों के आधार पर होता है। जो टीम अधिक रन बनाती है या जिस टीम के कम खिलाडी आउट होते हैं, वही विजयी घोषित कर दी जाती है। बल्लेबाज दुवारा गेंद को हिट करने पर यदि वह निर्धारित सीमा रेखा छू जाती है तो चार रन और उसके ऊपर से होकर सीमा रेखा से बाहर गिरने पर छह रन माने जाते हैं।

अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर क्रिकेट को आजकल तीन प्रारूपों में खेला जाता है-टेस्ट मैच, यह पाँच दिनों तक खेला जाता है। प्रत्येक दिन 90 ओवर अर्थात् 540 गेंदें फेंकनी होती हैं। इसमें हार-जीत का फैसला कम हो पाता है। अतः आजकल इसकी लोकप्रियता घटती जा रही है। इसका दूसरा प्रारूप एक दिवसीय मैच है, जिसमें प्रत्येक टीम पचास-पचास ओवर खेलती है।

इसमें हार-जीत का फैसला हो जाता है जो बहुत ही लोकप्रिय है। इसका तीसरा प्रारूप टी-20 नाम से प्रसिद्ध है। इसमें प्रत्येक टीम 20-20 ओवर खेलती है। आजकल यह बहुत ही लोकप्रिय है। इसे फटाफट क्रिकेट भी कहा जाता है। भारत में खेले जाने वाला आई.पी. एल., जिसमें विश्व के प्रमुख देशों के मुख्य खिलाड़ी खेलते हैं, दुनियाभर में बहुत ही लोकप्रिय हो रहा है। अब तक आई.पी.एल. का 6 बार सफल आयोजन किया जा चुका है।

सचिन तेंदुलकर, महेंद्रसिंह धोनी, वीरेंदर सहवाग, जहीर खान, सुरेश रैना आदि प्रसिद्ध भारतीय क्रिकेट खिलाड़ी हैं।

Essay On My Favorite Game Cricket In Hindi

विज्ञान के वरदान पर निबंध – The Gift Of Science Essays In Hindi

The Gift Of Science Essays In Hindi

विज्ञान के वरदान पर निबंध – Essays On The Gift Of Science In Hindi

संकेत बिंदु –

  • प्रस्तावना
  • विज्ञान से हानियाँ
  • उपसंहार
  • विज्ञान के विभिन्न वरदान
  • विज्ञान का विवेकपूर्ण उपयोग

साथ ही, कक्षा 1 से 10 तक के छात्र उदाहरणों के साथ इस पृष्ठ से विभिन्न हिंदी निबंध विषय पा सकते हैं।

प्रस्तावना – मानव जीवन को सरल और सुखमय बनाने में सबसे ज्यादा यदि किसी का योगदान है तो वह विज्ञान का है। विज्ञान ने कदम-कदम पर मानव जीवन में हस्तक्षेप किया है और मनुष्य को इतनी सुविधाएँ प्रदान की हैं कि मनुष्य विज्ञान के अधीन होकर रह गया है। विज्ञान ने धरती आकाश और जल क्षेत्र तीनों को प्रभावित किया है। धरती का तो शायद ही कोई कोई कोना हो जहाँ विज्ञान ने कदम न रखा हो। विज्ञान के कारण मनुष्य ने उन्नति की है। मानव जीवन में क्रांति लाने का श्रेय विज्ञान को है। आज जिधर भी नज़र डालें, विज्ञान का प्रभाव सर्वत्र दृष्टिगोचर होता है।

The Gift Of Science Essays In Hindi

विज्ञान के विभिन्न वरदान – विज्ञान ने मनुष्य को इतनी सुविधाएँ दी हैं कि वह मनुष्य के लिए कामधेनु बन गया है। सर्वप्रथम कृषि क्षेत्र को देखते हैं। यहाँ पूरी तरह से बदलाव का कारण विज्ञान है। अब किसान को न हल चलाने की ज़रूरत है और न सिंचाई के लिए बैलों के पीछे दौड़ लगाने की। उसे अब निराई के लिए खुरपी उठाने की ज़रूरत नहीं हैं और न कटाई के लिए हँसिया उठाने की और न उसे धूप में चलकर एड़ी का पसीना चोटी पर पहुँचाने की। विज्ञान की कृपा से अब उसके पास ट्रैक्टर, ट्यूबवेल, कीटनाशक, खरपतवार नाशक यंत्र और दवाएँ हैं तथा कटाई-मड़ाई के लिए हारवेस्ट है जिनसे वह हफ़्तों का काम घंटों में कर लेता है। इसके अलावा उन्नतिशील बीज, खाद और यंत्रों का आविष्कार विज्ञान के कारण ही संभव हो पाया है। पैदल और बैलगाड़ियों पर यात्रा करने वाले मनुष्य के पास धरती, आकाश और जल पर चलने वाले द्रुतगामी साधन हैं जिनसे वह अपनी यात्रा को सरल, सुखद और मंगलमय ढंग से पूरा कर लेता है। विज्ञान के कारण अब आवागमन के साधनों से समय और श्रम दोनों बचने लगा है।।

अभी हरकारों और कबूतरों से संदेश भेजने वाला मनुष्य पत्रों की दुनिया से आगे बढ़कर रफ़्तार टेलीफ़ोन, ईमेल से होते मोबाइल तक आ पहुँचा है। जिस पत्र का जवाब आने में महीनों लगते थे और इलाज के लिए भेजा गया पैसा मरीज की मृत्यु और क्रिया कर्म के बाद मिलता था वही जवाब और पैसा अब हाथों हाथ मिलने लगा है। इतना ही नहीं अब तो बातें करते हुए व्यक्ति को हम देख भी सकते हैं। सरदी, गरमी और बरसात की मार झेलने वाले मनुष्य के पास अलग-अलग मौसम के कपड़े हैं। उसके पास हीटर और ब्लोअर हैं जो सरदी को उसके पास आने भी नहीं देते हैं। गरमी भगाने के लिए व्यक्ति के पास पंखे, कूलर और ए.सी. हैं। अब उसके यातायात के साधन भी वातानुकूलित हैं। वह जिन आरामदायी भवनों में रहता है, वे किसी स्वर्ग से कम नहीं हैं कच्चे घर और झोपड़ियों में सरदी, गरमी और वर्षा की मार झेलने की बातें गुज़रे ज़माने की बातें हो चुकी हैं।

चिकित्सा विज्ञान के क्षेत्र में विज्ञान ने मनुष्य को नया जीवन दिया है। अब रोगों का इलाज ही नहीं, शरीर के खराब अंगों को बदलना बाएँ हाथ का काम हो गया है। रक्तदान और नेत्रदान जैसे मानवोचित कार्यों और विज्ञान के सहयोग से मनुष्य को नवजीवन मिल रहा है। एक्सरे, अल्ट्रासाउंड और एम.आर.आई. के माध्यम से रोगों की पहचान कर उनका यथोचित इलाज किया जा रहा है।

उपर्युक्त कुछ उदाहरण विज्ञान के वरदान के कुछ नमूने हैं। वास्तव में विज्ञान ने मनुष्य का कायाकल्प कर दिया है।

The Gift Of Science Essays

विज्ञान से हानियाँ – विज्ञान के कारण मनुष्य को जहाँ अनेक लाभ हुआ है वहीं कुछ हानियाँ भी हैं। ये हानियाँ किसी सिक्के के दूसरे पहलू की भाँति हैं। विज्ञान की मदद से मनुष्य ने शत्रुओं से मुकाबला करने के लिए अनेक अस्त्र-शस्त्र प्रदान किए हैं। इनमें परमाणु बम जैसे घातक हथियार भी हैं। ये अस्त्र-शस्त्र गलत हाथों में पड़कर समूची मानवता के लिए खतरा बन सकते हैं। इसके अलावा विज्ञान ने मनुष्य को भ्रम से दूर किया है जिससे मोटापा, रक्तचाप, अपच जैसी बीमारियाँ उसे घेर रही हैं।

विज्ञान का विवेकपूर्ण उपयोग – किसी भी वस्तु का विवेकपूर्ण उपयोग ही लाभदायक होता है। ऐसी ही स्थिति विज्ञान की है। विज्ञान
द्वारा प्रदत्त चाकू का प्रयोग हम सब्जी काटने के लिए करते हैं या दूसरे की हत्या के लिए, यह हमारे विवेक पर निर्भर करता है। यदि कोई विज्ञान का दुरुपयोग करता है तो यह विज्ञान का दोष नहीं है। विज्ञान का विवेकपूर्ण उपयोग ही मनुष्यता की भलाई जैसे कार्य करने में सहायक होगा।

उपसहार- विज्ञान ने हमारा जीवन नाना प्रकार से सुखमय बनाया है। हमें विज्ञान का ऋणी होना चाहिए, जिसने हमें आदिमानव की जंगली-जीवन शैली से ऊपर यहाँ तक पहुँचाया है। अब यह हमारा दायित्व बनता है कि हम विज्ञान को वरदान ही बना रहने दें। इसका दुरुपयोग कर इसे अभिशाप न बनाएँ। विज्ञान के वरदान बने रहने में मनुष्य, समाज, राष्ट्र और समूची मानवता की भलाई है।

पुस्तकालय पर निबंध – Library Essay In Hindi

Library Essay In Hindi

पुस्तकालय पर निबंध – Essay On Library In Hindi

पुस्तकें ज्ञान का भंडार होती हैं। पुस्तकें हमें अनेक विषयों से अनेक प्रकार की जानकारी प्रदान कराती हैं। ‘पुस्तकालय’ ज्ञान का मंदिर होता है, जो हमारी ज्ञान-पिपासा शांत कराने में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करती है। यह ज्ञान तथा मनोरंजन प्रदान करने का उत्तम साधन है।

साथ ही, कक्षा 1 से 10 तक के छात्र उदाहरणों के साथ इस पृष्ठ से विभिन्न हिंदी निबंध विषय पा सकते हैं।

पुस्तकालय में अनेक प्रकार की पुस्तकें, समाचार पत्र-पत्रिकाएँ तथा अन्य पठन-सामग्री संग्रहीत की जाती हैं। इन पुस्तकों पर विषय के अनुसार क्रमसंख्या पड़ी रहती है। जब किसी को कोई पुस्तकें दी जाती हैं तो पुस्तक पर अंकित क्रमसंख्या उसके नाम के आगे रजिस्टर में दर्ज कर दी जाती हैं।

जब किसी व्यक्ति को किसी पुस्तक की आवश्यकता पड़ती है, तो वह पुस्तक का क्रमांक या पुस्तक का नाम और पुस्तकालयाध्यक्ष को बताता है और पुस्तकालयाध्यक्ष पुस्तक को निकालकर उसे दे देता है। इस प्रकार पुस्तकालय को काम अत्यंत व्यवस्थित एवं आधुनिक है।

पुस्तकालय निजी तथा सार्वजनिक दो प्रकार के होते हैं। कुछ लोग व्यक्तिगत तौर पर पुस्तकों को जमा करते हैं तथा घरेलू पुस्तकालय तैयार कर लेते हैं जो निजी पुस्तकालय कहलाता है। दफ़्तर, स्कूल, कॉलेज तथा प्रत्येक क्षेत्र में सार्वजनिक पुस्तकालयों में वैज्ञानिक सुविधाएँ भी उपलब्ध हैं।

हर पुस्तकालय में वाचनालय होता है जहाँ बच्चे-बड़े कुछ भी पढ़ सकते हैं। पुस्तकालय में हर भाषा में समाचार पत्र उपलब्ध होते हैं। हर भाषा है की पुस्तकों का लाभ उठाना है तो पुस्तकालय इसका सर्वोत्तम साधन है। पुस्तकें हमारी सबसे अच्छी मित्र है तथा पुस्तकालय इन्हें दिलाने का अच्छा साधन हैं। पुस्तकालय के प्रति हमारा कुछ कर्तव्य भी है। एक तो हमें पुस्तकों की सुरक्षा का पूरा ध्यान रखना चाहिए।

उसके पृष्ठ न फाडू, न ही गंदा करें, इसके लिए सदैव सतर्क रहना चाहिए। कई लोग पुस्तक का नुकसान करते हैं, इससे वे जन व समाज सबका बुरा करते हैं। ऐसा करके न केवल पुस्तक का नुकसान करते हैं बल्कि अन्य लोगों को उस पठन-सामग्री का लाभ नहीं मिल सकता है।

पुस्तकालयों के कुछ नियम होते हैं जिनका पालन करना अनिवार्य है। पुस्तकालय में निश्चित समय के लिए पुस्तकें घर ले जाने की अनुमति होती है। पुस्तकालय का उपयोग करने वालों को चाहिए कि इस अवधि से पहले ही पुस्तकें वापस कर दें।

पुस्तकालय में शांत बैठकर पुस्तकों या पत्र-पत्रिकाओं का अध्ययन करना चाहिए। पुस्तकों पर कोई निशान नहीं लगाना चाहिए और न ही उनमें कुछ फाड़ना चाहिए।

इस प्रकार हम पुस्तकालयों का पूरी तरह से लाभ उठा सकते हैं। पुस्तकालय सार्वजनिक संपत्ति होती है। इसलिए वहाँ बैठकर पुस्तकालय के नियमों का पालन करना चाहिए और शांति बनाए रखनी चाहिए। वहाँ जाकर समय का सदुपयोग करना चाहिए।

Essay On Library In Hindi

हमारा प्यारा भारत वर्ष पर निबंध – Mera Pyara Bharat Varsh Essay In Hindi

Mera Pyara Bharat Varsh Essay In Hindi

हमारा प्यारा भारत वर्ष पर निबंध – Essay On Mera Pyara Bharat Varsh In Hindi

हमारा देश भारत संसार का सर्वश्रेष्ठ देश है। यह एक बहुत ही प्राचीन देश है। यह देश अपनी भौगोलिक, सांस्कृतिक व प्राकृतिक विभिम्नताओं के कारण विश्वभर में अनूठा है। पहले इसका नाम आर्यावर्त था। मुगलों ने इसका नाम हिंदुस्तान और अंग्रेज़ों ने इंडिया रखा। यहाँ के निवासी आर्य कहलाते थे। महा प्रतापी राजा दुष्यंत के पुत्र भरत से इसका नाम भारत पड़ी।

साथ ही, कक्षा 1 से 10 तक के छात्र उदाहरणों के साथ इस पृष्ठ से विभिन्न हिंदी निबंध विषय पा सकते हैं।

इसके उत्तर में हिमालय, दक्षिण में हिंद महासागर, पूर्व में बंगलादेश तथा वर्मा है। पश्चिम में पाकिस्तान तथा अरब सागर है। इसके पड़ोसी देशों में नेपाल, बंगलादेश, चीन, वर्मा, श्रीलंका आदि हैं। जनसंख्या की दृष्टि से भारत विश्व का दूसरे नंबर का देश है। इसकी जनसंख्या एक अरब तीस करोड़ हैं।

संसार के जितने मौसम होते हैं वे सब हमारे देश में देखने को मिलते हैं। सरदी, गरमी, बरसात सभी तरह के यहाँ मौसम होते हैं। यहाँ का धरातल पहाड़ी, समतल, रेतीला सभी प्रकार का है। यहाँ सालों भर बहने वाली नदियाँ गंगा, यमुना, कृष्णा और कावेरी जैसी नदियाँ यहाँ की पुण्यभूमि को सींचती हैं।

यहाँ अनेक धर्म, जाति और संप्रदायों के लोग आपस में प्रेम से रहते हैं। यहाँ अनेक भाषाएँ बोली जाती हैं। तथा हर प्रांत के अलग-अलग त्योहार व उत्सव मनाए जाते हैं।

स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद इस देश ने शिक्षा, उद्योग, कला-कौशल, निर्माण कार्य, प्रशासन आदि सभी क्षेत्रों में काफ़ी उन्नति की है। हमारे देश के नागरिकों को जीवन स्तर ऊँचा उठा है। विश्व में बहुत आदर की दृष्टि से देखा जाता है।

यहाँ वास्तुकला, शिल्पकला, हस्तकला के उत्कृष्ट नमूने देखने को मिलते हैं। ऐतिहासिक इमारतों में ताजमहल, कुतुबमीनार, कोणार्क का सूर्य मंदिर, अजंता ऐलोरा की गुफाएँ आदि विश्व के लिए आकर्षण का केंद्र हैं।

सचमुच हमारा देश भारत संसार का सर्वश्रेष्ठ देश है। शायद इसलिए कवि इकबाल ने कहा था कि- ‘सारे जहाँ से अच्छा हिंदोस्ताँ हमारा।

Essay On Mera Pyara Bharat Varsh In Hindi

मेरा प्रिय खिलाड़ी निबंध इन हिंदी – My Favourite Player Essay in Hindi

My Favourite Player Essay in Hindi

मेरा प्रिय खेल निबंध इन हिंदी – Essay on My Favourite Sport in Hindi

“मैं क्रिकेट के बारे में नहीं जानता, पर फिर भी मैं सचिन को खेलते हुए देखने के लिए क्रिकेट देखता हूँ। इसलिए नहीं कि मुझे उसका खेल पसन्द है, बल्कि इसलिए क्योंकि मैं जानना चाहता हूँ कि आखिर जब वो | बैटिंग करता है तो मेरे देश का प्रोडक्शन 5% गिर क्यों जाता है।”

–बराक ओबामा

रूपरेखा–

  • प्रस्तावना,
  • मेरा प्रिय खेल और खिलाड़ी,
  • क्रिकेट : संक्षिप्त परिचय,
  • महेन्द्र सिंह धोनी का संक्षिप्त परिचय,
  • धोनी की खेल–शैली,
  • धोनी की उपलब्धियाँ,
  • सम्मान एवं पुरस्कार,
  • उपसंहार।

साथ ही, कक्षा 1 से 10 तक के छात्र उदाहरणों के साथ इस पृष्ठ से विभिन्न हिंदी निबंध विषय पा सकते हैं।

मेरा प्रिय खिलाड़ी निबंध इन हिंदी – Mera Priy Khilaadee Nibandh In Hindee

प्रस्तावना–
खेलकूद आज विभिन्न राष्ट्रों के मध्य सांस्कृतिक मेलजोल बढ़ाने का उत्तम माध्यम बन गया है। आज गेम्स डिप्लोमेसी अर्थात् खेल कूटनीति के क्षेत्र में क्रिकेट सर्वाधिक चर्चित खेल रहा है। भारत–पाकिस्तान के मध्य तो क्रिकेट दोनों देशों के आपसी सम्बन्धों की दृढ़ता और राजनयिक सम्बन्धों की दशा और दिशा को अत्यधिक प्रभावित करता है।

Mera Priy Khilaadee Nibandh In Hindee

मेरा प्रिय खेल और खिलाड़ी–
आज अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर अनेक खेल खेले जा रहे हैं। फुटबॉल, टेनिस, बैडमिंटन, हॉकी, क्रिकेट आदि खेलों को पसन्द करनेवालों की कमी नहीं है, परन्तु क्रिकेट सबसे अधिक लोकप्रिय खेल है। मेरा प्रिय खेल भी यही क्रिकेट है। आधुनिक युग में इस खेल को अन्तर्राष्ट्रीय महत्त्व प्राप्त है। भारत में यह सर्वाधिक आकर्षण का केन्द्र बना हुआ है। यहाँ इस खेल के प्रति दीवानगी की हद तक लोगों का लगाव है। आज बच्चे, बूढ़े, युवा आदि सभी क्रिकेट के दीवाने हैं। …क्रिकेट के क्षेत्र में अनेक खिलाड़ियों ने अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया है।

कई खिलाड़ी अपनी विशेषताओं के कारण हमारे दिलों–दिमाग पर छाए हुए हैं। भारत के प्रसिद्ध क्रिकेट खिलाड़ियों में प्रमुख हैं–वीनू मनकड़, विजय हजारे, लाला अमरनाथ, मंसूर अली पटौदी, फारूख इंजीनियर, धीरज प्रसन्ना, बिशनसिंह बेदी, भगवत चन्द्रशेखर, सैयद किरमानी, गुण्डप्पा विश्वनाथ, सुनील मनोहर गावस्कर, कपिलदेव, सचिन तेन्दुलकर, सौरभ गांगुली, राहुल द्रविड़ तथा महेन्द्र सिंह धोनी आदि। ये भारतीय क्रिकेट के आकाश के चमकते हुए सितारे हैं, जो अपनी ज्योति से सदैव प्रकाशित रहेंगे। इनमें से एक चमकता सितारा महेन्द्र सिंह धोनी मुझे सबसे अधिक प्रिय है।

My Favourite Player Essay in Hindi

क्रिकेट : संक्षिप्त परिचय–
क्रिकेट का जन्म इंग्लैण्ड में हुआ था। फिर अन्य देशों में इसका प्रसार हुआ। आरम्भ में. क्रिकेट को भारत में राजा–महाराजाओं तथा धनाढ्य लोगों का खेल कहा जाता था। वे अपने मन–बहलाव के लिए क्रिकेट का खेल खेला करते थे। भारत ने अपना पहला टेस्ट मैच इंग्लैण्ड के विरुद्ध वर्ष 1932 ई० में खेला था। इसके पश्चात् चार दिवसीय, तीन दिवसीय और एक दिवसीय खेल को बढ़ावा मिला। आजकल एक दिवसीय क्रिकेट मैच तथा T–20 मैच अत्यधिक लोकप्रिय हो रहे हैं।

क्रिकेट का खेल 11–
11 खिलाड़ियों की दो टीमों के मध्य खेला जाता है। यह एक बड़े–से गोल, चौकोर या अण्डाकार मैदान में खेला जाता है। मैदान के मध्य में स्थित पिच या विकेट स्थल इस खेल का केन्द्रबिन्दु होता है जिसके दोनों छोरों पर तीन–तीन स्टम्प गड़े होते हैं। दोनों ओर के स्टम्पों के बीच की दूरी 22 गज रखी जाती है, जिसे पिच की लम्बाई भी कहते हैं। खेल आरम्भ करने से पहले टॉस किया जाता है। टॉस जीतनेवाली टीम के कप्तान की इच्छानुसार ही उसकी टीम पहले बल्लेबाजी या गेंदबाजी करती है।

जीत–हार का निर्णय बनाए गए रनों के आधार पर होता है। खेल के निर्णायकों को अम्पायर कहा जाता है। खेल के समय मैदान में दो अम्पायर खड़े होते हैं, जिनका निर्णय दोनों टीमों को अनिवार्य रूप से मान्य होता है। अब एक अम्पायर मैदान के बाहर कैमरों की सहायता से खेल पर नजर रखता है। इसे थर्ड अम्पायर कहते हैं। थर्ड अम्पायर तभी अपना निर्णय देता है, जब मैदान में खड़े अम्पायर कोई निर्णय नहीं ले पाते और वे थर्ड अम्पायर से निर्णय देने की अपील करते हैं।

मेरे प्रिय खिलाड़ी महेन्द्र सिंह धोनी का संक्षिप्त परिचय–
क्रिकेट में मेरे प्रिय खिलाड़ी महेन्द्र सिंह धोनी हैं जो भारतीय टीम के कप्तान भी रह चुके हैं। इन्हें क्रिकेट जगत् में एम०एस० धोनी, माही अथवा धोनी के नाम से जाना जाता है। इनका जन्म 7 जुलाई, 1981 ई० में झारखण्ड के राँची नामक स्थान पर हुआ था। इनके पिता का नाम पान सिंह व माता का नाम देवकी देवी है। इनके पिता मूलरूप से उत्तराखण्ड के निवासी हैं, जो आजीविका के लिए राँची आ गए थे। वे मेकोन कम्पनी के जूनियर मेनेजमेंट वर्ग में काम करते थे। धोनी की एक बहन जयन्ती और एक भाई नरेन्द्र है। धोनी की पत्नी का नाम साक्षी है।

धोनी बाल्यावस्था से ही क्रिकेट खेलने के शौकीन रहे। पहले वह फुटबॉल भी खेलते थे। स्कूल की फुटबॉल टीम में उन्होंने उत्कृष्ट प्रदर्शन किया। वे अपनी टीम के गोलकीपर रहे। एक बार उनके फुटबॉल कोच ने लोकल क्रिकेट क्लब में क्रिकेट खेलने भेजा, जहाँ उन्होंने विकेट–कीपिंग में अपने कौशल से सबको प्रभावित कर दिया। उनके अच्छे प्रदर्शन के कारण उन्हें 1997–98 सीजन के वीनू मनकड़ ट्रॉफी अण्डर सिक्सटीन चैम्पियनशिप के लिए चुना गया। यह धोनी के क्रिकेट–जगत् में प्रवेश का प्रवेश–द्वार सिद्ध हुआ।

धोनी की खेल–शैली–
धोनी आक्रामक, दायें हाथ के बल्लेबाज और विकेट–कीपर हैं। धोनी अधिकतर बैक फुट में खेलने और मजबूत बॉटम हैण्ड ग्रिप के लिए जाने जाते हैं। वे बहुत तेजगति से खेलते हैं, जिसके कारण गेंद अक्सर मैदान से बाहर चली जाती है। धोनी को आक्रामक बल्लेबाज कहा जाता है। क्षेत्र–रक्षण में भी वह पर्याप्त सफल हैं। धोनी की गणना भारत के श्रेष्ठ क्रिकेटरों में होती है।

धोनी की उपलब्धियाँ–
वर्ष 2007 ई० में महेन्द्र सिंह धोनी को भारतीय क्रिकेट दल का कप्तान चुना गया। उनकी कप्तानी में देश को अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर गौरव प्राप्त हुआ।

उनकी उपलब्धियों का संक्षिप्त विवरण इस प्रकार है-

  • ‘टी–20 क्रिकेट विश्वकप 2007’ जीता।
  • सर्वप्रथम ऑस्ट्रेलिया और श्रीलंका के साथ खेली गई त्रिपक्षीय एक दिवसीय श्रृंखला 2007–08 जीती।
  • अगस्त 2008 में आइडिया कप में जीत।
  • बॉर्डर गावस्कर ट्रॉफी 2008 में जीत।
  • आर वी एस कप 2008 में जीत।
  • आई०डी०बी०आई० फोर्टिस वेल्थसुरांस कप ओ०डी०आई० सीरीज 2009 श्रीलंका को दूसरी बार हरा कर जीती।
  • 14/11/2008 और 05/02/2009 के बीच खेले गए नौ वनडे मैचों में लगातार जीत का रिकॉर्ड भी धोनी के नाम है।
  • धोनी की कप्तानी में भारत ने 28 वर्ष पश्चात् 2011 में एक दिवसीय क्रिकेट वर्ल्ड कप दोबारा जीता।
  • वर्ष 2013 ई० में धोनी की कप्तानी में भारत पहली बार चैम्पियन ट्रॉफी का विजेता बना।
  • वर्ष 2014 ई० में धोनी ने भारत को 24 वर्ष बाद इंग्लैण्ड वनडे सीरीज में जीत दिलाई।
  • वर्ष 2015 ई० में धोनी ने लगातार दूसरी बार आई०सी०सी० वर्ल्ड कप का नेतृत्व किया।
  • धोनी भारत के ऐसे कप्तान हैं, जिन्हें 100 वनडे मैच जिताने का श्रेय जाता है।

धोनी द्वारा प्राप्त उपलब्धियों को जितना भी गिनवाया जाए कम ही प्रतीत होता है। पूर्व कप्तान सौरव गांगुली ने कहा था–”धोनी के नेतृत्व में भारत और महान् दर्जा प्राप्त करेगा।” तथा दुनिया के महान् क्रिकेटर रिचर्ड हेडली ने कहा था कि “धोनी के नेतृत्व में भारतीय टीम दुनिया की नम्बर 1 टीम बन जाएगी।” धोनी ने इस भविष्यवाणी को सिद्ध कर दिखाया। आज भारत की क्रिकेट टीम की गणना विश्व की सर्वश्रेष्ठ टीमों में की जाती है।

सम्मान एवं पुरस्कार–
धोनी की उपलब्धियों के फलस्वरूप भारत सरकार तथा खेल जगत् की ओर से उन्हें समय–समय पर विभिन्न सम्मान और पुरस्कारों द्वारा सम्मानित किया जाता रहा है। उन्हें मिले मुख्य पुरस्कारों का संक्षिप्त वर्णन इस प्रकार है-

  • वर्ष 2018 में पद्मभूषण पुरस्कार।
  • वर्ष 2009 ई० में पद्मश्री पुरस्कार।
  • राजीव गांधी खेल रत्न पुरस्कार।
  • वर्ष 2009 ई० में विस्डन की ड्रीम टीम में कप्तान और विकेट–कीपर का सम्मान।
  • वर्ष 2008 ई० में आई०सी०सी० वनडे प्लेयर पुरस्कार।
  • एमटीवी यूथ आइकोन अवार्ड।
  • बीसीसीआई द्वारा सम्मानित।
  • धोनी को उनके कॉलेज तथा सेंट जेवियर कॉलेज, राँची द्वारा यूथ आइकोन सम्मान द्वारा सम्मानित किया गया।
  • भारतीय समाचार चैनल ‘समय’ द्वारा वर्ष 2008 ई० का ‘प्लेयर ऑफ द ईयर’ सम्मान।
  • धोनी की तुलना स्टीव वॉ (ऑस्ट्रेलियन कप्तान) से की जाती है।।

इस प्रकार अपने क्रिकेट–
कौशल द्वारा भारत को गौरवान्वित करने के लिए धोनी को सदा सम्मानित और पुरस्कृत किया जाता रहेगा। धोनी अपनी शैली के कारण भारत तथा विश्व के क्रिकेट–प्रेमियों के प्रिय खिलाड़ी हैं।

उपसंहार–
इस प्रकार मेरा प्रिय खेल और खिलाड़ी मेरी ही नहीं, बल्कि असंख्य लोगों की पहली पसन्द बन चुका है। यद्यपि क्रिकेट में समय और धन अधिक लगता है, फिर भी आज यह शहरों से लेकर गाँवों तक प्रसिद्धि पा चुका है। इसकी लोकप्रियता इस बात से सिद्ध होती है कि जहाँ–जहाँ भी यह खेल होता है, जनसमूह मैदान की ओर उमड़ पड़ता है।

यह खेल भारत की पहचान बन चुका है। क्रिकेट को लेकर लोग मानसिक रूप से जुनून की हदें पार करने लगते हैं। ऐसा लगता है कि क्रिकेट लोगों का धर्म बन गया है। क्रिकेट में मिली एक छोटी–सी हार भी लोगों को निराश और आक्रामक बना देती है। यहाँ तक कि लोग आत्महत्या या तोड़–फोड़ पर भी उतारू हो जाते हैं। यह ठीक नहीं है।

क्रिकेट में मिली जीत उन्हें हर्षित कर देती है। लोग सड़कों पर उतर आते हैं, प्रसन्न होकर नाचने लगते हैं। यह खेल धन, प्रसिद्धि और आनन्द का संगम है। यह केवल मेरा ही नहीं, मेरी तरह करोड़ों भारतीयों का सबसे प्रिय खेल है और महेन्द्र सिंह धोनी प्रिय खिलाड़ी।

Autobiography of Book Essay In Hindi | पुस्तक की आत्मकथा पर निबन्ध

Autobiography of Book Essay In Hindi

Autobiography of Book Essay In Hindi | पुस्तक की आत्मकथा पर निबन्ध
पुस्तक की आत्मकथा संकेत बिंदु:

  • मेरा नाम
  • मेरा स्वरूप
  • मेरे भीतर की सामग्री
  • मेरी इच्छा

साथ ही, कक्षा 1 से 10 तक के छात्र उदाहरणों के साथ इस पृष्ठ से विभिन्न हिंदी निबंध विषय पा सकते हैं।

पुस्तक की आत्मकथा पर निबन्ध | Essay on Autobiography of Book In Hindi

मैं पुस्तक हूँ। मेरा नाम ‘फुलवारी गीत’ है। जिस प्रकार फुलवारी में भाँति-भाँति के फूल होते हैं उसी प्रकार मेरे पृष्ठों पर भाँति-भाँति के गीत अंकित हैं। प्रत्येक गीत के भावों के अनुसार रंग-बिरंगे चित्र भी बने हुए हैं। इन चित्रों के कारण मेरा रूप इतना आकर्षक हो गया है कि नन्हें-मुन्ने बालक और बालिकाएँ मुझे अपने हृदय से लगाए रखते हैं।

मुझमें नन्हें बालक-बालिकाओं को आकर्षित करने की अद्भुत क्षमता है। मैं जब उनके हाथों में पहुँच जाती हूँ तो वे मेरे गीतों को गाने लगते हैं। वे उन्हें इतने मधुर स्वर में गाते हैं कि मैं भी अपनी सुध-बुध खो देती हूँ। मैं कई स्कूलों की यात्रा करती रहती हूँ। राजधानी दिल्ली ही नहीं मैंने तो पंजाब, चंडीगढ. हरियाणा, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, उत्तरांचल, बिहार, झारखंड, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और दक्षिण भारत के केरल, कर्नाटक, तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश तक अनेक प्रांत देख लिए हैं।

अध्यापिकाएँ मुझे हाथ में लेकर गाती हैं। उनके साथ छोटे-छोटे बच्चे अपने मधुर स्वर में गाते हैं। वे मेरा एक-एक पृष्ठ उलटकर उन्हें चित्र दिखाती हैं। इन चित्रों में चूहा, पैंट, कमीज़ और टाई बाँधकर पढ़ने जाता है। मेंढक टर्र-टर्र करके पढ़ने का संदेश देता है। वह कहता है-

मेंढक बोला टर-टर-टर, जल्दी-जल्दी पुस्तक पढ़।
न कर झगड़ा और न लड़, सबके मन में खुशियाँ भर।

इतना ही नहीं मेरे पृष्ठों में चंदा मामा है, शेर है, हाथी है, गेंद है, दूल्हा है, बिल्ली है, बादल और बिजली भी है। मेरे पृष्ठों पर बना भालूवाला डुगडुगी बजाकर भालू का तमाशा दिखाता है। पों-पों करती मोटर है। ऐसी सुंदर मोटर को देखकर सब उसमें बैठने के लिए दौड़ पड़ते हैं-

पों-पों करती मोटर आई, सबने कसकर दौड़ लगाई,
भीड़-भड़क्का, धक्कम-मुक्का, सबको सीट नहीं मिल पाई।

मेरा ऐसा सुंदर रूप एक दिन में नहीं बना। सबसे पहले कवि ने खूब सोचा। खूब सोचा। उन्होंने सोच-विचारकर गीत लिखे। फिर चित्रकार ने उन गीतों के अनुसार चित्र बनाए। इन गीतों और चित्रों को कंप्यूटर में डाला गया। मेरा आकार निश्चित किया गया। उतने आकार के कागज़ काटे गए। फिर छापेखाने में इन कागज़ों पर गीतों और चित्रों को छापा गया। वहाँ से इन्हें जिल्दसाज़ के पास लाया गया।

उसने गीतों को क्रम से लगाकर बाँध दिया। सबसे ऊपर आकर्षक कवर लगाया गया। इस पर मेरा नाम लिखा गया-फुलवारी गीत। इसके नीचे इन गीतों के रचयिता कवि का नाम लिखा गया। मुझे यह रूप जानते हैं किसके कारण मिला? मुझे यह रूप ‘प्रकाशक’ ने दिया। उसकी भाग-दौड़ के कारण मुझे इतना भव्य रूप तो मिला ही, उसने मुझे अलग-अलग नगरों के स्कूलों तक पहुँचाया। उनके कारण ही मैं देश भर के छोटे-छोटे बच्चों के हाथों में पहुंची। मेरी हार्दिक इच्छा है कि मैं देश भर के सभी बच्चों तक पहुँचूँ। सभी बच्चे मेरे पृष्ठों पर अंकित गीतों को अपने मधुर स्वरों में गाएँ। वे गाते हैं तो मेरे पृष्ठों पर बनी मछली पानी में तैरने लगती है। चुहिया बिल्ली को देखकर बिल में घुस जाती है। गुड़िया नाचने लगती है। हवा फर-फर चलने लगती है। बंदर बाल काटते समय भयभीत हो जाता है। आसमान में टिमटिमाते तारे अपने पास बुलाने लगते हैं। मछली हाथों से फिसल जाती है।

जल में तैरे छम-छम मछली,
उछले कूदे धम-धम मछली,
हाथ नहीं है आती मछली,
झट से फिसल है जाती मछली।

मैं बहुत सुंदर हूँ। मुझे अपनी सुंदरता पर घमंड नहीं है। मैं तो चाहती हूँ सभी पुस्तकें मेरी तरह ही सुंदर हों। उनमें रंग-बिरंगे चित्र हों। उन्हें देखकर बच्चे आनंद से झूम उठे। जिस दिन ऐसा हो जाएगा वह दिन मेरे जीवन का सबसे सुंदर दिन होगा।

Essay on Autobiography of Book In Hindi

अभ्यास का महत्व पर निबंध – Importance Of Practice Essay In Hindi

Importance Of Practice Essay In Hindi

अभ्यास का महत्व पर निबंध – Essay On Importance Of Practice In Hindi

संकेत-बिंदु –

  • भूमिका अभ्यास की आवश्यकता
  • अभ्यास और पशु-पक्षियों का जीवन
  • सफलता का साधन-अभ्यास
  • विद्यार्थी और अभ्यास
  • उपसंहार

करत-करत अभ्यास के जड़मति होत सुजान (Karat-Karat Abhyas Ke Jadmati Hot Sujan) – Inertia Of The Practice

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भूमिका – जीवन में सफलता पाने एवं किसी कार्य में दक्षता पाने के लिए बार-बार अभ्यास करना आवश्यक होता है। यह बात मनुष्य पर ही नहीं पशु-पक्षियों पर भी समान रूप से लागू होती है। कबूतर का शावक शुरू में चावल के दाने पर चोंच मारता है पर चोंच पत्थर पर टकराती है। बाद में वही पत्थरों के बीच पड़े चावल के दाने को एक ही बार में उठा लेता है।

अभ्यास की आवश्यकता – अत्यंत महीन और मुलायम तिनकों से बनी रस्सी के बार-बार आने-जाने से पत्थर से बनी कुएँ की जगत पर निशान पड़ जाते हैं। इन्हीं निशानों को देखकर मंदबुद्धि कहलाने वाले बरदराज के मस्तिष्क में बिजली कौंध गई और उन्होंने परिश्रम एवं लगन से पढ़ाई की और संस्कृति के वैयाकरणाचार्य बन गए। कुछ ऐसा ही हाल कालिदास का था, जो उसी डाल को काट रहे थे जिस पर वे बैठे थे।

बाद में निरंतर अभ्यास करके संस्कृत के प्रकांड विद्वान बने और विश्व प्रसिद्ध साहित्य की रचना की। ऐसा ही लार्ड डिजरायली के संबंध में कहा जाता है कि जब वे ब्रिटिश संसद में पहली बार बोलने के लिए खड़े हुए तो ‘संबोधन’ के अलावा कुछ और न कह सके। उन्होंने हार नहीं मानी और जंगल में जाकर पेड़-पौधों के सामने बोलने का अभ्यास करने लगे। उनका यह अभ्यास रंग लाया और संसद में जब वे दूसरी बार बोलने के लिए खड़े हुए तो उनका भाषण सुनकर सभी सांसद चकित रह गए।

अभ्यास और पशु-पक्षियों का जीवन – अभ्यास की महत्ता से मानव जाति ही नहीं पशु-पक्षी भी परिचित हैं। मधुमक्खियाँ निरंतर परिश्रम और अभ्यास से फूलों का पराग एकत्र करती हैं और अमृत तुल्य शहद बनाती हैं। नन्हीं चींटी अनाज का टुकड़ा लेकर बारबार चलने का अभ्यास करती है और अंततः ऊँची चढ़ाई पर भी वह अनाज उठाए चलती जाती है। इस प्रक्रिया में कई बार अनाज उसके मुँह से गिरता है तो अनेक बार वह स्वयं गिरती है, परंतु वह हिम्मत हारे बिना लगी रहती है और अंततः सफल होती है। इसी तरह पक्षी अपना घोंसला बनाने के लिए जगह-जगह से घास-फूस और लकड़ियाँ एकत्र करते हैं, फिर अत्यंत परिश्रम और अभ्यास से घोंसला बनाने में सफल हो जाते हैं।

सफल का साधन-अभ्यास – सफलता पाने के लिए निरंतर अभ्यास आवश्यक है। खिलाड़ी बरसों अभ्यास करता और मनचाही सफलता प्राप्त करता है। पृथ्वीराज चौहान, राजा दशरथ आदि वीरों द्वारा शब्दबेधी बाण चलाकर निशाना लगाना उनके निरंतर अभ्यास का ही परिणाम था। विज्ञान की सारी दुनिया ही अभ्यास पर टिकी है। विज्ञान की खोजें और अन्य आविष्कार निरंतर अभ्यास से ही संभव हो सके हैं। यहाँ एक खोज के लिए ही अभ्यास करते-करते पूरी उम्र निकल जाती है।

विदयार्थी और अभ्यास – विद्यार्थियों के लिए अभ्यास की महत्ता अत्यधिक है। पुराने ज़माने में जब शिक्षा पाने का केंद्र गुरुकुल होते थे और शिक्षा प्रणाली मौखिक हुआ करती थी, तब भी विद्यार्थी अभ्यास से ही श्लोक और ग्रंथ याद कर लेते थे। कोरे कागज़ की तरह मस्तिष्क लेकर पाठशाला जाने वाले विद्यार्थी अभ्यास करते-करते अपने विषय में स्नातक, परास्नातक होकर डाक्ट्रेट की उपाधि प्राप्त कर जाता है।

उपसंहार – अभ्यास सफलता का साधन है। सभी जीवधारियों को सफलता पाने हेतु आलस्य त्यागकर अभ्यास में जुट जाना चाहिए।