मेरा प्रिय पुस्तक पर निबंध – My Favourite Book Essay In Hindi

My Favourite Book Essay In Hindi

मेरा प्रिय लेखक पर छोटे-बङे निबंध (Essay on My Favourite Book in Hindi)

रूपरेखा-

  • प्रस्तावना,
  • रामचरितमानस का परिचय,
  • उत्तम काव्य,
  • काव्यात्मक तथा सामाजिक महत्ता,
  • धार्मिक महत्त्व,
  • उपसंहार।।

साथ ही, कक्षा 1 से 10 तक के छात्र उदाहरणों के साथ इस पृष्ठ से विभिन्न हिंदी निबंध विषय पा सकते हैं।

प्रस्तावना-
पुस्तक से बढ़कर कोई मित्र नहीं। यह ऐसा मित्र है कि जिससे हम एकान्त में बैठकर परामर्श कर सकते हैं। पुस्तक हमें गलत मार्ग पर चलने से बचाती है, हमारी कोई समस्या हो तो पुस्तक हमें उसका सही समाधान सुझाती है। पुस्तक ज्ञान का अक्षय भण्डार होती है। वैसे तो संसार में एक से बढ़कर एक मौलिक अभिव्यक्ति पुस्तकें हैं परन्तु उनमें महाकवि तुलसीदास द्वारा रचित ‘रामचरितमानस’ अपना विशेष महत्त्व रखती है।

‘रामचरितमानस’ को पढ़ने में मुझे एक अलौकिक आनन्द की प्राप्ति होती है, अनेक अच्छी शिक्ष उत्तम प्रेरणा मिलती हैं। जब कोई जटिल समस्या सामने आती है तो उसका समाधान मुझे ‘रामचरितमानस’ में मिल जाता है। यही कारण है कि ‘रामचरितमानस’ मेरी सबसे अधिक प्रिय पुस्तक है।

रामचरितमानस का परिचय-
‘रामचरितमानस हिन्दी का सर्वश्रेष्ठ महाकाव्य है। लोकनायक तुलसीदास इसके रचयिता हैं। तुलसी ने इस ग्रन्थ की रचना सं० 1631 से 1633 वि० में की थी। मर्यादा पुरुषोत्तम श्री रामचन्द्र का आदर्श जीवन-चरित इस काव्य का वर्ण्य-विषय है। इस काव्य में मानव जीवन की विविध दशाओं का स्वाभाविक और सजीव चित्रण किया गया है।

उत्तम काव्य-काव्य-
कला की दृष्टि से यह एक उत्तम काव्य है। इसकी कथा सात काण्डों में विभाजित है। सर्गों के नाम हैं-बाल काण्ड, अयोध्या काण्ड, अरण्य काण्ड, किष्किन्धा काण्ड, सुन्दर काण्ड, लंका काण्ड तथा उत्तर काण्ड । वीर रस इस काव्य का प्रधान रस है। अन्य रसों का चित्रण सहायक रूप में हुआ है। दोहा और चौपाई छन्दों की शैली में लिखा गया यह बेजोड़ ग्रन्थ है।

प्रत्येक काण्ड के आरम्भ में संस्कृत के मधुर छन्दों तथा बीच-बीच में विभिन्न छन्दों के प्रयोग से यह काव्य अति मनोरम हो उठा है। भाषा इतनी कोमल और मधुर है कि कहीं-कहीं तो ऐसा लगता है जैसे रसानुभूति के विलास में भाषा स्वयं थिरक उठी हो। शृंगार रस के अनुकूल भाषा का उदाहरण दर्शनीय है

“चितवति चकित चहँ दिसि सीता,
कहँ गये नृपकिसोर मन चीता।
लता ओट तब सखिन्ह दिखाए,
श्यामल गौर किसोर सुहाए॥”

निस्सन्देह हिन्दी का सर्वश्रेष्ठ महाकाव्य होने का गौरव इस ग्रन्थ को प्राप्त है। इसीलिए यह काव्य-ग्रन्थ विद्वानों का हृदयहार बन गया है।

काव्यात्मक तथा सामाजिक महत्ता-
‘रामचरितमानस भाव और कला, दोनों ही दृष्टि से विश्व के ‘ महानतम ग्रन्थों की श्रेणी में आता है। सम्पूर्ण रसों की सफल योजना, आदर्श चरित्रों का प्रस्तुतीकरण, सजीव आकर्षक प्रकृति चित्रण, समन्वय की सुन्दर योजना इत्यादि भावपक्ष की सभी विशेषताएँ इसमें विद्यमान हैं। सरस, मधुर, साहित्यिक और साधिकार भाषा का प्रयोग, शैली की विविधता इत्यादि विशेषताओं के कारण यह ग्रन्थ काव्य-कला की दृष्टि से भी एक अनुपम रचना है।

उत्तम कलाकृति होने के साथ-साथ यह सामाजिक और चारित्रिक दृष्टि से भी अनूठी रचना है। पुरुषोत्तम श्रीराम के आदर्श चरित्र के द्वारा इस ग्रन्थ ने निराश जनता में आशा का संचार किया। महान कवि ने इस अनूठी रचना में एक आदर्श समाज का रूप प्रस्तुत किया जिसमें राजा-प्रजा, पिता-पुत्र, माता-पुत्र तथा पति-पत्नी आदि सभी के कर्तव्यों का आदर्श निदर्शन प्रस्तुत किया गया है।

इस ग्रन्थ की सबसे बड़ी विशेषता समन्वय की भावना है। विविध सम्प्रदायों, आचार-विचारों, चारों वर्गों और आश्रमों आदि का समन्वय इस ग्रन्थ की सबसे बड़ी विशेषता है।

धार्मिक महत्त्व-
धार्मिक दृष्टि से भी यह ग्रन्थ अद्वितीय है। सम्पूर्ण पुराणों, शास्त्रों और वेदों का सार रामायण (रामचरितमानस) में प्रस्तुत कर दिया गया है। स्वयं तुलसीदास कहते हैं-

पुराण निगमागम सारभूतं रामायणे निगदितं क्वचिदन्यतोऽपि।’

मेरी यह प्रिय पुस्तक हिन्दुओं का पाँचवाँ वेद माना जाता है। लोग सन्ध्या-पूजा में धर्मलाभ के लिए इसका पाठ करते हैं। इसकी धार्मिक महत्ता का अनुमान इसी से लगाया जा सकता है कि साधारण पढ़े-लिखे व्यक्तियों से लेकर बड़े-बड़े विद्वानों तक और झोंपड़ी से लेकर महल तक प्रत्येक हिन्दू परिवार में यह पवित्र पुस्तक पायी जाती है। रामचरितमानस’ के अतिरिक्त अन्य किसी भी ग्रन्थ को ऐसी लोकप्रियता और ऐसा सम्मान प्राप्त नहीं हो सका।

उपसंहार-
लोकमंगल की साधना में यह काव्य आदर्श है। विवादास्पद विषयों का समाधान करने के लिए रामचरितमानस की उक्तियाँ प्रमाण मानी जाती हैं। वास्तव में वही ग्रन्थ ‘उत्तम ग्रन्थ’ कहलाने का अधिकारी होता है जो सम्पूर्ण लोक का कल्याण करने में समर्थ है। ‘रामचरितमानस’ के रचयिता का स्पष्ट मत है–

“भूसन भनति, भूति भलि सोई।
सुरसरि सम सब कर हित होई॥”

वास्तव में ‘रामचरितमानस’ एक ऐसा पवित्र और आदर्श ग्रन्थ है जो जीवन के प्रत्येक क्षेत्र, प्रत्येक उद्देश्य और प्रत्येक आचरण के लिए शिक्षा प्रदान करता है तथा जिसकी आनन्ददायिनी सूक्तियाँ प्रत्येक समस्या का समाधान सुझाने की क्षमता रखती है रामचरितमानस मेरी ही नहीं, जन-जन की प्रिय पुस्तक है। भारतीय संस्कृति का तो वह प्राण ही है।

समाचार पत्र पर निबंध – Newspaper Essay in Hindi

Newspaper Essay in Hindi

समाचार पत्र पर बड़े तथा छोटे निबंध (Essay on Newspaper in Hindi)

समाचार-पत्रों की उपयोगिता – Usefulness Of Newspapers

रूपरेखा-

  • प्रस्तावना,
  • संसार की स्थिति का ज्ञान,
  • नागरिकता का ज्ञान,
  • साहित्यिक उन्नति,
  • मनोरंजन का साधन,
  • व्यापार में सहायक,
  • शासन में सुधार,
  • अन्तर्राष्ट्रीय महत्त्व,
  • उपसंहार।

साथ ही, कक्षा 1 से 10 तक के छात्र उदाहरणों के साथ इस पृष्ठ से विभिन्न हिंदी निबंध विषय पा सकते हैं।

समाचार-पत्रों से होता विविध ज्ञान अनुमान।
अखिल विश्व का कर सकते हैं घर बैठे सन्धान॥
विविध विचारों का उद्घाटन विज्ञापन आधार।
भिन्न दलों के आलोचन से शासन का उद्धार॥

प्रस्तावना-
मनुष्य एक जिज्ञासू प्राणी है। उसकी ज्ञान की प्यास कभी बूझती नहीं। जितना ही ज्ञान बढ़ता है उसकी प्यास और बढ़ती जाती है। एक समय था जब मनुष्य का क्षेत्र सीमित था। यातायात के साधन नहीं के बराबर थे। दस-बीस मील तक के मनुष्यों से ही उसकी जान-पहचान हो सकती थी। सौ दो सौ मील जाना मनुष्य के लिए दृष्कर कार्य था। अत: उसका भौगोलिक, सांस्कृतिक तथा सामाजिक ज्ञान भी सीमित था।

परन्तु आज विज्ञान के विकास के साथ-साथ मनुष्य के सम्बन्ध व ज्ञान का क्षेत्र भी बढ़ गया है। यातायात के साधनों से काल और स्थान की दूरी बहुत कम हो गयी है। समस्त विश्व आज एक परिवार बन गया है। अत: मनुष्य की ज्ञान-पिपासा और भी अधिक बढ़ गयी है। विज्ञान की कृपा से मुद्रण कला का आविष्कार हुआ है।

मुद्रण कला के आविष्कार ने मानव की जिज्ञासा को शान्त करने में महान योगदान दिया। मुद्रण कला की कृपा से ही समाचार-पत्रों का प्रकाशन भी सम्भव हुआ जो आज मानव जीवन के लिए एक आवश्यक वस्तू बन गया है। समाचार-पत्र को पढ़ना अब प्रतिदिन की दिनचर्या का अंग बन गया है। भोजन और जल की भाँति प्रतिदिन समाचार-पत्र का सेवन आवश्यक हो गया है।

संसार की स्थिति का ज्ञान-
हम ऊपर कह चुके हैं कि आज का संसार एक परिवार बन गया है। संसार का प्रत्येक व्यक्ति जानना चाहता है कि विश्व के विभिन्न देशों में आज क्या हो रहा है। समाचार पत्र मानवं की इस जिज्ञासा को शान्त करता है। समाचार-पत्र, जैसा कि इसके नाम से ही विदित है, समाचारों का पत्र है।

उसमें संसार के सभी मुख्य-मुख्य समाचार होते हैं। हम घर बैठे जान लेते हैं कि अमुक समय में, अमुक स्थान पर या अमुक नगर में आज क्या घटना हुई। विभिन्न देशों, स्थानों या नगरों के समाचार हमें घर बैठे ही मिल जाते हैं।

नागरिकता का ज्ञान-समाचार-पत्र-
प्रचार का भी मुख्य साधन बन गया है। उसमें विभिन्न विचारधाराओं की आलोचना होती है जिससे जनता को राजनीतिक विचारधाराओं की जानकारी होती है। वे सरकार विरोधी दलों के विषय में अपना दृष्टिकोण निश्चित करते हैं। समाचार-पत्रों के द्वारा जनमत को किसी विशेष दल के अनुकूल अथवा प्रतिकूल बनाने में काफी सहायता मिलती है।

साहित्यिक उन्नति-समाचार-पत्रों
के प्रकाशन से साहित्यिक क्षेत्र में भी बहुत लाभ हुआ है। आज समाचार-पत्रों में विशेष रूप से साप्ताहिक और मासिक पत्रिकाओं में अनेक कहानियाँ, निबन्ध, महापुरुषों की जीवनी तथा एकांकी नाटक प्रकाशित होते हैं जिनसे साहित्य की उन्नति में पर्याप्त सहायता मिलती है।

मनोरंजन का साधन-समाचार-पत्र-
मनोरंजन का भी उत्तम साधन है। समाचार-पत्रों से हम फुरसत के समय अनेक निबन्ध व कहानियाँ पढ़कर अपना मनोरंजन करते हैं। समाचार-पत्रों में बहुत-सी कविताएँ भी प्रकाशित होती हैं जिनसे अच्छा मनोरंजन हो सकता है। कुछ पत्रिकाएँ तो विशेष रूप से साहित्य के प्रकाशन का ही काम करती हैं। ‘सरस्वती’, ‘कादम्बिनी आदि पत्रिका इसी प्रकार की पत्रिकाएँ हैं। ‘चन्दामामा’, ‘नन्दन’ आदि कुछ पत्रिकाओं में बच्चों के लिए उपयोगी सामग्री प्रकाशित होती है जो बच्चों के मनोरंजन के साथ-साथ उनकी ज्ञानवृद्धि में सहायक होती है।

व्यापार में सहायक-
व्यापारिक उन्नति में भी समाचार-पत्र बहुत सहायता करते हैं। समाचार-पत्रों में अनेक वस्तुओं के विज्ञापन छपते हैं जिनसे उनका प्रचार होता है और बाजार में मांग बढ़ जाती है। इसके अतिरिक्त विशेष वस्तुओं के विभिन्न बाजारों के भाव भी समाचार-पत्रों में प्रकाशित होते हैं जिससे व्यापारिक लोगों को क्रय-विक्रय में काफी सहायता मिलती है और वे आवश्यकतानुसार अपने माल का आयात-निर्यात करते हैं।

शासन में सधार-
आज के युग में अधिकतर देशों में प्रजातन्त्र शासन प्रणाली है जिसमें प्रत्येक नागरिक को अपने विचार प्रकट करने और सरकार की आलोचना करने का पूर्ण अधिकार होता है। समाचार-पत्रों में विभिन्न दलों और विचारों के लोगों के विचार, सरकार की आलोचना, शासन व्यवस्था की कमियाँ, जनता की आवश्यकताएँ प्रकाशित होती हैं। सरकार को इन आलोचनाओं, विचारधाराओं और आवश्यकताओं पर ध्यान देना पड़ता है।

आलोचनाओं के भय से सरकार शासन व्यवस्था में सुधार करती है। अपनी नीतियों में संशोधन करती है और जनता की मांगों की पूर्ति करने का प्रयत्न करती है। इस प्रकार समाचार-पत्र जनता और सरकार में सम्बन्ध स्थापित करने वाली बीच की कड़ी हैं। यह समाचार-पत्रों का राष्ट्रीय महत्त्व है।

अन्तर्राष्ट्रीय महत्त्व-
अन्तर्राष्ट्रीय दृष्टि से समाचार-पत्रों के द्वारा हम जान सकते हैं कि किस देश की क्या नीति है? कौन-सा देश किस क्षेत्र में और किन साधनों से अधिक उन्नति कर रहा है? कौन देश सभ्यता और संस्कृति की किस सीढ़ी तक पहुँच गया है?

प्रत्येक देश की सामाजिक और राजनैतिक स्थिति को जानकर ही हम आज के युग में जीवित रह सकते हैं, तभी विश्वमैत्री की भावना जाग्रत हो सकती है।

उपसंहार-
इस प्रकार समाचार-पत्रों की सहायता से अच्छी नागरिकता का विकास होता है। यद्यपि कभी-कभी समाचार-पत्र झूठे विज्ञापनों तथा गलत प्रचार के द्वारा देश और समाज को हानि भी पहुंचाते हैं परन्तु ऐसा तभी होता है जब पत्रों के सम्पादक अपने स्वार्थ के वशीभूत होकर संकीर्ण एवं दलगत विचारों का प्रचार करने लगते हैं।

मिथ्या समाचारों और विज्ञापनों द्वारा कभी-कभी जनता को लूटा अवश्य जाता है परन्तु यह दोष समाचार-पत्रों का नहीं, उनके सम्पादकों और संचालकों का है। पत्र संचालकों एवं सम्पादकों को दलगत विचारों से ऊपर उठना चाहिए। यदि वे अपने उत्तरदायित्व को समझें और कर्तव्य का पालन करें तो उनके द्वारा व्यक्ति, समाज और राष्ट्र का महान उपकार हो सकता है।

गणतंत्र दिवस निबंध – Republic Day of India Essay in Hindi

Republic Day of India Essay in Hindi

गणतंत्र दिवस 2020 पर छोटे तथा बड़े निबंध (Essay on Republic Day of India in Hindi)

राष्ट्रीय पर्व : गणतन्त्र दिवस। – National Festival Republic Day

रूपरेखा-

  • प्रस्तावना,
  • स्वतन्त्रता-प्राप्ति,
  • गणतन्त्र की स्थापना,
  • देशव्यापी उत्सव,
  • राजधानी में 26 जनवरी,
  • उत्सव से प्रेरणा।

साथ ही, कक्षा 1 से 10 तक के छात्र उदाहरणों के साथ इस पृष्ठ से विभिन्न हिंदी निबंध विषय पा सकते हैं।

प्रस्तावना-
यह दिन था 31 दिसम्बर सन् 1929 ई०। लाहौर में रावी नदी के तट पर विचित्र चहल पहल थी। देश के कोने-कोने से नेतागण आये थे। यह अखिल भारतीय महासभा का अधिवेशन हो रहा था। देश के अनेक देशभक्त युवक फाँसी का फन्दा चम चुके थे, कुछ ने छाती में गोलियाँ खायीं थीं, कुछ ने लाठियों से पिट कर प्राणों की बलि चढ़ा दी थी।

अध्यक्ष पद से भाषण करते हुए राष्ट्रनायक पं. जवाहरलाल नेहरू ने घोषणा की-“पूर्ण स्वराज्य-प्राप्ति ही हमारा उद्देश्य है।’ अधिवेशन में उपस्थित सभी नेताओं ने प्रतिज्ञा की-“हम पूर्ण स्वराज्य प्राप्त करके ही दम लेंगे।” नयी चेतना और नया उत्साह सारे देश में फैल गया। छब्बीस जनवरी 1930 ई० को प्रथम स्वतन्त्रता दिवस मनाया गया।

स्वतन्त्रता-प्राप्ति-प्रति वर्ष 26 जनवरी को अपनी प्रतिज्ञा का स्मरण करते हुए स्वतन्त्रता के लिए संघर्ष चलता रहा। कई बार सत्याग्रह हुए। देशप्रेमियों ने जेलें भर दीं। महात्मा गांधी की नीतियों पर चलते हुए लोगों ने अपने प्राणों की बाजी लगा दी। फलस्वरूप 15 अगस्त 1947 को देश स्वतन्त्र हुआ। भारत माता की परतन्त्रता की जंजीरें चटाख से टूट गयीं। शताब्दियों की परतन्त्रता से मुक्ति मिली।

गणतन्त्र की स्थापना-देश स्वतन्त्र तो हुआ, किन्तु उस समय हमारे पास न अपना संविधान था और न अपने कानून थे। अंग्रेजों के बनाये हुए विधान और कानून के अधीन ही कार्य प्रारम्भ हुआ। संविधान सभा बनायी गयी। संविधान का निर्माण हुआ और 26 जनवरी 1950 ई० को भारत में सम्पूर्ण प्रभुत्व गणराज्य मौलिक अभिव्यक्ति की घोषणा हुई।

हमारा संविधान लागू हुआ और डॉ० राजेन्द्र प्रसाद स्वतन्त्र भारत के प्रथम राष्ट्रपति बने। इस प्रकार 26 जनवरी 1930 ई० को जो प्रतिज्ञा की गयी थी, वह 20 वर्ष पश्चात 26 जनवरी सन् 1950 ई० को पूर्ण हुई। उस दिन सम्पूर्ण देश ने हर्षोल्लास के साथ उत्सव मनाया। गाँव-गाँव और शहर-शहर में जनसभाएँ हुई, भाषण और सांस्कृतिक कार्यक्रम हुए। दिल्ली तो उस दिन दुलहिन बनी थी।

देश के कोने कोने से लोग उत्सव देखने आये थे। सड़कों पर भारी भीड़ लगी थी। विशाल जुलूस मुख्य सड़कों से चल रहा था। विभिन्न प्रदेशों की झाँकियाँ शोभा पा रही थीं। लाल किले पर मुख्य उत्सव था। तीनों सेनाओं ने सलामी दी। राष्ट्रगान की धुन बजायी गयी। तिरंगा फहराया गया। ऐसा अपूर्व उत्सव सम्भवत: दिल्ली में पहली बार हुआ था। उसी दिन से 26 जनवरी हमारे देश का महान राष्ट्रीय पर्व बन गया है।

देशव्यापी उत्सव-26 जनवरी हमारे राष्ट्र का सबसे महान राष्ट्रीय उत्सव है। यह किसी विशेष मजहब, सम्प्रदाय एवं वर्ग विशेष का उत्सव नहीं, सकल भारतीयों का उत्सव है। यह जन-जन का त्यौहार है। भारत के कोने-कोने में, गाँवों और नगरों में धूमधाम से यह उत्सव मनाया जाता है। इस दिन सब सरकारी तथा गैर-सरकारी दफ्तरों और संस्थाओं में छुट्टी रहती है। शहरों में विशेष चहल-पहल होती है।

राजधानी में 26 जनवरी गणतन्त्र दिवस का उत्सव राजधानी में दर्शनीय होता है। भारत की विभिन्न क्षेत्रों से लाखों की संख्या में जनता प्रति वर्ष गणतन्त्र दिवस का उत्सव देखने आती है। इस दिन राष्ट्रपति जल सेना, स्थल सेना तथा नभ सेना की सलामी लेते हैं। इसके बाद राष्ट्रपति भवन से एक बहुत बड़ा जुलूस बड़ी-बड़ी सड़कों से होता हुआ लाल किले तक पहुँचता है।

इस जुलूस में कई तरह की सैनिक टुकड़ियाँ, फौजी सामान तथा अस्त्र-शस्त्र होते हैं। इसके अतिरिक्त झूमते हुए मस्त हाथी, सजे हुए सुन्दर घोड़े तथा ऊँट होते हैं। इसमें भारत के प्राय: सभी प्रान्तों की सांस्कृतिक झाँकियाँ देखने योग्य होती हैं। रात में बिजली के प्रकाश से दीवाली मनायी जाती है। इसी प्रकार दूसरे नगरों में भी जुलूस निकलते हैं, खेलकूद होते हैं तथा सांस्कृतिक कार्यक्रम जुटाए जाते हैं। सरकारी भवनों तथा कार्यालयों पर तिरंगे झण्डे फहराये जाते हैं तथा रात में बिजली की रोशनी की जाती है।

उत्सव से प्रेरणा-26 जनवरी हमारा हर्षोल्लास का त्यौहार है। यह नयी-नयी उमंगों और प्रेरणा का त्यौहार है। इस दिन हमें एकता, देशभक्ति और जनसेवा की प्रेरणा प्राप्त करनी चाहिए तथा देश के उत्थान और सर्वांगीण विकास में सहयोग का संकल्प लेना चाहिए। राष्ट्रपर्व छब्बीस जनवरी हमारे लिए नूतन संदेश लेकर आती है-

“नई, भावना, नई कामना, नव-सन्देशा लाई।
राष्ट्रपर्व महिमा से मण्डित, सबके मन को भाई।
छब्बीस जनवरी आई॥
राग-द्वेषमय कलह मिटाकर, परसेवा के भाव जगाएँ।
शोषण वैर अन्याय घटाकर, देशभक्ति का शंख बजायें।
बने राष्ट्र एकता प्रहरी, यह सन्देशा लाई।
छब्बीस जनवरी आई॥”

-सन्त

पर्यावरण प्रदूषण पर निबंध – Environmental Pollution Essay in Hindi

Pollution Due To Urbanisation Essay In Hindi

पर्यावरण प्रदूषण पर छोटे-बड़े निबंध (Essay on Environmental Pollution in Hindi)

पर्यावरण प्रदूषण-समस्या और समाधान। – Environmental Pollution – Problems And Solutions

रूपरेखा-

  • प्रस्तावना,
  • विभिन्न प्रकार के प्रदूषण (वायु प्रदूषण, जल प्रदूषण, रेडियोधर्मी प्रदूषण, ध्वनि प्रदूषण, रासायनिक प्रदूषण),
  • प्रदूषण पर नियन्त्रण।

साथ ही, कक्षा 1 से 10 तक के छात्र उदाहरणों के साथ इस पृष्ठ से विभिन्न हिंदी निबंध विषय पा सकते हैं।

प्रस्तावना-
प्रदूषण वायु, जल एवं स्थल की भौतिक तथा रासायनिक विशेषताओं का वह अवांछनीय परिवर्तन है जो मनुष्य और उसके लिए लाभदायक दूसरे जन्तुओं, पौधों, औद्योगिक संस्थाओं तथा दूसरे कच्चे माल इत्यादि को किसी भी रूप में हानि पहुँचाता है।

तात्पर्य यह है कि जीवधारी अपने विकास, बुद्धि और व्यवस्थित जीवन-क्रम के लिए सन्तुलित वातावरण पर निर्भर करते हैं। किन्तु कभी-कभी वातावरण में एक अथवा अनेक घटकों की मात्रा कम अथवा अधिक हो जाया करती है या वातावरण में कुछ हानिकारक घटकों का प्रवेश हो जाता है। परिणामत: वातावरण दूषित हो जाता है।

विभिन्न प्रकार के प्रदूषण-प्रदूषण की समस्या का जन्म जनसंख्या की वृद्धि के साथ-साथ हुआ है। विकासशील देशों में वायु और पृथ्वी भी प्रदूषण से ग्रस्त हो रही है। भारत जैसे देशों में तो घरेलू कचरे और गन्दे जल को बहाने का प्रश्न भी एक विकराल रूप धारण करता जा रहा है।

1. वायु प्रदूषण-
वायुमण्डल में विभिन्न प्रकार की गैसें एक विशेष अनुपात में उपस्थित रहती हैं। श्वांस द्वारा हम ऑक्सीजन ग्रहण करते हैं और कार्बन डाइऑक्साइड छोड़ते रहते हैं। हरे पौधे प्रकाश की उपस्थिति में कार्बन डाइऑक्साइड लेकर ऑक्सीजन निष्कासित करते रहते हैं।

इससे वातावरण में ऑक्सीजन और कार्बन डाइऑक्साइड का सन्तुलन बना रहता है। मनुष्य अपनी आवश्यकता के लिए वनों को काटता है, परिणामत: वातावरण में ऑक्सीजन की मात्रा कम होती जा रही है।

मिलों की चिमनियों से निकलने वाले धुएँ के कारण वातावरण में विभिन्न प्रकार की हानिकारक गैसें बढ़ती जा रही हैं। औद्योगिक चिमनियों से निष्कासित सल्फर डाइऑक्साइड गैस का प्रदूषकों में प्रमुख स्थान है। इसके प्रभाव से पत्तियों के किनारे और नसों के मध्य का भाग सूख जाता है।

वायु प्रदूषण से मनुष्य के स्वास्थ्य पर भी बहुत बुरा प्रभाव पड़ता है। इससे श्वसन सम्बन्धी बहुत-से रोग हो जाते हैं। इनमें फेफड़ों का कैंसर, दमा और फेफड़ों से सम्बन्धित दूसरे रोग सम्मिलित हैं।

2. जल प्रदूषण-
सभी जीवधारियों के लिए जल बहुत महत्त्वपूर्ण तत्त्व है। जल में अनेक प्रकार के खनिज तत्त्व, कार्बनिक-अकार्बनिक पदार्थ तथा गैसें घुली रहती हैं। यदि जल में ये पदार्थ आवश्यकता से अधिक मात्रा में एकत्रित हो जाते हैं जो साधारणतया जल में उपस्थित नहीं होते हैं तो जल प्रदूषित होकर हानिकारक हो जाता है और प्रदूषित जल कहलाता है।

3. रेडियोधर्मी-प्रदूषण-
परमाणु शक्ति उत्पादन केन्द्रों और परमाणविक परीक्षणों से जल, वायु तथा पृथ्वी का प्रदूषण होता है जो आज की पीढ़ी के लिए ही नहीं बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिए भी हानिकारक सिद्ध होगा। विस्फोट के स्थान पर तापक्रम इतना अधिक हो जाता है कि धातु तक पिघल जाती है।

एक विस्फोट के समय रेडियोधर्मी पदार्थ वायुमण्डल की बाह्य परतों में प्रवेश कर जाते हैं जहाँ पर ये ठण्डे होकर संघनित अवस्था में बूंदों का रूप ले लेते हैं और बाद में ठोस अवस्था में बहुत छोटे-छोटे धूल के कणों के रूप में वायु में फैलते रहते हैं और वायु के झोकों के साथ समस्त संसार में फैल जाते हैं।

द्वितीय महायुद्ध में नागासाकी तथा हिरोशिमा में हुए परमाणु बम के विस्फोट से अनेक मनुष्य अपंग हो गये थे। इतना ही नहीं, जापान की भावी सन्तति भी अनेक प्रकार के रोगों से ग्रस्त हो गयी।

4. ध्वनि प्रदषण-
अनेक प्रकार के वाहन, मोटरकार, बस जेट विमान टैक्टर आदि तथा लाउडस्पीकर बाजे एवं कारखानों के सायरन, मशीनों की आवाज से ध्वनि प्रदूषण होता है। ध्वनि की लहरें जीवधारियों की क्रियाओं पर प्रभाव डालती हैं। .

अधिक तेज ध्वनि से मनुष्य की सुनने की शक्ति में कमी होती है, उसे नींद ठीक प्रकार से नहीं आती है और नाड़ी संस्थान सम्बन्धी एवं अनिद्रा का रोग उत्पन्न हो जाता है, यहाँ तक कि कभी-कभी पागलपन का रोग भी उत्पन्न हो जाता है। कुछ ध्वनियाँ छोटे-छोटे कीटाणुओं को नष्ट कर देती हैं, परिणामत: अनेक पदार्थों का प्राकृतिक रूप से परिपोषण नहीं हो पाता है।

5. रासायनिक प्रदूषण-
प्राय: कृषक अधिक पैदावार के लिए कीटनाशक, घासनाशक और रोगनाशक दवाइयों तथा रसायनों का प्रयोग करते हैं। इनका स्वास्थ्य पर हानिकारक प्रभाव पड़ता है।

आधुनिक पेस्टीसाइडों का अन्धाधुन्ध प्रयोग भी लाभ के स्थान पर हानि पहुँचा रहा है। जब ये वर्षा के जल के साथ बहकर नदियों द्वारा सागर में पहुँच जाते हैं तो वहाँ पर रहने वाले जीवों पर ये घातक प्रभाव डालते हैं। इतना ही नहीं, मानव देह भी इनसे प्रभावित होती है।

प्रदूषण पर नियन्त्रण-पर्यावरण को प्रदूषित होने से रोकने तथा उनके समुचित संरक्षण के प्रति गत कुछ वर्षों से समस्त विश्व में चेतना आयी है। आधुनिक युग के आगमन व औद्योगीकरण से पूर्व यह समस्या इतनी गम्भीर कभी नहीं हुई थी, और न इस परिस्थिति की ओर वैज्ञानिकों तथा अन्य लोगों का इतना ध्यान ही गया था। औद्योगीकरण और जनसंख्या की वृद्धि ने संसार के सामने प्रदूषण की गम्भीर समस्या उत्पन्न कर दी है।

प्रदूषण को रोकने के लिए व्यक्तिगत और सरकारी, दोनों ही स्तरों पर पूरा प्रयास आवश्यक है। जल प्रदूषण निवारण एवं नियन्त्रण के लिए भारत सरकार ने सन् 1974 के ‘जल प्रदूषण निवारण एवं नियन्त्रण अधिनियम’ लागू किया तथा इस कार्य हेतु बोर्ड बनाये। इन बोर्डों ने प्रदूषण के नियन्त्रण की अनेक योजनाएँ तैयार की हैं। औद्योगिक कचरे के लिए भी मानक तैयार किये गये हैं।

उद्योगों से होने वाले प्रदूषण को रोकने के लिए भारत सरकार ने हाल ही में एक महत्त्वपूर्ण निर्णय यह लिया है कि नये उद्योगों को लाइसेंस दिये जाने से पूर्व उन्हें औद्योगिक कचरे के निवारण की समुचित व्यवस्था करनी होगी और इसकी पर्यावरण विशेषज्ञों से स्वीकृति प्राप्त करनी होगी।

वनों की अनियन्त्रित-
कटाई को रोकने के लिए भी कठोर नियम बनाये गये हैं। इस बात के प्रयास किये जा रहे हैं कि नये वनक्षेत्र बनाये जायें और जन-सामान्य को वृक्षारोपण के लिए प्रोत्साहित किया जाये।

इस प्रकार स्पष्ट है कि सरकार प्रदूषण की रोकथाम के लिए पर्याप्त सजग है। पर्यावरण के प्रति जागरूक होकर ही हम आने वाले समय में और अधिक अच्छा और स्वास्थ्यप्रद जीवन जी सकेंगे और आने वाली पीढ़ी को प्रदूषण के अभिशाप से मुक्ति दिला सकेंगे।

प्रकृति संरक्षण पर निबंध – Conservation of Nature Essay In Hindi

Conservation of Nature Essay In Hindi

प्रकृति संरक्षण पर छोटे तथा बड़े निबंध (Essay on Conservation of Nature in Hindi)

हिन्दी कविता में प्रकृति-चित्रण – Illustration Of Nature In Hindi Poem

रूपरेखा-

  1. प्रस्तावना,
  2. भारत और प्रकृति,
  3. हिन्दी कविता में प्रकृति-चित्रण,
  4. उद्दीपन के रूप में प्रकृति-चित्रण,
  5. आलम्बन के रूप में प्रकृति-चित्रण,
  6. सहानुभूतिपूर्ण चेतन सत्ता के रूप में प्रकृति चित्रण,
  7. मानवीकरण द्वारा प्रकृति-चित्रण,
  8. उपसंहार।

साथ ही, कक्षा 1 से 10 तक के छात्र उदाहरणों के साथ इस पृष्ठ से विभिन्न हिंदी निबंध विषय पा सकते हैं।

भारत-भूमि प्रकृति-
नटी का क्रीडास्थल है। प्रकृति-प्रेम से भरा यहाँ जन अन्तराल है। प्रकृति प्रेम भारत के कवियों का सम्बल है। प्रकृति चित्र हिन्दी कविता में अत्युज्ज्वल है।

प्रस्तावना-
प्रकृति के साथ मनुष्य का अनादि सम्बन्ध है। वह जब से संसार में आया है तभी से प्रकृति के साथ उसका सम्बन्ध स्थापित हो गया है। अत: प्रकृति के साथ प्रेम होना मनुष्य के लिए कोई अजीब बात नहीं है। प्रकृति प्रेम उसकी नस-नस में समाया हुआ है। साहित्य में भी मनुष्य के हृदय की भावनाएँ ही व्यक्त हुआ करती हैं। अत: सभी देशों और भाषाओं के साहित्य में प्रकृति वर्णन का महत्त्वपूर्ण स्थान रहा है।

भारत और प्रकृति-
भारत प्रकृति की रम्य क्रीड़ास्थली है। यहाँ के यमुना तट के कुंज, वसन्त की मादक समीर और पर्वतों के मखमली दृश्य शायद ही अन्यत्र कहीं मिलें। अत: भारत के कवियों का प्रकृति से विशेष अनुराग होना स्वाभाविक ही है।

अनादि काल से यहाँ के साहित्य में प्रकृति-चित्रण का विशेष स्थान रहा है। संस्कृत कवियों ने प्रकृति के जो सुन्दर चित्र खींचे, वे विश्व साहित्य में बेजोड़ हैं। यहाँ तक कि संस्कृत के आचार्यों ने प्रकृति के विभिन्न दृश्यों का वर्णन महाकाव्य के लिए अनिवार्य रूप में स्वीकार कर लिया था। संस्कृत की प्रकृति-चित्रण की यह परम्परा पाली, प्राकृत तथा अपभ्रंश में भी निरन्तर चलती रही।

हिन्दी कविता में प्रकृति-चित्रण-
हिन्दी कवियों में प्रकृति के प्रति वह अनुराग दिखाई नहीं पड़ता जो संस्कृत के कवियों में था। प्रकृति निरीक्षण की वह सूक्ष्मता जो संस्कृत कवियों में थी, हिन्दी में उसकी झलक भी दिखाई न दी। हिन्दी कवियों ने प्रकृति-चित्रण तो किया पर वह वैसा मनोरम न बन पड़ा जैसा संस्कृत कवियों का प्रकृति वर्णन था।

उद्दीपन के रूप में प्रकृति-चित्रण-
भक्तिकाल, रीतिकाल तथा आधुनिक काल में भी कृष्णभक्त कवियों ने कृष्ण तथा गोपियों के संयोग तथा वियोग शृंगार के उद्दीपन के रूप में प्रकृति का सुन्दर वर्णन किया है। यमुना तट के कुंज, बसन्त, पावस आदि का रति भाव को उद्दीप्त करने में बड़ा सफल चित्रण हुआ है।

रीतिकाल के कवियों ने प्रकृति का उद्दीपन के रूप में वर्णन अवश्य किया किन्तु उनके प्रकृति वर्णन में सजीवता नहीं आ पायी। इन्होंने स्वयं प्रकृति का सूक्ष्म निरीक्षण करने का कष्ट न करके पुराने चले आते हुए उपमानों को रखकर ही निर्वाह किया है। इन्होंने अधिकतर रूढ़िवादिता की लकीर को पीटा है। केशव की कविता का एक उदाहरण देखिए-

“देखे मुख भावै, अन देखेई कमलचन्द,
ताते मुख यहै न कमल न चन्द री।”

मुख तो देखने में अच्छा लगता है और कमल तथा चन्द्रमा बिना देखे ही अच्छे लगते हैं अत: यह मुख है-न कमल है, न चन्द्रमा। इसका यह अर्थ नहीं है कि रीतिकाल में प्रकृति प्रेमी कवि हुए ही नहीं। सेनापति और बिहारी की कविताओं में प्रकृति का बहुत सुन्दर और संश्लिष्ट चित्रण हुआ है जिसे देखकर यह स्वीकार करना पड़ेगा कि उन्होंने प्रकृति का सूक्ष्म निरीक्षण किया था। उद्दीपन विभाव के रूप में बिहारी का एक प्रकृति चित्र देखिए-

“सघन कुंज छाया सुखद, शीतल मन्द समीर।
मन ह्वै जात अजौ वहै, उहि जमुना के तीर॥”

उपाध्याय तथा गुप्त आधुनिक कवियों ने भी इसी प्रकार का प्रकृति-चित्रण किया है।

आलम्बन के रूप में प्रकृति-चित्रण-
प्रकृति-चित्रण का एक दूसरा प्रकार आलम्बन विभाव के रूप में है। कवि प्रकृति के रम्य रूपों को देखकर भावातुर हो उठता है और उसके वे ही भाव कविता में अभिव्यक्त होते हैं। इसमें प्रकृति का स्थान गौण नहीं होता है। इस प्रकार का प्रकृति चित्रण हिन्दी में हुआ तो अवश्य किन्तु बहुत कम हुआ।

आचार्य रामचन्द्र शुक्ल, सेनापति, बिहारी, सुमित्रानन्दन पन्त, श्रीधर पाठक तथा जयशंकर प्रसाद आदि कवियों की कविताओं में इस प्रकार का आलम्बनात्मक चित्रण पर्याप्त रूप से हुआ है। सेनापति द्वारा चित्रित ग्रीष्म ऋतु का सुन्दर संश्लिष्ट चित्रण देखिए-

“वृष को तरनि तेज सहसौ किरन करि,
ज्वालन के जाल विकराल बरसत हैं।
तपति धरनि, जग जरत झरनि, सीरी,
छाँह को पकरि पंथ पंछी विरमत हैं।
‘सेनापति’ नेक दुपहरी के ढरत होत,
धमका विषम, ज्यों न पात खरकत हैं।
मेरे जान पौनौ सीरी ठोर को पकरि कोनौ,
धरी एक बैठी कहँ घामे बितवत हैं।’

परन्तु साधारणतया हिन्दी में आलम्बन रूप में प्रकृति-चित्रण बहुत कम ही हुआ है।

सहानुभूतिपूर्ण चेतन सत्ता के रूप में प्रकृति-चित्रण-प्रकृति-चित्रण का एक तीसरा प्रकार वह है जिसमें कवि प्रकृति का एक सहानुभूतिपूर्ण चेतन सत्ता के रूप में चित्रण करता है। इस प्रकार का प्रकृति चित्रण करने में कविवर जायसी को अद्भुत सफलता मिली है।

उनके पद्मावत में प्रकृति का बड़ा ही सरस और आकर्षक वर्णन हुआ है। यद्यपि इस काव्य में उद्दीपन के रूप में भी प्रकृति का सुन्दर चित्रण हुआ है किन्तु सहानुभूतिपूर्ण चेतन सत्ता के रूप में प्रकृति वर्णन में तो यह काव्य बेजोड़ है।

नागमती के विरह में सारी प्रकृति रोती है। उसका रोना सुनकर पशु-पक्षियों की नींद समाप्त हो जाती है। रहस्यपूर्ण आध्यात्मिक संकेतों ने तो उसे और भी हृदयस्पर्शी बना दिया है।।

मानवीकरण द्वारा प्रकृति-चित्रण-प्रकृति-
चित्रण का एक चौथा भी प्रकार है जिसमें प्रकृति का मानवीकरण कर लिया जाता है अर्थात प्रकृति के तत्त्वों को मानव ही मान लिया जाता है। प्रकृति में मानवीय क्रियाओं का आरोपण किया जाता है। हिन्दी में इस प्रकार प्रकृति-चित्रण छायावादी कवियों में पाया जाता है।

इस प्रकार के प्रकृति-चित्रण में प्रकृति सर्वथा गौण हो जाती है। इसमें प्राकृतिक वस्तुओं के नाम तो रहते हैं पर चित्रण मानवीय भावनाओं का ही होता है। कवि लता और तितली का चित्रण न कर यूवती तथा कुमारी का चित्रण करने लगता है।

यही कारण है कि इस प्रकार के प्रकृति-चित्रण में प्रकृति का अनुरागमय रूप बहुत कुछ छिप जाता है। पन्त, निराला तथा महादेवी वर्मा आदि छायावादी कवियों की कोमल रचनाओं में इसी प्रकार का प्रकृति-चित्रण है। ‘छाया’ और ‘ज्योत्स्ना’ इसके उत्तम नमूने हैं। कविवर प्रसाद का मानवीकरण के रूप में उषा का वर्णन देखिए-

“बीती विभावरी जाग री,
अम्बर पनघट में डुबा रही तारा घट उषा नागरी।
-कुल कुल-कुल सा बोल रहा, किसलय का अंचल डोल रहा,
लो यह लतिका भी भर लाई, मधु मुकुल नवल रस गागरी॥”

महादेवी वर्मा और पन्त जी के मानवीकरण के रूप में प्राकृतिक चित्रण अत्यन्त मनोरम हैं। पन्त जी ने शरद् ज्योत्सना को सोती हुई नायिका का रूप दिया है

“नीले नभ के शत दल पर बैठी शारद हासिनि।
मृदु करतल पर शशि मुख धर नीरव अनिमिष एकाकिनि।”

छायावादी काव्य में इस प्रकार का प्रकृति-चित्रण अधिक मिलता है।

सन्त काव्यों में प्रकृति-चित्रण का एक और भी रूप देखने को मिलता है। उन्होंने कमल, सूर्य तथा चन्द्रमा आदि प्राकृतिक वस्तुओं के अध्यात्म तथा साधना सम्बन्धी पारिभाषिक शब्दों के रूपक बना डाले हैं।

इन रचनाओं में प्रतीकों के रूप में प्रकृति के रूपों के नाममात्र आ पाये हैं। इस प्रकार के वर्णनों को प्रकृति चित्रण न ही माना जाये तो उचित है। कवि का उद्देश्य प्रकृति-चित्रण करना नहीं है अपि विषयों की ओर संकेत करना है।

उपसंहार-हिन्दी के प्रकृति-चित्रण में जो सबसे अधिक खटकने वाली बात है, वह यह है कि हिन्दी कवियों ने प्रकृति के सौम्य तथा सुन्दर रूप का चित्रण तो किया है किन्तु प्रकृति के विकराल और भयंकर रूप पर इन्होंने बहुत कम दृष्टिपात किया है।

कंप्यूटर शिक्षा पर निबंध – Computer Education Essay In Hindi

Computer Education Essay In Hindi

कंप्यूटर शिक्षा पर निबंध – (Essay On Computer Education In Hindi)

कम्प्यूटर के चमत्कार – Computer Wonders

रूपरेखा-

  • प्रस्तावना,
  • कम्प्यूटर का इतिहास,
  • कम्प्यूटर का प्रसार,
  • भारत में कम्प्यूटर,
  • कम्प्यूटर के चमत्कार,
  • कम्प्यूटर शिक्षा की आवश्यकता,
  • उपसंहार।

साथ ही, कक्षा 1 से 10 तक के छात्र उदाहरणों के साथ इस पृष्ठ से विभिन्न हिंदी निबंध विषय पा सकते हैं।

कंप्यूटर शिक्षा पर निबंध – Kampyootar Shiksha Par Nibandh

प्रस्तावना-मानव-
समाज को सुसभ्य और प्रगतिशील बनाने में जिन वैज्ञानिक आविष्कारों ने क्रान्तिकारी योगदान किया है, उनमें कम्प्यूटर को निस्सन्देह आज शीर्ष स्थान प्राप्त हो गया है। जीवन के सभी क्षेत्रों में कम्प्यूटर ने जितनी शीघ्रता और व्यापकता से प्रवेश किया है, वह सचमुच आश्चर्य का विषय है। आज तो कम्प्यूटर धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष, चारों पुरुषार्थों की सिद्धि में मनुष्य का सहयोग कर रहा है।

कम्प्यूटर का इतिहास-
कम्प्यूटर के आविष्कार का प्रथम प्रयास यूनान तथा मिस्र देशों में हुआ था। वहाँ ईसा से 1000 वर्ष पूर्व एबैकस नामक यंत्र का आविष्कार किया गया था। यह गणना करने तथा गणित सम्बन्धी प्रश्न हल करने में काम आता था। सन् 1673 ई. में फ्रांस के ब्लेज पैस्कल नामक युवक ने कम्प्यूटर बनाया। आधुनिक कम्प्यूटर का आविष्कार सन् 1833 ई. में इंग्लैंड के चार्ल्स बैवेज नामक गणितज्ञ ने किया था।

भारत में कम्प्यूटर-
भारत में कम्प्यूटर का आयात सन् 1965 ई. में किया गया। ‘मेन फ्रेम’ नामक यह कम्प्यूटर बहुत बड़ा तथा महँगा था। निजी कम्प्यूटर (पी.सी.) सन् 1985 में आया। सन् 1986 में इसका मूल्य घटाकर आधा कर दिया गया। उसके बाद भारत में कम्प्यूटर के प्रयोग तथा शिक्षा में तीव्र गति से वृद्धि हुई है।

कम्प्यूटर का प्रसार-
आरम्भिक कम्प्यूटर इतने स्थूलकाय थे और उनका संचालन इतना श्रमसाध्य था कि कम्प्यूटर का कोई उज्ज्वल भविष्य नहीं दिखाई देता था। किन्तु ट्रांजिस्टरों एवं चिप्स के प्रयोग से जैसे-जैसे कम्प्यूटर लघुकाय होते गये, उनका प्रचार-प्रसार बड़ी तीव्रता से बढ़ता गया।

आज पी. सी. और लैपटॉप संस्करणों के रूप में कम्प्यूटर घर-घर में जगह बनाता जा रहा है। शिक्षा, व्यापार, अनुसंधान, युद्ध, उद्योग, कृषि, संचार, अंतरिक्ष विज्ञान, मौसमी भविष्यवाणी आदि सभी क्षेत्रों में कम्प्यूटर का प्रवेश हो चुका है।

अब तो कम्प्यूटर ज्योतिषी बनकर जन्मकुण्डली भी बना रहा है और वैवाहिक-एजेण्ट की भूमिका भी निभा रहा है। हमारे देश में कम्प्यूटर अभी नगरों तक ही सीमित है किन्तु शीघ्र ही यह देश के ग्रामीण क्षेत्रों में भी अपनी उपस्थिति दर्ज कराने लगेगा।

कम्प्यूटर के चमत्कार-
कम्प्यूटर का सबसे बड़ा चमत्कार यह है कि उसके सहयोग से अन्य यंत्रों; प्रणालियों एवं युक्तियों की कार्यक्षमता को कहीं अधिक दक्ष, प्रभावी और तीव्र बनाया जा सकता है। शिक्षा के क्षेत्र में कम्प्यूटर ने छात्रों के लिए ज्ञान-विज्ञान और प्रशिक्षण के अपार क्षेत्र खोल दिए हैं।

विज्ञान के क्षेत्र में अनुसंधान, डाटा संग्रह और प्रत्यक्ष प्रयोग में सहायक बनकर कम्प्यूटर ने अपनी अपरिहार्यता प्रमाणित कर दी है। कम्प्यूटर की सहायता से ही नासा के वैज्ञानिक धरती पर बैठे-बैठे मंगलग्रह पर जीवन की खोज कर रहे हैं।

कम्प्यूटर से ही प्रक्षेपास्त्रों का संचालन और नियंत्रण हो रहा है। असाध्य रोगों के लिए औषधियों की खोज में कम्प्यूटर सहायक है। प्राकृतिक आपदाओं के पूर्वानुमान में कम्प्यूटर ही प्रमुख भूमिका अदा कर रहा है।

विशालकाय उद्योगों का संचालन, बैंकिग, संचार, परिवहन यहाँ तक कि सामान्य गृहिणी की सेवा के लिए भी कम्प्यूटर हाजिर है। कम्प्यूटर ने मनुष्य की कार्यकुशलता ही नहीं बढ़ाई है, अपितु उसकी बौद्धिक क्षमता का भी अपार विस्तार किया है।

कम्प्यूटर शिक्षा की आवश्यकता-
आज कम्प्यूटर को शिक्षा का अभिन्न अंग स्वीकार कर लिया गया है। राजस्थान में सीनियर सैकेण्डरी स्तर तक कम्प्यूटर शिक्षा अनिवार्य किया जाना इसके महत्त्व का स्पष्ट संकेत है। मेरी दृष्टि में हर छात्र के लिए आज कम्प्यूटर शिक्षा प्राप्त करना आवश्यक है।

छात्रों का भविष्य आज कम्प्यूटर से जुड़ गया है। चाहे वह लिपिक बनना चाहे या व्यापारी, वैज्ञानिक बनना चाहे या प्रबन्धन क्षेत्र में जाए, कलाकार बने या अध्यापक, कम्प्यूटर-शिक्षा उसकी अतिरिक्त योग्यता बन चुकी है।

आजीविका और रोजगार की दृष्टि से वर्तमान परिप्रेक्ष्य पर विचार करें तो आई. टी. क्षेत्र तथा सॉफ्टवेयर उद्योग में अवसरों की अपार सम्भावनाएँ लक्षित हो रही हैं। इनके लिए कम्प्यूटर-शिक्षा अनिवार्य है। इस प्रकार हर दृष्टि से कम्प्यूटर-शिक्षा की उपयोगिता प्रमाणित हो रही है।

उपसंहार-
आज मनुष्य कम्प्यूटर के रोमांचकारी और सुख-सुविधा प्रदायक स्वरूप पर मुग्ध है किन्तु मानव-जीवन में कम्प्यूटर का दिनोंदिन बढ़ता प्रभाव खतरे की घण्टी भी है। वैज्ञानिक कम्प्यूटर को अधिकाधिक सक्षम और संवदेनशील बनाने में जुटे हैं।

स्मार्ट कम्प्यूटर की कल्पना साकार करने में लगे हैं। भले ही कम्प्यूटर मन-मस्तिष्क का स्थानापन्न न बन पाए किन्तु वह धीरे-धीरे मनुष्य को उसकी प्राकृतिक क्षमताओं से वंचित तो कर ही देगा। इतिहास साक्षी है कि मनुष्य ने वैज्ञानिक क्षमताओं का प्रयोग निर्माण के साथ-साथ ध्वंस के लिए भी किया है।

अतः हमें रोबोट्स (यंत्र मानव) पर विमुग्ध होने के साथ ही कम्प्यूटरीकृत सैनिकों के निर्माण के भयावह परिणामों पर ध्यान देना होगा। कम्प्यूटर मानव-कल्याण का ही सूत्रधार बना रहे, यही हम सबकी कामना और प्रयास होना चाहिए।

मेक इन इंडिया – Make In India Essay In Hindi

Make In India Essay In Hindi

मेक इन इंडिया – (Essay on Make In India In Hindi)

भारत में औद्योगिक क्रांति – Industrial Revolution In India

संकेत बिन्दु–

  • भूमिका,
  • सम्पन्नता क्यों?
  • धनोपार्जन और उद्योग,
  • मेक इन इंडिया,
  • विदेशी पूँजी की जरूरत,
  • पूँजी के साथ तकनीक का आगमन,
  • उपसंहार।

साथ ही, कक्षा 1 से 10 तक के छात्र उदाहरणों के साथ इस पृष्ठ से विभिन्न हिंदी निबंध विषय पा सकते हैं।

भूमिका–
वस्तुओं पर “मेड इन इंडिया” की छाप देख हमारा मन गर्व से भर जाता है। यह देश में स्वदेशी उद्योगों के निरंतर विकास का सूचक तो होता ही है साथ ही हर भारतीय को आत्मविश्वास से भरने वाला भी होता है। किन्तु हमारे प्रधानमंत्री जी ने इसके साथ–साथ ‘मेक इन इंडिया’ नारा भी दिया है, जिसका आशय है विदेशी निवेशकों को भारत में उद्योग स्थापित करने के लिए आमंत्रण देना। औद्योगिक प्रगति और संपन्नता की दृष्टि से यह एक नई सोच है।

सम्पन्नता क्यों–प्रश्न उठता है कि मनुष्य सम्पन्न होना क्यों चाहता है ? हमारे जीवन में अनेक आवश्यकताएँ होती हैं। उनकी पूर्ति के लिए साधन चाहिए। ये साधन हमको सम्पन्न होने पर ही प्राप्त होंगे। आवश्यकता की पूर्ति न होने पर हम सुख से नहीं रह सकते। अतः धन कमाना और सम्पन्न होना आवश्यक है।

धनोपार्जन और उद्योग–धन कमाने के लिए कुछ करना होगा, कुछ पैदा भी करना होगा। कृषि और उद्योग उत्पादन के माध्यम हैं। व्यापार भी इसका एक साधन है। हम कुछ पैदा करें, कुछ वस्तुओं का उत्पादन करें यह जरूरी है। देश को आगे बढ़ाने और समृद्धिशाली बनाने के लिए हमें अपनी आवश्यकता की ही नहीं, दूसरों की आवश्यकता की वस्तुएँ भी बनानी होंगी।

मेक इन इंडिया–आजकल छोटे–छोटे देश अपने यहाँ उत्पादित वस्तुओं का विदेशों में निर्यात करके अपनी समृद्धि को बढ़ा रहे हैं। द्वितीय विश्वयुद्ध में नष्ट हुआ जापान स्वदेशी के बल पर ही अपने पैरों पर खड़ा हो सका है। भारत के प्रधानमंत्री मोदी ने ‘मेक इन इंडिया’ का नारा दिया है।

इसका उद्देश्य विदेशी पूँजी को भारत में आकर्षित करना तथा उससे यहाँ उद्योगों की स्थापना करना है। इन उद्योगों में बनी वस्तुएँ भारत में निर्मित होंगी। उनको विश्व के अन्य देशों के बाजारों में बेचा जायेगा। इससे धन का प्रवाह भारत की ओर बढ़ेगा और वह एक समृद्ध राष्ट्र बन सकेगा।

विदेशी पूँजी की जरूरत–
उद्योगों की स्थापना तथा उत्पादन करने और उसकी वृद्धि करने के लिए पूँजी की आवश्यकता होगी ही। अभी भारत के पास इतनी पूँजी नहीं हैं कि वह अपने साधनों से बड़े–बड़े उद्योग स्थापित कर सके तथा उन्हें संचालित कर सके। हमारे प्रधानमंत्री चाहते हैं कि विदेशों में रहने वाले सम्पन्न भारतीय तथा अन्य उद्योगपति भारत आयें और यहाँ पर अपनी पूँजी से उद्योग लगायें। उत्पादित माल के लिए उनको भारतीय बाजार तो प्राप्त होगा ही, वे विदेशी बाजारों में भी अपना उत्पादन बेचकर मुनाफा कमा सकेंगे। उससे भारत के साथ ही उनको भी लाभ होगा।

पूँजी के साथ तकनीक का आगमन–
प्रधानमंत्री जानते हैं कि भारत को पूँजी ही नहीं नवीन तकनीक की भी आवश्यकता है। वह विदेशी उद्योगपतियों को भारत में उत्पादन के लिए आमंत्रित करके पूँजी के साथ नवीन तकनीक की प्राप्ति के द्वार भी खोलना चाहते हैं। यह सोच उनकी दूरदृष्टि को प्रकट करने वाली है। बच्चा चलना सीखता है, तो उसको किसी की उँगली पकड़ने की आवश्यकता होती है। फिर तो वह सरपट दौड़ने लगता है। भारत भी कुशल उद्योगपतियों के अनुभव का लाभ उठाकर एक शक्तिशाली औद्योगिक देश बन सकता है।

उपसंहार–
‘मेक इन इंडिया’ की सफलता के लिए हमें अनेक प्रबंध करने और कदम उठाने होंगे। देश में ऐसा औद्योगिक वातावरण बनाना होगा जिससे विदेशी निवेशक यहाँ अपने उद्योग लगाने को प्रेरित हों। सड़क, बिजली, परिवहन के क्षेत्र में सुधार करने होंगे।

उद्योग–
स्थापना में कानूनी जटिलताएँ दूर हो और विभागीय अनुभूतियाँ सरलता तथा शीघ्रता से प्राप्त हों, ऐसा प्रबन्ध करना होगा। भारत सरकार इस दिशा में निरंतर समुचित कदम उठा रही है।

दहेज़ प्रथा पर निबंध – Dowry System Essay in Hindi

Dowry System Essay in Hindi

दहेज़ प्रथा पर छोटे तथा लंबे निबंध (Essay on Dowry System Essay in Hindi)

हमारे समाज का कोढ़ : दहेज–प्रथा – The leprosy of our society: dowry

अन्य सम्बन्धित शीर्षक–

  • दहेज–प्रथा : एक सामाजिक अभिशाप,
  • दहेज का दानव,
  • सामाजिक प्रतिष्ठा और दहेज,
  • क्या दहेज समाप्त हो सकेगा?
  • दहेज–प्रथा : समस्या और समाधान।

साथ ही, कक्षा 1 से 10 तक के छात्र उदाहरणों के साथ इस पृष्ठ से विभिन्न हिंदी निबंध विषय पा सकते हैं।

“दहेज बुरा रिवाज है, बेहद बुरा। …… पूछो, आप लड़के का विवाह करते हैं कि उसे बेचते हैं।”

-मुंशी प्रेमचन्द

रूपरेखा–

  1. प्रस्तावना,
  2. दहेज का अर्थ,
  3. दहेज–प्रथा के प्रसार के कारण–
    • (क) धन के प्रति अधिक आकर्षण,
    • (ख) जीवन–साथी चुनने का सीमित क्षेत्र,
    • (ग) बाल–विवाह,
    • (घ) शिक्षा और व्यक्तिगत प्रतिष्ठा,
    • (ङ) विवाह की अनिवार्यता,
  4. दहेज–प्रथा के दुष्परिणाम–
    • (क) बेमेल विवाह,
    • (ख) ऋणग्रस्तता,
    • (ग) कन्याओं का दुःखद वैवाहिक जीवन,
    • (घ) आत्महत्या,
    • (ङ) अविवाहिताओं की संख्या में वृद्धि,
  5. समस्या का समाधान–
    • (क) कानून द्वारा प्रतिबन्ध,
    • (ख) अन्तर्जातीय विवाहों को प्रोत्साहन,
    • (ग) युवकों को स्वावलम्बी बनाया जाए,
    • (घ) लड़कियों की शिक्षा,
    • (ङ) जीवन–साथी चुनने का अधिकार,
  6. उपसंहार।

प्रस्तावना–
दहेज का दानव आज भारतीय समाज में विनाशलीला मचाए हुए है। दहेज के कारण कितनी ही युवतियाँ काल के क्रूर गाल में समा जाती हैं। प्रतिदिन समाचार–पत्रों में इन दुर्घटनाओं (हत्याओं और आत्महत्याओं) के समाचार प्रकाशित होते रहते हैं। नारी–उत्पीड़न के किस्सों को सुनकर कठोर–से–कठोर व्यक्ति का हृदय भी पीड़ा और ग्लानि से भर जाता है।

समाज का यह कोढ़ निरन्तर विकृत रूप धारण करता जा रहा है। समय रहते इस भयानक रोग का निदान और उपचार आवश्यक है; अन्यथा समाज की नैतिक मान्यताएँ नष्ट हो जाएँगी और मानव–मूल्य समाप्त हो जाएंगे।

दहेज का अर्थ–सामान्यत: दहेज का तात्पर्य उन सम्पत्तियों तथा वस्तुओं से समझा जाता है, जिन्हें विवाह के समय वधू–पक्ष की ओर से वर–पक्ष को दिया जाता है। मूलतः इसमें स्वेच्छा का भाव निहित था, किन्तु आज दहेज का अर्थ इससे नितान्त भिन्न हो गया है।

अब इसका तात्पर्य उस सम्पत्ति अथवा मूल्यवान् वस्तुओं से है, जिन्हें विवाह की एक शर्त के रूप में कन्या–पक्ष द्वारा वर–पक्ष को विवाह से पूर्व अथवा बाद में देना पड़ता है। वास्तव में इसे दहेज की अपेक्षा वर–मूल्य कहना अधिक उपयुक्त होगा।

दहेज–प्रथा के प्रसार के कारण–दहेज–प्रथा के विस्तार के अनेक कारण हैं। इनमें से प्रमुख कारण हैं-

(क) धन के प्रति अधिक आकर्षण–आज का युग भौतिकवादी युग है। समाज में धन का महत्त्व बढ़ता जा रहा है। धन सामाजिक एवं पारिवारिक प्रतिष्ठा का आधार बन गया है। मनुष्य येन–केन–प्रकारेण धन के संग्रह में लगा हुआ है। वर–पक्ष ऐसे परिवार में ही सम्बन्ध स्थापित करना चाहता है, जो धन–सम्पन्न हो तथा जिससे अधिकाधिक धन प्राप्त हो सके।

(ख)जीवन–साथी चुनने का सीमित क्षेत्र–हमारा समाज अनेक जातियों तथा उपजातियों में विभाजित है। सामान्यतः प्रत्येक माँ–बाप अपनी लड़की का विवाह अपनी ही जाति या अपने से उच्चजाति के लड़के के साथ करना चाहता है। इन परिस्थितियों में उपयुक्त वर के मिलने में कठिनाई होती है; फलत: वर–पक्ष की ओर से दहेज की माँग आरम्भ हो जाती है।

(ग) बाल–विवाह–बाल–विवाह के कारण लड़के अथवा लड़की को अपना जीवन साथी चुनने का अवसर नहीं मिलता। विवाह–सम्बन्ध का पूर्ण अधिकार माता–पिता के हाथ में रहता है। ऐसी स्थिति में लड़के के माता–पिता अपने पुत्र के लिए अधिक दहेज की माँग करते हैं। .

(घ) शिक्षा और व्यक्तिगत प्रतिष्ठा–वर्तमान युग में शिक्षा बहुत महँगी है। इसके लिए पिता को कभी–कभी अपने पुत्र की शिक्षा पर अपनी सामर्थ्य से अधिक धन व्यय करना पड़ता है। इस धन की पूर्ति वह पुत्र के विवाह के अवसर पर दहेज प्राप्त करके करना चाहता है।

शिक्षित लड़के ऊँची नौकरियाँ प्राप्त करके समाज में प्रतिष्ठा प्राप्त करते हैं, परन्तु इनकी संख्या कम है और प्रत्येक बेटीवाला अपनी बेटी का विवाह उच्च नौकरी प्राप्त प्रतिष्ठित युवक के साथ ही करना चाहता है; अत: इस दृष्टि से भी वर के लिए दहेज की माँग निरन्तर बढ़ती जा रही है।

(ङ) विवाह की अनिवार्यता–हिन्दू–धर्म में एक विशेष अवस्था में कन्या का विवाह करना पुनीत कर्त्तव्य माना गया है तथा कन्या का विवाह न करना ‘महापातक’ कहा गया है। प्रत्येक समाज में कुछ लड़कियाँ कुरूप अथवा विकलांग होती हैं, जिनके लिए योग्य जीवन–साथी मिलना प्राय: कठिन होता है। ऐसी स्थिति में कन्या के माता–पिता वर–पक्ष को दहेज का लालच देकर अपने इस ‘पुनीत कर्त्तव्य’ का पालन करते हैं।

दहेज–प्रथा के दुष्परिणाम–दहेज प्रथा ने हमारे सम्पूर्ण समाज को पथभ्रष्ट तथा स्वार्थी बना दिया है। समाज में यह रोग इतने व्यापक रूप से फैल गया है कि कन्या के माता–पिता के रूप में जो लोग दहेज की बुराई करते हैं, वे ही अपने पुत्र के विवाह के अवसर पर मुंहमांगा दहेज प्राप्त करने के लिए लालायित रहते हैं। इससे समाज में अनेक विकृतियाँ उत्पन्न हो गई हैं तथा अनेक नवीन समस्याएँ विकराल रूप धारण करती जा रही हैं; यथा

(क) बेमेल विवाह–दहेज–प्रथा के कारण आर्थिक रूप से दुर्बल माता–पिता अपनी पुत्री के लिए उपयुक्त वर प्राप्त नहीं कर पाते और विवश होकर उन्हें अपनी पुत्री का विवाह ऐसे अयोग्य लड़के से करना पड़ता है, जिसके माता–पिता कम दहेज पर उसका विवाह करने को तैयार हों। दहेज न देने के कारण कई बार माता–पिता अपनी कम अवस्था की लड़कियों का विवाह अधिक अवस्था के पुरुषों से करने के लिए भी विवश हो जाते हैं।

(ख)ऋणग्रस्तता–दहेज–प्रथा के कारण वर–पक्ष की माँग को पूरा करने के लिए कई बार कन्या के पिता को ऋण भी लेना पड़ता है, परिणामस्वरूप अनेक परिवार आजन्म ऋण की चक्की में पिसते रहते हैं।

(ग) कन्याओं का दुःखद वैवाहिक जीवन–वर–पक्ष की माँग के अनुसार दहेज न देने अथवा दहेज में किसी प्रकार की कमी रह जाने के कारण ‘नव–वधू’ को ससुराल में अपमानित होना पड़ता है।

(घ) आत्महत्या–दहेज के अभाव में उपयुक्त वर न मिलने के कारण अपने माता–पिता को चिन्तामुक्त करने हेतु अनेक लड़कियाँ आत्महत्या भी कर लेती हैं। कभी–कभी ससुराल के लोगों के ताने सुनने एवं अपमानित होने पर विवाहित स्त्रियाँ भी अपने स्वाभिमान की रक्षा हेतु आत्महत्या कर लेती हैं।

(ङ) अविवाहिताओं की संख्या में वृद्धि–दहेज–प्रथा के कारण कई बार निर्धन परिवारों की लड़कियों को उपयुक्त वर नहीं मिल पाते। आर्थिक दृष्टि से दुर्बल परिवारों की जागरूक युवतियाँ गुणहीन तथा निम्नस्तरीय युवकों से विवाह करने की अपेक्षा अविवाहित रहना उचित समझती हैं, जिससे अनैतिक सम्बन्धों और यौन–कुण्ठाओं जैसी अनेक सामाजिक विकृतियों को बढ़ावा मिलता है।

समस्या का समाधान–दहेज–प्रथा समाज के लिए निश्चित ही एक अभिशाप है। कानून एवं समाज–सुधारकों ने दहेज से मुक्ति के अनेक उपाय सुझाए हैं। यहाँ पर उनके सम्बन्ध में संक्षेप में विचार किया जा रहा है-

(क) कानून द्वारा प्रतिबन्ध–अनेक व्यक्तियों का विचार था कि दहेज के लेन–देन पर कानून द्वारा प्रतिबन्ध लगा दिया जाना चाहिए। फलत: 9 मई, 1961 ई० को भारतीय संसद में ‘दहेज निरोधक अधिनियम’ स्वीकार कर लिया गया।

सन् 1986 ई० में इसमें संशोधन करके इसे और अधिक व्यापक तथा सशक्त बनाया गया। अब दहेज लेना और देना दोनों अपराध हैं। इसमें दहेज लेने और देनेवाले को 5 वर्ष की कैद और 1500 रुपये तक के जुर्माने की सजा दी जा सकती है। इस अधिनियम की धारा 44 के अन्तर्गत दहेज माँगनेवाले को 6 माह से 2 वर्ष तक की कैद तथा 15000 रुपये तक का जुर्माना किया जा सकता है।

दहेज उत्पीड़न एक गैर–जमानती अपराध होगा। यदि विवाहिता की मृत्यु किसी भी कारण से विवाह के सात वर्षों के भीतर हो जाती है तो दहेज में दिया गया सारा सामान विवाहिता के माता–पिता या उसके उत्तराधिकारी को मिल जाएगा।

यदि विवाह के सात वर्ष के भीतर विवाहिता की मृत्यु अप्राकृतिक कारण (आत्महत्या भी इसमें सम्मिलित है) से होती है तो ऐसी मृत्यु को हत्या की श्रेणी में रखकर आरोपियों के विरुद्ध हत्या का मुकदमा चलाया जाएगा, जिसमें उन्हें सात साल से लेकर उम्रकैद तक की सजा हो सकती है।

(ख) अन्तर्जातीय विवाहों को प्रोत्साहन–अन्तर्जातीय विवाहों को प्रोत्साहन देने से वर का चुनाव करने के क्षेत्र में विस्तार होगा तथा युवतियों के लिए योग्य वर खोजने में सुविधा होगी। इससे दहेज की माँग में भी कमी आएगी।

(ग) युवकों को स्वावलम्बी बनाया जाए–स्वावलम्बी होने पर युवक अपनी इच्छा से लड़की का चयन कर सकेंगे। दहेज की माँग अधिकतर युवकों की ओर से न होकर उनके माता–पिता की ओर से होती है। स्वावलम्बी युवकों पर माता–पिता का दबाव कम होने पर दहेज के लेन–देन में स्वत: कमी आएगी।

(घ) लड़कियों की शिक्षा–जब युवतियाँ भी शिक्षित होकर स्वावलम्बी बनेंगी तो वे अपना जीवन–निर्वाह करने में समर्थ हो सकेंगी। दहेज की अपेक्षा आजीवन उनके द्वारा कमाया गया धन कहीं अधिक होगा। इस प्रकार की युवतियों की दृष्टि में विवाह एक विवशता के रूप में भी नहीं होगा, जिसका वर–पक्ष प्रायः अनुचित लाभ उठाता है।

(ङ) जीवन–साथी चुनने का अधिकार–प्रबुद्ध युवक–युवतियों को अपना जीवन–साथी चुनने के लिए अधिक छूट मिलनी चाहिए। शिक्षा के प्रसार के साथ–साथ युवक–युवतियों में इस प्रकार का वैचारिक परिवर्तन सम्भव है। इस परिवर्तन के फलस्वरूप विवाह से पूर्व एक–दूसरे के विचारों से अवगत होने का पूर्ण अवसर प्राप्त हो सकेगा।

उपसंहार–
दहेज–प्रथा एक सामाजिक बुराई है; अतः इसके विरुद्ध स्वस्थ जनमत का निर्माण करना चाहिए। जब तक समाज में जागृति नहीं होगी, दहेजरूपी दैत्य से मुक्ति पाना कठिन है। राजनेताओं, समाज–सुधारकों तथा युवक–युवतियों आदि सभी के सहयोग से ही दहेज–प्रथा का अन्त हो सकता है।

गरीबी पर निबंध – Poverty Essay in Hindi

Poverty Essay in Hindi

गरीबी पर बड़े तथा छोटे निबंध (Essay on Poverty in Hindi)

गरीबी : कारण और निवारण – Poverty: Causes and Prevention

रूपरेखा :

  1. प्रस्तावना,
  2. गरीबी की रेखा,
  3. गरीबी के कारण,
  4. गरीबी का परिणाम : क्रान्ति और अपराध,
  5. गरीबी को रोकने के उपाय,
  6. उपसंहार।

साथ ही, कक्षा 1 से 10 तक के छात्र उदाहरणों के साथ इस पृष्ठ से विभिन्न हिंदी निबंध विषय पा सकते हैं।

प्रस्तावना–

“श्वानों को मिलता दूध–वस्त्र, भूखे बालक अकुलाते हैं,
माँ की हड्डी से चिपक, ठिठुर जाड़ों की रात बिताते हैं।
युवती के लज्जा–वसन बेच जब ब्याज चुकाये जाते हैं।
मालिक जब तेल–फुलेलों पर पानी–सा द्रव्य बहाते हैं।
पापी महलों का अहंकार देता मुझको तब आमन्त्रण।”

राष्ट्रकवि रामधारी सिंह ‘दिनकर’ की उपर्युक्त पंक्तियाँ गरीबी की पराकाष्ठा को व्याख्यायित करती हैं। आर्थिक असमानता न केवल गरीबी का अभिशप्त जीवन बिताने को विवश करती है, क्रान्ति और अपराध को जन्म देती है। गरीबी एक ऐसी विषम मानवीय परिस्थिति है, जो मानव को निराशा, दुःख और दर्द के अँधेरे में जीवन बिताने को विवश करती है।

एक ऐसा अभिशप्त जीवन जिसमें लोग जीवन की आधारभूत आवश्यकताओं–रोटी, कपड़ा और मकान के लिए तरसते हैं। स्वस्थ पोषण, दवा और रोजगार तो उनके लिए सपना है। गरीबी एक ऐसी अदृश्य समस्या है, जो एक व्यक्ति और उसके सामाजिक जीवन को छिन्न–भिन्न कर देती है। यह समस्या भारत के लिए अभिशाप बन चुकी है।

गरीबी की रेखा–
भारत में शहरों में रहनेवाले जनजातीय लोग, दलित और मजदूर–वर्ग और खेतिहर मजदूर गरीबी की श्रेणी में आते हैं। वर्तमान में 29.8 प्रतिशत भारतीय आबादी गरीबी रेखा के नीचे रहती है।

गरीबी की श्रेणी में वह लोग आते हैं, जिनकी दैनिक आय शहर में 28.65 रुपये और गाँवों में 22.24 रुपये से कम है। सांख्यिके आँकड़ों के अनुसार 30 रुपये प्रतिदिन कमाने वाला व्यक्ति गरीब नहीं है। इस प्रकार के आँकड़ों द्वारा गरीबी कम की जा रही है, जो दुश्चिन्ता का विषय है।

गरीबी के कारण भारत में गरीबी का मुख्य कारण बढ़ती जनसंख्या है। इससे निरक्षरता, खराब स्वास्थ्य और वित्तीय संसाधनों की कमी की दर बढ़ती है। भारत में जिस गति से जनसंख्या बढ़ रही है, उस गति से अर्थव्यवस्था नहीं बढ़ रही है। इसका परिणाम नौकरियों में कमी के रूप में सामने होगा। इतनी आबादी के लिए लगभग 20 मिलियन नई नौकरियाँ चाहिए।

यदि ऐसा नहीं होता तो गरीबी के साथ अपराध और विद्रोह भी बढ़ेगा। आय के संसाधन का असमान वितरण भी गरीबी को बढ़ाता है। सरकारी संस्थानों में एक व्यक्ति कम समय–श्रम लगाकर अधिक धन अर्जित करता है, वही कार्य व्यक्तिगत संस्थानों में अधिक समय–श्रम लगाकर भी व्यक्ति अत्यन्त अल्प धन पाता है। यह असमानता भी गरीबी के साथ–साथ अपराध और कुण्ठा को जन्म देती है।

भारत में गरीबी का कारण जाति व्यवस्था भी है। मध्य प्रदेश के चम्बल और विन्ध्य क्षेत्र ऐसे हैं, जहाँ सामाजिक भेदभाव अपने चरम पर है। यहाँ ऊँची और निम्न जातियों के प्रति भिन्न व्यवहार किया जाता है। उन्हें समानता के अधिकार से वंचित किया जाता है, जिसके कारण वह गरीबी की दलदल से कभी बाहर नहीं निकल पाते। कृषि–व्यवस्था में असमानता भी गरीबी को बढ़ावा देती है।

भूमि पर बड़े एवं समृद्ध किसानों का अधिकार होने से भूमि की संख्या बढ़ती जा रही है। खेतिहर मजदूरों के परिवार, काफी संख्या में छोटे व सीमान्त किसान, गैर–कृषि क्षेत्रों में काम करनेवाले श्रमिक अत्यन्त गरीबी में जीवनयापन करते हैं। भ्रष्टाचार भी गरीबी बढ़ाने में अहम भूमिका निभाता है। पिछले 20–25 वर्षों में देश में हुए भ्रष्टाचार और करोड़ों रुपयों के घोटालों ने गरीबों को और गरीब बना दिया है।

बढ़ते पूँजीवाद के कारण नव उदारवादी नीतियों तथा खुदरा क्षेत्रों में विदेशी निवेश की नीतियाँ गरीबों के लिए अहितकर सिद्ध हुई हैं। नेताओं व अधिकारियों के बढ़ते वेतन और सुविधाएँ तथा उनके द्वारा एकत्र अरबों–खरबों की सम्पत्ति अमीर और गरीब के बीच की खाई को प्रतिदिन गहरा करती जा रही है।

गरीबी का परिणाम :
क्रान्ति और अपराध–गरीबी के अभिशाप से ग्रस्त भारत के करोड़ों लोग आज विभिन्न प्रकार के संकटों और शोषण से जूझ रहे हैं। व्यवस्था का कहर भी अधिकतर गरीबों पर ही मुसीबत बनकर टूटती है। पुलिस की प्रताड़ना भी सबसे अधिक गरीबों को सहनी पड़ती है, जिसके कारण गरीब अपराध की ओर अग्रसर होते हैं। आज समाज में अपराधों की बाढ़–सी आ गई है। इसका कारण आर्थिक असमानता ही है।

विकास के साथ–साथ बेरोजगारी और गरीबी की वास्तविकता आज भारतीय अर्थव्यवस्था पर प्रश्न चिह्न लगाती अनुभव होती है। गरीबी के कारण हिंसा और शोषण जैसी घटनाओं में वृद्धि हुई है। राजनीति स्वार्थ के लिए साम्प्रदायिक दंगों की आग भड़काई जाती है, जिसका शिकार गरीब ही बनते हैं, बस्तियाँ भी गरीबों की जलती हैं, फुटपाथ पर रहनेवाले लोग मारे जाते हैं।

कहीं कोई संवेदना नहीं जागती। यह उपेक्षा का भाव गरीबों को कहीं–न–कहीं आहत करता है और परिणाम अपराध के रूप में सामने आता है। गरीबी के कारण देश का नौनिहाल जब कुपोषण और भुखमरी का शिकार होगा, युवा आर्थिक असमानता के कारण कुंठित होगा, किसान आत्महत्या की दिशा में अग्रसर होगा, तो नए भारत का सपना साकार नहीं होगा। देश का युवा नक्सलवाद, आतंकवाद की ओर बढ़ेगा, सड़कों पर आन्दोलन करेगा और उसका सारा जोश पेट भरने के जुगाड़ में बह जाएगा।

गरीबी को रोकने के उपाय–देश में बढ़ती गरीबी को देखते हुए हम सबको मिलकर प्रयास करना होगा और देश को गरीबी के अभिशाप से मुक्त कराना होगा। इसमें सरकार की सहभागिता भी अनिवार्य है।

निम्नलिखित उपायों द्वारा गरीबी के अभिशाप को रोका जा सकता है-

  • गरीबों के लिए पर्याप्त भूमि, जल, शिक्षा, स्वास्थ्य, ईंधन और परिवहन की सुविधा का विस्तार किया जाना चाहिए।
  • स्वरोजगार व मजदूरी रोजगार कार्यक्रमों में समन्वय किया जाए।
  • ऐसे परिवार जिनके पास न कोई कौशल है, न कोई परिसम्पत्ति है और न कोई काम करनेवाला वयस्क है,
  • ऐसे परिवारों के लिए सामाजिक योजनाएँ बनाई जाएँ तथा उन्हें सुरक्षा दी जाए।
  • गाँवों में बड़े किसानों और सामन्तों द्वारा गरीबों के शोषण को रोका जाए।
  • गरीबी निवारण कार्यक्रमों का अधिकतर लाभ अमीरों के बदले गरीबों को ही मिले।
  • ल गरीबों के दो वर्ग बनाए जाएँ। एक वर्ग में वे गरीब हों, जिनके पास कोई कौशल है और वे स्वरोजगार कर सकते हैं।
  • दूसरे वर्ग में वे गरीब हों, जिनके पास कोई कौशल नहीं है और वे मजदूरी पर आश्रित हैं,
  • उनकी उन्नति के लिए नीतियों का अलग–अलग निर्धारण किया जाए।
  • लघु उद्योगों को बढ़ावा दिया जाए।
  • गरीबी निवारण कार्यक्रमों की प्रतिवर्ष समीक्षा व मूल्यांकन किया जाए तथा साधनों के निजी स्वामित्व,
  • आय व साधनों के असमान वितरण व प्रयोगों पर नियन्त्रण किया जाए।

सरकार द्वारा गरीबी–निवारण हेतु अनेक कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं तथा अरबों रुपये इनके क्रियान्वयन में लग रहे हैं, तब भी इनका पूरा लाभ गरीबों को नहीं मिल पा रहा है। ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन, राष्ट्रीय सामाजिक सहायता योजना, शिक्षा सहयोग योजना, अन्त्योदय अन्न योजना, बालिका संरक्षण योजना, सामूहिक जीवन बीमा योजना, प्रधानमन्त्री ग्रामोदय योजना, विजन 2020 फॉर इण्डिया आदि अनेक सैकड़ों योजनाएँ सरकार द्वारा चलाई जा रही हैं। आवश्यकता है कि सबका लाभ गरीबों को ही मिले तो गरीबी के अभिशाप से निकला जा सकता है।

उपसंहार–
वर्तमान सन्दर्भो में गरीबी को ठीक प्रकार से आँकना भी एक चुनौती ही है। आज प्रत्येक मुद्दे को तकनीक के आधार पर समझा जा रहा है।

औद्योगिकीकरण आज का प्रथम लक्ष्य बन चुका है, किसी गरीब के पास आँखें हों न हों, पर घर में रंगीन टी०वी० जरूर उपलब्ध हो। प्रत्येक वर्ष नए आँकड़े और सूचीबद्ध लक्ष्य रखे जाते हैं, व्यवस्था में प्रत्येक वस्तु को, प्रत्येक अवस्था को आँकड़ों में मापा जाता है, प्रत्येक आवश्यकता को प्रतिशत में पूरा किया जाता है और इसी आधार पर गरीबी को भी मापने का प्रयास किया जाता है।

ऐसा नहीं है कि गरीबी को मिटाया नहीं जा सकता लेकिन स्वार्थपरता इस अभियान में व्यवधान डालती है। व्यवस्था इस बात को सदैव अहम मानकर मुद्दा बनाती आई है। यही सोच गरीबी को अभिशाप बनाए रखने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती आ रही है, लेकिन इस सोच को रखनेवाले यह नहीं जानते कि कहीं–न–कहीं वे भी इस समस्या से प्रभावित होते हैं।

प्रसिद्ध अर्थशास्त्री अमर्त्य सेन के अनुसार–
“लोगों को इतना गरीब नहीं होने देना चाहिए कि उनसे घिन आने लगे, या वे समाज को नुकसान पहुँचाने लगे। इस नजरिए में गरीबों के कष्ट और दुःखों का नहीं, बल्कि समाज की असुविधाओं और लागतों का महत्त्व अधिक प्रतीत होता है।

गरीबी की समस्या उसी सीमा तक चिन्तनीय है, जहाँ तक उसके कारण, जो गरीब नहीं हो, उन्हें भी समस्याएँ भुगतनी पड़ती है।” यह कथन गरीबी के अभिशाप के कारण क्रान्ति और अपराध की वृद्धि की ओर संकेत करता है, जिसे समय रहते हमें रोकना होगा, जिससे स्वस्थ समाज की स्थापना हो सके।

विश्व में अत्यधिक जनसंख्या पर निबंध – Overpopulation in World Essay in Hindi

Overpopulation in World Essay in Hindi

विश्व में अत्यधिक जनसंख्या पर छोटे-बड़े निबंध (Essay on Overpopulation in World in Hindi)

जनसंख्या विस्फोट : कारण और निवारण – अन्य सम्बन्धित शीर्षक– जनसंख्या नियन्त्रण।। (Population Explosion: Causes And Prevention – Other Related Titles – Population Control)

रूपरेखा–

  • प्रस्तावना (जनसंख्या विस्फोट)
  • भारत में जनसंख्या विस्फोट की वर्तमान स्थिति,
  • जनसंख्या विस्फोट/वृद्धि के कारण,
  • जनसंख्या वृद्धि के परिणाम,
  • जनसंख्या वृद्धि नियन्त्रण/निवारण के उपाय,
  • उपसंहार।

साथ ही, कक्षा 1 से 10 तक के छात्र उदाहरणों के साथ इस पृष्ठ से विभिन्न हिंदी निबंध विषय पा सकते हैं।

प्रस्तावना (जनसंख्या विस्फोट)–
भारत प्राकृतिक वैभव सम्पन्न देश है। यहाँ की शस्यश्यामला धरती हर एक को अपनी ओर आकर्षित करती है। देश की स्वतन्त्रता और विभाजन के पश्चात् सन् 1951 में हुई प्रथम जनगणना में हमारी जनसंख्या 36,10,88,400 थी, जो आज बढ़कर 121 करोड़ (2011 की जनगणना के अनुसार) से भी अधिक हो चुकी है। जनसंख्या के इस तीव्र गति से बढ़ने को ही जनसंख्या विस्फोट कहा जाता है। वर्तमान में भारत की बढ़ती जनसंख्या चिन्ता का विषय बनी हुई है।

भारत में जनसंख्या विस्फोट की वर्तमान स्थिति–
आज जनसंख्या की दृष्टि से भारत का विश्व में दूसरा स्थान है। आधुनिक भारत में जिस तीव्रता के साथ जनसंख्या में वृद्धि हो रही है, आनेवाले समय में यह और भी विस्फोटक हो जाएगी। अनुमान है कि सन् 2026 ई० तक भारत की जनसंख्या बढ़कर लगभग 1.5 अरब हो जाएगी, वर्ष 2030 तक 1.53 तथा वर्ष 2060 तक यह 1.7 अरब हो जाएगी। यह जनसंख्या वृद्धि किसी विस्फोट से कम नहीं है। इसने देश के कर्णधारों को चिन्ता में डाल दिया है। आज जनसंख्या के स्तर पर भारत विश्व में दूसरे स्थान पर आता है, परन्तु सन् 2030 ई० तक इसके चीन को पछाड़कर प्रथम स्थान पर पहुँच जाने की सम्भावना है।

जनसंख्या विस्फोट/वृद्धि के कारण भारत में आज भी बच्चों का जन्म ईश्वर की देन माना जाता है। समाज का पढ़ा–लिखा वर्ग भी इस तथ्य को स्वीकारने के लिए तैयार नहीं होता कि जनसंख्या वृद्धि को हमारे द्वारा रोका जा सकता है। ग्रामीण क्षेत्रों में तो लोगों का यह तर्क होता है कि जितने हाथ होंगे, उतना ही काम भी बढ़ेगा, लेकिन वह इस तथ्य को भूल जाते हैं कि दो हाथ के साथ एक पेट भी बढ़ेगा, जिसकी अपनी आवश्यकताएँ होंगी। अन्धविश्वास और अशिक्षा के अतिरिक्त जनसंख्या वृद्धि के अन्य विशेष कारण भी हैं; जैसे—बाल–विवाह, बहुविवाह, दरिद्रता, मनोरंजन के साधनों का अभाव, गर्म जलवायु, रूढ़िवादिता, ग्रामीण क्षेत्रों में सन्तति–निरोध की सुविधाओं का कम प्रचार होना, परिवार नियोजन के नवीनतम साधनों की अनभिज्ञता एवं वंशवृद्धि के लिए पुत्र की अनिवार्यता आदि।

जनसंख्या वृद्धि अथवा विस्फोट के परिणाम–
भारत की वर्तमान आर्थिक, सामाजिक एवं राजनैतिक समस्याओं का मुख्य कारण बढ़ती हुई जनसंख्या है। ‘ऋग्वेद’ में कहा गया है—“जहाँ प्रजा का आधिक्य होगा, वहाँ निश्चय ही दुःख एवं कष्ट की मात्रा अधिक होगी।” यही कारण है कि आज भारत में सर्वत्र अशिक्षा, गरीबी, बेरोजगारी, भुखमरी, निम्न जीवन–स्तर, सामाजिक कलह, अस्वस्थता एवं खाद्यान्न–संकट आदि अनेकानेक समस्याएँ निरन्तर बढ़ रही हैं। निश्चय ही जनसंख्या का यह विस्फोट भारत के लिए अभिशाप है। यदि यह वृद्धि इसी गति से होती रही तो पाँच–सौ वर्ष पश्चात् मनुष्यों को पृथ्वी पर खड़े होने की जगह भी नहीं मिल पाएगी। इसी बात को प्रसिद्ध हास्कवि काका हाथरसी ने अपनी विनोदपूर्ण शैली में इस प्रकार लिखा है-

यदि यही रहा क्रम बच्चों के उत्पादन का,
तो कुछ सवाल आगे आएँगे बड़े–बड़े।
सोने को किंचित् जगह धरा पर मिले नहीं,
मजबूरन हम तुम सब सोएँगे खड़े–खड़े।

हमारे देशवासी जनसंख्या की वृद्धि से होनेवाली हानियों के प्रति आज भी लापरवाह हैं। निश्चित ही जनसंख्या की वृद्धि का यदि यही क्रम रहा तो मानव–जीवन अत्यधिक संघर्षपूर्ण एवं अशान्त हो जाएगा।

भूतपूर्व प्रधानमन्त्री श्रीमती इन्दिरा गांधी ने जनसंख्या विस्फोट से होनेवाली हानि पर अपने विचार प्रकट करते हुए कहा था—“जनसंख्या के तीव्रगति से बढ़ते रहने पर योजनाबद्ध विकास करना, बहुत–कुछ ऐसी भूमि पर मकान खड़ा करने के समान है, जिसे बाढ़ का पानी बराबर बहाए ले जा रहा है।”

जनसंख्या आज अति संवेदनशील मुद्दा बन चुका है। निरन्तर जनसंख्या–वृद्धि से मानव की आवश्यकताओं और संसाधनों की पूर्ति करना असम्भव होता जा रहा है। निरन्तर जीवन–मूल्यों में गिरावट आती जा रही है। अमीर और अमीर तथा गरीब और गरीब होते जा रहे हैं। अमीर–गरीब के बीच की खाई बढ़ती जा रही है। पर्यावरण विषाक्त होने में एक मुख्य कारण जनसंख्या विस्फोट भी है। इसलिए जनसंख्या वृद्धि को नियन्त्रित करना अत्यन्त आवश्यक हो गया है।

जनसंख्या वृद्धि नियन्त्रण/निवारण के उपाय–जनसंख्या विस्फोट को रोकने के लिए भारत सरकार पूर्णतया गम्भीर है तथा अनेक प्रभावी कार्यक्रम चला रही है। यह कार्य अनेक सरकारी संस्थाओं, स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग तथा सामाजिक कार्यकर्ताओं द्वारा किया जा रहा है। परिवार कल्याण कार्यक्रमों तथा संचार माध्यमों द्वारा लोगों को जनसंख्या वृद्धि के प्रति सचेत किया जा रहा है। प्रतिवर्ष 11 जुलाई को ‘विश्व जनसंख्या दिवस’ मनाया जाता है, जो जनसंख्या को नियन्त्रित रखने के लिए लोगों को शिक्षित और जागरूक करने के उद्देश्य से मनाया जाता है।

जनसंख्या–विस्फोट रोकने के कुछ उपाय निम्नलिखित हैं–––

  1. दो बच्चों के मापदण्डों को अपनाना।
  2. लड़के–लड़कियों को देर से विवाह के लिए प्रोत्साहित करना।
  3. परिवार नियोजन कार्यक्रमों एवं साधनों का व्यापक प्रचार–प्रसार करना व अपनाना।
  4. अधिक बच्चों को जन्म देनेवाले माता–पिता को हतोत्साहित करना तथा उन्हें विभिन्न शासकीय सुविधाओं से वंचित रखने का प्रावधान करना, चाहे वह किसी भी वर्ग–जाति के क्यों न हों।
  5. बाल–विवाह एवं बहुविवाह जैसी कुप्रथाओं पर रोक लगाना इसके अतिरिक्त स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण सम्बन्धी योजनाओं के क्रियान्वयन के लिए प्रधानमन्त्री की अध्यक्षता में एक राष्ट्रीय जनसंख्या आयोग नियुक्त करने का भी प्रावधान है, जिससे जनसंख्या–विस्फोट पर रोक लगाई जा सकेगी।
  6. आज यह सन्तोष का विषय है कि भारत सरकार इस दिशा में पर्याप्त सकारात्मक कदम उठा रही है।

उपसंहार–
आज भारतवर्ष में जनसंख्या–विस्फोट को रोकने के लिए नित्य नए अभियान चलाए जा रहे हैं बाल–विवाह जैसी कुप्रथा अब लगभग समाप्त हो गई है। चिकित्सा–क्षेत्र में नवीन पद्धतियाँ आ गई हैं, जनता गर्भ–निरोध के साधनों के प्रति जागरूक व भयरहित हुई है।

यदि भारतवासी समझदारी से काम लेकर जनसंख्या वृद्धि रोकने में सहायक रहे और सरकार इस विषय में प्रयत्नशील रहे तो निश्चित ही एक दिन जनसंख्या–विस्फोट को रोका जा सकेगा तथा हमारा देश पुनः वैभव सम्पन्न और शस्य–श्यामलावाली अनुभूति से युक्त होगा।