मेट्रो रेल पर निबंध – Metro Rail Essay In Hindi

Metro Rail Essay In Hindi

मेट्रो रेल पर निबंध – Essay On Metro Rail In Hindi

मेट्रो का नाम हमारे लिए काल्पनिक था। मेट्रो रेल की तरह है। दिल्ली में इसे साकार रूप देने के लिए कार्य सुचारु रूप से गति से होने लगा। स्तंभ खड़े होने लगे। जैसे-जैसे स्तंभ खड़े होते गए, स्तंभों के ऊपर पटरी टाँग दी गई। देखते ही देखते ऊपर ही स्टेशन बनने लगे।

साथ ही, कक्षा 1 से 10 तक के छात्र उदाहरणों के साथ इस पृष्ठ से विभिन्न हिंदी निबंध विषय पा सकते हैं।

इस तरह स्तंभ, स्तंभों के ऊपर पटरी, स्टेशन, मेट्रो खड़ी हो गई। जनता के लिए सब कुछ आश्चर्य। लोगों को लगने लगा कि दिल्ली की बढ़ती हुई जनसंख्या के कारण यातायात की व्यवस्था चरमरा रही थी, वह व्यवस्थित हो जाएगी।

दिल्ली की जनसंख्या अप्रत्याशित रूप से बढ़ रही है, उसके अनुरूप वाहनों की संख्या में अप्रत्याशित वृद्धि हो रही है, जिसके कारण वाहनों की गति 10-15 कि. मी. प्रतिघंटा तक सिमट गई है? मेट्रो स्टेशनों की सुव्यवस्था को भी देखकर यात्री हतप्रभ होते हुए सुखद आश्चर्य का अनुभव करते हुए यात्रा करता है। यात्री टिकट लेकर सीढ़ियों से ऊपर पहुँचा नहीं कि मेट्रो आ गई। मेट्रो से प्रतीक्षा की तड़प भी समाप्त हो गई। बस यात्रा में जहाँ घंटों का समय लगता था, भीड़ और धक्का-मुक्की में श्वांस ऊपर को आती थी और भी अनेक परेशानियाँ थीं, उन सबसे छुटकारा मिल गया।

जिस दिन मेट्रो की गाड़ी को हरी झंडी दिखाई गई, उस दिन मेट्रो में यात्रा के लिए मुफ्त प्रबंध किया गया था। आश्चर्यजनित इच्छा के बिना किसी गंतव्य स्थान के मेट्रो की यात्रा का आनंद लेने के लिए भीड़ उमड़ पड़ी और बहुत से लोग उस दिन यात्रा का आनंद लेकर वापस हो गए थे। मैंने भी मेट्रो-स्टेशन, ‘जहाँ प्रवेश पाने से लेकर, निकलने तक सभी को स्वचालित दरवाजों का सामना करना पड़ता है’ मन में अनपेक्षित भय लिए यात्रा की।

स्टेशन का शांत वातावरण, एकदम चमकता हुआ साफ़-सुथरा, सजा हुआ देखकर आश्चर्य से दाँतों तले अँगुली दबा कर रह गया। टोकन लेकर मैं आगे बढ़ा। छोटे से गेट पर बने विशेष स्थान पर जैसे ही टोकन रखा, तभी खटाक से प्रवेश द्वार खुला और मैं स्वचालित सीढ़ियों से जा चढ़ा। ऊपर के सौंदर्य को जी भरकर देख भी न पाया था तब तक तो मेट्रो आ गई। मेट्रो-रुकी, माइक से सूचना मिल रही थी, यात्रियों को सावधान किया जा रहा था।

मेट्रो का दरवाजा खुला और सभी यात्रियों को चढ़ता देख मैं भी चढ़ गया। स्वयमेव ही मेट्रो का दरवाजा बंद हुआ। मेट्रो के अंदर भी प्रत्येक स्टेशन की और सावधानियाँ बरतने की सूचना मिल रही थी, साथ ही सूचनाओं, स्टेशनों की स्वचालित लिखित सूचनाएँ हिंदी-अंग्रेज़ी में मिल रही थीं।

विश्व की सुप्रसिद्ध आधुनिक यातायात की सेवा में मेट्रो ने जो पहचान बनाई है, वह पूर्व में अप्रत्याशित ही थी, मात्र कल्पना थी, किंतु वह आज साकार रूप में है। ऐसी यात्रा के बारे में जापान, सिंगापुर देशों में सुनते थे तो परियों की कहानी जैसा लगता था। आज यह अपने देश की राजधानी महानगरी दिल्ली में सभी प्रकार की सुविधाओं से संपन्न दिल्ली में दिखाई दे रही है। भूमिगत है। तो कहीं आकाश में चलती दिखाई देती है।

यात्रियों की सुविधाओं के लिए सभी व्यवस्थाएँ हैं, भूमिगत स्टेशनों को पूर्णत: वातानुकूलित बनाया गया है। ऐसी सुविधा संपन्न मेट्रो के लिए दिल्ली सरकार और केंद्रीय सरकार ने संयुक्त रूप से संबंधित संस्था में सन 1995 में पंजीकरण करवाया और 1996 में 62.5 कि.मी. दूरी के लिए मेट्रो परियोजना को स्वीकृति मिल गई । दिसंबर, 2002 में परियोजना को साकार रूप मिल गया।

24 दिसंबर, 2002 को प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी ने हरी झंडी दिखाई और मेट्रो चल पड़ी। आज मेट्रो की उपयोगिता और सफलता को देखकर इस परियोजना ने पैर पसारना शुरू कर दिया है। कई रूट बने और शुरू हो गए। हैं और नए-नए रूटों पर प्रगति से कार्य चल रहा है। अब तो दिल्ली महानगर के समीप बसे नगरों को छू लिया है। प्रांतीय सीमाओं का भेद मिट गया है।

अब यह मेट्रो नोएडा में निसंकोच प्रवेश कर गई है। इतना ही नहीं, मेट्रो के अस्तित्व को देखते हुए अन्य नगरों से भी इसके लिए माँगे उठने लगी है।

मेट्रो ने अपनी अलग पहचान अपना अलग अस्तित्व बनाया है। इसके अस्तित्व को बनाए रखने के लिए बहुत से प्रबंध किए गए हैं। सामान्य जगहों की तरह मेट्रो में अभद्रता देखने को मिलती है। अभद्रता करने वालों के लिए दंड व्यवस्था भी की गई है। यह राष्ट्रीय संपत्ति सचमुच में अपनी संपत्ति प्रतीत होती है। इसके सौंदर्य को बनाए रखने के लिए यात्रियों के लिए निर्देश प्रसारित किए जाते हैं। इस तरह मेट्रो की यात्रा सुखद यात्रा है।

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मनोरंजन के आधुनिक साधन पर निबंध – Means Of Entertainment Essay In Hindi

Means Of Entertainment Essay In Hindi

मनोरंजन के आधुनिक साधन पर निबंध – Essay On Means Of Entertainment In Hindi

संकेत बिंदु –

  • प्रस्तावना
  • मनोरंजन की आवश्यकता और उसका महत्त्व
  • प्राचीन काल के मनोरंजन के साधन
  • आधुनिक काल के मनोरंजन के साधन
  • भारत में मनोरंजन के साधनों की स्थिति
  • उपसंहार

साथ ही, कक्षा 1 से 10 तक के छात्र उदाहरणों के साथ इस पृष्ठ से विभिन्न हिंदी निबंध विषय पा सकते हैं।

प्रस्तावना – मनुष्य को अपनी अनेक तरह की आवश्यकताओं के लिए श्रम करना पड़ता है। श्रम के उपरांत थकान होना स्वाभाविक है। इसके अलावा जीवन संघर्ष और चिंताओं से परेशान होने पर वह इन्हें भूलना चाहता है और इनसे मुक्ति पाने का उपाय खोजता है और वह मनोरंजन का सहारा लेता है। मनोरंज से थके हुए मन-मस्तिष्क को सहारा मिलता है, एक नई स्फूर्ति मिलती है और कुछ पल के लिए व्यक्ति थकान एवं चिंता को भूल जाता है।

Means Of Entertainment Essay In Hindi

मनोरंजन की आवश्यकता और उसका महत्त्व – आदिम काल से ही मनुष्य को मनोरंजन की आवश्यकता रही है। जीवन संघर्ष से थका मानव ऐसा साधन ढूँढ़ना चाहता है जिससे उसका तन-मन दोनों ही प्रफुल्लित हो जाए और वह नव स्फूर्ति से भरकर कार्य में लग सके। वास्तव में मनोरंजन के बिना जीवन नीरस हो जाता है। ऐसी स्थिति में काम में उसका मन नहीं लगता है और न व्यक्ति को कार्य में वांछित सफलता मिलती है। ऐसे में मनोरंजन की आवश्यकता असंदिग्ध हो जाती है।

Essay On Means Of Entertainment In Hindi

प्राचीन काल में मनोरंजन के साधन – प्राचीनकाल में न मनुष्य का इतना विकास हुआ था और न मनोरंजन के साधनों का। वह प्रकृति और जानवरों के अधिक निकट रहता था। ऐसे में उसके मनोरंजन के साधन भी प्रकृति और इन्हीं पालतू जानवरों के इर्द-गिर्द हुआ करते थे। वह तोता, मैना, तीतर, कुत्ता, भेड़, बैल, बिल्ली, कबूतर आदि पशु-पक्षी पालता था और तीतर, मुर्गे, भेड़ (नर) भैंसे, साँड़ आदि को लड़ाकर अपना मनोरंजन किया करता था। वह शिकार करके भी मनोरंजन किया करता था। इसके अलावा कुश्ती लड़कर, नाटक, नौटंकी, सर्कस आदि के माध्यम से मनोरंजन करता था। इसके अलावा पर्व-त्योहार तथा अन्य आयोजनों के मौके पर वह गाने-बजाने तथा नाचने के द्वारा आनंदित होता था।

आधुनिक काल के मनोरंजन के साधन – सभ्यता के विकास एवं विज्ञान की अद्भुत खोजों के कारण मनोरंजन का क्षेत्र भी अछूता न रह सका। प्राचीन काल की नौटंकी, नाच-गान की अन्य विधाओं का उत्कृष्ट रूप हमारे सामने आया। इससे नाटक के मंचन की व्यवस्था एवं प्रस्तुति में बदलाव के कारण नाटकों का आकर्षण बढ़ गया। पार्श्वगायन के कारण अब नाटक भी अपना मौलिक रूप कायम नहीं रख सके पर दर्शकों को आकर्षित करने में नाटक सफल हैं। लोग थियेटरों में इनसे भरपूर मनोरंजन करते हैं। सिनेमा आधुनिक काल का सर्वाधिक सशक्त और लोकप्रिय मनोरंजन का साधन है। यह हर आयु-वर्ग के लोगों की पहली पसंद है। यह सस्ता और सर्वसुलभ होने के अलावा ऐसा साधन है जो काल्पनिक घटनाओं को वास्तविक रूप में चमत्कारिक ढंग से प्रस्तुत करता है जिसका जादू-सा असर हमारे मन-मस्तिष्क पर छा जाता है और हम एक अलग दुनिया में खो जाते हैं। इस पर दिखाई जाने वाली फ़िल्में हमें कल्पनालोक में ले जाती हैं।

रेडियो और टेलीविज़न भी वर्तमान युग के मनोरंजन के लोकप्रिय साधन है। रेडियो पर गीत-संगीत, कहानी, चुटकुले, वार्ता आदि सनकर लोग अपना मनोरंजन करते हैं तो टेलीविज़न पर दुनिया को किसी कोने की घटनाएँ एवं ताज़े समाचार मनोरंजन के अलावा ज्ञानवर्धन भी करते हैं। तरह-तरह के धारावाहिक, फ़िल्में, कार्टून, खेल आदि देखकर लोग अपने दिनभर की थकान भूल जाते हैं। मोबाइल फ़ोन भी मनोरंजन का लोकप्रिय साधन सिद्ध हुआ है। इस पर एफ०एम० के विभिन्न चैनलों से तथा मेमोरी कार्ड में संचित गाने इच्छानुसार सुने जा सकते हैं। अकेला होते ही लोग इस पर गेम खेलना शुरू कर देते हैं। कैमरे के प्रयोग से मोबाइल की दुनिया में क्रांति आ गई। अब तो इससे रिकार्डिंग एवं फ़ोटोग्राफी करके मनोरंजन किया जाने लगा है।

इन साधनों के अलावा म्यूजिक प्लेयर्स, टेबलेट, कंप्यूटर भी मनोरंजन के साधन के रूप में प्रयोग किए जा रहे हैं।

भारत में मनोरंजन के साधनों की स्थिति – मनुष्य की बढ़ती आवश्यकता और सीमित होते संसाधनों के कारण मनोरंजन के साधनों की आवश्यकता और भी बढ़ गई है, परंतु बढ़ती जनसंख्या के कारण ये साधन महँगे हो रहे हैं तथा इनकी उपलब्धता सीमित हो रही है। आज न पार्क बच रहे हैं और खेल के मैदान। इनके अभाव में व्यक्ति का स्वभाव चिड़चिड़ा, रूखा और क्रोधी होता जा रहा है। इसके लिए मनोरंजन के साधनों को सर्वसुलभ और सबकी पहुँच में बनाया जाना चाहिए।

उपसंहार – मनोरंजन मानव जीवन के लिए अत्यावश्यक हैं, परंतु ‘अति सर्वत्र वय॑ते’ वाली उक्ति इन पर भी लागू होती है। हमें यह ध्यान रखना चाहिए कि मनोरंजन के चक्कर में हम इतने खो जाएँ कि हमारे काम इससे प्रभावित होने लगे और हम आलसी और कामचोर बन जाएँ। हमें ऐसी स्थिति से सदा बचना चाहिए।

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नक्सलवाद पर निबंध – Naxalism In India Essay In Hindi

Naxalism In India Essay In Hindi

नक्सलवाद पर निबंध – Essay on Naxalism In India In Hindi

नक्सलवादी हिंसा : कारण और निवारण

रूपरेखा–

  • प्रस्तावना,
  • शोषण एवं दमन,
  • प्रतिकार का प्रयास,
  • नक्सलवादी हिंसा,
  • नक्सलवादी आन्दोलन का विस्तार,
  • समाधान की आवश्यकता,
  • उपसंहार।

साथ ही, कक्षा 1 से 10 तक के छात्र उदाहरणों के साथ इस पृष्ठ से विभिन्न हिंदी निबंध विषय पा सकते हैं।

नक्सलवाद पर निबंध – Naksalavaad Par Nibandh

प्रस्तावना–
भारत के बहुसंख्यक लोग निर्धन हैं। उनके सामने जीवन–यापन की गम्भीर समस्या रही है। मुट्ठीभर लोगों का भूमि तथा उत्पादन के साधनों पर अधिकार होने के कारण इस समस्या की गम्भीरता में वृद्धि हुई है। जींदारों के आदेश पर लोगों को काम तो करना पड़ता है परन्तु पर्याप्त मजदूरी नहीं मिलती। ऊपर से शारीरिक प्रताड़ना तथा मानसिक शोषण भी सहना पड़ता है।

शोषण एवं दमन–
भूपतियों तथा साधनसम्पन्न लोगों का विरोध करना आसान नहीं होता। उनके अनुकूल न चलने पर शारीरिक तथा मानसिक रूप से प्रताड़ित किया जाता है तथा सताया जाता है। बँधुआ मजदूर बनकर उनके खेतों तथा घरों में काम करना होता है।

मजदूरी मिलती नहीं, मिलती है भी तो बहुत कम। स्त्रियों को भी तरह–तरह का अपमान सहना पड़ता है। दमन की यह पीड़ा एक विशेष वर्ग को सहते–सहते वर्षों बीत गए हैं। सरकारी व्यवस्थाएँ भी इस दमन से मुक्ति दिलाने में पूरी तरह समर्थ नहीं हैं।

प्रतिकार का प्रयास–
शोषित पीडित जन की सहनशक्ति जब जवाब दे गई तो इसका प्रतिकार जरूरी हो गया। बंगाल के गाँव ‘नक्सलबाड़ी’ के किसानों ने सन् 1967 में एक आन्दोलन प्रारम्भ किया। इसका नाम नक्सलवाद पड़ा। इसमें किसान, मजदूर, आदिवासी आदि सम्मिलित थे।

उन्होंने मिलकर भूस्वामियों के शोषण के विरुद्ध हथियार उठाए। इस आन्दोलन के समर्थक माओ की हिंसक क्रान्ति से प्रभावित थे। उनका मानना था कि अन्याय और शोषण का मुकाबला हथियार और हिंसक प्रतिकार के द्वारा ही किया जा सकता है।

नक्सलवादी हिंसा–
नक्सलवादी हिंसा में विश्वास करते हैं। उनके मत से शक्ति बन्दूक की नली से उत्पन्न होती है। भारत में भीषण गरीबी है, उसने लोगों के सामने जीवित रहने की चनौती खड़ी कर दी है। गरीबी हटाओ के नाम पर नेता वर्षों से राजनीति कर रहे हैं, लोगों को ठग रहे हैं। भूमि–सुधार पर ध्यान नहीं दिया जाता। किसानों को उसके उत्पादन का फल नहीं मिलता।

श्रमिक का शोषण होता है। विकास के नाम पर आदिवासियों के जंगलों, खनिज और प्राकृतिक संसाधनों पर पूँजीवादी शक्तियाँ अधिकार कर रही हैं। सरकार इसमें उनका सहयोग करती रही है। ये समीकरण नक्सलवादी हिंसा के जनक हैं।

नक्सलवादी आन्दोलन का विस्तार–
सन् 1967 में बंगाल के नक्सलबाड़ी गाँव से शुरू हुए आन्दोलन का बहुत विस्तार हुआ है। भारत के पश्चिम बंगाल, उड़ीसा, महाराष्ट्र, आंध्रप्रदेश, छत्तीसगढ़, झारखण्ड, बिहार, मध्यप्रदेश आदि राज्यों तक इस आन्दोलन की पहुँच हो गई है।

सन् 2004 में माओवादी संगठन पीपुल्स वार ग्रुप और माओवादी कम्युनिस्ट सेंटर ऑफ इण्डिया ने एक होकर कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (माओवादी) का गठन किया। नक्सलवादी स्वयं को दलितों, आदिवासियों तथा गरीब ग्रामीणों का हितैषी मानते हैं। इस कारण कुछ लोग उनका स्वेच्छा से तथा कुछ डर के कारण सहयोग करते हैं।

अब तक हजारों ग्रामीण, सुरक्षा तंत्र के लोग तथा अन्य नक्सली हिंसा का शिकार हो चुके हैं। 6 अप्रैल 2010 को नक्सलवादियों ने घात लगाकर सी आर. पी. एफ. के 76 जवानों को छत्तीसगढ़ के दांतेवाला जिले में मार डाला था। रेल की पटरी उड़ाने से कोलकाता जाने वाली ज्ञानेश्वरी एक्सप्रेस पटरी से उतर गई थी और 150 से अधिक यात्री मारे गये थे।

नक्सली नए–
नए तरीकों से हमला करते हैं, दरभा–झीरम घाट पर 11 मार्च, 2014 को हमला हुआ था। 200 नक्सलियों द्वारा घात लगाकर पुलिस और सी. आर. पी. एफ. के पन्द्रह जवानों को मार डाला गया था। यहाँ सड़क निर्माण कार्य चल रहा था।

इसी स्थान पर 13 मई को नंदकुमार पटेल, विद्याचरण शुक्ला, महेन्द्र कर्मा आदि काँग्रेसी नेता नक्सली हिंसा के शिकार हुए थे। नक्सली हिंसा पर अभी पूर्ण लगाम नहीं लगाई जा सकी है। कुछ समय पूर्ण ही छत्तीसगढ़ में सशस्त्र बलों के सैन्य जवान मारे गए हैं।

उपसंहार–
नक्सली हिंसा लोगों के जीवन के लिए खतरा बन चुकी है। इससे देश के विकास तथा लोकतंत्र को भी चुनौती मिल रही है। अब तक सरकार ने इस समस्या के समापन के लिए बातें तो बहुत की हैं, परन्तु कोई ठोस पहल नहीं की है। अब इसके समाधान के लिए कठोर और कारगर कदम उठाये जाने की प्रबल आवश्यकता है।

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असंतुलित लिंगानुपात निबंध – Sex Ratio Essay In Hindi

Sex Ratio Essay In Hindi

असंतुलित लिंगानुपात निबंध – Essay On Sex Ratio In Hindi

कन्या भ्रूण–हत्या : सामाजिक कलंक – Female Feticide: Social Stigma

रूपरेखा–

  • प्रस्तावना,
  • कन्या भ्रूण–हत्या का आशय,
  • कन्या भ्रूण–हत्या का कारण,
  • विज्ञान का दुरुपयोग,
  • रोकथाम के उपाय,
  • उपसंहार।।

साथ ही, कक्षा 1 से 10 तक के छात्र उदाहरणों के साथ इस पृष्ठ से विभिन्न हिंदी निबंध विषय पा सकते हैं।

असंतुलित लिंगानुपात निबंध – Asantulit Lingaanupaat Nibandh

प्रस्तावना–
प्राचीनकाल से ही समाज में पुरुषों की सत्ता रही है। नारी को पुरुष के समान अधिकार और महत्त्व प्राप्त नहीं रहा है। वह द्वितीय श्रेणी की नागरिक रही है। उसको सामाजिक दमन और शोषण का शिकार बनना पड़ा है। कन्या वध की प्रथा भारतीय समाज में बहुत पुरानी है। बालिकाओं को जन्म लेते ही मार डाला जाता था। वर्तमान में कन्या भ्रूण की हत्या समाज में प्रचलित है।

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कन्या भ्रूण–हत्या का आशय–
जब बच्चा माँ के गर्भ में आता है तो उसको भ्रूण कहते हैं। कुछ सप्ताह के पश्चात् भ्रूण का लिंग–निर्धारण हो जाता है। बहुत पुराने समय से ही भारत में बालक को जन्म देने को अच्छा माना जाता रहा है।

लोग यह जानने के इच्छुक रहते हैं कि माँ के गर्भ में पल रहा शिशु पुत्र है अथवा पुत्री। पुत्री का जन्म न चाहने वाले समय से पूर्व ही गर्भपात करा देते हैं। इसी को कन्या भ्रूण हत्या कहा जाता है।

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कन्या भ्रूण–हत्या का कारण–
कन्या भ्रूण–हत्या का कारण है–समाज में स्त्री की सम्मानजनक उपस्थिति स्वीकार न करना। राजवंशों में श्रेष्ठता के दंभ के कारण पुत्री के विवाह में अनेक बाधाएँ आती थीं। कुछ शक्तिशाली राजा बलात् किसी की पुत्री का अपहरण कर लेते थे।

इससे धनहानि और जनहानि होती थी। आजकल पुत्री का विवाह बड़ी परेशानी का कारण है। समाज में प्रचलित दहेज–प्रथा के कारण पुत्री का विवाह एक भयानक समस्या बन चुका है। इन सब संकटों से बचने के लिए समाज में यह बुरी प्रथा चल पड़ी है।

विज्ञान का दुरुपयोग–
आज विज्ञान का युग है। विज्ञान के नवीनतम आविष्कारों, जिनमें अल्ट्रासाउण्ड महत्त्वपूर्ण है, के कारण गर्भस्थ भ्रूण का लिंग पता करना आसान हो गया है। यह पता चलते ही कि माँ के गर्भ में कन्या भ्रूण पल रहा है, लोग गर्भपात करा देते हैं। गर्भपात भी अब नई तकनीक के कारण आसान हो गया है। कुछ लालची और भ्रष्ट अल्ट्रासाउण्ड वाले तथा डाक्टर कन्या भ्रूण हत्या के अनुचित काम में लगे हुए हैं।

रोकथाम के उपाय–
यद्यपि कुछ परिस्थितियों में गर्भपात की इजाजत है, परन्तु गर्भपात अपराध की श्रेणी में आता है। कन्याभ्रूण का गर्भ गिराना तो सामाजिक और वैधानिक अपराध है ही। इस कारण समाज में स्त्री–पुरुष का लिंग–संतुलन अकारण ही प्रभावित होता है।

भारत में पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, उत्तर प्रदेश आदि राज्यों में स्त्रियों की संख्या पुरुषों से कम है। इससे लड़कों के विवाह में समस्या आती है तथा अपराध भी बढ़ते हैं। कन्याभ्रूण हत्या को रोकने के लिए कानून बना हुआ है, उसे और अधिक कठोर बनाने की जरूरत है। लोगों को जागरूक कर इस बुराई को मिटाना भी आवश्यक है।

उपसंहार–
जीवन परमात्मा की देन है। उसे नष्ट करना पाप है। कन्या भ्रूण–हत्या अनैतिक, अधार्मिक तथा अमानवीय काम है। यह अवैधानिक भी है। पुत्री को पुत्र के समान ही जन्म लेने और जीने का अधिकार है। इस दुष्प्रथा से समाज को बचाना उच्च मानवीय कर्तव्य है।

सरकार के कठोर रुख तथा जागरूकता के कारण इस घृणित अपराध में कमी आती दिखाई देती है। बेटी बचाओ–बेटी पढ़ाओ जैसे जन आन्दोलन तथा कन्याओं की हर क्षेत्र में चुनौतीपूर्ण भूमिका ने इस अंधपरंपरा को समाप्त करने में उल्लेखनीय योगदान कर रहे हैं।

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राष्ट्र निर्माण में शिक्षक की भूमिका पर निबंध – Role Of Teacher In Nation Building Essay In Hindi

Role Of Teacher In Nation Building Essay In Hindi

राष्ट्र निर्माण में शिक्षक की भूमिका पर निबंध – Essay On Role Of Teacher In Nation Building In Hindi

“शिक्षक राष्ट्र की संस्कृति के चतुर माली होते हैं। वे संस्कारों की जड़ों में खाद देते हैं और अपने श्रम से | सींचकर उन्हें शक्ति में परिवर्तित करते हैं। राष्ट्र के वास्तविक निर्माता उस देश के शिक्षक होते हैं।”

–महर्षि अरविन्द

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राष्ट्र निर्माण में शिक्षक की भूमिका पर निबंध – Raashtr Nirmaan Mein Shikshak Kee Bhoomika Par Nibandh

रूपरेखा–

  1. शिक्षक की भूमिका और दायित्व,
  2. राष्ट्र–निर्माण में शिक्षक की भूमिका–
    • (क) बालक की अन्तःशक्तियों का विकास करना,
    • (ख) व्यक्तित्व का विकास करना,
    • (ग) सामाजिकता की भावना जाग्रत करना,
    • (घ) मूलप्रवृत्तियों का नियन्त्रण,
    • (ङ) भावी–जीवन के लिए तैयार करना,
    • (च) चरित्र–निर्माण तथा नैतिक विकास करना,
    • (छ) आदर्श नागरिक के गुणों को विकसित करना,
    • (ज) राष्ट्रीय भावना का संचार करना,
    • (झ) भारतीय संस्कृति और राष्ट्र–गौरव से परिचित कराना,
    • (ब) उचित दिशा–निर्देश देना,
  3. उद्देश्यपूर्ण शिक्षा द्वारा सुन्दर–सभ्य समाज का निर्माण,
  4. उपसंहार।

शिक्षक की भूमिका और दायित्व–
शिक्षा का प्रमुख आधार शिक्षक ही होता है। शिक्षक न केवल विद्यार्थी के व्यक्तित्व का निर्माता, बल्कि राष्ट्र का निर्माता भी होता है। किसी राष्ट्र का मूर्तरूप उसके नागरिकों में ही निहित होता है। किसी राष्ट्र के विकास में उसके भावी नागरिकों को गढ़नेवाले शिक्षकों की भूमिका अत्यन्त महत्त्वपूर्ण होती है। अनादिकाल से शिक्षक की महत्ता का गुणगान उसके द्वारा प्रदत्त ज्ञान के कारण ही होता आया है।

ऐसे ज्ञानी गुरुओं के बल पर ही हमारे राष्ट्र को जगद्गुरु बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। आज भी शिक्षक उसी निष्ठा से विद्यार्थियों के भविष्य निर्माण करके देश के भविष्य को सँवार सकते हैं। शिक्षक की भूमिका केवल छात्रों को पढ़ाने तक ही सीमित नहीं है। छात्रों को पढ़ाई के अलावा उन्हें सामाजिक जीवन से सम्बन्धित दायित्वों का बोध कराना तथा उन्हें समाज के निर्माण के योग्य बनाना भी शिक्षक का ही दायित्व है।

भविष्य में ऐसे ही छात्र समाज के विकास का आधार बनते हैं। शिक्षक की भूमिका के विषय में ग० वि० अकोलकर का कथन है– “शिक्षा व्यवस्था में सबसे ज्यादा महत्त्वपूर्ण घटक ‘शिक्षक’ है। शिक्षा से समाज ने जिन इच्छा, आकांक्षा और उद्देश्यों की पूर्ति की कामना की है, वह शिक्षक पर निर्भर करती है।” शिक्षकों का दायित्व यही है कि वे समाज और राष्ट्र की इच्छाओं–आकांक्षाओं की पूर्ति करें।

डॉ० ईश्वरदयाल गुप्त के अनुसार–“शिक्षा–प्रणाली कोई भी या कैसी भी हो, उसकी प्रभावशीलता और सफलता उस प्रणाली के शिक्षकों के कार्य पर निर्भर करती है। क्योंकि भावी पीढ़ी को शिक्षित करना समाज की आकांक्षाओं का प्रतिफलन करना है।”

राष्ट्र–निर्माण में शिक्षक की भूमिका–विद्यार्थियों के मानसिक विकास में शिक्षक की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है। एक निपुण शिक्षक अपनी शिक्षण–शैली से विद्यार्थियों में राष्ट्रीयता की भावना का विकास कर सकता है। राष्ट्रीयता का भाव जहाँ एक ओर विद्यार्थियों को राष्ट्रभक्त और आदर्श नागरिक बनाता है, वहीं दूसरी ओर विद्यार्थियों में राष्ट्रीय एकता का विकास भी करता है। कोठारी आयोग के अनुसारः–

“भारत के भविष्य का निर्माण कक्षाओं में हो रहा है।” यह तथ्य परोक्षरूप से शिक्षक की भूमिका को भी निश्चित कर रहा है। राष्ट्र के विकास और निर्माण में शिक्षक की भूमिका को इन प्रमुख बिन्दुओं के रूप में समझा जा सकता है

(क) बालक की अन्तःशक्तियों का विकास करना–प्रसिद्ध शिक्षाशास्त्री फ्रॉबेल के अनुसार “शिक्षा एक ऐसी प्रक्रिया है, जो बालक के आन्तरिक गुणों और शक्तियों को प्रकाशित करती है।” एक कुशल शिक्षक ही बालक के आन्तरिक गुणों को पहचानकर उनको विकसित कर सकता है। बिना शिक्षक के यह कार्य सम्भव नहीं है।

(ख) व्यक्तित्व का विकास करना–वुडवर्थ के अनुसार–“व्यक्तित्व व्यक्ति के सम्पूर्ण व्यवहार की व्यापक विशेषता का नाम है।” आधुनिक युग में बालकों की केवल अन्तःशक्तियों का विकास होना ही पर्याप्त नहीं है, उनके बाह्य व्यक्तित्व का विकास भी बहुत आवश्यक है। शिक्षक बालकों के अन्तः–बाह्य व्यक्तित्व के विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन करता है।

(ग) सामाजिकता की भावना जाग्रत करना–मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है और उसे समाज के अनुकूल बनाने का दायित्व शिक्षक का है। शिक्षक ही व्यक्ति को समाज के आदर्शों, मूल्यों और मानवताओं से परिचित कराता है। समाज के प्रति व्यक्ति के क्या कर्त्तव्य और अधिकार हैं और इनका सदुपयोग कैसे किया जाए, इन सभी बातों की जानकारी शिक्षक द्वारा ही प्राप्त होती है।

(घ) मूल–प्रवृत्तियों का नियन्त्रण–बालकों में कुछ मूल प्रवृत्तियाँ जन्मगत होती हैं। एक शिक्षक उन मूल प्रवृत्तियों को शुद्ध करता है, उनका मार्ग निर्देशन करता है, तथा उन्हें नियन्त्रित करने का कार्य भी करता है। इससे बालक के व्यक्तित्व का विकास होता है। शिक्षक का कार्य है कि वह बालक की मूल प्रवृत्तियों में सुधार करके उसे समाज तथा राष्ट्र की सेवा के लिए प्रेरित करे।

(ङ) भावी जीवन के लिए तैयार करना–शिक्षक छात्रों को भिन्न–भिन्न विषयों और व्यवसायों की शिक्षा प्रदान करता है। वह अपने विद्यार्थी को इस योग्य बनाता है, जो शिक्षा प्राप्त करने के पश्चात् परिवार, समाज तथा देश के प्रति अपने कर्तव्यों का निर्वहन भली–भाँति कर सके। देश का युवा आत्मनिर्भर होगा तो राष्ट्र की उन्नति और प्रगति में सदैव सहायक होगा।

(च) चरित्र–निर्माण तथा नैतिक विकास करना–शिक्षक की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है बालकों का चरित्र–निर्माण और उनका नैतिक विकास करना। अच्छी शिक्षा द्वारा ही बालक सत्यं, शिवं, सुन्दरं को साक्षात्कार करता है और उसे अपने आचरण में लाने का प्रयास करता है। गांधी जी का भी कथन है– “यदि शिक्षा को अपने नाम को सार्थक बनाना है, तो उसका प्रमुख कार्य नैतिक शिक्षा प्रदान करना होना चाहिए।”

(छ) आदर्श नागरिक के गुणों को विकसित करना–शिक्षक का परम कर्त्तव्य है कि वह अपनी शिक्षा के द्वारा छात्रों में आदर्श नागरिक के गुणों को विकसित करे, जिससे छात्र अपने कर्तव्यों और अधिकारों को भली प्रकार समझ सके और जीवन में उनका समुचित उपयोग कर सके। आदर्श नागरिक ही आदर्श राष्ट्र के निर्माण में मुख्य भूमिका निभाते हैं।

(ज) राष्ट्रीय भावना का संचार करना–एक आदर्श शिक्षक ही अपनी शिक्षा द्वारा छात्रों में राष्ट्रीय एकता और देशभक्ति का संचार करता है। किसी राष्ट्र का स्वतन्त्र अस्तित्व उसके आदर्श नागरिकों पर ही निर्भर करता है। उनके सहयोग से ही राष्ट्र उन्नत और सशक्त बनता है। प्रत्येक अच्छा नागरिक राष्ट्र–निर्माण में सहायक होता है और एक शिक्षक अपने पुरुषार्थ से अबोध बालकों को अच्छा नागरिक बनाकर अपने राष्ट्र–निर्माण के दायित्वों का निर्वाह करना है।

(झ) भारतीय संस्कृति और राष्ट्र–गौरव से परिचित कराना–एक अच्छा शिक्षक छात्रों को अपनी संस्कृति और राष्ट्र–गौरव से परिचित कराता है। शिक्षक अपने मन, वचन और व्यवहार से एक आदर्श प्रस्तुत करके समस्त छात्रों में राष्ट्र भक्ति उत्पन्न करता है। ऐसे शिक्षकों से बालकों को नवीन दिशा मिलती है और वे राष्ट्र–निर्माण में सहयोग प्रदान करते हैं।

(ज) उचित दिशा–निर्देश देना–जीवन में प्रगति मार्ग पर आगे बढ़ने के लिए उचित दिशा–निर्देश की आवश्यकता पड़ती है। यह निर्देशन कई प्रकार का होता है; जैसे–व्यक्तिगत निर्देशन, शैक्षिक निर्देशन तथा व्यावसायिक निर्देशन। व्यक्तिगत निर्देशन द्वारा व्यक्ति की व्यक्तिगत समस्याओं को सुलझाने का प्रयत्न किया जाता व्यावसायिक निर्देशन द्वारा व्यक्ति की रुचि, योग्यता और क्षमता की जाँचकर उसी के अनुरूप उसे व्यवसाय चुनने का परामर्श दिया जाता है। एक शिक्षक अपने छात्रों को इन सभी विषयों में उचित दिशा–निर्देश देकर देश का सफल नागरिक बनने में उनकी सहायता करता है।

उद्देश्यपूर्ण शिक्षा द्वारा सुन्दर–
सभ्य समाज का निर्माण–एक कुशल शिक्षक ही प्रत्येक छात्र को सभी विषयों की सर्वोत्तम शिक्षा देकर उन्हें एक अच्छा डॉक्टर, इंजीनियर, न्यायिक एवं प्रशासनिक अधिकारी बनाने के साथ–साथ उसे एक अच्छा इन्सान भी बनाता है। सामाजिक ज्ञान के अभाव में जहाँ एक ओर छात्र समाज को सही दिशा देने में असमर्थ रहता है, वहीं दूसरी ओर आध्यात्मिक ज्ञान के अभाव में वह गलत निर्णय लेकर अपने साथ ही अपने परिवार, समाज, देश तथा विश्व को भी विनाश की ओर ले जाने का कारण बन सकता है।

इसलिए शिक्षक का कर्तव्य है कि वह आरम्भ से ही विद्यार्थियों की नींव मजबूत करके सुन्दर–सभ्य समाज का निर्माण करने में अपनी महत्त्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह करे।

उपसंहार–
इस प्रकार शिक्षक एक सुसभ्य एवं शान्तिपूर्ण राष्ट्र और विश्व का निर्माता है। एक शिक्षक को अपने सभी छात्रों को एक सुन्दर एवं सुरक्षित भविष्य देने के लिए तथा सारे विश्व में शान्ति एवं एकता की स्थापना के लिए उनके कोमल मन–मस्तिष्क में भारतीय संस्कृति और सभ्यता के रूप में ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ के विचाररूपी बीज बोने चाहिए।

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पर्वतीय यात्रा पर निबंध – Parvatiya Yatra Essay In Hindi

Parvatiya Yatra Essay In Hindi

पर्वतीय यात्रा पर निबंध – Essay On Parvatiya Yatra In Hindi

संकेत-बिंदु –

  • भूमिका
  • यात्रा का उद्देश्य
  • यात्रा की तैयारी
  • रास्ते के मनोरम दृश्य
  • पर्वतीय स्थल का वर्णन
  • यात्रा से वापसी
  • उपसंहार

किसी पर्वतीय स्थल अविस्मरणीय की यात्रा (Kisee Parvateey Sthal Avismaraneey Kee Yaatra) – Trip To A Hill Station Unforgettable

साथ ही, कक्षा 1 से 10 तक के छात्र उदाहरणों के साथ इस पृष्ठ से विभिन्न हिंदी निबंध विषय पा सकते हैं।

भूमिका – मनुष्य घुमंतू स्वभाव का प्राणी है। वह आदिकाल से ही जगह-जगह घूमता रहा है। कभी वह भोजन और आवास की शरण में भटकता रहा तो कभी प्रचार-प्रसार हेतु। वर्तमान समय में भी मनुष्य काम-काज की खोज या मनोरंजन के लिए कहीं न कहीं आ जा रहा है।

यात्रा का उद्देश्य – इस साल गरमियों में मैंने अपने मित्र के साथ वैष्णो देवी की यात्रा का कार्यक्रम बनाया। इस यात्रा का उद्देश्य ‘एक पंथ दो काज’ करना था। परीक्षा का परिमाण आते ही मन बना लिया था कि इस बार वैष्णो देवी जाकर ‘माता’ के दर्शन करूँगा और पर्वतीय स्थल का प्राकृतिक सौंदर्य जी भर निहार लूँगा। ईश्वर की कृपा से वे दोनों ही काम पूरे होने थे।

यात्रा की तैयारी – वैष्णो देवी हो या अन्य पर्वतीय स्थल, गरमियों में वहाँ पर्यटकों की संख्या बढ़ जाती है। ऐसे में मैंने इन स्थानों पर जाते समय पहले से आरक्षण करवा लिया था। मैंने अपने कपड़े, टिकट, बिस्किट, नमकीन, रीयल जूस, खट्टी-मीठी गोलियाँ ए.टी.एम. कार्ड, पहचान-पत्र आदि रख लिया। इसके अलावा दो चादरें, तौलिया, जुराबें, स्लीपर (चप्पलें) आदि रख लिया। मैं ट्रेन आने के दो घंटे पहले घर से आटो लेकर निकल पड़ा। संयोग से ट्रेन आने से पहले ही मैं स्टेशन पहुँच गया। ट्रेन प्रातः चार बजकर दस मिनट पर आई और आधे घंटे बाद चल पड़ी।

रास्ते के मनोरम दृश्य – सवेरे की शीतल हवा का झोंका लगते ही मुझे नींद आ गई। लगभग सात बजे आँख खुली। दोनों ओर दूरदूर तक फैले खेत और हरे-भरे पेड़ लगता था कि वे भी कहीं भागे जा रहे हैं। चक्की बैंक स्टेशन से आगे जाते ही पहाड़ दिखने लगे। पहाड़ों को इतना निकट से देखने का यह मेरा पहला अवसर था। जम्मू स्टेशन पर उतरकर आगे की यात्रा हमने बस से की। कटरा तक करीब दो घंटे तक सीले पहाड़ी रास्ते पर चलना तेज़ मोड़ पर बस मुड़ने पर एक ओर झुकना सर्वथा नया अनुभव था।

दर्शनीय स्थल का वर्णन – कटरा पहुँचकर हमने एक कमरा किराए पर लिया। अब तक सायं के साढे चार बजने वाले थे। वहाँ आराम करके शाम को कटरा घूमने चले गए। होटल लौटकर खाना खाया और आराम किया। करीब साढ़े दस बजे मैं अपने मित्र के साथ पैदल वैष्णों देवी की यात्रा पर पैदल चल पड़ा।

पहले तो लगता था कि चौदह किलोमीटर लंबी चढ़ाई कैसे चढी जाएगी, पर बच्चों और वृधों को पैदल जाता देखकर मन उत्साहित हो गया। हम भी उनके साथ ‘जय माता दी’ कहते हुए रास्ते में चाय-कॉफ़ी पीते और आराम करते हुए हम वैष्णों देवी पहुँच गए। वहाँ करीब एक घंटे बैठकर विश्राम किया। अब तक सुबह हो गई थी। चारों ओर पहाड़ ही पहाड़, क्या अद्भुत दृश्य था। इतना सुंदर देखकर मन रोमांचित हो उठा।

वहाँ ठंडे पानी में स्नान करके कपड़े बदले, माता के दर्शन किए, प्रसाद लिया। बाहर आकर नाश्ता किया और भैरव नामक पहाड़ी की चढ़ाई करने लगे। दो घंटे बाद हम भैरव नामक मंदिर के सामने थे। पहाड़ को इस तरह देखने का अनुभव मन में रोमांच भर रहा था।

यात्रा से वापसी – भैरव नामक पहाड़ी से उतरकर हम साँझी छत नामक स्थान पर आ गए। यहाँ छोटी-सी जगह में हेलीकाप्टर का उतरना और उड़ान भरना देखकर आश्चर्य भर रहा था। हमारे साथ-साथ तवी नदी बहती हुई निरंतर चलते रहने की प्रेरणा दे रही थी। वहाँ से कटरा और कटरा से सीधे हम दिल्ली आ गए।

उपसंहार – यह मेरी पहली पर्वतीय यात्रा थी। इसकी यादें मन को अब भी रोमांच से भर देती हैं। इससे यह सीख मिलती है कि जब भी समय मिले मनुष्य को प्रकृति के निकट अवश्य जाना चाहिए।

फलों की चौपाल Summary In Hindi

परहित सरिस धर्म नहिं भाई निबंध – Philanthropy Essay In Hindi

Philanthropy Essay In Hindi

परहित सरिस धर्म नहिं भाई निबंध – Essay on Philanthropy in Hindi

“वह शरीर क्या जिससे जग का, कोई भी उपकार न हो।
वृथा जन्म उस नर का जिसके, मन में दया–विचार न हो।।”

–आरसीप्रसाद सिंह

रूपरेखा–

  1. प्रस्तावना,
  2. सभी मनुष्य समान हैं,
  3. प्रकृति और परोपकार,
  4. परोपकार के अनेक उदाहरण,
  5. परोपकार के लाभ,
  6. परोपकार के विभिन्न रूप,
  7. उपसंहार।

साथ ही, कक्षा 1 से 10 तक के छात्र उदाहरणों के साथ इस पृष्ठ से विभिन्न हिंदी निबंध विषय पा सकते हैं।

परहित सरिस धर्म नहिं भाई निबंध – Parahit Saris Dharm Nahin Bhaee Nibandh

प्रस्तावना–
मानव एक सामाजिक प्राणी है; अत: समाज में रहकर उसे अन्य प्राणियों के प्रति कुछ दायित्वों का भी निर्वाह करना पड़ता है। इसमें परहित अथवा परोपकार की भावना पर आधारित दायित्व सर्वोपरि है। तुलसीदासजी के अनुसार जिनके हृदय में परहित का भाव विद्यमान है, वे संसार में सबकुछ कर सकते हैं। उनके लिए कुछ भी दुर्लभ नहीं है

परहित बस जिनके मन माहीं। तिन्ह कहँ जग दुर्लभ कछु नाहीं॥

सभी मनुष्य समान हैं–
भगवान् द्वारा बनाए गए समस्त मानव समान हैं; अत: इनमें परस्पर प्रेमभाव होना ही चाहिए। किसी व्यक्ति पर संकट आने पर दूसरों को उसकी सहायता अवश्य करनी चाहिए। दूसरों को कष्ट से कराहते हुए देखकर भी भोग–विलास में लिप्त रहना उचित नहीं है। अकेले ही भाँति–भाँति के भोजन करना और आनन्दमय रहना तो पशुओं की प्रवृत्ति है। मनुष्य तो वही है, जो मानव–मात्र हेतु अपना सबकुछ न्योछावर करने के लिए तैयार रहे

यही पशु प्रवृत्ति है कि आप आप ही चरे।
वही मनुष्य है कि जो मनुष्य के लिए मरे॥

– मैथिलीशरण गुप्त

प्रकृति और परोपकार–
प्राकृतिक क्षेत्र में सर्वत्र परोपकार–भावना के दर्शन होते हैं। सूर्य सबके लिए प्रकाश विकीर्ण करता है। चन्द्रमा की शीतल किरणें सभी का ताप हरती हैं। मेघ सबके लिए जल की वर्षा करते हैं। वायु सभी के लिए जीवनदायिनी है। फूल सभी के लिए अपनी सुगन्ध लुटाते हैं। वृक्ष अपने फल स्वयं नहीं खाते और नदियाँ अपने जल को संचित करके नहीं रखतीं। इसी प्रकार सत्पुरुष भी दूसरों के हित के लिए ही अपना शरीर धारण करते हैं

वृच्छ कबहुँ नहीं फल भखें, नदी न संचै नीर।
परमारथ के कारने, साधुन धरा सरीर॥

–रहीम

परोपकार के अनेक उदाहरण–
इतिहास एवं पुराणों में ऐसे अनेक उदाहरण मिलते हैं, जिनको पढ़ने से यह विदित होता है कि परोपकार के लिए महान् व्यक्तियों ने अपने शरीर तक का त्याग कर दिया। पुराण में एक कथा आती है कि एक बार वृत्रासुर नामक महाप्रतापी राक्षस का अत्याचार बहुत बढ़ गया था। चारों ओर त्राहि–त्राहि मच गई थी। उसका वध दधीचि ऋषि की अस्थियों से निर्मित वज्र से ही हो सकता था।

उसके अत्याचारों से दु:खी होकर देवराज इन्द्र दधीचि की सेवा में उपस्थित हुए और उनसे उनकी अस्थियों के लिए याचना की। महर्षि दधीचि ने प्राणायाम के द्वारा अपना शरीर त्याग दिया और इन्द्र ने उनकी अस्थियों से बनाए गए वज्र से वृत्रासुर का वध किया। इसी प्रकार महाराज शिबि ने एक कबूतर के प्राण बचाने के लिए अपने शरीर का मांस भी दे दिया। सचमुच वे महान् पुरुष धन्य हैं; जिन्होंने परोपकार के लिए अपने शरीर एवं प्राणों की भी चिन्ता नहीं की।

संसार के कितने ही महान् कार्य परोपकार की भावना के फलस्वरूप ही सम्पन्न हुए हैं। महान् देशभक्तों ने परोपकार की भावना से प्रेरित होकर ही अपने प्राणों की बलि दे दी। उनके हृदय में देशवासियों की कल्याण–कामना ही निहित थी। हमारे देश के अनेक महान् सन्तों ने भी लोक–कल्याण की भावना से प्रेरित होकर ही अपना सम्पूर्ण जीवन ‘सर्वजन हिताय’ समर्पित कर दिया। महान् वैज्ञानिकों ने अपने आविष्कारों से जन–जन का कल्याण किया है।

परोपकार के लाभ–
परोपकार की भावना से मानव के व्यक्तित्व का विकास होता है। परोपकार की भावना का उदय होने पर मानव ‘स्व’ की सीमित परिधि से ऊपर उठकर ‘पर’ के विषय में सोचता है। इस प्रकार उसकी आत्मिक शक्ति का विस्तार होता है और वह जन–जन के कल्याण की ओर अग्रसर होता है।

परोपकार भ्रातृत्व भाव का भी परिचायक है। परोपकार की भावना ही आगे बढ़कर विश्वबन्धुत्व के रूप में परिणत होती है। यदि सभी लोग परहित की बात सोचते रहें तो परस्पर भाईचारे की भावना में वृद्धि होगी और सभी प्रकार के लड़ाई–झगड़े स्वतः ही समाप्त हो जाएँगे।

परोपकार से मानव को अलौकिक आनन्द की अनुभूति होती है। इसका अनुभव सहज में ही किया जा सकता है। यदि हम किसी व्यक्ति को संकट से उबारें, किसी भूखे को भोजन दें अथवा किसी नंगे व्यक्ति को वस्त्र दें तो इससे हमें स्वाभाविक आनन्द की प्राप्ति होगी। हमारी संस्कृति में परोपकार को पुण्य तथा परपीड़न को पाप माना गया है

‘परोपकाराय पुण्याय पापाय परपीडनम्’

परोपकार के विभिन्न रूप–
परोपकार की भावना अनेक रूपों में प्रकट होती दिखाई पड़ती है। धर्मशालाओं, धर्मार्थ औषधालयों एवं जलाशयों आदि का निर्माण तथा भूमि, भोजन, वस्त्र आदि का दान परोपकार के ही विभिन्न रूप हैं। इनके पीछे सर्वजन हिताय एवं प्राणिमात्र के प्रति प्रेम की भावना निहित रहती है।

परोपकार की भावना केवल मनुष्यों के कल्याण तक ही सीमित नहीं है, इसका क्षेत्र समस्त प्राणियों के हितार्थ किए जानेवाले समस्त प्रकार के कार्यों तक विस्तृत है। अनेक धर्मात्मा गायों के संरक्षण के लिए गोशालाओं तथा पशुओं के जल पीने के लिए हौजों का निर्माण कराते हैं। यहाँ तक कि बहुत–से लोग बन्दरों को चने खिलाते हैं तथा चींटियों के बिलों पर शक्कर अथवा आटा डालते हुए दिखाई पड़ते हैं।

परोपकार में ‘सर्वभूतहिते रतः’ की भावना विद्यमान है। गम्भीरतापूर्वक विचार किया जाए तो संसार के सभी प्राणी परमपिता परमात्मा के ही अंश हैं; अत: हमारा यह परम कर्त्तव्य है कि हम सभी प्राणियों के हित–चिन्तन में रत रहें। यदि सभी लोग इस भावना का अनुसरण करें तो संसार से शीघ्र ही दुःख एवं दरिद्रता का लोप हो जाएगा।

उपसंहार–
परोपकारी व्यक्तियों का जीवन आदर्श माना जाता है। उनका यश चिरकाल तक स्थायी रहता है। मानव स्वभावत: यश की कामना करता है। परोपकार के द्वारा उसे समाज में सम्मान तथा स्थायी यश की प्राप्ति हो सकती है। महर्षि दधीचि, महाराज शिबि, हरिश्चन्द्र, राजा रन्तिदेव जैसे पौराणिक चरित्र आज भी अपने परोपकार के कारण ही याद किए जाते हैं।

परोपकार से राष्ट्र का चरित्र जाना जाता है। जिस समाज में जितने अधिक परोपकारी व्यक्ति होंगे, वह उतना ही सुखी होगा। समाज में सुख–शान्ति के विकास के लिए परोपकार की भावना के विकास की परम आवश्यकता है। इस दृष्टि से गोस्वामी तुलसीदास के शब्दों में यह कहना भी उपयुक्त ही होगा परहित सरिस धर्म नहिं भाई। परपीड़ा सम नहिं अधमाई॥ अर्थात् परोपकार के समान कोई धर्म नहीं है और परपीड़ा के समान कोई पाप नहीं है।

उम्मीद का अन्तिम पत्ता Summary In Hindi

अतिवृष्टि पर निबंध – Flood Essay In Hindi

Flood Essay In Hindi

अतिवृष्टि पर निबंध – (Essay On Flood In Hindi)

अतिवृष्टि का वह दिन – That Day Of Excess Rain

रूपरेखा–

  • प्रस्तावना,
  • वर्षा का आरम्भ,
  • जलमग्न जयपुर,
  • अतिवृष्टि से हुआ विनाश,
  • उपसंहार।

साथ ही, कक्षा 1 से 10 तक के छात्र उदाहरणों के साथ इस पृष्ठ से विभिन्न हिंदी निबंध विषय पा सकते हैं।

अतिवृष्टि पर निबंध – Ativrshti Par Nibandh

प्रस्तावना–
जल को जीवन कहते हैं। बिना जल के जीवधारियों का धरती पर जीना सम्भव नहीं है। प्रकृति ने जल की व्यवस्था स्वयं की है। बादल जल बरसाते हैं। इससे पेड़–पौधों, पशु–पक्षियों तथा मनुष्यों को जीने की सुविधा मिलती है।

भीषण गर्मी के बाद बादलों से बरसती बूंदों से मन प्रसन्न होता है, किन्तु कभी–कभी इतना पानी बरसता है कि हमारी प्रसन्नता क्षणभर में ही गायब हो जाती है। ‘अति सर्वत्र वर्जयेत्’ के अनुसार अतिवृष्टि भी हमारे लिये दु:खदायी ही होती है।

वर्षा का आरम्भ–
मुझे दिन तो याद नहीं किन्तु महीना सितम्बर यानी आश्विन (क्वार) का था। शाम से ही बादल छाने लगे थे और रिमझिम शुरू हो गई थी। धीरे–धीरे यह बौछारों में बदल गयी और आश्विन का घन फूट पड़ा। आगरा से शुरू हुई इस वर्षा ने जयपुर तक पीछा नहीं छोड़ा। मेरी रेलगाड़ी जयपुर की ओर दौड़ रही थी और वर्षा भी उसका पीछा कर रही थी। मुझे वर्षा की भीषणता का अनुमान नहीं था।

सोचा था घंटे–दो घंटे में बंद हो जाएगी। यह सोचकर मैंने छाता भी अपने मित्र को लौटा दिया था। मेरे पास एक थैला था जिसमें केवल एक तौलिया थी। – जलमग्न जयपुर–गाड़ी जब जयपुर के प्लेटफार्म पर रुकी तो सुबह के चार बज चुके थे।

वर्षा अब भी मूसलाधार हो रही थी। गाड़ी से उतरकर प्रतीक्षालय की शरण ली। दिन निकल आया था। वर्षा रुक ही नहीं रही थी। वहीं शौच से निवृत्त होकर चाय पी। मुझे एक अधिकारी से मिलने जाना था, पर स्टेशन से बाहर जाने का अवसर ही नहीं मिल रहा था।

दस बज गए तो वर्षा कुछ कम हुई। हिम्मत करके एक रिक्शा लिया। सीट भीगी थी। अतः तौलिया नीचे रखकर बैठ गया। रिक्शा आगे बढ़ा तो लग रहा था कि मैं रिक्शे में नहीं नाव पर बैठा हूँ। रिक्शे का आधा भाग जलमग्न सड़क पर तैर–सा रहा था।

सहसा सामने से एक ट्रक आया उससे पानी में जो हिलोर उठी उसने मुझे सिर से पैर तक स्नान करा दिया। दूसरे वस्त्र थे नहीं। उसी दशा में अधिकारी महोदय के घर पहुंचा तो वह कार्यालय जा चुके थे।

अब वहाँ रिक्शा भी नहीं था। किसी प्रकार भीगता–भागता कार्यालय पहुँचा तो पता चला अतिवृष्टि के कारण कार्यालय बन्द है। अब क्या हो ? दोपहर हो चुकी थी। उन के निवास पर जाना बेकार था। भूख भी लगी थी। पास ही जौहरी बाजार था।

वहाँ एक गली में जाकर पूड़ी–साग लेकर पेट पूजा की। अब वर्षा हल्की हो चुकी थी। मैं सिर पर तौलिया डालकर चल रहा था। वह पानी से तर हो जाती तो निचोड़कर उसे पुनः ओढ़ लेता। धीरे–धीरे वर्षा बन्द हुई। हल्की धूप खिली, हवा चली तो भीगे कपड़े सूखे। तब जान में जान आई। शाम को अधिकरी जी से उनके निवास पर मिला। वे भी अतिवृषि रहे थे।

अतिवृष्टि से हुआ विनाश–
चौबीस घंटे की वर्षा से बहुत विनाश हुआ था। कुछ मकान गिर गये थे और लोग उसमें दब गये थे। एक बालक नाले के तेज बहते पानी में बह गया था। निचले मकानों–दुकानों में पानी भरने से बहुत विनाश हुआ था। चारों ओर से ऐसी ही खबरें मिल रही थीं। सहायता के लिए चीख–पुकार भी मची थी।

उपसंहार–
वर्षा आवश्यक है। वह जीवनदायिनी होती है किन्तु जब वह अतिवृष्टि का स्वरूप ग्रहण कर लेती है तो लोगों का जीवन संकट में पड़ जाता है। व्यवस्था के अभाव में यह संकट और बढ़ जाता है।

रब्बा मीह दे-पानी दे Summary in Hindi

मूल्य-वृदधि की समस्या निबंध – Price Rise Essay In Hindi

Price Rise Essay In Hindi

मूल्य-वृदधि की समस्या निबंध – Essay On Price Rise In Hindi

बढ़ती महँगाई : दुःखद जीवन – Rising Inflation: Sad Life

रूपरेखा–

  • प्रस्तावना,
  • महँगाई का ताण्डव,
  • महँगाई के कारण,
  • महँगाई का प्रभाव,
  • महँगाई रोकने के उपाय,
  • उपसंहार।

साथ ही, कक्षा 1 से 10 तक के छात्र उदाहरणों के साथ इस पृष्ठ से विभिन्न हिंदी निबंध विषय पा सकते हैं।

मूल्य-वृदधि की समस्या निबंध – Mooly-Vrdadhi Kee Samasya Nibandh

प्रस्तावना–
मुक्त बाजार, भूमण्डलीकरण का दुष्प्रचार, विनिवेश का बुखार, छलाँगें लगाता शेयर बाजार, विदेशी निवेश के लिए पलक पाँवड़े बिछाती हमारी सरकार, उधार बाँटने को बैंकों के मुक्त द्वार, इतने पर भी गरीब और निम्न मध्यम वर्ग पर महँगाई की मार, यह विकास की कैसी विचित्र अवधारणा है।

हमारे करमंत्री (वित्तमंत्री) नए–नए करों की जुगाड़ में तो जुटे रहते हैं, किन्तु महँगाई पर अंकुश लगाने में उनके सारे हाईटेक हथियार कुंद हो रहे हैं।

महँगाई का ताण्डव–जीवन–यापन
की वस्तुओं के मूल्य असाधारण रूप से बढ़ जाना महँगाई कहलाती है। हमारे देश में महँगाई एक निरंतर चलने वाली समस्या बन चुकी है। इसकी सबसे अधिक मार सीमित आय वाले परिवार पर पड़ती है।

आज आम आदमी बाजार में कदम रखते हुए घबराता है। दैनिक उपभोग की वस्तुओं के भाव प्रायः बढ़ते जाते हैं। आज वही वस्तुएँ सबसे अधिक महँगी होती रहती हैं, जिनके बिना गरीब आदमी का काम नहीं चल सकता।

महँगाई के कारण–महँगाई बढ़ने के प्रमुख कारण इस प्रकार हैं–

  • उत्पादन कम और माँग अधिक।
  • जमाखोरी की प्रवृत्ति।
  • सरकार की अदूरदर्शी नीतियाँ तथा भ्रष्ट सरकारी अधिकारियों और भ्रष्ट व्यवसायियों की साँठ–गाँठ।
  • जनता में वस्तुओं के संग्रह की प्रवृत्ति।
  • अंध–परम्परा और दिखावे के कारण अपव्यय।
  • जनसंख्या में निरन्तर हो रही वृद्धि।
  • सरकारी वितरण–व्यवस्था की असफलता।
  • अग्रिम सौदे और सट्टेबाजी।

फिजूलखर्ची और प्रदर्शनप्रियता भी महँगाई बढ़ने का एक कारण है। ऐसे लोग शादी–विवाह में अनाप–शनाप खर्च करते हैं और रहने को राजाओं जैसे महल बनाते हैं। आज राजतंत्र तो नहीं है किन्तु ये लोग लोकतंत्र में भी राजाओं की तरह जीते हैं। उनको कबीर का यह कथन याद नहीं रहा है कहा चिनावै मेडिया, लाँबी भीति उसारि।

घर तो साढ़े तीन हथ, घणा त पौने च्यारि।। महँगाई का प्रभाव–महँगाई ने भारतीय समाज को आर्थिक रूप से जर्जर करने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। पेट तो भरना ही होगा, कपड़े मोटे–झोटे पहनने ही होंगे, सिर पर एक छत का इन्तजाम करना ही होगा। मगर शुद्ध और मर्यादित आमदनी से तो यह सम्भव नहीं है, परिणामस्वरूप अनैतिकता और भ्रष्टाचार के चरणों में समर्पण करना पड़ता है। निम्न वर्ग और मध्यम वर्ग का तो जीवन ही दुष्कर हो गया है। महँगाई के कारण ही अर्थव्यवस्था में स्थिरता नहीं आ पा रही है।

महँगाई रोकने के उपाय–महँगाई को रोकने के लिए आवश्यक है कि-

  • बैंकें अति उदारता से ऋण देने पर नियन्त्रण करें। इससे बाजार में मुद्रा प्रवाह बढ़ता है।
  • जीवन–स्तर और प्रदर्शन के नाम पर धन का अपव्यय रोका जाना चाहिए।
  • जमाखोरी और आवश्यक वस्तुओं के वायदा कारोबार पर रोक लगनी चाहिए।
  • आयात और निर्यात व्यापार में सन्तुलन रखा जाना चाहिए।

अन्तिम उपाय है कि जनता महँगाई के विरुद्ध सीधी कार्यवाही करे। भ्रष्ट अधिकारियों तथा बेईमान व्यापारियों का घेराव, सामाजिक बहिष्कार तथा तिरस्कार किया जाय।

उपसंहार–
महँगाई विश्वव्यापी समस्या है। अन्तर्राष्ट्रीय परिस्थितियाँ भी देश में महँगाई के लिए उत्तरदायी हैं। उदारीकरण के नाम पर विदेशी पूँजीनिवेशकों को शुल्कों में छूट तथा करों से मुक्ति प्रदान करना भी महँगाई को बढ़ाता है।

यह विचार योग्य बात है कि महँगाई खाने–पीने की चीजों पर ही क्यों बढ़ती है, मोटरकारों, ए. सी. तथा विलासिता की अन्य वस्तुओं पर क्यों नहीं?

हरी-हरी दूब पर Summary In Hindi

राष्ट्र निर्माण में युवाओं का योगदान निबंध – Role Of Youth In Nation Building Essay In Hindi

Role Of Youth In Nation Building Essay In Hindi

राष्ट्र निर्माण में युवाओं का योगदान निबंध – Essay On Role Of Youth In Nation Building In Hindi

रूपरेखा–

  1. युवा–वर्ग और उसकी शक्ति,
  2. छात्र–असन्तोष के कारण,
  3. राष्ट्र–निर्माण में छात्रों का योगदान–
    • (क) अनुसन्धान के क्षेत्र में,
    • (ख) परिपक्व ज्ञान की प्राप्ति एवं विकासोन्मुख कार्यों में उसका प्रयोग,
    • (ग) स्वयं सचेत रहते हुए सजगता का वातावरण उत्पन्न करना,
    • (घ) नैतिकता पर आधारित गुणों का विकास,
    • (ङ) कर्त्तव्यों का निर्वाह,
    • (च) अनुशासन की भावना को महत्त्व प्रदान करना,
    • (छ) समाज–सेवा,
  4. उपसंहार

साथ ही, कक्षा 1 से 10 तक के छात्र उदाहरणों के साथ इस पृष्ठ से विभिन्न हिंदी निबंध विषय पा सकते हैं।

राष्ट्र निर्माण में युवाओं का योगदान निबंध – Raashtr Nirmaan Mein Yuvaon Ka Yogadaan Nibandh

युवा–
वर्ग और उसकी शक्ति–आज का छात्र कल का नागरिक होगा। उसी के सबल कन्धों पर देश के निर्माण और विकास का भार होगा। किसी भी देश के युवक–युवतियाँ उसकी शक्ति का अथाह सागर होते हैं और उनमें उत्साह का अजस्र स्रोत होता है। आवश्यकता इस बात की है कि उनकी शक्ति का उपयोग सृजनात्मक रूप में किया जाए; अन्यथा वह अपनी शक्ति को तोड़–फोड़ और विध्वंसकारी कार्यों में लगा सकते हैं।

प्रतिदिन समाचार–पत्रों में ऐसी घटनाओं के समाचार प्रकाशित होते रहते हैं। आवश्यक और अनावश्यक माँगों को लेकर उनका आक्रोश बढ़ता ही रहता है। यदि छात्रों की इस शक्ति को सृजनात्मक कार्य में लगा दिया जाए तो देश का कायापलट हो सकता है।

छात्र–
असन्तोष के कारण छात्रों के इस असन्तोष के क्या कारण हैं? वे अपनी शक्ति का दुरुपयोग क्यों और किसके लिए कर रहे हैं ये कुछ विचारणीय प्रश्न हैं। इसका प्रथम कारण है–आधुनिक शिक्षा प्रणाली का दोषयुक्त होना। इस शिक्षा–प्रणाली से विद्यार्थी का बौद्धिक विकास नहीं होता तथा यह विद्यार्थियों को व्यावहारिक ज्ञान नहीं कराती; परिणामतः देश में शिक्षित बेरोजगारों की संख्या बढ़ती ही जा रही है। जब छात्र को यह पता ही है कि अन्तत: उसे बेरोजगार ही भटकना है तो वह अपने अध्ययन के प्रति लापरवाही प्रदर्शित करने लगता है।

विद्यार्थियों पर राजनैतिक दलों के प्रभाव के कारण भी छात्र–असन्तोष पनपता है। कुछ स्वार्थी तथा अवसरवादी राजनीतिज्ञ अपने स्वार्थों के लिए विद्यार्थियों का प्रयोग करते हैं। आज का विद्यार्थी निरुद्यमी तथा आलसी भी हो गया है। वह परिश्रम से कतराता है और येन–केन–प्रकारेण डिग्री प्राप्त करने को उसने अपना लक्ष्य बना लिया है। इसके अतिरिक्त समाज के प्रत्येक वर्ग में फैला हुआ असन्तोष भी विद्यार्थियों के असन्तोष को उभारने का मुख्य कारण है।

राष्ट्र–निर्माण में छात्रों का योगदान आज का विद्यार्थी कल का नागरिक होगा और पूरे देश का भार उसके कन्धों पर ही होगा। इसलिए आज का विद्यार्थी जितना प्रबुद्ध, कुशल, सक्षम और प्रतिभासम्पन्न होगा; देश का भविष्य भी उतना ही उज्ज्वल होगा। इस दृष्टि से विद्यार्थी के कन्धों पर अनेक दायित्व आ जाते हैं, जिनका निर्वाह करते हुए वह राष्ट्र–निर्माण की दिशा में अपना महत्त्वपूर्ण योगदान कर सकता है।

राष्ट्र–निर्माण में विद्यार्थियों के योगदान की चर्चा इन मुख्य बिन्दुओं के अन्तर्गत की जा सकती है-

(क) अनुसन्धान के क्षेत्र में–आधुनिक युग विज्ञान का युग है। जिस देश का विकास जितनी शीघ्रता से होगा, वह राष्ट्र उतना ही महान् होगा; अत: विद्यार्थियों के लिए यह आवश्यक है कि वे नवीनतम अनुसन्धानों के द्वार खोलें। चिकित्सा के क्षेत्र में अध्ययनरत विद्यार्थी औषध और सर्जरी के क्षेत्र में नवीन अनुसन्धान कर सकते हैं।

वे मानवजीवन को अधिक सुरक्षित और स्वस्थ बनाने का प्रयास कर सकते हैं। इसी प्रकार इंजीनियरिंग में अध्ययनरत विद्यार्थी विविध प्रकार के कल–कारखानों और पुों आदि के विकास की दिशा में भी अपना योगदान दे सकते हैं।

(ख) परिपक्व ज्ञान की प्राप्ति एवं विकासोन्मुख कार्यों में उसका प्रयोग–जीवन के लिए परिपक्व ज्ञान परम आवश्यक है। अधकचरे ज्ञान से गम्भीरता नहीं आ सकती, उससे भटकाव की स्थिति पैदा हो जाती है। इसीलिए यह आवश्यक है कि विद्यार्थी अपने ज्ञान को परिपक्व बनाएँ तथा अपने परिवार के सदस्यों को ज्ञान–सम्पन्न करने, देश की सांस्कृतिक सम्पदा का विकास करने आदि विभिन्न दृष्टियों से अपने इस परिपक्व ज्ञान का सदुपयोग करें।

(ग) स्वयं सचेत रहते हुए सजगता का वातावरण उत्पन्न करना–विद्यार्थी अपने सम–सामयिक परिवेश के प्रति सजग और सचेत रहकर ही राष्ट्र–निर्माण में अपना योगदान दे सकते हैं। विश्व तेजी से विकास के पथ पर आगे बढ़ रहा है। इसलिए अब प्रगति के प्रत्येक क्षेत्र में भारी प्रतिस्पर्धाओं का सामना करना पड़ता है।

इन प्रतिस्पर्धाओं में सम्मिलित होने के लिए यह आवश्यक है कि विद्यार्थी सामाजिक गतिविधियों के प्रति सचेत रहें और दूसरों को भी इसके लिए प्रेरित करें।

(घ) नैतिकता पर आधारित गुणों का विकास–मनुष्य का विकास स्वस्थ बुद्धि और चिन्तन के द्वारा ही होता है। इन गुणों का विकास उसके नैतिक विकास पर निर्भर है। इसलिए अपने और राष्ट्र–जीवन को समृद्ध बनाने के लिए विद्यार्थियों को अपना नैतिक बल बढ़ाना चाहिए तथा समाज में नैतिक–जीवन के आदर्श प्रस्तुत करने चाहिए।

(ङ) कर्तव्यों का निर्वाह–आज का विद्यार्थी समाज में रहकर ही अपनी शिक्षा प्राप्त करता है। पहले की तरह वह गुरुकुल में जाकर नहीं रहता। इसलिए उस पर अपने राष्ट्र, परिवार और समाज आदि के अनेक उत्तरदायित्व आ गए हैं। जो विद्यार्थी अपने इन उत्तरदायित्वों अथवा कर्त्तव्यों का निर्वाह करता है, उसे ही हम सच्चा विद्यार्थी कह सकते हैं। इस प्रकार राष्ट्र–निर्माण के लिए विद्यार्थियों में कर्त्तव्य–परायणता की भावना का विकास होना परम आवश्यक है।

(च) अनुशासन की भावना को महत्त्व प्रदान करना–अनुशासन के बिना कोई भी कार्य सुचारु रूप से सम्पन्न नहीं हो सकता। राष्ट्र–निर्माण का तो मुख्य आधार ही अनुशासन है। इसलिए विद्यार्थियों का दायित्व है कि वे अनुशासन में रहकर देश के विकास का चिन्तन करें।

जिस प्रकार कमजोर नींववाला मकान अधिक दिनों तक स्थायी नहीं रह सकता, उसी प्रकार अनुशासनहीन राष्ट्र अधिक समय तक सुरक्षित नहीं रह सकता। विद्यार्थियों को अनुशासित सैनिकों के समान अपने कर्तव्यों का पालन करना चाहिए, तभी वे राष्ट्र–निर्माण में योग दे सकते हैं।

(छ) समाज–सेवा–हमारा पालन–पोषण, विकास, ज्ञानार्जन आदि समाज में रहकर ही सम्भव होता है; अतः हमारे लिए यह भी आवश्यक है कि हम अपने समाज के उत्थान की दिशा में चिन्तन और मनन करें। विद्यार्थी समाज–सेवा द्वारा अपने देश के उत्थान में महत्त्वपूर्ण योगदान दे सकते हैं, वे शिक्षा का प्रचार कर सकते हैं और अशिक्षितों को शिक्षित बना सकते हैं। इसी प्रकार छुआछूत की कुरीति को समाप्त करके भी विद्यार्थी समाज के उस पिछड़े वर्ग को देश की मुख्यधारा से जोड़कर अपने कर्तव्य का पालन करने की प्रेरणा दे सकते हैं।

उपसंहार–
विद्याध्ययन से विद्यार्थियों में चिन्तन और मनन की शक्ति का विकास होना स्वाभाविक है, किन्तु कुछ विपरीत परिस्थितियों के फलस्वरूप अनेक छात्र समाज–विरोधी कार्यों में लग जाते हैं। इससे देश और समाज की हानि होती है। भविष्य में देश का उत्तरदायित्व विद्यार्थियों को ही सँभालना है, इसलिए यह आवश्यक है कि वे राष्ट्रहित के विषय में विचार करें और ऐसे कार्य करें, जिनसे हमारा राष्ट्र प्रगति के पथ पर निरन्तर आगे बढ़ता रहे।

जब विद्यार्थी समाज–
सेवा का लक्ष्य बनाकर आगे बढ़ेंगे, तभी वे सच्चे राष्ट्र–निर्माता हो सकेंगे। इसलिए यह आवश्यक है कि विद्यार्थी अपनी शक्ति का सही मूल्यांकन करते हुए उसे सृजनात्मक कार्यों में लगाएँ।

मन के जीते जीत Summary in Hindi