विद्यालय में स्वास्थ्य शिक्षा निबंध – Health Education Essay In Hindi

Health Education Essay In Hindi

विद्यालय में स्वास्थ्य शिक्षा निबंध – Essay On Health Education In Hindi

“शारीरिक, मानसिक, मनोवैज्ञानिक और आध्यात्मिक (धार्मिक) दृष्टि से सही होने की सन्तुलित सतह का नाम स्वास्थ्य है, न कि बीमारी के न होने का।”

-विश्व स्वास्थ्य संगठन

साथ ही, कक्षा 1 से 10 तक के छात्र उदाहरणों के साथ इस पृष्ठ से विभिन्न हिंदी निबंध विषय पा सकते हैं।

विद्यालय में स्वास्थ्य शिक्षा निबंध – Vidyaalay Mein Svaasthy Shiksha Nibandh

रूपरेखा–

  1. प्रस्तावना,
  2. स्वास्थ्य शिक्षा,
  3. विद्यालयों में स्वास्थ्य शिक्षा का आरम्भ,
  4. विद्यालयों में स्वास्थ्य शिक्षा का उद्देश्य–
    (क) स्वास्थ्य–विषयक सजगता,
    (ख) स्वास्थ्य–सम्बन्धी आदतों का विकास,
    (ग) प्राथमिक चिकित्सा की जानकारी प्रदान करना,
    (घ) रोगों के विषय में जानकारी प्रदान करना,
  5. स्वास्थ्य शिक्षा का महत्त्व,
  6. उपसंहार।

प्रस्तावना–
स्वास्थ्य जीवन की आधारशिला है। स्वस्थ मनुष्य ही अपने जीवन में सुख–समृद्धि प्राप्त कर सकता है। इसलिए स्वास्थ्य को जीवन के समस्त सुखों का आधार भी कहा जाता है। रुपया–पैसा हाथ से निकल जाए तो उसे पुनः प्राप्त किया जा सकता है, परन्तु एक बार स्वास्थ्य बिगड़ गया तो उसे पुरानी स्थिति में लाना कठिन हो जाता है। इसलिए समझदार लोग अपने स्वास्थ्य की रक्षा बड़े मनोयोग से करते हैं। हमारे देश में तो धर्म का साधन शरीर को ही माना गया है; अत: कहा गया है–’शरीरमाद्यं खलु धर्म–साधनम्’।

Health Education Essay In Hindi

स्वास्थ्य शिक्षा–
लोगों को स्वास्थ्य से सम्बन्धित जानकारी देना, जागरूक करना, शिक्षित करना स्वास्थ्य शिक्षा (Health Education) कहलाती है। स्वास्थ्य शिक्षा एक ऐसा माध्यम है, जिससे कुछ विशेष योग्य एवं शिक्षित व्यक्तियों की सहायता से जनता को स्वास्थ्य–सम्बन्धी ज्ञान और संक्रामक रोगों एवं विशिष्ट व्याधियों से बचने के उपायों का ज्ञान कराया जाता है।

Essay On Health Education In Hindi

विद्यालयों में स्वास्थ्य शिक्षा का आरम्भ–
जीवन में स्वास्थ्य की महत्ता को देखते हुए वर्ष 1958 ई० में विद्यालय स्वास्थ्य शिक्षा प्रभाग की स्थापना हुई। इसका उद्देश्य युवा पीढ़ी के लिए स्वास्थ्य शिक्षा–सम्बन्धी कार्यक्रमों को सशक्त करना था। यह प्रभाग शिक्षा मन्त्रालय, एनसीईआरटी और वयस्क शिक्षा निदेशालय के साथ तकनीकी संसाधन केन्द्र के रूप में कार्य करता है तथा औपचारिक और गैर–औपचारिक शिक्षा के लिए स्वास्थ्य शिक्षा कार्यक्रम को सशक्त बनाने के लिए देश की इन सभी संस्थाओं और राज्य स्वास्थ्य एवं शिक्षा विभागों एवं विश्व–विद्यालयों के साथ मिलकर कार्य करता है।

वर्ष 2005 ई० में स्वास्थ्य शिक्षा सेवा प्रभाग के कार्यों और गतिविधियों का विस्तार किया गया, जिसका कार्य देश में विद्यालयों और किशोरों के लिए स्वास्थ्य शिक्षा की योजना बनाना, उसे सशक्त करना और पुनर्निरीक्षण करना था। इसके लिए विद्यालयों के पाठ्यक्रमों में स्वास्थ्य शिक्षा को एक अलग विषय के रूप में सम्मिलित किया गया।

स्वास्थ्य शिक्षा प्रभाग द्वारा केन्द्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड और सीबीएसई बोर्ड के शिक्षकों और राज्य स्वास्थ्य और शिक्षा विभागों के लिए एक जनसंख्या निर्देशिका विकसित की गई। इसके लिए अनेक विवरणिकाएँ तथा पुस्तिकाएँ भी बनाई गईं। शिक्षकों, चिकित्सीय और पराचिकित्सीय अधिकारियों को प्रशिक्षण देना भी इस प्रभाग का एक मुख्य कार्य है। इस प्रभाग का कार्य देश में विद्यालय स्वास्थ्य सेवा कार्यक्रमों की निगरानी करना भी है।

विद्यालयों में स्वास्थ्य शिक्षा का उद्देश्य विद्यालयों में स्वास्थ्य शिक्षा का उद्देश्य विद्यार्थियों में स्वास्थ्यप्रद वातावरण देकर उनमें अच्छे आचरण व अच्छी आदतों का बीजारोपण करना है। सी० ई० टर्नर के अनुसार–”विद्यार्थियों का समुचित विकास, स्वास्थ्य शिक्षा पर निर्भर करता है।”

सामान्य रूप से विद्यालयों में स्वास्थ्य शिक्षा का उद्देश्य निम्नलिखित है-

(क) स्वास्थ्य विषयक सजगता–विद्यार्थियों को स्वास्थ्य के विषय में सजग करना स्वास्थ्य शिक्षा का – मुख्य उद्देश्य है। विद्यालयों में उन्हें स्वास्थ्य के विषय में उचित ज्ञान कराया जाता है, जिससे वे स्वस्थ नागरिक बनकर देश के उत्थान में अपना बहुमूल्य योगदान कर सकें।

(ख) स्वास्थ्य सम्बन्धी आदतों का विकास–स्वास्थ्य के महत्त्व की जानकारी देने के पश्चात् उनमें स्वास्थ्य सम्बन्धी आदतों का विकास करना भी स्वास्थ्य शिक्षा का प्रमुख उद्देश्य है; क्योंकि किसी भी विषय का ज्ञान उस समय तक व्यर्थ है, जब तक उसे लागू न किया जाए। इसके अन्तर्गत विद्यार्थियों को व्यक्तिगत सफाई एवं स्वच्छता के विषय में पूर्ण जानकारी प्रदान की जाती है।

(ग) प्राथमिक चिकित्सा की जानकारी प्रदान करना स्वास्थ्य शिक्षा का उद्देश्य विद्यार्थियों को प्राथमिक चिकित्सा की जानकारी प्रदान कराना भी है। इसके अन्तर्गत विद्यार्थियों को प्राथमिक चिकित्सा सिद्धान्तों के साथ–साथ विभिन्न परिस्थितियों; जैसे–साँप के काटने पर, जलने, हड्डी टूटने आदि दुर्घटनाओं पर प्राथमिक चिकित्सा की जानकारी दी जाती है।

इस प्रकार की दुर्घटनाएँ कहीं भी, कभी भी तथा किसी के साथ भी घट सकती हैं और व्यक्ति का जीवन खतरे में पड़ सकता है। प्राथमिक चिकित्सा का ज्ञान इस परिस्थिति में पर्याप्त लाभकारी सिद्ध होता है।

(घ) रोगों के विषय में जानकारी प्रदान करना–स्वास्थ्य शिक्षा का उद्देश्य विद्यार्थियों को मुख्य–मुख्य रोगों की जानकारी देना भी है, जिससे वे अपने परिवार और अपने आस–पास के लोगों का स्वास्थ्य बनाए रखने में सहायक बन सकें।

स्वास्थ्य शिक्षा का महत्त्व–
“स्वस्थ शरीर में स्वस्थ मस्तिष्क निवास करता है।” इस उक्ति के अनुसार विद्यार्थियों के लिए स्वस्थ रहना अत्यावश्यक है; क्योंकि एक स्वस्थ विद्यार्थी ही विद्यालय की सभी गतिविधियों में उत्साहपूर्वक रुचि ले सकता है। अस्वस्थ विद्यार्थी न पूरा ज्ञान अर्जन कर सकता है, न ही प्रगति के मार्ग पर आगे बढ़ सकता है।

स्वास्थ्य शिक्षा विद्यार्थी को स्वास्थ्य से सम्बन्धित उन मौलिक सिद्धान्तों की जानकारी प्रदान करती है, जिनका पालन करके विद्यार्थी स्वस्थ आदतों एवं विचारधारा को अपनाकर सुखी जीवन व्यतीत कर सकता है।

स्वास्थ्य शिक्षा के अन्य मुख्य महत्त्व निम्नलिखित हैं-

  1. विद्यालयों में शिक्षक स्वास्थ्य शिक्षा विषय के अन्तर्गत विद्यार्थियों को विभिन्न पुस्तकों, चार्टी, चित्रों, मॉडलों, फिल्मों व स्लाइडों द्वारा स्वास्थ्य और स्वास्थ्य विज्ञान की जानकारी देते हैं, जो विद्यार्थियों को बीमारियों से बचाने में सहायक सिद्ध होती है।
  2. विद्यालयों में प्राप्त स्वास्थ्य शिक्षा के द्वारा विद्यार्थियों में स्वस्थ आदतों का विकास होता है; जैसे–प्रातःकाल की सैर करना, स्वास्थ्यप्रद सन्तुलित भोजन करना, हाथ और नाखूनों की सफाई रखना, स्वच्छ वस्त्र पहनना, प्रतिदिन दाँत साफ करना, अपने आस–पास सफाई रखना, कचरे को कचरा–पेटी में डालना आदि।
  3. विद्यालयों में प्राप्त स्वास्थ्य शिक्षा के आधार पर विद्यार्थी स्वयं में तथा अन्य लोगों में शारीरिक विकृति को ढूँढने में सफल हो सकते हैं; जैसे–हकलाना, तुतलाना, आत्मविश्वास में कमी होना, देखने में परेशानी होना आदि। इन विकृतियों को पहचानकर तथा उचित चिकित्सा द्वारा वे उन्हें शीघ्र ही ठीक कराने में भी सहायक होते हैं।
  4. विद्यालयों से प्राप्त स्वास्थ्य शिक्षा विद्यार्थियों को सम्पूर्ण सफाई और स्वच्छ पर्यावरण का ज्ञान कराती है।
  5. स्वास्थ्य शिक्षा अच्छे मानवीय सम्बन्ध स्थापित करने में भी सहायक होती है। शिक्षक विद्यार्थियों को बताते हैं कि वे किस प्रकार अपने मित्रों, पड़ोसियों, सम्बन्धियों व समुदाय के अच्छे स्वास्थ्य के लिए कार्य कर सकते हैं। शिक्षक विद्यार्थियों को यह भी शिक्षा देते हैं कि विद्यालय, घर और समाज के मध्य कैसे समन्वय स्थापित करना है।
  6. विद्यालयों में प्राप्त स्वास्थ्य शिक्षा द्वारा विद्यार्थी विपरीत परिस्थितियों में धैर्य बनाए रखने और जूझने का साहस प्रदान करती है, जिससे वह संकटकालीन अवस्था में सही प्राथमिक चिकित्सा प्रदान कर किसी का जीवन बचा सकता है।
  7. स्वास्थ्य शिक्षा के आधार पर विद्यार्थी विभिन्न रोगों के विषय में जानकर रोगी के भ्रमात्मक विचार और अन्धविश्वास को दूर कर सकता है और उसे उचित परामर्श और चिकित्सा प्रदान कराने में सहायक हो सकता है।
  8. शिक्षकों की उचित शिक्षा, निर्देश, आत्मबोध और स्वास्थ्य शिक्षा का ज्ञान विद्यार्थी में सेवा–भावना का संचार करता है।

उपसंहार–
इस प्रकार विद्यालयों में स्वास्थ्य शिक्षा की अनिवार्यता विद्यार्थी के न केवल शरीर को स्वस्थ रखने में सहायक सिद्ध होती है, वरन् उसके मानसिक, बौद्धिक, आध्यात्मिक और सामाजिक स्वास्थ्य को भी सबल बनाती है।

अच्छा स्वास्थ्य केवल रोग या दुर्बलता की अनुपस्थिति ही नहीं, बल्कि एक पूर्ण शारीरिक, मानसिक और सामाजिक खुशहाली का भी प्रतीक है। जब देश के लोग स्वस्थ होंगे तो उसकी समृद्धि और विकास में किसी प्रकार के सन्देह की कोई सम्भावना ही नहीं रहेगी।

रंगीला राजस्थान पर निबंध – Rangila Rajasthan Essay In Hindi

Rangila Rajasthan Essay In Hindi

रंगीला राजस्थान पर निबंध – Essay On Rangila Rajasthan In Hindi

राजस्थान के विविध रूप – Miscellaneous Forms Of Rajasthan

रूपरेखा–

  • प्रस्तावना,
  • हमारा प्रदेश राजस्थान,
  • रंगीला राजस्थान,
  • राजस्थान की विविधता,
  • उपसंहार।

साथ ही, कक्षा 1 से 10 तक के छात्र उदाहरणों के साथ इस पृष्ठ से विभिन्न हिंदी निबंध विषय पा सकते हैं।

रंगीला राजस्थान पर निबंध – Rangeela Raajasthaan Par Nibandh

प्रस्तावना–
संसार में अनेक भूभाग हैं। प्रत्येक की अपनी कोई–न–कोई विशेषता है। इन विशेषताओं से ही उसकी पहचान होती है। इनके बिना उसका परिचय अधूरा ही रह जाता है।

Rangila Rajasthan Essay In Hindi

हमारा प्रदेश राजस्थान–
भारत एक विशाल गणतन्त्र है। इसका स्वरूप संघीय है। राज्यों के इस संघ में अनेक राज्य सम्मिलित हैं। हमारा प्रदेश राजस्थान भी भारत का एक राज्य है। पन्द्रह अगस्त 1947 ई. को जब भारत स्वतंत्र हुआ, इस देश में अनेक छोटी–बड़ी रियासतें थीं। राजस्थान को तब राजपूताने के नाम से जाना जाता था। इस प्रदेश की अनेक रियासतों का भारत में विलय होने के पश्चात् जब राज्यों का गठन हुआ तो इस प्रदेश को राजस्थान नाम दिया गया।

Essay On Rangila Rajasthan In Hindi

रंगीला राजस्थान–
हमारे प्रदेश राजस्थान के अनेक रंग हैं, वह रंगीला है। रंगीला होने का आशय यह है कि इस प्रदेश की अनेक विविधताएँ हैं। राजस्थान के लोग, इनकी सभ्यता और संस्कृति, उनकी मान्यताएँ, उनके विश्वास आदि के अनेक रूप ही राजस्थान के अनेक रंग हैं। इन विभिन्न रंगों में रँगा होने के कारण ही वह रंगीला है। हमारा यह रंगीला राजस्थान बड़ा आकर्षक और प्यारा है।

राजस्थान की विविधता–
राजस्थान की धरती के दो रूप हैं। उसका पश्चिम–उत्तरी भाग रेतीला है तो दक्षिण–पूर्वी भाग हरा–भरा है। अरावली पर्वतमाला इसके बीच में फैली हुई है। इस प्रदेश के डूंगरों, ढाणियों और धोरों में जल का अभाव है। वहाँ सूखा रेत फैला है। वैसे प्रदेश की प्रकृति के ये दोनों ही रूप में आकर्षक हैं।

राजस्थान एक प्राचीन प्रदेश है। इसका इतिहास यहाँ के निवासियों की वीरता के किस्सों से भरा हुआ है। यहाँ के युवकों ने स्वदेश हित के लिए तलवार की धार पर चलने में परहेज नहीं किया है, नारियाँ भी जौहर–व्रत में कभी पीछे नहीं रही हैं। यहाँ के पुरुष बलवान और नारियाँ सुन्दर और कोमल होती हैं। राजस्थान में पुरातत्त्व के महत्व की अनेक चीजें मिलती हैं। अनेक प्राचीन किले, महल, हवेलियाँ और मंदिर राजस्थानी कला का प्रभाव प्रस्तुत करते हैं। हल्दीघाटी आज भी इस प्रदेश को प्राचीन गौरव की कथा सुनाती है।

राजस्थान में सभी धर्मों के अनुयायियों का निवास है। सभी के धार्मिक स्थल और उपासना केन्द्र राजस्थान में मिलते हैं। यहाँ नाथद्वारे के प्रसिद्ध मंदिर हैं तो अजमेर की दरगाह शरीफ भी है। श्री महावीर जी, कैलादेवी, मेंहदीपुर के बालाजी, पुष्कर आदि तीर्थस्थल, इस प्रदेश में मान्य विविध विश्वासों और उनकी एकता का प्रमाण हैं।

राजस्थान की सभ्यता–
संस्कृति अनुपम है। यहाँ होली, दीपावली, रक्षाबंधन, तीज, गणगौर आदि त्योहार मनाए जाते हैं। अनेक मेलों का आयोजन भी होता है। यहाँ पद्मिनी, पन्ना आदि वीरांगनाएँ हुई हैं तो सहजोबाई और मीरा जैसी भक्त नारियाँ भी जन्मी हैं।

राजस्थान आज विकास के पथ पर है। आगे बढ़ता हुआ भी वह अपनी परम्परागत संस्कृति से बँधा हुआ है। यहाँ संगमरमर तथा अन्य पत्थर, ताँबा तथा शीशा आदि अनेक खनिज पदार्थ भी प्राप्त होते हैं। यहाँ पुराने ढंग के गाँव हैं तो जयपुर, जोधपुर, उदयपुर आदि महानगर भी हैं। प्राचीन हस्तकलाओं के साथ नये और विशाल उद्योग भी इस प्रदेश में स्थापित हैं।

उपसंहार–
राजस्थान का भविष्य उज्ज्वल है। यह प्रदेश निरन्तर विकास के राजमार्ग पर आगे बढ़ रहा है। लोगों में शिक्षा और समृद्धि बढ़ रही है। वे राजस्थान के नवनिर्माण में लगे हैं। राजस्थान के रंगों को चटकीला बनाने में यहाँ के परिश्रमी लोगों का भारी योगदान है।

विज्ञापन के प्रभाव – Paragraph Speech On Vigyapan Ke Prabhav Essay In Hindi

Paragraph Speech On Vigyapan Ke Prabhav Essay In Hindi

विज्ञापन के प्रभाव – Paragraph Speech On Vigyapan Ke Prabhav Essay In Hindi

संकेत बिंदु :

  • विज्ञापन का अर्थ
  • विज्ञापन का प्रभाव
  • विज्ञापन से लाभ
  • विज्ञापन भारतीय
  • संस्कृति के लिए घातक।

साथ ही, कक्षा 1 से 10 तक के छात्र उदाहरणों के साथ इस पृष्ठ से विभिन्न हिंदी निबंध विषय पा सकते हैं।

विज्ञापन-कितने सच्चे कितने झूठे (Vigyapan Kitne Sache Kitne Jhoothe)- Advertisement – How True How False

मनुष्य अपने जीवन को सुख-सुविधामय बनाने के लिए विभिन्न वस्तुओं का उपयोग और उपभोग करता है। उसे लगने लगा है कि उपभोग ही सुख है। उस पर पाश्चात्य उपभोक्तावाद का असर हो रहा है, इसी का फायदा उठाकर उत्पादक अपनी वस्तुओं को बढ़ा-चढ़ाकर उसके सामने प्रस्तुत करते हैं। इसे ही विज्ञापन कहा जाता है। आजकल इसका प्रचार-प्रसार इतना अधिक हो गया है कि वर्तमान को विज्ञापन का युग कहा जाने लगा है।

विज्ञापन ने हमारे जीवन को अत्यंत गहराई से प्रभावित किया है। यह हमारा स्वभाव बनता जा रहा है कि दुकानों पर वस्तुओं के उन्हीं ब्रांडों की माँग करते हैं जिन्हें हम समाचार पत्र, दूरदर्शन या पत्र-पत्रिकाओं में दिए गए विज्ञापनों में देखते हैं। हमने विज्ञापन में किसी साबुन या टूथपेस्ट के गुणों की लुभावनी भाषा सुनी और हम उसे खरीदने के लिए उत्सुक हो उठते हैं।

विज्ञापनों की भ्रामक और लुभावनी भाषा बच्चों पर सर्वाधिक प्रभाव डालती है। बच्चे चाहते हैं कि वे उन्हीं वस्तुओं का प्रयोग करें जो शाहरुख खान, अमिताभ बच्चन या प्रियंका चोपड़ा द्वारा विज्ञापित करते हुए बेची जा रही हैं। वास्तव में बच्चों का कोमल मन और मस्तिष्क यह नहीं जान पाता है कि इन वस्तुओं के सच्चे-झूठे बखान के लिए ही उन्होंने लाखों रुपये एडवांस में ले रखे हैं।

यह विज्ञापनों का असर है कि हम कम गुणवत्ता वाली पर बहुविज्ञापित वस्तुओं को धड़ल्ले से खरीद रहे हैं। दुकानदार भी अपने उत्पाद-लागत का बड़ा हिस्सा विज्ञापनों पर खर्च कर रहे हैं और घटिया गुणवत्ता वाली वस्तुएँ भी उच्च लाभ अर्जित करते हुए बेच रहे हैं। उत्पादनकर्ता मालामाल हो रहे हैं और उपभोक्ताओं की जाने-अनजाने जेब कट रही है।

विज्ञापन का लाभ यह है कि इससे हमारे सामने चुनाव का विकल्प उपस्थित हो जाता है। किसी उत्पादक विशेष का बाज़ार से एकाधिकार खत्म हो जाता है। उपभोक्ता वस्तुओं के मूल्य और गुणवत्ता का तुलनात्मक अध्ययन कर आवश्यक वस्तुएँ खरीदते हैं, परंतु इसके लिए इनकी लुभावनी भाषा से बचने की आवश्यकता रहती है।

विज्ञापन भारतीय संस्कृति के लिए हितकारी नहीं। आज कोई भी विज्ञापन हो या किसी आयुवर्ग के विज्ञापन हों, पुरुषोपयोगी वस्तुओं का विज्ञापन हो, बच्चों या महिलाओं के प्रयोग की वस्तुओं का विज्ञापन हो, नारी के नग्नदेह के बिना पूरा नहीं होता। अनेक विज्ञापन परिवार के सदस्यों के साथ नहीं देखे जा सकते हैं।
एक ओर विज्ञापनों से वस्तुओं का मूल्य बढ़ रहा हैं, तो दूसरी ओर बच्चों का कोमल मन विकृत हो रहा है और वे जिद्दी होते जा रहे हैं। विज्ञापनों में छोटे होते जा रहे नायक-नायिका के वस्त्रों को देखकर युवावर्ग में भी अधनंगानप बढ़ रहा है। गरीब और मध्यम वर्ग का वजट विज्ञापनों के कारण बिगड़ रहा है। हमें बहुत सोच-समझकर ही विज्ञापनों पर विश्वास करना चाहिए।

Paragraph Speech On Vigyapan Ke Prabhav

विज्ञान: वरदान या अभिशाप पर निबंध – Science Essay In Hindi

Science Essay In Hindi

विज्ञान: वरदान या अभिशाप पर निबंध – Essay On Science In Hindi

“वास्तव में विज्ञान ने जितनी समस्याएँ हल की हैं, उतनी ही नई समस्याएँ खड़ी भी कर दी हैं।”

–श्रीमती इन्दिरागांधी

साथ ही, कक्षा 1 से 10 तक के छात्र उदाहरणों के साथ इस पृष्ठ से विभिन्न हिंदी निबंध विषय पा सकते हैं।

विज्ञान: वरदान या अभिशाप पर निबंध – Vigyaan: Varadaan Ya Abhishaap Par Nibandh

रूपरेखा–

  1. प्रस्तावना,
  2. विज्ञान : वरदान के रूप में–
    • (क) परिवहन के क्षेत्र में,
    • (ख) संचार के क्षेत्र में,
    • (ग) चिकित्सा के क्षेत्र में,
    • (घ) खाद्यान्न के क्षेत्र में,
    • (ङ) उद्योगों के क्षेत्र में,
    • (च) दैनिक जीवन में,
  3. विज्ञान : एक अभिशाप के रूप में,
  4. उपसंहार।

प्रस्तावना–
विज्ञान ने हमें अनेक सुख–सुविधाएँ प्रदान की हैं, किन्तु साथ ही विनाश के विविध साधन भी जुटा दिए हैं। इस स्थिति में यह प्रश्न विचारणीय हो गया है कि विज्ञान मानव कल्याण के लिए कितना उपयोगी है? वह समाज के लिए वरदान है या अभिशाप?

Science Essay In Hindi

विज्ञान : वरदान के रूप में आधुनिक विज्ञान ने मानव–सेवा के लिए अनेक प्रकार के साधन जुटा दिए हैं। पुरानी कहानियों में वर्णित अलादीन के चिराग का दैत्य जो काम करता था, उन्हें विज्ञान बड़ी सरलता से कर देता है।

Essay On Science In Hindi

रातो–
रात महल बनाकर खड़ा कर देना, आकाश–मार्ग से उड़कर दूसरे स्थान पर चले जाना, शत्रु के नगरों को मिनटों में बरबाद कर देना आदि विज्ञान के द्वारा सम्भव किए गए ऐसे ही कार्य हैं। विज्ञान मानव–जीवन के लिए वरदान सिद्ध हुआ है। उसकी वरदायिनी शक्ति ने मानव को अपरिमित सुख–समृद्धि प्रदान की है; यथा

(क) परिवहन के क्षेत्र में पहले लम्बी यात्राएँ दुरूह स्वप्न–सी लगती थीं, किन्तु आज रेल, मोटर और वायुयानों ने लम्बी यात्राओं को अत्यन्त सुगम व सुलभ कर दिया है। पृथ्वी पर ही नहीं, आज के वैज्ञानिक साधनों के द्वारा मनुष्य ने चन्द्रमा पर भी अपने कदमों के निशान बना दिए हैं।

(ख) संचार के क्षेत्र में टेलीफोन, टेलीग्राम, टेलीप्रिण्टर, टैलेक्स, फैक्स, ई–मेल आदि के द्वारा क्षणभर में एक स्थान से दूसरे स्थान को सन्देश पहुँचाए जा सकते हैं। रेडियो और टेलीविजन द्वारा कुछ ही क्षणों में किसी समाचार को विश्वभर में प्रसारित किया जा सकता है।

(ग) चिकित्सा के क्षेत्र में चिकित्सा के क्षेत्र में तो विज्ञान वास्तव में वरदान सिद्ध हुआ है। आधुनिक चिकित्सा पद्धति इतनी विकसित हो गई है कि अन्धे को आँखें और विकलांगों को अंग मिलना अब असम्भव नहीं है। कैंसर, टी०बी०, हृदयरोग जैसे भयंकर और प्राणघातक रोगों पर विजय पाना विज्ञान के माध्यम से ही सम्भव हो सका है।

(घ) खाद्यान्न के क्षेत्र में आज हम अन्न उत्पादन एवं उसके संरक्षण के मामले में आत्मनिर्भर होते जा रहे हैं। इसका श्रेय आधुनिक विज्ञान को ही है। विभिन्न प्रकार के उर्वरकों, कीटनाशक दवाओं, खेती के आधुनिक साधनों तथा सिंचाई सम्बन्धी कृत्रिम व्यवस्था ने खेती को अत्यन्त सरल व लाभदायक बना दिया है।

(ङ) उद्योगों के क्षेत्र में उद्योगों के क्षेत्र में विज्ञान ने क्रान्तिकारी परिवर्तन किए हैं। विभिन्न प्रकार की मशीनों ने उत्पादन की मात्रा में कई गुना वृद्धि की है।

(च) दैनिक जीवन में हमारे दैनिक जीवन का प्रत्येक कार्य अब विज्ञान पर ही आधारित है। विद्युत् हमारे जीवन का महत्त्वपूर्ण अंग बन गई है। बिजली के पंखे, कुकिंग गैस स्टोव, फ्रिज आदि के निर्माण ने मानव को सुविधापूर्ण जीवन का वरदान दिया है। इन आविष्कारों से समय, शक्ति और धन की पर्याप्त बचत हुई है।

विज्ञान ने हमारे जीवन को इतना अधिक परिवर्तित कर दिया है कि यदि दो–सौ वर्ष पूर्व का कोई व्यक्ति हमें देखे तो वह यही समझेगा कि हम स्वर्ग में रह रहे हैं। यह कहने में कोई अतिशयोक्ति न होगी कि भविष्य का विज्ञान मृत व्यक्ति को भी जीवन दे सकेगा। इसलिए विज्ञान को वरदान न कहा जाए तो और क्या कहा जाए?

विज्ञान : एक अभिशाप के रूप में विज्ञान का एक दूसरा पहलू भी है। विज्ञान ने मनुष्य के हाथ में बहुत अधिक शक्ति दे दी है, किन्तु उसके प्रयोग पर कोई बन्धन नहीं लगाया है। स्वार्थी मानव इस शक्ति का प्रयोग जितना रचनात्मक कार्यों के लिए कर रहा है, उससे अधिक प्रयोग विनाशकारी कार्यों के लिए भी कर रहा है।

सुविधा प्रदान करनेवाले उपकरणों ने मनुष्य को आलसी बना दिया है। यन्त्रों के अत्यधिक उपयोग ने देश में बेरोजगारी को जन्म दिया है। परमाणु–अस्त्रों के परीक्षणों ने मानव को भयाक्रान्त कर दिया है। जापान के नागासाकी और हिरोशिमा नगरों का विनाश विज्ञान की ही देन माना गया है। मनुष्य अपनी पुरानी परम्पराएँ और आस्थाएँ भूलकर भौतिकवादी होता जा रहा है।

भौतिकता को अत्यधिक महत्त्व देने के कारण उसमें विश्वबन्धुत्व की भावना लुप्त होती जा रही है। परमाणु तथा हाइड्रोजन बम नि:सन्देह विश्व–शान्ति के लिए खतरा बन गए हैं। इनके प्रयोग से किसी भी क्षण सम्पूर्ण विश्व तथा विश्व–संस्कृति का विनाश पलभर में ही सम्भव है।

उपसंहार–
विज्ञान का वास्तविक लक्ष्य है–मानव–हित और मानव–कल्याण। यदि विज्ञान अपने इस उद्देश्य की दिशा में पिछड़ जाता है तो विज्ञान को त्याग देना ही हितकर होगा। राष्ट्रकवि रामधारीसिंह ‘दिनकर’ ने अपनी इस धारणा को इन शब्दों में व्यक्त किया है-

सावधान, मनुष्य, यदि विज्ञान है तलवार,
तो इसे दे फेंक, तजकर मोह, स्मृति के पार।
हो चुका है सिद्ध, है तू शिशु अभी अज्ञान,
फूल–काँटों की तुझे कुछ भी नहीं पहचान।
खेल सकता तू नहीं ले हाथ में तलवार,
काट लेगा अंग, तीखी है बड़ी यह धार।

नर हो न निराश करो मन को पर निबंध – Nar Ho Na Nirash Karo Man Ko Essay In Hindi

Nar Ho Na Nirash Karo Man Ko Essay In Hindi

नर हो न निराश करो मन को पर निबंध – Essay On Nar Ho Na Nirash Karo Man Ko In Hindi

मन के हारे हार है मन के जीते जीत – Losers Of Mind Are Victories Of Hearts

रूपरेखा–

  • प्रस्तावना,
  • आशा सफलता और निराशा असफलता है,
  • अकर्मण्यता और भाग्यवाद,
  • भाग्य का निर्माता– मनुष्य,
  • उपसंहार।

साथ ही, कक्षा 1 से 10 तक के छात्र उदाहरणों के साथ इस पृष्ठ से विभिन्न हिंदी निबंध विषय पा सकते हैं।

नर हो न निराश करो मन को पर निबंध – Nar Ho Na Nirash Karo Man Ko Par Nibandh

प्रस्तावना–
मनुष्य एक विवेकशील प्राणी है। उसका विवेक ही उसे अन्य जीवों के ऊपर का प्राणी बनाता है। मानव जीवन में अनेक समस्याएँ और संकट आते हैं। इनका सामना उसे करना ही पड़ता है। अपने विवेक के सहारे वह जीवन में सफलता पाता है और निरन्तर आगे बढ़ता है। आशा सफलता और निराशा असफलता है–मनुष्य के मन में आशा और निराशा नामक दो भाव होते हैं।

अपने अनुकूल घटित होने की सोच आशा है। आशा को जीवन का आधार कहा गया है। भविष्य में सब कुछ अच्छा, आनन्ददायक और इच्छा के अनुसार हो, यही आशा है, यही मनुष्य चाहता भी है। इसके विपरीत कोई बात जब होती है तो मनुष्य के हृदय में जो उदासी और बेचैनी उत्पन्न होती है, वही निराशा है। निराश मनुष्य जीवन की दौड़ में पीछे छूट जाता है।

Nar Ho Na Nirash Karo Man Ko Essay

अकर्मण्यता और भाग्यवाद–
धार्मिक मान्यताएँ भाग्यवाद की शिक्षा देती हैं। धर्म कहता है जीवन में जो कुछ होता है। वह पूर्व और किसी अन्य शक्ति द्वारा नियोजित है। मनुष्य उसे बदल नहीं सकता।

जो भाग्य में लिखा है, वह होकर ही रहेगा। भाग्यवाद का यह विचार मनुष्य को अकर्मण्य बना देता है अथवा यों भी कह सकते हैं कि अकर्मण्य और आलसी व्यक्ति भाग्य का सहारा लेकर अपने दोष छिपाता है। राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त ने कहा है करके विधिवाद न खेद करो। निज लक्ष्य निरन्तर भेद करो।

बनता बस उद्यम ही विधि है। मिलती जिससे सुख की निधि है। भाग्य का निर्माता–मनुष्य–मनुष्य अपने भाग्य का निर्माण स्वयं ही करता है। ईश्वर ने उसे विवेक सोचने के लिए और दो हाथ काम करने के लिए दिए हैं।

इनका सही ढंग से प्रयोग करके वह अपने भाग्य का निर्माण करता है। संसार में बिना कर्म किए कुछ प्राप्त नहीं होता। गौतम बुद्ध ने भिक्षुओं को शिक्षा दी थी–’चरैवेति’ अर्थात् निरन्तर चलते रहो, ठहरो मत, आगे बढ़ो। भाग्य के निर्माण का यही मंत्र है।

उत्साहपूर्वक निरन्तर कर्मशील रहने वाला ही सफलता के शिखर पर पहुँचता है जो “देखकर बाधा विविध और विघ्न घबराते नहीं। रह कर भरोसे भाग्य के, कर भीड़ पछताते नहीं”–वही सच्चे कर्मवीर होते हैं। उनके मन में निराशा के भाव कभी नहीं आते। वे निरन्तर आगे बढ़ते हैं और जीवन में सफलता पाते हैं।

Nar Ho Na Nirash Karo Man Ko Essay In Hindi

उपसंहार–
मानव मन शक्ति का केन्द्र है। यदि उसमें दृढ़ता नहीं है, कमजोरी है तो वह जल्दी निराश हो जाता है और हार मान लेता है। इसके विपरीत दृढ़ संकल्प वाला आशावादी मन कभी हारता नहीं।

मनुष्य को अपने मन को निराशा से बचाना चाहिए, अपनी संकल्प शक्ति को दृढ़ बनाना चाहिए। मन को हारने मत दो तभी जीवन में जीत के फल का मीठा स्वाद पा सकोगे।

राष्ट्रीय एकता का महत्व पर निबंध – Importance of National Integration Essay In Hindi

Importance Of National Integration In Hindi

राष्ट्रीय एकता का महत्व पर छोटे-बड़े निबंध (Short and Long Essay on Importance of National Integration in Hindi)

राष्ट्रीय सुरक्षा- हमारा कर्त्तव्य – National Security – Our Duty

संकेत बिंद –

  • राष्ट्रीय एकता का अभिप्राय
  • राष्ट्रीय एकता-अखण्डता की आवश्यकता
  • राष्टीय
  • एकता, अखण्डता की सांस्कृतिक विरासत
  • राष्ट्रीय एकता का वर्तमान स्वरूप
  • राष्ट्रीय एकता और हमारा कर्तव्य
  • उपसंहार।

साथ ही, कक्षा 1 से 10 तक के छात्र उदाहरणों के साथ इस पृष्ठ से विभिन्न हिंदी निबंध विषय पा सकते हैं।

राष्ट्रीय एकता का अभिप्राय –
राष्ट्रीय एकता का अर्थ है- हमारी एक राष्ट्र के रूप में पहचान। हम सर्वप्रथम भारतीय हैं इसके बाद हिन्दु, मुसलमान, ईसाई, सिख आदि हैं। अनेक विविधताओं और भिन्नताओं के रहते हुए भी आन्तरिक एकता की भावना, देश के सभी धर्मों, परम्पराओं, आचार-विचारों, भाषाओं और उपसंस्कृतियों का आदर करना, भारतभूमि और सभी भारतवासियों से हार्दिक लगाव बनाए रखना, यही राष्ट्रीय एकता का स्वरूप है।

भारत एक विशाल-विस्तृत सागर के समान हैं। जिस प्रकार अनेक नदियाँ बहकर सागर में जा मिलती हैं और उनकी पृथकता मिट जाती है, उसी प्रकार विविध वर्णों, धर्मों, जातियों, विचारधाराओं के लोग भारतीयता की भावना से बँधकर एक हो जाते हैं। जिस प्रकार अनेक पेड़-पौधे मिलकर एक वन प्रदेश का निर्माण करते हैं, उसी प्रकार विविध मतावलम्बियों की एकता से ही भारत का निर्माण हुआ है।

राष्ट्रीय एकता-अखण्डता आवश्यकता-भारत विविधताओं का देश है। यह एक संघ-राज्य है। अनेक राज्यों या प्रदेशों का एकात्म स्वरूप है। यहाँ हर राज्य में भिन्न-भिन्न रूप, रंग, आचार, विचार, भाषा और धर्म के लोग निवास करते हैं। इन प्रदेशों की स्थानीय संस्कृतियाँ और परम्पराएँ हैं। इन सभी से मिलकर हमारी राष्ट्रीय या भारतीय संस्कृति का विकास हुआ है।

हम सब भारतीय हैं, यही भावना सारी विभिन्नताओं को बाँधने वाला सूत्र है। यही हमारी राष्ट्रीय एकता का अर्थ और आधार है। विविधता में एकता भारत राष्ट्र की प्रमुख विशेषता है। उसमें अनेक धर्मों और सांस्कृतिक विचारधाराओं का समन्वय है। भारतीयता के सूत्र में बँधकर ही हम दृढ़ एकता प्राप्त कर सकते हैं। राष्ट्रीय एकता और अखण्डता के बिना भारत का भविष्य अंधकारमय है।

Importance of National Integration Essay In Hindi

राष्ट्रीय एकता-अखण्डता सांस्कृतिक विरासत-
राष्ट्रीय एकता और अखण्डता भारतीय संस्कृति की देन है। भारत विभिन्न धर्मों, विचारों और मतों को मानने वालों का निवास रहा है। भारतीय संस्कृति इन विभिन्नताओं का समन्वित स्वरूप है। भारत की भौगोलिक स्थिति ने भी इस सामाजिक संस्कृति के निर्माण में योगदान किया है। विभिन्न आधात सहकर भी भारतीय एकता सुरक्षित रही है, इसका कारण उसका भारत की सामाजिक संस्कृति से जन्म होना ही है।

Importance of National Integration Essay

राष्ट्रीय एकता का वर्तमान स्वरूप –
आज हमारी राष्ट्रीय एकता संकट में है। यह संकट बाहरी नहीं आंतरिक है। हमारे राजनेता और शासकों ने अपने भ्रष्ट आचरण से देश की एकता को संकट में डाल दिया है।

अपने वोट-बैंक को बनाए रखने के प्रयास में इन्होंने भारतीय समाज को जाति-धर्म, आरक्षित-अनारक्षित, अगड़े-पिछड़े, अल्पसंख्यक-बहुसंख्यक और प्रादेशिक कट्टरता के आधार पर बाँट दिया है। इन बड़बोले, कायर और स्वार्थी लोगों ने राष्ट्रीय एकता को संकट में डाल दिया है।

राष्ट्रीय एकता और हमारा कर्त्तव्य –
राष्ट्रीय एकता पर हो रहे इन प्रहारों ने राष्ट्र के रूप में भारत के अस्तित्व पर ही प्रश्नचिह्न लगा दिए हैं। इस संकट का समाधान किसी कानून के पास नहीं है। आज हर राष्ट्रप्रेमी नागरिक को भ्रष्टाचार के विरुद्ध खड़ा होना है।

आपसी सद्भाव और सम्मान के साथ प्रेमभाव को बढ़ावा देना है। समाज के नेतृत्व व संगठन का दायित्व राजनेताओं से छीनकर नि:स्वार्थ समाजसेवियों के हाथों में सौंपना है। इस महान कार्य में समाज का हर एक वर्ग अपनी भूमिका निभा सकता है। राष्ट्रीय एकता को बचाए रखना हमारा परम कर्त्तव्य है।

उपसंहार-
भारत विश्व का एक महत्वपूर्ण जनतंत्र है। लम्बी पराधीनता के बाद वह विकास के पथ पर अग्रसर है। भारत की प्रगति के लिए उसकी एकता-अखण्डता का बना रहना आवश्यक है, प्रत्येक भारतीय का कर्त्तव्य है कि भारत की अखण्डता को सुनिश्चित करे।

स्वास्थ्य ही धन है पर निबंध – Health Is Wealth Essay In Hindi

Health Is Wealth Essay In Hindi

“स्वास्थ्य ही धन है” पर छोटे तथा बड़े निबंध (Essay on Health is Wealth in Hindi)

बढ़ते अस्पताल : घटता स्वास्थ्य – पहला सुख निरोगी काया। (Growing Hospital: Declining Health – The First Joyous Body)

रूपरेखा-

  • प्रस्तावना,
  • स्वास्थ्य एक वरदान,
  • अस्वस्थता के कारण,
  • स्वास्थ्य-सुविधाओं की भूमिका,
  • चिकित्सा पर निर्भरता का परिणाम,
  • स्वस्थ जीवनचर्या ही आशा का केन्द्र,
  • उपसंहार।

साथ ही, कक्षा 1 से 10 तक के छात्र उदाहरणों के साथ इस पृष्ठ से विभिन्न हिंदी निबंध विषय पा सकते हैं।

प्रस्तावना-
ईश्वर या प्रकृति ने मनुष्य को दवाओं के साथ पैदा नहीं किया। दवाएँ आदमी ने बनायीं। दवाओं की आवश्यकता अस्वस्थ होने पर पड़ी। पशुओं को देखें-पालतू पशुओं को नहीं-स्वाभाविक और मुक्त जीवन बिताने वाले पशु, पक्षी, कीट, पतंग आदि। इन प्राणियों ने किसी चिकित्सा-प्रणाली की खोज नहीं की। न कोई अस्पताल ही खोले, पर वे मनुष्य से अधिक स्वस्थ हैं, अपनी पूरी आयु तक जीते हैं।

Health Is Wealth Essay In Hindi

इसका सीधा-
सा अर्थ यही है कि केवल चिकित्सा की सुविधाएँ बढ़ने से मनुष्यों का स्वस्थ रहना सम्भव नहीं है। आज जितने अस्पताल बढ़ते जा रहे हैं उतने ही रोग भी बढ़ते जा रहे हैं। अत: स्वस्थ रहने के लिए क्या उपाय होने चाहिए, इस पर विचार करना आवश्यक है।

स्वास्थ्य एक वरदान-अनेक प्रकार के सुख मनुष्य-जीवन में माने गये हैं। सुन्दर वस्त्र, स्वादिष्ट भोजन, भव्य निवास, सुखद मनोरंजन, वंशवृद्धि, शक्ति और अधिकार प्राप्ति आदि-आदि सुखों के विविध स्वरूप हैं। किन्तु गहराई में देखें तो शरीर की नीरोगता या स्वस्थता ही सबसे बड़ा सुख है। तभी तो कहा गया है- “पहला सुख निरोगी काया”।

सारे सुखों का आनन्द स्वस्थ व्यक्ति ही उठा सकता है। कहावत है कि स्वस्थ शरीर में स्वस्थ मस्तिष्क निवास करता है। अस्वस्थ व्यक्ति का जीवन उमंगरहित, पराश्रित और असन्तोष से पूर्ण रहता है।

Essay on Health is Wealth in Hindi

अस्वस्थता के कारण-
वातावरण का प्रदूषण, अनियमित दिनचर्या, विषम जलवायु, संक्रमण, असन्तुलित भोजन, कुपोषण, अनियन्त्रित आचरण तथा स्वास्थ्य के प्रति उदासीनता आदि अस्वस्थता के प्रमुख कारण हैं। स्वास्थ्य का सम्बन्ध तन और मन दोनों से है। केवल शरीर की स्वस्थता ही पर्याप्त नहीं है, मन का स्वस्थ होना भी परम आवश्यक है।

किसी भी रूप में शरीर की स्वाभाविक कार्य-
प्रणाली में व्यतिक्रम उत्पन्न होना रोग है। रोग से मुक्त होने के लिए औषधि ली जाती है, चिकित्सा कराई जाती है। लेकिन तनिक-तनिक-सी बातों पर दवाओं का सेवन करना लाभ के बजाय हानि पहुँचाता स्वास्थ्य-सुविधाओं की भूमिका-आजकल स्वास्थ्य सुविधाओं अथवा चिकित्सा-सुविधाओं का पर्याप्त विस्तार हुआ है।

विज्ञान की कृपा से नित्य नयी औषधियाँ सामने आ रही हैं। अस्पताल खुलते जा रहे हैं। डॉक्टरों की संख्या में भी निरन्तर वृद्धि हो रही है। किन्तु ज्यों-ज्यों अस्पताल और क्लीनिक खुलते जा रहे हैं, रोगियों की संख्या बढ़ती जा रही है।

हम समझते थे कि जितने अधिक अस्पताल और डॉक्टर होंगे, लोगों का स्वास्थ्य उतना ही अच्छा होगा। परन्तु यह भ्रम अब टूटता जा रहा चिकित्सा पर निर्भरता का परिणाम-रोगों से बचने की जो क्षमता हमें प्रकृति से प्राप्त हुई थी, वह निरन्तर कम होती जा रही है।

औषधियाँ एक रोग को ठीक करती हैं तो दस को पैदा कर रही हैं। उनकी प्रतिक्रियाएँ बड़ी जटिल और दूरगामी हैं। नये-नये रोग उत्पन्न हो रहे हैं। कैन्सर और एड्स जैसे असाध्य रोग आम होते जा रहे हैं। बच्चे भी मधुमेह तथा रक्तचाप से पीड़ित हैं। इसके साथ ही अस्पतालों में रोगियों का शोषण भी बड़ी समस्या बन चुका हैं। आवश्यक जाँचें कराना शोषण का लज्जाजनक पहलू है।

स्वस्थ जीवनचर्या ही आशा का केन्द्र-पहले स्वस्थ रहने के लिए मनुष्य-समाज में आहार और व्यवहार के आवश्यक नियम प्रचलित थे। जागने, सोने, खाने, पहनने तथा दिनचर्या का एक निश्चित विधान था।

आज उसे पुराणपंथी आचार मानकर त्याग दिया गया है। एक पाश्चात्य विद्वान ने कहा है कि सभ्यता ने मनुष्य को जो सबसे हानिकारक वस्तु दी है, वह है देर से सोना तथा देर से जागना।

एक कहावत है-इलाज से बचाव अधिक महत्त्वपूर्ण है। रोगों से बचाव कैसे हो ? इसके लिए स्वस्थ जीवनचर्या को अपनाना ही एकमात्र उपाय है। उचित आहार-विहार, व्यायाम, स्वच्छता, सावधानी अपनाने से शरीर बलवान, रोग प्रतिरोधी-क्षमतायुक्त और स्वस्थ रहेगा। अस्पतालों पर निर्भरता घटेगी।

उपसंहार-
हमारे शास्त्रों में योग द्वारा स्वस्थ रहने की विधियाँ लिखी हुई हैं। हजारों व्यक्ति योगाभ्यास से स्वस्थ होते रहे हैं। औषधियाँ अथवा अस्पताल कभी स्वास्थ्य का विकल्प नहीं बन सकते। अत: हमें अपने ऋषि-मुनियों द्वारा बनाई गई स्वस्थ रहने की विधियों को अपनाकर ही अपने तन और मन को स्वस्थ रखना चाहिए।

मेरी अविस्मरणीय यात्रा पर निबंध – My Unforgettable Trip Essay In Hindi

My Unforgettable Trip Essay In Hindi

मेरी अविस्मरणीय यात्रा पर निबंध – Essay On My Unforgettable Trip In Hindi

संकेत-बिंदु –

  • प्रस्तावना
  • यात्रा की अविस्मरणीय बातें
  • उपसंहार
  • यात्रा की तैयारी
  • अविस्मरणीय होने के कारण

साथ ही, कक्षा 1 से 10 तक के छात्र उदाहरणों के साथ इस पृष्ठ से विभिन्न हिंदी निबंध विषय पा सकते हैं।

प्रस्तावना – मनुष्य आदिकाल से ही घुमंतू प्राणी रहा है। यह घुमंतूपन उसके स्वभाव का अंग बन चुका है। आदिकाल में मनुष्य अपने भोजन और आश्रय की तलाश में भटकता था तो बाद में अपनी बढ़ी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए। इनके अलावा यात्रा का एक और उद्देश्य है-मनोरंजन एवं ज्ञानवर्धन। कुछ लोग समय-समय पर इस तरह की यात्राएँ करना अपने व्यवहार में शामिल कर चुके हैं। ऐसी एक यात्रा करने का अवसर मुझे अपने परिवार के साथ मिला था। दिल्ली से वैष्णों देवी तक की गई इस यात्रा की यादें अविस्मरणीय बन गई हैं।

My Unforgettable Trip Essay In Hindi

यात्रा की तैयारी – वैष्णों देवी की इस यात्रा के लिए मन में बड़ा उत्साह था। यह पहले से ही तय कर लिया गया था कि इस बार दशहरे की छुट्टियों में हमें वैष्णों देवी की यात्रा करना है। इसके लिए दो महीने पहले ही आरक्षण करवा लिया गया था। आरक्षण करवाते समय यह ध्यान रखा गया था कि हमारी यात्रा दिल्ली से सवेरे शुरू हो ताकि रास्ते के दृश्यों का आनंद उठाया जा सके। रास्ते में खाने के लिए आवश्यक खाद्य पदार्थ घर पर ही तैयार किए गए। चूँकि हमें सवेरे-सवेरे निकलना था, इसलिए कुछ गर्म कपड़ों के अलावा अन्य कपड़े एक-दो पुस्तकें, पत्र-पत्रिकाएँ टिकट, पहचान पत्र आदि दो-तीन सूटकेसों में यथास्थान रख लिए गए। शाम का खाना जल्दी खाकर हम अलार्म लगाकर सो गए ताकि जल्दी उठ सकें और रेलवे स्टेशन पहुँच सकें।

Essay On My Unforgettable Trip In Hindi

यात्रा की अविस्मरणीय बातें – दिल्ली से जम्मू और वैष्णों देवी की इस यात्रा में एक नहीं अनेक बातें अविस्मरणीय बन गई। हम सभी लगभग चार बजे नई दिल्ली से जम्मू जाने वाली ट्रेन के इंतजार में प्लेटफॉर्म संख्या 5 पर पहुँच गए। मैं सोचता था कि इतनी जल्दी प्लेटफॉर्म पर इक्का-दुक्का लोग ही होंगे पर मेरी यह धारणा गलत साबित हुई। प्लेटफार्म पर सैकड़ों लोग थे। हॉकर और वेंडर खाने-पीने की वस्तुएँ समोसे, छोले, पूरियाँ और सब्जी बनाने में व्यस्त थे। अखबार वाले अखबार बेच रहे थे। कुली ट्रेन आने का इंतज़ार कर रहे थे और कुछ लोग पुराने गत्ते बिछाए चद्दर ओढ़कर नींद का आनंद ले रहे थे।

ट्रेन आने की घोषणा होते ही प्लेटफार्म पर हलचल मच गई। यात्री और कुली सजग हो उठे तथा वेंडरों ने अपना-अपना सामान उठा लिया। ट्रेन आते ही पहले चढ़ने के चक्कर में धक्का-मुक्की होने लगी। दो-चार यात्री ही उस डिब्बे से उतरे पर चढ़ने वाले अधिक थे। हम लोग अपनी-अपनी सीट पर बैठ भी न पाए थे कि शोर उठा, ‘जेब कट गई’। जिस यात्री की जेब कटी थी उसका पर्स और मोबाइल फ़ोन निकल चुका था। हमने अपनी-अपनी जेबें चेक किया, सब सही-सलामत था। आधे घंटे बाद ट्रेन अपने गंतव्य की ओर चल पड़ी। एक-डेढ़ घंटे चलने के बाद बाहर का दृश्य खिड़की से साफ़-साफ़ नज़र आने लगा। रेलवे लाइन के दोनों ओर दूर-दूर तक धरती ने हरी चादर बिछा दी थी। हरियाली का ऐसा नजारा दिल्ली में दुर्लभ था। ऐसी हरियाली घंटों देखने के बाद भी आँखें तृप्त होने का नाम नहीं ले रही थीं। हमारी ट्रेन आगे भागी जा रही थी और पेड़ पीछे की ओर। कभी-कभी जब बगल वाली पटरी से कोई ट्रेन गुज़रती तो लगता कि परदे पर कोई ट्रेन गुज़र रही थी।

ट्रेन में हमें नाश्ता और काफी मिल गई। दस बजे के आसपास अब खेतों में चरती गाएँ और अन्य जानवर नज़र आने लगे। उन्हें चराने वाले लड़के हमें देखकर हँसते, तालियाँ बजाते और हाथ हिलाते। सब कुछ मस्तिष्क की मेमोरी कार्ड में अंकित होता जा रहा था। लगभग एक बजे ट्रेन में ही हमें खाना दिया गया। खाना स्वादिष्ट था। हमने पेट भर खाया और जब नींद आने लगी तब सो गए। चक्की बैंक पहुँचने पर ही हमारी आँखें शोर सुनकर खुली कि बगल वाली सीट से कोई सूटकेस चुराने की कोशिश कर रहा था पर पकड़ा गया। कुछ और आगे बढ़ने पर पर्वतीय सौंदर्य देखकर आँखें तृप्त हो रही थीं। जम्मू पहुँचकर हम ट्रेन से उतरे और बस से कटरा गया। सीले रास्ते पर चलने का रोमांच हमें कभी नहीं भूलेगा। कटरा में रातभर आराम करने के बाद हम सवेरे तैयार होकर पैदल वैष्णों देवी के लिए चल पड़े और दो बजे वैष्णों देवी पहुंच गए।

अविस्मरणीय होने के कारण – इस यात्रा के अविस्मरणीय होने के कारण मेरी पहली रेल यात्रा, प्लेटफॉर्म का दृश्य, ट्रेन में चोरी, जेब काटने की घटना के अलावा प्राकृतिक दृश्य और पहाड़ों को निकट से देखकर उनके नैसर्गिक सौंदर्य का आनंद उठाना था। पहाड़ आकार में इतने बड़े होते हैं, यह उनको देखकर जाना। पहाड़ी जलवायु और वहाँ के लोगों का परिश्रमपूर्ण जीवन का अनुभव मुझे सदैव याद रहेगा।

उपसंहार – मैं सोच भी नहीं सकता था कि हरे-भरे खेत इतने आकर्षक होंगे और ट्रेन की यह यात्रा इस तरह रोमांचक होगी। पहाड़ी सौंदर्य देखकर मन अभिभूत हो उठा। अब तो इसी प्रकार की कोई और यात्रा करने की उत्सुकता मन में बनी हुई है। इस यात्रा की यादें मुझे सदैव रोमांचित करती रहेंगी।

सड़क सुरक्षा पर निबंध – Road Safety Essay in Hindi

Road Safety Essay in Hindi

सड़क सुरक्षा पर छोटे तथा बड़े निबंध (Essay on Road Safety in Hindi)

रूपरेखा-

  1. प्रस्तावना,
  2. यातायात के प्रमुख साधन,
  3. सड़क के नियम एवं संकेत-
    • (क) नियम,
    • (ख) संकेत,
  4. उपसंहार।

साथ ही, कक्षा 1 से 10 तक के छात्र उदाहरणों के साथ इस पृष्ठ से विभिन्न हिंदी निबंध विषय पा सकते हैं।

प्रस्तावना-
सुरक्षित जीवन के लिए सड़क के नियम एवं संकेतों का भलीभाँति पालन किया जाना आवश्यक है। सड़क के नियमों का सही प्रकार पालन करने से हम यातायात विषयक बढ़ती हुई दुर्घटनाओं से स्वयं को सुरक्षित रख सकते हैं।

सड़कों पर दौड़ते वाहनों की संख्या में वृद्धि तथा यातायात सम्बन्धी संकेतों के अभाव में अनहोनी दुर्घटनाएँ घट जाती हैं जिनसे मनुष्य की या तो दुर्घटनास्थल पर ही मृत्यु हो जाती है अथवा वह जीवनभर के लिए विकलांग बन जाता है। यह विकलांगता मनुष्य को जीवनभर उसको सड़क के नियमों की अज्ञानता की याद दिलाती रहती है। इससे वह नित्य मर-मरकर जीते हुए अपना जीवन काटता है।

Road Safety Essay in Hindi

यातायात के प्रमुख साधन-
मनुष्य के विकास के इतिहास में यातायात के साधनों का महत्त्वपूर्ण योगदान है। पहिए के विकास से मानव जीवन के विकास की कहानी जड़ी है। मनुष्य ने ज्यों-ज्यों अपने बद्धि-बल का प्रयोग किया त्यों-त्यों उसने यातायात के साधन विकसित किये।

पहले मनुष्य ऊँट, घोड़े, खच्चर, ताँगे तथा बैलगाड़ियों से यात्राएँ किया करता था। उसकी यात्रा समय एवं व्यय साध्य होती थी। इसके बाद तेज गति वाले वाहनों का विकास हुआ। मालवाहक ट्रक, मोटर साइकिल, स्कूटर, बस तथा रेल, ट्राम गाड़ियों की खोज भी मानव बुद्धि के ही चमत्कार हैं।

पहले लोगों के पास साइकिल तक न थी, आज मोटर साइकिल तथा कारों की भरमार है। मानव जैसे आर्थिक रूप से सम्पन्न होता गया, वैसे-वैसे उसकी क्रयशक्ति बढ़ी और उसने विभिन्न प्रकार के वाहन खरीदना प्रारम्भ कर दिया। आज के समय में तो इनकी संख्या इतनी अधिक हो गयी है कि घर के प्रत्येक सदस्य को मोटर साइकिल अथवा कार की आवश्यकता पड़ने लगी है।

भले ही बच्चे भलीभाँति कार चलाना न जानते हों लेकिन वे मोटर साइकिल अथवा कार लेकर सड़कों पर निकल पड़ते हैं। परिणाम होता है भीषण दुर्घटना। तकनीकी विकास का भी इन दुर्घटनाओं के विकास में बड़ा योगदान है।

Essay on Road Safety in Hindi

सड़क के नियम एवं संकेत-

(क) नियम-यातायात के साधन जितने बढ़ रहे हैं, उतने ही यातायात के नियम बढ़ रहे हैं और उनमें जटिलता आ रही है। सड़क यातायात के कुछ प्रमुख नियम इस प्रकार हैं-

  • हम हमेशा सड़क के बायीं ओर चलें।
  • पैदल चलने के लिए फुटपाथ का प्रयोग करें।
  • सड़क पार करने हेतु ‘ओवर ब्रिज’ अथवा ‘जेब्रा लाइन’ को अपनाएँ।
  • वाहन चलाते समय स्पर्धा दौड़ को न अपनाएँ, दूसरे वाहनों से आगे निकलने का प्रयास कदापि न करें।
  • ध्वनि (हॉर्न) करके ही आगे निकलने का प्रयास करें जिससे दूसरा चालक आपको संकेत देकर रास्ता दे सके।
  • वाहन मोड़ते समय यथासम्भव उचित संकेत देने का प्रयास करें, अचानक वाहन मोड़ना दुर्घटना का कारण बन जाता है।
  • वाहन को चलाने में सावधानी अपनाएँ क्योंकि ‘सावधानी हटी, दुर्घटना घटी।
  • सड़क पर लगे निशान, चिह्नों तथा संकेतों का पालन करें।

(ख) संकेत-सड़क
पर चलने के सम्बन्ध में कुछ संकेत निर्धारित किये गये हैं जिनके पालन से हम दुर्घटना से बच सकते हैं। प्राय: शहरों में चौराहों पर लाल, पीली तथा हरी बत्तियाँ लगी रहती हैं। लाल बत्ती का अर्थ है-एकदम रुकिए और जब तक लाल बत्ती जलती रहे तब तक रुके रहें। पीली बत्ती जलने का अर्थ है-सब ओर चौकन्ने होकर देखिए तथा बढ़ने के लिए तैयार हो जाइए।

हरी बत्ती जलने का अर्थ है-चलिए, आगे बढ़िए। कभी-कभी यातायात बहुत कम हो जाने पर अथवा लाल या हरी बत्तियों में किसी गड़बड़ी के कारण मात्र पीली बत्ती ही लगातार जलती-बुझती रहती है। यह इस बात का संकेत है कि सावधानीपूर्वक देखकर चलिए। इसी प्रकार यदि आगे मोड़ होता है तो उसका संकेत भी कुछ दूर पहले ही सड़क के किनारे बोर्ड पर अंकित रहता है।

इसके अतिरिक्त स्कूल, अस्पताल, सड़क बन्द होने तथा आगे आने वाले मोड़ के संकेत भी इसी प्रकार के बोर्डों पर बने होते हैं। हमें इन संकेतों का ध्यान रखना चाहिए। पुल, फाटक आदि के संकेत भी सड़क के किनारे लगे रहते हैं जिनका पालन किया जाना परमावश्यक है।

उपसंहार-
यातायात के नियमों एवं संकेतों का पालन करना मानवता के हित में है। नियमों का पालना करना समाज, प्रदेश तथा राष्ट्र हितकारी होता है। इसी उद्देश्य को ध्यान में रखकर यातायात पुलिस तथा प्रदेश का पुलिस प्रशासन ‘यातायात नियम सप्ताह आयोजित करते हैं।

नियमानुसार सड़कों पर वाहन न चलाना दुर्घटना का कारण बन जाता है अत: दुर्घटनाओं से बचने के लिए उचित गति से नियमानुसार वाहन चलाएँ। वाहन चलाना सीखकर ही लाइसेंस बनवाएँ। अभ्यास सबसे बड़ा गुरु है अत: वाहन चलाने का धैर्यपूर्वक अभ्यास करना चाहिए।

वाहन चलाते समय वाहन की गति को नियन्त्रित रखा जाना भी आवश्यक है, क्योंकि ऐसा करने से दुर्घटना की सम्भावना कम हो जाती है। वाहन को सजगतापूर्वक चलाना चाहिए क्योंकि दुर्घटना से देर भली।

सड़क के नियम पालन में लापरवाही नहीं करनी चाहिए। स्वयं उचित ढंग से चलना चाहिए तथा अन्य वाहन चालकों से भी सतर्क रहना चाहिए, हो सकता है कि दूसरा वाहन चालक दक्ष न हो।

त्योहारों पर निबंध हिंदी में – Festivals Essay In Hindi

Festivals Essay In Hindi

त्योहारों पर निबंध हिंदी में – Essay On Festivals In Hindi

श्रम से थके-हारे मनुष्य ने समय-समय पर ऐसे अनेक साधन खोजे जो उसे थकान से छुटकारा दिलाए। जीवन में आई नीरसता से उसे छुटकारा मिल सके। इसी क्रम में उसने विभिन्न प्रकार के उत्सवों और त्योहारों का सहारा लिया। ये त्योहार अपने प्रारंभिक काल से ही सांस्कृतिक चेतना के प्रतीक तथा जनजागृति के प्रेरणा स्रोत हैं।

Festivals Essay In Hindi

हमारे त्योहार का महत्व (Hamaare Tyohaar Ka Mahatv)- Importance of our festival

भारत एक विशाल देश है। यहाँ नाना प्रकार की विभिन्नता पाई जाती है, फिर त्योहार इस विभिन्नता से कैसे बच पाते। यहाँ विभिन्न क्षेत्रों में अलग-अलग परंपराओं तथा धार्मिक मान्यताओं के अनुसार रक्षाबंधन, दीपावली, दशहरा, होली, ईद, ओणम, पोंगल, गरबा, पनिहारी, बैसाखी आदि त्योहार मनाए जाते हैं। इनमें दीपावली और दशहरा ऐसे त्योहार हैं जिन्हें पूरा भारत तो मनाता ही है, विदेशों में बसे भारतीय भी मनाते हैं। बैसाखी तथा वसंतोत्सव ऋतुओं पर आधारित त्योहार हैं। इस प्रकार यहाँ त्योहारों की कमी नहीं है। आए दिन कोई-न-कोई त्योहार मनाया जाता है।

भारतवासियों को स्वभाव से ही उत्सव प्रेमी माना जाता है। वह कभी प्रकृति की घटनाओं को आधार बनाकर तो कभी धर्म को आधार बनाकर त्योहार मनाता रहता है। इन त्योहारों के अलावा यहाँ अनेक राष्ट्रीय पर्व भी मनाए जाते हैं। इनसे महापुरुषों के जीवन से हमें कुछ सीख लेने की प्रेरणा मिलती है।

गाँधी जयंती हो या नेहरू जयंती इसके मनाने का उद्देश्य यही है। इस तरह त्योहार जहाँ उमंग तथा उत्साह भरकर हमारे अंदर स्फूर्ति जगाते हैं, वहीं महापुरुषों की जयंतियाँ हमारे अंदर मानवीय मूल्य को प्रगाढ़ बनाती हैं। त्योहरों के मनाने के ढंग के आधार पर इसे कई भागों में बाँटा जा सकता है।

कुछ त्योहार पूरे देश में राष्ट्रीय तथा राजनीतिक आधार पर मनाए जाते हैं; जैसे-15 अगस्त, गणतंत्र दिवस, गाँधी जयंती (साथ ही लालबहादुर शास्त्री जयंती) इन्हें राष्ट्रीय पर्व कहा जाता है। कुछ त्योहार अंग्रेजी वर्ष के आरंभ में मनाए जाते हैं; जैसे-लोहिड़ी, मकर संक्रांति। कुछ त्योहार भारतीय नववर्ष शुरू होने के साथ मनाए जाते हैं; जैसे-नवरात्र, बैसाखी, पोंगल, ओणम। पंजाब में मनाई जाने वाली लोहड़ी, महाराष्ट्र की गणेश चतुर्थी. पश्चिम बंगाल की दुर्गा पूजा को प्रांतीय या क्षेत्रीय त्योहार कहा जाता है।

परिवर्तन प्रकृति का नियम है, फिर ये त्योहार ही परिवर्तन से कैसे अप्रभावित रहते। समय की गति और समाज में आए परिवर्तन के परिणामस्वरूप इन त्योहारों, उत्सवों तथा पर्वो के स्वरूप में पर्याप्त परिवर्तन आया है। इन परिवर्तनों को विकृति कहा जाए तो कोई अतिशयोक्ति न होगी। आज रक्षाबंधन के पवित्र और अभिमंत्रित रूप का स्थान बाजारू राखी ने लिया है।

अब राखी बाँधते समय भाई की लंबी उम्र तथा कल्याण की कामना कम, मिलने वाले उपहार या धन की चिंता अधिक रहती है। मिट्टी के दीपों में स्नेह रूपी जो तेल जलाकर प्रकाश फैलाया जाता था, उसका स्थान बिजली की रंग-बिरंगी रोशनी वाले बल्बों ने ले लिया है। सबसे ज्यादा विकृति तो होली के स्वरूप में आई है।

टेसू के फूलों के रंग और गुलाल से खेली जाने वाली होली जो दिलों का मैल धोकर, प्रेम, एवं सद्भाव के रंग में रंगती थी, वह अश्लीलता और हुड़दंग रूपी कीचड़ में सनकर रह गई है। राह चलते लोगों पर गुब्बारे फेंकना, जबरदस्ती ग्रीस, तेल, पेंट पोतने से इस त्योहार की पवित्रता नष्ट हो गई है। आज दशहरा तथा दीपावली के समय करोड़ों रुपये केवल आतिशबाजी और पटाखों में नष्ट कर दिया जाता है।

इन त्योहारों को सादगी तथा शालीनतापूर्वक मनाने से इस धन को किसी रचनात्मक या पवित्र काम में लगाया जा सकता है, जिससे समाज को प्रगति के पथ पर अग्रसर होने में मदद मिलेगी। इससे त्योहारों का स्वरूप भी सुखद तथा कल्याणकारी हो जाएगा। आज आवश्यकता इस बात की है कि लोग इन त्योहारों को विकृत रूप में न मनाएँ हमारे जीवन में त्योहारों, उत्सवों एवं पर्वो का अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान है।

एक ओर ये त्योहार भाई-चारा, प्रेम, सद्भाव, धार्मिक एवं सांप्रदायिक सौहार्द बढ़ाते हैं तो दूसरी ओर धर्म-कर्म तथा आरोग्य बढ़ाने में भी सहायक होते हैं। इनसे हमारी सांस्कृतिक गरिमा की रक्षा होती है तो भारतीय संस्कृति के मूल्य एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक आसानी से पहुँच जाते हैं। ये त्योहार ही हैं जिनसे हमारा अस्तित्व सुरक्षित था, सुरक्षित है और सुरक्षित रहेगा।

हमारे त्योहारों में व्याप्त कतिपय दोषों को छोड़ दिया जाए या उनका निवारण कर दिया जाए तो त्योहार मानव के लिए बहुपयोगी हैं। ये एक ओर मनुष्य को एकता, भाई-चारा, प्रेम-सद्भाव बढ़ाने का संदेश देते हैं तो दूसरी ओर सामाजिक समरसता भी बढ़ाते हैं। हमें इन त्योहरों को शालीनता से मानाना चाहिए, ताकि इनकी पवित्रता एवं गरिमा चिरस्थायी रहे।

Essay On Festivals In Hindi