वही मनुष्य है जो मनुष्य के लिए मरे संकेत बिंदु
- भारतीय संस्कृति और परोपकार
- सच्चा मनुष्य
- परोपकारी व्यक्ति के गुण
साथ ही, कक्षा 1 से 10 तक के छात्र उदाहरणों के साथ इस पृष्ठ से विभिन्न हिंदी निबंध विषय पा सकते हैं।
वही मनुष्य है जो मनुष्य के लिए मरे पर निबन्ध | Essay on Man is he who Die for Others In Hindi
भारत ने विश्व को एक परिवार मानकर सदा सबके कल्याण की कामना की है। वैदिक युग से ही भारत इस सिद्धांत का पालन करता आया है। उसकी यह भावना इन शब्दों में प्रस्फुटित हुई है-
सर्वे भवंतु सुखिनः सर्वे संतु निरामया
सर्वे भद्राणिपश्यंतु, मा कश्चिद् दुख भाग् भवेत।
सभी सुखी हों। सभी नीरोग हों। सबका कल्याण हो। किसी को दुःख प्राप्त न हो।
भारतीय संस्कृति ने सदा परोपकार पर बल दिया है। यहाँ ऐसे तपस्वी और राजा हुए हैं जिन्होंने दूसरों के कल्याण के लिए अपना जीवन तक त्याग दिया। भारतीयों ने सदा सबका हित चाहा है। इसे मात्र सिद्धांत रूप में कहा नहीं है अपितु इसे व्यावहारिक रूप प्रदान किया है। यहाँ के ऋषियों और संतों ने स्वयं आदर्श प्रस्तुत कर इसे चरितार्थ किया है।
दधीचि ने देवताओं की रक्षा के लिए अपनी देह ही समर्पित कर दी। उनकी अस्थियों से देवताओं ने वज्र बनाया। इंद्र ने इससे वृत्रासुर का वध करके देवताओं के अस्तित्व पर आए संकट से मुक्ति दिलाई। महाराजा शिवि ने अपनी देह का मांस बाज को अर्पित करके शरणागत कबूतर के प्राणों की रक्षा का वचन निभाया।
सन् 1965 के भारत-पाक युद्ध में भारत विजयी रहा। भारत ने किसी भी देश की इंच पर भूमि पर अधिकार नहीं करना चाहा। विजय प्राप्त करने के पश्चात् भी भारत के प्रधानमंत्री लालबहादुर शास्त्री ने ताशकंद समझौता करके पाकिस्तान को उसका क्षेत्र लौटा दिया। भारतीयों ने सदा त्याग पर बल दिया है। पाकिस्तानी आतंकवादियों ने हज़ारों भारतीयों की हत्याएँ कर दीं फिर भी भारत के प्रधानमंत्री अटलबिहारी वाजपेयी ने लाहौर तक की बस-यात्रा करके विश्व को दिखा दिया कि भारत शांति का उपासक है। शांति स्थापना के लिए आतुर भारत को आतंकवाद का सामना करना पड़ रहा है परंतु उसने पाकिस्तान में ऐसी ही स्थिति उत्पन्न करने का मार्ग नहीं अपनाया क्योंकि भारतीयों का मत है-
जो तोको काँटा बुवै ताहि बोव तू फूल।
तोको फूल के फूल हैं वाको हैं तिरसूल॥
सच्चा मनुष्य वही है जो सदा सबका हित चाहता है। मानवता के शत्रु हिंसा का मार्ग अपनाते हैं। वे स्वार्थ सिद्धि के लिए नीचता की किसी सीमा तक उतर जाते हैं। उनके लिए मानव जीवन का कोई मूल्य नहीं होता। सच्चा मनुष्य वह है जिसमें धैर्य और सहनशीलता है। वह क्षमाशील होता है। काम, क्रोध, लोभ, मद और मोह पर नियंत्रण करके वह केवल परहित की चिंता करता है।
एक सज्जन व्यक्ति नदी में स्नान कर रहे थे। तभी नदी में तैरता एक बिच्छू उनके पैर से आ टकराया। उन्होंने उसे बचाने के लिए उठा लिया। बिच्छू ने उनके हाथ में डंक मारा। डंक की पीड़ा से उनका हाथ काँप गया और बिच्छू नदी में जा गिरा। सज्जन ने उसे फिर उठा लिया। बिच्छू ने फिर डस लिया। हाथ फिर काँपा और बिच्छू फिर नदी में जा गिरा। ऐसा कई बार हुआ तो उन सज्जन के साथ स्नान कर रहे व्यक्ति ने समझाया-‘आप इस बिच्छू को बचाने का प्रयास कर रहे है। यह आपको डस लेता है। इसे मरने दीजिए।’ सज्जन ने मुस्कराकर कहा-‘यह बिच्छू है। इसका स्वभाव ही डसना है। यह अपने स्वभावनुसार कार्य कर रहा है। मेरा कार्य दूसरों का कल्याण करना है। यह बिच्छू होकर अपने स्वभाव को नहीं छोड़ रहा तो मैं मनुष्य होकर अपने स्वभाव को कैसे त्याग दूं।’ परोपकारी व्यक्ति जानता है कि परोपकार से बढ़कर और कोई धर्म नहीं है। महाकवि तुलसीदास ने रामचरितमानस में लिखा है-
परहित सरिस धर्म नाहिं भाई,
पर पीड़ा सम नाहिं अधमाई।
दानवी प्रवृत्ति के व्यक्ति दूसरों को दुखी देखकर आनंदित होते हैं। नन्हा मुस्कराता शिशु किसे नहीं भाता। नृशंस हत्यारे उनकी हत्या । करने में भी संकोच नहीं करते। ऐसी मानसिकता के व्यक्ति क्षुद्र स्वार्थों की पूर्ति के लिए स्वयं मानव-बम बनकर अपने प्राण देकर दूसरों के प्राण लेने से नहीं हिचकिचाते।
आज विश्व के विभिन्न कोनों में हिंसा का तांडव नृत्य हो रहा है। अनेक देशों में सैकड़ों मनुष्य हिंसा के शिकार हो रहे हैं। इसका कारण क्या है? केवल क्षुद्र स्वार्थों की पूर्ति और मानवीय भावनाओं का मर जाना।
भारत विश्व का आध्यात्मिक गुरु रहा है। महात्मा बुद्ध ने विश्व को बौध धर्म द्वारा अहिंसा, कल्याण, शांति और प्रेम का मार्ग दर्शाया। तीर्थंकर महावीर ने अहिंसा का संदेश दिया। महात्मा गाँधी ने अहिंसा की शक्ति का प्रदर्शन करके विश्व को नया मार्ग दिखाया। भारत के कण-कण से सबके कल्याण के मंत्रों की गूंज सुनाई देती है। परोपकारी व्यक्ति स्वयं कष्ट सहकर दूसरों का कल्याण करता है। लोग फल की कामना के लिए वृक्ष पर पत्थर फेंकते हैं। वृक्ष पत्थरों की चोट सह जाता है। वह पत्थर मारने वाले को पत्थर के बदले फल भेंट करता है।
तुलसी संत सुअंब तरु, फूलहिं फलहिं पर हेत,
इतने वे पाहन हनै, उतने वे फल देत।
वस्तुतः सच्चा मनुष्य वही है जो सबका सुख, कल्याण और हित चाहता है। उसके लिए दूसरों का भला करना ही पुण्य है। वह आजीवन इसी मार्ग पर चलता है।
परोपकारः पुण्याय पापाय पर पीड़नम।