राजनीति में अपराधीकरण पर निबंध – Criminalization Of Indian Politics Essay In Hindi

राजनीति में अपराधीकरण पर निबंध -(Essay On Criminalization Of Indian Politics In Hindi)

राजनीति का अपराधीकरण – Criminalization Of Politics

रूपरेखा–

  • प्रस्तावना,
  • राजनीति क्या है?
  • अपराध और राजनीति,
  • राजनीति के अन्य दोष,
  • निवारण के उपाय,
  • उपसंहार।

साथ ही, कक्षा 1 से 10 तक के छात्र उदाहरणों के साथ इस पृष्ठ से विभिन्न हिंदी निबंध विषय पा सकते हैं।

राजनीति में अपराधीकरण पर निबंध – Raajaneeti Mein Aparaadheekaran Par Nibandh

प्रस्तावना–
आदिम मानव–समाज प्राकृतिक नियमों से शासित होता था। सभ्यता के विकास के साथ–साथ उसे एक सर्वस्वीकृत शासनतन्त्र की आवश्यकता हुई। अतः राज्य संस्था अस्तित्व में आई। अपराध बढ़े तो अपराधियों को दण्डित करने को कानून बने। आज तो राजनीति राज अर्थात् सत्ता हथियाने की कूट–नीति बन गयी है।

राजनीति क्या है? – What is politics?

नीति शब्द के यों तो अनेक अर्थ हैं किन्तु सामान्यतया आचरण के श्रेष्ठ तथा सुसम्मत ढंग को ही नीति माना जाता है। धर्मनीति, युद्धनीति, व्यवहारनीति आदि शब्दों से नीति विधि–विधान, निपुणता और कौशल का भी बोध कराती है। राज्य करने की नीति ही राजनीति है।

‘राज’ के साथ ‘नीति’ जुड़ा होने से आशा की जा सकती है कि इसे नैतिकता से प्रेरित और संचालित होना चाहिए किन्तु आज तो राजनीति का अर्थ ही उलट गया है। राजनीति की अवधारणा आज छल, कपट, कुटिलता और क्रूरता से राजनीतिक विरोधियों को परास्त करना और सत्ता हथियाना ही राजनीति मान लिया गया है। राजनीति क्या है यह अग्रलिखित पश्चिमी कहावत से स्पष्ट हो जाता है

“पॉलिटिक्स इज द गेम ऑफ स्काउन्ड्रल्स” अर्थात् राजनीति धूर्तों की क्रीड़ा है। आज की राजनीति का वास्तव में यही रूप हो गया है।

अपराध और राजनीति–
अपराध व्यक्ति और समाज के प्रति किया गया ऐसा आचरण है जिसे परम्परा से या विधि (कानून) से दण्डनीय माना गया है। अपराधियों को दण्ड देना और सज्जनों की सुरक्षा करना ही प्रधान राजधर्म माना गया है।

राजनीति में अपराधी प्रवृत्ति के लोगों का प्रवेश ही राजनीति का अपराधीकरण है अथवा इसे अपराधों का राजनीतिकरण भी कहा जा सकता है। अनैतिक आचरण करने वालों का राजनीति के शिखरों पर बैठना–अपराधों का राजनीतिकरण बन गया है।

आज राजनीति का व्यापक और बहुमुखी अपराधीकरण हो चुका है। सुसंस्कृत और पेशेवर दोनों प्रकार के अपराधी राजनीति के मुखौटे लगाये देश के भाग्यविधाता बने हुए हैं। मतदाताओं को आतंकित करके, मतपेटियों को लूटकर और इससे काम न चले तो विरोधियों को ठिकाने लगाकर राज पर अधिकार कर लेना ही आज की राजनीति है।

अपराधीकरण के अन्य रूप–भारत की राजनीति में अनेक विकार या दोष उत्पन्न हो गये हैं। कुछ राजनैतिक दल धर्म और जाति को आधार बनाकर राजनीति करते हैं। इससे देश की एकता को खतरा पैदा होता है, साम्प्रदायिक दंगे होते हैं तथा जातिवाद में बढ़ोत्तरी होती हैं। भारत एक विशाल जनतंत्र है परन्तु सच्चे अर्थ में इस पर धनतन्त्र का अधिकार है। चुनावों में काले धन का वर्चस्व रहता है।

कोई सच्चा जनसेवक धन के अभाव में चुनाव नहीं लड़ सकता। गठजोड़ के इस युग में अपनी सरकार को चलाने तथा बनाये रखने के लिए विधायकों और सांसदों को खरीदा जाता है। इससे जनतन्त्र का मूल उद्देश्य ही नष्ट हो रहा है। जनतन्त्र की सबसे बड़ी संस्था संसद भी आज राजनीति के दोष से मुक्त नहीं है–

अपने यहाँ संसद, तेली की घानी है,
जिसमें आधा तेल है और आधा पानी है।

जब ये पंक्तियाँ लिखी गई थीं तब से अर्ध शती बीत चुकी है। अतः आधा तेल आधा पानी है, कहने की जगह ‘पानी ही . पानी है’ कहना अधिक उपयुक्त है।

आज संसद में चुनाव जीतकर पहुँचने वाले नेता भी बदल गए हैं और उनकी कार्यपद्धति भी-

पहले जननायक थे, देश को ‘जन’ से चलाते थे
अब गननायक हैं, देश को ‘गन’ (बन्दूक) से चलाते हैं
और सारे चुनाव अकेले जीत जाते हैं।

निवारण के उपाय–
राजनीति का अपराधीकरण कैसे रुके? उसको दोषरहित कैसे बनाया जाये? इसका अन्तिम और सुनिश्चित उपाय तो जनता के ही हाथों में है। वह अपराधी प्रवृत्ति और आपराधिक इतिहास के व्यक्तियों को चुनकर न भेजे। चरित्रवान् न्यायपालिका आगे आए और अपराधियों को राजनीति से बाहर करे। आज न्यायपालिका की जो प्रखर भूमिका परिलक्षित हो रही है उसे जन–समर्थन मिलना चाहिए।

शिबू सोरेन का दण्डित होना, धन लेकर संसद में प्रश्न पूछने वाले सांसदों की सदस्यता समाप्त होना तथा कुछ राजनीतिक बाहुबलियों का न्यायपालिका की वक्र दृष्टि में पड़ना इस दिशा में आशा की किरण दिखाता है।

चुनाव आयोग को भी इस दिशा में कदम बढ़ाना चाहिए तथा साम्प्रदायिक, जातिवादी, धन– लोलुप दलों को अमान्य करना चाहिए। चुनाव आयोग ने इस दिशा में कदम उठाए हैं। सैकड़ों ऐसे दलों की मान्यता समाप्त की है जो वर्षों से चुनाव नहीं लड़े हैं तथा अवैध आर्थिक गतिविधियों में लगी हैं।

उपसंहार–
राजनीति के अपराधीकरण ने लोकतन्त्र को मजाक बना दिया है। इस संकट से मुक्ति पाना सरल कार्य नहीं है। आज का जन–सेवक पाँच वर्षों में करोड़पति और अरबपति बन जाता है।

अतः अपराधियों का राजनीति में छल–बल से प्रवेश करना स्वाभाविक है। कानूनों के अधिक कठोर होने और शीघ्र न्याय की व्यवस्था होने पर ही अपराधों का राजनीतिकरण रोका जा सकता है।