खुला शौच मुक्त गाँव पर निबंध – Khule Me Soch Mukt Gaon Par Essay In Hindi

खुला शौच मुक्त गाँव पर निबंध – Essay On Khule Me Soch Mukt Gaon Par In Hindi

संकेत बिन्दु–

  • खुला शौच मुक्त से आशय
  • सरकारी प्रयास
  • जन–जागरण
  • हमारा योगदान
  • महत्व/उपसंहार

साथ ही, कक्षा 1 से 10 तक के छात्र उदाहरणों के साथ इस पृष्ठ से विभिन्न हिंदी निबंध विषय पा सकते हैं।

खुला शौच मुक्त गाँव पर निबंध – Khula Shauch Mukt Gaanv Par Nibandh

खुला शौच मुक्त से आशय–
‘खुला शौच मुक्त’ को सरल भाषा में कहें तो ‘खुले में शौच क्रिया से मुक्त होना’ इसका आशय है। ऐसा गाँव जहाँ लोग बाहर खेतों या जंगलों में शौच के लिए न जाते हों, घरों में ही शौचालय हों, ‘खुला शौच’ मुक्त गाँव कहा जाता है। गाँवों में खुले में शौच के लिए जाने की प्रथा शताब्दियों पुरानी है।

जनसंख्या सीमित होने तथा सामाजिक मर्यादाओं का सम्मान किए जाने के कारण इस परंपरा से कई लाभ जुड़े हुए थे। गाँव से दूर शौच क्रिया किए जाने से ‘मैला ढोने के काम से मुक्ति तथा स्वच्छता दोनों का साधन होता था। मल स्वत: विकरित होकर खेतों में खाद का काम करता था।

पर आज की परिस्थितियों में खुले में शौच, रोगों को खुला आमंत्रण बन गया है। साथ ही इससे उत्पन्न महिलाओं की असुरक्षा ने इसे विकट समस्या बना दिया है। अतः इस परंपरा का यथाशीघ्र समाधान, स्वच्छता, स्वास्थ्य और महिला सुरक्षा की दृष्टि से परम आवश्यक हो गया है।

सरकारी प्रयास–
कुछ वर्ष पहले तक इस दिशा में सरकारी प्रयास शून्य के बराबर ही थे। गाँवों में कुछ सम्पन्न और सुरुचि युक्त परिवारों में ही घरों में शौचालय का प्रबन्ध होता था। वह भी केवल महिला सदस्यों के लिए।

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने जब ग्रामीण महिलाओं और विशेषकर किशोरियों के साथ होने वाली लज्जाजनक घटनाओं पर ध्यान दिया तो स्वच्छता अभियान के साथ ‘खुला शौच मुक्त गाँव अभियान’ को भी जोड़ दिया। इस दिशा में सरकारी प्रयास निरंतर चल रहे हैं।

घरों में शौचालय बनाने वालों को सरकार की ओर से आर्थिक सहायता प्रदान की जा रही है। समाचार पत्रों तथा टी. वी. विज्ञापनों में प्रसिद्ध व्यक्तियों द्वारा बड़े मनोवैज्ञानिक ढंग से घरों में शौचालय बनाने की प्रेरणा दी जा रही है।

जन जागरण–
किसी प्राचीन कुप्रथा से मुक्त होने में भारतीय ग्रामीण समुदाय को बहुत हिचक होती है। उन पर सरकारी प्रयासों की अपेक्षा, अपने बीच के प्रभावशाली व्यक्तियों, धार्मचार्यों तथा मनोवैज्ञानिक प्रेरणाओं का प्रभाव अधिक पड़ता है।

अतः ‘खुले में शौच’ की समाप्ति के लिए जन जागरण परम आवश्यक है। इसके लिए कुछ स्वयंसेवी संस्थाएँ : रही हैं। इसके साथ ही धार्मिक आयोजन में प्रवक्ताओं द्वारा इस प्रथा के परिणाम की प्रेरणा दी जानी चाहिए। शिक्षक, छात्र–छात्राओं के द्वारा प्रदर्शन का सहारा लेना चाहिए।

गाँव के शिक्षित युवाओं को इस प्रयास में हाथ बँटाना चाहिए। ऐसे जन जागरण के प्रयास मीडिया द्वारा तथा गाँव के सक्रिय किशोरों और युवाओं द्वारा किए भी जा रहे हैं। खुले में शौच करते व्यक्ति को देखकर सीटी बजाना ऐसा ही रोचक प्रयास है।

हमारा योगदान–
‘हमारा’ में छात्र–छात्रों, शिक्षक, राजनेता, व्यवसायी, जागरूक नागरिक आदि सभी लोग सम्मिलित हैं। सभी के सामूहिक प्रयास से बुराई को समाप्त किया जा सकता है। ग्रामीण जनता को खुले में शौच से होने वाली हानियों के बारे में समझाना चाहिए।

उन्हें बताया जाना चाहिए कि इससे रोग फैलते हैं और धन तथा समय की बरबादी होती है। साथ ही यह एक अशोभनीय आदत है। यह महिलाओं के लिए अनेक समस्याएँ और संकट खड़े कर देता है। घरों में छात्र–छात्राएँ अपने माता–पिता आदि को इससे छुटकारा पाने के लिए प्रेरित करें।

उपसंहार–
खुले में शौच मुक्त गाँवों की संख्या निरंतर बढ़ रही है। सरकारी प्रयासों के अतिरिक्त ग्राम–प्रधानों तथा स्थानीय प्रबुद्ध और प्रभावशाली लोगों को आगे आकर इस अभियान में रुचि लेनी चाहिए। इससे न केवल ग्रामीण भारत को रोगों, बीमारियों पर होने वाले व्यय से मुक्ति मिलेगी बल्कि अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर देश की छवि भी सुधेरगी।