बढ़ते वाहन घटता जीवन पर निबंध – Vehicle Pollution Essay In Hindi

बढ़ते वाहन घटता जीवन पर निबंध – Essay On Vehicle Pollution In Hindi

रूपरेखा–

  • प्रस्तावना,
  • नगर–सभ्यता और यातायात,
  • विज्ञान की देन वाहन,
  • वाहनों की बढ़ती संख्या और प्रदूषण,
  • वाहनों के कारण–हानि,
  • उपसंहार।।

साथ ही, कक्षा 1 से 10 तक के छात्र उदाहरणों के साथ इस पृष्ठ से विभिन्न हिंदी निबंध विषय पा सकते हैं।

बढ़ते वाहन घटता जीवन पर निबंध – Badhta Vahan Ghatta Jeevan Par Nibandh

प्रस्तावना–
मनुष्य चलने–फिरने वाला प्राणी है। वह सदा एक स्थान पर नहीं रह सकता। विभिन्न कारणों से उसको एक स्थान से दूसरे स्थानों तक यात्रा करनी पड़ती है। प्राचीन काल में ये स्थान दूर नहीं होते थे और वह वहाँ पैदल चलकर ही पहुँचा जाता था।

इसके बाद उसने आवागमन के लिए पशुओं का उपयोग किया। बाद में बैलगाड़ियों, भैंसागाड़ियों, घोड़ा और ऊँटगाड़ियों आदि का प्रयोग आने–जाने के लिए होने लगा।

नगर–सभ्यता और यातायात–
प्राचीनकाल में लोग गाँवों में रहते थे। धीरे–धीरे नगरों का विकास हुआ। ये नगर बड़े और विशाल होते थे। उनमें एक स्थान से दूसरे स्थान तक जाने के लिए तथा गाँव या नगर से दूसरे गाँव या नगर तक आने–जाने के लिए यातायात के साधनों की आवश्यकता होती थी। यातायात के साधनों के रूप में उस समय पशुओं द्वारा चालित गाड़ियाँ ही प्रचलित थीं।

विज्ञान की देन वाहन–
वर्तमान सभ्यता विज्ञान की सभ्यता है। विज्ञान ने जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में हस्तक्षेप किया है। यातायात को सुगम बनाने के लिए उसने अनेक प्रकार के वाहन बनाए हैं। साइकिल का आविष्कार इस क्षेत्र का एक महत्वपूर्ण आविष्कार है। धीरे–धीरे साइकिल का स्थान पेट्रोल तथा डीजल चालित स्कूटर, बाइक आदि ने ले लिया।

नई–नई और विभिन्न प्रकार की कारें भी इस क्षेत्र में आ गई हैं। बसें, ट्रक, ऑटो, टेम्पो, मेटाडोर आदि का उपयोग सवारी तथा माल ढोने के वाहनों के रूप में होता है। अब कुछ गाड़ियाँ गैस, बैट्री, सौर ऊर्जा से भी चलती हैं।

वाहनों की बढ़ती संख्या और प्रदूषण–
आज सड़कों पर असंख्य वाहन दौड़ते हुए देखे जा सकते हैं। इनके इंजनों में जलने वाला पैट्रोल और डीजल वायुमण्डल को प्रदूषित करता है। इनके चलने से इंजन का शोर तथा हार्न की तेज आवाज ध्वनि प्रदूषण को कई गुना बढ़ा देती है।

वाहनों के कारण हानि–
जो लोग सड़क के किनारों पर बने मकानों में रहते हैं। वे जानते हैं कि वाहनों की बढ़ती संख्या के कारण उनको श्वसन और श्रवण सम्बन्धी अनेक बीमारियों से जूझना पड़ता है। वातावरण में बढ़ती हुई जहरीली गैसों के कारण वक्ष सम्बन्धी रोग श्वास, दमा, खाँसी, टी. वी. तथा कैंसर आदि तेजी से बढ़ रहे हैं।

लोगों की आँखें तथा कान भी रोगग्रस्त हो रहे हैं। इनके अतिरिक्त भी अनेक प्रकार की बीमारियाँ लोगों को सता रही हैं। लोग ऋण लेकर वाहन खरीदते है। इससे ऋणग्रस्तता बढ़ती है, जनता का अनावश्यक शोषण होता है।

उपसंहार–
बढ़ते वाहन जहाँ सुख–सुविधा बढ़ाते हैं, वहाँ वे लोगों के स्वास्थ्य के लिए गम्भीर समस्या भी बन रहे हैं। टूटी सड़कों पर दौड़ते धूल और धुआँ उड़ाते वाहनों के कारण लोगों का स्वास्थ्य निरन्तर गिर रहा है। वाहनों की बढ़ती संख्या के साथ दुर्घटनाओं की संख्या भी बढ़ रही है।

इस प्रकार अनेक लोगों को अपंगता का कष्ट भोगना पड़ता है। दुर्घटनाओं में अनेक लोगों की मृत्यु हो जाती है। अत: वाहनों को वातावरण–मित्र बनाते हुए इनकी बेतहाशा बढ़ती संख्या पर नियंत्रण अनिवार्य हो गया है।