DAV Class 8 Hindi Chapter 20 Question Answer – ईर्ष्या: तू न गई मेरे मन से

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DAV Class 8 Hindi Chapter 20 Question Answer – ईर्ष्या: तू न गई मेरे मन से

DAV Class 8 Hindi Ch 20 Question Answer – ईर्ष्या: तू न गई मेरे मन से

पाठ में से

प्रश्न 1.
ईर्ष्या का अनोखा वरदान क्या है ?
उत्तर:
ईर्ष्या का अनोखा वरदान यह है कि ईर्ष्या जिस व्यक्ति के मन में घर बना लेती है, वह अपनी सुख-सुविधाओं का आनंद नहीं उठा पाता है। वह उन वस्तुओं को लेकर दुखी रहता है जो दूसरों के पास होती हैं। वह दूसरों की सुख-सुविधाओं से अपनी तुलना करता रहता है।

प्रश्न 2.
ईर्ष्या की बेटी किसे और क्यों कहा गया है ?
उत्तर:
निंदा को ईर्ष्या की बेटी कहा गया है। इसका कारण यह है कि जो व्यक्ति ईर्ष्यालु होता है, वही बुरे किस्म का निंदक भी होता है। वह दूसरों की निंदा इसलिए करता है ताकि दूसरे लोग जनता या मित्रों की निगाह
में गिर जाएँ और वह सबका प्रिय बन जाए।

प्रश्न 3.
ईर्ष्यालु व्यक्ति उन्नति कब कर सकता है?
उत्तर:
ईर्ष्यालु व्यक्ति उस समय उन्नति कर सकता है जब वह अपने चरित्र को निर्मल बनाए और अपने गुणों का विकास करे ।

DAV Class 8 Hindi Chapter 20 Question Answer - ईर्ष्या: तू न गई मेरे मन से

प्रश्न 4.
ईर्ष्या का क्या काम है? ईर्ष्या से प्रभावित व्यक्ति किसके समान है?
उत्तर:
ईर्ष्या का काम है- ईर्ष्यालु व्यक्ति को जलाना। ईर्ष्या से प्रभावित व्यक्ति ग्रामोफ़ोन की तरह होता है जो बड़ी ही होशियारी के साथ एक-एक कांड सुना है।

प्रश्न 5.
ईर्ष्यालु लोगों से बचने का क्या उपाय है?
उत्तर:
ईर्ष्यालु लोगों से बचने का उपाय बताते हुए नीत्से ने कहा कि बाज़ार की मक्खियों को छोड़कर एकांत की ओर भागो । महान और अमर मूल्यों की रचना बाज़ार और सुयश से दूर रहकर किया जाता है। जहाँ बाज़ार की मक्खियाँ नहीं भिनकतीं, वही जगह एकांत है।

प्रश्न 6.
उचित शब्द द्वारा रिक्त स्थान भरिए –

(क) मनुष्य के पतन का कारण अपने ही भीतर के _________ का ह्रास होता है।
(ख) ईर्ष्या मनुष्य के_________ गुणों गुणों को ही कुंठित बना डालती है।
(ग) तुम्हारी निंदा वही करेगा, जिसकी तुमने _________ की है।
(घ) ये _________ हमें सज़ा देती हैं, हमारे गुणों के लिए।
(ङ) आदमी में जो गुण _________समझे जाते हैं, उन्हीं के चलते लोग उससे जलते भी हैं।
उत्तर:
(क) मनुष्य के पतन का कारण अपने ही भीतर के सद्गुणों का ह्रास होता है।
(ख) ईर्ष्या मनुष्य के  मौलिक गुणों गुणों को ही कुंठित बना डालती है।
(ग) तुम्हारी निंदा वही करेगा, जिसकी तुमने  भलाई की है।
(घ) ये  मक्खियाँ हमें सज़ा देती हैं, हमारे गुणों के लिए।
(ङ) आदमी में जो गुण महान समझे जाते हैं, उन्हीं के चलते लोग उससे जलते भी हैं।

बातचीत के लिए

प्रश्न 1.
क्या ईर्ष्या चिंता से ज़्यादा खराब है? विचार कीजिए।
उत्तर:
हाँ ईर्ष्या चिंता से ज्यादा खराब होती है क्योंकि यह मनुष्य के मौलिक गुणों को ही कुंठित बना डालती है। गुणों को कुंठित करके जीने से तो अच्छी है- मृत्यु  इस तरह ईर्ष्या ज्यादा खराब होती है।

प्रश्न 2.
चिंता – दग्ध मनुष्य समाज की दया का पात्र क्यों है?
उत्तर:
चिंता – दग्ध मनुष्य समाज की दया का पात्र होता है क्योंकि ऐसे व्यक्ति की जिंदगी ही खराब हो जाती है। इसका कारण यह है कि चिंता रूपी चिता चिंता – दग्ध व्यक्ति को जलाकर रख देती है।

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प्रश्न 3.
‘ईर्ष्या से मनुष्य के आनंद में भी बाधा पड़ती है।’ उदाहरण द्वारा सिद्ध कीजिए।
उत्तर:
ईर्ष्या से मनुष्य के आनंद में भी बाधा पड़ती है। इसका उदाहरण यह है कि जिस मनुष्य के हृदय में ईर्ष्या घर बना लेती है, वह उन चीजों का आनंद नहीं उठा पाता है, जो उसके पास मौजूद हैं बल्कि वह उन वस्तुओं को देखकर दुखी होता है जो दूसरों के पास हैं। वह अपनी तुलना दूसरों से करके दुखी रहता है।

प्रश्न 4.
कोई ऐसी घटना बताइए जब आपको किसी से या किसी को आपसे ईर्ष्या हुई हो।
उत्तर:
हाँ, जब कक्षा में मुझे सबसे अच्छा ग्रेड लाने पर पुरस्कृत किया गया तो मेरे कई सहपाठियों को मुझसे ईर्ष्या होने लगी। हाँ, जब मेरी कक्षा के दो छात्रों को राष्ट्रीय प्रतिभा खोज परीक्षा में चुना गया और मैं कुछ ही अंकों से चयनित होने से रह गया तो मुझे उनसे ईर्ष्या होने लगी।

अनुमान और कल्पना

प्रश्न 1.
कल्पना कीजिए कि आपको प्रार्थना सभा में सफलता के सूत्रों के बारे में अपने सहपाठियों को बताना है तो आप क्या बताएँगे?
उत्तर:
यदि मुझे प्रार्थना सभा में सफलता के सूत्रों के बारे में अपने सहपाठियों को बताना पड़े तो मैं कहूँगा कि मनुष्य दूसरों से ईर्ष्या करके, उसकी निंदा करके सफल नहीं हो सकता है। आदमी में जो महान गुण हैं, वह उन्हीं के बल पर उन्नति और सफलता प्राप्त करता है। यही सफलता उसे प्रसिद्धि दिलाती है।

प्रश्न 2.
यदि आपके पड़ोसी या जानकार आपसे ईर्ष्या करें तो आप उनके साथ कैसा व्यवहार करेंगे?
उत्तर:
यदि मेरे पड़ोसी या जानकार मुझसे ईर्ष्या करते हैं तो मैं उनके साथ कभी भी ईर्ष्यापूर्ण व्यवहार नहीं करूँगा, क्योंकि इससे ईर्ष्या कम होने के बजाए बढ़ती ही जाती है और समाप्त होने को नहीं आती है।

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प्रश्न 3.
अगर मनुष्य में केवल सकारात्मक भावनाएँ होंगी तो संसार कैसा होगा?
उत्तर:
अगर मनुष्य में केवल सकारात्मक भावनाएँ होगी तो संसार सुखमय होगा। लोगों में परस्पर भाईचारा, प्रेम, सौहार्द सामाजिक समरसता, सहभागिता, जैसे मूल्य चरम पर होंगे। इससे द्वेष, घृणा, छल-कपट, अराजकता आदि के लिए कोई स्थान न बचेगा। तब मनुष्य में सच्ची मनुष्यता के दर्शन हो सकेंगे।

भाषा की बात

प्रश्न 1.
नीचे दिए गए शब्दों में से उपसर्ग व मूल शब्द अलग-अलग करके लिखिए-
DAV Class 8 Hindi Chapter 20 Question Answer - ईर्ष्या तू न गई मेरे मन से 1
उत्तर:

शब्द उपसर्ग मूल शब्द
(क) अभाव भाव
(ख) सुयश सु यश
(ग) दुर्भावना दुर् भावना
(घ) निमग्न नि मग्न

प्रश्न 2.
पाठ में से कोई पाँच भाववाचक संज्ञा शब्द छाँटकर लिखिए-
DAV Class 8 Hindi Chapter 20 Question Answer - ईर्ष्या तू न गई मेरे मन से 2
उत्तर:
(क) जिज्ञासा
(ख) उदारता
(ग) ईर्ष्या
(घ) आनंद
(ङ) प्रतिद्वंद्विता

जीवन मूल्य

प्रश्न 1.
ईर्ष्या, द्वेष, निंदा, घृणा, गुस्सा आदि नकारात्मक भाव जागने से मनुष्य के व्यक्तित्व में क्या बदलाव आता है?
उत्तर:
ईर्ष्या, द्वेष, निंदा, घृणा, गुस्सा आदि नकारात्मक भाव जागने से मनुष्य के व्यक्तिव में अनेक बदलाव आ जाते है। ऐसा व्यक्ति अपनी वस्तुओं का आनंद न लेकर दूसरों की वस्तुओं को देखकर दुखी होता है। वह अपनी उन्नति का उद्यम छोड़कर दूसरों को हानि पहुँचाने लगता है। वह दूसरों की निंदा करके उसकी प्रतिष्ठा धूमिल करना चाहता है। ऐसे व्यक्ति के सद्गुणों का नाश हो जाता है।

प्रश्न 2.
इन नकारात्मक भावों को मन से निकालने के लिए हम क्या – क्या उपाय कर सकते हैं?
उत्तर:
ईर्ष्या, द्वेष, निंदा, घृणा, गुस्सा आदि नकारात्मक भावों को मन से निकालने के लिए हमें अपनी सोच को सकारात्मक बनाना चाहिए। व्यक्ति के पास जो वस्तुएँ हैं, उनसे आनंदित होना चाहिए। इसके अलावा अपनी उन्नति का उद्यन करना चाहिए और किसी की निंदा नहीं करनी चाहिए।

कुछ करने के लिए

प्रश्न 1.
चार्ट पर एक तरफ़ मन में उठने वाले नकारात्मक भाव और उन्हीं के सामने आपके व्यक्तित्व को मज़बूत बनाने वाले सकारात्मक भाव लिखिए और कक्षा में लगाइए।
उत्तर:
छात्र चार्ट पर भाव लिखें और कक्षा में चिपकाएँ।

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प्रश्न 2.
सकारात्मक सोच पर कविताएँ, कहानियाँ व सूक्तियाँ पढ़िए।
उत्तर:
छात्र कहानियाँ कविताएँ एवं सूक्तिया स्वयं पढ़ें।

DAV Class 8 Hindi Ch 20 Solutions – ईर्ष्या: तू न गई मेरे मन से

I. बहुविकल्पीय प्रश्न

1. लेखक के पड़ोस में रहने वाले वकील साहब का स्वभाव कैसा है?
(क) ईमानदार
(ख) दयालु
(ग) ईर्ष्यालु
(घ) परोपकारी
उत्तर:
(ग) ईर्ष्यालु

2. बीमा एजेंट की संपत्ति, शान एवं तड़क-भड़क इनमें से किसके दाह का कारण बन गई थी ?
(क) वकील साहब की
(ख) अध्यापक की
(ग) लेखक की
(घ) नौकर की
उत्तर:
(क) वकील साहब की

3. ‘ईर्ष्यालु’ उन चीज़ों का आनंद नहीं उठाता जो उसके पास हैं इसलिए लेखक ईर्ष्या को है।
(क) अद्भुत गुण
(ख) अनोखा वरदान
(ग) अनोखा श्राप
(घ) अद्भुत ज्ञान
उत्तर:
(ख) अनोखा वरदान

4. ईर्ष्या करने वाला व्यक्ति उन वस्तुओं से
(क) लाभ
(ख) सुख
(ग) आभार
(घ) दुख
उत्तर:
(घ) दुख

DAV Class 8 Hindi Chapter 20 Question Answer - ईर्ष्या: तू न गई मेरे मन से

5. ईर्ष्यालु मनुष्य अपने अभाव पर दिन-रात सोचते-सोचते वह सृष्टि की प्रक्रिया भूलकर कहाँ लग जाता है?
(क) विनाश
(ख) उद्यम
(ग) उन्नति
(घ) परोपकार
उत्तर:
(क) विनाश

6. ईर्ष्यालु अपना श्रेष्ठ कर्तव्य इनमें से किसे
(क) दूसरों को लाभ पहुँचाना
(ग) दूसरों को हानि पहुँचाना
(ख) दूसरों का उपकार करना
(घ) दूसरों का आभार व्यक्त करना
उत्तर:
(ग) दूसरों को हानि पहुँचाना

7. जब मनुष्य के हृदय में ईर्ष्या जन्म लेती है
(क) सामने का सूर्य मद्धिम दिखता है।
(ग) फूल देखने योग्य नहीं रह जाते हैं
(ख) पक्षियों के गीत का जादू समाप्त हो जाता है
(घ) उपर्यक्त सभी
उत्तर:
(घ) उपर्यक्त सभी

8. ईर्ष्या शायद चिंता से भी …………… चीज़ है।
(क) बदतर
(ख) बेहतर
(ग) उच्चतर
(घ) दुष्कार
उत्तर:
(क) बदतर

9. इनमें से कौन समाज की दया का पात्र है?
(क) ईष्प्यालु व्यक्ति
(ख) चिंता-दाध व्यक्ति
(ग) परोपकारी व्यक्ति
(घ) उत्साही व्यक्ति
उत्तर:
(क) ईष्प्यालु व्यक्ति

10. ईश्वर चंद्र विद्या सागर के अनुसार, तुम्हारी निंदा वही करेगा जिसकी तुमने –
(क) बुराई की है
(ख) अहित चाहा है
(ग) आर्थिक क्षति पहुँचाई है
(घ) भलाई की है
उत्तर:
(घ) भलाई की है

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11. निंदकों को बाज़ार की मक्खियाँ किसने कहा है?
(क) नेपोलियन ने
(ख) ईश्वरचंद्र विद्यासागर ने
(ग) नीत्से से
(घ) सिंकदर ने
उत्तर:
(ग) नीत्से से

12. ईष्या से बचने का उपाय क्या है?
(क) आर्थिक अनुशासन
(ख) सामाजिक अनुशासन
(ग) मानसिक अनुशासन
(घ) राजनीतिक अनुशासन
उत्तर:
(ग) मानसिक अनुशासन

II. अति लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
ईर्ष्यालु अपनी किस आदत से लाचार रहता है ?
उत्तर:
ईर्ष्यालु दूसरों की वस्तुओं से अपनी वस्तुओं की तुलना कर दुख उठाता रहता है। वह अपनी इसी आदत से लाचार रहता है।

प्रश्न 2.
ईर्ष्यालु दूसरों की निंदा क्यों करता है?
उत्तर:
ईर्ष्यालु दूसरों की निंदा करके दूसरे का सम्मान गिराना चाहता है और उसका सम्मानपूर्ण स्थान स्वयं पाने के लिए उसकी निंदा करता है।

प्रश्न 3.
ईर्ष्या सबसे पहले किसे जलाती है?
उत्तर:
ईर्ष्या सबसे पहले उसे जलाती है, जिसके हृदय में उसका उदय होता है।

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प्रश्न 4.
संसार में व्यक्ति के पतन का कारण क्या होता है?
उत्तर:
संसार में व्यक्ति के पतन का कारण उसके अपने भीतर के सद्गुणों का ह्रास है।

प्रश्न 5.
ईर्ष्यालु व्यक्ति का सबसे बड़ा पुरस्कार क्या है?
उत्तर:
ईर्ष्यालु व्यक्ति का सबसे बड़ा पुरस्कार उसको मिलने वाला वह आनंद है जो उसे दूसरों की निंदा करने से मिलता है।

III. लघु उत्तरीय प्रश्न (30-35 शब्दों में )

प्रश्न 1.
ईर्ष्यालु व्यक्ति अपनी उन्नति किस प्रकार कर सकते हैं?
उत्तर:
ईर्ष्यालु व्यक्ति दूसरों की निंदा करके उसका स्थान प्राप्त करना चाहता है किंतु उन्नति करने के लिए उसे अपने चरित्र को निर्मल और अपने गुणों का विकास करना बहुत ज़रूरी है।

प्रश्न 2.
ईर्ष्यालु अपने दिल का गुबार किस प्रकार निकालते है?
उत्तर:
ईर्ष्यालु व्यक्ति अपने दिल का गुबार निकालने के लिए अकसर मौके की तलाश में रहते हैं। कोई सुनने वाला मिलते ही वे बड़ी चतुराई से एक-एक बात इस प्रकार विस्तारपूर्वक बताते हैं मानो इससे बड़ा कल्याणकारी काम और कोई दूसरा है ही नहीं।

III. दीर्घ उत्तरीय प्रश्न ( 70-80 शब्दों में )

प्रश्न 1.
नीत्से ने ईर्ष्यालु लोगों को किसके समान बताया है तथा उनसे बचने का क्या उपाय बताया है?
उत्तर:
नीत्से ने ईर्ष्यालु व्यक्तियों को बाज़ार की मक्खियों के समान बताया है, जो बिना कारण ही लोगों के चारों ओर भिनभिनाया करती हैं। ये मक्खियाँ सामने होने पर प्रशंसा और पीछे-पीछे निंदा किया करती हैं। ये लोगों को भूल नहीं सकते हैं। ये लोगों के बारे में बहुत सोचते हैं पर डरते भी हैं और उन्हें शंका की दृष्टि से भी देखते हैं। ऐसे लोगों से बचने के लिए जो कुछ भी अमर और महान है, उसकी रचना और निर्माण में लग जाना चाहिए तथा ऐसे लोगों से दूरी बनाकर रखना चाहिए।

IV. मूल्यपरक प्रश्न

प्रश्न 1.
दूसरों से ईर्ष्या रखना आप कितना उचित / अनुचित समझते हैं, लिखिए।
उत्तर:
दूसरों से ईर्ष्या रखना मैं पूरी तरह से अनुचित समझता हूँ क्योंकि यह हमारी सोच को नकारात्मक बनाती है और हमारी उन्नति के मार्ग को अवरुद्ध करती है। यह हमारे मौलिक गुणों को कुंठित कर देती है। यदि हम किसी से ईर्ष्या रखेंगे भी तो उसे सकारात्मक रूप में लेकर उसके समान बनने के लिए रचनात्मक कार्य करेंगे ताकि सदैव आगे बढ़ते रहें।

क्रियाकलाप

प्रश्न 1.
‘ईर्ष्या कितनी हानिकारी ?’ विषय पर सौ शब्दों का अनुच्छेद लिखकर कक्षा में सुनाइए।
उत्तर:
छात्र स्वयं करें

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्न

प्रश्न 1.
ईर्ष्या का यही अनोखा वरदान है। जिस मनुष्य के हृदय में ईर्ष्या घर बना लेती है, वह उन चीज़ों से आनंद नहीं उठता, जो उसके पास मौजूद हैं; बल्कि उन वस्तुओं से दुख उठाता है, जो दूसरों के पास हैं। वह अपनी तुलना दूसरों के साथ करता है। और इस तुलना में अपने पक्ष के सभी अभाव उसके हृदय पर दंश मारते रहते हैं। दंश के इस दाह को भोगना कोई अच्छी बात नहीं है।

प्रश्न (क) ईर्ष्यालु मनुष्य किन चीज़ों से आनंदित नहीं होता है?
(ख) ईर्ष्यालु मनुष्य के दुख का कारण क्या है?
(ग) अपनी तुलना दूसरों के साथ प्राय: कौन करते रहते हैं ?
(घ) तुलना में अभाव के पक्ष ईर्ष्यालु पर क्या प्रभाव डालते हैं?
(ङ) यहाँ किस दाह की बात कही गई है ?
उत्तर:
(क) ईर्ष्यालु मनुष्य उन वस्तुओं से आनंदित नहीं होता है जो उसके पास उपलब्ध होती हैं।
(ख) ईर्ष्यालु मनुष्य के दुख का कारण वे वस्तुएँ, सुख-सुविधाएँ और साधन होते हैं जो दूसरों के पास हैं। उन्हें देखकर ही वह दुखी होता है।
(ग) ईर्ष्यालु व्यक्ति अपनी तुलना दूसरों के साथ करते हैं।
(घ) तुलना में अभाव के पक्ष ईर्ष्यालु व्यक्ति के हृदय पर दंश या चोट पहुँचाते रहते हैं, जिनसे वह हमेशा दुखी रहता है।
(ङ) यहाँ उस दाह की बात कही गई है जो दूसरों से ईर्ष्या भाव रखने के कारण वह महसूस करता रहता है।

DAV Class 8 Hindi Chapter 20 Question Answer - ईर्ष्या: तू न गई मेरे मन से

प्रश्न 2.
मगर, ऐसा न आज तक हुआ है और न आगे होगा। दूसरों को गिराने की कोशिश तो, अपने को बढ़ाने की कोशिश नहीं कही जा सकती। एक बात और है कि संसार में कोई भी मनुष्य निंदा से नहीं गिरता । उसके पतन का कारण अपने ही भीतर के सद्गुणों का ह्रास होता है। इसी प्रकार कोई भी मनुष्य दूसरों की निंदा करने से अपनी उन्नति नहीं कर सकता। उन्नति तो उसकी तभी होगी, जब वह अपने चरित्र को निर्मल बनाए तथा अपने गुणों का विकास करे।

प्रश्न (क) दूसरों को गिराने वालों की मंशा क्या रहती है ?
(ख) व्यक्ति के पतन का क्या कारण होता है ?
(ग) व्यक्ति कब उन्नति करता है?
(घ) व्यक्ति अपनी उन्नति किस प्रकार नहीं कर सकता है?
(ङ) गद्यांश के पाठ का नाम लिखिए।
उत्तर:
(क) दूसरों को गिराने वालों की मंशा अपने को आगे बढ़ाने की रहती है।
(ख) व्यक्ति के पतन का कारण उसके अपने भीतर के सद्गुणों का ह्रास या उनका क्रमशः घटते जाना है।
(ग) मनुष्य की उन्नति तब होती है जब वह अपने सद्गुणों का विकास करे तथा चरित्र को निर्मल बनाए।
(घ) जो व्यक्ति दूसरों की निंदा को ही अपना ध्येय मान बैठते हैं वे कभी उन्नति नहीं कर सकते हैं।
(ङ) गद्यांश के पाठ का नाम है। ‘ईर्ष्या : तू न गई मेरे मन से।

प्रश्न 3.
चिंता को लोग चिता कहते हैं। जिसे किसी प्रचंड चिंता ने पकड़ लिया है, उस बेचारे की जिंदगी की खराब हो जाती है। किन्तु ईर्ष्या शायद चिंता से भी बदतर चीज़ है, क्योंकि वह मनुष्य के मौलिक गुणों को ही कुंठित बना डालती है। मृत्यु, शायद, फिर भी श्रेष्ठ हैं बनिस्पत इसके कि हमें अपने गुणों को कुंठित बनाकर जीना पड़े। चिंता – दग्ध मनुष्य समाज की दया का पात्र है। किंतु ईर्ष्या से जला – भुना आदमी ज़हर की एक चलती-फिरती गठरी के समान है जो हर जगह वायु को दूषित करती फिरती है।

प्रश्न (क) चिंता को चिता क्यों कहा जाता है?
(ख) ईर्ष्या चिंता से भी बदतर क्यों है?
(ग) मृत्यु चिंता से कब श्रेष्ठ बन जाती है?
(घ) चिंता दग्ध और ईष्यालु व्यक्ति में क्या अंतर है?
(ङ) ‘वायु को दूषित करने’ का क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
(क) चिंता को चिता इसलिए कहा जाता है क्योंकि चिंता किसी व्यक्ति की अच्छी- भली जिंदगी को बर्बाद कर देती है।
(ख) ईर्ष्या चिंता से इसलिए बदतर है क्योंकि इससे मनुष्य के मौलिक गुण भी कुंठित होते-होते नष्ट हो जाते हैं।
(ग) मृत्यु भी चिंता से तब श्रेष्ठ बन जाती है जब व्यक्ति अपने गुणों को कुंठाग्रस्त बनाकर जीता है।
(घ) चिंता-दग्ध व्यक्ति को समाज दया भाव की दृष्टि से देखता है पर ईर्ष्यालु व्यक्ति जहरीली गठरी जैसा होता है, जिसे कोई अपने पास नहीं आने देता है।
(ङ) ‘वायु दूषित करने का’ अभिप्राय है अपने दूषित विचारों से दूसरे पर कुप्रभाव डालना।

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प्रश्न 4.
ईर्ष्या से बचने का उपाय मानसिक अनुशासन है। जो व्यक्ति ईर्ष्यालु स्वभाव का है, बारे में सोचने की आदत छोड़ देनी चाहिए। उसे यह भी पता लगाना चाहिए कि जिस अभाव के कारण वह ईर्ष्यालु बन गया है, उसकी पूर्ति का रचनात्मक तरीका क्या है। जिस दिन उसके भीतर यह जिज्ञासा जागेगी उसी दिन से वह ईर्ष्या करना कम कर देगा।

प्रश्न (क) ईर्ष्या से बचने का उपाय क्या है?
(ख) ईर्ष्यालु व्यक्ति को कौन-सी आदत छोड़ देनी चाहिए?
(ग) ईर्ष्यालु व्यक्ति को क्या आत्मचिंतन करना चाहिए?
(घ) गद्यांश में किस जिज्ञासा की बात कही गई है ?
(ङ) गद्यांश के पाठ का नाम और लेखक का नाम लिखिए।
उत्तर:
(क) ईर्ष्या से बचने का सबसे आसान उपाय मानसिक अनुशासन है। अर्थात् व्यक्ति को स्वयं ही दृढ़ निश्चय करना होगा कि वह अपनी उपलब्धियों से संतुष्ट रहे।
(ख) ईर्ष्यालु व्यक्ति को फालतू सोचने की आदत और दूसरे के धन-दौलत एवं सुविधाओं से अपनी तुलना करना छोड़ देना चाहिए।
(ग) ईर्ष्यालु व्यक्ति को यह आत्मचिंतन करना चाहिए कि किस कमी के कारण वह ईर्ष्यालु बना और उसकी पूर्ति का रचनात्मक उपाय क्या है।
(घ) गद्यांश में ईर्ष्या का मूल कारण और उसकी पूर्ति के साधन एवं उससे बचने के उपाय संबंधी जिज्ञासा की बात कही गई है।
(ङ) गद्यांश के पाठ का नाम ‘ईर्ष्या : तू न गई मेरे मन से।

शब्दार्थ:

  • मृदुभाषिणी – मधुर बोलने वाली।
  • दाह – जलन।
  • विभव – वैभव, ऐश्वर्य।
  • तड़क-भड़क – शान।
  • अनोखा – अद्भुत।
  • दंश मारना – दुख पहुँचाना।
  • वेदना – पीड़ा।
  • निमग्न – डूबा हुआ।
  • उद्यम करना – प्रयास करना।
  • निंदक – निंदा या बुराई करने वाला।
  • आँखों से गिर जाना – सम्मान खो बैठना।
  • अनायास – अपने-आप।
  • ह्रास – नाश।
  • गुबार निकालना – मन में एकत्र हुई बातें कहना।
  • श्रोता – सुननेवाला।
  • ध्येय – लक्ष्य।
  • सुकर्म – सुंदर या अच्छा कर्म।
  • अपव्यय – फालतू खर्च करना।
  • बदतर – अधिक बुरी।
  • बनिस्पत – बजाए।
  • चिंता-दग्ध – चिंता में जलता हुआ।
  • प्रतिद्वंद्वी – विरोधी।
  • बेधना – दुख पहुँचाना।
  • व्यापी – फैला हुआ।
  • स्पर्धा – प्रतियोगिता।
  • समकक्ष – बराबर।
  • ऐब – दोष।
  • तजुरबा – अनुभव।
  • संकीर्ण – छोटा, सँकरा, तंग।
  • हस्ती – प्रसिद्ध और महान व्यक्ति।
  • उपकार – भलाई।
  • अहंकार – घमंड।
  • शोहरत – प्रसिद्धि, यश।
  • जिज्ञासा – जानने की इच्छा।

ईर्ष्या: तू न गई मेरे मन से Summary in Hindi

पाठ- परिचय:

‘ईर्ष्या : तू न गई मेरे मन से’ एक शिक्षाप्रद निबंध है, जिसमें लेखक ने ईर्ष्या और ईर्ष्यालु व्यक्तियों के बारे में बताया है। लेखक बताता है कि ईर्ष्या व्यक्ति को उपलब्ध सुख-सुविधाओं के सुख से भी वंचित कर देती है। लेखक ने ईर्ष्या से बचने का उपाय भी सुझाया है।

पाठ का सार:

‘ईर्ष्या : तू न गई मेरे मन से’ नामक पाठ श्रीरामधारी सिंह ‘दिनकर’ द्वारा लिखित है। इस निबंध में लेखक ने बताया है कि किस प्रकार ईर्ष्यालु व्यक्ति परेशान रहता है और ऐसे लोगों से कैसे बचा जाए। ईर्ष्यालु व्यक्ति दूसरों के धन-दौलत, सुख – ऐश्वर्य आदि देखकर परेशान हो उठता है।

लेखक बताता है कि उसके घर दाहिने जो वकील रहते हैं उनके पास सभी सुख-सुविधाएँ मौजूद हैं परंतु वे सुखी नहीं हैं। उनके भीतर का दाह उनके बगल में रहने वाला बीमा एजेंट है जिसका सुख एवं ऐश्वर्य देखकर उनका कलेजा जलता रहता है। ईर्ष्या जिसके हृदय में घर बना लेती है वह व्यक्ति अपने पास मौजूद चीज़ों का आनंद नहीं उठा पाता है। वह अपने अभाव पर रात-दिन सोचते-सोचते दूसरों को हानि पहुँचाने के लिए सोचने लगता है। ईर्ष्या की बड़ी बेटी का नाम निंदा है। ईर्ष्यालु ही निंदक होता है। वह किसी व्यक्ति की निंदा करके उस स्थान से उसे हटाकर स्वयं बैठ जाना चाहता है पर संसार में निंदा से कोई भी नहीं गिरता है। व्यक्ति के पतन का कारण उसके सद्गुणों का ह्रास है। किसी व्यक्ति को अपनी उन्नति के लिए अपने गुणों का विकास करते हुए चरित्र को निर्मल बनाना चाहिए।

जिस व्यक्ति के हृदय में ईर्ष्या जन्म लेती है, उसी को जलाती भी है। बहुत से लोग ईर्ष्या और द्वेष की साकार मूर्ति होते हैं, जो मौका मिलते ही अपने दिल का गुबार निकालने लगते हैं। वे यह भी नहीं सोचते हैं कि अगर उन्होंने निंदा करने में शक्ति और समय बर्बाद न किया होता तो वे कहाँ होते ? चिंता को चिता कहते हैं किंतु ईर्ष्या चिंता से भी बुरी चीज़ है क्योंकि इससे व्यक्ति के मौलिक गुण भी कुंठित हो जाते हैं। चिंता से दग्ध मनुष्य समाज की दया का पात्र होता है किंतु ईर्ष्यालु व्यक्ति ज़हर की गठरी के समान होता है जो हर जगह की वायु को दूषित करता है। ईर्ष्या से मनुष्य के आनंद में बाधा पड़ती है। वह पक्षियों के गीत और फूलों का आनंद नहीं उठा पाता है।

ईर्ष्या का एक पक्ष लाभदायक हो सकता है जिसके अधीन रह कर आदमी अपने प्रतिद्वंद्वी के बराबर बनना चाहता है। ईर्ष्या सदैव प्रतिद्वंद्वी व्यक्तियों से ही की जानी चाहिए। ईर्ष्या से लाभ उठाना तभी संभव है जब व्यक्ति यह महसूस करे कि कोई चीज़ है जो उसके भीतर नहीं है और कोई वस्तु है जो दूसरों के पास है। परिणामस्वरूप उसे पाने का सही तरीका अपनाए।