Regular practice using DAV Class 7 Hindi Solutions and DAV Class 7 Hindi Chapter 14 Question Answer – एस. रामानुजन are essential for improving writing and analytical skills.
DAV Class 7 Hindi Chapter 14 Question Answer – एस. रामानुजन
DAV Class 7 Hindi Ch 14 Solutions – एस. रामानुजन
शब्दाथ
पृष्ठ संख्या-82.
प्रतीक्षा – इंतज़ार।
पृष्ठ संख्या-83.
गणितज्ञ – गणित के ज्ञाता, जानने वाले।
विलक्षण – अद्भुत!
वरिष्ठ – अपने से बड़े।
शोध – कार्य-अनुसंधान, खोज।
पृष्ठ संख्या-84.
सुलझाना – हल करना।
प्रेरित करना – बढ़ावा देना।
प्रमाणित करना – सही सिद्ध करना।
खंडन – अप्रमाणित करना।
पृष्ठ संख्या-85.
फ़िराक – चिता।
सौभाग्य – अच्छी किस्मत।
दिलचस्पी – रुचि।
विख्यात – प्रसिद्ध।
दुर्लभ – बड़ी कठिनाई से मिलने वाला।
पृष्ठ संख्या-86.
प्रतिभासंपन्न – अत्यंत होनहार।
प्रबंध – इंतजाम।
अजनबी – अपरिचित।
दृढ़निश्चयी – पक्के निश्चय वाला।
संगति – साथ।
वक्ता – बोलने वाले।
ज्योतिषी – ग्रह, नक्षत्र, तारों का अध्ययन कर परिणाम बताने वाले।
एस. रामानुजन Summary in Hindi
पाठ-परिचय
‘एस. रामानुजन’ पाठ में एक ऐसे सुप्रसिद्ध्र गणितज्ञ की जीवनी है, जिसने अल्पायु में ही अपनी प्रतिभा का लोहा मनवा लिया। गणित में इनकी विशेष रुचि थी। उन्हें कैंब्रिज विश्वविद्यालय में शोध के लिए बुलाया गया. जहाँ बड़े-बड़े गणित्ञ उनकी प्रतिभा से बहुत प्रभावित हुए।
पाठ का सार
रामानुजन जव छोटे थे, तब गणित की कक्षा में अध्यापक उन्हें भाग देना सिखा रहे थे। वे केलों के नाध्यम से तीन को तीन से तथा एक हज़ार को एक हज़ार से भाग देने पर प्राप्त होने वाला उत्तर छात्रों से पूछ रहे थे। छात्रों ने उत्तर बताया एक। तभी रामानुजन खड़े हुए और बोले “यद् कोई केला किसी में न बाँटा जाए तो क्या तब भी प्रत्येक को एक केला मिलेगा?” बच्चे हँस पड़े परंतु शिक्षक समझ गए कि रामानुजन क्या कहना चाहता है।
अर्थात् शून्य को शून्य से भाग देने पर असंख्य केले मिलेंगे। रामानुजन ने ऐसा प्रश्न पूछा था, जिसका उत्तर देने में गणितज्ञों को कई साल लग गए। कुछ कहते थे-शून्य होगा, कुछ एक बताते और कुछ असंख्य। यह उलझन भरा प्रश्न पूछने वाले छात्र का नाम था-रामानुजन। वे भारत में रहे या विदेश में, अपने गणित के अध्यापकों से सदैव आगे रहे।
रामानुजन का जन्म तमिलनाडु के इरोंद् नामक स्थान पर 22 दिसंबर, 1887 को हुआ। उनके पिता कपड़े की एक दुकान पर मुनीम थे। बचपन से ही रामानुजन विलक्षण प्रतिभा के धनी थं। वे मात्र तेरह वर्ष की उम्र में त्रिकोणमिति की पुस्तक पुस्तकालय से लाए और उसे पढ़कर अपना शोध कार्य शुरू कर दिया।
पंद्रह वर्ष की आयु में उन्होंने ‘सिनोप्सिस ऑफ एलिमेंट्री रिजल्ट्स इन प्योर एंड अप्लाइड मैथेमैटिक्स’ का अध्ययन किया तथा उनके प्रश्नों को हल कर उनके परिण ाम नोटबुक में नोट करते। विदेश जाने से पहले उन्होंने तीन नोटबुक्स भर डाली, जो बाद में ‘फ्रेयड नोटबुक्स’ नाम से प्रसिद्ध हुई। गणितज्ञ आज भी इसका अध्ययन कर रहें। रामानुजन दसवीं में प्रथम श्रेणी में पास हुए परंतु गणित के अलावा किसी विषय में उनकी रुचि न थी। वे आग न पढ़ सके।
उनके पिता ने उनका विवाह जानकी से कर दिया। अब रामानुजन नौकरी की तलाश करने लगे। उन्हें मद्रास पोर्ट ट्रस्ट में 25 रुपये की मासिक नौकरी मिल गई। इसके बाद कुछ अध्यापक और शिक्षा-शस्त्री भी रामानुजन के काम में रुचि लेने लगे और चन्नई (मद्रास) विश्वविद्यालय ने उन्हें 75 रुपय की शिक्षावृत्ति दी. यद्ययि उनके पाम काई डिग्री नहीं थी।
उन्होंने कैंब्रिज के प्रसिद्ध गणित्ञ जी.एच. हार्डी को पत्र लिखा और पत्र के साथ 120 प्रमंय और फॉर्मूले भेंजे। उन्होंने रामानुजन की प्रतिभा को पहचाना और उन्हें कैंब्रिज बुलवा लिया। वे 17 मई. 1914 को पानी के जहाज से ब्रिटन चले गए। कैंब्रिज का वातावरण एकद्म नया था।उन्हें वहाँ कड़ी सर्दी सहृनी पड़ती थी और स्त्रयं भोजन पकाना पड़ता था, पर वे हार्डी और लिटिलवुड से मिल अपनी परेशानियाँ भूल जाते थे।
रामानुजन अंकों से एसे खीलते थे, जैसे बच्चा अपने खिलौनों से। जब रामानुजन अपना शोधकार्य कर रहे थे तभी उन्हें तर्पदिक हो गया। तब इस बीमारी का इलाज नहीं था। उन्हें भारत भेज़ दिया गया। अपनी बीमारी के दर्द को भूलने के लिए वे मृत्यु निकट होने पर भी अंकों सं ख़ले रहे। उनकी मृत्यु 26 अप्रैल, 1920 को चैन्नई में हुई। वे गणितज्ञ होने के अलावा प्रसिद्ध ज्योंतिषी और वक्ता भी थे जो भगवान, शून्य, अनंत… जैसे विषयों पर भाषण दिया करते थें।