DAV Class 6 Hindi Chapter 19 Question Answer – सिकंदर और साधु

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DAV Class 6 Hindi Chapter 19 Question Answer – सिकंदर और साधु

DAV Class 6 Hindi Ch 19 Solutions – सिकंदर और साधु

शब्दार्थ
पृष्ठ संख्या – 84.
बादशाह – राजा।
वीर – बहादुर।
संसार – दुनिया।
शूरवीर – अत्यंत वीर।
मोर्चा लेना – युद्ध करना।
दाँत खट्टे करना – हरा देना।
अनोखी – विचित्र।

पृष्ठ संख्या-86.
सेवक – सेवा करने वाला।
तन – बदन में आग
लगना – बहुत क्रोधित होना।
लौकिक – सांसारिक।
शीत – सर्दी।
ध्यानमग्न – ध्यान में लीन।
मुखमंडल – चेहरा।
अपूर्व – जो पहले कभी न हो।
आभा – चमक।
आदर – सम्मान।
अमूल्य – वेशकीमती।
वन – जंगल।

DAV Class 6 Hindi Chapter 19 Question Answer - सिकंदर और साधु

पृष्ठ संख्या-87.
वस्त्र – कपड़े।
मौन – चुप।
सराहना – बड़ाई।
विजय – जीत।
वैभव – धन, दौलत।
लालसा – इच्छा।

सिकंदर और साधु Summary in Hindi

पाठ-परिचय

‘सिकंदर और साधु’ पाठ में विश्व-विजय अभियान पर निकले सिकंदर और रावी नदी के तट पर रहने वाले महात्मा की मुलाकात का वर्णन है। विश्व के अनेक देशों को जीतता सिकंदर पुरु से मित्रता करके आगे बढ़ता ही जा रहा था कि साधु की मुलाकात ने उसे यूनान वापस लौटने को विवश कर दिया।

पाठ का सार

दो-ढाई हज़ार साल पहले यूनान में सिकंदर नामक शासक था। वह वीर और प्रतापी था। वह अरस्तू का शिष्य था। वह विश्व-विजय करने के लिए एक बड़ी सेना लेकर यूनान से निकल पड़ा। सिकंदर ईरान, मिस्र, तुर्की और काबुल को जीतता हुआ भारत आ गया। वह उत्तर भारत के राजाओं को हराता हुआ पंजाब तक आ गया जहाँ पुरु का शासन था।

पुरु उससे युद्ध करने को तैयार हो गया। पंजाब को जीतने के बाद वह पाटलि- पुत्र (पटना) को जीतना चाहता था। उसने रावी नदी के तट पर रहने वाले एक प्रसिद्ध महात्मा के बारे में सुना। उसने महात्मा से मिलने की इच्छा मन में रखकर सैनिक से महात्मा को बुलवाया, परंतु महात्मा ने उसके पास आने से मना कर दिया।

DAV Class 6 Hindi Chapter 19 Question Answer - सिकंदर और साधु

क्रोधित सिकंदर ने मन-ही-मन सोचा क्यों न यह देखा जाए कि महात्मा त्याग को महत्त्व देता है या लौकिक सुख और धन को। अगले दिन वह भयंकर सर्दी में उपहार लिए महात्मा के पास गया। उसने देखा कि महात्मा कुटिया के बाहर केवल लंगोटी पहने ध्यानमग्न थे। कँपा देने वाली सर्दी का महात्मा पर कोई असर नहीं हो रहा था।

सिकंदर उनके मुख-मंडल की शांति और आभा देखता रह गया। महात्मा का ध्यान टूटने पर उन्होंने सिकंदर को देखा। उसने प्रणाम कर उपहार महात्मा के सामने रख दिया। उपहारों में रेशमी शाल और हीरे-जवाहरात थे। उसने विनम्र भाव से उन उपहारों को स्वीकारने के लिए कहा।

महात्मा ने उत्तर दिया, “यदि उन्हें इन चीज़ों की ज़रूरत होती तो वे घर क्यों छोड़ते? वन का फल, नदी का पानी और कुटी ही उनका धन है। भूखे होने पर वे वन के फल-फूल खा लेते हैं और रात को कुटी में सो जाते हैं। ये कीमती उपहार उनके किसी काम के नहीं हैं।” उनके त्याग की परीक्षा लेने के लिए सिकंदर ने कहा, “ये वस्त्र आपको सर्दी से बचाएँगे।”

महात्मा ने कहा,” आपका सारा शरीर कपड़ों से ढका है परंतु नाक और आँखें तो खुली हैं। क्या इन्हें सर्दी नहीं लग रही है।” यह सुन सिकंदर मौन रहा। अब महात्मा ने पुनः कहा, “जिस तरह नाक और आँखों को सर्दी सहने का अभ्यास हो गया है उसी प्रकार मुझे भी सर्दी, गर्मी सहने का अभ्यास हो गया है।”

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उसने महात्मा जी के त्याग और तप की सराहना की और कहा, “दया करके बताइए कि मुझे शांति कैसे मिलेगी?” महात्मा ने कहा, “तुम्हारे मन में दूसरों को हराने की लालसा है। तुमने खून की नदियाँ बहाई हैं। फिर तुम्हें शांति किस प्रकार मिल सकती है।” उसने महात्मा से शांति का उपाय पूछा। महात्मा ने कहा, “कुछ समय बाद आप संसार से चले जाएँगे। अतः लड़ाई-झगड़े छोड़ भगवान के भजन में अपना मन लगाएँ।” महात्मा की बात सुन सिकंदर यूद्ध का विचार त्याग यूनान लौट गया।