Class 11 Hindi Antra Chapter 8 Summary – Uski Maa Summary Vyakhya

उसकी माँ Summary – Class 11 Hindi Antra Chapter 8 Summary

उसकी माँ – ओमप्रकाश वाल्मीकि – कवि परिचय

जीवन-परिचय : पाण्डेय बेचन शर्मा ‘उग्र’ का जन्म सन् 1900 में मिर्जापुर जिलान्तर्गत चुनार के एक निर्धन परिवार में हुआ था। बचपन में ही इनके पिता का स्वर्गवास हो जाने के कारण इनका जीवन बहुत संकटपूर्ण रहा। चाचा की कृपा से थोड़ी बहुत शिक्षा प्राप्त हुई। उग्र स्वभाव के होने के कारण इनको स्कूल से निकाल दिया गया। अपने बड़े भाई के साथ कई वर्षों तक रामलीला मण्डलियों में अभिनय करते रहे। सन् 1921 में राष्ट्रीय आन्दोलन में काशी आकर जेल चले गए। छूटने के बाद साहित्य रचना में लग गए। अपनी नैसर्गिक प्रतिभा और साधना के बल पर इन्होंने अपने समय के अग्रणी गद्य शिल्पी के रूप में पहचान बनाई। अपने तेवर एवं शैली के कारण ‘उग्र’ जी सदा चर्चा में रहे। ‘उग्र’ जी को पुरातन पन्थियों का बहुत विरोध झेलना पड़ा।

साहित्यिक-परिचय : पत्रकारिता से ‘उग्र’ जी का गहरा सम्बन्ध था। सन् 1923 में उन्होंने नयी हास्य पत्रिका ‘भूत’ का सम्पादन किया। 1924 में गोरखपुर से ‘स्वदेश’ पत्रिका निकाली। एक ही अंक छपने से इनके नाम वारन्ट निकल गया। ये कलकत्ता चले गए और वहौं ‘मतवाला’ का सम्पादन करने लगे। बम्बई में इन्होंने ‘साइलेन्ट फिल्म’ में लेखक के रूप में भी कार्य किया। ‘उग्र’ जी आज, विश्वमित्र, स्वदेश वीणा, स्वराज्य और विक्रम के संपादक रहे लेकिन ‘मतवाला मण्डल’ के प्रमुख सदस्य के रूप में उनकी विशेष पहचान रही। चॉकलेट उनकी बहुचर्चित पुस्तक है। आत्मपरक पुस्तक ‘अपनी खबर में उनकी गद्य शैली का उत्कृष्ट रूप मिलता है’।

रचनाएँ : ‘उग्र’ जी की प्रमुख रचनाएँ इस प्रकार हैं ‘चंद हसीनों के खतूत’ ‘फागुन के दिन चार’, ‘सरकार तुम्हारी आँखों में’, ‘घण्टा’, ‘दिल्ली का दलाल’, ‘शराबी’, ‘वह कंचन सी काया’, ‘पीली इमारत’, ‘चित्र विचित्र’, ‘काल कोठरी’, ‘कंचन वर’, ‘कला का पुरस्कार’, ‘गालिब और उग्र’, ‘जब सारा आलम सोता है’ आदि।

भाषा-शैली : उग्र अपनी अनोखी शैली के लिए विख्यात हैं। उन्होंने समाज में कलुष वासना और यान्त्रिक मानवता पर प्रहार करने वाली मार्मिक व्यंग्योक्तियों की रचना की है। उन्होंने अपनी कविताओं में अनोखी शैली का प्रयोग किया है। छन्द की दृष्टि से नई पुरानी विभिन्न छान्दसिक प्रवृत्तियों का प्रयोग भी उनकी सहज प्रवृत्ति है।

Uski Maa Class 11 Hindi Summary

कहानी का संक्षिप्त परिचय :

प्रस्तुत कहानी ‘उसकी माँ’ देश की दुर्दशा से चिंतित युवा पीढ़ी के विद्रोह को एक नए रूप से प्रस्तुत करती है। युवा पीढ़ी देश की दुर्दशा का सबसे बड़ा जिम्मेदार शासन तंत्र को मानती है व अपनी शक्ति के बल पर इस शासन तंत्र को उखाड़ फेंकना चाहती है। इस पीढ़ी का सपना है कि वह भी दुष्ट, व्यक्ति नाशक राष्ट्र के सर्वनाश में अपना योगदान करें। यथार्थ के तूफानों से बेपरवाह यह पीढ़ी जानती है कि नष्ट हो जाना तो प्रकृति का नियम है। परिवर्तन तो होता ही है। रूप उसी का बिगड़ेगा जिसे सँवारा गया हो। हमें अपने आप को दुर्बल नहीं समझना चाहिए। हमें मिलकर शासन-तंत्र के खिलाफ एकजुट होना चाहिए। नई पीढ़ी का यह स्वर जहाँ राजसत्ता के विद्रोह की मशाल लिए खड़ा है, वही पूर्ववर्ती पीढ़ी का बुद्धिजीवी सरकार के साथ अपनी स्वामी भक्ति दिखा रहा है। इन दोनों के बीच एक माँ खड़ी है जो अपना बेटा चाहती है। समाज के दो सिरों पर खड़ी माँ लाख कोशिश के बाद भी अपने लाल को बचा नहीं पाती। इस कहानी में तत्कालीन जनमानस एवं माँ की ममता का सजीव चित्रण पाठक को उद्वेलित करता है।

कहानी का सार :

लेखक दोपहर को खाना खाने के बाद अपनी पुस्तकों कि अलमारियों में किसी महान लेखक की कोई कृति पढ़ने के लिए ढूँढ रहा था। उनकी अलमारियों में अनेक विदेशी महान लेखकों की रचनाएँ भरी पड़ी थीं। वह पुस्तकें देख ही रहा था कि तभी उसके द्वार पर मोटर के रुकने की आवाज सुनाई दी। नौकर ने आने वाले का कार्ड दिया। शहर के पुलिस सुपरिटेंडेंट आए थे। उनको बे-वक्त देखकर लेखक घबराया। वे किसी के बारे में पूछताछ कर रहे थे। लेखक ने बताया कि ये तो मेरे घर के सामने ही रहता है ‘लाल’ नाम है इसका। इसके परिवार में यह और इसकी विधवा माँ है। इसके पिता रामनाश मेरी जमींदारी के मुख्य मैनेजर थे। पुलिस सुपरिटेंडेंट लेखक को आगाह करके गया कि तुम इस आदमी से सावधान और ज़रा दूर ही रहना।

लेखक सारा माजरा समझ गया था। एक दिन लेखक ने लाल की माँ को बुलाकर समझाना चाहा, तभी वहाँ लाल भी आ गया। उसके साथ उसके दो चार मित्र भी थे। लेखक ने उसको चेताया परन्तु उन पर देश भक्ति का रंग चढ़ चुका था। लेखक ने कहा कि मेरा तुमको कहने का अधिकार है इसलिए मैं कहना चाहता हूँ कि तुम इन लोगों का साथ छोड़ दो। परन्तु लाल का कहना था कि चाचा जी-“इस पराधीनता के विवाद में हम और आप भिन्न-भिन्न सिरों पर खड़े हैं आप कट्टर राजभक्त हो और मैं कट्टर राजद्रोही। मैं इस शासन तंत्र के नाश में अपना योगदान देना चाहता हूँ। लाल की माँ भल इन गंभीर बातों को क्या समझती।

एक दिन लाल की माँ लेखक की धर्मपत्नी के साथ बैठी हुई थी। लेखक ने उससे पूछा लाल के साथ कितने लड़के आते हैं ? वह बोली वे सभी लड़के मुझे अपने लाल की तरह ही प्यारे लगते हैं। ऐसा लगता है मानो वे सब मेरे ही लड़के हों वे किस प्रकार हैंस-हैंस कर बातें करते हैं। एक लड़का उनमें बड़ा हँसोड़ है वह कहता है माता तुम तो बिल्कुल भारत माँ जैसी दिखाई देती हो। वे जो बातें करते हैं, उनकी बातों का कोई मतलब थोड़े ही होता है। वे जवान हैं जो कुछ उनके मन में आता है कहते रहते हैं। वे आपस में सरकार की और न जाने किस-किस की बातें करते रहते हैं। ये ऐसे ही चार छोकरे इकटे होकर अंट-संट बकते रहते हैं। लेखक ने चेताया, ‘लाल की माँ! यह कोई अच्छी बात नहीं है।

लेखक जमींदारी के काम के लिए कुछ दिन के लिए बाहर गया था, आने पर पता चला कि लाल एवं उसके साथियों को पुलिस पकड़ ले गई है। पुलिस ने उनके यहाँ से न जाने क्या-क्या आपत्तिजनक चीजें बरामद दिखाकर केस बना दिया। बूढ़ी माँ इन सब लड़कों के लिए जेल में ही खाना पहुँचती रही। सरकार के डर के मारे उनकी पैरवी के लिए कोई वकील भी तैयार नहीं हुआ। बाद में हुआ भी तो ऐसा जिसका होना न होना एक समान था।

सरकार ने एक साल तक उन पर न जाने किस दारोगा की हत्या और किस लूट का मुकदमा चलाकर लाल व तीन साथियों को फॉंसी की सजा व अन्य दस को सात से लेकर दस वर्ष कैद की सजा सुनाई। माँ अदालत के बाहर झुकी खड़ी थी और वे सब मस्ती के साथ बेड़ियाँ बजाते झूमते बाहर आए। तभी उनमें से वह हैंसोड़ लड़का बोला माँ तुमने हमको तो हलवा पूड़ी खिलाकर गधे-सा तगड़ा कर दिया ऐसा की फाँसी की रस्सी टूट जाए और हम अमर के अमर बने रहें। मगर तू सूखकर काँटा हो गई। तभी लाल बोला-‘ “माँ तू भी जल्दी वहीं आना जहाँ हम जा रहे हैं। वहीं फिर हम स्वतंत्रता से मिलेंगे तथा तुझे कंधे पर उठाकर इधर-उधर दौड़ते फिरेंगे। माँ टुकर-टुकर उनकी ओर देखती रही।

शहर के लोग लाल की माँ से मिलने से भी कतराते थे। कोई भी विद्रोही की माँ से संबंध नहीं रखना चाहता था। लेखक एक दिन व्यालू करने के बाद पुस्तकालय के कमरे में गया तो उन्होंने मैजिनी की एक पुस्तक पर लाइ की लिखावट देखी। तीन साल पहले वह इस किताब को ले गया था। लेखक के मन से एक आह निकलकर रह गई। तभी उसको सुपरिन्टेंडेंट की सूरत याद आई वह रबड़ लेकर उस पुस्तक से लाल की लिखावट मिटाने लगा तभी वहाँ हाथ में एक पत्र लेकर लाल की माँ आई। यह लाल का अंतिम पत्र जिसमें लिखा था जिस दिन तुम्हें यह पत्र मिलेगा उसके सवेरे में बाल अरुण के किरण रथ पर चढ़कर उस ओर चला जाऊँगा। तुम मेरी जन्म जन्मांतर की माँ हो मुझको कोई तुम्हारी गोद से दूर नहीं खींच सकता। हम सभी वहीं तुम्हारे इंतजार में रहेंगे।

लेखक ने पत्र अपने काँपते हाथों से लिफाफे में डाल दिया। वह भावहीन आँखों से लेखक की ओर देखती रही मानो वह उस कमरे में थी ही नहीं। लेखक कुर्सी पर बैठ गया वह धीरे-धीरे अपने घर की ओर चली गई। लेखक फिर मैजिनी की पुस्तक से लाल की लिखावट और हस्ताक्षर मिटाने लगा। उनको ऐसा लगा जैसे वह कराह रही हो। इन्होंने अपने नौकर को पता करने भेजा। नौकर ने आकर बताया कि घर पर ताला लगा है और वह हाथ में पत्र लिए दरवाजे से पीठ टिकाए बैठी है उसकी आँखें ख़ली हैं, उसकी साँस बंद है।

शब्दार्थ एवं टिप्पणियाँ :

  • पुष्त – पीढ़ी
  • फ़रमाबरदार – आज्ञाकारी, सेवक
  • पाजीपन – बदमाशी
  • दुरवस्था – बुरी हालत
  • हैंसोड़ – हैंसुख प्रवृत्ति
  • नीति-मर्दक कानून – नीति को मिटाने वाला कानून
  • बंगड – शरारती
  • व्यालू – रात का भोजन
  • बाल अरुण – प्रातः कालीन सूर्य (लालिमायुक्त)

उसकी माँ सप्रसंग व्याख्या

1. दोपहर को ज़रा आराम करके उठा था। अपने पढ़ने-लिखने के कमरे में खड़ा-खड़ा बड़ी-बड़ी अलमारियों में सजे पुस्तकालय की ओर निहार रहा था। किसी महान लेखक की कोई कृति उनमें से निकालकर देखने की बात सोच रहा था। मगर पुस्तकालय के एक सिरे से लेकर दूसरे तक मुड़े महान ही महान नज़र आए। कहीं गेट, कहीं रूसो, कहीं मेज़िनी, कहीं नीत्शे, कहीं शेक्सपीयर, कहीं टॉलस्टाय, कहीं हूगो, कहीं मोपासाँ, कहीं डिकेंस, स्पेंसर, मैकाले, मिल्टन, मोलियर…उफ! इधर से उधर तक एक-से-एक महान ही तो बे! आखिर मैं किसके साथ चंद मिनट मनबहलाव करूँ, यह निश्चय ही न हो सका, महानों के नाम पढ़ते-पढ़ते ही परेशान-सा हो गया।

प्रसंग : प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘अंतरा’ में संकलित कहानी ‘उसकी माँ’ से अवतरित है, जिसके लेखक ‘पाण्डेय बेचन शर्म ‘उग्र’ जी हैं। इन्होंने इन पंक्तियों में परतंत्रता के दिनों में जमींदारों की सरकार के प्रति स्वामीभक्ति का उल्लेख किया है व उनको पाश्चात्य साहित्य से प्रभावित दिखाया है।

व्याख्या : लेखक यहाँ एक जमींदार की मानसिकता का उल्लेख करता है जो जमींदार होने के साथ अध्ययनशील भी है। उसने अपने घर के ही एक कमरे में पुस्तकालय बना रखा है। उस पुस्तकालय में विदेशी साहित्यकारों की रचनाएँ संकलित हैं। उन कृतियों में किसी भी भारतीय रचनाकार की कृति का उल्लेख नहीं है। वे किसी महान रचनाकार की रचना देखने के लिए पुस्तकों को उलट-पलट रहे है परन्तु उनको वे सभी महान नज़र आते हैं इतने सारे महान लेखकों में से किसी एक को चुनना उनके लिए मुश्किल हो रहा है। उन रचनाकारों में गेटे, रूसो, मेज़िनी, नीश्शे, शेक्सपीयर, टॉलस्टाय, ह्यूगो, मोपासाँ, डिकेंस, स्पेंसर, भैकाले, मिल्टन, मोलियर आदि की रचनाएँ हैं। इन सब महान रचनाकारों में से उनके लिए किसी एक महान को चुनना बहुत मुश्किल हो रहा है। वे कोई निर्णय नहीं ले पा रहे हैं इतने महानों को एक साथ देख उनकी परेशानी घटने के स्थान पर बढ़ रही है।

2. “तुम्हारी ही बात सही, तुम घड्यंत्र में नहीं, विद्रोह में नहीं, पर यह बक-बक क्यों? इससे फ़ायदा? तुम्हारी इस बक-बक से न तो देश की दुर्दशा दूर होगी और न उसकी पराधीनता। तुम्हारा काम पढ़ना है, पढ़ो। इसके बाद कर्म करना होगा, परिवार और देश की मार्यादा बचानी होगी। तुम पहले अपने घर का उद्धार तो कर लो, तब सरकार के सुधार का विचार करना।”

प्रसंग : प्रस्तुत गद्यांश पांडेय बेचन शर्मा ‘उग्र’ द्वारा लिखित कहानी ‘उसकी माँ’ से लिया गया है। जमींदार साहब बुढ़िया के पुत्र लाल को समझाते हुए कहते हैं कि गलत लोगों का साथ छोड़ दो यह तुम्हारे लिए हितकर नहीं है। जमींदार साहब को क्रांतिकारी लड़के गलत नज़र आते हैं।

ब्याख्या : जमींदार साहब बुढ़िया के पुत्र ‘लाल’ से कहते हैं कि तुम कहते हो कि तुम किसी षड्यंत्र में शामिल नहीं हो तो फिर लोग तुम्हारे बारे में इतनी बातें क्यों कर रहे हैं और तुम इस प्रकार इकहे होकर फिजूल की बातें करते हो इससे क्या फायदा । तुम्हारी इस प्रकार की बातों से यह देश आजाद होने वाला नहीं और न ही इसकी दुर्दशा ठीक हो सकती। तुम्हारे ये प्रयास किसी भी काम के नहीं हैं। तुम्हारी पढ़ने लिखने की उम्र है इसलिए अपनी पढ़ाई लिखाई पर ही ध्यान दो। जो भी कर्म करने हैं वे पढ़ाई पूरी करने के बाद ही। फिर देश और परिवार को देखना। पहले अपना तथा अपने घर का उद्वार करो तब जाकर सरकार को सुधारने की बात सोचना।

3. माँ! तू तो टीक भारत माता-सी लगती है। तू बूढ़ी, वह बूढ़ी। उसका उजला हिमालय है, तेरे केश। हाँ, नक्शे से साबित करता हूँ.. तू भारत माता है। सिर तेरा हिमालय…माये की दोनों गहरी बड़ी रेखाएँ गंगा और यमुना, यह नाक विंध्याचल, ठोढ़ी कन्याकुमारी तथा छोटी बड़ी झुरियाँ-रेखाएँ भिन्न-भिन्न पहाड़ और नदियाँ हैं। ज़रा पास आ मेरे! तेरे केशों को पीछे से आगे बाएँ कंधे पर लहरा दूँ, वह बर्मा बन जाएगा। बिना उसके भारत माता का श्रृंगार शुद्ध न होगा’।’

प्रसंग : प्रस्तुत गद्यांश पांडेय बेचन शर्मा ‘उग्र’ द्वारा रचित कहानी ‘उसकी माँ’ से अवतरित है। लेखक ने यहाँ बताया है कि लाल के मित्रों में एक लड़का बहुत बोलने वाला था उसने एक दिन लाल की माँ की तुलना भारत माता से कर दी। उसका एक-एक उपमान बिल्कुल सटीक नज़र आता है।

व्याख्या : वह बातूनी लड़का लाल की माँ से कहता है कि माँ! तू तो बिल्कुल भारत माता जैसी लगती है जिस प्रकार तू बूढ़ी है ठीक उसी प्रकार भारत माता भी बूढ़ी हो चली है भारत माता का शीर्ष भाग हिमालय है जो बिल्कुल सफेद है तेरे सिर के बाल भी हिमालय की तरह सफेद हैं। तुम्हारे मस्तक पर दो बड़ी गहरी रेखाएँ हैं जो ठीक ऐसी लगती है मानो गंगा और यमुना हो। तुम्हारी नाक ठीक विंध्याचल पर्वत की तरह है तथा तुम्हारी ठोड़ी ठीक कन्याकुमारी जैसी लगती है। तुम्हारे चेहरे पर पड़ी छोटी-बड़ी झुरिंयाँ-रेखाएँ भिन्न-भिन्न पहाड़ और नदियों की तरह दिखाई देती हैं। हे माता! लाओ में तुम्हारे बालों को पीछे से आगे बाएँ कंधे पर लहरा दूँ, वह ऐसा लगेगा जैसे बर्मा हो। बिना बर्मा को दर्शाए माता का शृंगार पूरा नहीं होगा।

Hindi Antra Class 11 Summary