भारत में जल संकट निबंध – Water Crisis In India Essay In Hindi

भारत में जल संकट निबंध – Essay On Water Crisis In India In Hindi

जल मनुष्य, पशु, पक्षी व वनस्पति सभी के अस्तित्व व संवर्धन के लिए आधारभूत आवश्यकता है। गेटे ने जल के महत्त्व पर प्रकाश डालते हुए लिखा है कि प्रत्येक वस्तु जल से उत्पन्न होती है व जल के द्वारा ही प्रतिपादित होती है। जल के महत्त्व के मद्देनज़र यू.एन.ओ. ने वर्ष 2003 को ‘अंतर्राष्ट्रीय स्वच्छ जल वर्ष’ के रूप में मनाया।

साथ ही, कक्षा 1 से 10 तक के छात्र उदाहरणों के साथ इस पृष्ठ से विभिन्न हिंदी निबंध विषय पा सकते हैं।

जल के महत्त्व पता होने के बावजूद भी आश्चर्य है कि जल का पूर्ण सदुपयोग न होकर अपव्यय व बरबादी हो रही है। आज भारत में प्रति व्यक्ति वार्षिक जल उपलब्धता 1900 क्यूबिक मीटर है। ऐसा अनुमान है कि इस दशक के अंत तक यह स्तर गिरकर 1000 क्यूबिक मीटर हो जाएगा। यदि किसी देश में प्रतिव्यक्ति वार्षिक जल उपलब्धता 100 क्यूबिक मीटर से कम हो जाती है तब उस देश को जल संकट से ग्रस्त देश माना जाता है। उपर्युक्त तथ्य से स्पष्ट है कि यदि हमने जल-संरक्षण की तरफ ध्यान नहीं दिया तो भारत शीघ्र ही जल संकट से ग्रस्त देश की श्रेणी में आ जाएगा।

देश के तीव्र आर्थिक विकास, शहरीकरण, औद्योगीकरण बढ़ती जनसंख्या व पाश्चात्य जीवन शैली को अंधानुकरण के कारण जल की माँग अनियंत्रित रूप से बढ़ती जा रही है। गौरतलब है कि अंतर्राष्ट्रीय खाद्यनीति अनुसंधान ने भी अनुमान लगाया है कि भारत में जल की माँग वर्ष 2000 में 634 बिलियन क्यूबिक मीटर थी जो बढ़कर 2025 में 1092 बिलियन क्यूबिक मीटर हो जाएगी। ऐसी संभावना व्यक्त की गई है कि भविष्य में जल के मुद्दे को लेकर लड़ाइयाँ लड़ी जाएँगी।

यह भी पाया गया है कि पानी की बरबादी में समाज के संभ्रांत व धनाढ्य कहे जाने वाले वर्गों की भूमिका सर्वाधिक है। पंचसितारा होटलों व धनाढ्य वर्ग की कोठियों में स्विमिंग पूल’ का निर्माण करवाया जाता है, मखमली दूब के बगीचों से ये होटल व कोठियाँ शोभायमान होती हैं। इसके अतिरिक्त, धनाढ्य वर्ग भूमिगत जल का भी अत्यधिक प्रयोग करता है। उनके अपव्यय का खामियाजा निम्न वर्ग को भुगतना पड़ता है।

जल की बढ़ती माँग को पूरा करने के लिए भूमिगत जल की अंधाधुंध निकासी की जाती है जिससे भूमिगत जल का स्तर काफ़ी नीचे चला जाता है। गुजरात के मेहसाणा व तमिलनाडु के कोयम्बटूर जिलों में भू-जल स्रोत स्थाई तौर पर सूख चुके हैं। अन्य राज्यों में स्थिति अच्छी नहीं है। भविष्य में पेयजल की आपूर्ति पर संकट गहराएगा।

इस समस्या के निराकरण हेतु समाज के सभी वर्गों व सरकार को सामूहिक सतत प्रयास करने होंगे। हर व्यक्ति को अपनी जीवनशैली व प्राथमिकताएँ इस प्रकार निर्धारित करनी चाहिए ताकि अमृतरूपी जल की एक बूंद भी व्यर्थ न जाए।

अमीर वर्ग द्वारा पानी की बरबादी पर रोक लगाने हेतु सार्थक कदम उठाए जाने चाहिए, अवैध वस्तु वे बोरिंग पर रोक लगाने की कानूनी कार्यवाही की जानी चाहिए तथा वैध बोरिंगों से भी नियंत्रित व निर्दिष्ट मात्रा में ही जल का निष्कासन हो, इसकी जाँच हेतु प्रभावी कदम उठाए जाने चाहिए। पारंपरिक जल संरक्षण वें आधुनिक जल संरक्षण व्यवस्थाओं का उपयोग जल संरक्षण व प्रबंधन हेतु न्यायोचित व समन्वित ढंग से किया जाना चाहिए।