राष्ट्रभाषा हिन्दी निबंध – (Essay on National Language Hindi In Hindi)
अन्य सम्बन्धित शीर्षक–
- राष्ट्रभाषा का महत्त्व,
- भारत में राष्ट्रभाषा की समस्या,
- देश के विकास में राष्ट्रभाषा की भूमिका,
- राष्ट्रभाषा और उसकी समस्याएँ,
- राष्ट्रीय एकता में हिन्दी का योगदान,
- निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल।
साथ ही, कक्षा 1 से 10 तक के छात्र उदाहरणों के साथ इस पृष्ठ से विभिन्न हिंदी निबंध विषय पा सकते हैं।
” है भव्य भारत ही हमारी मातृभूमि हरी–भरी।
हिन्दी हमारी राष्ट्रभाषा और लिपि है नागरी।।”
–मैथिलीशरण गुप्त
रूपरेखा–
- राष्ट्रभाषा से तात्पर्य,
- राष्ट्रभाषा की आवश्यकता,
- भारत में राष्ट्रभाषा की समस्या,
- राष्ट्रभाषा के रूप में हिन्दी को मान्यता,
- राष्ट्रभाषा के रूप में हिन्दी के विकास में उत्पन्न बाधाएँ,
- हिन्दी के पक्ष एवं विपक्ष सम्बन्धी विचारधारा,
- हिन्दी के विकास सम्बन्धी प्रयत्न,
- हिन्दी के प्रति हमारा कर्त्तव्य,
- उपसंहार।
राष्ट्रभाषा से तात्पर्य–
किसी भी देश में सबसे अधिक बोली एवं समझी जानेवाली भाषा ही वहाँ की राष्ट्रभाषा होती है। प्रत्येक राष्ट्र का अपना स्वतन्त्र अस्तित्व होता है, उसमें अनेक जातियों, धर्मों एवं भाषाओं के लोग रहते हैं; अतः राष्ट्रीय एकता को सुदृढ़ बनाने के लिए एक ऐसी भाषा की आवश्यकता होती है, जिसका प्रयोग राष्ट्र के सभी नागरिक कर सकें तथा राष्ट्र के सभी सरकारी कार्य उसी के माध्यम से किए जा सकें।
ऐसी व्यापक भाषा ही राष्ट्रभाषा कही जाती है। दूसरे शब्दों में राष्ट्रभाषा से तात्पर्य है–किसी राष्ट्र की जनता की भाषा। . राष्ट्रभाषा की आवश्यकता–मनुष्य के मानसिक और बौद्धिक विकास के लिए भी राष्ट्रभाषा आवश्यक है।
मनुष्य चाहे जितनी भी भाषाओं का ज्ञान प्राप्त कर ले, परन्तु अपनी भावनाओं को व्यक्त करने के लिए उसे अपनी भाषा की शरण लेनी ही पड़ती है। इससे उसे मानसिक सन्तोष का अनुभव होता है। इसके अतिरिक्त राष्ट्रीय एकता को बनाए रखने के लिए भी राष्ट्रभाषा की आवश्यकता होती है।
भारत में राष्ट्रभाषा की समस्या–स्वतन्त्रता–प्राप्ति के बाद देश के सामने अनेक प्रकार की समस्याएँ विकराल रूप लिए हुए थीं। उन समस्याओं में राष्ट्रभाषा की समस्या भी थी। कानून द्वारा भी इस समस्या का समाधान नहीं किया जा सकता था।
इसका मुख्य कारण यह है कि भारत एक विशाल देश है और इसमें अनेक भाषाओं को बोलनेवाले व्यक्ति निवास करते हैं; अत: किसी–न–किसी स्थान से कोई–न–कोई विरोध राष्ट्रभाषा के राष्ट्रस्तरीय प्रसार में बाधा उत्पन्न करता रहा है। इसलिए भारत में राष्ट्रभाषा की समस्या सबसे जटिल समस्या बन गई है।
राष्ट्रभाषा के रूप में हिन्दी को मान्यता–संविधान का निर्माण करते समय यह प्रश्न उठा था कि किस भाषा को राष्ट्रभाषा बनाया जाए। प्राचीनकाल में राष्ट्र की भाषा संस्कृत थी। धीरे–धीरे अन्य प्रान्तीय भाषाओं की उन्नति हुई और संस्कृत ने अपनी पूर्व–स्थिति को खो दिया। मुगलकाल में उर्दू का विकास हुआ। अंग्रेजों के शासन में अंग्रेजी ही सम्पूर्ण देश की भाषा बनी।
अंग्रेजी हमारे जीवन में इतनी बस गई कि अंग्रेजी शासन के समाप्त हो जाने पर भी देश से अंग्रेजी के प्रभुत्व को समाप्त नहीं किया जा सका। इसी के प्रभावस्वरूप भारतीय संविधान द्वारा हिन्दी को राष्ट्रभाषा घोषित कर देने पर भी उसका समुचित उपयोग नहीं किया जा रहा है। यद्यपि हिन्दी एवं अहिन्दी भाषा के अनेक विद्वानों ने राष्ट्रभाषा के रूप में हिन्दी का समर्थन किया है, तथापि आज भी हिन्दी को उसका गौरवपूर्ण स्थान प्राप्त नहीं हो सका है।
राष्ट्रभाषा के रूप में हिन्दी के विकास में उत्पन्न बाधाएँ–स्वतन्त्र भारत के संविधान में हिन्दी को ही राष्ट्रभाषा के रूप में स्वीकार किया गया, परन्तु आज भी देश के अनेक प्रान्तों ने इसे राष्ट्रभाषा के रूप में स्वीकार नहीं किया है। हिन्दी संसार की सबसे अधिक सरल, मधुर एवं वैज्ञानिक भाषा है, फिर भी हिन्दी का विरोध जारी है।
हिन्दी की प्रगति और उसके विकास की भावना का स्वतन्त्र भारत में अभाव है। राष्ट्रभाषा के रूप में हिन्दी की प्रगति के लिए केवल सरकारी प्रयास ही पर्याप्त नहीं होंगे; वरन् इसके लिए जन–सामान्य का सहयोग भी आवश्यक है।
हिन्दी के पक्ष एवं विपक्ष सम्बन्धी विचारधारा–हिन्दी भारत के विस्तृत क्षेत्र में बोली जानेवाली भाषा है, जिसे देश के लगभग 35 करोड़ व्यक्ति बोलते हैं। यह सरल तथा सुबोध है और इसकी लिपि भी इतनी बोधगम्य है कि थोड़े अभ्यास से ही समझ में आ जाती है। फिर भी एक वर्ग ऐसा है, जो हिन्दी को राष्ट्रभाषा के रूप में स्वीकार नहीं करता। इनमें अधिकांशत: वे व्यक्ति हैं, जो अंग्रेजी के अन्धभक्त हैं या प्रान्तीयता के समर्थक।
उनका कहना है कि हिन्दी केवल उत्तर भारत तक ही सीमित है। उनके अनुसार यदि हिन्दी को राष्ट्रभाषा बना दिया गया तो अन्य प्रान्तीय भाषाएँ महत्त्वहीन हो जाएँगी। इस वर्ग की धारणा है कि हिन्दी का ज्ञान उन्हें प्रत्येक क्षेत्र में सफलता प्रदान नहीं कर सकता। इस दृष्टि से इनका कथन है कि अंग्रेजी ही विश्व की सम्पर्क भाषा है; अतः यही राष्ट्रभाषा हो सकती है।
हिन्दी के विकास सम्बन्धी प्रयत्न–राष्ट्रभाषा हिन्दी के विकास में जो बाधाएँ आई हैं; उन्हें दूर किया जाना चाहिए। देवनागरी लिपि पूर्णत: वैज्ञानिक लिपि है, किन्तु उसमें वर्णमाला, शिरोरेखा, मात्रा आदि के कारण लेखन में गति नहीं आ पाती। हिन्दी व्याकरण के नियम अहिन्दी–भाषियों को बहुत कठिन लगते हैं। इनको भी सरल बनाया जाना चाहिए, जिससे वे भी हिन्दी सीखने में रुचि ले सकें।
केन्द्रीय सरकार ने ‘हिन्दी निदेशालय की स्थापना करके हिन्दी के विकास–कार्य को गति प्रदान की है। इसके अतिरिक्त नागरी प्रचारिणी सभा, हिन्दी–साहित्य सम्मेलन आदि संस्थानों ने भी हिन्दी के विकास तथा प्रचार व प्रसार में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
हिन्दी के प्रति हमारा कर्तव्य–हिन्दी हमारी राष्ट्रभाषा है, उसकी उन्नति ही हमारी उन्नति है। भारतेन्द हरिश्चन्द्र ने कहा था–
निजभाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल।
बिनु निजभाषा ज्ञान के, मिटत न हिय को सूल।।
अतः हमारा कर्त्तव्य है कि हम हिन्दी के प्रति उदार दृष्टिकोण अपनाएँ। हिन्दी के अन्तर्गत विभिन्न प्रान्तीय भाषाओं की सरल शब्दावली को अपनाया जाना चाहिए। भाषा का प्रसार नारों से नहीं होता, वह निरन्तर परिश्रम और धैर्य से होता है। हिन्दी व्याकरण का प्रमाणीकरण भी किया जाना चाहिए।
उपसंहार–
राष्ट्रभाषा हिन्दी का भविष्य उज्ज्वल है। यदि हिन्दी–विरोधी अपनी स्वार्थी भावनाओं को त्याग सकें और हिन्दीभाषी धैर्य, सन्तोष और प्रेम से काम लें तो हिन्दी भाषा भारत के लिए समस्या न बनकर राष्ट्रीय जीवन का आदर्श बन जाएगी।
राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने भी हिन्दी को राष्ट्रभाषा के रूप में प्रतिष्ठित करने की आवश्यकता के सन्दर्भ में कहा था– “मैं हमेशा यह मान रहा हूँ कि हम किसी भी हालत में प्रान्तीय भाषाओं को नुकसान पहुंचाना या मिटाना नहीं चाहते।
हमारा मतलब तो सिर्फ यह है कि विभिन्न प्रान्तों के पारस्परिक सम्बन्ध के लिए हम हिन्दी–भाषा सीखें। ऐसा कहने से हिन्दी के प्रति हमारा कोई पक्षपात प्रकट नहीं होता। हिन्दी को हम राष्ट्रभाषा मानते हैं। वही भाषा राष्ट्रभाषा बन सकती है, जिसे सर्वाधिक संख्या में लोग जानते–बोलते हों और जो सीखने में सुगम हो।”