DAV Class 7 Hindi Chapter 20 Abhyas Sagar Solutions – कर्मवीर

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DAV Class 7 Hindi Abhyas Sagar Solution Chapter 20 – कर्मवीर

(क) कायर को ही दहलाती है।
(ख) काँटो में राह बनाते हैं।
(ग) संकट का चरण न गहते हैं।
(घ) बढ़ खुद विपत्ति पर छाते हैं।
(ङ) पर्वत के जाते पाँव उखड़।

प्रश्न 1.
ऊपर दिए गए वाक्यों के मोटे काले अंशों में कारक बताइए-
उत्तर:
(क) कर्म
(ख) अधिकरण
(ग) संबंध
(घ) अधिकरण
(ङ) संबंध

प्रश्न 2.
नीचे दिए गए वाक्यों को उचित परसर्ग द्वारा पूरा कीजिए-
का, के, की, के लिए, से, पर, ने
उत्तर:
(क) श्यामा ने खाना खाया।
(ख) रमेश घर की सफ़ाई कर रहा है।
(ग) धोबी कपड़े घाट पर ले जाता है।
(घ) मेम साहब ने अपनी आँखों पर काला चश्मा चढ़ा लिया।
(ङ) उनके कपड़ों से इत्र की सुगंध आती रहती है।
(च) यह रोटी भिखारी के लिए है।
(छ) पुनीता छत से गिर पड़ी।
(ज) मीना का भाई कल शहर चला गया

DAV Class 7 Hindi Chapter 20 Abhyas Sagar Solutions - कर्मवीर

प्रश्न 3.
निम्नलिखित वाक्यों में मोटे काले पदों का कारक लिखिए-
उत्तर:

(क) वे अँधेरी कोठरी में बैठे पतंग में रस्सी बाँध रहे थे। अधिकरण
(ख) अपराजिता ने पैंसिल से चित्र बनाया। करण
(ग) राम ने निर्धन को रुपए दिए। संप्रदान
(घ) गंगा गंगोत्री से निकलती है। अपादान
(ङ) श्यामू काकी के लिए कई दिन रोता रहा। संप्रदान
(च) भोला श्यामू से अधिक समझदार था। अपादान
(छ) अंकिता ने बस्ता उठाया। कर्ता

प्रश्न 4.
नीचे कुछ वाक्य दिए गए हैं, जिनमें कारक चिह्नों का सही प्रयोग नहीं हुआ है। सही परसर्गों का प्रयोग करते हुए वाक्यों को दोबारा लिखिए-
उत्तर:
(क) मेज़ पर से किताब गिर गई।
मेज़ से किताब गिर गई।

(ख) रवि, श्याम का पत्र में लिख रहा है।
रवि, श्याम को पत्र लिख रहा है।

(ग) लक्ष्य ने कागज़ में एक सुंदर चित्र बनाया।
लक्ष्य ने काग़ज़ पर एक सुंदर चित्र बनाया।

(घ) रेखा ने घोड़े का पानी पिलाया।
रेखा ने घोड़े को पानी पिलाया।

(ङ) बच्चों का घर के अंदर तूफ़ान मचा रखा है।
बच्चों ने घर में तूफ़ान मचा रखा है।

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प्रश्न 5.
कर्ता, कर्म तथा करण कारक का एक साथ प्रयोग करते हुए दो वाक्य बनाइए। हर वाक्य के नीचे कर्ता, कर्म तथा करण कारक छाँटकर लिखिए-
उदाहरण – राधा ने कलम से पत्र लिखा।
कर्ता कारक – राधा
कर्म कारक – पत्र
करण कारक – कलम से
उत्तर:
(क) राम ने रावण को बाण से मारा।
कर्म कारक – रावण
कर्म कारक – चित्र

(ख) सागर ने तूलिका से चित्र बनाया।
करण कारक – बाण
करण कारक – तूलिका

प्रश्न 6.
निम्नलिखित वाक्यों में विभक्ति चिह्नों का लोप है। आप उचित विभक्ति चिह्नों परसर्गों का प्रयोग करते हुए वाक्यों को दोबारा लिखिए-
उत्तर:
(क) उसने मीना लड्डू खरीदे।
उसने मीना के लिए लड्डू खरीदे।

(ख) राकेश चाकू सेब काटा।
राकेश ने चाकू से सेब काटा।

(ग) हर्ष चित्र बनाकर भाई दिया।
हर्ष ने चित्र बनाकर भाई को दिया।

(घ) विभीषण रावण समझाया।
विभीषण ने रावण को समझाया।

(ङ) नटों करतब दिखाए।
नटों ने करतब दिखाए।

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प्रश्न 7.
नीचे दिए गए वाक्यों में उचित विराम-चिहून लगाइए-
उत्तर:
(क) बुढ़िया ने कहा, “मेरा बेटा बहुत बीमार है।”
(ख) धीरे-धीरे रात गहराती जा रही थी।
(ग) बुढ़िया, उसका पति और उसका बेटा परेशानी सुनने लगे।
(घ) मैंने कहा, “नहीं, नहीं, मुझे भूख नहीं है।”
(ङ) इतनी रात में तुम कहाँ जाओगे।?

प्रश्न 8.
नीचे दी गई पंक्तियों में जो वर्ण शब्दों के प्रारंभ में बार-बार आया है, उसे लिखिए-c
उत्तर:

(क) उद्योग-निरत नित रहते हैं।
(ख) पर्वत के जाते पाँव उखड़।
(ग) मानव जब ज़ोर लगाता है।
(घ) पत्थर पानी बन जाता है।
(ङ) गहरे कजरारे बादल बरसे धरती पर।

प्रश्न 9.
दी गई परिभाषा को पूरा कीजिए-
उत्तर:
जब कोई एक वर्ण अनेक शब्दों के शुरू में आए अथवा एक वर्ण एक से अधिक बार आए, वहाँ अनुप्रास अलंकार होता है।

प्रश्न 10.
नीचे दिए गए शब्दों में संधि कीजिए-
उत्तर:
(क) कार्य + आलय – कार्यालय
(ख) सत्य + आग्रह – सत्याग्रह
(ग) विद्या + अर्थी – विद्यार्थी
(घ) सूर्य + अस्त – सूर्यास्त
(ङ) अंडा + आकार – अंडाकार
(च) सर्व + उत्तम – सर्वोत्तम

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आओ लिखें

प्रश्न 11.
‘कर्म ही पूजा है’ शीर्षक पर 100-150 शब्दों में अनुच्छेद लिखिए-
उत्तर:
कर्म करने से ही व्यक्ति को सफलता मिलती है और कर्म से ही मनोवांछित सफलता प्राप्त की जाती है, इसलिए कहा गया है-‘कर्म ही पूजा है।’ कर्म के बिना कोई व्यक्ति सफल होना चाहे तो यह असंभव है। हमारे अंदर की शक्ति हमें कर्म करने के लिए प्रेरित करती है, जिसके कारण व्यक्ति कर्म किए बिना नहीं रह सकता। यदि कर्म करने पर भी व्यक्ति को सफलता नहीं मिलती है तो उसे कम दुख होता है, जितना कर्म न करके असफल रहने पर।

गीता में भी भगवान कृष्ण ने कहा है कि हे मनुष्य! कर्म करना ही तुम्हारा अधिकार है, फल की इच्छा रखना नहीं। इसलिए हमें फल की इच्छा किए बिना, कर्म करते रहना चाहिए। बिना कर्म किए जंगल के राजा शेर के पास भी कोई प्राणी अपने-आप उसका भोजन बनने नहीं आता है, तो फिर हम तो मनुष्य हैं। मनुष्य सही भावना, लगन एवं परिश्रम से अपना कर्म करे तो सफलता उसके कदम अवश्य चूमेगी। अतः ठीक ही कहा गया है कि ‘कर्म ही पूजा है।