नींद उचट जाती है Summary – Class 11 Hindi Antra Chapter 16 Summary
नींद उचट जाती है – नरेंद्र शर्मा – कवि परिचय
जीवन-परिचय : नरेन्द्र शर्मा का जन्म उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर जिले में सन् 1923 में हुआ। नरेन्द्र शर्मा की प्रारम्भिक शिक्षा वहीं हुई। प्रारम्भिक शिक्षा प्राप्त करने के बाद ये इलाहाबाद चले गए। वहाँ इलाहाबाद विश्वविद्यालय से एम०ए० किया। राजनीति में भी इनकी रुचि थी। इन्होंने कुछ दिनों तक अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के कार्यालय में कार्य किया। इसके बाद ये काशी विद्यापीठ में शिक्षक नियुक्त हो गए। राजनीति में रुचि होने के कारण ये राष्ट्रीय आंदोलनों में भाग लेने लगे। इस कारण इनको नजरबंद कर दिया गया। नरेन्द्र शर्मा को फिल्म जगत ने अपनी ओर आकर्षित किया तो ये बम्बई चले गए और अपनी लेखनी को फिल्मी गीत लेखन में चलाने लगे। इसके बाद इन्होंने आकाशवाणी में रेडिगो की नौकरी स्वीकार कर ली। इन्होंने “विविध भारती” से फिल्मी गीतों के प्रोग्राम का संचालन सफलतापूर्वक करवाया। इनके कार्यकाल में रेडियो पर हिन्दी का बहुत प्रसार-प्रचार हुआ। इनकी मृत्यु सन् 1984 में हो गई थी।
नरेन्द्र शर्मा मूलतः गीतकार हैं बचपन से ही लिखने लगे थे। उनके कई गीत स्कूल में पढ़ते समय ही विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुके थे। वे छायावाद से प्रगतिवाद में आये। उनकी रचनाओं में प्रेरक तत्त्वों का समावेश है। रचनाएँ : नरेन्द्र शर्मा जी की प्रमुख रचनाएँ इस प्रकार हैं-
प्रभात फेरी, प्रवासी के गीत, पलाश वन, प्रीति कथा, कामिनी, मिट्टी के फूल, हंसमाला, रक्तचंदन, कदली वन, द्रौपदी, प्यासा निर्झर, सुवर्ण, बहुत रात गए, उत्तर जय आदि । उन्होंने अनेक कहानियौं भी लिखीं।
भाषा-शैली : नरेन्द्र शर्मा जी की भाषा सहंज तथा मधुर है। उनकी भाषा में प्रेरक तत्त्व की प्रधानता मिलती है जो पढ़ने वालों को दृढ़ निश्चयी बनाती है। उन्होंने छायावादी तथा प्रगतिवादी दोनों प्रकार की रचनाएँ लिखीं। उनकी भाषा में कोमलता और कठोरता दोनों तरह के भाव विद्यमान हैं।
Neend Uchat Jaati Hai Class 11 Hindi Summary
कविता का संक्षिप्त परिचय :
नरेन्द्र शर्मा द्वारा रचित कविता नींद उचट जाती है में एक लम्बी व भयावह रात का वर्णन है। कवि को चारों और निराशा रूपी अंधकार दिखाई देता है। कवि ने कविता में जिस अंधेरे की बात की है वह दो स्तरों पर है। व्यक्ति के स्तर पर यह अंधेरा दुःस्वप्न और निराशाओं के कारण है तथा समाज में यही अंधेरा चेतना और जागूति का विकास न होने के कारण है। कवि जीवन से इन दोनों ही प्रकार के अंधेरों को दूर करने की बात कहता है। वह चाहता है कि समाज में जागृति फैले और सभी को इस अंधेरे से छुटकारा मिले। लोगों के जीवन में प्रकाश फैले। समाज में परिवर्तन हो और आँखों के सामने से अंधकार की शिला हट जाए।
कविता का सार :
कवि कहता है कि जीवन में इतनी दुश्चिताएँ हैं कि रात को नींद ही नहीं आती। सोने का प्रयास करते हैं तो बार-बार नींद उचट जाती है। जब भी किसी डरावने सपने का ख्याल आता है तो डर जाता हूँ। व्यक्ति की स्वयं की दुश्चिताएँ तो हैं हीं बाहर की चिंताएँ और अधिक हैं। जीवन में सुख की आहट तो आती है परन्तु सुख नहीं आता। निरन्तर इन निराशाओं में डूबे रहने के कारण दुःख बढ़ता ही जा रहा है। रात्रि का सन्नाटा अर्थात् निराशाओं से होने वाली हताशा बढ़ती ही जा रही है। रात्रि में जब कुत्ते भौंकते हैं और सियार हुआँहुआँ करते हैं तो मन और भी डर जाता है। अन्दर की भीत भावनाएँ जीवन में सुख को आने से पहले ही रोक देती हैं। मन गहरी निन्द्रा में सोने को करता है परन्तु चेतन अवस्था में तो विचार आते ही रहेंगे इसलिए कवि जड़ रूप धारण करना चाहता है। किसी भी करवट नींद आने का नाम ही नहीं लेती। जीवन में साँस इसी आशा में अटका है कि कभी न कभी तो जीवन से निराशाओं का दौर समाप्त होगा। नींद न आना जागृति नहीं है। जीवन से अंधेरा भी दूर नहीं हो रहा। इस अंधकार रूपी धरती पर ज्योति आने को उतावली है परन्तु आँखों के सामने से अंधकार की शिला नहीं हटती है।
नींद उचट जाती है सप्रसंग व्याख्या
1. जब तब नींद उचट जाती है
पर क्या नींद उचट जाने से
रात किसी की कट जाती है ?
देख-देख दुःस्बप्न भयंकर
चौंक चौंक उठता हूँ डर कर;
पर भीतर के दुःस्वप्नों से
अधिक भयावह है तम बाहर!
आती नहीं उषा, बस केवल
आने की आहट आती है!
शब्दार्थ एवं टिप्पणियाँ :
- दु:स्वप्न – बुरे स्वप्न
- भयावह – डरावना
प्रसंग : प्रस्तुत काव्यांश ‘नरेन्द्र शर्मा’ द्वारा लिखित कविता ‘नींद उचट जाती है’ से अवतरित है। कवि ने यहाँ चिन्ता-ग्रस्त मानव के नींद उचट जाने के कारणों का उल्लेख किया है।
व्याख्या : कवि कहता है कि अचानक सोते हुए नींद का उचट जाना चिन्ताओं का कारण होता है। नींद उचट जाने से रात कटनी बहुत मुश्किल हो जाती है। मनुष्य अकेले में पड़े-पड़े पता नहीं मन में क्या-क्या सोचता रहता है। उसके जीवन की अनेक चिन्ताएँ उसको सोने ही नहीं देतीं। जागते हुए उसके मन को अनेक दुशिंचताएँ घेरे रहती हैं। विभिन्न प्रकार की दुश्चिताओं का ख्याल आते ही कवि चौंक कर उठ बैठता है। कवि का मानना है मनुष्य के जीवन में अनेक दु:स्वप्न होते हैं जो उसे चैन नहीं लेने देते परन्तु अन्दर की इन चिन्ताओं और निराशाओं से कहीं अधिक भयावह बाहर की दुश्चिताएँ हैं। बाहरी स्तर पर समाज में जो अंधरे फैला है वह अंधेरा समाज में चेतना और जागृति के न होने से फैल रहा है। इन चिन्ताओं और दु:्वप्नों के बीच सुख का सवेरा होने की आशा की कोई किरण दिखाई नहीं देती। यह आभास तो जरूर होता है कि शायद एक दिन उसके जीवन में भी प्रभात होगा।
काव्य सौन्दर्य : कवि ने दुश्शिताओं एवं दुःस्वप्नों के कारण नींद न आने की बात कही है। कवि ने मनुष्य के मन में स्थित दु:स्वप्नों से कहीं अधिक बढ़कर समाज में फैले अज्ञानता के अंधकार को अधिक भयावह बताया है। निराशावादी दृष्टिकोण अपनाया है। संस्कृत निष्ठ खड़ी बोली का प्रयोग है, देख-देख’, ‘चौंक-चौंक’ में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है; देख-देख दु:स्वप्न’ में अनुप्रास अलंकार है। समाज की चेतना व जागृति ही अंधकार को दूर कर सकती है।
2. देख अँधेरा नयन दूखते,
दुर्शिचता में प्राण सूखते!
सन्नाटा गहरा हो जाता,
जब जब श्वान भृगाल भूँकते!
भीत भावना, भोर सुनहली
नयनों के न निकट लाती है!
मन होता है फिर सो जाऊँ,
गहरी निद्रा में खो जाऊँ;
जब तक रात रहे धरती पर,
चेतन से फिर जड़ हो जाऊँ!
उस करवट अकुलाहट थी, पर
नींद न इस कखबट आती है!
शब्दार्थ एवं टिप्पणियाँ :
- दुर्शिचता – दुःख देने वाली चिन्ता
- भीत-भावना – भय और शंका की भावना
- अकुलाहट – बेचैनी
प्रसंग : प्रस्तुत काव्यांश ‘नरेन्द्र शर्मा’ द्वारा रचित कविता ‘नींद उचट जाती है’ से अवतरित है। कवि ने यहाँ मनुष्य के जीवन में व्याप्त भयदायक अंधेरे का उल्लेख किया है। वह किसी भी तरह इन चिन्ताओं से मुक्त होकर गहरी नींद चाहता है भले ही उसको इसके लिए चेतन से जड़ ही क्यों न होना पड़े।
ब्याख्या : कवि कहता है कि निरन्तर अंधेरे को देखने के कारण आँखें भी दुखने लगी हैं। जीवन में चिन्ताएँ ही चिन्ताएँ हैं। दुश्चिन्ताओं के बारे में सोचते-सोचते प्राण सूखने लगते हैं क्योंकि कोई हल नज़र ही नहीं आती ? चारों तरफ निराशाओं के बादल घिरे नज़र आते हैं। गहरा सन्नाटा छाने पर जब कुत्ते भौंकते हैं और गीदड़ हुआँ-हुआँ करते हैं तो मन और अधिक घबरा जाता है। मन में उठने वाला तरह-तरह का भय और शंकाएँ सुनहरी भोर को नयनों के निकट नहीं लाती हैं अर्थात् मन का भय जीवन में सुख के क्षणों को आने से रोकता है। कवि का मन फिर सो जाने को करता है। कवि चाहता है कि उनको गहरी निन्द्रा आ जाए परन्तु चिन्ताओं के होते हुए नींद आने का नाम ही नहीं लेती। कवि यहाँ तक कहता है कि चाहे मुझे चेतन से जड़ ही क्यों न होना पड़े परन्तु गहरी नींद अवश्य आनी चाहिए। कवि एक करवट लेटता है तो बेचैनी सी होती है फिर वह करवट बदलकर देखता है तो उस तरफ भी नींद नहीं आती है।
काव्य सौन्दर्य : नींद आने के लिए चिन्ता मुक्त होना अनिवार्य है। नींद आ जाए इसलिए कवि चेतन से जड़ होना चाहता है क्योंकि जड़ होकर स्वतः ही वह सभी चिन्ताओं से मुक्त हो जाएगा। तत्सम शब्दावलीयुक्त खड़ी बोली का प्रयोग है। लयात्मकता एवं संगीतात्मकता विद्यमान है। ‘भीत भावना भोर सुनहली’ में अनुप्रास अलंकार है एवं ‘जब-जब’ में पुनरक्ति प्रकाश अलंकार है।
3. करवट नहीं बदलना है तम,
मन उतावलेपन में अक्षम !
जगते अपलक नयन बावले,
थिर न पुतलियाँ, निमिष गये धम!
साँस आस में अटकी, मन को
आस रात भर भटकाती है!
जागृति नहीं अनिद्रा मेरी,
नहीं गई भव-निशा अँधेरी!
अंधकार केन्द्रित धरती पर,
देती रही ज्योति चकफेरी!
अंतर्नयनों के आगे से
शिला न तम की हट पाती है!
शब्दार्थ एवं टिप्पणियाँ :
- अक्षम – असमर्थ
- आस – आशा
- जागृति – जागना
- नव-निशा – संसार रूपी भयावह रात
- चकफेरी – चारों ओर चक्कर काटना
- अंतर्नयनों – अंतद्दृष्टि, अन्दर ही अन्दर
प्रसंग : प्रस्तुत काव्यांश हमारी पाठृय-पुस्तक अन्तरा में संकलित कविता ‘नींद उचट जाती है’ से अवतरित है जिसके रचयिता ‘नरेन्द्र शर्मा’ जी हैं। कवि ने यहाँ जीवन में व्याप्त अंधकार के दूर न होने पर खिन्नता व्यक्त की है। कवि ने यहाँ पूरी तरह निराशावादी दृष्टिकोण अपनाया है।
व्याख्या : कवि का कहना है कि नींद न आने के कारण मैं निरन्तर करवटें बदल रहा हूँ, परन्तु जीवन में अंधकार उसी तरह व्याप्त है। अंधकार की स्थिति पर कुछ भी प्रभाव नहीं पड़ रहा है। मन भी अपने को असमर्थ पा रहा है। दुश्चिताओं के कारण निरन्तर बिना पलक झपके जागना पड़ रहा है। पुतलियाँ एक क्षण के लिए भी स्थिर नहीं होतीं। साँस इसी आशा में अटका है कि एक न एक दिन मन का, बाहरी जीवन का और समाज का अंधकार दूर होगा। इस आशा में मन रात भर भटकता रहता है।
कवि को नींद नहीं आती इसका यह अर्थ नहीं की कवि के जीवन में जागृति हो गयी। नींद न आना निराशा और अंधकार का ही द्योतक है। कवि के जीवन से अंधेरा दूर नहीं हो रहा है। जब तक इस धरती पर अंधकार है तब तक ज्योति अंधकार को दूर करने के लिए चारों ओर घूमती रहेगी जिस प्रकार खेत की रखवाली के लिए खेत के चारों ओर घूमना पड़ता है। कवि की अंतर्दृष्टि के सामने अभी तक अंधकार छाया है। अंधकार रूपी शिला जब तक आगे से नहीं हटती तब तक प्रकाश की किरण कैसे आएँगी।
काव्य सौन्दर्य : कवि अंधकार को दूर करने का प्रयास करता है परन्तु अंधकार दूर नहीं होता। अंधकार को दूर करने के लिए ज्योति को चकफेरी देनी पड़ेगी। भाषा भावानुकूल है, नए प्रतीकों का प्रयोग किया है। जैसे ‘तम की शिला’, ‘भव-निशा’ में रूपक अन्नंकार है।