ईदगाह Summary – Class 11 Hindi Antra Chapter 1 Summary
ईदगाह – प्रेमचंद – कवि परिचय
प्रस्तुत कहानी ‘ईदगाह’ बालमनोविज्ञान पर आधारित कहानी है। लेखक ने ईद जैसे त्यौहार को आधार बनाकर पूरी तन्मयता के साथ इस कहानी की रचना की है। इस कहानी में प्रमुख पात्र हामिद है जो एक अनाथ लड़का है। उसकी दादी अमीना उसे पालती-पोसती है। हामिद का चरित्र हमें बताता है कि अभावग्रस्त जिन्दगी में बच्चे किस प्रकार उम्र से पहले ही समझदार हो जाते हैं। किस प्रकार वे अपनी सभी इच्छाओं का दमन करते हुए अपने घर की स्थिति के अनुसार आचरण करते हैं। मुंशी प्रेमचंद ने रुस्तमे हिन्द चिमटे के साथ श्रम एवं सौंदर्य के महत्त्व को भी उद्घाटित किया है। यह कहानी छात्रोपयोगी एवं प्रेरणादायक सिद्ध होगी। चित्रात्मक भाषा एवं सुगठित वाक्य विन्यास के कारण भी यह कहानी अनूठी है।
Idgah Class 11 Hindi Summary
रमजान के पूरे तीस दिन बाद ईद आई। बहुत ही सुहावना दृश्य था। ईद की तैयारियाँ चल रही थीं। लोग बैलों को दानापानी दे रहे थे। लड़के सबसे ज्यादा प्रसन्न थे। इन्हें किसी प्रकार की चिंता नहीं थी। आज उनकी जेबों में कुबेर का धन भरा है। बार-बार जेब से अपना ख़जाना निकालकर गिनते हैं। महमूद के पास बारह पैसे, मोहसिन के पास पन्द्रह पैसे हैं। वे इन पैसों से मिठाइयाँ व खिलौने लाएंगे। इन बच्चों से सबसे ज्यादा प्रसन्न हामिद है। वह चार-पाँच साल का दुबला-सा लड़का है इसके पिता पिछले साल हैज़े से मर गए थे। माँ को भी किसी बीमारी ने ऐसा जकड़ा कि बेचारी संसार से विदा हो गई।
हामिद अब अपनी बूढ़ी दादी की गोद में ही सोता है। उसको पता है उसके अब्बाजान रुपया कमाने गए हैं और अम्मीजान अल्लाह के घर से उसके लिए अच्छी-अच्छी चीजें लाने गई हैं। हामिद के सिर पर पुरानी टोपी है, वह नंगे पाँव है, फिर भी वह प्रसन्न है कि जब उसके अब्बा थैलियाँ और अम्मी नियामतें लेकर आएगी तो वह मन के सारे अरमान निकाल लेग। अमीना बेचारी कोठरी में बैठी रो रही है। आज ईद है और उसके घर में खाने को दाना नहीं है। किसलिए आती है गें निगोड़ी ईंद। हामिद अन्दर जाकर अपनी दादी से कहता है कि तुम डरना मत मैं सबसे पहले आऊँगा।
गाँव के बच्चे अपने-अपने अब्बा के साथ जा रहे थे। इस दुनिया में हामिद का अब्बा अमीना के अलावा और कौन है। अमीना सोच रही है कि यह नन्ही-सी जान तीन कोस कैसे चलेगा। इसके पैरों में जूते भी नहीं हैं। वह जाती तो थोड़ी देर उसे गोद में ले लेती पर यहौं सिवैया कौन पकाएगा। केवल दो आने के पैसे हैं उनमें से तीन पैसे हामिद को दे दिए बाकी से यह त्यौहार कैसे मनेगा। माँगने वाले भी सभी आएंगे। उनको भी कुछ न कुछ तो देना ही पड़ेगा।
गाँव से मेला चला हामिद भी साथ जा रहा है बच्चे बहुत खुश हैं वे आपस में शरारतें करते आगे बढ़ रहे हैं। वे आपस में तरह-तरह की बातें कर रहे हैं। वे डींगें हाँकने में भी किसी से पीछे नहीं। जो भी चीज उनको रास्ते में दिखाई देती है वे उस पर टीका-टिप्पणी करते चल रहे हैं। अब बस्ती घनी होने लगी है। ईद वालों की टोलियाँ नज़र आने लगी हैं। कोई इक्के पर सवार तो कोई मोटर पर सवार है। गाँव वाले अपनी गरीबी से बेखबर पैदल ही चले जा रहे हैं। सहसा ईदगाह नज़र आया। ऊपर इमली के घने वृक्ष की छाया। नीचे पक्का फर्श जिस पर ज़ाज़िम बिछा हुआ है। रोज़ेदारों की पंक्तियाँ एक के पीछे एक लगती जा रही हैं बड़े छोटे का कोई फर्क नहीं जो भी पहले आए वह आगे लग जाता है। बाद में आने वाला पीछे यही तो इसलाम धर्म की विशेषता है। लाखों लोग एक साथ नमाज़ पढ़ रहे हैं।
नमाज़ खत्म होने के बाद सभी आपस में गले मिलने लगे। कोई बच्चा खिलौने खरीद रहा है, कोई झूले पर झूल रहा है तो कोई ऊँट की सवारी कर रहा है। हामिद दूर खड़ा देख रहा है उसके पास केवल तीन पैसे हैं। अब बच्चे खिलौने खरीदने शुरू करते हैं। महमूद को सिपाही पसन्द आता है। मोहुसिन को भिश्ती पसन्द आया। नूरे को वकील अच्छा लगा। हामिद के पास कुल तीन पैसे हैं वह इतने महंगे खिलौने कैसे ले। सभी बच्चे अपने खिलौनों की प्रशंसा करते हैं। हामिद खिलौनों की निन्दा करता है कि मिट्टी के हैं टूट जाएंगे। खिलौनों के बाद मिठाइयों की दुकानें आती हैं।
हामिद कहता है कि मिठाइयों से मुँह खराब हो जाएगा। मिठाइयों के बाद लोहे के सामान की दुकानें आती हैं। हामिद एक दुकान पर रुक जाता है। दुकानदार से वह चिमटे का दाम पूछता है। दुकानदार छह पैसे बताता है। हामिद कहता है कि तीन पैसे लेने हों तो ले लो। दुकानदार कहता है पाँच पैसे का लेना हो तो ले नहीं तो आगे चलता बन। हामिद का कलेजा बैठ जाता है, वह चलने लगता है तो दुकानदार उसको तीन पैसे में ही चिमटा दे देता है।
हामिद चिमटे को कंधे पर रखकर इस प्रकार चला जैसे सिपाही बन्दूक रखकर चलता है। हामिद अपने चिमटे की विशेषताएँ बताता है वह कहता है इसे कन्धे पर रखो तो बन्दूक हो गई, हाथ में लिया तो फकीरों का चिमटा हो गया। मेरा चिमटा तुम्हारी खंजरी का पेट फोड़ सकता है। हामिद के चिमटे ने सभी को मोहित कर लिया।
इसी बीच सारे बच्चे, बातें करते हुए अपने गाँव पहुँचे। गाँव में हलचल मच गई। मेले वाले आ गए। मोहसिन की बहिन ने दौड़कर भिश्ती उसके हाथ सें छीन लिया। मारे खुशी के उछली तो बेचारा भिश्ती स्वर्ग सिधार गया। नूरे ने अपने वकील को कुर्सी पर बिठाया। वह वकील साहब पर पंखे से हवा करने लगा। हवा करते समय पंखा वकील साहब को लगा और बेचारा वकील भी स्वर्ग सिधार गया। अब रहा महमूद का सिपाही उसे गाँव का पहरा देने का चार्ज मिल गया। महमूद ने उसको एक टोकरी में रखा। वे जागते रहो-जागते रहो पुकारते चल रहे थे कि महमूद को ठोकर लगी सिपाही भी जमीन पर आ गिरा। शल्य क्रिया करके उसकी टाँगें जोड़ने का असफल प्रयास हुआ।
अब बचे हामिद मियां। अमीना उसकी आवाज सुनते ही दौड़ी आई। वह उसे गोद में उठाकर प्यार करने लगी। तभी उसकी निगाह चिमटे पर पड़ी। अमीना ने पूछा यह चिमटा कहाँ था ? ‘मैंने मोल लिया है, कै पैसे में ? तीन पैसे दिए।’ अमीना ने छाती पीट ली। कैसा नासमझ लड़का है। दोपहर हो गई कुछ खाया न पिया यह चिमटा ले आया। हामिद ने अपराधी भाव से कहा-तुम्हारी उँगलियाँ तवे से जल जाती थीं इसलिए मैंने इसे ले लिया। बुढ़िया का क्रोध तुरन्त स्नेह में बदल गया। यह मूक स्नेह था, खूब ठोस, रस और स्वाद से भरा हुआ। बच्चे में कितना त्याग, कितना सद्भाव और कितना विवेक है। दूसरों को खिलौना लेते और मिठाई खाते देखकर उसका मन कितना ललचाया होगा? उसने अपने को कैसे रोका होगा ? वहाँ भी इसे अपनी बुढ़िया दादी की याद बनी रही। अमीना का मन गद्गद् हो गया और अब बड़ी विचित्र बात हुई । हामिद के इस चिमटे से भी विचित्र। बच्चे हामिद ने बूढ़े हामिद का पार्ट खेला था। बुढ़िया अमीना बालिका बन गई थी। वह रोने लगी। दामन फैलाकर हामिद को दुआएँ देती जाती थी और आँसू की बड़ी-बड़ी बूंदें गिराती जाती थी। हामिद उसका रहस्य क्या समझता!
शब्दार्थ एवं टिप्पणियाँ :
- प्रयोजन – मतलब
- नादानी – बेवकूफी, नासमझी
- विपन्नता – गरीबी
- मिज़ाज – स्वभाव, हाल
- बला – कष्ट, आपत्ति
- चितवन – दृष्टि, किसी की ओर देखने का ढंग, कटाक्ष
- वजू – नमाज़ से पहले हाथ पैर धोने की क्रिया
- सिजदा – माथा टेककर खुदा की इबादत करना
- हिंडोला – झूला
- मशक – भेड़ या बकरी की खाल से बना पानी का थैला
- अचकन – लम्बा कलीदार अंगरखा
- नेमत – कृपा, बहुत बढ़िया
- ज़्त – सहन करना
- दामन – पल्तू, आँचल
ईदगाह सप्रसंग व्याख्या
1. कितना सुंदर संचालन है, कितनी सुंदर व्यवस्था! लाखों सिर एक साथ सिजदे में घुुक जाते हैं, फिर सब के सब एक साथ खड़े हो जाते हैं। एक साथ डुकते हैं और एक साथ घुटनों के बल बैठ जाते हैं। कई बार यही क्रिया होती है, जैसे बिजली की लाखों बत्तियाँ एक साथ प्रदीप्त हों और एक साथ बुझ जाएँ, और यही क्रम चलता रहे। कितना अपूर्व दृश्य था, जिसकी सामूहिक क्रियाएँ विस्तार और अनन्त हृदय को श्रद्धा, गर्व और आत्मानन्द से भर देती रीं मानो भ्रातृत्व का एक सूत्र इन समस्त आत्माओं को एक लड़ी में पिरोए हुए है।
प्रसंग : प्रस्तुत गद्यांश इमारी पाठ्य-पुस्तक ‘अंतरा’ में संकलित पाठ ‘ईदगाह’ से लिया गया है। जिसके लेखक कथा सम्राट ‘मुंशी डमवंद’ जी हैं। लेखक ने यहाँ ईद की नमाज़ के समय के मनोहर दृश्य को चित्रित किया है। नमाजियों की रियाएँ आनन्द विभोर कर देने वाली थीं।
व्याख्या : लेखक कहता है कि ईदगाह में जब मौलवी द्वारा ईद की नमाज़ पढ़ाई जा रही थी तो वहाँ की संचालन व्यवस्था देखने लायक थी। नमाज़ियों के लाखों सिर एक साथ खुदा की इबादत के लिए नीचे झुक जाते थे फिर एक क्षण में ही सभी खड़े हो जाते थे। नमाजियों की ये क्रियाएँ स्वचालित-सी लग रही थीं। वे कभी एक साथ झुकते थे कभी एक साथ घुटनों के बल बैठ जाते थे। इस क्रिया की बार-बार पुनरावृत्ति होती रही। इनको देखकर ऐसा लगता था जैसे बिजली के लाखों बल्ब एक साथ जल-बुझ रहे हों। यही क्रम काफी देर तक चलता रहा। यह दृश्य मन को अभिभूत कर देने वाला था। इनकी सामूहिक क्रियाएँ हृदय को आनन्द प्रदान करने वाली थीं। भाई-चारे का यह अनोखा दृश्य था जिसको देखकर आत्मा आनंदित हो उठी। ऐसा लगता था जैसे -भ्रातृत्व का एक सूत्र इ. सभी आत्माओं को एक लड़ी में पिरोए हो।
2. बुढ़िया का क्रोध नुरन्त स्नेह में बदल गया, और स्नेह भी बह नहीं, जो प्रगत्भ होता है और अपनी सारी कसक शब्दों में बिखेर देता है। यह मूक स्नेह था, खूब ठोस, रस और स्वाद से भरा हुआ। बच्चे में कितना त्याग, कितना सद्भाध और कितना विवेक है! दूसरों को खिलौने लेते और मिठाई खाते देखकर इसका मन कितना ललचाया होगा। इतना जब्त इससे हुआ कैसे? वहाँ भी इसे अपनी बुढ़िया दादी की याद बनी रही। अमीना का मन गद्गद् हो गया।
प्रसंग : प्रस्तुत गद्यांश प्रसिद्ध कथाकार ‘मुंशी प्रेमचंद’ द्वारा रचित कहानी ‘ईदगाह’ से लिया गया है। बूढ़ी अमीना हामिद पर क्रोधित होती है कि तू मेले से यह चिमटा क्यों लाया परन्तु हामिद का जवाब सुनकर अमीना का हृदय मोम की तरह पिघल जाता है। बूढ़ी अमीना के हृय से स्नेह का ऐसा स्रोत फूटता है जो अवर्णनीय है।
व्याख्या : हामिद अमीना से कहता है कि मैं चिमटा इसलिए लाया हूँ कि रोटी सेकते समय तुम्हारी उँगलियाँ तवे से जल जाती थीं। अमीना ने अपराधी भाव से खड़े हामिद के मुँह से जब यह सुना तो उसका क्रोध स्नेह में बदल गया। यह स्नेह ऐसा नहीं था जिसको शब्दों में वर्णित किया जा सके। इस स्नेह को केवल अनुभव किया जा सकता था। इसमें कोई चतुराई नहीं थी यह स्वाभाविक स्नेह था। यह ऐसा स्नेह था जिसमें रस भी था और स्वाद भी। यह ऐसा ठोस स्नेह था जिसको व्यक्त करने के लिए शब्दों की आवश्यकता नहीं पड़ती, यह एक बूढ़ी दादी माँ का मूक स्नेह था। अमीना अपने मन में सोच रही थी कि इस नन्ही-सी जान में कितना त्याग, कितना सदृभाव और कितनी समझदारी है। जब दूसरे बच्चे खिलौने और मिठाइयाँ खरीद रहे होंगे तो इसने अपने आपको कैसे रोका होगा ? कितनी सहनशक्ति है इस छोटे-से बच्चे में ? वहाँ मेले में जाकर भी यह इस बूढ़ी दादी को नहीं भूला। अमीना का मन गद्गद् हो गया। उसके मुख से शब्द नहीं फूट रहे थे उसकी आँखें भर आई थीं।
3. और अब एक बड़ी विचित्र बात हुई। हामिद के इस चिमटे से भी विचित्र। बच्चे हामिद ने बूढ़े हामिद का पार्ट खेला था। बुढ़िया अमीना बालिका अमीना बन गई। वह रोने लगी। दामन फैलाकर हामिद को दुआएँ देती जाती थी और आँसू की बड़ी-बड़ी बूँदें गिराती जाती थी। हामिद इसका रहस्य क्या समझता!
प्रसंग : प्रस्तुत गय्यांश कथा सम्राट ‘मुंशी प्रेमचंद’ द्वारा रचित बाल मनोविज्ञान पर आधारित कहानी ‘ईदगाह’ से उद्धृत है। लेखक ने यहाँ चिमटे के कारण उत्पन्न हुई विचित्र घटना को बड़े ही भावुंक अंदाज में प्रस्तुत किया है।
ब्याख्या : लेखक कहता है कि हामिद मेले से चिमटा खरीद लाया। हामिद की मासूमियत, भोलेपन एवं समझदारी को देखकर अमीना इतनी भावुक हो गई कि वह अंपने को न संभाल सकी। उसकी आँखों से आँसुओं की झड़ी लग गई। इस विचित्र स्थिति को बेचारा चार सल का हामिद क्या समझता। वह अपराधी की भाँति खड़ा था। हामिद ने जब अपनी दादी को इस प्रकार रोते देखा तो वह बड़े बुजुर्ग की तरह उसको चुप कराने लगा परन्तु अमीना छोटे-छोटे बच्चों की तरह बिलख-बिलख कर रोने लगी। वह अपना दामन फैलाकर रोती जा रही थी और हामिद को दुआएँ देती जा रही थी। उसकी आँखों से आँसू झर-ड़र कर बहते जा रहे थे। चार वर्ष का हामिद अमीना के इस प्रकार रोने को भला क्या समझता ? वह तो यही सोच रहा था कि शायद मुझसे ही कोई बड़ा अपराध हो गया है।