CBSE Class 11 Hindi Elective Rachana पत्र-लेखन
आधुनिक काल में पत्रों का हमारे जीवन में अत्यन्त महत्त्वपूर्ण स्थान है। पत्रों के माध्यम से हम अपने मनोभावों, विचारों को एक-दूसरे तक पहुँचाते हैं। सगे-संबंधियों से संपर्क बनाये रखते हैं। अनेक घरेलू बातों से लेकर देशकाल की बातों का परस्पर आदान-प्रदान करते हैं। वर्तमान युग में पत्रों का प्रयोग व्यापारिक संबंधों में भी होने लगा है। अतः पत्र लिखते समय हमें अत्यन्त सावधान रहना चाहिए।
पत्र-लेखन में निम्नलिखित बातों की सावधानी रखनी चाहिए-
- पत्र, अपनी आयु, योग्यता, पद, संबंध और सामर्थ्य का ध्यान रखकर लिखना चाहिए।
- पत्र की भाषा, सरल और स्पष्ट होनी चाहिए। उद्देश्य और आशय की अभिव्यक्ति के साथ-साथ, प्रारंभ से अंत तक विनम्रता, स्नेह और शिष्टाचार का निर्वाह करना चाहिए।
- अशिष्ट भाषा का प्रयोग नहीं करना चाहिए।
- पत्र में अनावश्यक विस्तार नहीं होना चाहिए।
पत्र के भाग –
पत्र के पाँच भाग होते हैं-
- पत्र में सबसे ऊपर बायें हाथ की ओर कोने पर भेजने वाले को अपना पता और दिनांक लिखना चाहिए। विराम चिह्नों का प्रयोग ठीक ढंग से होना चाहिए।
- मूल विषय से पूर्व पत्र पाने वाले के साथ अपने संबंध के अनुसार बायीं ओर उचित संबोधन लिखना चाहिए। व्यापारियों और कार्यालय से संबंधित पत्रों में संबद्ध व्यक्ति का पद सहित पूरा पता अथवा कार्यालय का पता लिखना चाहिए। उसे आदरपूर्वक संबोधित करना चाहिए।
- पत्र के आरंभ करने के बाद मुख्य विषय पर आना चाहिए। सभी बातें क्रमपूर्वक लिबनी चाहिए।
- मुख्य विषय समाप्त होने के पश्चात् अंत में पत्र के बायीं ओर संबोधन के अनुसार भवदीय, आपका बड़ा भाई आदि शब्द लिखकर, लिखने वाले को पूरा नाम लिखना चाहिए।
- लिफाफे या पोस्टकार्ड पर पत्र पाने वाले का पूरा पता, पिन कोड़ नम्बर सहित लिखना चाहिए।
पत्रों के प्रकार –
पत्र तीन प्रकार के होते हैं-
- सामाजिक पत्र
- व्यावसायिक पत्र
- कार्यालयों या अधिकारियों को लिखे ज्मने वाले कार्यालयी पत्र।
1. सामाजिक पत्र – इस वर्ग में परिवार के सदस्य, मित्र, परिचित-अपरिचित व्यक्ति तथा विदेशी में स्थित पत्र-मित्र आते हैं। इसमें पत्र लिखते समय पत्र-लेखक कोई पारिवारिक संबंध बनाकर पत्र शुरु करता है। इसमें लेखक खुलकर मन की बातें कहता है और पूछता है।
निमंत्रण या बधाई देने या शोक प्रकट करने के लिए लिखे पत्र भी इसी श्रेणी में आते हैं।
2. व्यावसायिक पत्र-इस श्रेणी के पत्रों में लेन-देन, मोल-भाव, माल मंगवाना, भेजना, माँग-पूर्ति, टूट-फूट, कम-अधिक; नकद-उधार, ब्याज-बट्टा जैसी बात नपे-तुले स्पष्ट शब्दों में लिखी जाती है। व्यावसायिक पत्रों की भाषा सामाजिक पत्रों की भाषा से भिन्न होती है।
3. कार्यालयी पत्र-इस श्रेणी में वे पत्र आते हैं जो विभिन्न कार्यालयों और विभागीय अधिकारियों को लिखे जाते हैं। इनमें नौकरी या प्रशिक्षण संबंधी प्रार्थना पत्र, शिकायती-पत्र, सूचना लेन-देन संबंधी पत्र, निविदाएँ माँगना या भेजना आदि।
पत्र के आरंभ और समापन की विधि
1. मोहल्ले की सफाई के लिए स्वास्थ्याधिकारी को पत्र लिखिए।
सेवा में,
स्वास्थ्य अधिकारी,
नगर निगम कार्यालय,
अजमल खाँ पार्क रोड़,
दिल्ली।
मान्यवर,
मैं आपका ध्यान लंरेंस रोड़ क्षेत्र में बिगड़ती सफाई की स्थिति की ओर दिलाना चाहता हूँ। इस संपूर्ण क्षेत्र में फैले कूड़े और गंदगी के ढेरों को देखकर लगता है कि यदि कहीं नरक है, तो यहीं है। स्थान-स्थान पर कूड़े-करकट के ढेर लगे हुए हैं तथा सीवरों के रूक जाने से सारे क्षेत्र में गंदा पानी फैला हुआ है। फलस्वरूप मच्छर और मक्खियों ने अपना साम्राज्य बना लिया है। दुर्गंध के कारण इस क्षेत्र में रहना दूभर हो गया है। मच्छर और मक्खियों के कारण क्षेत्र में रोगों के फैलने की आशंका बन गई है।
क्षेत्र के निवासियों ने सफाई कर्मचारियों से कई बार अनुरोध किया है, किंतु उनके कानों पर जूं तक नहीं रेंगी।
अतः हम आपसे अनुरोध करते हैं कि इस क्षेत्र में सफाई का उचित प्रबंध कराएं तथा क्षेत्र के निवासियों को टीके लगवाने का प्रबंध करें। हम आपके अति आभारी होंगे।
सधन्यवाद
भवदीय
क.ख.ग.
सचिव
लारेंस रोड़ निवासी संघ
2. छुट्रियाँ साथ बिताने के लिए मिन्न को निमंत्रण पत्र लिखिए।
67 अपर रिज़ रोड़
नैनीताल
दिनांक ……..
प्रिय मिन्न सौरभ,
सप्रेम नमस्ते।
आशा है आप कुशलतापूर्वक होंगे। तुम्हारा विद्ययालय ग्रीष्मावकाश के लिए बंद होने वाला होगा। तुम्हें शायद याद होगा कि दिसंबर में मैं जब दिल्ली आया था तब तुमने ग्रीष्मावकाश मेंरे पास बिताने का वायदा किया था। यहाँ का मौसम इन दिनों बहुत ही सुहावना है। सैलानियों की भीड़ बढ़ती ही जा रही है।
नैनीताल में अगले सप्ताह से ग्रीष्मकालीन खेलों का आयोजन हो रहा है, जो पंद्रह दिनों तक चलेगा। इन के साथ-साथ प्रतिदिन रात को विभिन्न प्रकार के सांस्कृतिक कार्यक्रम भी आयोजित होंगे। तुम्हारी कलाप्रियता को जानते हुए मुझे विश्वास है कि तुम्हें उनमें विशेष आनंद आएगा।
मुझे पूर्ण विश्वास है कि अगला मास तुम मेरे साथ नैनीताल में ही बिताओगे। अपने कार्यक्रम सहित मुझे शीघ्र पत्रोत्तर देना।
तुम्हारा प्रिय मित्र
सुमित
3. परिवहन अधिकारी को निगम बसों में सुधार के लिए पत्र लिखिए।
सेवा में,
महाप्रबंधक,
दिल्ली परिवहन निगम,
नई दिल्ली।
महोदय,
में आपका ध्यान दिल्ली परिवहन निगम की अपर्याप्त बस-सेवा की ओर आकर्षित करना चाहता हूँ।
दिल्ली परिवहन निगम को दिल्ली सरकार द्वारा हस्तांतरित किए एक वर्ष बीत चुका है, पर अभी तक बस-सेवा में अपेक्षित सुधार नहीं हुआ है। अंतर्राज्यीय बस अड्डे के लिए प्रायः बसें नहीं मिलतीं। इससे सामान लेकर यात्रा करना अत्यन्त कठिन हो गया है। ऑटो रिक्शा वाले 80-90 रुपए से कम में बात नहीं करते हैं। सामान्य लोगों के लिए तो दिल्ली परिवहन निगम की बस ही एकमात्र सहारा है। उत्तरी और पश्चिमी दिल्ली में तो बस-व्यवस्था बिल्कुल संतोषजनक नहीं है।
आपसे प्रार्थना है कि इस क्षेत्र में कम से कम पाँच सी अतिरिक्त बसों की व्यवस्था अविलम्ब की जाए। संसाधन जुटाना कोई कठिन काम नहीं है, केवल दृढ़संकल्प की आवश्यकता है।
आशा है, आप हमारी प्रार्थना पर ध्यान देते हुए इस समस्या को शीघ्र हल करने का प्रयास करेंगे
सधन्यवाद
दिनांक…….
भवदीय
निखिल
संयोजक, जनचेतना मंच
4. समय के सदुपयोग और परिश्रम पर बल देते हुए छोटे भाई को पत्र लिखिएं।
परीक्षा भवन
नई दिल्ली
दिनांक ….
प्रिय भाई सुमित,
शुभाशीर्वाद।
कल माता जी का पत्र प्राप्त हुआ। यह पत्र पढ़कर दुःख हुआ कि इस वर्ष की परीक्षा में तुम्हें बहुत कम अंक प्राप्त हुए हैं। मुझे यह भी पता चला है कि इस वर्ष तुमने पढ़ाई में परिश्रम नहीं किया। इसी का यह परिणाम निकला है।
प्रिय अनुज, जीवन में परिश्रम का बहुत महत्व है। परिश्रम के अभाव में कोई भी कार्य पूरा नहीं होता। परिश्रम ही सफलता की कुंजी है। भाग्य के भरोसे रहने वाले लोग बाद में पछताते हैं। परिश्रमी व्यक्ति को सदैव सुखद परिणाम मिलता है। प्रिय भाई, समय संसार का सर्वाधिक शक्तिशाली शासक है। प्रकृति के सारे क्रिया-कलाप समय के अनुसार सम्पन्न होते हैं। अतः समय के महत्त्व तथा मूल्य को समझो क्योंकि बीता हुआ समय पुनः वापिस नहीं आता। समय के सदुपयोग में ही जीवन की सार्थकता है।
मुझे पूर्ण विश्वास है कि तुम समय के महत्त्व को अवश्य समझोगे तथा परीक्षा की तैयारी में समय का सदुपयोग करके अपने जीवन को सफलता के शिखर पर ले जाओगे।
तुम्हारा अग्रज
सौरभ
5. दहेज प्रथा के विरोध में संपादक के नाम एक पत्र लिखिए।
सेवा में,
संपादक,
नवभारत टाइम्स,
नई दिल्ली।
महोदय,
में आपके दैनिक लोकप्रिय समाचार-पत्र के माध्यम से दहेज प्रथा के विरोध में अपने विचार प्रस्तुत करना चाहती हूँ ताकि समाज के लोग इसके दुष्परिणामों पर विचार कर, इसे रोकने की सार्थक पहल कर सकें। आशा है कि आप मेंरे विचार जनहित में जरूर प्रकाशित करेंगे।
वर्तमान समय में दहेज की विभीषिका अपना विकराल स्वरूप बढ़ाती चली जा रही है। दहेज का विरोध केवल एक फैशन बन कर रह गया है। प्रत्येक व्यक्ति दहेज लेने की कोई न कोई युक्ति निकाल ही लेता है। दहेज के अभाव में अनमेल विवाह हो रहे हैं। अनेक युवतियों को दहेज की बलिवेदी पर अपने प्राण्स न्यौछावर करने पड़ रहे हैं। इसको तुरंत रोकने की आवश्यकता है। दहेज न लेकर विवाह करने वाले युवकों की नौकरी में प्राथमिकता मिलनी चाहिए तथा समाज में सम्मान। इसे एक अच्छी शुरूआत हो सकेगी। दहेज लोभियों का सामाजिक बहिष्कार किया जाना चाहिए। सरकार और समाज दोनों को अधिक सक्रिय होना पड़ेगा।
सधन्यवाद,
भवदीया
आशा
6. पढ़ाई में प्रोत्साहन हेतु पिता दूवारा पुत्र को एक पत्र लिखिए।
8 / 12 सेवा सदन,
शंकर रोड,
नई दिल्ली
दिनांक.
प्रेय पुत्र नवीन,
शुभाशीर्वाद
आज तुम्हारा पत्र मिला। तुम्हें इस वर्ष परीक्षा केवल 55% अंक ही प्राप्त हुए हैं। यह स्थिति संतोषजनक नहीं है। नवीन, तुम्हें सदा अपने लक्ष्य को ध्यान में रखना चाहिए। इतने कम अंकों से विज्ञान विषयों की पढ़ाई करना संभव नहीं होगा। तुम्हें कम से कम 80% अंक प्राप्त करने का प्रयास करना चाहिए। अभी बोर्ड की परीक्षा में पूरा एक वर्ष शेष है। यदि तुम अभी से पूरे प्रयसस से परीक्षा की पढ़ाई में जुट जाओगे, तो निश्चय ही तुम्हें परीक्षा सफलता प्राप्त होगी। तुम्हें प्रतिदिन कम से कम 7-8 घंटे पढ़ाई में लगाने होंगे। घबराने से नहीं अपितु धैर्य से, योजनाबद्ध तरीके से कार्य करने पर ही लक्ष्य की प्राप्ति होती है।
आशा है कि तुम हमारी आकांक्षाओं पर खरे उतरोगे। मेरी शुभकामनाएं सदैव तुम्हारे साथ हैं।
सधन्यवाद,
तुम्हारा शुभचिंतक
श्याम प्रकाश
7. अपने शहर के कानून और व्यवस्था की स्थिति से निपटने के लिए पुलिस आयुक्त को एक पत्र लिखिए।
सेवा में,
पुलिस आयुक्त,
दिल्ली पुलिस हैडक्वार्टस,
नई दिल्ली।
महोदय,
में आपका ध्यान दिल्ली में बिगड़ती कानून व्यवस्था की ओर आकर्षित करना चाहता ँूूँ ताकि इसे सुधारा जा सके। इन दिनों दिल्ली में कानून व्यवस्था नाम की कोई चीज नहीं रह गई है। चारों ओर चोरी, उकेती, हत्या, बलात्कार की घटनाओं के बारे में सुना जाता है। समाचार-पत्रों में भी इसी प्रकार के समाचार प्रतिदिन आते हैं। दिल्ली के नागरिक पुलिस के उपेक्षापूर्ण रवैये से अत्यन्त दुझखी हैं। वार-बार शिकायत करने के उपरांत भी कोई कार्यवाही नहीं की जाती है। आज दिल्लीवासी स्वयं को असुरक्षित समझने लगे हैं।
आशा है कि आप स्थिति की गंभीरता को समझेंगे और कारगर उपाय बरतने में तत्परता दिखाएंगे।
सधन्यवाद,
भवदीय,
सौरभ भारद्वाज
सचिव, अशोक विहार निवासी संघ
8. अपने पिता को एक पत्र लिखकर बताइए कि आपके विद्यालय का वार्षिकोस्सव किस प्रकार मनाया गया।
कमरा नं. 17,
शिवाजी छात्रावास,
दिल्ली छावनी।
दिनांक-17 मार्च, 2002
पूजनीय पिताजी,
चरण स्पर्श।
में अत्यधिक व्यस्त रहने के कारण आपके पत्र का उत्तर न दे सका, इसके लिए क्षमपप्रार्थी हूँ। वास्तव में गत एक मास से हम अपने विद्यालयय के वार्षिकोत्सव की तैयारी में लगे हुए थे। कल ही यह वार्षिकोत्सव सम्पन्न हुआ है। यह उत्सव बहुत रोचक और मनोरंजक था। इस उत्सव का संक्षिप्त विवरण पत्र में लिख रहा हूँ।
प्रतिवर्ष की भांति इस वर्ष भी विद्ययालय में वार्षिकोत्सव मनाया गया तथा संपूर्ण विद्ययालय को बिजली की रंग-बिरंगी रोशनियों से दुल्हन की तरह सजाया गया। इस वर्ष का समारोह विद्यालय के नवनिर्मित हाल में आयोजित किया गया था। इस अवसर पर माननीय उपराज्यपाल को मुख्य अतिधि के रूप में आमंत्रित किया गया था। मुख्य कार्यकारी पार्षद, शिक्षा निदेशक तथा अनेक गणमान्य अतिथि भी इस समारोह में उपस्थित थे।
छात्रों के एक समूह ने सरस्वती-वंदना के साथ वार्षिकोत्सव के रंगारंग कार्यक्रम का शुभारंभ किया। इसके पश्चात प्रधानाचार्य ने मुख्य अतिधि का तथा अन्य गणमान्य व्यक्तियों का फूल-मालाओं से स्वागत किया और विद्ययालय की उपलब्धियों का उल्लेख किया। तत्पश्चात् साँस्कृतिक कार्यक्रम प्रस्तुत किया गया। सबसे पहले एक लोक-नृत्य प्रस्तुत किया गया। लोक संगीत की धुन पर धिरके छात्रों ने दर्शकों को मंत्रमुध कर दिया। तदनंतर लोकगीत, मूक अभिनय तथा एक हास्यव्यंग्यात्मक एकांकी प्रस्तुत किया गया। एकांकी नाटक ने दर्शकों को अंत तक बांधे रखा। ‘अँधेर नगरी, चौपट राजा’ नामक इस एकांकी ने जहाँ एक ओर दर्शकों को हंसा-हंसा कर लोट-पोट कर दिया, वहीं दूसरी ओर ब्यंग्य के पात्र बने उपस्थित मुख्य ब्यक्तियों को खिसियानी हैंसी हैँसने पर भी मजबूर कर दिया। इस अवसर पर एक छत्रा ने सरकस के अनोखे करतब दिखाकर लोगों को आश्चर्यचकित कर दिया।
सांस्कृतिक कार्यक्रम के पश्चात मुख्य अतिधि उपराज्यपाल महोदय ने विद्यालय की विभिन्न गतिविधियों में भाग लेने वाले छात्रों को पारितोषिक वितरित किया। मुड़े भी बोर्ड की परीक्षा में सर्वप्रथम आने पर पुसस्कार मिला। मुख्य अतिथि ने विद्यालय की प्रगति पर प्रसन्नता व्यक्त की तथा छात्रों को रचनात्मक कार्यों में जुट जाने के लिए प्रेरित किया। अंत में प्रधानाचार्य ने सभी अतिथियों का धन्यवाद किया और इसके साथ ही समारोह समाप्त हो गया। शेष सब कुशल हैं। आशा है कि आप माताजी तथा भाई बहन सब प्रसन्न व स्वस्थ होंगे। मांता जी को चरणस्पर्श। भाई-भाभी को नमस्कार, छोटे भाई को प्यार।सधन्यवाद,
आपका पुत्र
क.ख.ग.
9. अपने पिताजी को पत्र लिखकर सूचित कीजिए कि वार्षिक परीक्षा में आपके प्रश्न-पत्र कैसे हुए। ई-39, पटेल नगर, दिल्ली।
20 मई, 2002
पूजनीय पिताजी,
सादर चरणस्पर्श।
आपका पत्र आज ही मुझ़े प्राप्त हुआ है। पत्र पढ़कर प्रसन्नता हुई है कि परिवार में सभी प्रसन्न एवं स्वस्थ हैं। आपने मेरी वार्षिक परीक्षा के प्रश्न-पत्रों के संबंध में जानकारी चाही है, सो लिख रहा हूँ।
आपको यह जानकर अत्यन्त प्रसन्नता होगी कि मेरे वार्षिक-परीक्षा के प्रश्न-पत्र बहुत अच्छे हुए हैं। मैंने परीक्षा की तैयारी बहुत अच्छी कर रखी थी। वर्ष के प्रारंभ से ही मैं नियमित रूप से अध्ययन करता रहा हूँ और जो कुष समझ में नहीं आता था, उसे विषयाध्यापक से बिना झिझक पूछ लेता था। मैंने अपनी नियमिंत दिनचर्या बना रखी थी। सभी विषयों को समान महत्व देते हुए, समान समय देता था। ईश्वर की कृपा से तथा आपके आशीर्वाद से मेरे सभी प्रश्न-पत्र विगत वर्षों की अपेक्षा अत्यधिक वेहतर हुए हैं। मुझे पूरा विश्वास है कि मैं संपूर्ण विद्यालय में अपने वर्ग में सर्वप्रथम स्थान प्राप्त करूंगा। मुझ़े यंह भी आशा है कि मुझे सभी विषयों में विशेष योग्यता प्राप्त होगी।
मेरी इस सफलता में आपके उचित मार्गदर्शन का बहुत महत्वपूर्ण स्थान है।
मुझ़े आशा है कि आप भविष्य में भी इसी प्रकार मेरा पथ प्रदर्शन करते रहेंगे। शेष कुशल हैं। माताजी को नमस्कार तथा छोटी बहन को प्यार।
सधन्यवाद,
आपका पुत्र
अनिल
10. अपने मित्र को पत्र लिखिए, जिसमें परीक्षा में असफल होने पर हौसला बनाए रखने की बात कही गई हो।
17-विजय नगर,
दिल्ली।
20 मई, 2002
प्रिय मित्र अविनाश,
नमस्ते।
तुम्हारा पत्र मिले बहुत समय हो गया है। इस बार परीक्षा में असफल होने पर तुम्हें जो आघात पहुँचा है, मेरे लिए उसका अनुमान लगा पाना असंभव नहीं है। मुसे मालूम है कि तुमने परीक्षा में सफलता प्राप्त करने के लिए जी जोड़ कोशिश की थी। परन्तु परिश्रम के उपरांत भी तुम परीक्षा में असफल रहे, यह भाग्य की विडंबना ही है। तुम्हें इस असफलता से निराश या हतोस्साहित नहीं होना चाहिए क्योंकि कर्मवीर व्यक्ति रास्ते में आने वाली बाधाओं से या क्षणिक असफलताओं से नहीं घबराते अपितु दुगुने उत्साह से अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए प्रयत्न में लग जाते हैं।
अतः तुम भी निराशा की भावना को त्याग कर, पूरे उत्साह से, मन लगाकर पढ़ाई में अभी से जुट जाओ। तुम तो मनुष्य हो और मनुष्य कभी हार नहीं मानता। लगन से किया गया परिश्रम कभी भी व्यर्थ नहीं जाता। यदि तुम आगामी परीक्षा की तैयारी मन लगाकर करोगे तो सफलता अवश्य तुम्हारे कदम चूमेगी। अपने माता-पिताजी को मेरा प्रणाम कहना।
सधन्यवाद,
तुम्हारा शुभचिंतक
रमेश कुमार
11. अभिलाष के बड़े भाई ने जन्म-दिवस के उपहार स्वरूप उसे एक घड़ी भेजी है। अभिलाष की ओर से बड़े भाई को कृत्जता-न्त्रापन का एक पत्र लिखिए।
ए-1102, पश्चिमी पटेल नगर,
नई दिल्ली-110 008′
आदरणीय भाई साहब,
सादर नमस्कार।
आपके दूवारा मेरे जन्म-दिवस के उपलक्ष्य में उपहार-स्वरूप भेजी गई घड़ी मुझे प्राप्त हो गई है। घड़ी को पाकर मुझे इतनी प्रसन्नता हुई है कि मैं उसका वर्णन नहीं कर पा रहा हूँ। जन्म-दिवस के अवसर पर यद्यपि मुझ़े अनेक उपहार मिले किंतु उन सबमें घड़ी मेरे लिए अत्यन्त उपयोगी है। घड़ी की सहायता से में अपनी दिनचर्या का निर्माण करने में सफल हो जाऊँगा। परीक्षा के दिनों में भी यह मेरी सहायता करेगी। मेरे मित्रों ने भी इसे बहुत पसंद किया है।
आपके दूवारा जन्म-दिवस पर उपहार-स्वरूप भेजी गई घड़ी के लिए मैं अत्यन्त आभारी हूँ। आशा है भाभी प्रसन्न व स्वस्थ होंगी।
सधन्यवाद,
आपका अनुज,
अभिलाष
12. बड़ी बहिन की ओर से छोटे भाई को, खर्चीले फैशन की होड़ छोड़कर परिश्रम करने की सलाह देते हुए एक पत्र लिखिए।
ई-210, शालीमार बाग,
नई दिल्ली-110088
2 जनवरी, 2002
प्रिय नीरज,
सप्रेम नमस्ते।
कल ही पिताजी को तुम्हारा लिखा हुआ पत्र मिला। तुमने इस पत्र में उनसे बारह सौ रुपए भेजने के लिएं लिखा है। मेरी समझ में नहीं आता कि अभी यहाँ से गए कुछ दिन ही हुए हैं, एकाएक तुम्हें बड़ी राशि की क्या आवश्यकता पड़ गई। यहाँ से जाते समय तुम जेब खर्च के अतिरिक्त अपनी आवश्यकता की सभी वस्तुएँ ले गए थे। ऐसा प्रतीत होता है कि दूसरों की देख़ा-देखी तुम्हें भी अनावश्यक खर्च करने की आदत पड़ गई है।
प्रिय भैया, तुम तो अच्छी तरह जानते हो कि मनुष्य की इच्छाएं असीमित हैं और साधन सीमित। तुम्हें पता ही है कि पिताजी चार सदस्यों वाले परिवार का पालन-पोषण, इस महंगाई के युग में जैसे-तैसे कर रहे हैं। व्यर्थ के फैशन के चक्कर को छोड़कर, मितव्ययता को अपनाइए और परिश्रम करके अपने भविष्य का निर्माण करो। ‘सादा जीवन और उच्च विचार’ के सिद्धान्त को अपनाते हुए भली-भाँति शिक्षा ग्रहण करके एक योग्य व्यक्ति बनो। मुझे पूरी आशा है कि तुम मेरी बात को मानकर उस पर आचरण करोगे।
अपने स्वास्थ्य एवं पढ़ाई का ध्यान रखोगे और समय-समय पर अपनी कुशलता के संबंध में पत्र लिखते रहोगे।
तुम्हारी प्यारी बहन
ऋतु
13. अपने मित्र को पत्र लिखकर बताइए कि उसकी विधवा माँ किस प्रकार परिश्रम करके उसकी पढ़ाई का खर्चा भेजा करती है।
25, कस्तूरबा गाँधी नगर,
दिल्ली।
25 अगस्त, 2002
प्रिय मित्र राजेश,
सप्रेम नमस्ते!
तुम्हारा पत्र मिला, पढ़कर समाचार ज्ञात हुआ। यह जानकर हार्दिक प्रसन्नता हुई कि तुमने दसवीं कक्षा में प्रथम स्थान प्राप्त किया है।
तुम्हें यह जानकर अत्यधिक प्रसन्नता होगी कि तुम्हारी माताजी को इससे अत्यन्त प्रसन्नता हुई है। उन्होंने इस खुशी में मिठाई बाँटी है। तुम्हें तो पता ही है कि जब तुम छोटे ही थे तो तुम्हारे पिताजी का स्वर्गवास हो गया था। घर का खर्चा चलाने का कोई साधन नहीं था। तब भी तुम्हारी माताजी ने हिम्मत नहीं हारी और दिन-रात लोगों के कपड़े सीकर तुम्हारा पालन-पोषण किया। अब वे तुम्हारी शिक्षा का बोझ अपने मजबूत कंधों पर उठाए हुए हैं। इसके लिए उन्हें अतिरिक्त परिश्रम करना पड़ता है। आधी रात लक मशीन पर बैठे रहना तो उनका प्रतिदिन का काम है। बीमारी के दिनों में भी वे अपने स्वास्थ्य की अपेक्षा काम को अधिक महत्त्व देती हैं। उनकी हार्दिक इच्छा है कि उसका पुत्र डॉक्टर बनकर, अपने स्वर्गवासी पिता की इच्छा को पूर्ण करेगा, जिससे उनकी आत्मा को शांति मिलेगी। उन्हें तुम से बड़ी-बड़ी आशाएं एवं आकांक्षाएं हैं।
अतः मुझे आशा ही नहीं, वरन पूरा विश्वास है कि मेरा मित्र, अपनी विधवा माँ के स्वप्नों को साकार करने के लिए सजग होकर कठिन परिश्रम करेगा, जिससे भविष्य में भी वह कक्षा में प्रथम स्थान प्राप्त करके, अपना तथा अपनी माताजी का भविष्य उज्ज्वल करेगा।
शेष सब कुशल हैं। अपने मित्रों को मेरा नमस्कार कहना। तुम्हारे पत्र की प्रतीक्षा में
तुम्हारा अभिन्न मित्र
रमण लाल
14. विदेश से लौटने वाले मित्र को पत्र लिखकर विदेशी वस्तु लाने के लिए मना कीजिए।
26, खाइलैण्ड मार्किट
अजमेर (राजस्थान)
दिनांक 23-2-2002
मित्रवर अशोक,
नमस्ते।
कल ही तुम्हारा पत्र मिला है। यह जानकर अत्यधिक प्रसन्नता हुई है कि तुम अपना दो वर्ष का कार्यक्रम समाप्त करके, मई के दूसरे सप्ताह में स्वदेश लौट रहे हो। तुमने मुझसे यह जानने की इच्छा व्यक्त की है कि कौन-सी विदेशी वस्तु मेरे लिए लाओगे। तुम्हारी इस सद्भावना का मैं हृदय से अत्यन्त आभारी हूँ।
तुम्हें शायद यह मालूम नहीं है कि मैंने दो वर्ष पूर्व ही विदेशी वस्तुओं का प्रयोग न करने का संकल्प कर लिया था। विदेशी वस्तुओं के आकर्षण से ही हमारे देश में तस्करी को बढ़ावा मिला है। इस तस्करी ने एक ओर जहाँ देश की अर्थव्यवस्था पर प्रभाव डाला है, वहीं दूसरी ओर कानून और व्यवस्था की समस्या भी उत्पन्न कर दी है। देश में काला धन बढ़ता जा रहा है। सरकार को तस्करी रोकने के लिए अपार खर्च करना पड़ रहा है। अगर यही धन उद्योगों की स्थापना और जनता के जीवन-स्तर को सुधारने के लिए प्रयोग किया जाए तो हमारा देश और अधिक प्रगति कर सकता है। अतः मेरे लिए कोई भी विदेशी वस्तु न लाना।
मैं तुमसे भी अनुरोध करता हूँ कि तुम अपने लिए भी कोई विदेशी वस्तु नहीं खरीदना। अपने देश में ही ऐसी वस्तुओं का उत्पादन होने लगा है जो विदेशी वस्तुओं से कहीं ज्यादा अच्छी होती हैं। मैं विदेशी वस्तुओं का प्रयोग करने वालों को राष्ट्रघाती तथा देशद्रोही समझता हूँ। विदेशी वस्तुओं को अपनाने से हमारे उद्योग-धंधों पर प्रभाव पड़ता है तथा बेरोजगारी को बढ़ावा मिलता है।
अतः मैं एक बार फिर तुमसे अनुरोध करता हूँ कि मेरे लिए कोई भी विदेशी वस्तु मत लाना। मेरी इस बात को अन्यथा न लेना। ईश्वर से प्रार्थना करता हूँ कि तुम्हारी यह यात्रा सफल हो। शेष मिलने पर।
तुम्हारा मित्र,
शिशिर
15. अपनी पढ़ाई और अपने छात्राबास-जीवन के संबंध में अपने मित्र को पत्र लिखिए।
संस्कृति छात्रावास
4120, पहाड़ी धीरज,
सदर बाजार,
दिल्ली- 110009
12 अगस्त, 2002
प्रिय मित्र श्रीनिवास,
नमस्ते।
तुम्हारा पत्र मिला। तुमने पत्र में मेरी पढ़ाई और छात्रावासीय जीवन के संबंध में जानना चाहा है।
मेरी पढ़ाई अत्यन्त सुचारू रूप से चल रही है। यहाँ सभी कुछ सभी नियमित है। कक्षा में जो कुछ पढ़ाया जाता है, उसे ध्यान से सुनता हूँ। घर पर करने को जो कार्य दिया जाता है, उसे अवश्य पूरा करता हूँ। प्रातःकाल चार बजे उठकर याद करने का काम करता हूँ। जो कुछ समझ में नहीं आता उसे विषयाध्यापक से बिना झिझक के पूछ लेता हूँ। रात बारह बजे तक पढ़ता हूँ। अभी हुई मासिक परीक्षा में मुझे कक्षा में प्रथम स्थान प्राप्त हुआ है। अतः सामान्य पढ़ाई ठीक चल रही है। छात्रावास के कमरे में हम दो छात्र हैं। दोनों सहपाठी हैं। दोनों के बिचार परस्पर मिलते हैं। इसलिए हम दोनों मिलकर पढ़ते हैं। खेलने के समय खेलने जाते हैं, विश्राम के समय आराम करते हैं। दोनों एक-दूसरे की रुचियों और इच्छाओं का ध्यान रखते हैं। छात्रावास में रहने वाले अन्य छात्र भी परस्पर मित्र हैं। एक-दूसरे की सभी संभव सहायता करते हैं। यहाँ छात्रावास में मुझे कोई कष्ट नहीं है।
इस तरह मेरा छात्रावासीय-जीवन बहुत अनुशासित एवं अच्छा है। सभी कुछ निश्चित समय पर नियमानुसार होता है। नियमितता के कारण स्वास्थ्य भी ठीक रहता है। पढ़ाई के लिए अत्यन्त शांतमय वातावरण उपलब्ध है।
अपने माता-पिताजी को मेरा अभिवादन कहना।
तुम्हारा मित्र,
राकेश शर्मा
16. किसी पर्वतीय स्थान का वर्णन करते हुए अपने मित्र को एक पत्र लिखिये कि वह भी कुछ दिनों के लिये तुम्हारे पास आ जाये।
2150 श्रीनगर,
कश्मीर
25 मई, 2002
प्रिय मित्र नरेंद्र,
सप्रेम नमस्ते।
आशा है कि तुम प्रसन्न व स्वस्थ होंगे। तुम्हारे पत्र से यंह जानकर अत्यधिक प्रसन्नता हुई है कि तुम्हारी परीक्षा समाप्त हो गई हैं और स्कूल 15 जुलाई तक ग्रीष्मावकाश के लिए बन्द हो गया है।
दिल्ली में तो आजकल तापमान बहुत बढ़ गया होगा। गर्मी के दिनों में बिजली की कटौती भी प्रारंभ हो गई होगी। मेरी तथा मेरे माता-पिता की बहुत दिनों से यह इच्छा है कि तुम्हें कशमीर भ्रमण के लिए बुलाया जाए। अतः अब तुम अविलंब यहाँ चले आओ ।
जैसा कि तुम्हें ज्ञात है, कश्मीर संसार के सुंदरतम स्थानों में से एक है। तरह-तरह के फूलों से लदी कश्मीर घाटी का सींदर्य देखते ही बनता है। कल-कल बहते झरने तथा ऊँचे-ऊँचे आकाश से बातें करते देवदार के वृक्ष और सेब, आडू, बादाम, चेरी आदि फलों से लदे पेड़ अनायास ही लोगों को अपनी ओर खींच लेते हैं।
निशांत बाग तथा शालीमार बाग तो दर्शनीय हैं ही-डल झील में तैरते शिकारों का आनंद लेना तो बहुत दिनों तक कश्मीर की याद मन में ताजा रखते हैं। बर्फ से ढकी पर्वतों की चोटियाँ मन को विभोर कर देती हैं तो माता वैष्णो देवी के दर्शन से आत्मा को शांति प्राप्त होती है।
कश्मीर अपने नैसर्गिक सौंदर्य के लिए प्रसिद्ध है। यहाँ पर प्रकृति ने अपनी अपार सुषमा को मानो एकत्र कर दिया है। अतः मुझे पूरा विश्वास है कि तुम अवश्य ही मेरे निमंत्रण को स्वीकार करोगे। हम सभी तुम्हारी प्रतीक्षा कर रहे हैं। आने से पूर्व यहाँ आने की तिथि से अवगत कराना, जिससे मैं तुम्हें लेने स्टेशन पर आ सकूँ। अपने आने की सूचना यथाशीघ्र भेजना। अपने माता-पिता को मेरा अभिवादन कहना।
तुम्हारा अभिन्न मित्र
अब्दुल रहमान
17. अपने मित्र को उसके जन्म-दिवस के अवसर पर एक बधाई-पत्र लिखिये।
69-न्यू कालोनी
बूँदी, कोटा (रजस्थान)
28 नवंबर, 2002
प्रिय मित्र लोकेश,
सप्रेम नमस्ते।
मुझे तुम्हारा पत्र मिला। मुझे यह जानकर अत्यन्त प्रसन्नता हुई है कि 9 दिसंबर को तुम्हारा जन्मदिन है और इस अवसर घर तुमने मित्रों को प्रीतिभोज देने का निर्णय किया है।
इस अवसर पर मेरी ओर से अग्रिम बधाई स्वीकार करो क्योंकि मैं इस अवसर पर उपस्थित होने में असमर्थ हूँ, कारण-उनदिनों मेरी मासिक परीक्षाएँ चल रही होंगी। जिस दिन तुम्हारा जन्मदिन है, उसी दिन मेरी अंग्रेजी की परीक्षा है। मैं इस अवसर पर एक छोटा-सा उपहार डाक द्वारा भेज रहा हूँ, कृपया आप इसे स्वीकार करें।
अपने माता-पिता को मेरी ओर से अभिवादन करना। बड़ी दीदी को नमस्ते। पर एक बात का ध्यान रखना परीक्षा समाप्त होते ही मैं जन्म-दिन की मिठाई खाने अवंश्य आऊँगा।
एक बार पुनः इस शुभावसर पर बधाई स्वीकार करें। परमपिता परमेश्वर से प्रार्थना है कि वह तुम्हें चिरायु प्रदान करे।
तुम्हारा अभिन्न मित्र,
अनिल कुमार
18. अपने मित्र को अपने बड़े भाई की शादी में सम्मिलित होने का निमंत्रण भेजिए।
32-जैन भवन,
राणा प्रताप बाग,
दिल्ली-110007
15 जुलाई, 2002
प्रिय मित्र प्रकाश,
सप्रेम नमस्कार।
मेरे बड़े भाई सुभाष का शुभ विवाह दिल्ली निवासी श्री जयसिंह की पुत्री आयुष्मती शीला रानी के साथ दिनांक 28 जुलाई, 2002 को होना निश्चित हुआ है।
इस शुभ अवसर पर आप सपरिवार सहित नीचे लिखे कार्यक्रम के अनुसार दर्शन देने की कृपा करें।
19. अपने बड़े भाई को पत्र द्वारा अपने परीक्षा-फल की सूचना दीजिए।
एफ-25, नारौजी नगर,
दिल्ली।
13 जून, 2002
आदरणीय भाई साहब,
सादर प्रणाम।
आपको यह जानकर प्रसन्नता होगी कि हमारा परीक्षा-परिणाम कल घोषित हो चुका है। मैंने दिल्ली बोर्ड की नौवीं कक्षा की परीक्षा में द्वितीय स्थान प्राप्त कियां है। मेरा चित्र भी समाचार-पत्रों में छपा है। मेरी अंग्रेजी, गणित तथा विज्ञान विषयों में ‘विशेष योग्यता’ आई है। मैं परीक्षा परिणाम से अत्यन्त प्रसन्न हूँ, किंतु इसका श्रेय में आपको ही देता हूँ क्योंकि यह ओपके मार्गदर्शन और उत्साहवद्र्धन से ही संभव हो सका है।
भाभी जी को मेरा नमस्कार व मीना को बहुत-बहुत प्यार।
आपका अनुज,
सुनील कुमार
20. मित्र को पत्र लिखकर बधाई और आमंत्रण दीजिए।
बी-30, राजौरी गार्डन,
दिल्ली -110015
22 सितम्बर, 2002
प्रिय मित्र अशोक,
सप्रेम नमस्कार।
आपका पत्र आज ही मुझे प्राप्त हुआ है। पत्र पढ़कर अत्यन्त प्रसन्नता हुई है कि हेरा-फेरी और रिश्वत के युग में मैडिकल में चुना जाना एक टेढ़ी खीर है, फिर भी अपने दृढ़विश्वास और कठोर परिश्रम के द्वारा सफलता प्राप्त की है। इसके लिए मेरी हार्दिक बधाई स्वीकार करें। मेरे माता-पिता को आपके चुने जाने की अपार प्रसन्नता हुई है, उन्होंने इस खुशी में लड्डू बाँटे हैं।
अपने साथियों में एक डाक्टर भी होगा यह मेरे लिए अत्यन्त गौरव की बात है। प्रिय मित्र अशोक, में अपने जन्म-दिवस (24 दिसंबर) के उपलक्ष्य में अपने कुछ मित्रों को सायंकाल घर पर ही प्रीति-भोज के लिए आमंत्रित कर रहा हूँ। काफी समय पहले ही में आपको सूचित कर रहा ँूू, अवश्य आना। कोई बहाना नहीं चलेगा।
हम सबकी ओर से पुनः बहुत बधाई स्वीकार करें।
आपके माता-पिता को सादर अभिवादन।
आपका प्रिय मित्र,
विमल
21. खोया हुआ बैग लौटाने के लिए आभार-प्रदर्शन करते हुए एक अपरिचित को पत्र लिखिए।
सी-144, जहाँगीरपुरी,
दिल्ली -110033
15 अप्रैल, 2002
आदरणीय हनीफ महोदय,
सादर नमस्कार।
आपके द्वारा भेजे गए सज्जन ने मेरा बैग, कल शाम मुझे पहुँचा दिया है। मेरे पास आभार व्यक्त करने के लिए शब्द नहीं हैं। बैग खो जाने से मेरे पैरों तले से जमीन खिसक गई थी। मैं कल सारे दिन परेशान रहा, स्थान-स्थान पर खोजता रहा क्योंकि उस बैग में मेंरे विद्या-वाचस्पति तक के प्रमाण-पत्र थे। कल ही मेरा प्राध्यापक पद के लिए साक्षात्कार होने वाला था। आपने मुझे बहुत बड़े मानसिक आघात से बचा लिया। इसके लिए आपको बहुत-बहुत हार्दिक धन्यवाद।
घटना इस प्रकार घटी कि मैं परसों प्रातःकाल बस द्वारा मोती नगर से केंद्रीय सचिवालय के लिए जा रहा था। वहाँ से अपने घर कालका जी पहुँचा। घर पहुँचते ही मुझे बैग का स्मरण हो आया तो सारा शरीर पसीने से तरबतर हो गया। उलटे पाँव केंद्रीय सचिवालय के बस अड्डे पर पहुँचा। जिस बस में बैठा था, उसके संवाहक और चालक से बैग के संबंध में पूछताछ की, परंतु कुछ भी पता न चला। हताश होकर घर लौट आया और अपने को कोसने लगा कि आज ही बैग में सारे प्रमाणपत्र रखने की गलती क्यों की ?
इसी मानसिक स्थिति में, उदास बैठा, कल होने वाले साक्षात्कार के संबंध में अपनी स्थिति को तोल रहा था कि आपके द्वारा . भेजे सज्जन पहुँच गए। उनके हाथ में अपना बैग देखकर, मैं उस पर झपट पड़ा। बैग मेरे हाथ में आते ही वे सज्जन अदृश्य हो गए। वे इतनी जल्दी में थे कि आपका शुभनाम और पता ही वे बता पाये। में उनका यथोचित स्वागत सत्कार भी न कर सका।
मैं पुनः आपकी इस कृपा के लिए अत्यन्त आभारी हूँ और कष्ट के लिए क्षमा माँगता हूँ।
भवदीय,
भगवान दास
श्री मोहम्मद हनीफ,
जहाँगीर पुरी
दिल्ली-110033
22. मित्र को उसके पिताजी की मृत्यु पर पत्र-लिखकर संवेदना व्यक्त कीजिए।
38, रामगंज,
अजमेर (राज.)
27 जून, 2002
प्रिय सतीश जी,
आपके पूजनीय पिता जी के आकस्मिक निधन का समाचार पाकर हम सभी स्तब्ध व शोक-विह्वल हो गए। हमें आपके और परिवार के अन्य सदस्यों के प्रति पूर्ण सहानुभूति है। विधाता की नियति के सम्मुख किसी का वश नहीं चलता। ऐसी स्थिति में विवश होकर संतोष कर लेने के अतिरिक्त मनुष्य और कुछ कर सकने में सर्वथा असमर्थ है। अब परिवार का समस्त दायित्व तुम्हारे मजबूत कंधीं पर आ गया है। आप धैर्यपूर्वक इस स्थिति का सामना करें।
आपके पिताजी का हम सब पर भी अगाध स्नेह था। आवश्यकता पड़ने पर वे सहर्ष हमारा पथ प्रदर्शन किया करते थे। उनका निःस्वार्थ अगाध स्नेह बार-बार स्मरण आ रहा है।
परम-पिता परमात्मा से प्रार्थना है कि वह दिवंगत आत्मा को शांति प्रदान करे और आप सबको इस असामयिक आघात को सहने की सामर्थ्य प्रदान करे।
आपका प्रिय मित्र,
श्याम सुंदर
श्री सतीश चंद
रामगंज
अजमेर (राजस्थान)
23. प्रधानाचार्य को एक प्रार्थना-पत्र लिखिए जिसमें कई महीने से अंग्रेजी की पढ़ाई न होने के कारण उत्पन्न कठिनाई का वर्णन किया गया हो।
सेवा में,
प्रधानाचार्य,
राजकीय वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय,
लुडलो कैसल,
दिल्ली- 110006
मान्यवर,
सविनय निवेदन यह है कि हम आपके विद्यालय के दसवीं ‘अ’ तथा ‘ब’ के छात्र हैं। हम इस प्रार्थना-पत्र के द्वारा आपका ध्यान अंग्रेजी विषय की अनियमित पढ़ाई की ओर आकर्षित करना चाहते हैं।
आज से लगभग चार मास पूर्व हमारे अंग्रेजी-भाषा के अध्यापक श्री चौहान साहब का तबादला, किसी अन्य विद्यालय में हो गया था। उनके चले जाने के पश्चात विगत चार मास से हमें अंग्रेजी पढ़ाने के लिए कोई उचित व्यवस्थां नहीं की गई है। अतः इन महीनों में अंग्रेजी की पढ़ाई नहीं हुई है।
इस विषय की पढ़ाई न होने के कारण हमारे सम्मुख कठिनाई उत्पन्न हो गई है। अंग्रेजी में छात्र साधारणतया वैसे ही कमजोर रहते हैं और ऊपर से पढ़ाई न हो तो, उस स्थिति का आप सहज अनुमान लगा सकते हैं।
हमारी बोर्ड की परीक्षाओं का समय निकट आता जा रहा है और हमारा पाठ्यक्रम अभी आधा भी पूरा नहीं हुआ है। हम बिना अंग्रेजी की पढ़ाई के बोर्ड की परीक्षा में सफल हो पाएंगे, इसमें संदेह है।
अतः हमारी आपसे प्रार्थना है कि हमारी अंग्रेजी की पढ़ाई का समुचित प्रबंध करके कृतार्थ करें, जिससे विद्यालय की प्रतिष्ठा भी बनी रहे और हमारा अमूल्य वर्ष भी व्यर्थ न जाए।
सधन्यवाद,
दिनांक 2 दिसंबर, 2001
आपके आज्ञाकारी छात्र,
दसवीं, अ-ब,
24. शुल्क (फीस) माफी के लिए प्रधानाचार्य को एक पत्र लिखिए।
सेवा में,
प्रधानाचार्य महोदय,
जैन समनोपासक वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय,
सदर बाजार,
दिल्ली- 110006।
मान्यवर,
सविनय निवेदन यह है कि मैं आपके विद्यालय का दसवीं ‘ए’ का छात्र हूँ। मेरे पिताजी चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारी हैं। उनकी मासिक आय केवल 5000 रु. है जिसमें 1500 रुपये मकान के किराए के रूप में निकल जाते हैं। मेरे दो अन्य भाई भी स्कूल में पढ़ते हैं। महंगाई भी अत्यधिक है। ऐसी स्थिति में घर का खर्चा ही बड़ी कठिनाई से चल पाता है।
अतः मेरे पिता जी मेरी फीस देने में असमर्थ हैं। कृपया मेरी स्कूल फीस (शुल्क) माफ करके कृतार्थ करें।
मैं पिछली वार्षिक परीक्षा में कक्षा में प्रथम स्थान पर रहा हूँ। में आपको विश्वास दिलाता हूँ कि शुल्क माफ होने पर कठोर परिश्रम करके बार्ड की परीक्षा में प्रथम स्थान प्राप्त करके विद्यालय का नाम रोशन करूंगा। यदि मेरी फीस माफ नहीं हुई तो मेरे लिए आगे पढ़ाई जारी रखना असंभव हो जाएगा।
अतः मैं आपसे पुनः अनुरोध करता हूँ कि मेरा मासिक शुल्क माफ करने की कृपा करें।
सधन्यवाद,
आपका आज्ञाकारी शिष्य,
धर्मपाल
25. एक दिन के अवकाश के लिए प्रधानाचार्य को एक प्रार्थना-पत्र लिखिए।
सेवा में,
प्रधानाचार्य महोदय,
राजकीय वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय,
अशोक विहार, दिल्ली।
मान्यवर,
सविनय निवेदन यह है कि कल रात भयंकर वर्षा के कारण, मैं पूरी तरह भीग गया था। फलस्वरूप मुझे बुखार हो गया है। डाक्टर ने मुझे पूर्ण आराम करने की सलाह दी है। अतः आज मैं विद्ययालय में उपस्थित होने में असमर्थ हूँ। अतः मुझे एक दिन का अवकाश प्रदान कर कृतार्थ करें।
सधन्यवाद,
आपका आज्ञाकारी छात्र,
क.ख.ग.
दिनांक 17 जुलाई, 2002
26. प्रधानाचार्य को प्रमाण-पत्र के लिए एक प्रार्यना पत्र लिखिए।
सेवा में,
प्रधानाचार्य महोदय,
राजकीय वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय,
तुलसी नगर, दिल्ली।
मान्यवर,
सविनय निवेदन यहु है कि मैं आपके विद्यालय की नौवीं कक्षा में पढ़ता हूँ। मैंने 2001-2002 के सत्र में आठवीं कक्षा उत्तीर्ण कर ली है। अब मुझे किसी अन्य विद्ययालय में दाखिला लेना है। अतः मुझे आठवीं पास का प्रमाण-पत्र देने की कृपा करें। सधन्यवाद,
आपका आज्ञाकारी शिष्य, क.ख.ग.
11 मई, 2002
27. पुस्तक विक्रेता को पुस्तकें मंगवाने के लिए एक आदेश-पत्र लिखिए।
सेवा में,
महाप्रबंधक,
प्रभात प्रकाशन,
नई सड़क, दिल्ली-110006
प्रिय महोदय,
मुझे अपने मित्रों के जन्मदिवसों के अवसर पर उपहार स्वरूप कुछ पुस्तकें भेंट करनी हैं। कृपया नीचे दिए विवरण के अनुसार प्रत्येक पुस्तक के नवीनतम संस्करण की दो-दो प्रतियाँ, उचित कमीशन काटकर, यथाशीघ्र वी.पी.पी. द्वारा भेजने का कष्ट करें। पार्सल मिलते ही छुड़ा लिया जायेगा।
भवदीय,
अभिलाभ वर्मा
3889/12 कन्हैया नगर
दिल्ली-110035
28. छात्रवृत्ति के लिए शिक्षा निदेशक, तकनीकी विभाग को एक आवेदन पत्र लिखिए। सेवा में,
निदेशक (तकनीकी विभाग),
दिल्ली प्रशासन,
दिल्ली
विषय-छात्रवृत्ति के लिए आवेदन-पत्र।
मान्यवर महोदय,
सादर अभिवादन। निवेदन यह है कि इस वर्ष मैंने तकनीकी संस्थान, पूसा में ‘इलेक्ट्रिकल’ प्रमाण-पत्र के पाठृयक्रम में प्रवेश लिया है। आपके कार्यालय के सूचना पट पर दिनांक 25 अगस्त, 2002 को दी गई सूचना के प्रत्युत्तर में विशेष छात्रवृत्ति के लिए, आपके विचारार्थ यह आवेदन-पत्र प्रस्तुत कर रहा हूँ। मेरी शैक्षिक और अन्य गतिविधियों से संबंधित आवश्यक जानकारी इस प्रकार है-
मेरे अतिरिक्त मेरी दो छोटी बहनें क्रमशः आठवीं और नौवीं कक्षा में पढ़ रही हैं। आशा है कि आप इस संबंध में सहानुभूतिपूर्वक विचार करेंगे और अपने निर्णय से शीघ्र सूचित करेंगे।
निवेदक,
दिनांक : 28 अगस्त 2000
किशोर साहू .
42, बंगाली मार्किट दिल्ली।
29. दिल्ली दूरदर्शन के निदेशक को दिल्ली दूरदर्शन केंद्र से प्रसारित कार्यक्रमों को रोचक बनाने के लिए पत्र लिखकर अपने सुझाव दीजिए।
बी-247, दिलशाद गार्डन,
शाहदरा, दिल्ली।
दिनांक : 10 मई, 2002
निदेशक महोदय,
दिल्ली दूरदर्शन आकाशवाणी भवन,
संसद मार्ग,
नई दिल्ली।
मान्यवर,
मैं दिल्ली दूरदर्शन पर दिखाये जाने वाले कार्यक्रमों का नियमित दर्शक हूँ। मुझे इन कार्यक्रमों को देखकर लगा कि इन्हें और अधिक रोचक, मनोरंजक एवं शिक्षाप्रद बनाया जा सकता है। आपके सबसे अधिक लोकप्रिय कार्यक्रम चित्रहार और चलचित्र भी दर्शकों को निराश करते जा रहे हैं। कारण-चित्रहार में जो गाने दिखाए जाते हैं, उनमें न तो कर्णप्रिय संगीत होता है, न उसमें भाव होते हैं। होता है केवल शोर-शराबा, बेतुकी उछल-कूद या बेवकूफी भरी हरकतें। ऐसे गानों की इन कार्यक्रमों में दिखाना बंद कर दिया जाये। नये गानों के साथ-साथ पुराने लोकप्रिय गानों को भी दिखाया जाना चाहिए।
फिल्म प्रदर्शन के समय में परिवर्तन कर देना अति आवश्यक है क्योंकि सरकारी कर्मचारी, दुकानदार, मजदूर इन्हें नहीं देख पाते। दुकानदारों के व्यापार पर, बच्चों की पढ़ाई पर, सरकारी कार्यालयों के अनुशासन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है। अतः इसका समय रात्रि के आठ बजे कर दिया जाए।
सामाजिक बुराइयों, जनता के अधिकार-कर्त्यव्यों तथा देश की प्रगति पर भी अधिक रोचक कार्यक्रम दिए जाने चाहिए। प्राचीन इतिहास की जानकारी देने वाले कार्यक्रमों को शामिल करके कार्यक्रमों को अधिक रोचक, शिक्षाप्रद और मनोरंजक बनाया जा सकता है।
आशा है आप मेरे सुझावों पर विचार करेंगे।
भवदीय
नेंदें चावला
30. परीक्षा के दिनों में लाउडस्पीकरों के कारण पढ़ाई में होने वाली बाधा की ओर ध्यान दिलाते हुए किसी समाचार-पत्र के संपादक को पत्र लिखिए।
परीक्षा भवन
दिल्ली।
16 मार्च, 2002
संपादक,
नवभारत टाइम्स,
बहादुरशाह जफर मार्ग,
नई दिल्ली- 110002
मान्यवर,
मैं आपके प्रतिष्ठित समाचार-पत्र के माध्यम से परीक्षा के दिनों में लाउडस्पीकरों के अंधाधुंध प्रयोग से छात्रों को होने वाली कठिनाई की ओर लोगों का ध्यान दिलाना चाहता हूँ।
आजकल दसवीं व बारहवीं कक्षा की बोर्ड की परीक्षाएँ हो रही हैं। लगभग संपूर्ण दिल्ली में लाउडस्पीकरों का शोर दिन प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है। लाउडस्पीकरों का अंधाधुंध प्रयोग विवाहोत्सवों, जागरणों में बहुत ऊँची आवाज में किया जा रहा है। इसके अतिरिक्त मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारों के लाउडस्पीकरों ने हम छात्रों का अध्ययन करना दूभर कर रखा है।
परीक्षा के इन दिनों में लाउडस्पीकरों का प्रयोग विद्यार्थियों की एकाग्रता को भंग कर देता है जिसके कारण परीक्षा के लिए आवश्यक प्रश्नों के उत्तरों को भी स्मरण करना कठिन हो जाता है। लाउडस्पीकरों की ऊँची आवाज छात्रों के अध्ययन में तो बाधा उत्पन्न करती ही है। फलस्वरूप प्रश्न पंत्र हल करते समय भी शरीर-स्फूर्तिहीन बना रहता है।
अतः परीक्षाओं को ध्यान में रखते हुए मार्च और अप्रैल के महीनों में प्रशासन को लाउड-स्पीकरों के प्रयोग पर प्रतिबंध लगा देना चाहिए। यदि उनके प्रयोग की अनुमति देनी भी पड़े तो निश्चित समय के लिए तथा धीमी आवाज में बजाने की अनुमति दी जानी चाहिए।
आशा है कि आप मेरे इस पत्र को अपने समाचार-पत्र में स्थान देकर, हम छात्रों को कृतार्थ करेंगे।
धन्यवाद
भवदीय
क.ख.ग.
31. अपने क्षेत्र के डाकपाल को इस आशय का पत्र लिखिए कि आपके क्षेत्र में डाक का वितरण ठीक प्रकार से नहीं हो रहा है।
परीक्षा भवन,
दिल्ली- 110006
26 मई, 2002
सेवा में,
डाकपाल महोदय,
त्रिनगर, दिल्ली-110035।
मान्यवर,
मैं आपंका ध्यान इस पत्र के माध्यम से इस क्षेत्र में डाक-वितरण में हो रही अनियमितताओं की ओर आकर्षित करना चाहता हूँ। गत दो माह से हमारे आनंद नगर क्षेत्र में डाक-वितरण सुचारू रूप से नहीं हो रहा है। इस क्षेत्र में कार्यरत डाकिया अपने कर्त्तव्य का पालन ठीक ढंग से नहीं कर रहा है। वह कई-कई दिन की डाक एक साथ वितरित कर रहा है। कभी कभी अत्यन्त आवश्यक पत्र मिल ही नहीं पाते। किसी व्यक्ति का पत्र किसी दूसरे व्यक्ति के घर में डाल देता है। कभी वह गली में खेलते हुए बच्चों के हाथ में दे जाता है या फिर खुले बरामदे में फैंक जाता है। प्रायः इस क्षेत्र के प्रत्येक घर पर लैटर-बाक्स लगे हुए हैं, फिर भी वह पत्रों को बाहर फैंक जाता है और पत्र पानी आदि में पड़कर नष्ट हो जाते हैं।
आजकल पत्रों का अत्यधिक महत्त्व है। समय पर पत्र न मिलने से कई बार अनर्थ हो जाता है। किसी की साक्षात्कार की तिथि निकल जाती है तो किसी का विवाह में सम्मिलित होने का अवसर निकल जाता है, जिससे संबंधियों में परस्पर मन मुटाव हो जाता है।
यह देखा गया है कि प्रत्येक त्योहार पर डाकिया कुछ ‘देने’ को बाध्य करता है। ऐसा न करने पर पत्र इधर-उधर डाल देता है। नववर्ष के अवसर आये उपहार जैसे डायरी, कैलेण्डर आदि को तो गायब कर देता है। डाक वितरण की अनियमितताओं की शिकायत करने पर अभद्र व्यवहार करता है। इस डाकिए से क्षेत्र के लगभग सभी व्यक्तियों को शिकायत है। अनेक लोगों ने शिकायत भी की है।
अतः आपसे नम्र निवेदन है कि संबंधित पोस्टमैन को यथोचित निर्देश देकर या उसका तबादला करके, इस क्षेत्र में डाक वितरण को सुचारू बनाने का कष्ट करें। आपकी अति कृपा होगी।
भवदीय
क.ख.ग.
आनंद नगर, त्रिनगर
दिल्ती-110035
32. संपादक को एक पत्र लिखिए जिसमें सामान्य नागरिकों की कठिनाइयों का वर्णन किया गया हो।
सेवा में,
प्रधान संपादक,
नवभारत टाइम्सं,
बहादुरशाह जफर मार्ग,
नई दिल्ली-110001
प्रिय महोदय,
मैं आपके लोकप्रिय व प्रतिष्ठित पत्र द्वारा अपने निम्नांकित विचार दिल्ली नगर के संबंधित अधिकारियों तक पहुँचाना चाहता हूँ। आशा है कि आप इन्हें अपने पत्र में शीप्र स्थान देने की कृपा करेंगे।
1. नागरिक आपूर्ति विभाग ने उचित दर की दुकानों के माध्यम से उपभोक्ताओं की सुविधाओं के लिए, दैनिक उपयोग की वस्तुओं की वितरण प्रणाली में यद्यपि सुधार किया है तथापि इन दुकानों पर मिलने वाली वस्तुओं के स्तर में कोई सुधार नहीं हुआ है। इन दुकानों से जो गेहूँ वितरित किया जाता है उसमें कंकड़-पत्थर मिले होते हैं, वह भी उचित समय पर कई बार नहीं मिल पाता। पाम आयल तथा बटर आयल के तो दुकानों पर दर्शन ही नहीं होते। दुकानदार दबाव डालकर खाली रसीद पर उपभोक्ता के हस्ताक्षर करवा लेते हैं तथा सारे तेल को काले-बाजार में बेच देते हैं। राशनिंग अधिकारी का ध्यान आकर्षित करने पर भी कुछ समाधान नहीं निकलता, क्योंकि इन अधिकारियों को दुकानदारों से ‘महीना’ बंधा हुआ है। अतः नागरिक आपूर्ति विभाग को गेहूँ के स्तर को सुधारने और विभिन्न चीजों के उचित वितरण के लिए सख्त कदम उठाने चाहिए।
2. ऐसी एक अन्य समस्या नगर में भीड़भाड़ वाले सार्वजनिक स्थानों पर जन-सुविधाओं और उनकी सफाई की है। अनेक बड़े बाजारों में पुरुषों के लिए तो जन-सुविधाएँ उपलब्ध हैं लेकिन महिलाओं के लिए उनका उचित प्रबंध नहीं है। यदि हैं भी तो उनमें ताले लगे रहते हैं या फिर वे इतने गंदे होते हैं कि उनमें घुसना दूभर हो जाता है। यही हाल पुरुषों की जन-सुविधाओं का है। पानी की उचित व्यवस्था तो किसी में भी नहीं है। कई स्थानों पर वहाँ नियुक्त स्थाई कर्मचारी उनका उपयोग करने वाले व्यक्ति से रुपया-दो रुपया तक वसूल करता है। अतः विवश होकर लोग अपना मल-मूत्र त्यागने के लिए अंधेरे या एकांत कोने की तलाश करना पड़ता है। जन-सुविधाओं के अभाव के कारण महिलाओं और बच्चों को कितनी कठिनाई का सामना करना पड़ता है, इसका अनुमान सहज ही लगाया जा सकता है।
ऐसी असुविधाओं के रहते हुए हम कर्त्तव्यपरायणता और जनसेवा का दम कैसे भर सकते हैं। क्या संबंधित अधिकारी इस ओर ध्यान देंगे ?
भवदीय
रजनीकांत
62, राणाप्रताप बाग,
दिल्ली- 110007
12 अप्रैल, 2002
33. गलत माल मिलने की शिकायत करते हुए खेल का सामान बेचने वाले प्रतिष्ठान क्रीड़ा-विहार को एक पत्र लिखिए। सेवा में,
महाप्रबंधक महोदय,
क्रीड़ा विहार
जालंधर (पंजाब)
प्रिय महोदय,
निवेदन यह है कि आपने गुप्ता खेल भण्डार, नई दिल्ली 110002 को दिनांक 23-4-2002 को बिल्टी द्वारा जो सामान भेजा है वह हमारे आर्डर नं. 187, दिनांक 20-3-2002 के अनुसार गलत है। हमने इस आर्डर में आपको क्रिकेट गेंदों का आर्डर दिया है जबकि आपने हॉकी की गेंदें भेज दी हैं। छः क्रिकेट बल्लों के स्थान पर आपने तीन ही बल्ले भेजे हैं।
आपके द्वारा गलत माल भेजने से हमारे व्यापार को हानि उठानी पड़ी है। अतः आपसे अनुरोध है कि आप आर्डर के अनुसार शेष माल भेजने का कष्ट करें तथा अपने गलत माल को वापस लेने के संबंध में सूचित करें।
धन्यवाद।
भवदीय
गुप्ता खेल भंडार
नई दिल्ली 110002
34. शिक्षा निदेशक के कार्यालय में क्लर्क के रिक्त पद के लिये एक प्रार्थनापत्र लिखिए।
सेवा में,
शिक्षा निदेशक,
शिक्षा-विभाग,
पुराना सचिवालय माल रोड़,
दिल्ली।
महोदय,
21. मार्च 2002 के दैनिक हिंदुस्तान टाइम्स’ में आपका विज्ञापन प्रकाशित हुआ है, जिसमें एक क्लर्क के रिक्त पद हेतु आवेदन-पत्र मांगे गए हैं। मैं इस पद के लिए अपनी सेवाएं प्रस्तुत करना चाहता हूँ।
मेरी शिक्षा संबंधी योग्यताएं इस प्रकार हैं-
1. मैंने सन् 1999 में माध्यमिक शिक्षा बोर्ड, दिल्ली से दसवीं कक्षा की परीक्षा द्वितीय श्रेणी में उत्तीर्ण की थी।
2. मुझे हिंदी तथा अंग्रेजी टाइप आती है। इस समय मेरी गति (स्पीड) 40 शब्द प्रति मिनट है।
3. पिछले एक वर्ष में में ‘दीनानाथ एण्ड कम्पनी’ में क्लर्क की हैसियत से कार्यरत हूँ।
मैं एक 20 वर्षीय, स्वस्थ और ईमानदार नवयुवक हूँ। मुझे विश्वास है कि यदि मुझे सेवा का अवसर दिया गया, तो मैं अपनी पूरी योग्यता और लगन से कार्य करके अपने अधिकारी वर्ग को संतुष्ट तथा सौंपे गए कार्यों को पूर्ण निष्ठा व ईमानदारी से कसुंगा।
प्रमाण-पत्रों तथा अनुभव-पत्रों की सत्यापित प्रतिलिपियाँ इसी पत्र के साथ संलग्न हैं।
भवदीय
कमल कुमार
ए-85, सरस्वती विहार,
दिल्ली।
दिनांक 25, मार्च, 2002
संलग्न : (1) तीन प्रमाण-पत्र
(2) एक अनुभव पत्र।