मेरी प्रिय पुस्तक पर निबंध- My Favorite Book Essay in Hindi

मेरी प्रिय पुस्तक पर निबंध- Essay on My Favorite Book in Hindi

संकेत-बिंदु –

  • प्रस्तावना
  • मार्मिक प्रसंग
  • उपसंहार
  • आदर्शवादी व्यवहार
  • पुस्तक की कथावस्तु
  • कर्तव्यबोध का संदेश
  • प्रेरणादायिनी

साथ ही, कक्षा 1 से 10 तक के छात्र उदाहरणों के साथ इस पृष्ठ से विभिन्न हिंदी निबंध विषय पा सकते हैं।

प्रस्तावना – यह हमारे देश और समस्त भारतवासियों का सौभाग्य है कि यहाँ समय-समय पर अनेक कवियों ने जन्म लिया है और अपनी कालजयी कृतियों से जनमानस का मनोरंजन ही नहीं किया, बल्कि उन्हें ज्ञान के साथ-साथ कर्म का संदेश भी दिया। इनमें से कुछ कवियों ने धर्म और भक्तिभाव को प्रेरित करने वाली कृतियों की रचना की तो कुछ ने कर्तव्यबोध और आदर्श व्यवहार की तथा कुछ ने नीति सम्मत व्यवहार करने की पर गोस्वामी तुलसीदास कृत रामचरित मानस मुझे विशेष पसंद है, क्योंकि इसमें आवश्यक एवं जीवनोपयोगी गुणों एवं मूल्यों का संगम है।

My Favorite Book Essay in Hindi

पुस्तक की कथावस्तु – रामचरित मानस की प्रमुख कथावस्तु दशरथ पुत्र श्रीराम का जीवन चरित्र है। इसमें उनके जन्म से लेकर उनके सुख-सुविधापूर्ण शासन तक का वर्णन है। बीच-बीच में अनेक उपकथाएँ इसके कलेवर में वृद्धि करती हैं।

रामचरित मानस में वर्णित रामकथा को सात सर्गों में बाँटकर वर्णित किया गया है। इन्हें बालकांड, अयोध्याकांड, सुंदरकांड, किष्किंधाकांड, अरण्यकांड, लंकाकांड और उत्तरकांड नामों से जाना जाता है। कथा का प्रारंभ ईश वंदना के दोहों, श्लोकों और चौपाइयों से शुरू होता है और राम-जन्म उनके तीनों भाइयों लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न के साथ की गई बाल-क्रीड़ा, उनकी शिक्षा-दीक्षा, विश्वामित्र के साथ राक्षसों के वध के लिए उनके संग गमन, मारीचि, सुबाहु, ताड़का वध, जनकपुर गमन, स्वयंवर में धनुषभंग करना, सीता विवाह और अयोध्या वापस लौटना, कैकेयी का राजा दशरथ से दो वरदान माँगना, राम का सीता और लक्ष्मण के साथ वन गमन, सीता हरण, हनुमान-सुग्रीव से मित्रता, बालि वध, समुद्र पर पुल बाँधकर सेना सहित लंका गमन, रावण से युद्ध, रावण को मारकर विभीषण को लंका का राजा बनाना, अयोध्या प्रत्यागमन, कुशलतापूर्वक राज्य करना, सीता को वनवास देना, लव-कुश के द्वारा अश्वमेध के घोड़े को रोकने आदि का वर्णन है।

Essay on My Favorite Book in Hindi

मार्मिक प्रसंग – रामचरित मानस में अनेक प्रसंग ऐसे हैं जिनका मार्मिक वर्णन मन को छू जाता है। राम का वनवास जाना, दशरथ का मूछित होना, समस्त प्रजाजनों का शोकाकुल होना, दशरथ का प्राणत्याग, रावण द्वारा सीता-हरण, अशोक वाटिका में राम की याद में उनका शोक संतप्त रहना, मेघनाद के साथ युद्ध में लक्ष्मण का मूछित होना, भरत मिलन प्रसंग, सीता का निष्कासन आदि प्रसंग मन को छू जाते हैं। इन अवसरों पर पाठकों के आँसू रोकने से भी नहीं रुकते हैं। आज भी दशहरे के अवसर जब रामलीला का मंचन होता है तो इन मार्मिक प्रसंगों को देखकर आँसू बहने लगते हैं।

कर्तव्यबोध का संदेश – रामचरित मानस की सबसे मुख्य विशेषता है- कर्तव्य का बोध कराना। इस महाकाव्य में राजा को प्रजा के साथ, प्रजा को राजा के साथ, मित्र को मित्र के साथ, पिता को पुत्र के साथ कर्तव्यों का वर्णन एवं उन्हें अपनाने की सीख दी गई है। एक प्रसंग के अनुसार-आज के बच्चों को उनके कर्तव्य का बोध ‘प्रातः काल उन्हें माता-पिता के चरण छूना चाहिए’ कराते हुए लिखा गया है –

प्रातकाल उठि के रघुनाथा।
मातु-पिता गुरु नावहिं माथा॥

इस कर्तव्य का उन्हें शीघ्र फल भी प्राप्त होता है। राम अपने भाइयों के साथ गुरु विश्वामित्र के घर पढ़ने जाते हैं और सारी विद्याएँ शीघ्र ही ग्रहण कर लेते हैं –

गुरु गृह पढ़न गए दोउ भाई।
अल्पकाल सब विद्या पाई ॥

आदर्शवादी व्यवहार-रामचरित मानस नामक यह पुस्तक पाठकों के मन में धर्म और भक्तिभाव का उदय तो करती है साथ ही आदर्श व्यवहार की सीख भी देती है। यह मानव को मानवोचित व्यवहार के लिए प्रेरित करती है।

राजा पर यह दायित्व होता है कि वह प्रजा का पालन-पोषण करें तथा अपने कर्तव्यों का उचित प्रकार से निर्वाह करे। इसी को याद दिलाते हुए तुलसीदास ने लिखा है –

जासु राज निज प्रजा दुखारी।
सो नृप अवस नरक अधिकारी।

आज के मंत्रियों और अफसरों के लिए इससे बड़ी सीख और क्या हो सकती है।

प्रेरणादायिनी – रामचरित मानस नामक यह पुस्तक हमें कर्म का संदेश देती है। राम ईश्वर के अवतार थे, अंतर्यामी थे, त्रिकालदर्शी थे, फिर भी उन्होंने आम इनसान की तरह हर कार्य अपने हाथों से करके एक ओर कर्म की प्रेरणा दी तो दूसरी ओर असत्य, अन्याय और अत्याचार सहन न करके उससे मुकाबला करने की प्रेरणा दी। इस महाकाव्य की एक-एक पंक्ति जीवन के सभी पक्षों को प्रेरित करती है।

उपसंहार – ‘रामचरितमानस’ की रचना को लगभग पाँच सौ वर्ष बीत गए पर इसकी लोकप्रियता में कोई कमी नहीं आई है। यह पुस्तक भारत में ही नहीं विश्व की भाषाओं में रूपांतरित की गई। इसकी अवधी भाषा, दोहा, सोरठा और चौपाई जैसे गेयता वाले छंदों के कारण यह पढ़ने में सरल सहज और सुनने में कर्णप्रिय है। इसकी लोकप्रियता का अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता है कि यह महाकाव्य हर हिंदू के घर में देखा जा सकता है।