छन्द – परिभाषा, भेद और उदाहरण : हिन्दी व्याकरण, Chhand in Hindi

Chhand (Metres)-छन्द – परिभाषा

छन्द का अर्थ एवं परिभाषा जिस काव्य में वर्ण और मात्रा-गणना, यति (विराम) एवं गति का नियम तथा चरणान्त में समता हो, उसे ‘छन्द’ कहते हैं।

‘हिन्दी साहित्य कोश’ के अनुसार-“अक्षर, अक्षरों की संख्या एवं क्रम, मात्रा, मात्रा-गणना तथा यति-गति आदि से सम्बन्धित विशिष्ट नियमों से नियोजित पद्य-रचना ‘छन्द’ Chhand कहलाती है।”

छन्द के तत्त्व

छन्दों का ज्ञान प्राप्त करने के लिए छन्दों के विभिन्न तत्त्वों के विषय में जानना परम आवश्यक है। छन्दों के मुख्य तत्त्व इस प्रकार हैं

(1) वर्ण-मुख से निकलनेवाली ध्वनि को सूचित करने के लिए निश्चित किए गए चिह्न ‘वर्ण’ कहलाते हैं। वर्ण दो प्रकार के होते हैं–

  • (क) ह्रस्व (लघु),
  • (ख) दीर्घ (गुरु)।

इनका विवेचन इस प्रकार है

(क) ह्रस्व (लघु)-

वर्ण मात्रा-गणना की प्रमुख इकाई है। लघु वर्ण एक मात्रिक होता है; यथा-अ, इ, उ, क, कि, कु। लघु का चिह्न।’ है। दो लघु वर्ण मिलाकर एक गुरु के बराबर माने जाते हैं। इसके नियम इस प्रकार हैं-

  • संयुक्ताक्षर स्वयं लघु होते हैं।
  • चन्द्रबिन्दुवाले वर्ण लघु या एक मात्रावाले माने जाते हैं; यथा-हँसना, फँसना आदि में हँ, फँ।
  • ह्रस्व मात्राओं से युक्त सभी वर्ण लघु ही होते हैं; जैसे–कि, कु आदि।
  • हलन्त-व्यंजन भी लघु मान लिए जाते हैं; जैसे-अहम्, स्वयम् में ‘म्’।

(ख) दीर्घ (गुरु)-

दीर्घ वर्ण ह्रस्व या लघु की तुलना में दुगनी मात्रा रखता है। दीर्घ वर्ण के लिए ” चिह्न प्रयुक्त होता है। मात्रिक छन्दों में मात्रा की गणना से सम्बन्धित दीर्घ वर्ण सम्बन्धी नियम इस प्रकार हैं

  • संयुक्ताक्षर से पूर्व के लघु वर्ण दीर्घ होते हैं, यदि उन पर भार पड़ता है। जैसे–दुष्ट, अक्षर में ‘दु’ और ‘अ’। यदि संयुक्ताक्षर से नया शब्द प्रारम्भ हो तो कुछ अपवादों को छोड़कर उसका प्रभाव अपने पूर्व शब्द के लघु वर्ण पर नहीं पड़ता; जैसे–’वह भ्रष्ट’ में ‘ह’ लघु ही है।
  • अनुस्वार युक्त वर्ण दीर्घ होते हैं; जैसे-कंत, आनंद में ‘कं’ और ‘न’।
  • विसर्गवाले वर्ण दीर्घ माने जाते हैं; जैसे-दुःख में ‘दुः’।
  • दीर्घ मात्राओं से युक्त वर्ण दीर्घ माने जाते हैं; जैसे-कौन, काम, कैसे आदि। यदि उनका उच्चारण लघु की तरह किया गया है तो उन्हें लघु ही माना जाएगा; जैसे–’कहेउ’ में ‘हे’। वास्तव में उच्चारण ही किसी वर्ण को दीर्घ बनाने का आधार है।।
  • कभी-कभी चरण के अन्त में लघु वर्ण भी विकल्पत: दीर्घ मान लिया जाता है। जैसे–’लीला तुम्हारी अति ही विचित्र’ में ‘त्र’ दीर्घ है।

(2) मात्रा-वर्ण के उच्चारण में जो समय व्यतीत होता है, उसे ‘मात्रा’ कहते हैं। लघु वर्ण की एक मात्रा मानी जाती है। गुरु वर्ण के उच्चारण में उससे दुगना समय लगता है, अत: उसकी दो मात्राएँ मानी जाती हैं।
(3) गति-पढ़ते समय कविता के स्पष्ट सुखद प्रवाह को गति कहते हैं।
(4) यति-छन्दों में विराम या रुकने के स्थलों को यति कहते हैं।
(5) तुक- छन्द के चरणों के अन्त में एकसमान उच्चारण वाले शब्दों के आने से जो लय उत्पन्न होती है, उसे तुक कहते हैं।
(6) शुभाक्षर-शुभाक्षर 15 हैं–क, ख, ग, घ, च, छ, ज, द, ध, न, य, श, स, क्ष, ज्ञ।
(7) अशुभाक्षर-इन्हें ‘दग्धाक्षर’ भी कहते हैं। दग्धाक्षरों को कविता के प्रारम्भ में नहीं रखना चाहिए। ये अक्षर इस प्रकार हैं–ङ्, झ, ञ्, ट, ठ, ड, ढ, ण, त, थ, ब, भ, म, र, ल, व, ष, ह। आवश्यकतानुसार इनके दोष-परिहार का भी विधान है।
(8) वर्णिक गण-वर्णिक वृत्तों में वर्षों की व्यवस्था तथा गणना के लिए तीन-तीन वर्षों के गण-समूह बनाए गए हैं। इन्हें ‘वर्णिक गण’ कहते हैं। इनकी संख्या आठ है। इनका विवरण अग्रवत् है-

इन गणों का रूप जानने के लिए ‘यमाताराजभानसलगा’ सूत्र विशेष रूप से सहायक है। गण का नाम और उसकी मात्राओं की संख्या इस सूत्र के आधार पर सरलता से ज्ञात हो जाती है; यथा-प्रारम्भ में आठ अक्षर आठ गणों के नाम हैं, उनकी मात्राओं को जानने के लिए प्रत्येक गण के वर्ण के आगेवाले दो वर्ण लिखकर उसके लघु-गुरु क्रम से मात्राओं को जाना जा सकता है; जैसे–
यगण में य मा ता = 5 मात्राएँ।

छन्द के प्रकार

छन्द अनेक प्रकार के होते हैं, किन्तु मात्रा और वर्ण के आधार पर छन्द मुख्यतया दो प्रकार के होते हैं–
(अ) मात्रिक,
(ब) वर्णवृत्त।

इनका विवेचन निम्नलिखित है

(अ) मात्रिक छन्द- मात्रा की गणना पर आधारित छन्द ‘मात्रिक छन्द’ कहलाते हैं। इनमें वर्णों की संख्या भिन्न हो सकती है, परन्तु उनमें निहित मात्राएँ नियमानुसार होनी चाहिए।

(ब) वर्णिक छन्द केवल वर्ण- गणना के आधार पर रचे गए छन्द ‘वर्णिक छन्द’ कहलाते हैं। वृत्तों की तरह इनमें गुरु-लघु का क्रम निश्चित नहीं होता, केवल वर्ण-संख्या का ही निर्धारण रहता है। इनके दो भेद हैं–साधारण और दण्डक। 1 से 26 तक वर्णवाले छन्द ‘साधारण’ और 26 से अधिक वर्णवाले छन्द ‘दण्डक’ होते हैं। हिन्दी के घनाक्षरी (कवित्त), रूपघनाक्षरी और देवघनाक्षरी ‘वर्णिक छन्द’ हैं।

वर्णिक छन्द का एक क्रमबद्ध, नियोजित और व्यवस्थित रूप ‘वर्णिक वृत्त’ होता है। ‘वृत्त’ उस सम छन्द को कहते हैं, जिसमें चार समान चरण होते हैं और प्रत्येक चरण में आनेवाले वर्गों का लघु-गुरु क्रम भारत विना सामान्य हिन्दी सौरभ – कक्षा 12 सुनिश्चित रहता है। गणों के नियम से नियोजित रहने के कारण इसे ‘गुणात्मक छन्द’ भी कहा जाता है। मन्दाक्रान्ता, इन्द्रवज्रा, उपेन्द्रवज्रा, वंशस्थ, मालिनी आदि इसी प्रकार के छन्द हैं।

(अ) मात्रिक छन्द
मात्रिक छन्दों में केवल मात्राओं की व्यवस्था होती है, वर्गों के लघु और गुरु के क्रम का विशेष ध्यान नहीं रखा जाता। इन छन्दों के प्रत्येक चरण में मात्राओं की संख्या नियत रहती है। मात्रिक छन्द तीन प्रकार के होते हैं–

  1. सम,
  2. अर्द्धसम,
  3. विषम।

मात्रिक छन्दों का उदाहरण सहित परिचय निम्नलिखित है

(1) चौपाई
परिभाषा-चौपाई सम मात्रिक छन्द है। इसमें चार चरण होते हैं और प्रत्येक चरण में 16 मात्राएँ होती हैं। अन्त में जगण और तगण के प्रयोग का निषेध है।

उदाहरण-

। । । ऽ। ऽ।। ।।ऽऽ
निरखि सिद्ध साधक अनुरागे।
सहज सनेहु सराहन लागे॥
होत न भूतल भाउ भरत को।
अचर सचर चर अचर करत को॥

-तुलसी : रामचरितमानस

स्पष्टीकरण-इस पद्य के प्रत्येक चरण में 16-16 मात्राएँ हैं; अतः यह ‘चौपाई छन्द है।

(2) दोहा
परिभाषा-यह अर्द्धसम मात्रिक छन्द है। इसमें चार चरण होते हैं। इसके पहले और तीसरे चरण में 13-13 मात्राएँ तथा दूसरे और चौथे चरण में 11-11 मात्राएँ होती हैं। इसके विषम चरणों के आदि में जगण नहीं होना चाहिए तथा सम चरणों के अन्त में गुरु-लघु होना चाहिए।

उदाहरण-

।।। ऽ। ।। ऽ।ऽ ऽ। ऽ। ।।ऽ।
लसत मंजु मुनि मंडली, मध्य सीय रघुचंदु।
ग्यान सभा जनु तनु धरें, भगति सच्चिदानंदु॥
-तुलसी: रामचरितमानस

स्पष्टीकरण-इस पद्य के पहले और तीसरे चरण में 13-13 मात्राएँ हैं और दूसरे तथा चौथे चरण में 11-11 मात्राएँ हैं; अतः यह ‘दोहा’ छन्द है।

(3) सोरठा
परिभाषा–यह अर्द्धसम मात्रिक छन्द है। इसके प्रथम और तृतीय चरण में 11-11 मात्राएँ तथा द्वितीय एवं चतुर्थ चरण में 13-13 मात्राएँ होती हैं। पहले और तीसरे चरण के अन्त में गुरु-लघु आते हैं और कहीं-कहीं तुक भी मिलती है। यह दोहा छन्द के विपरीत होता है।

उदाहरण-

ऽ। ।ऽ।। ऽ। ।।। ।।। ऽ।। ।।।
नील सरोरुह स्याम, तरुन अरुन बारिज नयन।
करउ सो मम उर धाम, सदा छीरसागर सयन।
–तुलसी : रामचरितमानस

स्पष्टीकरण-इस पद्य के प्रथम और तृतीय चरण में 11-11 तथा द्वितीय और चतुर्थ चरण में 13-13 मात्राएँ हैं; अत: यह ‘सोरठा’ छन्द है।

(4) कुण्डलिया
परिभाषा–यह विषम मात्रिक छन्द है। इसमें छह चरण होते हैं और प्रत्येक चरण में 24 मात्राएँ होती हैं। आदि में एक दोहा और बाद में एक रोला जोड़कर कुण्डलिया छन्द बनता है। ये दोनों छन्द मानो कुण्डली रूप में एक-दूसरे से गुंथे रहते हैं, इसलिए इसे ‘कुण्डलिया’ छन्द कहते हैं। जिस शब्द से इस छन्द का प्रारम्भ होता है, उसी से इसका अन्त भी होता है। ‘दोहे’ का चौथा चरण रोला’ के प्रथम चरण का भाग होकर आता है।

उदाहरण-

ऽ ऽ ऽ। । ऽ।ऽ ।। ऽ ।। ।। ऽ ।
साईं बैर न कीजिए, गुरु पण्डित कवि यार।
बेटा बनिता पौरिया, यज्ञ करावन हार॥
यज्ञ करावन हार, राजमंत्री जो होई।
बिप्र पड़ोसी बैद्य, आपुनो तपै रसोई॥
कह गिरिधर कविराय, जुगत सों यह चलि आई।
इन तेरह को तरह, दिए बनि आवै साईं।

स्पष्टीकरण-इस पद्य के प्रथम एवं द्वितीय चरण दोहा के हैं तथा आगे के चार चरण रोला के। दोनों के कुण्डलित होने पर ‘कुण्डलिया’ छन्द का निर्माण हुआ है।

छन्दों से सम्बन्धित बहुविकल्पीय प्रश्न और उनके उत्तर उपयुक्त विकल्प द्वारा निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए-

1. जिस छन्द में चार चरण होते हैं और प्रत्येक चरण में 16 मात्राएँ होती हैं, वह कहलाता है- (2003, 06)
अथवा
यह सममात्रिक छन्द है। इसमें चार चरण होते हैं और प्रत्येक चरण में 16 मात्राएँ होती हैं। अन्त में जगण और तगण के प्रयोग का निषेध है। इस छन्द का नाम है- [2006]
(क) दोहा (ख) सोरठा (ग) रोला (घ) चौपाई।
उत्तर –
(घ) चौपाई।

2. आदि में एक दोहा जोड़कर और बाद में एक रोला जोड़कर कौन-सा छन्द बनता है- [2008]
(क) हरिगीतिका (ख) कुण्डलिया (ग) बरवै (घ) वसन्ततिलका।
उत्तर –
(ख) कुण्डलिया

3. जथा पंख बिनु खग अति दीना।
मनि बिनु फनि करिबर कर हीना॥
-उपर्युक्त पंक्ति में कौन-सा छन्द है [2003]
(क) रोला (ख) कुण्डलिया (ग) सोरठा (घ) चौपाई।
उत्तर –
(घ) चौपाई।

4. जहाँ प्रत्येक चरण में 16 मात्राएँ होती हैं। चरण के अन्त में जगण और तगण का प्रयोग न हो, वहाँ छन्द होता है [2003]
(क) उपेन्द्रवज्रा (ख) इन्द्रवज्रा (ग) रोला (घ) चौपाई।
उत्तर –
(घ) चौपाई।

5. बन्दहुँ अवध भुवाल; सत्य प्रेम जेहि राम पद। बिछुरत दीनदयाल, प्रियतनु तृण इव परिहेउ। -इस पद में छन्द है (2004)
(क) बरवै (ख) दोहा (ग) सोरठा (घ) चौपाई।
उत्तर –
(ग) सोरठा

6. चौपाई छन्द में कितने चरण होते हैं? नीचे दिए गए विकल्पों में से सही विकल्प चुनकर लिखिए (2004, 05, 07, 08)
(क) दो (ख) चार (ग) छह (घ) आठ।
उत्तर –
(ख) चार

7. सुनत सुमंगल बैन, मन प्रमोद सनपुलक भर। सरद सरोरुह नैन, तुलसी भरे सनेह जल॥ इसमें छन्द है
(क) दोहा (ख) रोला (ग) बरवै (घ) सोरठा।
उत्तर –
(घ) सोरठा।

8. नील सरोरुह स्याम, सरुन अरुन बारिज नयन। करउ सो मम उर धाम, सदा छीरसागर सयन॥ इसमें छन्द है
(क) चौपाई (ख) सोरठा (ग) सवैया (घ) बरवै।
उत्तर –
(ख) सोरठा

9. ‘सुनहु भरत भावी प्रबल, बिलखि कहेउ मुनिनाथ।
हानि लाभु जीवनु मरनु, जसु अपजसु बिधि हाथ॥’
-इस पद्य में छन्द है
(क) चौपाई (ख) सोरठा (ग) दोहा (घ) सवैया।
उत्तर –
(ग) दोहा

10. ‘मेरी भवबाधा हरौ, राधा नागरि सोय।
जा तन की झाई पड़े, श्याम हरित-दुति होय॥’
-इस पद में छन्द है
(क) चौपाई (ख) सोरठा (ग) दोहा (घ) सवैया।
उत्तर –
(ग) दोहा