जल ही जीवन है निबंध – (Essay On Water Is Life In Hindi)
विश्व में गहराता जलसंकट – Deep Water Scarcity In The World
रूपरेखा–
- प्रस्तावना,
- जल का महत्त्व,
- जलाभाव का परिणाम,
- जल की उपलब्धता,
- भावी जल संकट,
- उपसंहार।
साथ ही, कक्षा 1 से 10 तक के छात्र उदाहरणों के साथ इस पृष्ठ से विभिन्न हिंदी निबंध विषय पा सकते हैं।
जल ही जीवन है निबंध – Jal Hee Jeevan Hai Nibandh
प्रस्तावना–
वेदों में कहा गया है–’आप एव ससर्जादौ’ अर्थात् परमात्मा ने सबसे पहले जल की सृष्टि की। पुराणों में विष्णु के प्रथम अवतार वाराह द्वारा जलमग्न पृथ्वी का उद्धार किए जाने का वर्णन मिलता है। प्रलय अर्थात् सृष्टि का अन्त होने पर समस्त धरती जलमग्न हो जाती है।
इन बातों को हम मिथक कह सकते हैं, किन्तु विज्ञान के अनुसार जल जीवन या जीव–सृष्टि की प्रथम शर्त है। चन्द्रमा या मंगल पर जीवन की खोज में जुटे वैज्ञानिकों की आशा का बिन्दु भी, वहाँ कहीं न कहीं जल की उपस्थिति पर ही टिका है। शब्दकोश भी जल और जीवन को पर्यायवाची बताता है।
जल का महत्त्व–
सम्पूर्ण सौरमण्डल में आज तक ज्ञात ग्रहों में पृथ्वी ही एक ऐसा ग्रह है जहाँ जल का अपार भण्डार है। जल के बिना जीवन की कल्पना ही असम्भव है। जल ने ही पृथ्वी पर चर–अचर जीव जगत् को सम्भव बनाया है। जीवाणु लेकर स्थूलतम जीव हाथी तक और शैवाल से लेकर गगनचुम्बी वृक्षों तक सभी का जीवनाधार जल ही है। मानव शरीर में भी सर्वाधिक मात्रा जल की ही है।
जल की कमी हो जाने पर जीवन के लाले पड़ जाते हैं और कृत्रिम उपायों से शरीर में उसकी पूर्ति करनी पड़ती है। हमारे भोजन, वस्त्र, भवन, स्वच्छता, स्वास्थ्य एवं पर्यावरण संतुलन सभी के लिए जल का कोई विकल्प नहीं है। हमारी सुख–सुविधा, आमोद–प्रमोद और मनोरंजन भी जल से जुड़ा हुआ है। घरों में कपड़े धोने, भोजन बनाने, स्नान करने और गर्मी से बचने को कूलर चलाने में जल ही सहायक होता है।
जलाशयों में तैरकर और नौकाविहार करके हम आनन्दित होते हैं। हमारी गृह–वाटिकाओं में जल चाहिए। पार्कों और वनांचलों की हरियाली जल पर ही टिकी है। जल के बिना कृषि की कल्पना ही नहीं की जा सकती। जीवन के अस्तित्व और पोषण से जुड़ी किसी भी वस्तु को देख लीजिए, किसी न किसी स्तर पर उसे जल के योगदान की आवश्यकता अवश्य होती है।
जलाभाव का परिणाम–
कल्पना कीजिए कि पृथ्वी कभी जल–विहीन हो जाय तो क्या दृश्य उपस्थित होगा ? सारा जीव जगत् तड़प–तड़प कर दम तोड़ेगा। यह मनोरम हरीतिमा, ये इठलाती नदियाँ, झर–झर करते निर्झर, लहराते सागर, रिमझिम बरसते मेघ, ये चहल–पहल, दौड़ते वाहन, नृत्य–संगीत के आयोजन, ये मारामारी, सब कुछ नामशेष हो जाएँगे।
जल की उपलब्धता–
प्रकृति ने जीवनाधार जल की प्रभूत मात्रा मानव जाति को उपलब्ध कराई है। पृथ्वी का लगभग तीन–चौथाई भाग जलावृत है। इसमें मानवोपयोगी जल की मात्रा भी कम नहीं है। नदियों, सरोवरों, झीलों आदि के रूप में पेयजल उपलब्ध है।
भावी जल–संकट–आज
प्रकृति के इस निःशुल्क उपहार पर संकट के बादल मँडरा रहे हैं। नगरों और महानगरों के अबाध विस्तार ने तथा औद्योगीकरण के उन्माद ने भूगर्भीय जल के मनमाने दोहन और अपव्यय को प्रोत्साहित किया है। भारत के अनेक प्रदेश, जिनमें राजस्थान भी सम्मिलित है, जल स्तर के निरंतर गिरने से संकटग्रस्त हैं। जल की उपलब्धता निरंतर कम होती जा रही है।
इस संकट के लिए मनुष्य ही प्रधान रूप से उत्तरदायी है। अति औद्योगीकरण से बढ़ रहे भूमण्डलीय ताप (ग्लोबल वार्मिंग) से, ध्रुवीय हिम तथा ग्लेशियरों के शीघ्रता से पिघलने की आशंका व्यक्त की जा रही है। वैज्ञानिक घोषणा कर रहे हैं कि अगली तीन–चार दशाब्दियों में गंगा, यमुना, ब्रह्मपुत्र आदि का केवल नाम ही शेष रह जाएगा। हिम तथा ग्लेशियरों के पिघलने से समुद्र का जल–स्तर बढ़ जाएगा तथा समुद्र तट पर बसे शहर खत्म हो जायेंगे।
उपसंहार–
‘जल है तो जीवन है’ इस सच को राजस्थान से अधिक और कौन जानता है। जल जैसी बहुमूल्य वस्तु के प्रति हमारा उपेक्षापूर्ण रवैया कितना घातक हो सकता है, यह उपर्युक्त विवरण से स्पष्ट है। अतः अभी से जल–प्रबंधन के प्रति जागरूक होना हमारे लिए जीवित रहने की शर्त बन गया है।
अतः परम्परागत एवं आधुनिक तकनीकों से जल के संरक्षण और भंडारण का कार्य युद्ध–स्तर पर होना चाहिए। जनता और प्रशासन दोनों के उद्योग और सहयोग से ही इस भावी संकट से पार पाना सम्भव है।