विपत्ति कसौटी जे कसे ते ही साँचे मीत पर निबंध – Vipatti Kasauti Je Kase Soi Sache Meet Essay In Hindi

विपत्ति कसौटी जे कसे ते ही साँचे मीत पर निबंध – Essay On Vipatti Kasauti Je Kase Soi Sache Meet In Hindi

संकेत बिंदु –

  • प्रस्तावना
  • आदर्श मित्रता के उदाहरण
  • सच्चे मित्र के गुण
  • उपसंहार
  • मित्र की आवश्यकता
  • छात्रावस्था में मित्रता
  • मित्रता का निर्वहन

साथ ही, कक्षा 1 से 10 तक के छात्र उदाहरणों के साथ इस पृष्ठ से विभिन्न हिंदी निबंध विषय पा सकते हैं।

प्रस्तावना – मनुष्य सामाजिक प्राणी है। उसके जीवन में सुख-दुख का आना-जाना लगा रहता है। उसके अलावा दिन-प्रतिदिन की समस्याएँ उसे तनावग्रस्त करती हैं। इससे मुक्ति पाने के लिए वह अपने मन की बातें किसी से कहना-सुनना चाहता है। ऐसे में उसे अत्यंत निकटस्थ व्यक्ति की ज़रूरत महसूस होती है। इस ज़रूरत को मित्र ही पूरी कर सकता है। मनुष्य को मित्र की आवश्यकता सदा से रही है और आजीवन रहेगी।

Vipatti Kasauti Je Kase Soi Sache Meet Essay In Hindi

मित्र की आवश्यकता – जीवन में मित्र की आवश्यकता प्रत्येक व्यक्ति को पड़ती है। एक सच्चा मित्र औषधि के समान होता है जो व्यक्ति की बुराइयों को दूर कर उसे अच्छाइयों की ओर ले जाता है। मित्र ही सुख-दुख के वक्त साथ देता है। वास्तव में मित्र के बिना सुख की कल्पना नहीं की जा सकती है, क्योंकि

अलसस्य कुतो विद्या, अविद्यस्य कुतो धनम्।
अधनस्य कुतो मित्रम्, अमित्रस्य कुतो सुखम् ॥

Vipatti Kasauti Je Kase Soi Sache Meet Essay

आदर्श मित्रता के उदाहरण – इतिहास में अनेक उदाहरण भरे हैं जिनसे मित्रता करने और उसे निभाने की सीख मिलती है। वास्तव में मित्र बनाना तो सरल है पर उसे निभाना अत्यंत कठिन है। देखा गया है कि आर्थिक समानता न होने पर भी दो मित्रों की मित्रता आदर्श बन गई, जिसकी सराहना इतिहास भी करता है। राणाप्रताप और भामाशाह की मित्रता, कृष्ण और अर्जुन की मित्रता, राम और सुग्रीव की मित्रता, दुर्योधन और कर्ण की मित्रता कुछ ऐसे ही उदाहरण हैं। इनकी मित्रता से हमें प्रेरणा ग्रहण करनी चाहिए, क्योंकि इन मित्रों के बीच स्वार्थ आड़े नहीं आया।

छात्रावस्था में मित्रता – ऐसा देखा जाता है कि छात्रावस्था या युवावस्था में मित्र बनाने की धुन सवार रहती है। बस एक दो-बार किसी से बातें किया, साथ-साथ नाश्ता किया, फ़िल्म देखी, हँसमुख चेहरा देखा, अपनी बात में हाँ में हाँ मिलाते देखा और मित्र बना लिया पर ऐसे मित्र जितनी जल्दी बनते हैं, संकट देख उतनी ही जल्दी साथ छोड़कर दूर भी हो जाते हैं। ऐसे ही मित्रों की तुलना जल से करते हुए रहीम ने कहा है –

जाल परे जल जात बहि, तजि मीनन को मोह।
रहिमन मछरी नीर को, तऊ न छाँड़ति छोह ॥

सच्चे मित्र के गुण – जीवन में सच्चे मित्र का बहुत महत्त्व है। एक सच्चे मित्र का साथ व्यक्ति को उन्नति के पथ पर ले जाता है और बुरे व्यक्ति का साथ पतन की ओर अग्रसर करता है। सच्चा मित्र जहाँ व्यक्ति को अवगुणों से बचाकर सदगुणों की ओर ले जाता है वहीं कपटी मित्र हमारे पैरों में बँधी चक्की के समान होता है जो हमें पीछे खींचता रहता है। यदि हमारा कोई मित्र जुआरी या शराबी निकला तो उसका प्रभाव एक न एक दिन हम पर अवश्य पड़ना है। इसके विपरीत सच्चा मित्र सुमार्ग पर ले जाता है। वह मित्र के सुख-दुख को अपना सुख-दुख समझकर सच्ची सहानुभूति रखता है और दुख से उबारने का हर संभव प्रयास करता है। ऐसे मित्रों के बारे कवि तुलसीदास ने लिखा है –

जे न मित्र दुख होय दुखारी।
तिनहिं विलोकत पातक भारी॥
निज दुख गिरि सम रज कर जाना।
मित्रक दुख रज मेरु समाना।

सच्चा मित्र अपने मित्र को कुसंगति से बचाकर सन्मार्ग पर ले जाता है और उसके गुणों को प्रकटकर सबके सामने लाता है। मित्रता का निर्वहन-मित्रता के लिए यह माना जाता है कि उनमें आर्थिक समानता होनी चाहिए पर यदि सच्ची मित्रता है तो दो मित्रों के बीच धन, स्वभाव और आचरण की समानता न होने पर भी मित्रता का निर्वाह हुआ है। सच्चे मित्र अपने बीच अमीरी गरीबी को आड़े नहीं आने देते हैं। कृष्ण-सुदामा की मित्रता का उदाहरण सामने है। उनकी हैसियत में ज़मीन-आसमान का अंतर था पर उनकी मित्रता का उदाहरण दिया जाता है।

इसी प्रकार अकबर – बीरबल, कृष्णदेवराय और तेनालीरामन की मित्रता का उदाहरण हमारे सामने है। उपसंहार-मित्रता अनमोल वस्तु है जो जीवन में कदम-कदम पर काम आती है। एक सच्चा मित्र मिल जाना गर्व एवं सौभाग्य की बात है। जिसे सच्चा मित्र मिल जाए, उसे सुख का खज़ाना मिल जाता है। हमें मित्र बनाने में सावधानी बरतना चाहिए। एक सच्चा मित्र मिल जाने पर मित्रता का निर्वहन करना चाहिए। सच्चे मित्र के रूठने पर उसे तुरंत मना लेना चाहिए। हमें भी मित्र के गुण बनाए रखना चाहिए, क्योंकि –

विपति कसौटी जे कसे तेई साँचे मीत।