महाकवि तुलसीदास का जीवन परिचय निबंध – (Essay On Tulsidas In Hindi)
मेरे प्रिय कवि तुलसीदास – My Dear Poet Tulsidas)
रूपरेखा–
- प्रस्तावना,
- जीवन और कृतियाँ,
- तुलसी की युगीन परिस्थिति,
- लोकनायक तुलसी की समन्वय की साधना,
- तुलसी का काव्य–वैभव,
- उपसंहार।।
साथ ही, कक्षा 1 से 10 तक के छात्र उदाहरणों के साथ इस पृष्ठ से विभिन्न हिंदी निबंध विषय पा सकते हैं।
महाकवि तुलसीदास का जीवन परिचय निबंध – Mahaakavi Tulaseedaas Ka Jeevan Parichay Nibandh
प्रस्तावना–
मर्यादा पुरुषोत्तम राम के चरित्र–गायक, भारतीय समाज के उन्नायक और काव्यरसिकों को परमानन्ददायक, गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरितमानस के समन्वय–सरोवर में स्नान कराके जन–मन के सारे ताप–संताप दूर कर दिए हैं। तुलसी ने शोषित, पीड़ित और अपमानित जनता को आश्वासन दिया था कि-
“जब–जब होइ धरम की हानी। बाढहि असुर अधम अभिमानी॥
तब–तब धरि प्रभु मनुज शरीरा। हरहिं कृपानिधि सज्जन पीरा॥”
इस कारण तुलसी और उनका कृतित्व विश्व के आस्तिकजनों के लिए आस्था और विश्वास का आधार बना हुआ है। इसी कारण ‘तुलसी’ मेरे प्रिय साहित्यकार और कवि हैं।
जीवन और कृतियाँ–
भारतीयों के कण्ठहार गोस्वामी तुलसीदास ने अपने जन्म से किस भू–भाग को धन्य किया? यह विषय विवादग्रस्त है, तथापि उनकी एक महामानव के रूप में प्रतिष्ठा निर्विवाद है।
वह सोरों के थे कि राजपुर के अथवा वाराह क्षेत्र के थे, यह चिन्तन इतिहास–प्रेमियों के लिए चिन्ता का विषय भले ही हो, पर काव्य–प्रेमियों के लिए तो तुलसी सार्वजनीन और सार्वक्षेत्रीय हैं। पुत्र के रूप में तुलसी सौभाग्यशाली न थे। पिता और माता दोनों के स्नेह की छाया से वंचित तुलसी की शैशव–गाथा बड़ी करुणापूर्ण है–”मात–पिता जग जाहि तज्यौ, विधिहू न लिखी कछु भाग भलाई।”
यह पंक्ति तुलसी के विपन्न बालपन की साक्षी है। उनको एक अनाथ के समान जीवन यापन करना पड़ा, परन्तु गुरु नरहरि ने बाँह पकड़कर तुलसी को तुलसीदास बनाया। समस्त ग्रन्थों का अध्ययन कराया और राम–चरणों का सेवक बनाकर उसमें भविष्य के मानसकार को प्रतिष्ठित किया।
गोस्वामी जी का कवि रूप बड़ा भव्य और विशाल है। आपकी प्रसिद्ध कृतियाँ इस प्रकार हैं ‘दोहावली’, ‘गीतावली’, ‘रामचरितमानस’, ‘कवितावली’, ‘रामाज्ञा–प्रश्नावली’, ‘विनय–पत्रिका’, ‘हनुमान–बाहुक’, ‘रामलला नहछु’, ‘पार्वती–मंगल’, “बरवै–रामायण’ आदि।
तुलसी की युगीन परिस्थिति–तुलसी के समय देश में मुगलों का शासन था। अपना बाहुबल काम न आने से लोग निराश थे। उस समय भुखमरी और बेकारी थी।
“खेती न किसान को भिखारी को न भीख, बनिक को बनिज न चाकर को चाकरी।” समाज में ऊँच–नीच और जाति–पाँति का भेदभाव फैला था। तुलसी को भी यह आक्षेप सहना पड़ा था। कवितावली में उन्होंने लिखा है
“धूत कहौ, अवधूत कहौ, रजपूत कहौ, जुलहा कहौ कोऊ।
काहू की बेटी तें बेटा न ब्याहव, काहू की जाति बिगारि न सोऊ।”
लोकनायक तुलसी की समन्वय की साधना–तुलसी का काव्य धार्मिक, राजनीतिक तथा सामाजिक समन्वय का अद्भुत आख्यान है। तुलसी ने लोक–व्यवहार और शास्त्र के बीच एक सुगम सेतु का निर्माण किया है।
(क) निर्गुण और सगुण का समन्वय–परमात्मा के निराकार और साकार स्वरूप को लेकर चलने वाली विरोधी भावनाओं को तुलसी ने सहज ही समन्वित कर दिया। वह कहते हैं
“सगुनहिं अगुनहिं नहिं कछु भेदा। गावहिं मुनि पुरान बुध वेदा।”
इसी प्रकार ज्ञान और भक्ति को भी समान पद प्रदान करके उन्होंने लोकमानस के लिए सुलभ साधना का मार्ग खोल दिया
“भगतिहिं ज्ञानहिं नहिं कछ भेदा। उभय हरहिं भव सम्भव खेदा।”
(ख) धर्म और राजनीति का समन्वय–भले ही आज के राजनीतिज्ञ स्वार्थवश धर्म और राजनीति को परस्पर विरोधी बताते रहें, किन्तु तुलसी ने मानस की प्रयोग–भूमि पर यह सिद्ध कर दिखाया है कि धर्म के नियन्त्रण के बिना राजनीति अपने नीति–तत्व को खो बैठती है।
“जासु राज प्रिय प्रजा दुखारी। सो नृप अवसि नरक अधिकारी।”
सामाजिक समन्वय और भक्ति–समाज में मिथ्या–गर्व और अभिजात्य–भावना को भी तुलसी ने नियन्त्रित किया। उनकी दृष्टि में मानवीय श्रेष्ठता का मानदण्ड जाति या वर्ण नहीं अपितु आचरण है। भगवान राम का भक्त उनके लिए शूद्र होते हुए भी ब्राह्मण से अधिक प्रिय और सम्माननीय है। चित्रकूट जाते हुए महर्षि वशिष्ठ रामसखा निषाद को दूर से दण्डवत् प्रणाम करते देखते हैं तो उसे बरबस हृदय से लगा लेते हैं
“रामसखा मुनि बरबस भेंटा। जनु महि लुठत सनेह समेटा।”
तुलसी के राम शबरी के भक्तिरस से भीगे झूठे बेरों को बड़े प्रेम से खाते हैं। तुलसी ब्राह्मण परशुराम को क्षत्रिय राम के सम्मुख नत–मस्तक कराते हैं और ब्राह्मणं रावण को वध्य मानते हैं।
तुलसी राम के परम भक्त थे। राम का विरोधी, चाहे वह कितना ही निकटस्थ और प्रिय क्यों न हो तुलसी के लिए त्याज्य था
जाके प्रिय न राम–वैदेही।
तजिए ताहि कोटि बैरी सम यद्यपि परम सनेही।
तुलसी का काव्य–वैभव–
तुलसी रससिद्ध कवि हैं। उनके काव्य के भाव–पक्ष तथा कला–पक्ष अत्यन्त समृद्ध हैं। अवधी, ब्रज तथा संस्कृत भाषाओं पर उनका समान अधिकार है। उनकी काव्य रचनाएँ विभिन्न शैलियों का श्रेष्ठ उदाहरण हैं।
उपसंहार–
तुलसी को विचारकों ने लोकनायक माना है। उन्होंने निराशा के सागर में डूबती जनता को आशा और उत्साह का सन्देश दिया। साम्प्रदायिक अहंकारों और आडम्बरों के बीच भक्ति का सीधा सच्चा मार्ग दिखाया। तुलसी का व्यक्तिल्य अद्भुत है, अतुलनीय है और इसी कारण मुझे प्रिय है।