राजस्थान के प्रमुख लोक देवता पर निबंध – The Major Folk Deities Of Rajasthan Essay In Hindi

राजस्थान के प्रमुख लोक देवता पर निबंध – Essay On The Major Folk Deities Of Rajasthan

संकेत बिन्दु–

  • लोक देवता का आशय
  • प्रमुख लोक देवताओं का संक्षिप्त परिचय
  • लोक देवताओं के जनहितकारी कार्य
  • लोक देवता और लोक आस्था
  • उपसंहार।

साथ ही, कक्षा 1 से 10 तक के छात्र उदाहरणों के साथ इस पृष्ठ से विभिन्न हिंदी निबंध विषय पा सकते हैं।

राजस्थान के प्रमुख लोक देवता पर निबंध – Raajasthaan Ke Pramukh Lok Devata Par Nibandh

लोक देवता का आशय–
लोक देवता/देवी से तात्पर्य ऐसे महापुरुषों/महान स्त्रियों से है, जो मानव रूप में जन्म लेकर अपने असाधारण व लोकोपकारी कार्यों के कारण दैवीय अंश के रूप में स्थानीय जनता द्वारा स्वीकारे गए हैं। इनके जन्मस्थल अथवा समाधि पर मेले लगते हैं।

प्रमुख लोक देवताओं का संक्षिप्त परिचय-
एवं उनके जनहितकारी कार्य राजस्थान में लोक देवताओं की एक लंबी परम्परा रही है। क्षेत्र विशेष के अपने–अपने लोक देवता हैं तथा कुछ सर्वमान्य लोक देवता भी हैं, जो राजस्थान की सीमाओं से भी बाहर के लोगों की आस्था का केन्द्र बने हुए हैं। कुछ प्रमुख लोक देवताओं का संक्षिप्त परिचय एवं उनके जनहितकारी कार्य इस प्रकार हैं।

(i) गोगाजी–इनका जन्म 1003 ई. में चूरू जिले के ददरेवा नामक स्थान पर हुआ था। इनके पिता का नाम जेवरसिंह तथा माता का नाम बाछल था। ये चौहान राजपूत थे। गोगाजी को जाहरपीर व साँपों का देवता भी कहा जाता है। इनकी स्मृति में भाद्रपद कृष्ण नवमी (गोगानवमी) को गोगामेड़ी (हनुमानगढ़) में मेला लगता है। गोगाजी का प्रतीक घोड़ा है। गोगामेंडी (हनुमानगढ़) व ददरेवा (चूरू) प्रमुख स्थल हैं। जहाँ गोरख टीला है, वहीं नाथ संप्रदाय का विशाल मन्दिर भी स्थित है। गोगाजी ने गौ–रक्षा एवं मुस्लिम आक्रांताओं (महमूद गजनवी) से देश की रक्षार्थ अपने प्राण न्योछावर कर दिये।

(ii) तेजाजी—इनका जन्म नागवंशीय जाट परिवार में सन् 1047 में नागौर जिले के खड़नाल गाँव में हुआ था। पिता का नाम ताहड़जी व माता का नाम राजकुँवरी था। तेजाजी का भोपा जो कि धोड़ला भी कहलाता है सर्प के विष से लोगों को मुक्ति दिलाता है। ये गायों को मेरों से मुक्त कराने के प्रयास में शहीद हुए। इनकी सर्पो के देवता के रूप में पूजा होती है।

तेजाजी के पुजारी को धोड़ला व चबूतरों को थान कहा जाता है। नागौर जिले के परबतसर गाँव में प्रतिवर्ष भाद्रपद शुक्ला दशमी को पशु मेला भरता है। सर्प एवं कुत्ते के काटने पर इनकी पूजा होती है। इनके थान अजमेर जिले के सुरसुरा, ब्यावर, सेंदरिया, भावतां में भी हैं। ये विशेषतः अजमेर जिले के लोकदेवता हैं।

(ii) रामदेवजी—ये राजस्थान के प्रमुख लोकदेवता हैं। इनका जन्म बाड़मेर जिले के ऊँडूकासमेर गाँव में हुआ था। इनका जन्म वि. सं. 1409 से 1462 के मध्य माना जाता है। इनके पिता का नाम अजमाल एवं माता का नाम मैणादे था। समाज–सुधारक होने व हिन्दू–मुस्लिम एकता पर बल देने के कारण लोग इन्हें लोकदेवता के रूप में पूजते हैं। पोकरण (जैसलमेर) के पास रूणेचा में इनकी समाधि है, जहाँ प्रतिवर्ष भाद्रपद शुक्ला द्वितीया से एकादशी तक मेला भरता है। रूणेचा को आज रामदेवरा के नाम से भी जाना जाता है।

रामदेवजी को हिन्दू कृष्ण के अवतार के रूप में व मुसलमान रामसा पीर के रूप में पूजते हैं। रामदेवजी का प्रतीक चिह्न चरण चिह्न (पगलिये) है। रामदेवजी के मेला का प्रमुख नृत्य तेरहताली है, जिसे कामड़ जाति की स्त्रियाँ करती हैं। ये लोकदेवताओं में एकमात्र कवि माने जाते हैं। चौबीस बाणियाँ इनकी प्रमुख रचना है। इन्होंने कामड़ पंथ को प्रारम्भ किया।

(iv) पाबूजी–जन्म सन् 1239 फलौदी (जोधपुर) तहसील के कोलू गाँव में हुआ था। ये मारवाड़ के राठौड़ वंश से सम्बन्धित थे। ये ऊँटों के देवता के रूप में भी प्रसिद्ध हैं। राजस्थानी लोक साहित्य में पाबूजी को लक्ष्मणजी का अवतार माना जाता है। पाबूजी का प्रतीक चिहन भाला लिए अश्वारोही है। पाबूजी का प्रमुख उपासना–स्थल कोल (फलौदी) है, जहाँ प्रतिवर्ष मेला भरता है।

ये राइका, थोरी, मेहर (मुस्लिम) जाति के आराध्य हैं। इनसे सम्बन्धित गाथा–गीत, ‘पाबूजी के पवाड़े’ नायक एवं रैबारी जाति के लोग माठ वाद्य के साथ गाते हैं। चांदा, डेमा एवं हरमल इनके रक्षक सहयोगी हैं। पाबू प्रकाश (लेखक–आशिया मोडजी) इनके जीवन पर प्रमुख पुस्तक है। इनका मेला चैत्र माह की अमावस्या को भरता है।।

इनके अतिरिक्त मल्लीनाथ जी, देवनारायण जी, भूरिया बाबा (गौतमेश्वर) बिग्गाजी, बाबा तल्लीनाथ जी, बीर कल्ला जी, हड़बू जी, झुंझार जी, देव बाबा, मामादेव, भोमिया जी आदि प्रमुख लोक देवता हैं।

लोक देवता और लोक आस्था–
लोकदेवता अपने जीवनकाल में ही जनहितकारी कार्यों व समाज सेवा के कारण समाज द्वारा आदर–सम्मान के पात्र बन जाते हैं। जीते–जी ही आस–पास के लोग इन्हें महापुरुष के रूप में प्रतिष्ठा देने लग जाते हैं। कालांतर में यह आदर–सम्मान की भावना उनके न रहने पर उनकी समाधि व स्थल पर आस्था के रूप में प्रकट होती है। यही आस्था लोक देवता के प्रति लोक आस्था में बदल जाती है।

उपसंहार–
राजस्थान की वीरप्रसू भूमि महान वीरों के साथ–साथ अनेक संतों–महापुरुषों की जन्मस्थली रही है। इसी परंपरा में राजस्थान की इस पुण्य धरा पर जन्म लेकर अपने जीवनकाल में संत–महापुरुष के रूप में प्रतिष्ठित होकर लोक देवता/देवी के रूप में सर्वमान्य हुए। आज भी लाखों–लाख की आस्था के केन्द्र लोकदेवता अपने जनहितकारी कार्यों के कारण जनमानस द्वारा पूज्यनीय हैं।