गंगा की सफाई देश की भलाई पर निबंध – Essay On The good of the country: cleaning the Ganges In Hindi
“यदि गंगा रहती है तो भारत रहता है। गंगा की मृत्यु हो जाती है तो भारत भी मर जाता है।”
–डॉ० वन्दनाशिवाजी (प्रसिद्ध पर्यावरणविद्)
रूपरेखा–
- प्रस्तावना,
- गंगा की उपयोगिता,
- गंगा नदी के प्रदूषण के कारण–
- (क) अपर्याप्त जल–प्रवाह,
- (ख) गन्दे नालों का गिरना,
- (ग) उद्योगों के अपशिष्ट और अशोधित जल का गंगा में गिरना,
- (घ) शवों एवं पूजा–सामग्री का विसर्जन,
- गंगा नदी के शुद्धि के उपाय,
- विभिन्न परियोजनाएँ,
- नमामि गंगे,
- उपसंहार।
साथ ही, कक्षा 1 से 10 तक के छात्र उदाहरणों के साथ इस पृष्ठ से विभिन्न हिंदी निबंध विषय पा सकते हैं।
गंगा की सफाई देश की भलाई पर निबंध – Ganga Kee Saphaee Desh Kee Bhalaee Par Nibandh
प्रस्तावना–
गंगा भारतीय जनमानस की आस्था का जीवन्त प्रतीक है। गंगा सदियों से हमारी सभ्यता–संस्कृति एवं आध्यात्मिकता का केन्द्र रही है। भारतीय संस्कृति और सभ्यता का विकास गंगा–यमुना जैसी पवित्र नदियों के तट पर या उनके आस–पास ही हुआ। इसीलिए गंगा–किनारे पर बसे तीर्थस्थानों में गंगा की महिमा के गीत गाए जाते हैं, जिनमें गंगा को मुक्तिदायिनी मानकर कहा गया है-
“मुक्तिदा मानी गई है, स्वर्गदा गंगा नदी।
जल नहीं, जल है सुधासम, सर्वथा सर्वत्र ही॥”
गंगा का जल वर्षों तक बोतलों, डिब्बों में बन्द रहने के बाद भी खराब नहीं होता है, लेकिन भारत की मातृवत् पूज्या गंगा आज पर्याप्त सीमा तक प्रदूषित हो चुकी है। अनेक स्थानों पर तो इसका जल अब स्नान करने योग्य भी नहीं रह गया है। इसलिए आज हम सबका कर्त्तव्य है कि गंगा नदी की अविरलता और पवित्रता बनाए रखें; क्योंकि गंगा की सफाई और उसके अस्तित्व में ही देश की भलाई निहित है।
गंगा की उपयोगिता–गंगा नदी का अविरल–निर्मल प्रवाह हमारे देश के जीवन के लिए बहूपयोगी है-
- गंगा लगभग 2071 किमी की लम्बी यात्रा करते हुए भारत के विशाल भू–भाग को सींचती है। यह देश के पाँच महत्त्वपूर्ण राज्यों–उत्तराखण्ड, उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखण्ड और पश्चिम बंगाल को हरा–भरा बनाती हुई देश के लगभग 26% भू–भाग को लाभान्वित करती है।
- गंगा के निर्मल जल में अनेक जलीय जीव–जन्तु पाए जाते हैं, जो पर्यावरण को सन्तुलित बनाए रखने में अपना महत्त्वपूर्ण योगदान देते हैं। गंगा–जल उनका पोषण करता है।
- गंगा नदी के किनारे बसे कई प्रमुख शहरों को एवं उद्योगों को जल की आपूर्ति इसी के जल से होती है।
- गंगा नदी पर बने बाँधों और इससे निकाली गई अनेक बड़ी नहरों पर बिजलीघरों की स्थापना करके प्रचुर मात्रा में बिजली का उत्पादन किया जाता है।
- गंगा नदी के जल में ‘बैक्टीरियोफेज’ नामक विषाणु पाया जाता है, जो हानिकारक जीवाणुओं और सूक्ष्म जीवों को जीवित नहीं रहने देता है।
- गंगा नदी के जल में पर्याप्त घुलनशील ऑक्सीजन होती है, जो जलीय जीवन के लिए अत्यावश्यक होती है।
गंगा नदी के प्रदूषण के कारण–पतित पावनी गंगा नदी के प्रदूषित होने के मुख्य कारण निम्नलिखित हैं-
(क) अपर्याप्त जल–प्रवाह–टिहरी बाँध बनाकर गंगा के अविरल जल प्रवाह को अत्यन्त धीमा कर दिया गया है। गर्मियों में तो उसमें जल का प्रवाह इतना कम हो जाता है कि उसे देखकर लगता है कि यह कोई नदी नहीं वरन् नाला है। इसके अतिरिक्त गंगा पर अनेक स्थानों पर बैराज बनाकर उसके जल को बड़ी–बड़ी नहरों में भेजकर उसके प्रवाह को और भी धीमा कर दिया गया है।
इस प्रकार जल का प्रवाह कम हो जाने के कारण गंगा–जल में अशुद्धियों की मात्रा बढ़ती जा रही है। प्राचीनकाल में इसका तीव्र प्रवाह इसकी अशुद्धियों को अपने साथ बहा ले जाता था और इसकी पवित्रता बनी रहती थी। अत्यधिक प्रदूषण के कारण गंगा नदी के जल से ऑक्सीजन की मात्रा लगातार कम होती जा रही है।
(ख) गन्दे नालों का गिरना–भारत के अनेक प्रमुख नगर और हजारों गाँव गंगा–किनारे और उसके आस–पास बसे हैं। नगरों में आबादी का दबाव पर्याप्त सीमा तक बढ़ता जा रहा है। वहाँ के मल–मूत्र और गन्दा पानी नालों के माध्यम से गंगा में डाल दिया गया है। फलत: कभी खराब न होनेवाला गंगा–जल आज बहुत बुरी तरह से प्रदूषित हो गया है।
(ग) उद्योगों के अपशिष्ट और अशोधित जल का गंगा में गिरना–औद्योगीकरण की बढ़ती प्रवृत्ति भी गंगा नदी को प्रदूषित करने का बड़ा कारण बनी है। कोलकाता, बनारस, कानपुर आदि अनेक औद्योगिक नगर गंगा–तट पर ही बसे हैं। यहाँ लगे छोटे–बड़े कारखानों से निकलनेवाला रासायनिक, प्रदूषित पानी, कचरा आदि गन्दे नालों तथा अन्य माध्यमों से होता हुआ गंगा में मिल जाता है, गंगा–जल अत्यधिक विषैला हो गया है।
(घ) शवों एवं पूजा–सामग्री का विजर्सन–सदियों से आध्यात्मिक एवं धार्मिक मान्यताओं से अनुप्राणित होकर गंगा की निर्मलधारा में मृतकों की अस्थियाँ, अवशिष्ट राख तथा अनेक लावारिस शव बहा दिए जाते हैं। बाढ़ आदि के समय मृत पशु भी इसकी धारा में आ मिलते हैं। प्रतिदिन हजारों की संख्या में होते दाह–संस्कारों की राख और उनसे सम्बन्धित सामग्री सब गंगा में विसर्जित कर मोक्ष पाने की कामना गंगा जल को प्रतिक्षण दूषित करती जा रही है। बड़ी मात्रा में किए जानेवाले मूर्ति–विसर्जन एवं पूजा–सामग्री के विसर्जन ने भी गंगा के जल को अत्यधिक प्रदूषित किया है।
गंगा नदी की शुद्धि के उपाय–उपर्युक्त समस्याओं से निपटने और गंगा को प्रदूषण से बचाने के लिए निम्नलिखित महत्त्वपूर्ण उपाय अपनाए जाने चाहिए–
- जल–प्रवाह का अविरल सन्तुलन बनाए रखना चाहिए, जिससे गंगा में मिलनेवाली गन्दगी एक स्थान पर रुककर उसके जल को प्रदूषित न करे।
- उद्योगों द्वारा उत्सर्जित अपशिष्ट पदार्थों के गंगा में गिराए जाने पर रोक लगानी चाहिए। जो मानक इन औद्योगिक इकाइयों के लिए निर्धारित हैं, उन्हें लागू करवाने के लिए कठोर नियम–कानून होने चाहिए।
- जो भी नदी परियोजनाएँ चालू हैं अथवा भविष्य में चालू होंगी, उनके द्वारा होनेवाले पारिस्थितिकीय असन्तुलन सम्बन्धी नुकसान की भरपाई व समाधान होना चाहिए।
- धार्मिक स्थलों के पास अनुपयुक्त एवं अपशिष्ट पदार्थों के निपटान हेतु उचित व्यवस्था होनी चाहिए। लगन्दे नालों को सीधे नदी में नहीं जोड़ना चाहिए, अपितु उपचार संयन्त्रों के द्वारा संशोधन करके ही पानी को नदी में छोड़ना चाहिए।
- शहरों–गाँवों द्वारा निकले मल–मूत्र व घरेलू अपशिष्ट पदार्थों का उचित निस्तारण करना चाहिए।
- जैविक विधि से नदी को स्वच्छ करना चाहिए।
विभिन्न परियोजनाएँ–
गंगा को स्वच्छ करने के लिए सरकार द्वारा कई परियोजनाएँ चलाई गई हैं, जो अपने उद्देश्य में पूर्णरूपेण सफलता प्राप्त नहीं कर पाईं। सन् 1985 ई० में ‘गंगा कार्य योजना’ (GAP) का शुभारम्भ किया गया, जिसका उद्देश्य गंगा को शीघ्रातिशीघ्र स्वच्छ और परिष्कृत बनाना था। इस महत्त्वपूर्ण परियोजना में विश्व बैंक ने भी सहयोग किया था, लेकिन 15 वर्षों में करोड़ों रुपये व्यय करके भी गंगा की स्थिति में सुधार नहीं हुआ।
31 मार्च, 2000 ई० में इस कार्यक्रम को बन्द कर दिया गया। इसके पश्चात् राष्ट्रीय नदी संरक्षण प्राधिकरण की परिचालन समिति द्वारा ‘गंगा कार्य योजना–2 (GAP–2) के अन्तर्गत गंगा को स्वच्छ करने का अभियान चलाया गया। इस योजना के अन्तर्गत गंगा में गिरनेवाले दस लाख लीटर मल–जल को रोकने, हटाने और उपचारित करने का लक्ष्य था।
नमामि गंगे–7
जुलाई, 2014 ई० को गंगा की सफाई के उद्देश्य से प्रधानमन्त्री श्री नरेन्द्र मोदीजी की अध्यक्षता में केन्द्रीय मन्त्रिमण्डल की बैठक में ‘नमामि गंगे’ योजना स्वीकृत की गई। इस योजना के अन्तर्गत गंगा को पूर्ण रूप से संरक्षित और स्वच्छ बनाने के उपाय करने का संकल्प लिया गया है। इस योजना पर लगभग 20 हजार करोड़ रुपये की धनराशि व्यय की जाएगी।
सरकार को इस कार्य में गंगा नदी घाटी प्रबन्धन योजना के अन्तर्गत सात आई० आई० टी० समूह के सदस्यों को गंगा के जल–प्रवाह को प्रदूषणरहित बनाने की तकनीक विकसित करने का दायित्व सौंपा गया है। इस योजना के अन्तर्गत भारत सरकार ने गंगा के किनारे स्थित 48 औद्योगिक इकाइयों को बन्द करने का आदेश दे दिया है।
उपसंहार–
आज केन्द्र सरकार गंगा की सफाई के प्रति सजग, सक्रिय और दृढ़–प्रतिज्ञ है। हमें भी अपने तन–मन–धन द्वारा इस अमूल्य राष्ट्रीय सम्पदा के संरक्षण के लिए आगे आना चाहिए। बनारस के ‘स्वच्छ गंगा अभियान’ के संचालक प्रोफेसर वीरभद्र मिश्र के अनुसार–“गंगा दुनिया की एकमात्र नदी है, जिस पर चालीस करोड़ लोगों का अस्तित्व निर्भर है।” अपने सांस्कृतिक अस्तित्व और देश की भलाई के लिए हमें गंगा को स्वच्छ बनाना ही होगा, जिससे एक बार फिर से गंगा–दर्शन और गंगा–स्पर्श गोस्वामी तुलसीदास की इस मान्यता की कसौटी पर खरा उतर सके-
“दरस परस अरु मज्जन पाना।
कटहिं पाप कहँ बेद–पुराना।”