मीडिया और सामाजिक उत्तरदायित्व निबंध – Essay On Social Responsibility Of Media In Hindi
लोकतन्त्र में मीडिया का उत्तरदायित्व – Responsibility Of Media In Democracy
रूपरेखा–
- प्रस्तावना,
- लोकतंत्रीय शासन व्यवस्था,
- मीडिया और उसके प्रकार,
- लोकमत,
- लोकतंत्र में मीडिया. का महत्त्व और कर्तव्य,
- स्पर्धा की दौड़ में कर्तव्यहीन मीडिया,
- उपसंहार।
साथ ही, कक्षा 1 से 10 तक के छात्र उदाहरणों के साथ इस पृष्ठ से विभिन्न हिंदी निबंध विषय पा सकते हैं।
मीडिया और सामाजिक उत्तरदायित्व निबंध – Meediya Aur Saamaajik Uttaradaayitv Nibandh
प्रस्तावना–
लोकतंत्र को जनतंत्र तथा प्रजातंत्र भी कहते हैं। जिस तंत्र में ‘लोक’ अर्थात् जनता की सत्ता सर्वोपरि होती है, वही सचमुच लोकतंत्र होता है। ‘लोकतंत्र’ जनहितकारी तथा न्याय पर आधारित शासन व्यवस्था है। इस व्यवस्था को शुद्ध और पवित्र बनाये रखने के लिए जनता का सुशिक्षित और विवेकशील होना अत्यन्त आवश्यक है। जनता को लोकतन्त्रीय प्रशिक्षण देने में मीडिया की भूमिका बहुत महत्त्वपूर्ण होती है।
लोकतंत्रीय शासन व्यवस्था–
लोकतंत्र के मूल में लोक है। लोक स्वयं ही अपने आपको शासित करता है। इसके लिए वह देश की विधायी संस्थाओं के लिए अपने प्रतिनिधि चुनता है। अपना सही प्रतिनिधि चुनना जनता का अधिकार ही नहीं कर्तव्य भी होता है।
ये निर्वाचित प्रतिनिधि ही मिलकर सरकार बनाते हैं, देश के लिए कानून बनाते हैं तथा उनका पालन कार्यपालिका द्वारा कराते हैं। इस शासन व्यवस्था में जनहित प्रमुख होता है। यदि निर्वाचित प्रतिनिधि जनता की उपेक्षा करते हैं और जनविरोधी कार्य करते हैं तो जनता उनको सत्ता से हटा देती है।
मीडिया और उसके प्रकार–संचार–
साधन को मीडिया कहते हैं। मीडिया दो प्रकार का है–प्रिन्ट (मुद्रित) मीडिया तथा इलैक्ट्रानिक मीडिया। प्रिंट मीडिया के अन्तर्गत समाचार–पत्र तथा पत्रिकाएँ आती हैं। कुछ पत्रिकाएँ साप्ताहिक होती हैं तो कुछ मासिक, त्रैमासिक और वार्षिक भी होती हैं।
पत्रिकाएँ विषय–वस्तु के अनुसार भिन्न–भिन्न प्रकार की होती हैं। दूरदर्शन, रेडियो, इण्टरनेट आदि इलैक्ट्रानिक मीडिया के अन्तर्गत आते हैं। दूरदर्शन पर अनेक चैनल हैं। कुछ केवल मनोरंजक सामग्री प्रस्तुत करते हैं तो कुछ समाचार और चिन्तन सम्बन्धी।
लोकमत–
मीडिया का प्रमख उत्तरदायित्व है–लोकमत का निर्माण और प्रकाशन। समाचार–पत्र तथा दरदर्शन आदि को समाचारों को निष्पक्ष होकर प्रस्तुत करना चाहिए। किसी समाचार अथवा घटना की समीक्षा करते समय भी उसका दृष्टिकोण तटस्थता का होना चाहिए।
उसे जनता को किसी समस्या के सम्बन्ध में अपना मत निश्चित करने के लिए प्रेरित करना चाहिए। लोकमत या जनमत के निर्माण में मीडिया का महत्वपूर्ण स्थान है। ईमानदार और कर्तव्यपरायण मीडिया ही निष्पक्ष जनमत का निर्माता होता है। मीडिया के न होने या कर्तव्यहीन होने से जनतंत्र का अस्तित्व भी संकट में पड़ सकता है।
लोकतंत्र में मीडिया का महत्त्व और कर्तव्य–
मीडिया लोकतंत्र में अत्यन्त महत्त्वपूर्ण होता है। मीडिया को कार्य करने की पूरी स्वतन्त्रता होती है। उसका कर्तव्य होता है कि वह किसी घटना, समाचार आदि को पूर्णत: तटस्थ रहकर जनता के सामने प्रस्तुत करे। वह यह कार्य इस प्रकार करे कि जनता उस पर विश्वास करे तथा फिर स्वयं उस पर कोई निष्पक्ष निर्णय ले सके।
कुछ समाचार–
पत्र तथा दूरदर्शन के चैनल किसी बात को तटस्थ होकर प्रस्तुत नहीं करते। मीडिया जनता का प्रशिक्षक भी होता है। वह सच्चा प्रशिक्षक तभी बन सकता है, जब वह प्रत्येक पूर्वाग्रह से मुक्त होकर सच्चाई को सामने लाये। लोगों के बीच किसी समाचार–पत्र अथवा दूरदर्शन चैनल की लोकप्रियता अधिक होने के पीछे उसकी कार्य–प्रणाली का ही महत्व होता है।
स्पर्द्धा की दौड़ में कर्तव्यहीन मीडिया–
आज का युग स्पर्द्धा का है। प्रत्येक क्षेत्र में आगे निकलने की होड़ है। मीडिया में भी यह स्पर्धा अत्यन्त प्रबल है। हर समाचार–पत्र चाहता है कि उसकी प्रसार संख्या अथवा ग्राहक संख्या बढ़े। दूरदर्शन के चैनलों में भी गलाकाट प्रतियोगिता है। प्रत्येक चैनल अपना टी. आर. पी. बढ़ाना चाहता है।
इसके लिए वह सनसनीखेज तथा लोगों को आकर्षित करने वाले समाचार प्रसारित करता है। मीडिया पर आने वाले विज्ञापन तथा कार्यक्रम इसी उद्देश्य को ध्यान में रखकर प्रस्तुत किये जाते हैं। इसी कारण दूरदर्शन के कार्यक्रमों में अश्लीलता बढ़ रही है।
किसी कार्यक्रम को प्रस्तुत करते समय मुख्य लक्ष्य अधिक से अधिक पाठकों या दर्शकों को स्वयं से जोड़ना होता है, यह नहीं देखा जाता कि इसका समाज पर क्या प्रभाव होगा।
आजकल दूरदर्शन ऐसे कार्यक्रम प्रस्तुत करता है जिससे जनता में आत्मबल के स्थान पर अन्धविश्वास तथा भाग्यवाद को बढ़ावा मिलता है। प्रत्येक चैनल पर कोई–न–कोई तथाकथित बाबा, साधु, महात्मा, ज्योतिषी इत्यादि जनता को भ्रमित करने के लिए उपस्थित रहता है। कुछ विज्ञापन तो कानून का मजाक उड़ाते हैं। इलैक्ट्रानिक सामान, बाइक, कार आदि के कुछ विज्ञापन दहेज कानून को तोड़ते हैं।
उपसंहार–
मीडिया को लोकतन्त्र का चौथा स्तम्भ, जनतन्त्र का प्रहरी आदि कहा जाता है। जो स्वयं अनुशासन में नहीं वह लोकतन्त्र का क्या मार्गदर्शन कर पाएगा। इलैक्ट्रानिक मीडिया के कुछ वर्ग तो मनमानी पर उतर आए हैं। इस प्रकृति पर नियन्त्रण आवश्यक है। मीडिया के लिए भी एक आचार संहिता आवश्यक है।