सत्संगति पर निबंध – Satsangati Essay In Hindi

सत्संगति पर निबंध – Essay On Satsangati In Hindi

कदली सीप भुजंग मुख, स्वाति एक गुण तीन।
जैसी संगत बैठिए, तैसो ही फल दीन्ह।।

साथ ही, कक्षा 1 से 10 तक के छात्र उदाहरणों के साथ इस पृष्ठ से विभिन्न हिंदी निबंध विषय पा सकते हैं।

सत्संगति अच्छी संगति को कहते हैं। जिस प्रकार पारस के स्पर्श से लोहा भी सोना बन जाता है, वैसे ही सत्संगति के प्रभाव से व्यक्ति श्रेष्ठ बन जाता है तथा उसके महान बनने का मार्ग प्रशस्त हो जाता है।

अच्छी या बुरी संगति व्यक्ति पर प्रभाव अवश्य डालती है। अच्छे मनुष्यों की संगति यदि मनुष्य को सत्मार्ग की ओर अग्रसर करती है तो कुसंगति पतन के गर्त में ढकेल देती है। कागज की कोठरी में कितना भी बुद्धिमान मनुष्य क्यों न जाए, उस पर काजल का कोई न कोई चिहन अवश्य अंकित हो जाता है, ठीक वैसे ही संगति के प्रभाव से बचा नहीं जा सकता।

यदि मनुष्य अच्छी संगति में रहता है तो उस पर अच्छे संस्कार पड़ते हैं और यदि उसकी संगति बुरी है तो उसकी आदतें बुरी हो जाती हैं। सत्संगति से व्यक्ति असत्य से सत्य की ओर, कुमार्ग से सुमार्ग की ओर, कुप्रवृत्तियों से सद्प्रवृत्तियों की ओर तथा बुराई से अच्छाई की ओर प्रवृत्त होता है। इसलिए कबीर ने कहा है कि-

कबिरा संगति साधु की ज्यों गंधी की बास।
जो कछु गंधी दे नहीं, तो भी बास सुबास ।।

सत्संगति बुधि की जड़ता हर लेती है, वाणी की सच्चाई लाती है, सम्मान है आदर का कारण बनती है, कीर्ति का विस्तार करती। है तथा जीवन को उन्नति के पथ की ओर अग्रसर करती है। बाल्मीकि जो पहले रत्नाकर डाकू थे, नारद मुनि के संपर्क में आने । पर बाल्मीकि बन गए। दुर्दीत डाकू अंगुलिमाल महात्मा बुद्ध का सान्निध्य प्राप्त करके अपनी क्रूरता खो बैठा और उसने बौद्ध धर्म अपना लिया।

मनुष्य, चाहे वह बड़ा हो या छोटा, संगति से ही पहचाना जाता है। संगति की छाप उसके आचरण पर पड़ती है। एक अच्छा लड़का भी कुसंगति में पड़कर चोर और जेबकतरा बन सकता है। आजकल नशे की लत कुसंगत का ही परिणाम है।

जन्म से कोई भी व्यक्ति न अच्छा होता है, न बुरा। यही कारण है कि अच्छे मनुष्यों के साथ रहने पर सुख और यश मिलता है। सत्संग के द्वारा अपने अंदर गुण अंकुरित एवं पल्लवित होते हैं। इसके विपरीत बुरे मनुष्यों की संगति में रहने से सुख तो मिलता नहीं, बल्कि जो प्राप्त है वह भी छिन जाता है।

सत्संगति अनेक गुणों की जननी है तो कुसंगति अनेक दुर्गुणों की पोषक। अत: व्यक्ति को चाहिए कि सदैव श्रेष्ठजनों की संगति करे और बुरे लोगों की संगति से बचे।

विद्यार्थी जीवन में संगति के प्रति सावधानी और भी आवश्यक है, क्योंकि इसी काल में भविष्य पर अच्छे-बुरे प्रभाव अंकित हो जाते हैं, जो जीवन भर चलते हैं। इसलिए विद्यार्थी को अपनी संगति के प्रति विशेष सावधानी रखनी चाहिए।