सारे जहाँ से अच्छा हिंदुस्तान हमारा निबंध इन हिंदी – Sare Jahan Se Achha Hindustan Hamara Essay In Hindi

सारे जहाँ से अच्छा हिंदुस्तान हमारा निबंध इन हिंदी – Essay On Sare Jahan Se Achha Hindustan Hamara In Hindi

अन्य सम्बन्धित शीर्षक– देश हमारा, प्राणों से प्यारा, जननीजन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी।।

रूपरेखा–

  1. प्रस्तावना,
  2. भारत की सीमाएँ,
  3. विभिन्न धर्मों का संगम,
  4. भारत का प्राकृतिक सौन्दर्य,
  5. महापुरुषों की धरती,
  6. भारत के आदर्श,
  7. उपसंहार

साथ ही, कक्षा 1 से 10 तक के छात्र उदाहरणों के साथ इस पृष्ठ से विभिन्न हिंदी निबंध विषय पा सकते हैं।

प्रस्तावना–
स्वामी विवेकानन्द ने कहा था कि “यदि पृथ्वी पर ऐसा कोई देश है, जिसे हम पुण्यभूमि कह सकते हैं; यदि कोई ऐसा स्थान है, जहाँ पृथ्वी के सब जीवों को अपना कर्मफल भोगने के लिए आना पड़ता है; यदि कोई ऐसा स्थान है, जहाँ भगवान् को प्राप्त करने की आकांक्षा रखनेवाले जीवमात्र को आना होगा; यदि कोई ऐसा देश है, जहाँ मानव–जाति के भीतर क्षमा, धृति, दया, शुद्धता आदि सद्वृत्तियों का अपेक्षाकृत अधिक विकास हुआ है तो मैं निश्चित रूप से कहूँगा कि वह हमारी मातृभूमि भारतवर्ष ही है।”

भारत देश हमारे लिए स्वर्ग के समान सुन्दर है। इसने हमें जन्म दिया है। इसकी गोद में पलकर हम बड़े हुए हैं। इसके अन्न–जल से हमारा पालन–पोषण हुआ है। इसलिए हमारा कर्त्तव्य है कि हम इसे प्यार करें, इसे अपना समझें तथा इस पर सर्वस्व न्योछावर कर दें।

Sare Jahan Se Achha Hindustan Hamara Essay In Hindi

भारत की सीमाएँ–
आधुनिक भारत उत्तर में कश्मीर से लेकर दक्षिण में कन्याकुमारी तक और पूर्व में असम से लेकर पश्चिम में गुजरात तक फैला हुआ है। उत्तर में भारतमाता के सिर पर हिममुकुट के समान हिमालय सुशोभित है तथा दक्षिण में हिन्द महासागर इसके चरणों को निरन्तर धोता रहता है।

Sare Jahan Se Achha Hindustan Hamara Essay

विभिन्न धर्मों का संगम–
मेरा प्यारा भारत संसार के बड़े राष्ट्रों में से एक है और यह संसार का सबसे बड़ा प्रजातान्त्रिक राष्ट्र है। जनसंख्या की दृष्टि से इसका विश्व में दूसरा स्थान है। यहाँ पर प्रायः सभी धर्मों के लोग मिल–जुलकर रहते हैं। यद्यपि यहाँ हिन्दुओं की संख्या सबसे अधिक है; फिर भी मुसलमान, ईसाई, पारसी, यहूदी, बौद्ध, जैन आदि भी इस देश के निवासी हैं और उन्हें न केवल समान अधिकार प्राप्त हैं, वरन् सरकार द्वारा उन्हें विशेष संरक्षण भी प्रदान किया जाता है।

सभी धर्मों के माननेवालों को यहाँ अपनी–अपनी उपासना–पद्धति को अपनाने की पूरी स्वतन्त्रता है। यहाँ सभी अपनी सामाजिक व्यवस्था के अनुसार अपना जीवन–निर्वाह करते हैं। इस प्रकार भारत देश एक कुटुम्ब के समान है। इसे समस्त धर्मों का संगम–स्थल भी कह सकते हैं।

भारत का प्राकृतिक सौन्दर्य–
भारत में प्रकृति–सुन्दरी ने अनुपम रूप प्रदर्शित किया है। चारों ओर फैली हुई प्राकृतिक सुन्दरता यहाँ बाहर से आनेवालों को मोहित करती रही है। यहाँ हिमालय का पर्वतीय प्रदेश है, गंगा–यमुना का समतल मैदान है, पर्वत और समतल मिश्रित दक्षिण का पठार है और इसके साथ ही राजस्थान का रेगिस्तान भी है। यह वह देश है, जहाँ पर छह ऋतुएँ समय–समय पर आती हैं और इस देश की धरती की गोद विविध प्रकार के अनाज, फलों एवं फूलों से भर देती हैं।

भारत के पर्वत, निर्झर, नदियाँ, वन–
उपवन, हरे–भरे मैदान, रेगिस्तान एवं समुद्र–तट इस देश की शोभा के अंग हैं। एक ओर कश्मीर में धरती का स्वर्ग दिखाई देता है तो दूसरी ओर केरल की हरियाली मन को स्वर्गिक आनन्द से भर देती है। यहाँ अनेक नदियाँ हैं, जिनमें गंगा, यमुना, कावेरी, कृष्णा, नर्मदा, रावी, व्यास आदि प्रसिद्ध हैं। ये नदियाँ वर्षभर इस देश की धरती को सींचती हैं, उसे हरा–भरा बनाती हैं और अन्न–उत्पादन में निरन्तर सहयोग करती हैं।

महापुरुषों की धरती–
भारत अत्यन्त प्राचीन देश है। यहाँ पर अनेक ऐसे महापुरुषों का जन्म हुआ है, जिन्होंने मानव को संस्कृति और सभ्यता का पाठ पढ़ाया। यहाँ पर अनेक ऋषि–मुनियों ने जन्म लिया, जिन्होंने वेदों का गान किया तथा उपनिषद् और पुराणों की रचना की। यहाँ राम जन्मे, जिन्होंने न्यायपूर्ण शासन का आदर्श स्थापित किया।

यहाँ श्रीकृष्ण का जन्म हुआ, जिन्होंने गीता का ज्ञान देकर कर्म का पाठ पढ़ाया, यहाँ पर बुद्ध और महावीर ने अवतार लिया, जिन्होंने मानव को अहिंसा की शिक्षा दी। यहाँ पर बड़े–बड़े प्रतापी सम्राट भी हो चुके हैं। विक्रमादित्य, चन्द्रगुप्त मौर्य, अशोक, अकबर आदि के नाम सारे संसार में प्रसिद्ध हैं। आधुनिककाल में गरीबों के मसीहा महात्मा गांधी, विश्व–मानवता के प्रचारक रवीन्द्रनाथ टैगोर और शान्तिदूत पं० जवाहरलाल नेहरू का जन्म भी इसी महान् देश में हुआ है।

भारत के आदर्श–
भारत त्याग और तपस्या की भूमि है। प्राचीनकाल से आज तक कितने ही महापुरुषों ने इस पवित्र भूमि की गरिमा बढ़ाते हुए अपनी इच्छाओं और विषय–वासनाओं का त्याग कर दिया। अपनी परतन्त्रता के लम्बे समय में भारत ने अपनी गरिमा और महानता को कुछ काल के लिए विस्मृत कर दिया था, किन्तु आस्था और संकल्प, विश्वास और कर्म, सत्य और धर्म इस धरती से मिटाए न जा सके।

अनेक व्यक्तियों को भारतीय विचार, भारतीय आचार–व्यवहार तथा भारतीय दर्शन और साहित्य पहली दृष्टि में तो कुछ अनुपयुक्त से प्रतीत होते हैं, किन्तु यदि धीरतापूर्वक मन लगाकर भारतीय ग्रन्थों का अध्ययन करें और इनके मूल गुणों का परिचय प्राप्त करें तो अधिकांश व्यक्ति भारत के विचार–सौन्दर्य पर मुग्ध हो जाएँगे।

स्वामी विवेकानन्द ने कहा था कि “हमारी मातृभूमि दर्शन, धर्म, नीति, विज्ञान, मधुरता, कोमलता अथवा मानव–जाति के प्रति अकपट प्रेमरूपी सद्गुणों को जन्म देनेवाली है। ये सभी चीजें अभी भी भारत में विद्यमान हैं। मुझे पृथ्वी के सम्बन्ध में जो जानकारी है, उसके बल पर मैं दृढ़तापूर्वक कह सकता हूँ कि इन चीजों में पृथ्वी के अन्य प्रदेशों की अपेक्षा भारत श्रेष्ठ है।”

उपसंहार–
इस प्रकार धर्म, संस्कृति, दर्शन का संगम, संसार को शान्ति और अहिंसा का सन्देश देनेवाला, मानवता का पोषक तथा ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ का नारा देनेवाला भारत भला किसको प्रिय न होगा! इसकी इन्हीं विशेषताओं के कारण महान् शायर इकबाल ने कहा था-

सारे जहाँ से अच्छा हिन्दोस्ताँ हमारा।
हम बुलबुले हैं इसकी, यह गुलिस्ताँ हमारा॥