रेलवे प्लेटफार्म का दृश्य पर निबंध – Essay On Railway Platform Ka Drishya In Hindi
संकेत बिंदु :
- भूमिका
- पुरानी दिल्ली रेलवे स्टेशन का आँखें देखा वर्णन
- टिकट लेने के दौरान संघर्ष
- कोलाहलपूर्ण वातावरण
- भीड़ देखकर वापस घर आना।
साथ ही, कक्षा 1 से 10 तक के छात्र उदाहरणों के साथ इस पृष्ठ से विभिन्न हिंदी निबंध विषय पा सकते हैं।
घूमना-फिरना मनुष्य के स्वभाव का अंग है। वर्तमान की भागमभाग वाली जिंदगी में उसे कुछ ज्यादा ही घूमने-फिरने का अवसर मिल जाता है। पिछली गर्मियों में मुझे भी अपने मित्र के साथ हरिद्वार जाने का अवसर मिला, जब मैंने रेलवे स्टेशन पर ऐसा दृश्य देखा जो लंबे समय तक याद रहेगा।
रेल यात्रा द्रुतगामी और आरामदायक साधन है, यही सोचकर हम दोनों मित्रों ने रेल से हरिद्वार जाने का निर्णय लिया। जल्दी में वहाँ जाने का कार्यक्रम बनाने के कारण हमारा आरक्षण नहीं हो पाया और हमें अनारक्षित डिब्बे में यात्रा करना था। हमें रात दस बजे की ट्रेन पकड़नी थी। अतः हम आटो से साढ़े आठ बजे ही पुरानी दिल्ली स्टेशन पर पहुँच गए।
मैं रेलवे स्टेशन के बाहर का दृश्य देखकर चकित ह गया। भव्य एवं विशाल स्टेशन के बाहर सड़क के किनारे स्कूटर, मोटर साइकिल, आटोरिक्शा, टैक्सी की भीड़ थी। कुछ सवारियाँ ला रहे थे तो कुछ गंतव्य की ओर जा रहे थे और बाकी सवारियों के इंतजार में खड़े थे। खाली जगहों पर लोग चादर बिछाए लेटे थे। बड़ी मुश्किल से हम अंदर गए।
टिकट काउंटर पर लंबी-लंबी कतारें लगी थीं। कुछ लोग खिड़की के पास बिना कतार के टिकट लेने की अनधिकृत चेष्टा कर रहे थे। हम पसीने में नहा रहे थे। ‘जेबकतरों से सावधान’ का बोर्ड पढ़कर मैं गर्मी को भूलकर सजग हो उठा। करीब चालीस मिनट बाद हमारा नंबर आया। हम टिकट लेकर प्लेटफार्म की ओर चले।
प्लेटफार्म पर कुछ लोगों के पास इतना सामान था कि दो-दो कुली उन्हें उठा रहे थे। प्लेटफार्म पर सामान और आदमियों के कारण तिल रखने की भी जगह नहीं बची थी। धक्का-मुक्की के कारण बुरा हाल था। चारों ओर शोर-ही-शोर था। कहीं बेंडर्स की आवाजें तो किसी अन्य प्लेटफार्म पर आती-जाती ट्रेन का। यात्रियों का शोर इन सबसे बढ़कर था। अत्यंत कोलाहलपूर्ण वातावरण था।
प्लेटफार्म पर अत्यंत छोटे-छोटे स्टॉल थे। इन पर अखबार विभिन्न प्रकार की पत्र-पत्रिकाएँ, चाय, बिस्कुट, पान, सिगरेट, खाने की वस्तुएँ (खाना), शीतल पेय, पर्स, बेल्ट, रूमालें, सुराहियाँ, गिलास आदि बिक रहे थे। लोग पानी की बोतलें, चाय, खाने-पीने की वस्तुएँ अधिक खरीद रहे थे, पर अधिक दाम लेने के कारण दुकानदारों से लड़-झगड़ रहे थे।
इतने में दूसरी ओर पटरी पर ट्रेन आकर रुकी। ठहरी भीड़ में हलचल मच गई। धक्का-मुक्की मच गई। यात्री चढ़ने-उतरने लगे और कुली डिब्बों की ओर भागने लगे। भगदड़ जैसा दृश्य उत्पन्न हो गया। इसी बीच हरिद्वार जाने वाली ट्रेन आ गई। जनरल डिब्बे की भीड़ देख हमारे पसीने छूट गए। लोग पहले से ही गेट और पायदान पर लटके थे। लाख प्रयास के बाद भी हम डिब्बे में न जा सके। मेरी जेब कट चुकी थी। मित्र के पास बचे पैसों से हम किसी तरह घर लौटकर आ सके।