जनसंख्या वृद्धि के दुष्परिणाम पर निबंध – Problem Of Increasing Population Essay In Hindi

जनसंख्या वृद्धि के दुष्परिणाम पर निबंध – Essay On Problem Of Increasing Population In Hindi

जनसंख्या–वृद्धि : घटती समृद्धि – Population Growth: Decreasing Prosperity

रूपरेखा–

  • प्रस्तावना,
  • बढ़ती जनसंख्या की समस्या,
  • जनसंख्या वृद्धि के दुष्परिणाम,
  • नियन्त्रण के उपाय,
  • उपसंहार।

साथ ही, कक्षा 1 से 10 तक के छात्र उदाहरणों के साथ इस पृष्ठ से विभिन्न हिंदी निबंध विषय पा सकते हैं।

जनसंख्या वृद्धि के दुष्परिणाम पर निबंध – Janasankhya Vrddhi Ke Dushparinaam Par Nibandh

प्रस्तावना–
भूमि, जन और संस्कृति ये तीनों राष्ट्र के अनिवार्य अंग माने गए हैं। इनमें भूमि और संस्कृति दोनों का महत्त्व ‘जन’ के सापेक्ष ही होता है। जन के बिना भूमि निरर्थक है और संस्कृति का विकास ही सम्भव नहीं है। जन या जनसंख्या का अति विस्तार भी राष्ट्र के लिए घातक होता है,

क्योंकि उसके भरण–पोषण और सुरक्षा के लिए, उत्तरदायित्व जन को ही निभाना पड़ता है। आज हमारे देश में बेलगाम बढ़ती जनसंख्या एक विकट चुनौती बनी हुई है। विकास का रथ एक अरब से भी अधिक जनसंख्या को ढोने में असहाय–सा दिखाई दे रहा है।

बढ़ती जनसंख्या की समस्या–
भारत की जनसंख्या में अनियंत्रित वृद्धि सारी समस्याओं का मूल कारण बनी हुई है। गरीबी, बेरोजगारी, अशिक्षा, अपराधवृद्धि, तनाव, असुरक्षा, सभी जनसंख्या वृद्धि के ही परिणाम हैं। यद्यपि सरकार और विवेकशील नागरिक इस पर नियंत्रण के प्रयास करते आ रहे हैं, किन्तु स्थिति ऐसी है कि ‘जस जस सुरसा बदन बढ़ावा। तासु दुगन कपि रूप दिखावा।

‘ भारत के विश्व की महाशक्ति बनने के सपने जनसंख्या के प्रहार से ध्वस्त होते दिखाई दे रहे हैं। ‘एक अनार सौ बीमार’ यह कहावत चरितार्थ हो रही है। जनसंख्या वृद्धि के महा–अश्वमेध का घोड़ा. शेयर बाजार के उफान, मुद्राकोष की ठसक, विदेशी निवेश की दमक सबको अँगूठा दिखाता, आगे–आगे दौड़ रहा है।

जनसंख्या–
वृद्धि के दुष्परिणाम–जब किसी समाज के सदस्यों की संख्या बढ़ती है तो उसे उनके भरण–पोषण के लिए जीवनोपयोगी वस्तुओं की भी आवश्यकता पड़ती है। उत्पादन तथा जनसंख्या वृद्धि में संतुलन न होने से जनसंख्या आगे चलने लगती है, फलस्वरूप जनसंख्या–वृद्धि आगे–आगे दौड़ती है और पीछे–पीछे उत्पादन–वृद्धि। जनसंख्या और उत्पादन–दर में चोर–सिपाही का खेल शुरू हो जाता है।

वास्तविकता यह है कि उत्पादन वृद्धि के सारे लाभ को जनसंख्या की वृद्धि व्यर्थ कर . देती है। आज हमारे देश में यही हो रहा है। जनसंख्या–वृद्धि सारी समस्याओं की जननी है। बढ़ती महँगाई, बेरोजगारी, कृषि–भूमि की कमी, उपभोक्ता–वस्तुओं का अभाव, यातायात की कठिनाई सबके मूल में यही बढ़ती जनसंख्या है।

नियंत्रण के उपाय–
आज के विश्व में जनसंख्या पर नियंत्रण रखना प्रगति और समृद्धि के लिए अनिवार्य आवश्यकता है। भारत जैसे विकासशील देश के लिए जनसंख्या नियंत्रण परम आवश्यक है। जनसंख्या पर नियंत्रण के अनेक उपाय हो सकते हैं। वैवाहिक आयु में वृद्धि करना एक सहज उपाय है। बाल–विवाहों पर कठोर नियंत्रण होना चाहिए। दूसरा उपाय, संतति–निग्रह अर्थात् छोटा परिवार है।

परिवार नियोजन के अनेक उपाय आज उपलब्ध हैं। तीसरा उपाय, राजकीय सुविधाएँ केवल परिवार नियोजन का पालन करने वालों तक सीमित करना है। परिवार नियोजन अपनाने वाले व्यक्तियों को वेतन वृद्धि देकर, पुरस्कृत करके तथा नौकरियों में प्राथमिकता देकर भी जनसंख्या–नियंत्रण को प्रभावी बनाया अतिरिक्त शिक्षा के प्रसार द्वारा तथा धार्मिक और सामाजिक नेताओं का सहयोग भी जनसंख्या नियंत्रण में सहायक हो सकता है।

उपसंहार–
जनसंख्या की अनियंत्रित वृद्धि खतरे की घंटी है। यह विस्फोटक बनकर राष्ट्र के कुशल–क्षेम को निगल जाय, उससे पहले ही इस समस्या का गम्भीरता से निराकरण होना चाहिए। आज संसार में संख्या–बल नहीं, अर्थ और बुद्धि–बल से ही सफलता प्राप्त होती है। भारत को एक समृद्ध और शक्ति–सम्पन्न राष्ट्र बनाने के लिए जनसंख्या की असीमित वृद्धि को यथाशीघ्र नियंत्रित करना चाहिए।