गरीबी पर निबंध – Poverty Essay in Hindi

गरीबी पर बड़े तथा छोटे निबंध (Essay on Poverty in Hindi)

गरीबी : कारण और निवारण – Poverty: Causes and Prevention

रूपरेखा :

  1. प्रस्तावना,
  2. गरीबी की रेखा,
  3. गरीबी के कारण,
  4. गरीबी का परिणाम : क्रान्ति और अपराध,
  5. गरीबी को रोकने के उपाय,
  6. उपसंहार।

साथ ही, कक्षा 1 से 10 तक के छात्र उदाहरणों के साथ इस पृष्ठ से विभिन्न हिंदी निबंध विषय पा सकते हैं।

प्रस्तावना–

“श्वानों को मिलता दूध–वस्त्र, भूखे बालक अकुलाते हैं,
माँ की हड्डी से चिपक, ठिठुर जाड़ों की रात बिताते हैं।
युवती के लज्जा–वसन बेच जब ब्याज चुकाये जाते हैं।
मालिक जब तेल–फुलेलों पर पानी–सा द्रव्य बहाते हैं।
पापी महलों का अहंकार देता मुझको तब आमन्त्रण।”

राष्ट्रकवि रामधारी सिंह ‘दिनकर’ की उपर्युक्त पंक्तियाँ गरीबी की पराकाष्ठा को व्याख्यायित करती हैं। आर्थिक असमानता न केवल गरीबी का अभिशप्त जीवन बिताने को विवश करती है, क्रान्ति और अपराध को जन्म देती है। गरीबी एक ऐसी विषम मानवीय परिस्थिति है, जो मानव को निराशा, दुःख और दर्द के अँधेरे में जीवन बिताने को विवश करती है।

एक ऐसा अभिशप्त जीवन जिसमें लोग जीवन की आधारभूत आवश्यकताओं–रोटी, कपड़ा और मकान के लिए तरसते हैं। स्वस्थ पोषण, दवा और रोजगार तो उनके लिए सपना है। गरीबी एक ऐसी अदृश्य समस्या है, जो एक व्यक्ति और उसके सामाजिक जीवन को छिन्न–भिन्न कर देती है। यह समस्या भारत के लिए अभिशाप बन चुकी है।

गरीबी की रेखा–
भारत में शहरों में रहनेवाले जनजातीय लोग, दलित और मजदूर–वर्ग और खेतिहर मजदूर गरीबी की श्रेणी में आते हैं। वर्तमान में 29.8 प्रतिशत भारतीय आबादी गरीबी रेखा के नीचे रहती है।

गरीबी की श्रेणी में वह लोग आते हैं, जिनकी दैनिक आय शहर में 28.65 रुपये और गाँवों में 22.24 रुपये से कम है। सांख्यिके आँकड़ों के अनुसार 30 रुपये प्रतिदिन कमाने वाला व्यक्ति गरीब नहीं है। इस प्रकार के आँकड़ों द्वारा गरीबी कम की जा रही है, जो दुश्चिन्ता का विषय है।

गरीबी के कारण भारत में गरीबी का मुख्य कारण बढ़ती जनसंख्या है। इससे निरक्षरता, खराब स्वास्थ्य और वित्तीय संसाधनों की कमी की दर बढ़ती है। भारत में जिस गति से जनसंख्या बढ़ रही है, उस गति से अर्थव्यवस्था नहीं बढ़ रही है। इसका परिणाम नौकरियों में कमी के रूप में सामने होगा। इतनी आबादी के लिए लगभग 20 मिलियन नई नौकरियाँ चाहिए।

यदि ऐसा नहीं होता तो गरीबी के साथ अपराध और विद्रोह भी बढ़ेगा। आय के संसाधन का असमान वितरण भी गरीबी को बढ़ाता है। सरकारी संस्थानों में एक व्यक्ति कम समय–श्रम लगाकर अधिक धन अर्जित करता है, वही कार्य व्यक्तिगत संस्थानों में अधिक समय–श्रम लगाकर भी व्यक्ति अत्यन्त अल्प धन पाता है। यह असमानता भी गरीबी के साथ–साथ अपराध और कुण्ठा को जन्म देती है।

भारत में गरीबी का कारण जाति व्यवस्था भी है। मध्य प्रदेश के चम्बल और विन्ध्य क्षेत्र ऐसे हैं, जहाँ सामाजिक भेदभाव अपने चरम पर है। यहाँ ऊँची और निम्न जातियों के प्रति भिन्न व्यवहार किया जाता है। उन्हें समानता के अधिकार से वंचित किया जाता है, जिसके कारण वह गरीबी की दलदल से कभी बाहर नहीं निकल पाते। कृषि–व्यवस्था में असमानता भी गरीबी को बढ़ावा देती है।

भूमि पर बड़े एवं समृद्ध किसानों का अधिकार होने से भूमि की संख्या बढ़ती जा रही है। खेतिहर मजदूरों के परिवार, काफी संख्या में छोटे व सीमान्त किसान, गैर–कृषि क्षेत्रों में काम करनेवाले श्रमिक अत्यन्त गरीबी में जीवनयापन करते हैं। भ्रष्टाचार भी गरीबी बढ़ाने में अहम भूमिका निभाता है। पिछले 20–25 वर्षों में देश में हुए भ्रष्टाचार और करोड़ों रुपयों के घोटालों ने गरीबों को और गरीब बना दिया है।

बढ़ते पूँजीवाद के कारण नव उदारवादी नीतियों तथा खुदरा क्षेत्रों में विदेशी निवेश की नीतियाँ गरीबों के लिए अहितकर सिद्ध हुई हैं। नेताओं व अधिकारियों के बढ़ते वेतन और सुविधाएँ तथा उनके द्वारा एकत्र अरबों–खरबों की सम्पत्ति अमीर और गरीब के बीच की खाई को प्रतिदिन गहरा करती जा रही है।

गरीबी का परिणाम :
क्रान्ति और अपराध–गरीबी के अभिशाप से ग्रस्त भारत के करोड़ों लोग आज विभिन्न प्रकार के संकटों और शोषण से जूझ रहे हैं। व्यवस्था का कहर भी अधिकतर गरीबों पर ही मुसीबत बनकर टूटती है। पुलिस की प्रताड़ना भी सबसे अधिक गरीबों को सहनी पड़ती है, जिसके कारण गरीब अपराध की ओर अग्रसर होते हैं। आज समाज में अपराधों की बाढ़–सी आ गई है। इसका कारण आर्थिक असमानता ही है।

विकास के साथ–साथ बेरोजगारी और गरीबी की वास्तविकता आज भारतीय अर्थव्यवस्था पर प्रश्न चिह्न लगाती अनुभव होती है। गरीबी के कारण हिंसा और शोषण जैसी घटनाओं में वृद्धि हुई है। राजनीति स्वार्थ के लिए साम्प्रदायिक दंगों की आग भड़काई जाती है, जिसका शिकार गरीब ही बनते हैं, बस्तियाँ भी गरीबों की जलती हैं, फुटपाथ पर रहनेवाले लोग मारे जाते हैं।

कहीं कोई संवेदना नहीं जागती। यह उपेक्षा का भाव गरीबों को कहीं–न–कहीं आहत करता है और परिणाम अपराध के रूप में सामने आता है। गरीबी के कारण देश का नौनिहाल जब कुपोषण और भुखमरी का शिकार होगा, युवा आर्थिक असमानता के कारण कुंठित होगा, किसान आत्महत्या की दिशा में अग्रसर होगा, तो नए भारत का सपना साकार नहीं होगा। देश का युवा नक्सलवाद, आतंकवाद की ओर बढ़ेगा, सड़कों पर आन्दोलन करेगा और उसका सारा जोश पेट भरने के जुगाड़ में बह जाएगा।

गरीबी को रोकने के उपाय–देश में बढ़ती गरीबी को देखते हुए हम सबको मिलकर प्रयास करना होगा और देश को गरीबी के अभिशाप से मुक्त कराना होगा। इसमें सरकार की सहभागिता भी अनिवार्य है।

निम्नलिखित उपायों द्वारा गरीबी के अभिशाप को रोका जा सकता है-

  • गरीबों के लिए पर्याप्त भूमि, जल, शिक्षा, स्वास्थ्य, ईंधन और परिवहन की सुविधा का विस्तार किया जाना चाहिए।
  • स्वरोजगार व मजदूरी रोजगार कार्यक्रमों में समन्वय किया जाए।
  • ऐसे परिवार जिनके पास न कोई कौशल है, न कोई परिसम्पत्ति है और न कोई काम करनेवाला वयस्क है,
  • ऐसे परिवारों के लिए सामाजिक योजनाएँ बनाई जाएँ तथा उन्हें सुरक्षा दी जाए।
  • गाँवों में बड़े किसानों और सामन्तों द्वारा गरीबों के शोषण को रोका जाए।
  • गरीबी निवारण कार्यक्रमों का अधिकतर लाभ अमीरों के बदले गरीबों को ही मिले।
  • ल गरीबों के दो वर्ग बनाए जाएँ। एक वर्ग में वे गरीब हों, जिनके पास कोई कौशल है और वे स्वरोजगार कर सकते हैं।
  • दूसरे वर्ग में वे गरीब हों, जिनके पास कोई कौशल नहीं है और वे मजदूरी पर आश्रित हैं,
  • उनकी उन्नति के लिए नीतियों का अलग–अलग निर्धारण किया जाए।
  • लघु उद्योगों को बढ़ावा दिया जाए।
  • गरीबी निवारण कार्यक्रमों की प्रतिवर्ष समीक्षा व मूल्यांकन किया जाए तथा साधनों के निजी स्वामित्व,
  • आय व साधनों के असमान वितरण व प्रयोगों पर नियन्त्रण किया जाए।

सरकार द्वारा गरीबी–निवारण हेतु अनेक कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं तथा अरबों रुपये इनके क्रियान्वयन में लग रहे हैं, तब भी इनका पूरा लाभ गरीबों को नहीं मिल पा रहा है। ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन, राष्ट्रीय सामाजिक सहायता योजना, शिक्षा सहयोग योजना, अन्त्योदय अन्न योजना, बालिका संरक्षण योजना, सामूहिक जीवन बीमा योजना, प्रधानमन्त्री ग्रामोदय योजना, विजन 2020 फॉर इण्डिया आदि अनेक सैकड़ों योजनाएँ सरकार द्वारा चलाई जा रही हैं। आवश्यकता है कि सबका लाभ गरीबों को ही मिले तो गरीबी के अभिशाप से निकला जा सकता है।

उपसंहार–
वर्तमान सन्दर्भो में गरीबी को ठीक प्रकार से आँकना भी एक चुनौती ही है। आज प्रत्येक मुद्दे को तकनीक के आधार पर समझा जा रहा है।

औद्योगिकीकरण आज का प्रथम लक्ष्य बन चुका है, किसी गरीब के पास आँखें हों न हों, पर घर में रंगीन टी०वी० जरूर उपलब्ध हो। प्रत्येक वर्ष नए आँकड़े और सूचीबद्ध लक्ष्य रखे जाते हैं, व्यवस्था में प्रत्येक वस्तु को, प्रत्येक अवस्था को आँकड़ों में मापा जाता है, प्रत्येक आवश्यकता को प्रतिशत में पूरा किया जाता है और इसी आधार पर गरीबी को भी मापने का प्रयास किया जाता है।

ऐसा नहीं है कि गरीबी को मिटाया नहीं जा सकता लेकिन स्वार्थपरता इस अभियान में व्यवधान डालती है। व्यवस्था इस बात को सदैव अहम मानकर मुद्दा बनाती आई है। यही सोच गरीबी को अभिशाप बनाए रखने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती आ रही है, लेकिन इस सोच को रखनेवाले यह नहीं जानते कि कहीं–न–कहीं वे भी इस समस्या से प्रभावित होते हैं।

प्रसिद्ध अर्थशास्त्री अमर्त्य सेन के अनुसार–
“लोगों को इतना गरीब नहीं होने देना चाहिए कि उनसे घिन आने लगे, या वे समाज को नुकसान पहुँचाने लगे। इस नजरिए में गरीबों के कष्ट और दुःखों का नहीं, बल्कि समाज की असुविधाओं और लागतों का महत्त्व अधिक प्रतीत होता है।

गरीबी की समस्या उसी सीमा तक चिन्तनीय है, जहाँ तक उसके कारण, जो गरीब नहीं हो, उन्हें भी समस्याएँ भुगतनी पड़ती है।” यह कथन गरीबी के अभिशाप के कारण क्रान्ति और अपराध की वृद्धि की ओर संकेत करता है, जिसे समय रहते हमें रोकना होगा, जिससे स्वस्थ समाज की स्थापना हो सके।