पर्वतीय यात्रा पर निबंध – Essay On Parvatiya Yatra In Hindi
संकेत-बिंदु –
- भूमिका
- यात्रा का उद्देश्य
- यात्रा की तैयारी
- रास्ते के मनोरम दृश्य
- पर्वतीय स्थल का वर्णन
- यात्रा से वापसी
- उपसंहार
किसी पर्वतीय स्थल अविस्मरणीय की यात्रा (Kisee Parvateey Sthal Avismaraneey Kee Yaatra) – Trip To A Hill Station Unforgettable
साथ ही, कक्षा 1 से 10 तक के छात्र उदाहरणों के साथ इस पृष्ठ से विभिन्न हिंदी निबंध विषय पा सकते हैं।
भूमिका – मनुष्य घुमंतू स्वभाव का प्राणी है। वह आदिकाल से ही जगह-जगह घूमता रहा है। कभी वह भोजन और आवास की शरण में भटकता रहा तो कभी प्रचार-प्रसार हेतु। वर्तमान समय में भी मनुष्य काम-काज की खोज या मनोरंजन के लिए कहीं न कहीं आ जा रहा है।
यात्रा का उद्देश्य – इस साल गरमियों में मैंने अपने मित्र के साथ वैष्णो देवी की यात्रा का कार्यक्रम बनाया। इस यात्रा का उद्देश्य ‘एक पंथ दो काज’ करना था। परीक्षा का परिमाण आते ही मन बना लिया था कि इस बार वैष्णो देवी जाकर ‘माता’ के दर्शन करूँगा और पर्वतीय स्थल का प्राकृतिक सौंदर्य जी भर निहार लूँगा। ईश्वर की कृपा से वे दोनों ही काम पूरे होने थे।
यात्रा की तैयारी – वैष्णो देवी हो या अन्य पर्वतीय स्थल, गरमियों में वहाँ पर्यटकों की संख्या बढ़ जाती है। ऐसे में मैंने इन स्थानों पर जाते समय पहले से आरक्षण करवा लिया था। मैंने अपने कपड़े, टिकट, बिस्किट, नमकीन, रीयल जूस, खट्टी-मीठी गोलियाँ ए.टी.एम. कार्ड, पहचान-पत्र आदि रख लिया। इसके अलावा दो चादरें, तौलिया, जुराबें, स्लीपर (चप्पलें) आदि रख लिया। मैं ट्रेन आने के दो घंटे पहले घर से आटो लेकर निकल पड़ा। संयोग से ट्रेन आने से पहले ही मैं स्टेशन पहुँच गया। ट्रेन प्रातः चार बजकर दस मिनट पर आई और आधे घंटे बाद चल पड़ी।
रास्ते के मनोरम दृश्य – सवेरे की शीतल हवा का झोंका लगते ही मुझे नींद आ गई। लगभग सात बजे आँख खुली। दोनों ओर दूरदूर तक फैले खेत और हरे-भरे पेड़ लगता था कि वे भी कहीं भागे जा रहे हैं। चक्की बैंक स्टेशन से आगे जाते ही पहाड़ दिखने लगे। पहाड़ों को इतना निकट से देखने का यह मेरा पहला अवसर था। जम्मू स्टेशन पर उतरकर आगे की यात्रा हमने बस से की। कटरा तक करीब दो घंटे तक सीले पहाड़ी रास्ते पर चलना तेज़ मोड़ पर बस मुड़ने पर एक ओर झुकना सर्वथा नया अनुभव था।
दर्शनीय स्थल का वर्णन – कटरा पहुँचकर हमने एक कमरा किराए पर लिया। अब तक सायं के साढे चार बजने वाले थे। वहाँ आराम करके शाम को कटरा घूमने चले गए। होटल लौटकर खाना खाया और आराम किया। करीब साढ़े दस बजे मैं अपने मित्र के साथ पैदल वैष्णों देवी की यात्रा पर पैदल चल पड़ा।
पहले तो लगता था कि चौदह किलोमीटर लंबी चढ़ाई कैसे चढी जाएगी, पर बच्चों और वृधों को पैदल जाता देखकर मन उत्साहित हो गया। हम भी उनके साथ ‘जय माता दी’ कहते हुए रास्ते में चाय-कॉफ़ी पीते और आराम करते हुए हम वैष्णों देवी पहुँच गए। वहाँ करीब एक घंटे बैठकर विश्राम किया। अब तक सुबह हो गई थी। चारों ओर पहाड़ ही पहाड़, क्या अद्भुत दृश्य था। इतना सुंदर देखकर मन रोमांचित हो उठा।
वहाँ ठंडे पानी में स्नान करके कपड़े बदले, माता के दर्शन किए, प्रसाद लिया। बाहर आकर नाश्ता किया और भैरव नामक पहाड़ी की चढ़ाई करने लगे। दो घंटे बाद हम भैरव नामक मंदिर के सामने थे। पहाड़ को इस तरह देखने का अनुभव मन में रोमांच भर रहा था।
यात्रा से वापसी – भैरव नामक पहाड़ी से उतरकर हम साँझी छत नामक स्थान पर आ गए। यहाँ छोटी-सी जगह में हेलीकाप्टर का उतरना और उड़ान भरना देखकर आश्चर्य भर रहा था। हमारे साथ-साथ तवी नदी बहती हुई निरंतर चलते रहने की प्रेरणा दे रही थी। वहाँ से कटरा और कटरा से सीधे हम दिल्ली आ गए।
उपसंहार – यह मेरी पहली पर्वतीय यात्रा थी। इसकी यादें मन को अब भी रोमांच से भर देती हैं। इससे यह सीख मिलती है कि जब भी समय मिले मनुष्य को प्रकृति के निकट अवश्य जाना चाहिए।
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