Paradheen Sapnehu Sukh Naahi Essay In Hindi | पराधीन सपनेहुँ सुख नाहीं पर निबंध

Paradheen Sapnehu Sukh Naahi Essay In Hindi | पराधीन सपनेहुँ सुख नाहीं पर निबंध
पराधीन सपनेहुँ सुख नाहि संकेत बिंदु:

  • पराधीनता अभिशाप
  • पराधीनता के उदाहरण
  • स्वतंत्रता संघर्ष
  • स्वतंत्रता का महत्व

तुलसीदास ने स्वतंत्रता का महत्व प्रकट करते हुए ‘रामचरितमानस’ में पराधीनता के कष्टों का वर्णन किया है। उनके कथन ‘पराधीन सपनेहुँ सुख नाहिं’ का अर्थ है-पराधीनता का जीवन जीने वाला व्यक्ति सपनों में सुख नहीं पाता। इस संसार का प्रत्येक प्राणी स्वतंत्र जीवन व्यतीत करना चाहता है। पशु-पक्षी तक बंधनमुक्त रहना चाहते हैं फिर मनुष्य की बात ही क्या है।

पराधीनता कलंक के समान होती है। पराधीन व्यक्ति अपनी इच्छानुसार जी नहीं सकता। उसका खाना-पीना, उठना-बैठना, सोना-जागना सब दूसरों की इच्छा पर निर्भर करता है। अमेरिका में दास-प्रथा थी। दासों को पशु के समान समझा जाता था। उन्हें पशुओं के समान खरीदा और बेचा जाता था। उन पर अमानवीय अत्याचार किए जाते थे। उनके अधिकारों की रक्षा के लिए वर्षों तक संघर्ष चला। अमेरिकी राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन ने दास-प्रथा समाप्त करने में अहम भूमिका निभाई थी।

भारत में आज भी बेगारी की प्रथा का अंत नहीं हुआ है। संवैधानिक रूप से तो बेगारी की प्रथा समाप्त हो चुकी है परंतु आज भी देश के विभिन्न भागों में निर्धनता के कारण सैकड़ों पुरुष और महिलाएँ ही नहीं छोटे-छोटे बालक-बालिकाएँ दासों के समान जीवन व्यतीत कर रहे हैं। इसका कारण है घोर निर्धनता। आज भी नगरों, महानगरों में धनियों के घरों में नौकर-नौकरानियाँ दासता का जीवन जीने को विवश हैं। उनके घरों में दो समय का भोजन तक उपलब्ध नहीं होता। वे निर्धनता के कारण भुखमरी की स्थिति में जीते हैं। वे उस भुखमरी की स्थिति से तंग आकर दो समय के भोजन और कुछ वस्त्रों के लिए कार्य करने को तैयार हो जाते हैं।

असंख्य कारखानों और छोटे-छोटे काम-धंधों में पुरुष, महिलाएँ, बच्चे बहुत कम वेतन पर कार्य करते हैं। बेरोजगारी के कारण वे इसे करने को सहमत हो जाते हैं। पूंजीपति मालिक उनके साथ दुर्व्यव्यवहार करते हैं। उनका शोषण करते हैं। वे उन्हें भाँति-भाँति से अपमानित और प्रताड़ित करते हैं। निर्धनता और बेरोज़गारी के चंगुल में फँसे लोग इस प्रकार के अपमानजनक जीवन को जीने के लिए विवश हो जाते हैं। उनका दिन-रात का सुख-चैन छिन जाता है। उन्हें सपनों में भी मालिकों के धमकाने के स्वर सुनाई देते हैं।

पराधीनता का जीवन ऐसा ही होता है। मनुष्य को अपने भीतर इतनी सामर्थ्य उत्पन्न कर लेनी चाहिए जिससे वह पराश्रित न हो सके। शिक्षा ग्रहण करके स्वयं पर आश्रित होना चाहिए। उसे विभिन्न कार्यों का प्रशिक्षण लेकर स्वावलंबी बनना चाहिए। उन्हें स्वतंत्रता के महत्व को समझना चाहिए। पेट की भूख मिटाने के लिए उन्हें आत्मसम्मान नहीं गँवाना चाहिए। रामधारी सिंह ‘दिनकर’ ने स्वतंत्रता का महत्व प्रकट करते हुए कहा है-

स्वातंत्र्य गर्व उनका जो नर फाकों में प्राण गँवाते हैं,
पर नहीं बेच मन का प्रकाश, रोटी का मोल चुकाते हैं।

पराधीन वही व्यक्ति होता है जिसकी संघर्ष-शक्ति समाप्त हो जाती है। वह व्यक्ति जो मान-अपमान में भेद नहीं करता, पराधीनता का जीवन स्वीकार कर लेता है। शारीरिक, मानसिक और बौद्धिक रूप से कमजोर व्यक्ति पराधीन होता है। ऐसे अनेक महापुरुष हुए हैं जिन्होंने सुख-सुविधाओं के प्रलोभनों को स्वीकार नहीं किया। वे आजीवन कष्ट सहते रहे। महाराणा प्रताप ने अकबर के अत्याचारों के समक्ष सिर नहीं उठाया। वे आजीवन अकबर के विरुद्ध संघर्ष करते रहे। उन्हें और उनके परिवार के समक्ष भूखों मरने की स्थिति आ गई। अकबर के साथ संधि करके वे सुख-सुविधाओं भरा जीवन जी सकते थे। उन्होंने सुख-सुविधाओं से अधिक स्वतंत्रता को महत्व दिया। इसीलिए उनका उल्लेख इतिहास के स्वर्णिम पृष्ठों में किया जाता है।

झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई के समक्ष अंग्रेज़ों ने पराधीनता का प्रस्ताव रखा। लक्ष्मीबाई को पेंशन मिल जाती। वे आराम सुख-सुविधाओं भरा जीवन जीती रहतीं। उन्होंने पराधीनता की अपेक्षा संघर्ष का मार्ग अपनाया। वे जानती थीं कि अंग्रेज़ी सेना के मुकाबले उनकी स्थिति कमज़ोर है। उन्होंने नारी होकर भी अंग्रेज़ों को पराजित कर दिया। उन्होंने इतनी कुशलता से युद्ध किया कि अंग्रेज़ आश्चर्यचकित रह गए। उस वीरांगना ने स्वतंत्रता की रणभेरी बजाकर देशवासियों में नव उत्साह जगा दिया। वे अंततः शहीद हो गईं परंतु पराधीनता को नहीं स्वीकारा। ऐसे वीरों और वीरांगनाओं के लिए ही कहा गया है-

स्वातंत्र्य गर्व उनका, जिन पर संकट की घात न चलती है,
तूफ़ानों में जिनकी मशाल, कुछ और तेज़ हो जलती है।

मनुष्य को सदा स्वतंत्र रहना चाहिए। इसी प्रकार देश की स्वतंत्रता की रक्षा के लिए प्रयत्नशील रहना चाहिए। भारत ने वर्षों की पराधीनता से मुक्ति पाने के लिए लंबा संघर्ष किया। हज़ारों भारतीयों ने अपने प्राण गँवा दिए। इसके सुपरिणाम स्वरूप देश स्वाधीन हुआ। स्वाधीनता प्राप्त करना कठिन होता है तो उसकी रक्षा करना और कठिन होता है। इसलिए व्यक्ति हो अथवा राष्ट्र स्वाधीनता ही सम्मान दिलाती है। पक्षी तक पिंजरे में बंद कर दिए जाएँ तो वे भी गा उठते हैं-

हम पंछी उन्मुक्त गगन के, पिंजरबद्ध न गा पाएँगे,
कनक तीलियों से टकराकर, पुलकित पंख टूट जाएँगे।