परमाणु शक्ति और भारत हिंदी निंबध – Nuclear Energy Essay In Hindi

परमाणु शक्ति और भारत हिंदी निंबध – Essay On Nuclear Energy In Hindi

रूपरेखा–

  • प्रस्तावना,
  • परमाणु शक्ति का विकास,
  • परमाणु शक्ति का विनाशकारी रूप,
  • परमाणु शक्ति का कल्याणकारी रूप,
  • भारत में परमाणु शक्ति,
  • परमाणु शक्ति के खतरे,
  • उपसंहार।

साथ ही, कक्षा 1 से 10 तक के छात्र उदाहरणों के साथ इस पृष्ठ से विभिन्न हिंदी निबंध विषय पा सकते हैं।

परमाणु शक्ति और भारत हिंदी निंबध – Paramaanu Shakti Aur Bhaarat Hindee Nimbadh

प्रस्तावना–
सृष्टि के सम्पूर्ण तत्त्वों के मूल घटक के रूप में परमाणु की कल्पना तो दार्शनिक हजारों वर्ष पूर्व कर चुके थे, लेकिन उसे प्रयोग और प्रमाण–सिद्ध करने का श्रेय वर्तमान वैज्ञानिकों को ही प्राप्त है। आज परमाणु के विखंडन से प्राप्त महाशक्ति का प्रयोग महाविनाश और जनहित दोनों में हो रहा है।

परमाणु शक्ति का विकास–
महान् वैज्ञानिक आइन्सटीन ने सिद्ध किया कि पदार्थ को ऊर्जा और ऊर्जा को पदार्थ में परिवर्तित किया जा सकता है। उनके अनुसार एक औंस ईंधन (यूरेनियम) से 15 लाख टन कोयले के बराबर शक्ति प्राप्त की जा सकती है। वैज्ञानिक ‘रदरफोर्ड’ ने 1919 ई. में प्रथम परमाणु विस्फोट करने में सफलता प्राप्त की थी।

इसके बाद अमेरिका के वैज्ञानिकों ने सन् 1945 ई. की 13 जुलाई को एलामोगेडरो के रेगिस्तान में परमाणु बम का परीक्षण किया और सफलता प्राप्त की। इसके बाद सोवियत रूस 1949, इंग्लैण्ड. 1952, फ्रांस 1960, चीन 1964, भारत और पाकिस्तान 1998 में परमाणु–सम्पन्न देशों की पंक्ति में शामिल हुए। आज रूस और अमेरिका हाइड्रोजन बम बनाने वाले देश बन गये हैं। हाइड्रोजन बम की क्षमता हिरोशिमा पर गिराए गये बम से एक सौ पचास गुना अधिक है। न्यूट्रोन बम की कल्पना भी भविष्य के गर्भ में है।

परमाणु शक्ति का विनाशकारी रूप–
किसी भी आविष्कार के विनाशक और कल्याणकारी दोनों ही रूप होते हैं। दुर्भाग्य की बात है कि परमाणु शक्ति का राजनेताओं ने विनाशक रूप अपनाया। 6 अगस्त और 9 अगस्त, 1945 ई. को द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान अमेरिका ने जापान के हिरोशिमा और नागासाकी नामक नगरों पर परमाणु बम गिराये, वहाँ व्यापक विनाश हुआ।

आज पाकिस्तान जैसे छोटे देश भी परमाणु शक्तिसम्पन्न राष्ट्र बन गये हैं जहाँ से परमाणु बम तकनीक तथा आतंकवाद का निर्यात सारे विश्व में हो रहा है। यदि ये संहारक अस्त्र आतंकवादियों के हाथ पड़ गये तो सारे विश्व की न जाने कितनी आबादी नष्ट हो जाएगी। इस खतरे ने विश्व के समझदार लोगों की नींद उड़ा दी है।

परमाणु शक्ति का कल्याणकारी रूप–
परमाणु शक्ति विनाशक ही नहीं, कल्याणकारी भी है। आज इसके सहयोग से घातक रोगों की चिकित्सा की जा रही है। ऊर्जा के क्षेत्र में परमाणु शक्ति का चमत्कारी उपयोग देखा जा सकता है। फसलों की वृद्धि मापने हेत रेडियो कोबाल्ट डेटिंग और कीटाणुओं से उनकी रक्षा अब आइसोटोप्स द्वारा संगम हो गई है। इसके अलावा नदियों का प्रवाह बदलने, पर्वतों को काटने आदि श्रमसाध्य कार्यों को सम्पन्न करने में परमाणु शक्ति का सकारात्मक प्रयोग किया जा रहा है।

भारत में परमाणु शक्ति–
भारत में 1956 ई. ट्राम्बे में ‘भाभा परमाणु अनुसंधान केन्द्र’ की स्थापना की गई। इस केन्द्र द्वारा मानव–कल्याण हेतु परमाणु–शक्ति का उपयोग सम्भव हो गया है। 1961 ई. में इसका और विस्तार किया गया। 18 मई, 1974 को राजस्थान के पोखरण क्षेत्र में भूमिगत परीक्षण किया गया।

इस प्रकार भारत विश्व का छठा परमाणु शक्ति सम्पन्न देश बन गया। परमाणु विस्फोटों से खनिजों का पता लगाना, नहर खोदना तथा भूमिगत जलाशय बनाना आदि कार्य संभव हो गये हैं। परमाणु शक्ति के खतरे–अन्य वैज्ञानिक उत्पादनों के समान ही परमाणु शक्ति का उपयोग भी खतरों से खाली नहीं है।

विकिरण से फैलने वाला प्रदूषण भयंकर तथा मारक होता है। परमाणु शक्ति का उपयोग आज विद्युत उत्पादन के लिए हो रहा है। परमाणु शक्ति का उपयोग करते समय अत्यन्त सावधानी तथा सुरक्षा आवश्यक है।

रूस के चेर्नोबिल परमाणु संयंत्र में विकिरण के भयानक संकट ने अनेक लोगों का जीवन संकट में डाल दिया था। इसी प्रकार सन् 2011 में जापान में आए भूकम्प तथा सुनामी के कारण वहाँ परमाणु संयंत्रों से विकिरण की भयानक समस्या पैदा हुई थी। इस खतरे में बचाव सतत् सतर्कता से ही संभव हो सकता है।

उपसंहार–
भारत द्वारा सन् 1974 ई. में किये परमाणु विस्फोट पर सारे संसार में हो–हल्ला हुआ था। इसी तरह 1998 के विस्फोट के पश्चात् भी हुआ था। लेकिन धीरे–धीरे सारे संसार ने माना कि परमाणु शक्ति–सम्पन्न भारत विश्व–शांति का प्रबल समर्थक है। हमारा दृष्टिकोण राष्ट्रकवि ‘दिनकर’ के शब्दों में इस प्रकार है-

रसवती भू के मनुज का श्रेय,
नहीं यह विज्ञान कटु आग्नेय।
श्रेय उसका-
प्राण में बहती प्रणय की वायु,
मानवों के हेतु अर्पित मानवों की आयु।

किन्तु अब लगता है कि पड़ोसियों की दुर्विनीतता, छल–कपट और निंदनीय कूटनीति से निरंतर प्रभावित और निराश भारत अपनी परमाणु नीति में कुछ बदलाव करने की सोच रहा है। प्रथम परमाणु–प्रहार न करने की नीति पर भार जा रहा है।