नक्सलवाद पर निबंध – Essay on Naxalism In India In Hindi
नक्सलवादी हिंसा : कारण और निवारण
रूपरेखा–
- प्रस्तावना,
- शोषण एवं दमन,
- प्रतिकार का प्रयास,
- नक्सलवादी हिंसा,
- नक्सलवादी आन्दोलन का विस्तार,
- समाधान की आवश्यकता,
- उपसंहार।
साथ ही, कक्षा 1 से 10 तक के छात्र उदाहरणों के साथ इस पृष्ठ से विभिन्न हिंदी निबंध विषय पा सकते हैं।
नक्सलवाद पर निबंध – Naksalavaad Par Nibandh
प्रस्तावना–
भारत के बहुसंख्यक लोग निर्धन हैं। उनके सामने जीवन–यापन की गम्भीर समस्या रही है। मुट्ठीभर लोगों का भूमि तथा उत्पादन के साधनों पर अधिकार होने के कारण इस समस्या की गम्भीरता में वृद्धि हुई है। जींदारों के आदेश पर लोगों को काम तो करना पड़ता है परन्तु पर्याप्त मजदूरी नहीं मिलती। ऊपर से शारीरिक प्रताड़ना तथा मानसिक शोषण भी सहना पड़ता है।
शोषण एवं दमन–
भूपतियों तथा साधनसम्पन्न लोगों का विरोध करना आसान नहीं होता। उनके अनुकूल न चलने पर शारीरिक तथा मानसिक रूप से प्रताड़ित किया जाता है तथा सताया जाता है। बँधुआ मजदूर बनकर उनके खेतों तथा घरों में काम करना होता है।
मजदूरी मिलती नहीं, मिलती है भी तो बहुत कम। स्त्रियों को भी तरह–तरह का अपमान सहना पड़ता है। दमन की यह पीड़ा एक विशेष वर्ग को सहते–सहते वर्षों बीत गए हैं। सरकारी व्यवस्थाएँ भी इस दमन से मुक्ति दिलाने में पूरी तरह समर्थ नहीं हैं।
प्रतिकार का प्रयास–
शोषित पीडित जन की सहनशक्ति जब जवाब दे गई तो इसका प्रतिकार जरूरी हो गया। बंगाल के गाँव ‘नक्सलबाड़ी’ के किसानों ने सन् 1967 में एक आन्दोलन प्रारम्भ किया। इसका नाम नक्सलवाद पड़ा। इसमें किसान, मजदूर, आदिवासी आदि सम्मिलित थे।
उन्होंने मिलकर भूस्वामियों के शोषण के विरुद्ध हथियार उठाए। इस आन्दोलन के समर्थक माओ की हिंसक क्रान्ति से प्रभावित थे। उनका मानना था कि अन्याय और शोषण का मुकाबला हथियार और हिंसक प्रतिकार के द्वारा ही किया जा सकता है।
नक्सलवादी हिंसा–
नक्सलवादी हिंसा में विश्वास करते हैं। उनके मत से शक्ति बन्दूक की नली से उत्पन्न होती है। भारत में भीषण गरीबी है, उसने लोगों के सामने जीवित रहने की चनौती खड़ी कर दी है। गरीबी हटाओ के नाम पर नेता वर्षों से राजनीति कर रहे हैं, लोगों को ठग रहे हैं। भूमि–सुधार पर ध्यान नहीं दिया जाता। किसानों को उसके उत्पादन का फल नहीं मिलता।
श्रमिक का शोषण होता है। विकास के नाम पर आदिवासियों के जंगलों, खनिज और प्राकृतिक संसाधनों पर पूँजीवादी शक्तियाँ अधिकार कर रही हैं। सरकार इसमें उनका सहयोग करती रही है। ये समीकरण नक्सलवादी हिंसा के जनक हैं।
नक्सलवादी आन्दोलन का विस्तार–
सन् 1967 में बंगाल के नक्सलबाड़ी गाँव से शुरू हुए आन्दोलन का बहुत विस्तार हुआ है। भारत के पश्चिम बंगाल, उड़ीसा, महाराष्ट्र, आंध्रप्रदेश, छत्तीसगढ़, झारखण्ड, बिहार, मध्यप्रदेश आदि राज्यों तक इस आन्दोलन की पहुँच हो गई है।
सन् 2004 में माओवादी संगठन पीपुल्स वार ग्रुप और माओवादी कम्युनिस्ट सेंटर ऑफ इण्डिया ने एक होकर कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (माओवादी) का गठन किया। नक्सलवादी स्वयं को दलितों, आदिवासियों तथा गरीब ग्रामीणों का हितैषी मानते हैं। इस कारण कुछ लोग उनका स्वेच्छा से तथा कुछ डर के कारण सहयोग करते हैं।
अब तक हजारों ग्रामीण, सुरक्षा तंत्र के लोग तथा अन्य नक्सली हिंसा का शिकार हो चुके हैं। 6 अप्रैल 2010 को नक्सलवादियों ने घात लगाकर सी आर. पी. एफ. के 76 जवानों को छत्तीसगढ़ के दांतेवाला जिले में मार डाला था। रेल की पटरी उड़ाने से कोलकाता जाने वाली ज्ञानेश्वरी एक्सप्रेस पटरी से उतर गई थी और 150 से अधिक यात्री मारे गये थे।
नक्सली नए–
नए तरीकों से हमला करते हैं, दरभा–झीरम घाट पर 11 मार्च, 2014 को हमला हुआ था। 200 नक्सलियों द्वारा घात लगाकर पुलिस और सी. आर. पी. एफ. के पन्द्रह जवानों को मार डाला गया था। यहाँ सड़क निर्माण कार्य चल रहा था।
इसी स्थान पर 13 मई को नंदकुमार पटेल, विद्याचरण शुक्ला, महेन्द्र कर्मा आदि काँग्रेसी नेता नक्सली हिंसा के शिकार हुए थे। नक्सली हिंसा पर अभी पूर्ण लगाम नहीं लगाई जा सकी है। कुछ समय पूर्ण ही छत्तीसगढ़ में सशस्त्र बलों के सैन्य जवान मारे गए हैं।
उपसंहार–
नक्सली हिंसा लोगों के जीवन के लिए खतरा बन चुकी है। इससे देश के विकास तथा लोकतंत्र को भी चुनौती मिल रही है। अब तक सरकार ने इस समस्या के समापन के लिए बातें तो बहुत की हैं, परन्तु कोई ठोस पहल नहीं की है। अब इसके समाधान के लिए कठोर और कारगर कदम उठाये जाने की प्रबल आवश्यकता है।