My Unforgettable Journey Essay In Hindi | मेरी अविस्मरणीय यात्रा पर निबंध

My Unforgettable Journey Essay In Hindi  मेरी अविस्मरणीय यात्रा पर निबंध

मेरी अविस्मरणीय यात्रा संकेत बिंदु:

  • बस यात्रा का कारण
  • लापरवाह चालक
  • दुर्घटना
  • घायलावस्था

मेरी अविस्मरणीय यात्रा पर निबंध | My Unforgettable Journey Essay In Hindi

साथ ही, कक्षा 1 से 10 तक के छात्र उदाहरणों के साथ इस पृष्ठ से विभिन्न हिंदी निबंध विषय पा सकते हैं।

माता-पिता जी ने जम्मू स्थित माता वैष्णो देवी के दर्शन का कार्यक्रम बनाया। मेरे मन में इस यात्रा के प्रति बहुत उत्सुकता थी। मैं मित्रों और सगे-संबंधियों से प्रायः सुनता रहता था कि वे माता वैष्णो देवी के दर्शन करके आए हैं। मेरे विशेष आग्रह पर ही पिता जी ने यह कार्यक्रम बनाया था। बस-यात्रा का आयोजन पिता जी के कार्यालय के मित्रों ने किया था।

इसमें उनके मित्र और परिवारजन ही सम्मिलित थे। बस राजौरी गार्डन से चलनी थी। हम सामान सहित निर्धारित स्थान पर पहुंचे। बस दस बजे चलनी थी। पिता जी के मित्र शशिकांत ने बस का प्रबंध किया था। बस लगभग ग्यारह बजे आई। हम सब बस में बैठ गए। बस चल पड़ी। सबने माता वैष्णो देवी का जयकार किया। दिल्ली की सीमा पार करने में लगभग पैंतालीस मिनट लग गए क्योंकि स्थान-स्थान पर वाहनों का जमघट लगा हुआ था।

दिल्ली की सीमा पार करते हुए खुली सड़क आ गई। ड्राइवर बस तेज़ गति से चलाने लगा। मुझे बहुत डर लगा। धीरे-धीरे अन्य लोग भी बस की गति की चर्चा करने लगे। ड्राइवर को जाकर समझाया कि बस धीमी गति में चलाए। थोड़ी देर के लिए तो ड्राइवर धीमी गति से बस चलाता रहा पर फिर पहले की तरह ही तेज़ चलाने लगा। मुझे लग रहा था कि बस किसी-न-किसी पेड़ से अवश्य टकरा जाएगी। दूसरी ओर से ट्रक और बसें तेज़ गति से आ रहे थे। उनकी तेज़ रोशनी से आँखें चौंधिया जाती थीं।

एकाएक न जाने क्या हुआ बस झटके से बाईं ओर कच्चे रास्ते पर उतरकर हिचकोले खाने लगी। सबने अगली सीटों को पकड़ लिया। थोड़ी देर में ड्राइवर बस को फिर सड़क पर ले आया। मेरी जान में जान आई। सबने शोर मचाया और ड्राइवर को डाँटा। उसे बस ध्यानपूर्वक चलाने के लिए कहा। ड्राइवर को गुस्सा आ गया। वह कहने लगा–’मुझे बार-बार मत टोको। मुझे बस चलानी आती है।’

रात की ठंडी-ठंडी हवा से मुझे नींद आने लगी। मैं माता जी के कंधे पर सिर टिकाकर सो गया। एकाएक तड़-तड़-तड़ का शोर हुआ। मेरी नींद खुल गई। बस सड़क के किनारे खड़ी बैलगाड़ी से टकरा गई थी। अगला शीशा टूटकर ड्राइवर और अगली सीट पर बैठे रामदयाल जी पर आ गिरा था। ड्राइवर ने बस रोक ली। सभी ड्राइवर और रामदयाल जी को संभालने लगे। दोनों के मुँह से खून बह रहा था। सभी बस से उतर आए। पिता जी ने बताया कि वह पानीपत शहर था। कुछ लोग ड्राइवर और रामदयाल जी को डॉक्टर के पास ले गए।

रात के एक बजे डॉक्टर का मिलना कठिन था। नर्सिंग होम का पता किया गया। वहाँ से दवा लेकर सभी लगभग एक घंटे बाद लौटे। दोनों को खरोंचे ही आई थीं। सबने समझाया कि अगला शीशा टूट जाने के कारण बस का चलना कठिन होगा। ड्राइवर ने कहा कि वह धीरे-धीरे बस चलाएगा। चिंता की बात नहीं है। इस समय दुकानें बंद हैं। दिन चढ़ने पर नया शीशा लगवा लेगा। पिता जी चिंतित हो उठे।

ड्राइवर के आश्वासन से सभी की चिंता कम हुई और बस धीरे-धीरे चल पड़ी। अगला शीशा टूट जाने के कारण सामने से तेज़ हवा आ रही थी। इससे बस की गति तो कम थी परंतु वह कभी इधर, तो कभी उधर हो जाती थी। सभी ‘जय माता दी’, ‘जय माता दी’ जप रहे थे। मेरा मन आशंकित था। मुझे किसी बड़ी दुर्घटना होने का भय लग रहा था। मैंने अपनी चिंता पिता जी को बताई तो उन्होंने मुझे आश्वस्त किया। मैं फिर भी सतर्क होकर बैठ गया। मेरी आँखों की नींद उड़ चुकी थी। मेरी दृष्टि ड्राइवर पर जमी हुई थी।

सामने से एक ट्रक तीव्र गति से आ रहा था। ड्राइवर ने बस को बाईं ओर मोड़ा पर बस असंतुलित होकर सड़क से नीचे उतर गई। ड्राइवर कुछ समय पाता इससे पहले ही बस बाईं ओर लुढ़ककर पलट गई। मेरा माथा ज़ोर से किसी चीज़ से टकराया। मेरे सिर से खून बहने लगा। चारों ओर भयंकर शोर और चीत्कारों का स्वर गूंज उठा। मेरी आँखों के आगे गहरा अंधकार छाने लगा। मुझे जब होश आया तो मैं अस्पताल के बिस्तर पर लेटा हुआ था। मेरे माथे पर पट्टी बँधी हुई थी। मेरी दाईं टाँग पर पलस्तर चढ़ा हुआ था। मेरे साथ वाले बिस्तर पर माता जी लेटी हुई थीं। उनके माथे पर पट्टी बँधी हुई थी। पिता जी हमारे सिरहाने बैठे हुए थे। मैंने चारों ओर नज़र दौड़ाई। अस्पताल का हॉल बस यात्रियों से भरा हुआ था। बिस्तरों पर घायल लेटे हुए थे। दिन चढ़ा हुआ था।

मुझे होश में आया देखकर पिता जी प्यार से मेरे सिर पर हाथ फेरने लगे। माता जी साथ के बिस्तर पर लेटी मुस्कराने का असफल प्रयत्न करने लगीं। पिता जी की आँखों में अश्रु भर आए थे। उन्हें भी चोटें आई थीं। पिता जी ने बताया कि केवल दो व्यक्तियों को गंभीर चोटें आई थीं। ड्राइवर की टाँग और बाँह पर पलस्तर चढ़ा था। हमें शाम तक वापस लौटने की अनुमति मिल गई थी। सभी यात्रियों के दिल्ली लौटने का प्रबंध हरियाणा पुलिस ने किया था। उस बस यात्रा का स्मरण करते ही आज भी मेरे रोंगटे खड़े हो जाते हैं।