मेरा प्रिय कवि निबंध – My Favourite Poet Essay In Hindi

मेरा प्रिय कवि निबंध – Essay on My Favourite Poet In Hindi

हिंदी साहित्य जगत में अनेक प्रख्यात कवि हुए हैं, जिनकी प्रतिभा युगों तक सराही जाती रहेगी। इन महान कवियों ने समाज को ऐसे संदेश दिए हैं, जिनसे मानव समाज उनका चिर ऋणी बन गया। ऐसे अनेक महाकवि हुए हैं जिन्हें सदियाँ बीत जाने पर भी सम्मान के साथ सराहा जाता है। ऐसे ही थे–महाकवि तुलसीदास गोस्वामी।

साथ ही, कक्षा 1 से 10 तक के छात्र उदाहरणों के साथ इस पृष्ठ से विभिन्न हिंदी निबंध विषय पा सकते हैं।

उनके प्रति आकर्षण होने का कारण है कि जीवन के प्रारंभिक काल से या कहा जाए कि जन्मते ही जिस पर आपदाओं का पहाड़ टूट पड़ा था, वह उन विषम परिस्थितियों में जीवित रह सका। अन्य बहुत से कवियों की तरह उनके जन्मकाल और स्थान के बारे में संदेह बना रहा है। अधिकतर विद्वानों ने उनकी रचनाओं के आधार पर बताने का प्रयास किया है कि उनका जन्म सन् 1532 ई. में शूकर क्षेत्र (सोरों) जनपद में हुआ था।

उनके जन्म लेने के बाद से ही ऐसी अप्रत्याशित घटनाएँ घटीं, जिनके कारण इनका जीवन संघर्षपूर्ण हो गया। इनके पिता आत्माराम और माता हुलसी बाई थीं। कहा जाता है कि इनके मुँह से पहली बार ‘राम’ निकला, इसलिए इनका नाम रामबोला पड़ गया। गाँव के दकियानूसी लोगों ने बत्तीस दाँत साथ होने से गाँव के लिए अपशकुन माना जिससे उनके माता-पिता को उन्हें लेकर गाँव छोड़ना पड़ा।

कुछ अन्य अनहोनी घटनाओं के कारण तुलसी को उनके माता-पिता ने भटकने के लिए छोड़ दिया। समाज में लोकोक्ति प्रचलित है कि ‘होनहार बिरवान के होत चीकने पात’ नियति ने करवट बदला, भटकते हुए बालक पर एक सहृदय आचार्य श्री नरहरि’ की दृष्टि पड़ी। तुलसी से आचार्य नरहरि या नरहरि से तुलसी धन्य हो गए और तुलसी की यहीं से कायापलट शुरू हो गई।

भटकता हुआ बालक आगे चलकर, संस्कृत और हिंदी भाषा के सुयोग्य और सम्माननीय आचार्य हो गए। बादल सूर्य को कब तक ढककर रख सकता है, तुलसी की प्रतिभा को कब तक छिपाया जा सकता था। कालांतर में स्वयं ही उनकी प्रतिभा से लोग प्रभावित होने लगे, ईष्र्यालु ईर्ष्या करने लगे।

तुलसी की नियति में कुछ और ही था। इनका विवाह भी हुआ। आशा और कल्पना के विपरीत पत्नी से भी धकियाए गए। पत्नी की यह अवमानना उनके जीवन के लिए प्रेरणा और वरदान बन गई। पत्नी ने अपमानित ही नहीं किया, अपितु शिक्षा भी दे दी

अस्थि चर्म मम देहतिय, तामे ऐसी प्रीति।
ऐसी जो श्रीराम में, होती न तो भवभीति ॥

यहाँ से तुलसी की दशा बदल गई, सोच बदल गई। श्रीराम के प्रति विश्वास, श्रद्धा इतना बढ़ा कि उससे हटकर कुछ और सोचना ही बंद कर दिया। इसका परिणाम यह हुआ कि मानव समाज को अमर ग्रंथ, घर-घर की शोभा का ग्रंथ, ‘रामचरितमानस’ दे दिया, जिसकी सराहना उनके प्रति ईर्ष्या रखने वाले व्यक्तियों को भी विवश होकर करनी पड़ी। इस अमर ग्रंथ ने उन्हें जन-जन का हृदयसम्राट बना दिया। इस तरह उनकी पत्नी रत्नावली की अवहेलना उनके लिए ऐसी प्रेरणा बनी, जिसे वे आजीवन भुला न सके।

आचार्य तुलसीदास जी ऐसे महाकवि थे जो विनम्रता की प्रतिमूर्ति थे, धुन के पक्के थे, आपदाओं में धैर्य बनाए रखने में समर्थ थे। अपने आराध्य के प्रति विश्वास के आधार पर बड़े से बड़े आघातों को सरलता से सहन करते चले गए।

विषमताओं में भी अपनी विनम्रता और धैर्य को नहीं छोड़ा। महाकाव्य रामचरित मानस के माध्यम से जीवन के प्रत्येक पहलू को छूकर मनुष्य को नई दिशा दी। अतः ऐसे महाकवि मेरे ही नहीं, अपितु जन-जन के प्रिय और हृदय सम्राट बन गए।