मेरा देश महान संकेत बिंदु:
- माँ और देश
- भारत की विशेषताएँ
- भारतीय संस्कृति
- महापुरुष
मेरा भारत महान पर निबन्ध | Essay on Mera Bharat Mahan Hindi
माँ और जन्मभूमि को स्वर्ग से भी श्रेष्ठ कहा गया है। भारत के संदर्भ में यह कथन अक्षरशः सत्य है। मेरा देश भारत सचमुच महान है। उसके समक्ष स्वर्ग का सौंदर्य भी फीका पड़ता है। श्रीराम ने यूँ ही नहीं कहा था-
जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी।
भारत की विशालता, इसकी संस्कृति और इसके निवासियों के शौर्य और पराक्रम से इसकी गणना महान राष्ट्रों में होती है। भारत की महानता केवल कुछ गुणों के कारण नहीं है। इसके कण-कण में महानता के समस्त गुण समाहित हैं।
भारत का प्राचीन नाम ‘आर्यावर्त’ था। महान राजा ‘भरत’ के नाम पर इसका नाम भारत पड़ा।
भारत में प्रकृति ने अपना संपूर्ण सौंदर्य बिखेर दिया है। इसके उत्तर में हिमालय की विशाल पर्वत श्रृंखला है। हिमालय भारत के मस्तक पर मणि के समान जगमगा रहा है। इसकी कोख से निकली पवित्र गंगा भारत के हृदय प्रदेश को सींचती है। भारत के चरणों को विशाल समुद्र दिन-रात पखारता रहता है। विभिन्न ऋतुएँ आकर इसे अपनी अद्भुत छटाओं से सजाती-संवारती हैं। बहुत कम देशों की भौगोलिक स्थिति भारत जैसी है। यहाँ पर्वतीय क्षेत्र हैं तो विशाल मैदानी क्षेत्र भी हैं।
यहाँ जहाँ रेगिस्तान है तो वहीं सर्वाधिक वर्षा होने वाला क्षेत्र भी है। भारत की संस्कृति महान है। यह विभिन्न संस्कृतियों की रंगस्थली है। वैदिक युग से कंप्यूटर युग तक का भारत स्वयं में अनेक संस्कृतियों को समाहित किए हुए है। यहाँ आए विदेशी आक्रमणकारी यहीं बस गए और उनकी संस्कृति भारतीय संस्कृति का अंग बन गई। यह भारतीय संस्कृति की विशालता है कि उसने सभी को गले लगाया और उन्हें अपने रंग में रंग लिया।
भारत ज्ञान का भंडार है। भारतीयों की विद्वता, कर्मठता और प्रतिभा से विश्व दंग रह गया है। वर्तमान युग सूचना-प्रौद्योगिकी का युग है। अमेरिका तक इस क्षेत्र में भारतीयों का लोहा मान गया है। विकसित राष्ट्रों ने भारतीयों को अपने यहाँ आमंत्रित करके वहीं कार्य करने के लिए कहा है। ऐसा आज ही नहीं हो रहा। भारत सदा से ज्ञान के क्षेत्र में विश्व का पथ-प्रदर्शक रहा है। यहाँ के प्राचीन विश्वविद्यालय-नालंदा, विक्रमशिला और तक्षशिला विश्व-प्रसिद्ध विश्वविद्यालय थे।
विश्व के कोने-कोने से शिक्षार्थी यहाँ ज्ञान की क्षुधा शांत करने आते थे। भारत ने विश्व को धर्म का मार्ग दर्शाया है। यहाँ का प्राचीनतम हिंदू धर्म सत्य, अहिंसा और प्रेम का धर्म रहा है। वेदों में कहा गया है-‘अहिंसा परमो धर्मः’, ‘वसुधैव कुटुंबकम्’, ‘सर्वे भवंतु सुखिनः’। अहिंसा का मंत्र भारत ने विश्व को दिया। समस्त धरतीवासियों को एक परिवार के सदस्य होने का संदेश भारत ने दिया। सभी के सुखी और कल्याणकारी जीवन की कामना भारत ने की। इसी भारत की मिट्टी से जैन और सिख धर्म जन्मे।
चीन, जापान, म्यांमार, श्रीलंका आदि देशों को भारत के बौद्ध धर्म ने प्रेम का, सत्य का और भ्रातृत्व का मार्ग दर्शाया। विदेशी धर्मावलंबी भारत आए तो भारत ने उन्हें भी अपना लिया। यहाँ इस्लाम धर्म के अनुयायी मुसलमान हैं तो ईसाई भी हैं, पारसी हैं तो यहूदी भी हैं। सभी धर्मावलंबी मिलजुलकर रहते हैं। भारत एक नहीं अनेक धर्मों का पावन देश है। भारत महापुरुषों का देश है। यहाँ पर जन्म लेने के लिए देवता तक लालायित रहते थे।
भगवान विष्णु ने राम और कृष्ण के रूप में अवतार लेकर इसी धरती पर अपनी लीलाएँ की। महावीर, बुद्ध, नानक जैसे महापुरुषों ने यहाँ धर्म के उपदेश दिए। तुलसीदास, सूरदास, कबीर, रसखान, रहीम, जायसी, मीरा आदि ने अपनी कविताओं के द्वारा ईश्वरीय और मानवीय प्रेम की गंगा बहा दी। भाई मतिदास छिब्बर, शिवाजी, महाराणा प्रताप, रानी लक्ष्मीबाई आदि स्वाभिमानपूर्वक जिए और संघर्षरत रहने का संदेश दे गए।
सुभाषचंद्र बोस, लोकमान्य तिलक, चंद्रशेखर आजाद और महात्मा गाँधी जैसे स्वतंत्रता सेनानियों ने इसी धरती पर स्वतंत्रता प्राप्ति का बिगुल बजाया। भगतसिंह और भाई बालमुकंद छिब्बर जैसे क्रांतिकारियों ने स्वतंत्रता प्राप्ति हेतु फाँसी के फंदों को चूम लिया। भारत की महानता ही है जिसने समय-समय पर होने वाले विनाशकारी बवंडरों को झेलकर अपना अस्तित्व बनाए रखा।
कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी।
सदियों रहा है दुश्मन दौरे जहां हमारा॥
इक्कीसवीं सदी का भारत अपनी महानता के ध्वज को सम्मानपूर्वक फहरा रहा है। उसने आणविक-विस्फोट करके अपनी शक्ति का परिचय दिया है। उसने मंगलयान और चंद्रयान भेजकर अपनी वैज्ञानिक श्रेष्ठता सिद्ध कर दी है। उसने पाकिस्तानी आक्रमणों का मुँहतोड़ उत्तर देकर शत्रुओं को चेतावनी दी है कि भारतीय अहिंसावादी अवश्य हैं परंतु कायर नहीं हैं। ऐसे महान देश में मेरा जन्म हुआ है। मुझे स्वयं पर और अपने महान भारत पर गर्व है।