कबीरदास पर निबन्ध – Kabirdas Essay In Hindi

कबीरदास पर निबन्ध – Essay on Kabirdas In Hindi

संकेत-बिंदु –

  • भूमिका
  • जीवन-परिचय
  • शिक्षा-दीक्षा
  • रचनाएँ
  • समाज सुधार के स्वर
  • काव्य की भाषा
  • उपसंहार

समाज सुधारक-कबीर (Samaj Sudharak-Kabir) – Social Reformer Kabir

साथ ही, कक्षा 1 से 10 तक के छात्र उदाहरणों के साथ इस पृष्ठ से विभिन्न हिंदी निबंध विषय पा सकते हैं।

भूमिका – हिंदी साहित्य को अनेक कवियों ने अपनी रचनाओं से समृद्ध बनाया है। इन कवियों में तुलसीदास, सूरदास, मीरा, जायसी जयशंकर प्रसाद, पंत, निराला, महादेवी वर्मा आदि प्रमुख हैं। इन्हीं कवियों में कबीर का विशेष स्थान है, क्योंकि उनकी रचनाओं में समाज सुधार का स्वर विशेष रूप से मुखरित हुआ है।

कबीरदास जीवन परिचय

जीवन-परिचय – ज्ञानमार्गी शाखा के प्रमुख एवं प्रतिनिधि कवि माने जाने वाले कबीर का जन्म सन् 1398 ई. में काशी में हुआ था। ऐसा माना जाता है कि कबीर का जन्म विधवा ब्राह्मणी के गर्भ से हुआ था। उसने लोक लाज के भय से कबीर को लहरतारा नामक स्थान पर तालाब के किनारे छोड़ दिया। उसी स्थान से नि:संतान नीरु-नीमा गुज़र रहे थे। उन्होंने ही बालक कबीर का पालन किया। कहा गया है

जना ब्राह्मणी विधवा ने था, काशी में सुत त्याग दिया।
तंतुवाय नीरू-नीमा ने पालन कबिरादास किया।।

शिक्षा-दीक्षा – कबीर ने बड़े होते ही नीमा-नीरु का व्यवसाय अपना लिया और कपड़ा बुनने लगे। कबीर अनपढ़ रह गए थे। उन्होंने स्वयं कहा है –

मसि कागज छूयो नहिं, कलम गही नहिं हाथ।

कबीर ने अनुभव से ज्ञान प्राप्त किया। उन्होंने दोहे साखियों के रूप जो कुछ कहा उनके शिष्यों ने उसे संकलित किया। उनके शिष्यों ने उनके नाम पर एक मठ चलाया, जिसे कबीर पंथी मठ कहा जात है। इसके अनुयायी आज भी मिलते हैं।

रचनाएँ – कबीर अनपढ़ थे। उनकी साखियों, सबद और रमैनी का संकलन ‘बीजक’ नामक ग्रंथ में किया गया है। इनका मूल स्वर समाज सुधार, भक्ति-भावना तथा व्यावहारिक विषयों से जुड़ी बातें हैं।

समाज सुधार के स्वर – कबीरदास उच्चकोटि के साधक, संत और विचारक थे। वे भारतीय समाज में व्याप्त अंधविश्वास, बाह्य आडंबर, मूर्ति पूजा, धार्मिक कट्टरता और धार्मिक संकीर्णता पर चोट की है। उन्होंने जातिपाँति का विरोध करते हुए लिखा है –

हिंदू अपनी करै बड़ाई गागर छुअन न देई।
वेस्या के पायन तर सोवे ये देखो हिंदुआई।

उन्होंने मुसलमानों को भी नहीं छोड़ा और कहा –

मुसलमान के पीर औलिया मुरगा-मुरगी खाई।
खाला की रे बेटी ब्याहे, घर में करे सगाई।।

उन्होंने हिंदुओं की आडंबरपूर्ण भक्ति देखकर कहा –

पाहन पूजे हरि मिले, मैं पज पहार।
ताते यह चकिया भली पीसि खाए संसार।।

उन्होंने ध्वनि विस्तारक यंत्रों का प्रयोग करने पर मुसलमानों पर प्रहार करते हुए कहा –

काँकर पाथर जोरि के मस्जिद लई बनाय।
ता पर मुल्ला बाँग दे, का बहरा भया खुदाय।।

काव्य की भाषा – कबीर की भाषा मिली-जुली बोलचाल की भाषा थी, जिनमें ब्रज, खड़ी बोली, अवधी, राजस्थानी तथा पहाड़ी भाषाओं के शब्द मिलते हैं। इसे संधुक्कड़ी या पंचमेल खिचड़ी भी कहा जाता था। कबीर बिना लाग-लपेट के अपनी बात कहने के लिए जाने जाते हैं।

उपसंहार – कबीर संत कवि थे। उन्होंने समाज की बुराइयों पर जिस निर्भयता से प्रहार किया वैसा किसी अन्य कवि ने नहीं। वास्तव में कबीर सच्चे समाज सुधारक थे जिन्होंने कुरीतियों पर जमकर प्रहार किया। कबीर आज भी उतने ही प्रासंगिक है जितने उसकाल में थे। हमें उनके मार्ग का अनुसरण करना चाहिए।