आजादी के 70 साल निबंध – (Essay On India ofter 70 Years Of Independence In Hindi)
क्या खोया क्या पाया – what is lost, what is found
रूपरेखा–
- प्रस्तावना
- आजादी की प्राप्ति
- जनतंत्र की स्थापना
- विगत वर्षों की उपलब्धियाँ–आर्थिक, सामाजिक, राजनैतिक, शैक्षिक, वैज्ञानिक, सुरक्षातंत्र
- क्या खोया?
- उपसंहार।।
साथ ही, कक्षा 1 से 10 तक के छात्र उदाहरणों के साथ इस पृष्ठ से विभिन्न हिंदी निबंध विषय पा सकते हैं।
आजादी के 70 साल निबंध – Aajadi Ke 70 Saal Nibandh
प्रस्तावना-
मुगलों के शासन के पश्चात् भारत अंग्रेजी–शासन के चंगुल में फंस गया था। सन् 1857 की क्रान्ति के विफल होने के पश्चात् पराधीनता की जकड़ और ज्यादा प्रबल हो गई थी। इस काल में भारत गम्भीर निर्धनता के साथ अन्ध–विश्वासों की बेड़ियों में जकड़ा था। अशिक्षा और पिछड़ेपन ने भी उसको घेर लिया था।
आजादी की प्राप्ति–
नब्बे साल तक स्वतंत्रता के लिए भारतीयों को संघर्ष करना पड़ा। स्वाधीनता के लिए होने वाले संघर्ष की दिशा मोड़ने के लिए ए. ओ. हयूम ने काँग्रेस की स्थापना की। जब महात्मा गांधी भारत आए और काँग्रेस में उनका प्रभाव बढ़ा तो भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन की दिशा और दशा दोनों बदल गईं। पूरा देश उनके पीछे एकजुट हो गया और सन् 1947 के पन्द्रह अगस्त को भारत को स्वतंत्रता प्राप्त हुई।
जनतंत्र की स्थापना–
स्वाधीन भारत के सामने अनेक समस्याएँ थीं। देश बिखरा हुआ था। अनेक रियासतों के होने के कारण भारत की एकता संकट में थी। तब सरदार पटेल के प्रयासों से इनका भारतीय राष्ट्र में विलय हआ। यह एक बहत बड़ी उपलब्धि थी।
अंग्रेज गवर्नर जनरल लार्ड माउण्ट बेटन की कूटनीति के कारण कश्मीर भारत के लिए आज भी समस्या बना हुआ है। राज्यों का पुनर्गठन भारत की महान उपलब्धि रही। भारतीय संविधान का निर्माण हुआ और 26 जनवरी, सन् 1950 को भारत जनतंत्र बना।
विगत वर्षों की उपलब्धियाँ–
आज भारत को स्वाधीन हुए कई दशक वर्ष बीत चुके हैं। इस बीच देश ने अनेक आन्तरिक तथा बाह्य संकटों का सफलतापूर्वक सामना किया है। इस काल में देश ने बहुत कुछ पाया है तो कुछ खोया भी है। हम यहाँ विभिन्न क्षेत्रों में देश के खोने–पाने का लेखा–जोखा संक्षेप में प्रस्तुत करेंगे।
(क) आर्थिक सन् 1947 में देश में भयंकर निर्धनता थी। आर्थिक दशा अच्छी नहीं थी। खाद्यान्न का भीषण अभाव था। उद्योग–व्यापार चौपट था। उसको सुधारने के लिए योजनाबद्ध प्रयासों की आवश्यकता थी। योजना आयोग (अब नीति आयोग) के प्रयास से देश की आर्थिक दशा में बहुत सुधार हुआ है। देश में कृषि उत्पादन बढ़ा है तथा उल्लेखनीय औद्योगिक प्रगति हुई है।
(ख) सामाजिक विगत वर्षों में देश की विभिन्न जातियों में ऊँच–नीच, छुआछूत आदि को दूर करने में सफलता मिली है। सभी धर्मों के अनुयायियों को अपने–अपने धर्म के अनुसार उपासना की स्वतंत्रता प्राप्त हुई है। भारतीय समाज में अनेक जातियों और धर्मों के मानने वालों में समानता और राष्ट्रीयता की भावना को बढ़ाने में सफलता मिली है।
(ग) राजनैतिक देश में जनतंत्र स्थापित हुआ है। अनेक राजनैतिक दल बने हैं। इन दलों ने संविधान के अन्तर्गत राष्ट्रनिर्माण का कार्य किया है। जनता में लोकतंत्र के प्रति आस्था पैदा हुई है तथा लोकतन्त्र भारत में मजबूत हुआ है। आज भारत विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र है।
(घ) शैक्षिक—भारत में शिक्षा की दयनीय स्थिति में सुधार के प्रयास हुए हैं। नए–नए विद्यालय स्थापित हुए हैं। विद्यालयों में पढ़ने जाने वाले विद्यार्थियों की संख्या बढ़ी है। लड़कियों को भी विद्यालयों में भेजा जा रहा है। शिक्षा के स्तर में व्यापक सुधार हुआ है। व्यावसायिक तथा प्राविधिक शिक्षा का भी विस्तार हुआ है।
(ङ) वैज्ञानिक–आज विज्ञान का युग है। भारत में वैज्ञानिक एवं तकनीकी शिक्षा को पर्याप्त महत्त्व प्रदान किया गया है। किया गया है। विज्ञान के शिक्षण–प्रशिक्षण एवं शोध कार्य की व्यवस्था हुई है। हमारे वैज्ञानिक अपनी प्रतिभा से भिन्न–भिन्न क्षेत्रों में महान कार्य कर रहे हैं। अन्तर्महाद्वीपीय अस्त्रों तथा अंतरिक्ष विज्ञान के क्षेत्र में भारत ने अद्वितीय प्रगति की है।
(च) सुरक्षातंत्र–सुरक्षा के क्षेत्र में भी भारत मजबूत हुआ है। अनेक नए वैज्ञानिक उपकरण देश में बनाए जा रहे हैं जिनका उपयोग देश की सुरक्षा के लिए हो रहा है। यद्यपि भारत ने अपने पड़ोसी देशों के अनेक आक्रमण सहन किये हैं किन्तु उनका सफलतापूर्वक सामना करते हुए देश की सुरक्षा तंत्र को मजबूत किया है।
क्या खोया–
विगत वर्षों में भारत ने अनेक उपलब्धियाँ प्राप्त की हैं किन्तु उसने कुछ खोया भी है। स्वाधीनता से पूर्व देश में हिन्दू–मुस्लिम साम्प्रदायिकता नहीं थी। नियंत्रण के प्रयास के बाद भी इसमें वृद्धि हुई है। हमारे स्वतंत्रता सेनानी एक जाति–मुक्त समाज बनाना चाहते थे किन्तु पिछले अनेक वर्षों में वोट के लालची नेताओं ने जातिवाद को बढ़ावा दिया है।
जातिमुक्त समाज की रचना में आरक्षण भी बाधक है। इससे सामाजिक एकता भी छिन्न–भिन्न हुई है। राजनीति में सिद्धान्तहीनता घर कर चुकी है। इसमें बाहबली नेताओं को बढ़ावा मिला है। सम्प्रदाय और जाति राजनीति के दूषण हैं।
आर्थिक क्षेत्र में प्रगति तो हुई है किन्तु अमीर और अमीर तथा गरीब और गरीब हुए हैं। पूँजी का केन्द्रीयकरण हुआ है, फलत: देश का धन कुछ लोगों की मुट्ठी में बन्द है। जो बाह्य चमक–दमक है, उसके पीछे ऋण पर आधारित व्यवस्था है। जीवन में सादगी और सरलता घटी और आपाधापी बढ़ी है।
उपसंहार कहावत है–
‘बीती ताहि बिसारिए, आगे की सुधि लेहु’! विगत कुछ वर्षों से घटित हो रही राजनीतिक एवं सामाजिक परिवर्तन की घटनाएँ हमें यही सीख दे रही हैं। शासकों का आत्मविश्वास दृढ़ हो रहा है। वे पारदर्शी तथा जनहितैषी शासन की ओर कदम बढ़ा रहे हैं।।