बढ़ती भौतिकता घटते मानवीय मूल्य पर निबंध – Increasing Materialism Reducing Human Values Essay In Hindi

बढ़ती भौतिकता घटते मानवीय मूल्य पर निबंध – (Essay On Increasing Materialism Reducing Human Values In Hindi)

रूपरेखा–

  • प्रस्तावना,
  • भौतिकवादी विचारधारा एवं मानवीय मूल्य,
  • भौतिक विज्ञान और मनुष्य,
  • मानवीय मूल्यों का ह्रास,
  • उपसंहार।

साथ ही, कक्षा 1 से 10 तक के छात्र उदाहरणों के साथ इस पृष्ठ से विभिन्न हिंदी निबंध विषय पा सकते हैं।

बढ़ती भौतिकता घटते मानवीय मूल्य पर निबंध – Badhatee Bhautikata Ghatate Maanaveey Mooly Par Nibandh

प्रस्तावना–
भारतीय मनीषियों ने मनुष्य और पशु के बीच विभेद का आधार बताते हुए कहा है-

आहार निद्रा भय मैथुनं च, सामान्यमेतत् पशुभिर्नराणाम्।
धर्मोहितेषामधिको विशेषो, धर्मेण हीना पशुभिः समानाः॥

अर्थात् भोजन, शयन, भय, कामेच्छा आदि मनुष्यों और पशुओं में एक समान है। धर्म ही वह विशिष्ट गुण है जो मनुष्य को पशु से भिन्न सिद्ध करता है। धर्म का अर्थ है–मानवीय कर्तव्यों का बोध और उनको जीवन में धारण करना। अत: हमारे यहाँ धर्म का अर्थ कोई उपासना–प्रणाली नहीं, अपितु सत्य, करुणा, उपकार, प्रेम, मैत्री, उदारता, क्षमा आदि मानवीय मूल्यों का धारण किया जाना है। मानवीय मूल्यों से रहित मनुष्य और पशु में कोई अन्तर नहीं।

भौतिकतावादी विचारधारा एवं मानवीय मूल्य–
मनुष्य भी अन्य जीवों की भाँति एक भौतिक प्राणी है। अन्य प्राणियों के समान खाना, पीना, सोना, कामेच्छा–पूर्ति आदि उसकी भी भौतिक आवश्यकताएँ हैं। भौतिक दृष्टि से इन इच्छाओं की पूर्ति ही जीने का उद्देश्य है। यदि केवल इसी को मानव–जीवन का ध्येय माना जाय तो जीवन–मूल्यों की बात करना ही व्यर्थ है। जिसे मानव समाज सभ्यता और संस्कृति कहकर गर्व से फूला नहीं समाता, उसकी संरचना के आधारस्तम्भ दधीचि, रंतिदेव, सुकरात, ईसा, अशोक, गौतम और गांधी जैसे महापुरुष हैं, जो मानवीय–मूल्यों के ध्वजवाहक

भौतिक विज्ञान और मनुष्य-

आज की दुनियाँ विचित्र नवीन,
प्रकृति पर सर्वत्र है विजयी पुरुष आसीन।

प्राय: विज्ञान और मानवीय मूल्यों को एक–
दूसरे का विरोधी दर्शाया जाता है। सच तो यह है कि आदिकाल से ही विज्ञान और मानवीय मूल्य मनुष्य के जीवन–साथी रहे हैं। आग जलाने से लेकर परमाणु बम बनाने तक की यात्रा मनुष्य के वैज्ञानिक विकास की कहानी है। विज्ञान की असीमित शक्ति मनुष्य के हाथ में है परन्तु इसी के समानान्तर मनुष्य ने जीवन–मूल्यों का
भी विकास किया है।

कोई भी ज्ञान–
विज्ञान अपने आप में लाभकारी या हानिकारक नहीं होता। मनुष्य का उसके प्रति दृष्टिकोण ही उसका स्थान निश्चित किया करता है। उन्नीसवीं सदी से विज्ञान की प्रगति में जो तीव्रता आई, वह इक्कीसवीं सदी में अपने चरम विकास की ओर बढ़ रही है। रोटी, कपड़ा, मकान, शिक्षा, मनोरंजन, व्यवसाय, सैन्य सामग्री सभी क्षेत्रों में वैज्ञानिक उपकरणों की ४ म मची हुई है। विज्ञान की यह प्रगति यदि विश्व के हितार्थ नहीं है तो विज्ञान का होना ही बेकार है-

लक्ष्य क्या? उद्देश्य क्या? क्या अर्थ?
यह नहीं यदि ज्ञात तो विज्ञान का श्रम व्यर्थ।

मानवीय मूल्यों का ह्रास–
सच पूछा जाए तो भौतिक विज्ञान ने मनुष्य के सामने इतनी विलास–सामग्री परोस दी है कि वह उन्हें पाने के लिए अत्यन्त लालायित ही नहीं पागल हो रहा है। मूल्यवान् वस्त्र, कीमती भोज्य पदार्थ, बढ़िया मकान, टी.वी., फ्रिज, ए.सी., कार और अन्यान्य विलास–व्यवस्थाएँ ही जीवन का लक्ष्य बन गये हैं।

भौतिक विज्ञान की इस धूमधाम ने मानवीय मूल्यों को अपूरणीय क्षति पहुँचाई है। आज समाज में व्याप्त आपा–धापी, नैतिक अराजकता और मूल्यों के तिरस्कार के लिए भौतिक विज्ञान ही प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से उत्तरदायी है।

पसंहार–
भौतिकवादी दृष्टि का यह भयावह विस्तार मानव–समाज को संकट के ऐसे बिन्दु की ओर धकेल रहा है, जहाँ से मानव–मंगल की ओर लौट पाना असम्भव हो जाएगा। अतः भौतिक विज्ञान की उपलब्धियों पर मुग्ध मानव–समाज को मानवीय मूल्यों की उपेक्षा नहीं करनी चाहिए।