If I Were a Teacher Essay In Hindi | यदि मैं अध्यापिका होती पर निबंध

If I Were a Teacher Essay In Hindi यदि मैं अध्यापिका होती पर निबंध
यदि मैं अध्यापिका होती संकेत बिंदु:

  • अध्यापिका क्यों बनना चाहती
  • अध्यापिका की भूमिका
  • आदर्श अध्यापिका

साथ ही, कक्षा 1 से 10 तक के छात्र उदाहरणों के साथ इस पृष्ठ से विभिन्न हिंदी निबंध विषय पा सकते हैं।

यदि मैं अध्यापिका होती पर निबंध | If I Were a Teacher Essay In Hindi

मैं जीवन में अध्यापिका बनना चाहती हूँ। इसके कई कारण हैं। मैं आज की अनेक अध्यापिकाओं से प्रभावित हुई हैं। उनके अनेक गुणों ने मुझे आकर्षित किया है। इसके साथ ही मैंने ऐसी अध्यापिकाएँ भी देखी हैं जो पूर्णतया अध्यापन को समर्पित हैं। ऐसी अध्यापिकाएँ मेरी आदर्श हैं।

यदि मैं अध्यापिका होती तो सबसे पहले मैं अपना सारा ध्यान विद्यार्थियों को सुशिक्षित बनाने में लगा देती। मैं अपने विषय का गहन अध्ययन करती। इससे मैं उस विषय को गहराई से समझा पाती। मैं देखती हूँ कि कई अध्यापिकाओं को विद्यार्थियों द्वारा पूछे प्रश्नों के उत्तर नहीं आते। मैं प्रत्येक विद्यार्थी को प्रश्न पूछने के लिए उत्साहित करके उसकी शंकाओं का समाधान करती।

मेरी कई अध्यापिकाएँ बहुत अच्छी हैं। मैं उनकी तरह शांत रहकर पढ़ाती। पढ़ाई के अतिरिक्त विद्यार्थियों के साथ अपनत्व से बातचीत करती। उनकी व्यक्तिगत समस्याएँ जानकर उनका समाधान करती। कमज़ोर विद्यार्थियों पर अधिक ध्यान देकर उन्हें और अच्छी तरह समझाती। कक्षा के पश्चात् उन्हें बुलाकर पढ़ाती।

मैं विद्यार्थियों को साहित्यिक और सांस्कृतिक कार्यक्रमों में भाग लेने के लिए उत्साहित करती। इनसे उनमें सुसंस्कार आते। प्रत्येक विद्यार्थी में कोई-न-कोई गुण अवश्य होता है। उनके उन गुणों को और विकसित करने के अवसर प्रदान करती।

मैं कक्षा में बैठकर न पढ़ाती। कक्षा में खड़े होकर पढ़ाने से प्रत्येक विद्यार्थी अच्छी तरह दिखाई देते हैं। इससे पीछे बैठे विद्यार्थी स्वयं को उपेक्षित नहीं समझते। मैं ब्लैकबोर्ड का प्रयोग भी करती। इसके अतिरिक्त पाठ से जुड़े चार्ट, चित्र आदि लाकर विद्यार्थियों को दिखाती और समझाती।

मैं तड़क-भड़क वाले वस्त्र न पहनती। मेरी वेशभूषा ऐसी होती जिससे विद्यार्थियों में शालीनता आती। मैं चिल्ला-चिल्लाकर नहीं अपितु मधुर स्वर में पढ़ाती। मैं क्रोध को स्वयं से कोसों दूर रखती। मैं कक्षा में अपनी व्यक्तिगत बातें न बताकर केवल पढ़ाई से जुड़ी बातें ही करती। मैं प्रत्येक विद्यार्थी से अपनी संतान के समान स्नेह करती। मैं कक्षा में कविता-पाठ, एकांकी, गायन, वाद-विवाद, प्रश्नोत्तरी, अंत्याक्षरी आदि कार्यक्रम कराती।

मैं कक्षा में कभी भी विलंब से न पहुँचती। मैं अपने पारिवारिक कष्टों और समस्याओं की झलक तक विद्यार्थियों पर न पड़ने देती। मैं प्रत्येक विद्यार्थी के साथ मुस्कराकर मिलती। मैं उन्हें हर पल उत्साहित करती रहती।

मैं विद्यार्थियों को शैक्षिक-भ्रमण के लिए ले जाती। उन्हें गाँव में ले जाकर वहाँ के जीवन से परिचित कराती। मैं उन्हें झुग्गी-झोंपड़ियों की बस्तियों में ले जाकर वहाँ रह रहे लोगों के कष्टमय जीवन से साक्षात्कार कराती। अपने नगर के आसपास के महत्वपूर्ण और दर्शनीय स्थानों को दिखाकर विद्यार्थियों का ज्ञानवर्धन कराती।

आदर्श अध्यापिका बनना बहुत कठिन कार्य है। अध्यापिका में माँ-सा स्नेह और धैर्य होना चाहिए। उसमें नेतृत्व-शक्ति होनी चाहिए। उसमें राष्ट्रीयता की भावना कूट-कूटकर भरी होनी चाहिए। उसमें जाति-पाति और धार्मिक भेदभाव की भावना नहीं होनी चाहिए। यदि मैं अध्यापिका होती तो ऐसे समस्त गुणों को स्वयं में समाहित करती। मेरे यही गुण विद्यार्थियों में आते। इससे वे सुशिक्षित ही नहीं संस्कारवान बनते। वे भारत के सच्चे नागरिक बनते। इससे भारत का नया रूप बनता। अध्यापक-अध्यापिकाओं को राष्ट्र-निर्माता यूँ ही नहीं कहा जाता। यदि मैं अध्यापिका होती तो अपने इस उत्तरदायित्व का पालन भी करती।