स्वस्थ जीवन सुखी जीवन संकेत बिंदु:
- स्वस्थ रहने का महत्व
- स्वस्थ रहना कर्तव्य है
- स्वस्थ कैसे रहें
- अस्वस्थता के कारण और निवारण
स्वस्थ जीवन सुखी जीवन पर निबन्ध | Healthy Life Happy Life Essay In Hindi
साथ ही, कक्षा 1 से 10 तक के छात्र उदाहरणों के साथ इस पृष्ठ से विभिन्न हिंदी निबंध विषय पा सकते हैं।
स्वास्थ्य जीवन की अमूल्य निधि है। स्वस्थ व्यक्ति न केवल स्वयं प्रसन्न एवं उत्साहमय रहता है अपितु वह अपने चारों ओर भी प्रसन्नता और उत्साह के वातावरण का निर्माण करता है। शारीरिक स्वस्थता मानसिक स्वस्थता को जन्म देती है। रोगी शरीर से जीवन कष्ट और निराशामय हो जाता है। इसलिए कहा गया है-
स्वस्थ तन से ही रहता, सदा स्वस्थ है मन,
स्वस्थ रहने का सदा, करते रहो प्रयत्न।
प्रत्येक व्यक्ति का सर्वप्रथम कर्तव्य अपने शरीर को स्वस्थ रखना है। हमें इस संसार के समस्त उत्तरदायित्वों का निर्वाह इसके माध्यम से ही करना होता है। स्वस्थ बालक हँसता, खेलता, उछलता, कूदता, भागता, गाता है। उसकी इन क्रीड़ाओं से चारों ओर के वातावरण में प्रसन्नताओं की लहर दौड़ जाती है। अस्वस्थ बालक एक ही स्थान पर पर पड़ा रहता है। वह उदास और निराश हो जाता है। उसके जीवन में उत्साह का भाव लुप्त हो जाता है। ऐसे बालक अपनी ओर आकर्षित नहीं करते। स्वस्थ और मुस्कराता बालक मन मोह लेता है। इसलिए बाल्यकाल से ही बालक-बालिकाओं के स्वास्थ्य का ध्यान रखना चाहिए। माता-पिता उन्हें स्वस्थ रहने का महत्व समझाएँ। उनमें स्वस्थ रहने की आदतें डालें।
अच्छा तन होता अगर, अच्छा लगे संसार।
सुखमय रहने का यही, होता है आधार॥
स्वस्थ रहने के लिए नियमित दिनचर्या का होना अत्यंत आवश्यक होता है। प्रातः समय पर उठकर सैर करनी चाहिए। व्यायाम करके स्नानादि करना चाहिए। समय पर नाश्ता और भोजन करना चाहिए। भोजन की पौष्टिकता को महत्व देना चाहिए। स्वाद के लिए भोजन नहीं करना चाहिए। भोजन शरीर के समस्त अंगों के विकास में सहायक होना चाहिए। रात को जल्दी सो जाना चाहिए। टेलीविज़न कम देखना चाहिए। आँखों पर अनावश्यक बोझ नहीं डालना चाहिए। शरीर के प्रत्येक अंग की देखभाल करनी चाहिए-
दाँत साफ़ रखिए सदा, रखिए साफ़ जबान।
आँख कान और नाक पर, देते रहिए ध्यान॥
अच्छे स्वास्थ्य के लिए नियमित व्यायाम अत्यंत आवश्यक होता है। योगासन, सैर, कसरत और श्रम से शरीर बलशाली बनता है। शरीर में स्फूर्ति बनी रहती है। मन प्रसन्न रहता है। कार्य करने में रुचि बनी रहती है। बच्चों से लेकर बूढों तक के लिए व्यायाम आवश्यक होता है। घर के कार्य करने में भी व्यायाम हो जाता है। इसलिए इन्हें करने में संकोच नहीं करना चाहिए। शिक्षा के पाठ्यक्रम में खेल-कूद अनिवार्य कर दिए गए हैं। इसका एकमात्र कारण है विद्यार्थियों का शारीरिक विकास करना।
चौधरी हरनामदास दत्त को उनके सौवें जन्म-दिवस पर सम्मानित किया गया। जब उनसे उनके स्वस्थ रहने का रहस्य पूछा गया तो उनका उत्तर था-‘मैं नियमित रूप से सैर करता आ रहा हूँ। अब भी प्रतिदिन दस-बारह किलोमीटर सैर करता हूँ।’ सैर स्वयं में अच्छा व्यायाम है। अतः बाल्यकाल से सैर करने की आदत डालनी चाहिए।
अस्वस्थता के अनेक कारण हैं। इनमें तनाव प्रमुख कारण है। इससे उच्च रक्तचाप, हृदय रोग, जोड़ों के दर्द, अल्सर आदि अनेक रोग लग जाते हैं। जीवन को तनावमुक्त रखना चाहिए। चिंताओं से तनाव जन्म लेते हैं। चिंता करने से कोई भी कार्य नहीं हो जाता। प्रत्येक कार्य उचित मार्ग अपनाने से और उचित समय पर ही होता है। प्रत्येक व्यक्ति को तनावहीन रहने का प्रयत्न करना चाहिए। विद्यार्थी जीवन में तो तनाव होना ही नहीं चाहिए। नियमित रूप से अध्ययन करते रहने पर तनाव पास नहीं फटकते। विद्यार्थी रोगमुक्त रहते हैं।
स्वस्थ रहने के लिए जीवन सादगी के साथ व्यतीत करना चाहिए। जीवन का सिद्धांत होना चाहिए-सादा जीवन उच्च विचार। सादगीपूर्ण जीवन व्यतीत करने के लिए आवश्यकताएँ भी कम हो जाती हैं। वस्तुओं को एकत्र करने के लिए अनावश्यक प्रयास नहीं करने पड़ते। इससे जीवन में कुंठाएँ नहीं रहती। तनावहीन जीवन रोगमुक्त रहता है। इसलिए स्वस्थ और सुखी रहने के लिए तनावों से मुक्त रहना चाहिए।
स्वास्थ्य को धन से अधिक महत्व दिया जाता है। यदि शरीर स्वस्थ रहता है तो धनोपार्जन किया जा सकता है। परिश्रम से कार्य करके धन प्राप्त किया जा सकता है परंतु धन से स्वास्थ्य प्राप्त नहीं किया जा सकता। अनेक धनी व्यक्ति भाँति-भाँति के रोगों से पीड़ित होते हैं। उनके भोजन पर कई प्रतिबंध लगे होते हैं। मधुमेह से पीड़ित व्यक्ति चीनी का सेवन नहीं कर सकते। वे मिठाइयों का आनंद नहीं ले सकते। हृदय रोगियों और उच्च रक्तचाप से पीड़ितों के खान-पान पर भाँति-भाँति के प्रतिबंध लगे होते हैं। धन होने पर भी व्यक्ति मनचाही वस्तुएँ खा-पी नहीं सकता। स्वस्थ व्यक्ति मनचाही वस्तुओं का आनंद ले सकता है।
प्रत्येक व्यक्ति को सदा स्वस्थ रहने का प्रयत्न करना चाहिए। उसे पौष्टिक तत्वों से पूर्ण भोजन करना चाहिए। स्वाद के लिए भोजन नहीं करना चाहिए अपितु शरीर के समस्त अंगों को हृष्ट-पुष्ट बनाए रखने के लिए भोजन करना चाहिए। नियमित रूप से व्यायाम करना चाहिए। अपनी दिनचर्या का नियमपूर्वक पालन करना चाहिए। इससे शरीर स्वस्थ रहेगा और जीवन सुखी होगा।