Hard Work Success Essay In Hindi | परिश्रम ही सफलता पर निबंध

Hard Work Success Essay In Hindi परिश्रम ही सफलता पर निबंध
परिश्रम सफलता का रहस्य संकेत बिंदु:

  • परिश्रम का महत्व
  • भाग्य और परिश्रम
  • परिश्रम से ही सफलता

साथ ही, कक्षा 1 से 10 तक के छात्र उदाहरणों के साथ इस पृष्ठ से विभिन्न हिंदी निबंध विषय पा सकते हैं।

परिश्रम ही सफलता पर निबन्ध | Essay on Hard Work Success In Hindi

वेद के एक मंत्र में कहा गया है-‘कृतं में दक्षिणे हस्ते, जयो में सव्य अहिते’-मेरे दाएँ हाथ में कर्मठता हो तो बाएँ हाथ में विजय होगी। इस मंत्र ने एक सच्चाई को प्रस्तुत किया है। जो व्यक्ति परिश्रम और साहस से कार्य करते हैं, उन्हें सदा सफलता प्राप्त होती व्याकरण संधान है। श्रम के महत्व को सभी ने स्वीकार किया है। यह वह शक्ति है जिस पर विश्वास और भरोसा किया जा सकता है। एक प्राचीन कहावत के अनुसार यह पृथ्वी परिश्रमी और पुरुषार्थी व्यक्तियों द्वारा ही भोगी जा सकती है-‘वीरभोग्या वसुंधरा’ परिश्रमी व्यक्ति ही इस संसार के ऐश्वर्य को भोग सकते हैं। किसी महान कार्य को पूरा करने के लिए परिश्रम ही एक मात्र साधन है।

जो मनुष्य परिश्रम न करके आलस्यपूर्ण जीवन व्यतीत करते हैं, सफलता उनसे दूर रहती है। पछतावा करने के सिवाय उन्हें कुछ हाथ नहीं लगता ‘अब पछताए होत क्या, जब चिड़िया चुग गई खेत।’ ऐसे मनुष्य भाग्य को बड़ा मानते हैं। भाग्य को विधाता मानकर वे परिश्रम से बचते हैं। उनके अनुसार ‘मनुष्य भाग्य के हाथों का खिलौना’ होता है। भाग्यवादी प्रायः सत्यवादी राजा हरिश्चंद्र और भगवान श्री राम के जीवन का उदाहरण देते हैं। उनका कहना है कि भाग्य बड़ा बलवान होता है, उसी के कारण राजा हरिश्चंद्र को राज-त्याग कर श्मशान में दासता करनी पड़ी तथा भगवान राम को चौदह वर्ष तक वन में रहकर कष्ट भोगने पड़े।

जीवन का यथार्थ कुछ और ही कहानी कहता है। भाग्य पर भरोसा न करके परिश्रम की पतवार के सहारे ही जीवन नौका में बैठकर संसार-सागर के उस पार पहुंचा जा सकता है। जो लोग आलसी और निष्क्रय होते हैं वही ‘भाग्यं फलति सर्वत्र’ का नारा लगाते हैं। वे मनुष्य को नितांत शक्तिहीन और असमर्थ मानते हैं। ऐसे व्यक्ति हीन भावना से ग्रस्त होते हैं, उनमें आत्मविश्वास की कमी होती है तथा वे स्वयं को असहाय समझते हैं। वे हाथ पर हाथ धरे बैठे रहते हैं। परिश्रम को तिलांजलि देकर वे निराशापूर्ण जीवन व्यतीत करते हैं। इसके विपरीत भाग्य या संयोग को कल्पना की वस्तु मानने वाले परिश्रमशील व्यक्ति दूसरों को दोष नहीं देते। वे कठोर श्रम और दृढ़ संकल्प शक्ति को ही सफलता की कुंजी मानते हैं। नेपोलियन की मान्यता थी, “भाग्य उन्हीं का साथ देता है जो सबसे अधिक कुशल, सबसे अधिक साहसी और दृढ़ निश्चयी होते हैं।” ऐसे वीर पुरुषों के सामने ऊँचे पर्वत भी सिर झुका देते हैं। नियति को तुच्छ मानने वाले ऐसे महापुरुष जीवन की विषम परिस्थितियों तथा बड़ी-से-बड़ी बाधाओं की चुनौती को स्वीकार करते हैं। महाराजा रणजीतसिंह की तरह उनके चरणों में भी नदी की भयंकर ऊँची लहरें नतमस्तक हो जाती हैं। कवि अयोध्यासिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’ ने ऐसे ही पुरुषों के लिए कहा है-

देखकर बाधा विविध बहु विज घबराते नहीं,
रह भरोसे भाग्य के दुख भाग पछताते नहीं।

उद्यम से ही सब कार्य सिद्ध होते हैं, केवल मन में विचार करने से कार्य-सिद्धि नहीं होती। भगवान भी उन्हीं की मदद करता है जो अपनी मदद आप करते हैं। इसलिए मनुष्य को परिश्रम के महत्व को पहचानना चाहिए। कभी-कभी ऐसा भी देखा जाता है कि परिश्रम करने के बाद भी कार्य सिद्ध नहीं होता, ऐसी स्थिति में निराशा का दामन थामने से काम नहीं चलता। यत्न करने पर भी यदि कार्य में सफलता नहीं मिलती तो उसके लिए परिश्रमी को दोषी नहीं ठहराया जा सकता। महाराज भर्तृहरि ने उचित ही कहा है-

उद्योगिन पुरुषसिंहमुपैति लक्ष्मी,
दैवेन देयमिति कापुरुषा वदंति।
दैव निहत्य कुरु पौरुषमात्मशक्त्या,
यत्ने कृते यदि न सिध्यति कोऽत्र दोषः।

सिद्धि या सफलता का मूल मंत्र निःसंदेह उद्यम या उद्योग है। असफल होने पर परिश्रमी व्यक्ति को यह देखना चाहिए कि उसकी कार्य-विधि में कहाँ त्रुटि रह गई। उस दोष का निवारण कर उसे तत्परतापूर्वक पुनः कार्य में जुट जाना चाहिए। निश्चय ही सफलता उसके चरण चूमेगी।