भारत में खेलों का भविष्य पर निबंध – Future Of Sports Essay In India

भारत में खेलों का भविष्य पर निबंध – Essay On Future Of Sports In India

रूपरेखा–

  • प्रस्तावना,
  • खेलों के प्रति उदासीनता और उपेक्षा,
  • कारण और परिणाम,
  • विभिन्न आयोजन और भारत,
  • बाजारवाद और खेल,
  • स्थिति में सुधार की आवश्यकता,
  • उपसंहार।

साथ ही, कक्षा 1 से 10 तक के छात्र उदाहरणों के साथ इस पृष्ठ से विभिन्न हिंदी निबंध विषय पा सकते हैं।

भारत में खेलों का भविष्य पर निबंध – Bhaarat Mein Khelon Ka Bhavishy Par Nibandh

प्रस्तावना–
खेल मनुष्य की जन्मजात प्रकृति है। बच्चे बचपन से ही किसी न किसी खेल का आनन्द उठाते हैं। विद्यालयों में भी उनको खेलने का अवसर मिलता है। किन्तु खेलों के प्रति जिस प्रोत्साहन की जरूरत है, उस ओर समाज और सरकार को ही गम्भीरता से आत्मनिरीक्षण करने की आवश्यकता बनी हुई है।

खेलों के प्रति उदासीनता और उपेक्षा–
हमारे देश में खेलों को शिक्षा में बाधक माना जाता है। परिवार के बड़े बच्चों को खेलकूद के प्रति हतोत्साहित करते हैं। उनका मानना है कि दूसरे बच्चों का ध्यान पढ़ाई–लिखाई से हट जाता है और वे जीवन में पिछड़ जाते हैं। कहावत प्रचलित है–’पढ़ोगे लिखोगे बनोगे नवाब, खेलोगे कूदोगे होगे खराब।’

यद्यपि यह कहावत आधारहीन है। खेल जीवन को सँभालने के लिए जरूरी हैं और शिक्षा के समान ही आवश्यक हैं। इस मनोवृत्ति का परिणाम यह है कि खेलों के प्रति प्रोत्साहित करने के लिए हमारे यहाँ कोई व्यवस्था ही नहीं है। सरकार की खेलों को बढ़ावा देने की सुनिश्चित नीति न होने के कारण, खेलने के मैदानों में बस्तियाँ बस गई हैं। स्कूलों के पास कोई प्ले ग्राउण्ड बचा ही नहीं है। न खेलने का सामान है और न खेलों के लिए धन की कोई व्यवस्था है।

कारण और परिणाम–
खेलों के प्रति इस उपेक्षा का कारण निर्धनता भी है। हम अपने बच्चों को पढ़ा–लिखाकर किसी धनोपार्जन के काम में लगाना अच्छा समझते हैं। उन्हें खेलकूद का प्रशिक्षण दिलाने की बजाय किसी व्यावसायिक शिक्षा केन्द्र में भरती कराना वे उचित समझते हैं। सरकार की ओर से भी इस विषय में किसी प्रोत्साहन की व्यापक व्यवस्था नहीं है।

परिणाम बहुत स्पष्ट है कि देश खेलकूद के क्षेत्र में अपेक्षित गति से आगे नहीं बढ़ा है। खेलों के आयोजनों में भारतीय खिलाड़ियों की सफलता का प्रतिशत ही कम ही रहा है। पदक प्राप्त करने वालों में छोटे–छोटे देश भी हमसे आगे रहते हैं।

अब भारत में वैश्विक आयोजन हो रहे हैं ओलम्पिक खेल, वर्ल्ड कप, अनेक प्रतियोगिताओं के साथ क्रिकेट का आई. पी. एल. संस्करण तो विश्वभर में लोकप्रिय बन चुका है। फुटबाल के क्षेत्र में भी लीग खेल आयोजित होते हैं।

बाजारवाद और खेल–
खेलों में राजनीति और बाजारवाद के दखल के कारण भी भारत खेलों में पिछड़ा है। इसने खेलों के मूल उद्देश्य को ही क्षति पहुँचाई है। खिलाड़ियों में खेल भावना नष्ट हो गई है और खेल धनोपार्जन करके मालामाल होने का साधन मान लिए गए हैं। क्रिकेट के खेल में फिक्सिंग का जो रोग लगा है वह बाजारवाद के ही कारण है।

बाजार ने खेलों पर कब्जा कर लिया है और खेलों को बाजार बना दिया गया है। आई. पी. एल. खिलाड़ी नहीं सट्टेबाज पैदा करता है। श्रीनिवासन की अध्यक्षता वाले आयोग ने भारतीय क्रिकेट की जो दुर्दशा की है उसकी रिपोर्ट देखकर तथा श्रीनिवासन को अपने पद से न हटता देखकर ही सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें अपने पद से हटाने की बात कही है। क्रिकेट के खिलाड़ी अब राजनेताओं की तरह जनता का विश्वास खो बैठे हैं। साधारण जनता उनके खेल को एक प्रकार जुआ ही मानती है।

स्थिति में सुधार की आवश्यकता–
भारत को यदि खेल जगत में चीन की तरह आगे बढ़ना है तो उसे इस स्थिति पर नियंत्रण रखना ही होगा। खेलों को खेल मानकर उनके प्रोत्साहन की व्यवस्था करना जरूरी है।

इसके लिए उचित प्रशिक्षण केन्द्र तथा आवश्यक धनराशि की व्यवस्था करना भी जरूरी है। विद्यालय स्तर से ही इसमें सुधार की आवश्यकता है। खेलों से राजनीति के लोगों तथा व्यापारियों को दूर रखना जरूरी है। खेलों का नियंत्रण खेलों के प्रति समर्पित लोगों को ही दिया जाना चाहिए।

उपसंहार–
भारत विभिन्न क्षेत्रों में विकास के पथ पर आगे बढ़ रहा है। खेलों की उपेक्षा करके वह अपना लक्ष्य प्राप्त नहीं कर सकता। खेलों को विकास का एक अंग मानकर ही वह विश्व के अन्य विकसित देशों के साथ खड़ा हो सकता है।