भूकंप पर निबंध – Earthquake Essay In Hindi

भूकंप पर निबंध – Essay On Earthquake In Hindi

यद्यपि प्राकृतिक आपदा जब भी गुस्सा दिखाती है तो कहर ढहाए बिना नहीं मानती है। आकाश तारों को छू लेने वाला विज्ञान प्राकृतिक आपदाओं के समाने विवश है। अनेक प्राकृतिक आपदाओं में कई आपदाएँ मनुष्य की अपनी दैन हैं। कुछ वर्षों में प्रकृति के गुस्से के जो रूप दिखे हैं, उन्हें देखकर ऐसा लगता है कि प्रकृति के क्षेत्र में मनुष्य जब-जब हस्तक्षेप करता है तो उसका ऐसा ही परिणाम होता है जो सुनामी के रूप में और गुजरात के भयावह भूकंप के रूप में देखने और सुनने में आया।

इन दृश्यों को देखकर अनायास ही लोगों के मुँह से निकल पड़ता है कि जनसंख्या के संतुलन को बनाए रखने के लिए प्रकृति में ऐसी हलचल होती रहती है, जो अनिवार्य रूप में हमेशा से होती रही है। वर्षा का वेग बाढ़ बनकर कहर ढहाता है तो कभी ओला, तूफान, आँधी और सूखा आदि के रूप में प्रकृति मनुष्यों को अपनी चपेट में लेती है। अपनी प्रगति का डींग हाँकने वाला विज्ञान और वैज्ञानिक यहाँ असहाय दिखाई देते हैं अर्थात् प्राकृतिक आपदाओं से संघर्ष करने की मनुष्य में सामथ्र्य नहीं है।

धरती हिलती है, भूचाल आता है। जब यही भूचाल प्रलयंकारी रूप ले लेता है, तो भूकंप कहलाता है। सामान्य भूकंप तो जहाँ-तहाँ आते रहते हैं, जिनसे विशेष हानि नहीं होती है। जब जोर का झटका आता है तो गुजरात के दृश्य की पुनरावृत्ति होती है। ये भूकंप क्यों होता है, कहाँ होगा, कब होगा? वैज्ञानिक इसका सटीक उत्तर अभी तक नहीं दे सके हैं।

हाँ भूकंप की तीव्रता को नापने का यंत्र विज्ञान ने जैसे-तैसे बना लिया है। सर्दी से बचने के लिए हीटर लगाकर, गर्मी से बचने के लिए वातानुकूलित यंत्र लगाकर, प्रकृति को अपने अनुकूल बनाने में सामान्य सफलता प्राप्त कर ली है, पर वर्षों के प्रयास के बावजूद भी इससे निजात पाने की बात तो दूर उसके रहस्यों को भी नहीं जान पाया है। यह उसके लिए चुनौतीपूर्ण कार्य है। कुछ आपदाएँ तो मनुष्य की देन हैं।

अनुमानित वैज्ञानिक घोषणाओं के अनुसार अंधाधुंध प्रकृति को दोहन और पर्यावरण का तापक्रम बढ़ने से धरती के अंदर हलचल होती है और यह हलचल तीव्र हो जाती है तो भूकंप के झटके आने लगते हैं। धरती हिलने या भूकंप के बारे में अनेक किंवदंतियाँ प्रचलित हैं। कुछ धार्मिक व्याख्याओं के कारण यह धरती सप्त-मुँह वाले नाग के सिर पर टिकी है। जब नाग सिर बदलता है तो धरती हिलती है।

दूसरी किंवदंती है कि धरती धर्म की प्रतीक गाय के सींग पर टिकी है और जब गाय सींग बदलती है तो तब धरती हिलती है। कुछ धर्माचार्यों का मानना है कि जब पृथ्वी पर पाप-स्वरूप भार अधिक बढ़ जाता है तो धरती हिलती है और जहाँ पाप अधिक वहाँ धरती कहर ढहा देती है। इसके विपरीत वैज्ञानिक का मानना है कि पृथ्वी की बहुत गहराई में तीव्रतम आग है।

जहाँ आग है वहाँ तरल पदार्थ है। आग के कारण पदार्थ में इस तरह की हलचल होती रहती है। जब यह उथल-पुथल अधिक बढ़ जाती है तब झटके के साथ पृथ्वी की सतह से ज्वालामुखी फूट पड़ता है। पदार्थ निकलने की तीव्रता के अनुसार पृथ्वी हिलने लगती है। इनमें से कोई भी तथ्य हो, परंतु ऐसे दैवीय-प्रकोप से अभी सुरक्षा का कोई साधन नहीं है।

मनुष्य-जाति के अथक प्रयास से निर्मित, संचित सभ्यता एक झटके में मटियामेट हो जाती है। सब-कुछ धराशायी हो जाता है। वहाँ जो बच जाते हैं, उनमें हाहाकार मच जाती है। राजा और रंक लगभग एकसमान हो जाते हैं क्योंकि ऐसे दैवीय प्रकोप बिना किसी संकोच और भेदभाव के समान रूप से पूरी मानवता पर कहर ढहा देती है।

गुजरात में एकाएक, तीव्रगति से भूकंप हुआ। इस भूकंप ने शायद गुस्से से दिन चुना गणतंत्र दिवस 26 जनवरी। संपूर्ण देश गणतंत्र के राष्ट्रीय उत्सव में मग्न था। गुजरात के लोग दूरदर्शन पर गणतंत्र दिवस का कार्यक्रम को देख रहे थे। तभी एकाएक झटका लगा धरती हिली। ऐसा लगा कि लंबे समय से धरती अपने गुस्से को दबाए हुए थी। आज उसका गुस्सा फूट पड़ा।

ऐसा फूटा कि लोग सोच भी न पाए कि क्या हुआ और थोड़ी ही देर में गगनचुंबी अट्टालिकाएँ, अस्पताल, विद्यालय, फैक्टरी और टेलीविजन के सामने बैठी भीड़ को उसने निगल लिया। शेष रह गई उन लोगों की चीत्कार, जो उसकी चपेट में आने से बच गए थे। बचने वाले लोगों के लिए सरकारी सहायता पहुँचने लगी। यह सहायता कुछ के हाथ लगी और कुछ वंचित रह गए।

वितरण की समुचित व्यवस्था न हो सकी। प्राकृतिक आपदा आकस्मिक रूप से अपना स्वरूप दिखाती है। ऐसे समय में मानवीय चरित्र के भी दर्शन होते हैं।

मानवता के नाते ऐसी आपदाओं में मनुष्य एकजुट होकर आपदा-ग्रसित लोगों का धैर्य बँधते हैं कि हम तुम्हारे साथ हैं। हम यथासंभव और यथासामथ्र्य तुम लोगों की सहायता करने के लिए तत्पर हैं। इस तरह टूटता हुआ धैर्य, ढाढस पाकर पुन: पुनर्जीवित हो उठता है। ऐसे समय में ढाढ़स की आवश्यकता भी होती है। यह मानवीय चरित्र भी है।

किंतु आश्चर्य तो तब होता है जब इस प्रकार के भयावह दृश्य को देखते हुए भी कुछ लोग अमानवीय कृत्य यानी पीड़ित लोगों के यहाँ चोरी, लूट आदि करने में भी संकोच नहीं करते हैं। एक ओर तो देश के कोने-कोने से और दूसरे देशों से सहायता पहुँचती है और दूसरी ओर व्यवस्था के ठेकेदार उसमें भी कंजूसी करते हैं और अपनी व्यवस्था पहले करने लगते हैं। ऐसे लोग ऐसे समय में मानवता को ही कलंकित करते हैं।

गुजरात में भूकंप के समय समाचार-पत्रों ने लिखा कि बहुत सी समाग्रियाँ वितरण की समुचित व्यवस्था न होने से बेकार हो गई। ऐसी प्राकृतिक आपदाएँ मनुष्य को संदेश देती हैं कि जब-तक जिओ, तब-तक परस्पर प्रेम से जिओ। मैं कब कहर बरपा दूँ। उसका मुझे भी पूर्ण ज्ञान नहीं है।

प्राकृतिक आपदा गीता के उस संदेश को दोहराती है कि कर्म करने में तुम्हारा अधिकार है फल में नहीं। यह प्राकृतिक आपदा मनुष्य को सचेत करती है और संदेश देती है कि मैं मौत बनकर सामने खड़ी हूँ। जब तक जी रहे हो तब तक मानवता की सीमा में रहो और जीवन को आनंदित करो. निश्चित और सात्विक रहो।