दीपावली संकेत बिंदु:
- दीपावली से जुड़ी कथाएँ
- दीपावली की तैयारी
- दीपावली मनाना
- महत्व
साथ ही, कक्षा 1 से 10 तक के छात्र उदाहरणों के साथ इस पृष्ठ से विभिन्न हिंदी निबंध विषय पा सकते हैं।
दीपावली पर निबन्ध | Essay on Diwali In Hindi
दीपावली-सी लोकप्रियता और महत्ता हिंदुओं के अन्य किसी भी पर्व को प्राप्त नहीं है। दीपों के इस पर्व को भारत के सभी लोग किसी-न-किसी रूप में मनाते हैं। इस पर्व के साथ अनेक पौराणिक और दंतकथाएँ जुड़ी हुई हैं। इसी दिन श्री राम चौदह वर्ष का वनवास समाप्त कर सीता के साथ अयोध्या लौटे थे। अयोध्यावासियों ने उनके स्वागत में नगर को दीपमालिकाओं से सजाया था। घर-घर मिष्ठान बँटे थे। तभी से यह पर्व आनंद, उल्लास और विजय का प्रतीक बन गया है। यह पर्व श्री राम के लोकरक्षक रूप का स्मरण कराता हुआ हमें उन्हीं के समान आदर्श भाई, पति और मित्र बनने की प्रेरणा देता है। पौराणिक गाथाओं के आधार पर सागर मंथन होने पर इसी दिन लक्ष्मी का आविर्भाव हुआ था। अतः इस दिन लक्ष्मी की पूजा भी की जाती है। इसी कारण यह पर्व आर्थिक सम्पन्नता का प्रतीक बन गया है।
आज इस पर्व के साथ कुछ आधुनिक कारण भी जुड़ गए हैं और इसका महत्व भी बढ़ गया है। आर्य समाज के प्रवर्तक स्वामी दयानंद सरस्वती का इसी दिन निर्वाण हुआ था। अतः आर्यसमाजी इस दिन को बहुत पवित्र मानते हैं। जैनियों के चौबीसवें तीर्थंकर महावीर स्वामी को भी इसी दिन निर्वाण प्राप्त हुआ था। जैन समाज इस उपलक्ष्य में इस पर्व को मनाता है।
लोग अपने घरों, दुकानों और व्यवसाय केंद्रों की लिपाई-पुताई कराकर उन्हें सजाते हैं। इस तरह दीपावली स्वच्छता का पर्व भी बन . गया है। शाम को रंगबिरंगी रोशनी से सारा नगर जगमगा जाता है। बाजारों की सजावट का तो क्या कहना। मिठाइयों और उपहार की दुकानों पर लोग अपनी पसंद का सामान खरीदते हैं। वे सगे संबंधियों और इष्ट मित्रों के यहाँ जाकर उन्हें दीपावली की शुभकामनाएँ देते हुए मिठाई और उपहार भेंट करते हैं। इस दिन कोई आपसी मनमुटाव हो तो उसे भी भुलाकर संबंध सामान्य बनाने की कोशिश की जाती है।
इस पर्व में एक ओर जहाँ इतने सारे गुण हैं वहीं कुछ लोगों ने इसके साथ एक अवगुण भी जोड़ दिया है। बहुत से लोग इस दिन इस विश्वास के साथ जुआ खेलते हैं कि आज जीत गए तो वर्ष भर लक्ष्मी की कृपा बनी रहेगी। इस बुरी प्रथा के कारण अक्सर लोग ऋण के भार से दब जाते हैं। देश और जाति की समृद्धि का यह पर्व उल्लास और हमारी आर्थिक प्रगति का सूचक तो है ही अत्यंत मनोरम और महत्वपूर्ण भी है।
कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की अमावस्या को मनाया जाने वाला यह पर्व अंधकार रूपी अज्ञान पर प्रकाश रूपी ज्ञान की विजय का प्रतीक है। इस प्रकार यह पर्व ‘तमसो मा ज्योतिर्गमय’ के आदर्श को प्रतिष्ठापित करता है।
दीपावली का त्योहार वर्षा ऋतु के समाप्त होने पर मनाया जाता है। वर्षा के कारण उत्पन्न होने वाले कीटाणुओं तथा घर की गंदगी को नष्ट करने के लिए घरों की लिपाई-पुताई होती है। घरों और बाज़ारों को सजाया जाता है। सरसों के तेल के दिए जलाए जाते हैं, बिजली के रंग-बिरंगे बल्ब भी उत्सव की शोभा में वृद्धि करते हैं। बच्चे खुशी से आतिशबाजी पटाखे-फुलझड़ी चलाते हैं। शरद ऋतु के आगमन के साथ ही नववर्ष का आरंभ भी माना जाता है। नए अनाज के आने की खुशी में कृषक विशेष उल्लास के साथ इस पर्व को मनाते हैं। आवश्यकता इस बात की है कि इस अवसर पर यूत-क्रीड़ा तथा मदिरापान आदि दूषित प्रथाओं को तिलांजलि देकर आशा और उल्लास से भरपूर यह ज्योतिपर्व उत्साहपूर्वक मनाया जाए।