भ्रष्टाचार : समस्या और निवारण निबंध – Essay On zCorruption Problem And Solution In Hindi
भ्रष्टाचार अर्थ–सभ्यता का फल और बल है।
–जैनेन्द्र कुमार
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भ्रष्टाचार : समस्या और निवारण निबंध – Bhrashtaachaar : Samasya Aur Nivaaran Nibandh
रूपरेखा–
- प्रस्तावना (भ्रष्टाचार से आशय),
- भ्रष्टाचार के विविध रूप–
- (क) रिश्वत (सुविधा–शुल्क),
- (ख) भाई–भतीजावाद,
- (ग) कमीशन,
- (घ) यौन शोषण,
- भ्रष्टाचार के कारण
- (क) महँगी शिक्षा,
- (ख) लचर न्याय–व्यवस्था,
- (ग) जन–जागरण का अभाव,
- (घ) विलासितापूर्ण आधुनिक जीवन–शैली,
- (ङ) जीवन–मूल्यों का ह्रास और चारित्रिक पतन,
- भ्रष्टाचार दूर करने के उपाय
- (क) जनान्दोलन,
- (ख) कठोर कानून,
- (ग) नि:शुल्क उच्चशिक्षा,
- (घ) पारदर्शिता,
- (ङ) कार्यस्थल पर व्यक्ति की सुरक्षा और संरक्षण,
- (च) नैतिक मूल्यों की स्थापना,
- उपसंहार।
प्रस्तावना (भ्रष्टाचार से आशय)–
भ्रष्टाचार शब्द संस्कृत के ‘भ्रष्ट’ शब्द के साथ आचार शब्द के योग से निष्पन्न हुआ है। ‘भ्रष्ट’ का अर्थ है–अपने स्थान से गिरा हुआ अथवा विचलित और ‘आचार’ का अर्थ है–आचरण, व्यवहार। इस प्रकार किसी व्यक्ति द्वारा अपनी गरिमा से गिरकर अपने कर्तव्यों के विपरीत किया गया आचरण भ्रष्टाचार है।
भ्रष्टाचार के विविध रूप–
वर्तमान में भ्रष्टाचार इतना व्यापक है कि उसके विविध रूप देखने में आते हैं, जिनमें से कुछ मुख्य प्रकार हैं–
(क) रिश्वत (सुविधा–शुल्क)–किसी कार्य को करने के लिए किसी सक्षम व्यक्ति द्वारा लिया गया उपहार, सुविधा अथवा नकद धनराशि को रिश्वत कहा जाता है। इसी को साधारण भाषा में घूस और सभ्य भाषा में सुविधा–शुल्क भी कहा जाता है। अपने कार्य को समय से और बिना किसी परेशानी के कराने के लिए अथवा नियमों के विपरीत कार्य कराने के लिए आज लोग सहर्ष रिश्वत देते हैं।
(ख) भाई–भतीजावाद–किसी सक्षम व्यक्ति द्वारा केवल अपने सगे–सम्बन्धियों को कोई सुविधा, लाभ अथवा पद (नौकरी) प्रदान करना ही भाई–भतीजावाद है। आज नौकरियों तथा सरकारी सुविधाओं अथवा योजनाओं के क्रियान्वयन के समय समर्थ (अधिकारी/नेता) लोग अपने बेटा–बेटी, भाई, भतीजा आदि सगे–सम्बन्धियों को लाभ पहुँचाते हैं। इसके लिए प्रायः नियमों और योग्यताओं की अनदेखी भी की जाती है। भाई–भतीजावाद के चलते योग्य और पात्र लोग नौकरियों तथा सुविधाओं से वंचित रह जाते हैं।
(ग) कमीशन–किसी विशेष उत्पाद (वस्तु) अथवा सेवा के सौदों में किसी सक्षम व्यक्ति द्वारा सौदे के बदले में विक्रेता अथवा सुविधा प्रदाता से कुल सौदे के मूल्य का एक निश्चित प्रतिशत प्राप्त करना कमीशन है। आज सरकारी, अर्द्ध–सरकारी और प्राइवेट क्षेत्र के अधिकांश सौदों अथवा ठेकों में कमीशनबाजी का वर्चस्व है। प्रायः बड़े सौदों और ठेकों में तो करोड़ों के कमीशन के वारे–न्यारे होते हैं।
बोफोर्स तोप घोटाला, बिहार का चारा घोटाला, टू जी स्पैक्ट्रम घोटाला, कॉमनवेल्थ गेम्स घोटाला, मुम्बई का आदर्श सोसायटी घोटाला, सेना–हेलीकॉप्टर खरीद घोटाला, कोयला घोटाला आदि कमीशनबाजी के ऐसे बड़े चर्चित मामले रहे हैं, जिन्होंने देश की राजनीति में भूचाल ला दिया।
बोफोर्स तोप घोटाले में पूर्व प्रधानमन्त्री राजीव गांधी, चारा घोटाले में बिहार के पूर्व मुख्यमन्त्री लालूप्रसाद यादव, टू जी स्पैक्ट्रम घोटाले में दूरसंचार मन्त्री ए. राजा, आदर्श सोसायटी घोटाले में महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमन्त्री अशोक चव्हाण को अपने मन्त्री पदों से हाथ धोना पड़ा।
(घ) यौन शोषण–यह भ्रष्टाचार का सर्वथा नवीन रूप है। इसमें प्रभावशाली व्यक्ति विपरीत लिंग के व्यक्ति को अपने प्रभाव का प्रयोग करते हुए अनुचित लाभ पहुँचाने के बदले उसका यौन–शोषण करता है। आज अनेक नेता, अभिनेता और उच्चाधिकारी इस भ्रष्टाचार में आकण्ठ डूबे हैं और अनेक जेल की सलाखों के पीछे अपने कृत्यों पर पश्चात्ताप कर रहे हैं।
भ्रष्टाचार के कारण–भ्रष्टाचार के यद्यपि अनेकानेक कारण हैं, जिनमें से कुछ प्रमुख कारण इस प्रकार हैं-
(क) महँगी शिक्षा–शिक्षा के व्यवसायीकरण ने उसे अत्यधिक महँगा कर दिया है। आज जब एक युवा शिक्षा पर लाखों रुपये खर्च करके किसी पद पर पहुँचता है तो उसका सबसे पहला लक्ष्य यही होता है कि उसने अपनी शिक्षा पर जो खर्च किया है, उसे किसी भी उचित–अनुचित रूप से ब्याजसहित वसूले। उसकी यही सोच उसे भ्रष्टाचार के दलदल में धकेल देती है और फिर वह चाहकर भी इससे निकल नहीं पाता।
(ख) लचर न्याय–व्यवस्था–लचर न्याय–व्यवस्था भी भ्रष्टाचार का एक मुख्य कारण है। प्रभावशाली लोग अपने धन और भुजबल के सहारे अरबों–खरबों के घोटाले करके साफ बच निकलते हैं, जिससे युवावर्ग इस बात के लिए प्रेरित होता है कि यदि व्यक्ति के पास पर्याप्त धनबल है तो उसका कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता। बस यही धारणा उसे अकूत धन प्राप्त करने के लिए भ्रष्टाचार की अन्धी गली में धकेल देती है, जहाँ से वह फिर कभी निकल नहीं पाता।
(ग) जन–जागरण का अभाव–हमारे देश की बहुसंख्यक जनता अपने अधिकारों से अनभिज्ञ है, जिसका लाभ उठाकर प्रभावशाली लोग उसका शोषण करते रहते हैं और जनता चुपचाप भ्रष्टाचार की चक्की में पिसती रहती है।
(घ) विलासितापूर्ण आधुनिक जीवन–शैली–पाश्चात्य सभ्यता की विलासितापूर्ण जीवन–शैली ने अपनी चकाचौंध से युवावर्ग को अत्यधिक प्रभावित किया है, जिस कारण वह शीघ्रातिशीघ्र भोग–विलास के सभी साधनों को प्राप्त करके जीवन के समस्त सुख प्राप्त करने का मोह नहीं छोड़ पाता।
शिक्षा–प्राप्ति के पश्चात् जब यही युवावर्ग कर्मक्षेत्र में उतरता है तो सभी प्रकार के उचित–अनुचित हथकण्डे अपनाकर विलासिता के समस्त साधनों को प्राप्त करने में जुट जाता है और वह अनायास ही भ्रष्टाचार को आत्मसात् कर लेता है।
(ङ) जीवन–मूल्यों का ह्रास और चारित्रिक पतन–आज व्यक्ति के जीवन से मानवीय–मूल्यों का इतना ह्रास हो गया है कि उसे उचित–अनुचित का भेद ही दिखाई नहीं देता। जीवन–मूल्यों के इसी ह्रास ने व्यक्ति का इतना चारित्रिक पतन कर दिया है कि पति–पत्नी, पिता–पुत्र, माता–पुत्र, माता–पुत्री, पिता–पुत्री, भाई–बहन तथा भाई–भाई के रिश्तों का खून आज साधारण–सी बात हो गई है।
जो व्यक्ति अपने सगे–सम्बन्धियों का खून कर सकता है, उससे अन्य लोगों के हितों की तो आशा ही नहीं की जा सकती। ऐसे संवेदन और मूल्यहीन, दुश्चरित्र व्यक्ति भ्रष्टाचार को बढ़ावा देते हैं।
भ्रष्टाचार दूर करने के उपाय–भ्रष्टाचार को रोकना आज यद्यपि विश्वव्यापी समस्या बन गई है और भले ही इसे समूल नष्ट न किया जा सके, तथापि कुछ कठोर कदम उठाकर इस पर अंकुश अवश्य लगाया जा सकता है।
भ्रष्टाचार को दूर करने के कुछ मुख्य उपाय इस प्रकार हैं-
(क) जनान्दोलन–भ्रष्टाचार को रोकने का सबसे मुख्य और महत्त्वपूर्ण उपाय जनान्दोलन है। जनान्दोलन के द्वारा लोगों को उनके अधिकारों का ज्ञान फैलाकर इस पर अंकुश लगाया जा सकता है। समाजसेवी अन्ना हजारे द्वारा चलाया गया जनान्दोलन भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने की दिशा में मील का पत्थर साबित हुआ है।
उनके जनान्दोलन की अपार सफलता को देखते हुए भारत सरकार भ्रष्टाचार की समाप्ति के लिए लोकपाल विधेयक संसद के दोनों सदनों राज्यसभा एवं लोकसभा से पारित हो चुका है। केन्द्रीय स्तर पर गठित लोकपाल की जाँच के दायरे में प्रधानमन्त्री, मन्त्री, सांसद और केन्द्र सरकार के समूह ए, बी, सी, डी के अधिकारी और कर्मचारी आएँगे, जबकि राज्यों में लोकायुक्त के दायरे में मुख्यमन्त्री, राज्य के मन्त्री, विधायक और राज्य सरकार के अधिकारी शामिल होंगे।
(ख) कठोर–कानून–कठोर कानून बनाकर ही भ्रष्टाचार पर रोक लगाई जा सकती है। यदि लोगों को पता हो कि भ्रष्टाचार करनेवाला कोई भी व्यक्ति सजा से नहीं बच सकता, भले ही वह देश का प्रधानमन्त्री अथवा राष्ट्रपति ही क्यों न हो, तो प्रत्येक व्यक्ति अनुचित कार्य करने से पहले हजार बार सोचेगा। दण्ड का यह भय जब तक नहीं होगा, तब तक भ्रष्टाचार पर अंकुश नहीं लगाया जा सकता है। अब लोकपाल कानून में इसका प्रावधान कर दिया गया है।
(ग) निःशुल्क उच्चशिक्षा–भ्रष्टाचार पर पूरी तरह अंकुश तभी लगाया जा सकता है, जब देश के प्रत्येक युवा को निःशुल्क उच्चशिक्षा का अधिकार प्राप्त होगा। यद्यपि अभी ऐसा किया जाना सम्भव नहीं दिखता, तथापि 14 वर्ष तक के बच्चों को नि:शुल्क अनिवार्य शिक्षा का अधिकार प्रदान करना इस दिशा में उठाया गया महत्त्वपूर्ण कदम है।
(घ) पारदर्शिता–देश और जनहित के प्रत्येक कार्य में पारदर्शिता लाकर भी भ्रष्टाचार को रोका जा सकता है; क्योंकि अधिकांश भ्रष्टाचार गोपनीयता के नाम पर ही होता है। सूचना का अधिकार यद्यपि इस दिशा में उठाया गया एक महत्त्वपूर्ण कदम है, तथापि इसको और अधिक व्यापक बनाने के साथ–साथ इसका पर्याप्त प्रचार–प्रसार किया जाना भी अत्यावश्यक है। ई–गवर्नेस के माध्यम से हमारी केन्द्रीय सरकार सभी सरकारी कार्यों में पारदर्शिता लाने के लिए कटिबद्ध है।
(ङ) कार्यस्थल पर व्यक्ति की सुरक्षा और संरक्षण–कार्यस्थल पर प्रत्येक व्यक्ति को अपने अधिकार और कर्तव्यों का निर्वाह करते हुए कार्य करने के लिए यह आवश्यक है कि उसे पर्याप्त सुरक्षा तथा संरक्षण प्राप्त हो, जिससे व्यक्ति निडर होकर अपना कार्य पूर्ण ईमानदारी के साथ कर सके।
यदि कार्यकारी व्यक्ति को पूर्ण सुरक्षा और संरक्षण मिले तो धनबल और बाहुबल का भय दिखाकर कोई भी व्यक्ति अनुचित कार्य करने के लिए किसी को विवश नहीं कर सकता। महिलाकर्मियों के लिए तो कार्यस्थल पर सुरक्षा और संरक्षण देने हेतु कानून बनाया जा चुका है, जिससे उनका यौन–शोषण रोका जा सके। यद्यपि इस कानून को और अधिक व्यापक तथा प्रभावी बनाने की आवश्यकता है।
(च) नैतिक मूल्यों की स्थापना–नैतिक मूल्यों की स्थापना करके भी भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाया जा सकता है। इसके लिए समाज–सुधारकों और धर्म प्रचारकों के साथ–साथ शिक्षक वर्ग को भी आगे आना चाहिए।
उपसंहार–
हमारे संविधान के 73वें और 74वें संशोधन में शक्तियों का ही विकेन्द्रीकरण नहीं किया गया है, बल्कि धूमधाम से भ्रष्टाचार का भी विकेन्द्रीकरण कर दिया गया है। पश्चिमी देशों में किसी राजनेता का भ्रष्टाचार उजागर होने पर उसका राजनैतिक जीवन समाप्त हो जाता है, किन्तु हमारे यहाँ तो राजनीतिज्ञ के राजनैतिक जीवन की शुरूआत ही भ्रष्टाचार से होती है। जो जितना बड़ा भ्रष्टाचारी और अपराधी, वह उतना ही सफल राजनीतिज्ञ।
यही कारण है कि ट्रांसपैरेंसी इण्टरनेशनल द्वारा जारी वर्ष 2017 के भ्रष्टाचार सूचकांक में भारत 79वें स्थान पर है, जबकि वर्ष 2016 में वह 76वें स्थान पर था। भ्रष्टाचार के क्षेत्र में अपनी इन उपलब्धियों के सहारे हम विकासशील से विकसित देश का दर्जा प्राप्त नहीं कर सकते। हम तभी विकसित देशों की श्रेणी में सम्मिलित हो सकते हैं, जब भ्रष्टाचार के क्षेत्र में न्यायिक तराजू पर राजा और रंक एक ही पलड़े में रखे जाएँ।